Magazine - Year 1961 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
अष्टग्रही और उसकी संभावनाएँ
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(श्रीराम शर्मा आचार्य)
आगामी भाघ वदी अमावस्या ता0 5 फरवरी 62 में अष्टग्रही योग आने वाला है। इसकी चर्चा अखण्ड-ज्योति में समय-समय पर होती रही है। यह समय अब निकट ही आने वाला है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार एक राशि पर चार या उससे अधिक ग्रहों का होना अशुभ माना जाता है। विगत महाभारत के समय एक राशि पर सात ग्रह आये थे उसके फल स्वरूप वह विश्व युद्ध हुआ था और संसार पर भारी विपत्ति आई थी। अब इसका फल और भी अधिक अशुभ होना चाहिए।
दैवज्ञ इस योग को कालकूट नाम देते हैं। जैसे सब विषों में कालकूट प्रमुख विष है, उसी प्रकार अशुभ योगों में यह अष्टग्रही योग भी कालकूट के समान भयंकर है। किन्हीं ग्रन्थों में इसे प्रव्रज्या योग नाम अशुभ अनिष्ट का ही संकेत करते हैं।
6,7,8 ग्रहों के एकत्रित होने से विभिन्न कुयोग बनते हैं। ता0 19 जनवरी से 12 फरवरी तक 25 दिन का षड््र् ग्रह योग है। इसी बीच में 24 जनवरी से 9 फरवरी तक सप्तग्रही योग है। अष्टग्रही योग ड़ड़डड़़ 2 फरवरी से 5 तक है। माघ वदी अमावस्या (ड़ड़ड़ड़ मावस) इसका मध्य बिन्दु है। इसी दिन सूर्य ग्रहण भी है, जो यद्यपि भारतवर्ष में दिखाई नहीं पड़ेगा पर उसका फल भी विश्व के अन्य भागों पर होगा ही।
‘व्योतिष्मती’ पत्रिका के ग्रीष्मागूँ में इस योग के संबंध में कई दैवज्ञों ने प्रकाश डाला है। श्राकालदास पोष का कथन है कि इस योग का प्रभाव सन् 1994 को रहेगा। रेल, ड़ड़ड़ड़ परिवाहनों की दुर्घटना होंगी। आधुनिक सभ्यता के मलबे से नवीन रत्त-ड़ड़डड़़ उत्पन्न होगा। मेष लग्न पर मंगल उच्च है और शनि स्वग्रही हैं इस अवस्था में इसके सिवाय और कोई विकल्प दिखाई नहीं देता है कि युद्ध का देवना मंगल विश्वव्यापी युद्ध करेगा। ज्योतिर्विद् श्रीचेलाम राजू गोपाल कृष्ण मूर्ति का कथन है-सूर्य के साथ मंगल का होना युद्ध का सूचक है। प्रायः सभी देशों के शासकों की रातें जागने गुजरेगा। भूमि पर भारी रक्त पात होगा। विश्वशान्ति भंग होगी, प्रत्येक देश में युद्ध का शंखनाद सुनाई देगा। सीमा विवाद चलेंगे बड़े पुरुषों की सीख न रहेगी। फसल नष्ट होगी। अकाल ओर बेकारी बढ़ेगी। तूफान, आधा नाव दुर्घटना, युद्ध, मुद्र-प्रवमूल्यन संक्रामक रोग आदि घटित होंगे।
रमेशचन्द्र शास्त्री ने लिखा है-इस योग के प्रभाव से आगामी विश्वयुद्ध की नींव जरूर इस वर्ष पड़ जायगी, पर वह होगा सन् 1964 में। ड़ड़ड़ड़ पत्रिका के सम्पादक ज्योतिषाचार्य पं0 हरदेव शर्मा त्रिवेदी ने लिखा है-जलीय उत्पात, भयानक बाढ़ ओर भूकम्प से विशेष हानि होगी। खाद्य समस्या समाधानपरक नहीं होगी। दुर्भिक्ष महामारी आदि से भी विनाश होगा। सन् 1962 में 141 वर्ष बाद क्षय मास आ रहा है अतः सन् 62 से 72 तक आगामी दश वर्ष में बड़ी भारी राजक्रान्तियाँ और प्रकृति प्रकोप सम्भव होगा। तृतीय विश्वयुद्ध इसी अवधि में होकर जन धन का भीषण रूप से विनाश करेगा।
