Magazine - Year 1968 - Version 2
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Language: HINDI
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सौंदर्य की स्वाभाविकता और उसका आधार
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संसार में सभी लोग सुन्दर होना और बने रहना चाहते हैं। असुन्दरता अथवा कुरूपता सभी को अप्रिय है। कोई नहीं चाहता कि वह कुरुप हो अथवा कुरुप दिखलाई दे। अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए लोग तरह-तरह के कृत्रिम साधनों का सहारा लेते हैं। आज संसार में प्रसाधन सामग्री बनाने वाले सैकड़ों कारखाने चल रहे हैं। बाजारों में सैंकड़ों दुकानें प्रसाधन सामग्री बेचती देखी जा सकती हैं। लोग अपनी आय का एक बड़ा अंश इस प्रसाधनों पर खर्च करते रहते हैं। लेकिन तब भी वे संतोषजनक ढंग से सुन्दर नहीं बन पाते।
इस असफलता का कारण केवल यही है कि जिन साधनों, प्रसाधनों और उपकरणों में सुन्दरता की खोज की जा रही है वह उनमें होती ही नहीं है। वास्तविक सुन्दरता साधनों की अनुगामिनी नहीं होती उसका आधार तो स्वस्थ शरीर, निर्विकार मन और पवित्र आचरण होता है। सुन्दरता की लिप्सा में जो लोग प्रसाधनों का सहारा लेते हैं वे अपने स्वाभाविक शरीर और धन का दुरुपयोग ही किया करते हैं। क्रीम से लिपा और पाउडर से पुता मुख पता नहीं किन लोगों को अच्छा लगता होगा। जब तक कोई व्यक्ति शरीर के आरोग्य, उसकी सुचारु कार्य क्षमता और मन की महानता का प्रमाण नहीं देता उसका सौंदर्य प्रकट नहीं हो पाता।
हाथी-सा शरीर लेकर भी जो मनुष्य कुछ सराहनीय कार्य नहीं कर पाता, अपनी शक्ति का सदुपयोग कर किसी का भला नहीं करता तब तक उसका शरीर कितना ही हृष्ट-पुष्ट और बलवान क्यों न हो असुन्दर ही माना जाएगा। मन का सौंदर्य सद्विचारों और वृत्तियों की पवित्रता से प्रकट होता है। मन मलीन होने, वृत्तियों आसुरी होने पर किसी का नाक-नक्शा कितना ही मनोहर क्यों न हो, सुन्दर नहीं कहा जा सकता। उसे सुन्दरता का हर पारखी कुरूप ही मानेगा और कहेगा।
सुन्दरता की तरह कुरूपता भी कोई एक तत्व नहीं है। उसके लक्षण असुन्दर मुख, काला रंग अथवा शरीर का दुबला-पतला होना नहीं है। बहुत से काले रंग और साधारण शरीर वाले बड़े ही सुन्दर और आकर्षक होते हैं। कुरूपता मनुष्य के चारित्रिक कलुष के सिवाय और कुछ नहीं है। इसे एक मानसिक रोग भी माना जा सकता है। जिनका हृदय तरह-तरह की कलुषित भावनाओं, ईर्ष्या, द्वेष और काम, क्रोध से जलता रहता है उनके मुख पर उसकी काली छाया कुरूपता बनकर छाई रहती है।
ऐसे एक नहीं हजारों लोग संसार में देखे जा सकते हैं जिनका रंग गोरा चिट्टा और नाक-नक्शा भी अच्छा होता है लेकिन सुन्दरता के स्थान पर कुरूपता ही उनके मुख पर छाई दिखती है। यह और कुछ नहीं उनके मलीन हृदय की छाया ही होती है। शारीरिक स्वास्थ्य का भी सुन्दरता से कम सम्बन्ध नहीं होता। प्रायः देखा जाता है कोई व्यक्ति काफी सुन्दर होते हैं, लेकिन कुछ दिनों में वे ही व्यक्ति यदि किसी रोग से ग्रसित हो जाते हैं तो देखने में बड़े कुरूप और दयनीय लगते हैं। स्थायी अस्वास्थ्य की तो बात छोड़ दीजिये। साधारण अस्वास्थ्य तक मनुष्य को कुरूप बना देता है। जैसे कल तक एक व्यक्ति देखने में सुन्दर और आकर्षक था, किन्तु आज उसे ज्वर आ गया तब भी आकार-प्रकार में कोई अंतर न आने पर भी उसके मुख की आभा मलीन हो जाती है। वह औरों को ही नहीं अपने को स्वयं कुरूप लगने लगता है। शारीरिक स्वास्थ्य का सुन्दरता से बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है।
