Magazine - Year 1977 - Version 2
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Language: HINDI
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व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाली अति सूक्ष्म शक्तियाँ
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समझा जाता है कि पदार्थ और पुरुषार्थ के बल पर मनस्वी और श्रमशील व्यक्ति अभीष्ट सफलताएँ प्राप्त कर लेते हैं। यह मान्यता एक अंश तक ठीक भी है और उसे सर्व साधारण के लिए उपयोगी ही घोषित किया जाना चाहिए। सामान्य लोक व्यवहार में उसी प्रतिपादन को लाभदायक और महत्वपूर्ण माना जाता रहा है, जो उचित भी है।
पर जब अधिक गहराई में प्रवेश करते हैं तो कुछ ऐसे नये तथ्य सामने आते हैं, जो स्थूल चेष्टाओं को ही सब कुछ नहीं रहने देते वरन् इससे आगे की ऐसी झाँकी कराते हैं जिनके आधार पर सूक्ष्म तत्व का महत्व अत्यधिक बढ़ा-चढ़ा सिद्ध होता है।
हमारे व्यक्तित्व के दृश्यमान अवयव ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों के रूप में जाने जाते हैं। इन्हीं के माध्यम से रसानुभूति होती हैं, जानकारियाँ मिलती हैं और विविध कर्म करना सम्भव होता है। यह जीवन की सामान्य प्रक्रिया हुई। असामान्य स्थिति वह है, जिसमें व्यक्तित्व का आधारभूत ढाँचा खड़ा करने वाले विशिष्ट तत्व का अस्तित्व होता है। उनका नियंत्रण अंतर्मन करता है। सामान्य पुरुषार्थ के बल पर न इन विशिष्ट तत्वों को प्रभावित किया जा सकता है और न अंतर्मन के अभ्यासों को बदलने के लिए सरलतापूर्वक तैयार किया जा सकता है। व्यक्तित्व के इस गहन अन्तराल को प्रभावित, विकसित करना मात्र उसी आधार पर सम्भव होता है, जिसे तत्व ज्ञानियों ने योग विद्या एवं साधना विज्ञान का नाम दिया है।
नेपोलियन बोनापार्ट का पराक्रम प्रसिद्ध है। वाटरलू के युद्ध में वह हार गया। ‘ग्लैण्ड्स आफ डेस्टिनी’ के लेखक डा0 ईवो के अनुसार इस पराजय का कारण यह था कि उसकी पिट्यूटरी ग्रन्थि विकृत हो गई थी, इसी से वह समय पर सही निर्णय न कर पाया; अन्तर्द्वन्द्व में फँसा रह गया और अवसर चूक गया।
हारमोन्स बनाने वाली ग्रन्थियों का महत्व अब स्पष्ट हो चुका है। इन्हें ही अंतःस्रावी ग्रन्थियाँ कहते हैं।
पीनियल, पिट्यूटरी, थाइराइड, पैराथाइराइड, एड्रीनल, पेन्क्रियाज, गोनड्स, स्प्लीन आदि ग्रन्थियों के स्थान, आकार, स्राव तथा उन स्रावों से शरीर पर प्रभाव परिणाम अब शरीर शास्त्र की किसी भी पुस्तक में विस्तार से पढ़े जा सकते हैं। इन ग्रन्थियों का शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास में भारी योगदान है। मनुष्यों का बौना रह जाना, असाधारण लम्बे हो जाना, मोटापा, पतलापन, नपुंसकता, प्रचण्ड कामवासना, बुद्धि दौर्बल्य, प्रखर-बुद्धि होना, मिताहारी होना, बहुत खाना, बिना सोए काम चलाना, बहुत अधिक सोना, अकारण रोगग्रस्त हो उठना, आदि अनेक शारीरिक मानसिक दशाएँ इन्हीं हारमोन्स-स्रावों से बनती बिगड़ती रहती हैं। व्यक्तित्व के निर्माण में इनका ही योगदान है। प्रेम, उत्साह, उल्लास, आनन्द, चिन्ता, उद्वेग, विषाद आदि भावनाएँ इन्हीं स्रावों की प्रतिक्रियाएँ हैं। मानसिक सन्तुलन और स्वभाव निर्माण इन्हीं पर मुख्यतः अवलम्बित है। शारीरिक सुदृढ़ता, सुन्दरता, स्फूर्ति, इन्द्रिय-क्षमता रोग निरोधक शक्ति, मानसिक प्रखरता और स्वभाव तथा चरित्र का स्तर; इन्हीं से सम्बन्धित पाया गया है। समग्र व्यक्तित्व के विकास में इन स्रावों की अतिमहत्त्वपूर्ण भूमिका है।