इसी प्रकार के फलादेश पहले भी कई बार प्रकाश में आ चुके हैं। उनमें अशुभ अनिष्ट की ही संभावना प्रकट की गई है। हमारा निज का अभिमत भी ऐसा ही है कि इस कुयोग से मानव जाति को विशेष कष्ट सहने पड़ेंगे। यद्यपि ऐसी आशंका कतई नहीं है कि योग के दिनों में प्रलय हो जायगी या उसी समय एटम बम चलेंगे। कई व्यक्ति ऐसी आशंका करके भयभीत रहते हे। उन्हें जान लेना चाहिए कि उन दिनों भी ऐसी ही स्थिति रहेगी जैसी कि यह पंक्तियाँ पढ़ने वाले दिन का है। योग के ड़ड़ड़ड़ दिनों में कोई आश्चर्यजनक घटना न घटेगी, साधारण दिनों की भाँति ही वे दिन भी शान्ति से बीतेंगे। पर सूक्ष्म जगत में ग्रह योग की जो प्रतिकृपा होगी उसके फल स्वरूप संसार के प्रत्येक भाग में और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कठिनाइयाँ बढ़ने का वातावरण बनना प्रारम्भ हो जायेगा। जैसे-जैसे समय बीतता जायेगा वे कठिनाइयाँ सामने आती जायेगी और वे आगामी दस वर्षों तक बनी रहेगी।
इससे किसी को भयभीत या निराश नहीं होना चाहिये। विनाश की शक्तियों की भाँति ही रक्षा की शक्तियाँ भी सक्रिय हैं वे चिरपोषित मानव संस्कृति को नष्ट न होने देंगी। हमें आगामी समय के लिए अधिक साहस, अधिक धैर्य और अधिक विवेक का सम्पादन करना चाहिए ताकि संभावित कठिनाई का भली प्रकार मुकाबला किया जा सके।
पिछले अज्ञात वास में हमें उच्च कोटि के तत्त्वदर्शियों का सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिला है। इनके व्यक्तिगत निष्कर्ष यह है कि इस योग के फलस्वरूप जहाँ एक ओर विनाश की विभीषिका सामने आयेगी वहाँ युग निर्माण के उपयोग तत्त्वों का इसी अवधि में तीव्र गति से अवतरण और विकास भी होगा। ज्ञान और विज्ञान दोनों की उन्नति ऊँचे स्तर तक बढ़ेगा निर्माण ओर उत्पादन के कार्य भी बड़े विशाल परिमाण में होंगे। इस विनाश का उद्देश्य अनंत विश्व में स्थिर शक्ति की सहायता ही हैं। इसलिए समय पर तत्सम्बन्धी आवश्यक साधनों का उपलब्धि के लिए निर्माण एवं उत्पादन कार्य भी साथ ही साथ आरम्भ होगा।
इस दश वर्षीय विनाश चक्र का प्रभाव संसार के विभिन्न भागो पर बहुत पड़ेगा, पर भारत को कम से कम हानि सहनी पड़ेगी। भारत धीरे-धीरे प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति करता जायेगा और सन् 94 के उपरांत उस की स्थिति संसार में सर्वश्रेष्ठ होगा। ज्ञान ओर विज्ञान, धन और सत्ता, नीति और ड़ड़डड दृष्टि से वह विश्व का सर्वोपरि राष्ट्र होगा। उसकी संस्कृति सम्पूर्ण विश्व में अपनाई जायगी ओर प्राचीन काल की भाँति उसे सारे भूमण्डल को अपना नेतृत्व देना होगा। जिस प्रकार आज अमेरिका और रूस अपना प्रभाव संसार के विभिन्न क्षेत्रों पर बनाये हुए है उसी प्रकार सन् 94 के बाद अकेला भारत संसार के नेतृत्व की बागडोर अपने हाथ में लेगा और चिरकाल तक सर्वत्र सच्ची सुख शांति स्थापित किये रहने में सफल होगा। उस महान् जिम्मेदारी को अपने कन्धों पर उठाने के लिये इन्हीं दिनों भारत भूमि पर अत्यन्त उच्च कोटि की जीवन-मुक्त आत्माएँ जन्म लेंगी।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिनकी कुण्डली में एक स्थान पर छः, सात, या आठ ग्रह होते है। वह बालक दरिद्र, मूर्ख और नीचवृत्ति, धनहीन अधर्मी और महा दुष्ट होते हैं। किन्तु आचार्य वराहमिहिर के अनुसार ऐसे बालक निश्चय ही बहुत बड़े महात्मा होते है। यद्यपि दोनों मत एक दूसरे के प्रतिकूल हैं तो भी उनमें एक बात पर मतैक्य है कि ऐसे समय में उत्पन्न बालक “असाधारण” होते हैं, परिस्थितियाँ उन्हें चाहे महादुष्ट बना दें चाहे महासंत, पर क्षमता, उनके अन्दर निश्चित रूप से बहुत रहेगी। ग्रहों का यह प्रभाव अष्टग्रही योग के तीन दिन या षड्रग्रही योग के 25 दिनों तक ही न चलेगा, वरन् उसका प्रभाव आगामी तीन वर्ष तक रहेगा।
