Magazine - Year 1973 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
श्रमिक की महानता (kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
मलिकशाह का पुत्र सुल्तान संजर अपने सैनिकों के साथ सीमा प्रान्त का दौरा करने जा रहा था। स्थान काफी दूर था। दिन भर में सारा रास्ता तय करना मुश्किल था। सूर्यास्त के समय एक गाँव के किनारे बगीचे में डेरा डाल दिया गया। सुल्तान ने देखा दूर एक टीले पर कोई पक्षी बैठा हुआ है, उसने अपने अंग रक्षक से तीर कमान लिया और ऐसा तीर चलाया कि देखते ही देखते वह नीचे लुढ़क गया।
सुल्तान ने नौकर को आदेश दिया कि वह जाकर देखें कि कौन सा पक्षी है। नौकर गया उसने देखा कि वह पक्षी नहीं एक छोटा बालक है जो दूर बैठकर सुल्तान और सैनिकों की गतिविधियों को देख रहा था। उसने मूर्छित अवस्था में ही लाकर उस बालक को सुल्तान के सम्मुख लिटा दिया।
उसने पक्षी के स्थान पर अबोध बालक को देखा तो अपनी अदूरदर्शिता पर पश्चाताप करने लगा। वह बहुत दुखी हुआ। उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वह जाकर पास के गाँव में पता लगायें कि यह बालक किसका है।
उसका पिता था जो मेहनत मजदूरी करके अपना तथा बच्चे का पेट पालता था। उस निर्धन श्रमिक को सुल्तान के सम्मुख पेश किया गया।
सुल्तान ने उसे डेरे के अन्दर बुलाया। बालक तब तक दम तोड़ चुका था। उसने अपना अपराध स्वीकार करते हुये कहा-भाई तुम्हारे सम्मुख यहाँ एक थाल में अशर्फियाँ रखी हैं और एक थाल में तलवार रखी है। यदि क्षमा करना चाहते हो तो यह अशर्फियों का थाल अपने घर ले जाओ और यदि बदला लेना चाहते हो तो तलवार और मेरा सर तैयार है। जो कुछ दण्ड देना चाहते हो वह आज ही दे दो। इस कार्य को मैं कल के लिये नहीं टालना चाहता।
श्रमिक ने कहा राजन्! पश्चाताप, ही सबसे बड़ा प्रायश्चित है। आप भविष्य में इस प्रकार की भूल न दुहरायें। पुत्र के बदले में धन लेने की मेरी कोई इच्छा नहीं है। यह कहता हुआ वह व्यक्ति चुपचाप चला गया। बादशाह उसकी महानता को देखता ही रह गया।