संयम का जहाँ स्वास्थ्य से सम्बन्ध है वहाँ सुन्दरता से भी सीधा सम्बन्ध होता है। जो व्यक्ति असंयमी और व्यसनी अथवा विषयी होते हैं, यदि वे स्वस्थ रहे हैं तो स्वास्थ्य तो क्रमशः गिरता है लेकिन सौंदर्य जल्दी ही जाता रहता है। असंयमी व्यक्ति जहाँ जवानी में कुरूप और अनाकर्षक दिखने लगता है वहाँ संयमी व्यक्ति वृद्धावस्था में भी सुन्दर और आकर्षक बने रहते हैं। असंयम और व्यसन वासनाएँ सुन्दरता की स्वाभाविक शत्रु होती हैं।
जो स्वस्थ, संयमी और निष्कलुष मन वाला होता है वह निश्चय ही सुन्दर दिखता है फिर चाहे वह रंग से काला और शरीर से साधारण स्वास्थ्य वाला ही क्यों न हो। पशु-पक्षी और पेड़-पौधे भी जब तक निरोग और प्रसन्न रहते हैं, बड़े सुन्दर लगते हैं। किन्तु इसके विपरीत स्थिति में आते ही अनाकर्षक हो जाते हैं। जिन हिरनों और पक्षियों की सुन्दरता उनकी स्वतन्त्र जंगली स्थिति में छलकती रहती है, पाल या पकड़ लिए जाने पर वह बात नहीं रहती। जंगल के शेर, चीते, भालू आदि जानवर जितने सुन्दर और आकर्षक दिखते हैं उतने सरकस और चिड़ियाघरों के नहीं। जबकि उन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं दिया जाता और बड़े प्यार और परवाह से पाले जाते हैं।
इसका कारण यही होता है कि पराधीनता के कारण वे अपनी मौज से खेल-कूद और भाग-दौड़ नहीं सकते। बन्धन के कारण उनका स्वास्थ्य और मन उद्विग्न रहा करता है। इसी अस्वास्थ्य और निषाद की छाया उन पर मँडराती हुई उनका आकर्षण हरण कर लेती है। कुत्ते, बिल्ली, बकरी, भेड़ यहाँ तक कि गधे और सुअरों आदि पालतू जानवरों के बच्चे तक, जब तक वे अपनी मौज में खेलते और खुश होते हुए स्वस्थ रहा करते हैं बड़े प्यारे और सुन्दर लगते हैं। किन्तु ज्योंही किन्हीं कारणों से उनकी यह विशेषता नष्ट हो जाती है लोग उन्हें नापसन्द करने लगते हैं। सुन्दरता का रहस्य उत्तम स्वास्थ्य, निश्चिन्त जीवन, हर्ष और उल्लास में छिपा हुआ है। जो इन गुणों से रहित है वह कितनी ही सुगढ़ शरीरयष्टि और साफ नाक-नक्शे वाला क्यों न हो सुन्दर दिखलाई नहीं दे सकता।
एक दंपत्ति जब वे नए-नए ब्याह कर आते हैं एक-दूसरे को बड़े ही सुन्दर, आकर्षक और प्यारे लगते हैं। किन्तु जब कुछ दिनों बाद उनमें आपस में कलह और कुढ़न रहने लगती है तब उनका सारा सौंदर्य और आकर्षण समाप्त हो जाता है और पारस्परिक प्रेम भी कम होने लगता है। ऐसा इसलिए होता है कि वाद-विवाद, कलह-क्लेश और आपसी कुढ़न उनके तन-मन को अस्वस्थ कर देती है, उनकी प्रसन्नता को छीन लेती है। इस प्रकार सुन्दरता का आधार समाप्त हो जाने से वह भी समाप्त हो जाती है।
इनसे भिन्न कुछ दंपत्ति ऐसे भी होते हैं जो आजीवन एक-दूसरे के लिए सौंदर्य, आकर्षण और प्रेम के पात्र बने रहते हैं। बुढ़ापे तक में वे एक दूसरे को नवीन जैसे लगते हैं। इसका कारण यही होता है कि वे कभी भूलकर भी परस्पर न तो लड़ते-झगड़ते हैं और न कलह-क्लेश ही करते हैं। उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है। इस प्रकार वे आजीवन सुन्दर और आकर्षक बने रहते हैं।