ग्रहयोग के 25 दिनों में उत्पन्न हुए बालकों की शिक्षा-दीक्षा यदि उनके अभिभावक अच्छी तरह कर सके तो वे आगे चलकर बहुत ही श्रेष्ठ प्रकार के नर रत्न सिद्ध हो सकते हैं। इसके उपरांत आगामी तीन वर्ष तक भी यह क्रम जारी रहेगा और धर्म शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान, शिल्प, रसायन, चिकित्सा उद्योग आदि विभिन्न क्षेत्रों में सारे विश्व का नेतृत्व वाली आत्माएँ यहाँ जन्म लेती रहेंगी। भारतीय स्वतंत्रता का उद्देश्य पूर्ण करने के लिए 30 उच्चकोटि की आत्माएँ अवतरित हुई थीं, उनका चिर संचित आत्मबल इतने बड़े कार्य के लिए आवश्यक वातावरण उत्पन्न करने में समर्थ हुआ। अब सारे विश्व की राजनैतिक आर्थिक सामाजिक, आत्मिक स्वतंत्रता की दिशा में नेतृत्व करने का कार्य भारत के कंधों पर आने वाला है। इस कार्य के लिए उच्च लोकों से जीवनमुक्त आत्माएँ भारत भूमि पर जन्म लेने आ रही है। इस दृष्टि से सन 62 जहाँ दुर्भाग्य पूर्ण है वहाँ साथ ही आशा की स्वर्णिम किरणें भी साथ चल रही है।
इस संदर्भ में अखण्ड ज्योति परिवार के धर्मप्रेमी स्वजनों के लिए भी कुछ कर्तव्य बनते है। हम सब को उस पर ध्यान देना चाहिए और उसके लिए निम्न प्रकार सप्तसूत्र तैयार करनी चाहिए।
(1) जिस प्रकार चन्द्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण का सूतक कुछ घण्टे पहले लग जाता है उसी प्रकार माघ वदी अमावस्या को आने वाले इस कुयोग का सूतक चार मास पूर्व आश्विन वदी अमावस्या से प्रारम्भ होगा। इन चार महीनों में कुछ न कुछ धर्म आयोजन करने का प्रयत्न हममें से हर एक को करना चाहिए।
(2) व्यक्तिगत साधना जिसकी चल रही है उसे इन चार महीनों के लिए कम से कम सवाई कर दे। एक चौथाई और बढ़ादे और इस चार मास की साधना को विश्वकल्याणार्थ, समर्पण कर दें।
(3) आश्विन की नवरात्रि में हर जगह कुछ न कुछ सामूहिक धर्म अनुष्ठान किये जाँय। इस बार आश्विन की नवरात्रि ता0 11 अक्टूबर मंगलवार को आरम्भ होकर ता0 18 अक्टूबर बुधवार को समाप्त होगी।
(4) कुयोग के दिनों में भी एक दिन का आयोजन इसी प्रकार से किया जाय। माघ वदी 11 गुरु बसंत पंचमी शुक्रवार ता0 9 फरवरी को इसे पूर्ण किया जाय। इस अवसर पर भी आश्विन नवरात्रियों की भाँति ही सामूहिक धर्मानुष्ठान किये जाय। व्यक्ति गत साधना भी इन दोनों अवसरों पर कुछ विशेष की जाय।
(5) जनता में किसी प्रकार का भय उत्पन्न न होने दिया जाय। वरन आगामी समय का महत्व बताते हुए उसके लिए आवश्यक आत्मबल, धैर्य साहस और विवेक एकत्रित करने की सबको सलाह दी जाय।
(6) जिनकी निज की निष्ठा गायत्री उपासना में दृढ़ हो चुकी है वे अपनी धर्म पत्नियों को भी प्रेरणा देकर इस मार्ग पर अग्रसर पर आर कम से कम इन चार महीनों में तो ब्रह्मचर्य से रहने की प्रतिज्ञा कर हो। ऐसे श्रद्धावान दम्पत्ति किन्हीं महान् उच्च आत्माओं को अपने यहाँ जन्म लेने के लिए आकर्षित कर सकते है।
(7) धार्मिक एवं आस्तिकता के विचार जन साधारण के मनो में से तीव्रगति से घटते जा रहे है इसे रोकने और सन्मार्ग की ओर जनमानस को प्रेरणा देने के लिए जन संपर्क स्थापित करे और सद् विचारों का प्रसार करने के लिए कुछ समय लगाते जांयें।