
उद्बोधन (kavita)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
ओ सिद्ध तपस्वी ! जाग, जाग !
ओ सोते सैनिक ! जाग, जाग !
अपना सब गौरव खो बैठा, हत भाग्य हाय, यह देश आज,
पुरुषों ने वीरों का बाना, बहिनों ने खोई लोक-लाज,
आ पहुँची पतन-पराकाष्ठा, सब भाँति सभी डूबा समाज,
श्री-हीन हुई उर्वरा भूमि, गौरव-विहीन है शैल-राज!
मिट चले आगरा, इन्द्रप्रस्थ, हो चले भस्म काशी-प्रयाग!
ओ सिद्ध तपस्वी ! जाग, जाग !
ओ सोते सैनिक ! जाग, जाग !
भूला तू अपना पूर्व-रूप, बन गया आज ऐसा कठोर !
तेरे अंतर में उठी न उस बलिदान-भावना की हिलोर,
जिसके हित अगणित बालाएँ सहती रहतीं अपमान घोर,
जिससे प्रेरित होकर कितने ही युवा, वृद्ध, बच्चे, किशोर-
कारागारों में थे अथवा निर्वासित थे घरबार त्याग!
ओ सिद्ध तपस्वी ! जाग, जाग !
ओ सोते सैनिक ! जाग, जाग !
यदि स्वार्थ त्याग तू आज वीर ! हो गया कहीं परमार्थ-लीन,
सावेग तोड़ कर लौह-पाश, होंगे मानव बन्धन-विहीन !
फिर रह न सकेंगे जीवन में हो सत्वहीन, बन पराधीन,
गावेंगे सब स्वाधीन-गीत, होगा न किसी का मन मलीन!
अब दसों दिशाओं से केवल हो रहा ध्वनित यह एक राग-
ओ सिद्ध तपस्वी ! जाग, जाग !
ओ सोते सैनिक ! जाग, जाग !
राजेश. एम. ए.
*समाप्त *