Magazine - Year 1964 - Version 2
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Language: HINDI
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स्वस्थ रहने के लिये विश्राम भी कीजिये
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स्वास्थ्य को सन्तुलित बनाये रखने के लिए जीवन में भोजन पानी और वायु आदि की तरह ही विश्राम भी आवश्यक है। किसी भी व्यक्ति को बढ़िया से बढ़िया भोजन दिया जाय, शुद्ध जल वायु में रखा जाय, किन्तु उसे विश्राम न करने दिया जाय तो बहुत जल्दी ही उसका स्वास्थ्य गिरने लग जायगा। लगातार काम करते रहने से मनुष्य के शरीर और मस्तिष्क पर एक प्रकार का तनाव पैदा हो जाता है। जिस तरह काफी देर तक काम करते रहने पर इंजिन गर्म हो जाता है और उसे ठण्डा करने के लिए बन्द कर देने की आवश्यकता पड़ती है, उसी तरह जाग्रतावस्था में विभिन्न कार्यक्रमों में लगे रहने से मनुष्य के स्नायु- संस्थान, शरीर, दिमाग सभी पर दबाव पड़ता है। मनुष्य इस तरह लगातार काम करता ही रहे तो दो-तीन दिन में उसके स्वास्थ्य में असन्तुलन पैदा होकर उसका बीमार हो जाना स्वाभाविक है।
विश्राम की बहुत बड़ी आवश्यकता नींद से पूरी होती है। कार्यशील व्यक्ति के लिए निद्रा ही विश्राम का प्राकृतिक स्वरूप माना गया है। कितना सोना चाहिए, यह व्यक्ति की स्थिति और क्षमता पर निर्भर करता है। सामान्यतया औसतन व्यक्ति को 6-7 घण्टे की निद्रा पर्याप्त होती है। इसके विपरीत कुछ अपवाद होते हैं। कई लोग तीन-चार घण्टे की नींद में ही ताजगी प्राप्त कर लेते हैं।
कितना सोना चाहिए यह व्यक्ति की अपनी स्थिति और शरीर की आवश्यकता पर निर्भर है, किन्तु सबसे महत्वपूर्ण बात है भली प्रकार नींद लेना। स्वस्थ नींद ही शरीर के विश्राम की आवश्यकता पूर्ण करती है। 8-9 घण्टे चारपाई पर पड़े रहने पर भी यदि नींद भली प्रकार नहीं आये, सारी रात करवट बदलने या स्वप्न देखने में ही बिता दी जाय तो नींद की आवश्यकता पूर्ण नहीं होती। इतनी देर चारपाई पर सोकर भी मनुष्य थका हुआ-सा आलस्य और अवसाद
लेकर ही उठेगा और दिन में कुछ कर भी न सकेगा। बहुतों को नींद ही नहीं आती। अनिद्रा की बीमारी आज के शिक्षित एवं तथाकथित ‘सभ्य’ जगत में दिनोदिन फैलती जा रही है।
स्वस्थ नींद के लिए आवश्यक है अपने काम और विश्राम के समय का ठीक-ठीक निर्धारण करना। दिन भर जितना काम करना है उतने समय खूब काम किया जाय और काम करके अपने अन्य आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर ठीक समय पर सो जाना चाहिए। सोने के समय फिर काम की कोई बात, चिन्ता परेशान न करे। लेकिन बहुत कम लोग इस पर ध्यान देते हैं। कई तो दिन भर पर्याप्त श्रम नहीं करते। निद्रा व विश्राम का पथ्य श्रम ही है। श्रमिकों को सहज ही गहरी नींद आ जाती है। कई लोगों को आवश्यक श्रम न करने पर गहरी नींद नहीं आती।
