Magazine - Year 1962 - Version 2
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Language: HINDI
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अस्वच्छ मन के उपद्रव एवं उत्पात
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भगवान ने मनुष्य के शरीर को इस योग्य बनाया है कि यदि उसका व्यतिक्रम न किया जाय तो वह निस्संदेह दीर्घजीवी हो सकता है और जब तक आयुष्य पूरा न हो हँसी−खुशी के साथ निरोग जीवन व्यतीत कर सकता है। प्राचीनकाल में यहाँ सभी दीर्घजीवी होते थे। अब भी जिनके शरीर और मन पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ा है वे दीर्घ जीवन का सुखोपभोग करते हैं।
दीर्घजीवन का मूल कारण
इन सब डेढ़ वर्ष के सामने पड़े दो समाचार पत्रों में ढेरों दीर्घजीवियों के समाचार मौजूद हैं। ढुन्नी का समाचार है कि सन् 1857 के गदर की आँखों देखी गाथाऐं सुनाने वाले धुको मेहता की मृत्यु 130 वर्ष की आयु में हुई। मेहता ने चार आना मासिक वेतन से नौकरी शुरू की थी अब से दो वर्ष पूर्व अर्थात् सन 1959 तक वह ग्राम में चौकीदारी की नौकरी करता था और शरीर से पूर्ण निरोग था। हुगली जिला में पुरसुरा थाना के अंतर्गत पाड़ा ग्राम की तिनकोरी नामक महिला की मृत्यु 125 वर्ष की आयु में 23 दिसम्बर को हुई। बुढ़िया अपने पीछे एक 70 वर्षीय पुत्री तथा 65 वर्षीय पुत्र तथा 35 पौत्र−पौत्रियाँ छोड़ गई है। कानपुर अनवरगञ्ज निवासी 151 वर्षीय वृद्ध मौलाना बहादुर अलीशाह की मृत्यु हो गई? उन्हें अपने घर में बड़ा आनन्द आता था। स्वर्गीय मौलाना ने अपनी अन्तिम इच्छा यही प्रकट की कि उन्हें उनके उसी मकान में दफनाया जाय जिसमें उसने हँसी−खुशी का जीवन व्यतीत किया। अकोला 9 अप्रेल का समाचार है कि भारत के सबसे वयोवृद्ध व्यक्ति इमाम अलीशा का मालेगाँव जहाँगीर में देहान्त हो गया। अलीशा की आयु मृत्यु के समय 178 वर्ष की थी। भोपाल का समाचार है कि होशंगाबाद के प्रसिद्ध काँग्रेस कार्यकर्ता चौधरी धन्नालाल का स्वर्गवास 115 वर्ष की आयु में हो गया, वे 1857 गदर की आँखों देखी घटनाऐं सुनाया करते थे। कपृरथला का समाचार है कि जिला अमृतसर के आयवा कलाँ गाँव के एक किसान ने अभी भी अपने यौवन को बन्दी बनाकर रखा हुआ है। उसकी आयु 120 वर्ष की है और अब भी वह अपने खेत में हल चलाता है। उसके स्वास्थ्य और दृष्टि में कोई फर्क नहीं आया है। किसान का नाम माधरसिंह है। इन्दौर में जनगणना संग्रह करने वालों ने जो आँकड़े संग्रह किये हैं उससे पता चला है कि नगर में बहुत से व्यक्ति सौ से ऊपर के हैं इनमें आधे से अधिक स्त्रियाँ हैं।
डा. विश्वेश्वरैया के अनुभव
भारत के सुप्रसिद्ध इंजीनियर श्री विश्वेश्वरैया से उनकी सौवीं वर्ष गाँठ के अवसर पर इस दीर्घायुष्य का कारण पूछा गया तो उसने बताया कि—‟नियत समय पर भोजन, थोड़ी खुराक, खूब भूख लगने पर खाना, छह से आठ घण्टे सोना, तीन चार मील तेज पैदल चलना, आठ घण्टे श्रम करना, विलासिता से दूर रहना, दीर्घजीवन के आवश्यक नियम हैं। उसने कहा इससे भी अधिक आवश्यक यह है कि मनुष्य प्रसन्नचित्त रहे, चिन्ता, क्रोध, उद्वेग और उत्तेजना से बचे; साथ ही मन को पवित्र, निष्कपट एवं शान्त संतुलित रखे। संसार में जितने भी दीर्घजीवी हुए हैं उनका आहार−विहार संयमित रहने के अतिरिक्त एक सब से बड़ा प्रधान कारण यह रहा है कि उनने अपने मन को उद्वेगों और उत्तेजनाओं से बचाये रखा, प्रसन्नता, आशा, उत्साह और निष्कपटता को अक्षुण्ण बनाये रखा।
