Magazine - Year 1968 - Version 2
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Language: HINDI
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धूल का धूल
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धूल का धूल :-
कौशाम्बी राज्य में एक बार भयंकर अकाल पड़ा। लोग दाने-दाने के लिए मोहताज हो गये। अनाज के भाव आसमान चूमने लगे। निर्धनों की मृत्यु का ताँता बँध गया। नगर-के-नगर और गाँव-के-गाँव खाली हो गये।
इसी नगर में चम्पक नाम का एक ईमानदार मजदूर रहता था। उसकी धर्म-पत्नी हव्या भी बड़ी ईमानदार और पति पारायण थी। वे दिन भर कड़ी मेहनत करते शाम को जो कुछ मिलता बच्चों को खिला देते और आप भूखे सो जाते।
पर कुछ दिन में उन्हें भी अन्न का मिलना बन्द हो गया। दोनों बच्चे अकाल देवता की भेंट चढ़ गये। एक दिन भूखा-प्यासा चम्पक हव्या के साथ घर लौटा रहा था। उसने रास्ते में सोने का एक कड़ा पड़ा हुआ देखा। पत्नी को कहीं उसका मोह न जाग पड़े इसलिये उसने उस कड़े के ऊपर धूल डाल दी।
हव्या अभिप्राय समझ गई उसने कहा- ‘‘स्वामी! नाहक धूल डाल रहे हैं, आप इतने निर्लोभ हैं, तो आपकी हव्या क्या आपके आदर्श से डिग सकती है।”
भगवान इन्द्र मजदूरों की इस ईमानदारी से अति प्रसन्न हुये। उन्होंने कहा- ‘‘जहाँ ऐसे कर्मठ और ईमानदार लोग रहते हों, वहाँ अकाल नहीं रह सकता। उस रात खूब जल वृष्टि हुई और अकाल दूर हो गया।”