आज के युग में आवश्यकताएं, एषणा, कामना एवं इच्छा बढ़ जाने से मनुष्य के लिए अधिक कमाने की आवश्यकता भी बढ़ गई है। और इसी से प्रेरित होकर कई लोग अपने और विश्राम में सन्तुलन नहीं रख पाते। ‘ओवर टाइम वर्क’ आज के युग का एक स्वाभाविक क्रम-सा बन गया है। जब मनुष्य को विश्राम करना चाहिए उस समय वह काम में जुता रहता है। काम करना बुरा नहीं जितना बने काम करना ही चाहिए। किन्तु नींद एवं विश्राम के अभाव में अपने स्वास्थ्य को चौपट कर प्राप्त होने वाला बड़े से बड़ा लाभ भी मनुष्य के लिए घाटे का सौदा है। चाहे कितना ही लाभ मिलने वाला हो किन्तु प्रकृति के महत्वपूर्ण उपहार नींद, जिससे हम नव-जीवन पाते हैं, उसके साथ सौदा नहीं किया जाना चाहिए।
कई लोग जब निद्रा का विश्राम का, समय होता है तो सिनेमा, ताश, शतरंज, नाच गाने, खेल तमाशों आदि में लग कर अपनी नींद खराब करते रहते हैं। इसके अर्थ यह नहीं कि मनोरंजन न करना चाहिए। स्वस्थ और सभ्य मनोविनोद एक सीमा में आवश्यक भी हैं किन्तु उसे जीवन का एक व्यसन बना कर अपने निद्रा विश्राम के समय को नष्ट कर डालना बुद्धिमानी नहीं है। इस तरह जागते रहने से शरीर पर दबाव पड़ता रहे और स्वास्थ्य की हानि हो तो इस तरह के मनोरंजन से सदैव दूर ही रहना चाहिए।
भली प्रकार नींद न लेने, विश्राम न कर पाने का एक महत्वपूर्ण कारण मनुष्य की मानसिक स्थिति भी है। बहुत से लोग सोते समय अपने दिन भर की चिन्ता, परेशानियों का ताना-बाना बुनने लगते हैं। भूतकाल के पश्चाताप, सोच-विचार और भविष्य की चिन्ता में दबे हुए विश्राम के लिए लेटते हैं किन्तु उनका यह मानसिक जंजाल बढ़ता ही जाता है और मनुष्य को नींद नहीं आती। इधर की करवट उधर और उधर की करवट इधर बदलने में ही सारी रात चली जाती है। मानसिक असन्तुलन की बीमारी आज के युग में दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, फलस्वरूप अनिद्रा का रोग भी व्यापक रूप में बढ़ता जा रहा है।
मानसिक स्थिति की यह विषमता ऐसी कठिन नहीं है जिसे दूर न किया जा सके। संसार और इससे सम्बन्धित समस्याओं को अपने शयन कक्ष से बाहर ही छोड़कर अपने को एकाकी नित्य मुक्त समझकर विराट की छाया तले निद्रा देवी की गोद में सो जाना चाहिए। सोते समय कोई भी चिन्ता शेष नहीं रहने देनी चाहिए। मनुष्य की नींद हराम करने में आहार-विहार का भी अपना महत्वपूर्ण स्थान है। सात्विक, शुद्ध, हल्का, भोजन अच्छी नींद लाता है तो तामसी, उत्तेजक, उष्ण भारी पदार्थ निद्रा नाश करते हैं। जो लोग बीड़ी, सिगरेट, चाय, शराब तम्बाकू आदि उत्तेजक पदार्थों का सेवन करते हैं उनको अनिद्रा के रोग का शिकार होना पड़ता है। उत्तेजना पर उत्तेजना स्नायु, मस्तिष्क, हृदय आदि के मूल अंगों पर दूषित प्रभाव डालती है और मनुष्य को असमय में ही स्वास्थ्य की हानि उठानी पड़ती है। अनुपयुक्त गरिष्ठ आहार की वजह से मनुष्य को अच्छी नींद नहीं आती, दुःस्वप्न आते रहते हैं, मनुष्य तन्द्रा में पड़ा रहता है। काफी देर तक सोकर उठने पर भी आलस्य घेरे रहता है, बदन थका हुआ सा जान पड़ता है अतः भोजन सात्विक, हल्का, अल्प, शीघ्र ही पचने वाला लेना चाहिए।
निद्रा स्वास्थ्य स्फूर्ति, शक्ति , कार्यक्षमता, प्रसन्नता प्राप्ति के लिए प्रकृति का अमूल्य उपहार है। इसे किसी भी शर्त पर नष्ट नहीं करना चाहिए। प्रयत्नपूर्वक स्वस्थ नींद लेने का अभ्यास करना चाहिए। नव-जीवन प्राप्ति का आधार है नींद। आवश्यकतानुसार पर्याप्त विश्राम करना स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है अनिवार्य है।