प्रफुल्लता का वातावरण
लन्दन 28 नवम्बर का समाचार है कि सैमएवरिट नामक ब्रिटेन के 108 वर्षीय वृद्ध ने ऐसेक्स अस्पताल में अपनी छाती का आपरेशन कराने के बाद बहुत जल्दी डाक्टरों और नर्सों को आश्चर्य में डाल दिया। एवरिट ने कहा आशा, उत्साह, प्रसन्नता, धीरज और शान्ति के मनोभावों को स्थिर रखकर ही मैंने अपनी जीवनी शक्ति को बनाये रखा है और आगे भी बहुत दिन तक उसे बनाये रहूँगा। पाकिस्तान के हुजा प्रदेश में लोग 120 वर्ष तक जीते हैं उनमें से कितने ही तो 140 वर्ष के हैं। इस दीर्घ जीवन का प्रधान कारण वे मानसिक तनाव से बचे रहकर निश्चित रहना ही बताया करते हैं। 114 वर्षीय बैंनिमन लोगों से कहा करते थे कि गुस्सा मत करो, निश्चिन्त होकर सोओ। पेट के साथ निर्दयता न करो, खुश रहो और किसी की बुराई मत करो, तुम भी मेरी ही तरह दीर्घ जीवी हो सकते हो। केपिकिन चीन का चांग बोंग 151 वर्ष जिया, वह बताता था कि मैंने कभी अपने दिमाग को गरम नहीं होने दिया। क्रोध और चिन्ता को मैंने सदा अपने से हजारों कोस दूर रखा है। बलगेरिया के स्वास्थ्य विशेषज्ञ एक दीर्घजीवी डाक्टर चनी कौक ने अपने जीवन के अनुभवों का निष्कर्ष प्रकाशित करते हुए लिखा है—‟उत्तेजक मनोविकारों से दूर रहना चाहिए। शोक संताप, निराशा, पश्चात्ताप विक्षोभ एवं अशान्ति उत्पन्न करने वाले विचार ही आयु को क्षीण करने के प्रधान कारण हैं। कामुकता, क्रोध, ईर्ष्या, घृणा, स्वार्थपरता एवं लालच के विचारों में डूबे रहने वाला मनुष्य कभी दीर्घजीवी नहीं हो सकता। मनुष्य की दुर्बलताऐं ही उसके स्वास्थ्य को चौपट करने का प्रधान कारण होती हैं।”
आन्तरिक स्थिति का स्वास्थ्य पर प्रभाव
मन की प्रसन्नता एवं अन्तःकरण की जिस शान्ति को दीर्घजीवन का प्रधान कारण माना गया है वह मानसिक स्वच्छता हमारे व्यक्तिगत जीवन के सर्वतोमुखी विकास की एकमात्र कुँजी है। आयु का लम्बा होना और निरोग रहना तो उसका एक बहुत छोटा लाभ है। वस्तुतः महानता का सर्वतोमुखी आधार ही वह है। जिसका मन संतुष्ट और शान्त है उसी का मानसिक स्तर दूरदर्शिता पूर्ण रह सकता है और उसी को सुलझी हुई विवेक बुद्धि प्राप्त हो सकती है। मन की शान्ति कोई बनावटी या बाहरी चीज नहीं है जिसे कोई अभ्यास करके या किसी उपचार द्वारा प्राप्त किया जा सके। यह तो केवल उसी आध्यात्मिक आधार पर प्राप्त हो सकती है जिसे उदारता, कर्तव्यपालन, सदाचार या सहनशीलता कहते हैं। अनुदार, कर्महीन, दुराचारी एवं असहिष्णु व्यक्ति जरा−जरा सी बात पर चिन्तित, उत्तेजित निराश एवं उद्विग्न हो उठते हैं। उनकी यह दुर्बलता आरोग्य को ही नहीं खाती वरन् मनोभूमि को भी मलीन बना देती है उसमें नाना प्रकार के दोष दुर्गुण पैदा हो जाते हैं जो किंकर्तव्यविमूढ़ बनाकर न करने योग्य काम करने वाले मूढ़मति जैसे आचरण करने को विवश करते हैं।
आवेश और उत्तेजना
