Magazine - Year 1964 - Version 2
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Language: HINDI
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रजत जयन्ती की तैयारी
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रजत जयन्ती का कार्यक्रम अखण्ड-ज्योति में पढ़कर हम लोगों के हर्ष का पारावार न रहा। ‘अखण्ड-ज्योति’ हमारी माता है उसने अपना ज्ञान और स्नेह पिलाकर हमें क्या से क्या दिया इसका मूल्याँकन करते हैं तो कृतज्ञता से अन्तरात्मा पुलकित हो उठती है। यहाँ हम 32 व्यक्ति ‘अखण्ड-ज्योति’ मँगाते हैं। सभी परस्पर परिचित हैं और समय-समय पर सामूहिक आयोजन भी करते रहते हैं। दिसम्बर का अंक पढ़ते ही सबका मन अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए आकुल हो उठा। श्री गणेश दत्त पंड्या के यहाँ मीटिंग रक्खी गई और वसन्त-पंचमी के दिन क्या करना चाहिए इसका कार्यक्रम बनाया गया।
निश्चय हुआ कि सभी के यहाँ तारीख 13 से 19 जनवरी तक आठ दिन घरों में सब लोग एक घण्टा नित्य गायत्री जप किया करेंगे और अन्तिम दिन सब जप करने वाले हवन में सम्मिलित होंगे। अखण्ड-दीप का पूजन, प्रवचन तथा प्रसाद वितरण का कार्यक्रम रखा गया है। विचारशील लोगों को भेंट करने के लिये मथुरा से सितम्बर 62 तथा जून 63 के 108-108 अंक तथा सर्वसाधारण में बाँटने के लिए युग-निर्माण का संकल्प 1000 रेलवे पार्सल से मँगाये गये हैं। सायंकाल दीपदान सभी सदस्यों के घरों पर होगा ही।
तारीख 13 से तक 7 दिन ‘अखण्ड-ज्योति’ के सदस्य बढ़ाने के लिए तीन-तीन व्यक्ति यों की दस टोली बना दी गई हैं। प्रत्येक टोली ने प्रतिज्ञा की है कि वह रजत -जयंती के पच्चीसवें वर्ष के उपलक्ष में 25 ग्राहक अवश्य बनाएंगी देंगी। इस प्रकार 10 टोलियों द्वारा 250 सदस्य बन जाना निश्चित है। इस संख्या में कोई कमी रही तो हम वर्तमान सदस्य अपने पास से पैसा देकर किन्हीं सार्वजनिक संस्थाओं, लोकसेवकों, या अपने मित्रों को पत्रिका चालू करावेंगे। ‘अखण्ड-ज्योति’ का विस्तार हमारे सत्संकल्प की सफलता का एक मात्र आधार है। आचार्य जी ने संजीवन विद्या के शिक्षण करने को एक लाख छात्र माँगे हैं तो उनका एक भाग हमें भी पूरा करना ही चाहिए था। 250 की संख्या बड़ी नहीं है। क्योंकि दूसरे लोग स्वाँग-तमाशे के लिए हजारों रुपया चन्दा कर लेते हैं और लोग माँगने वालों के व्यक्तिगत प्रभाव में आकर बड़ी-बड़ी रकमें भी दे देते है। तो हम लोग जिनकी प्रतिष्ठा इस शहर में गिरी हुई नहीं है, 250 व्यक्ति यों से पत्रिका का चन्दा प्राप्त न कर सकेंगे ऐसी कोई आशंका नहीं है।
व्यक्तिगत जीवन को निर्मल बनाने के लिए कौन क्या कदम उठावेगा और सार्वजनिक सेवा के लिए कौन कितना समय देता रहेगा इसका निश्चय हम सब लोग वसन्त-पंचमी तक कर लेंगे और जिसे जो करना होगा उसका लिखित प्रतिज्ञा-पत्र बनाकर वसन्त-पंचमी के दिन मथुरा भेजेंगे। ऐसी भावनायें तो पहले से ही उठ रही थीं पर उन्हें चरितार्थ करने का कोई विशेष अवसर सामने न था। अब रजत-जयन्ती से हम लोगों को झकझोर कर रख दिया है ओर प्रेरणा दी है कि केवल पढ़ते-सुनते रहना ही काफी नहीं है अब कुछ करके भी दिखाना चाहिये।
अपने परिवार के तीन वयोवृद्ध व्यक्ति अब घरेलू उत्तरदायित्वों से मुक्त हो चुके हैं। वसन्त-पंचमी को वे विधिवत वानप्रस्थ की दीक्षा लेंगे और नित्य पाँच घण्टे का समय धर्म प्रचार के लिए लगाया करेंगे। इन तीनों की मण्डली अपनी संचित प्रतिष्ठा के कारण जब श्रेष्ठता का वातावरण बनाने के लिए अपनी कुशाग्र बुद्धि का उपयोग करेगी तो इसके कारण इस नगर में ही नहीं आस-पास के विस्तृत क्षेत्र में काफी हलचल उत्पन्न होकर रहेगी।
हम लोगों को इतना उत्साह घर की ब्याह-शादियों में भी नहीं होता जितना रजत-जयन्ती के
सम्बन्ध में है। पच्चीस वर्ष बाद नहीं हर साल जयन्ती
हो, ऐसी ईश्वर से प्रार्थना है।
—सनत्कुमार गर्ग, तेजपुर