जो व्यक्ति आकार प्रकार और रंग-रोगन से अच्छे होते हुए भी अनाकर्षक दिखें तो समझ लेना चाहिए कि वे निश्चय ही अस्वस्थ हैं। यदि उनका शरीर किसी रोग से ग्रसित नहीं है तो अवश्य ही उनका मन, चिन्ता, उद्वेग, उत्तेजना, तनाव, ईर्ष्या-द्वेष आदि किसी न किसी मानसिक व्याधि से ग्रसित है। यदि वे इसको अपने चेतन मन में अनुभव नहीं कर पाते तो भी यह व्याधि उनके मनःचेतना में लगी होती है। जब भी कोई व्याधि मन या तन में लगी होगी मनुष्य की सुन्दरता नष्ट हो जाती है। सुन्दरता का रहस्य स्वस्थ तन और प्रसन्न में निवास करता है।
सौंदर्य वर्धन अथवा उसे उत्पन्न करने के लिए कृत्रिम साधनों पर निर्भर होना पैसे की बरबादी के साथ अपने में एक मिथ्या सन्तोष पाल लेना है। प्रसाधनों से लिपे-पुते और उपकरणों से सजे लोग अपने मन में यह झूठा संतोष भले रखे रहें कि वे सुन्दर दिख रहे हैं। वस्तुतः वे दिखते हैं असुन्दर ही। कृत्रिम प्रसाधन वास्तविक सुन्दरता की प्राप्ति नहीं करा सकते। बहुत बार तो वे व्यक्ति की अपनी सुन्दरता भी नष्ट कर देते हैं। ऐसे बहुत से स्त्री-पुरुष देखे जा सकते हैं, जो कामोवेश सुन्दर होते हैं, लेकिन सुन्दरता बढ़ाने या फैशन दिखलाने के लिए प्रसाधनों और उपकरणों का प्रयोग करते रहते हैं। इस निरर्थक बात से उनकी अपनी सुन्दरता भी मारी जाती है। जब वे प्रसाधन मुक्त होते हैं तो उसकी अपेक्षा कहीं ज्यादा सुन्दर लगते हैं जबकि वे प्रसाधन भुक्त होते हैं।
अभिनेताओं जैसी साज-सज्जा बनाये रहने से सौंदर्य में वृद्धि नहीं होती बल्कि गाँठ की सुन्दरता भी कम हो जाती है। बहुत बार देखा जा सकता है कि जो स्त्री-पुरुष सुन्दर होने पर भी और अधिक सुन्दर दिखने के लिए प्रसाधन प्रयोग करते हैं फिर वे उनके बिना भद्दे और कुरूप लगने लगते हैं। पाउडर और क्रीम, लाली और नाखूनी प्रयोग करने वाली स्त्रियाँ जब किसी कारण से उसका उपयोग नहीं कर पातीं तो उनका चेहरा और हाथ-पैर बड़े भद्दे लगने लगते हैं। बात यह होती है कि क्रीम और पाउडर से चेहरे का स्वाभाविक रंग और उसकी स्निग्धता नष्ट हो जाती है। नाखूनों और आंखों का रंग मारा जाता है। वे चितकबरे और विवर्ण हो जाते हैं। किसी कारणवश जब वे क्रीम पाउडर और लाली का प्रयोग नहीं कर पातीं तो उनके वे भाग शेष शरीर से भिन्न तथा मंद रंग वाले होने से असंगति उत्पन्न कर देते हैं और तब उनका चेहरा बड़ा भद्दा, उजड़ा-उजड़ा-सा दिखने लगता है। कृत्रिम प्रसाधनों का प्रयोग लोगों की अपनी सुन्दरता भी नष्ट कर देते हैं। इनका कीतदास बन जाना अपने सौंदर्य और आकर्षण से शत्रुता करना है।
यदि आप चाहते हैं कि आप सुन्दर दिखें और आपका सौंदर्य स्थायी बने तो कृत्रिम साधनों को छोड़कर प्राकृतिक उपायों पर आ जाइये। परिश्रम अथवा न्याय द्वारा अपने शरीर को हृष्ट-पुष्ट, सुडौल और स्वस्थ बनाइये। सारे विकार और विजातीय तत्त्व निकाल कर फेंक दीजिए। साधारण स्वास्थ्यदायक भोजन करिए। दैनिक-चर्या में नियमों का पालन करिए। आपको सौंदर्य का पहला आधार आरोग्य प्राप्त होगा। संयम और ब्रह्मचर्य व्रत का निर्वाह करिए, विषयों और व्यसनों से अपना पीछा छुड़ाइए। आप में ओज नामक तत्त्व का उदय होगा। जो स्वयं ही एक सौंदर्य का प्रकार है।
तन के साथ मन का भी सुधार करिए। काम, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, चिन्ता, उद्वेग, कलह-क्लेश, क्षेम आदि मानसिक रोगों को निकाल डालिए और उनके स्थान पर प्रसन्नता, प्रसाद, हर्ष, उल्लास तथा निश्चिन्तता की वृत्तियाँ प्रबल बनाइए। संसार की सारी कुरूपताओं से सम्बन्ध तोड़कर, फिर चाहें वे चरित्र सम्बन्धी हों अथवा संपर्क सम्बन्धी हों, सुन्दरताओं से संपर्क स्थापित करिए। निश्चय ही आप में सौंदर्य की वृद्धि होगी और वह स्थायी भी बन जाएगा।