हम देखते हैं कि उत्तेजना और आवेश से ग्रसित मनुष्य जरा−जरा सी बात पर न करने योग्य ऐसे कार्य कर बैठते हैं जिनके लिए उन्हें जीवन भर संताप की आग में जलना पड़ता है। आत्महत्याऐं बहुधा ऐसी ही उद्विग्न अवस्था में होती रहती हैं। समाचार है कि—कानपुर जिले के ग्राम निगोह के निवासी एक व्यक्ति को अपनी छह महीने की कन्या की हत्या करने के अपराध में पुलिस ने पकड़ा है। बताया जाता है कि नन्हीं बच्ची के लगातार रोने के कारण क्रुद्ध होकर उक्त व्यक्ति ने उसे उठाकर जोर से जमीन पर पटक दिया जिससे बच्ची तत्काल मर गई। इस पर घबरा कर वह व्यक्ति स्वयं भी आत्महत्या करने के लिए कुँए में कूदने दौड़ा किन्तु लोगों ने उसे पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया। उरई के समीप घोहर निवासी एक व्यक्ति ने अपनी 5 वर्षीय पुत्री को कुँए में फेंक दिया। पिता अपने दुधमुँहे है पुत्र को भी कुँए में फेंकना चाहता था पर पत्नी उसे लेकर भाग खड़ी हुई और किसी प्रकार उसकी जान बची। पुलिस ने उक्त पिता को गिरफ्तार कर लिया। बालिका को मृत अवस्था में कुँए से निकाला गया। जालन्धर (पंजाब) के पास सराय खास नामक ग्राम में पारिवारिक कलह के कारण रतनकौर नामक एक महिला ने अपनी अल्पवयस्का पुत्री के सहित कुँए में छलाँग लगाली। माता और पुत्री दोनों ही जल में डूब गई और दम तोड़ दिया। हलद्वानी में होली के दिन सैशन कोर्ट के निकट एक पोस्ट कर्मचारी की हत्या करदी गई। बताया गया है कि दो युवकों ने रंग डालने के विवाद को लेकर अन्य दो व्यक्तियों पर चाकू से आक्रमण कर दिया जिससे एक व्यक्ति की तत्काल मृत्यु हो गई। दसरे को गंभीर अवस्था में अस्पताल में दाखिल किया गया। बुलन्दशहर नगर से चार मील दूर नैथला ग्राम के निकट दो घोड़े ताँगों के कोचवान एवं ताँगों में बैठे हुए मुसाफिरों में दौड़ की बहस छिड़ गई। कुछ देर तो दौड़ चली परन्तु अन्त में एक मुसाफिर के कुछ तानाकशी करने पर दूसरे ताँगे के मुसाफिर क्रुद्ध हो गये और मारपीट होने लगी। घायलों में से एक युवक की अस्पताल में पहुँचते−पहुँचते मृत्यु हो गई। जौनपुर जिले के मलिकानपुर ग्राम में एक कुँऐ की नाली की सफाई के प्रसंग को लेकर केवटों के दो दलों में झगड़ा हो गया जिसके फलस्वरूप एक व्यक्ति अस्पताल में पहुँचते−पहुँचते मर गया कई को सख्त चोट आई।
छोटी बात बड़ी हानि
अक्सर बहुत ही छोटी बातों को लेकर लोग उत्तेजित हो जाते हैं। धैर्य और विवेक से काम लिया जाय; सहिष्णुता और समझदारी को आधार लेकर कलह के छोटे से कारण का समाधान कर लिया जाय तो बात उतनी न बढ़े जितनी कि उत्तेजना में लुप्त हुए विवेक के कारण बढ़ जाती है। समाचार है कि—कानपुर में एक कुत्ते के पीछे झगड़ा हो जाने के फलस्वरूप एक व्यक्ति ने काशीराम नामक एक व्यक्ति की कनपटी में करौली मार दी। उसे चिन्ताजनक हालत में अस्पताल में भर्ती किया गया। घटना क्रम के अनुसार शौकत के कुत्ते ने काशीराम के घर के सामने टट्टी कर दी थी इसकी शिकायत ने विवाद और हमले का रुप धारण कर लिया। शौकत को गिरफ्तार कर लिया गया। बिजनौर जिले के गाजीपुर गाँव में होली के अवसर पर झगड़ा हो गया। 