Magazine - Year 1961 - Version 2
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Language: HINDI
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अशान्त रहने से क्या लाभ
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(श्री0 अविनाशचनद्र चट्टोपाध्याय) अशान्ति और शान्ति की मनोदशा का जीवों पर क्या प्रभाव पड़ता है इसके अनेकों परीक्षण पाश्चात्य देशों में हुए है। कैन्सास यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक कक्ष में चूहों को निर्भय और निर्द्वन्द्व वातावरण में सामान्य भोजन देकर रखा गया तो वे बहुत स्वस्थ, फुर्तीले और दीर्घजीवी रहें। किन्तु चूहों के दूसरे दल को ऐसी जगह रखा गया जहाँ बिल्ली का पिंजड़ा सामने रखा था तथा और भी डर तथा प्रशान्ति की परिस्थितियाँ थीं। यह चूहे अपेक्षाकृत कहीं अच्छा भोजन पात थे, फिर भी वे बीमार हो गये, दुबले रहे ओर कम समय तक जिन्दा रह सके। मानसिक अशान्ति से स्नायु समूह पर भारी दबाव पड़ता है जिससे शरीर को विश्राम का लाभ मिलना बन्द हो जाता है। ऐसे लोगों को नींद भी अधूरी आती है और जब वे सोकर उठते हैं तो अपने में ताजगी नहीं, थकान ही देखते हैं। मानसिक शान्ति ऐसी बहुमूल्य खुराक है जिसे प्राप्त करने पर गरीब आदमी भी बड़े आनन्द और प्रसन्नता पूर्वक जीवन यापन करते हैं। श्रम अधिक करना पड़े, भोजन घटिया मिले या अन्य शारीरिक असुविधाएँ रहें तो भी मानसिक शान्ति मिलने की दशा में मनुष्य सुखी ही रहेगा। पर सब सुख साधन रहते हुए भी यदि आन्तरिक चिंता और परेशानी से मन व्यथित रहता है तो वह अपने को नरक में पड़ा हुआ ही अनुभव करेगा। इसलिए जीवन का आनन्द लाभ करने के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति को यह प्रयत्न करना चाहिए कि वह अपना मानसिक अशान्ति के कारणों की तलाश करे और उनसे छुटकारा पाने के लिए जितनी जल्दी संभव हो सके कदम उठावें। अन्य अभावों और कठिनाइयों के रहने से कुछ विशेष हानि नहीं है पर चित्त का उद्विग्न रहना एक भारी विपत्ति है। इससे जीवन का सारा आनन्द ही नष्ट हो जाता है। यदि अशान्ति का कारण कोई परिस्थितियाँ हैं तो बदलना चाहिए और यदि अपनी आदत ही ऐसी बन गई है कि जरा-सी बात पर जी घबराने लगे, भय का पहाड़ सामने उपस्थित दिखाई दे तो इस दुर्बलता को भी परास्त करना पड़ेगा। उपाय जो मन भी करना पड़े परिणाम यही प्राप्त करना चाहिए कि मन की अशान्ति दूर हो, चित्त में बेचैनी न रहे। जीवन क्रम को और अधिक समृद्ध उन्नतिशील बनाया जा सकता हो तो ठीक है वैसा करना चाहिए पर इसके लिए भी उद्विग्न और अशान्त रहने का मूल्य चुकाना बहुत महंगा पड़ेगा। कोई सफलता इतनी कीमती नहीं है कि उससे आन्तरिक अशान्ति के द्वारा होने वाली क्षति की पूर्ति की जा सके। किसी कठिनाई से परेशान होकर लोग बहुत अशान्त रहते देखे गये हैं। उनकी चिन्ता का उद्देश्य कठिनाई से छुटकारा पाना होता है पर परिणाम उलटा निकलता हैं। चिन्तित व्यक्ति अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है और उसकी वह सूझबूझ घट जाती है जिसके आधार पर सामने उपस्थित कठिनाइयों से छुटकारा पाया जाना संभव हैं। अशान्ति स्वयं अपने आपमें एक विपत्ति है, वह कठिनाइयों को घटाती नहीं बढ़ाती हैं। इसके अतिरिक्त शरीर और मन इतना अधिक ह्रास उस उद्विग्नता के कारण होता है जितने का सही उपयोग करने से उस जंजाल से छुटकारा मिल सकता था, जो परेशानी का प्रमुख कारण बना हुआ है। जीवन में कठिनाइयों का एक स्थान है। वे आती हैं, उनसे सर्वथा बचा रहना किसी के लिए भी संभव नहीं। पर उनके कारण उत्पन्न होने वाली मानसिक अशान्ति से आत्म नियंत्रण करके हम बचे रह सकते हैं और इस प्रकार अपनी शक्तियों के अनावश्यक क्षीण होने एवं कठिनाइयों को देर तक ठहरे रहने की क्षति से अपने को बहुत अंशों में बचा सकते है।