Magazine - Year 1968 - Version 2
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Language: HINDI
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आत्म-स्मरण (Kavita)
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ऋषियों के तप, त्याग, तेज, गुण मानव धर्म महान् की।
भूली हुई कहानी फिर से याद करो बलिदान की॥
जिस धरती को धर्म का सूरज देता सदा प्रकाश है,
जिस धरती को कर्म और कौशल में ही विश्वास है,
जिस धरती में ज्ञान और गुण का ही रहा निवास है,
जिस धरती ने मानवता की फैलाई मृदु हास है,
वह है भारतवर्ष कि जिसने ज्योति जलाई ज्ञान की।
भूली हुई कहानी फिर से याद करो बलिदान की॥
इसी भूमि में हरिश्चन्द्र से सत्यव्रती ने जन्म लिया,
अपने व्रत की रक्षा के हित अपना सब उत्सर्ग किया,
घर छोड़ा, सुख-वैभव छोड़ा राज-पाट तक छोड़ दिया,
सत से डिगे न राव रंच भी जग से नाता तोड़ लिया,
बच दिया परिवार अन्त तक रखी शान निज बान की।
भूली हुई कहानी फिर से याद करो बलिदान की॥
शिवि, दधीचि, मोरध्वज की यश गाथाओं की पुण्य मही,
राष्ट्र हेतु वैभव सब त्यागा नचिकेता वह हुये यहीं,
दानी कर्ण सदृश इस जग में हुआ न कोई और कहीं,
दान किया सर्वस्व न मुख से कभी भूलकर किया ‘नहीं’,
निष्ठाओं के लिए कभी परवाह नहीं की प्रान की।
भूली हुई कहानी फिर से याद करो बलिदान की॥
जब भी हुई जरूरत जैसी इस धरती ने लाल दिये,
राम, कृष्ण, गौतम, गांधी राणा से मनुज-मराल दिये,
तत्वज्ञान भाषा संस्कृति के इसने अमित कमाल किये,
मरे धर्म के लिये विहंसकर, जिये धर्म के लिये जिये,
पौरुष से रेखायें मेटीं विधि के लिखे विधान की।
भूली हुई कहानी फिर से याद करो बलिदान की॥
सुत शावको, उसी जननी के आज तुम्हारी है बारी,
करना है निर्माण देश का आज करो वह तैयारी,
यह जौहर का युग है अब तक पूर्ण व्यवस्था है सारी,
हाथ तुम्हारे ही लगनी है नये सृजन की चिनगारी,
फिर से तुमको ही लिखनी है विमल कथा निर्माण की।
भूली हुई कहानी फिर से याद करो बलिदान की॥
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*समाप्त*