30 व्यक्ति जख्मी हुए। श्यामलाल नामक व्यक्ति मर गया। घायलों में औरतें और बच्चे भी हैं। सहारनपुर के नुमाइश कैम्प के बच्चों में झगड़ा हुआ जो बात बढ़ कर औरतों तक जा पहुँची औरतों ने झगड़ा और बढ़ाया तो मर्द भी पहुँचे। मर्द और भी आगे बढ़े और उन्होंने अपने हितैषियों को भी मदद के लिए बुला लिया। परिणाम स्वरूप यह झगड़ा राजनैतिक दल बन्दी का अखाड़ा बन गया और 7 आदमियों के सिर फट गये। पुलिस ने दोनों ओर के कई व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया। जावरा (रतलाम) में कौन पहले पानी भरे, इस छोटी सी बात ने इतना भयंकर रुप धारण किया कि मारपीट में एक युवक अत्यधिक घायल हुआ और अस्पताल में पहुँचते−पहुँचते उसकी मृत्यु हो गई।
आवेश की हानिकर प्रतिक्रिया
उत्तेजना, आवेश और असहिष्णुता आज हमारी मनोभूमि पर बुरी तरह छाती जा रही है। इसका परिणाम सब प्रकार अहितकर हो रहा है। आगरा 3 जनवरी का समाचार है कि गत सप्ताह हृदय की गति रुक जाने से अनेक मौतें होने पर प्रमुख डाक्टर गंभीर चिन्ता व्यक्त कर रहे हैं। हृदय की गति अचानक बन्द हो जाने से अभी−अभी बीस मृत्यु हुई हैं और आगरा अस्पताल में हृदय रोग से पीड़ित रोगियों की संख्या बहुत अधिक हो गई है। हृदय रोगों का एक प्रमुख कारण मनुष्य का निरन्तर चिन्तित रहना है। बुलन्दशहर से छह मील दूर ग्राम सिखैड़ा के एक किसान मलखानसिंह की फसल इस वर्ष की भयंकर वर्षा एवं बाढ़ के कारण नष्ट हो गई। उसे यही चिन्ता हो गई है कि—’अब क्या होगा? इसी वाक्य को बार−बार दुहराते−दुहराते उसके हृदय की गति बन्द हो गई और बेचारा देखते−देखते संसार से चल बसा।
विश्व के चतुर्थ राष्ट्रीय केन्सर सम्मेलन की रिपोर्ट से पता चलता है कि 99 अस्पतालों में 212362 फेफड़े के केन्सर के रोगियों का आपरेशन हुआ। उसमें से आपरेशन के बाद स्त्रियाँ तो 100 में से 62 अच्छी हो गई पर पुरुष केवल 30 प्रतिशत ही बच सके। डाक्टरों का कहना है कि स्त्रियों की अपेक्षा पुरुष अधिक चिन्तित रहते हैं और इसी कारण वे रोग−निरोधक जीवनी शक्ति से वंचित हो जाते हैं। भारत के मानसिक रोगों के अस्पतालों के अधीक्षकों का एक सम्मेलन पिछले दिनों आगरा में हुआ था इसमें बताया गया कि भारत में इस समय पागलों की संख्या 850000 है। सन् 1954 के बाद यह संख्या तेजी से बढ़ी है। अखिल भारतीय मानसिक चिकित्सा संस्थान के सर्वेक्षण से प्रकट हुआ है कि—”ग्रामों की अपेक्षा शहरों में मानसिक रोगी अधिक हैं और इसका प्रमुख कारण शहरी जीवन की परेशानियाँ हैं। लोग आर्थिक एवं पारिवारिक चिन्ताओं में अपना मानसिक सन्तुलन खे बैठते हैं और पागलपन से सम्बन्धित रोगों में ग्रसित हो जाते हैं। पागलों में 27 प्रतिशत पुरुष और 11 प्रतिशत महिलाऐं हैं, क्योंकि पुरुष स्त्रियों की अपेक्षा अधिक चिन्ता−ग्रस्त रहते हैं।
उन्माद और अकाल मृत्यु
उन्माद, आत्म−हत्या, छोटी बातों पर भयंकर उत्पात, बीमारी, अकाल, मृत्यु आदि अनेक आपत्तियों का कारण हमारा मानसिक असंतुलन मलीन मन ही असन्तुलित होता है। जीवन के प्रति, जीवन की समस्याओं के प्रति, कर्तव्यपालन के प्रति सही दृष्टि रखने वाले व्यक्ति ही मानसिक दृष्टि से सन्तुलित रह सकते हैं और अपनी आन्तरिक शान्ति स्थिर रख सकते हैं। मन की स्वच्छता जीवन की अमूल्य निधि है इसे खोकर हम दीर्घजीवन से ही वंचित नहीं होते सामान्य जीवन यापन कर सकने की स्थिति से भी वंचित हो जाते।