अब यह भी ज्ञात हुआ है कि इन्हीं स्रावों के समन्वित प्रभव के परिणामस्वरूप प्रत्येक मनुष्य के शरीर से एक विशेष प्रकार की गन्ध फैलती रहती है। प्रत्येक व्यक्ति की गन्ध दूसरे से भिन्न रहती है। वस्तुतः यह यह गन्ध मनुष्य की हथेलियां ओर तलुवों में स्थित स्वेद-ग्रन्थियाँ
किसी व्यक्ति की गन्ध से युक्त वायु के नमूनों की विशेष पात्रों में लगभग दो वर्ष तक सुरक्षित रखा जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति की एक गन्ध-छाप या गन्ध-प्रकृति तैयार कर ली जा सकती है। अपराधों की खोज के सिलसिले में यह गन्ध-छाप बहुत काम की सिद्ध होगी। अपराध जिस कमरे में घटित हो, उसके वायु-नमूनों को एकत्र कर उन्हें प्रयोगशाला में विश्लेषण किया जा सकता है। संदिग्ध व्यक्ति की गन्ध के साथ इस नमूने की गन्ध का मिलान कर अपराधी की शिनाख्त की जा सकती है।
रूसी वैज्ञानिकों ने इस दिशा में विशेष अनुसंधान किये हैं। इससे ज्ञात हुआ है कि शरीर के पसीने की संरचना में ऐसे अम्ल विद्यमान होते हैं, जिनका कोई अंश कमरे की किसी वस्तु पर, फर्श आदि पर फैल जाता है। यह अम्लाँश पैरों में जूते पहने होने पर भी जूतों को पार कर फर्श आदि पर अपना प्रभाव छोड़ देता है। इसकी गन्ध इतनी पर्याप्त होती है कि खोजी कुत्ता इसकी पहचान करते हुए इसका पीछा कर सकता है।
अब अमेरिकी वैज्ञानिकों ने ऐसे गन्ध-विश्लेषकों का निर्माण किया है, जो कुत्तों की घ्राण-शक्ति से सहस्रों गुणित अधिक संवेदनशील है। किसी स्थान पर, यदि एक व्यक्ति लगभग 45 मिनट उपस्थित रहे, भले ही वह एक ही स्थान पर न बैठा रहकर वहाँ सीमित क्षेत्र में चलता-फिरता भी रहे, तो वहाँ के वायु नमूनों को शीशे के एक पात्र में एकत्र कर उसका विश्लेषण करके उस निश्चित गन्ध-छाप की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। कुछ अन्य उपकरणों द्वारा यह तक जाना जा सकता है कि उस व्यक्ति ने उस समय कौन-सी चीजें खाई थीं, किन वस्तुओं को छुआ था ।
अंतःस्रावी हारमोन ग्रन्थियाँ ऐसी हैं, जिन्हें शल्य क्रिया द्वारा किसी भी शरीर की फाड़ चीर करके देखा ज सकता है। यह स्थूल शरीर में रहने वाली चमत्कारी विशेषताएँ, जिन पर स्थूल पुरुषार्थ का प्रभाव नहीं पड़ता वरन् अंतर्मन ही उनका नियंत्रण परिवर्तन करता है। यों दवा-दारु और चीर-फाड़ से भी इन संस्थानों को प्रभावित किया गया है, पर सफलता नगण्य ही मिली है। इन प्रत्यक्ष ग्रन्थियों से भी अधिक प्रभावशाली वे ग्रन्थियाँ हैं, जो सूक्ष्म शरीर में विद्यमान हैं और जिन्हें षट्-चक्रों एवं चौबीस उपचक्रों के रूप में जाना जाता है। इनकी अन्तः स्थिति ही व्यक्तित्व के मूलभूत ढाँचे को खड़ा करती है। संस्कार प्रारब्ध आदि इसी को कहते हैं।
वैज्ञानिक व्यक्तित्व की गन्ध के रूप में इन दिनों जिसका विश्लेषण कर रहे हैं, वस्तुतः वह मानवी विद्युत है जा क्रिया और चिन्तन पर अन्तः प्रेरणा उठती है और उसी ऊर्जा के सहारे मनुष्य दिशा निर्धारित करते-उठते एवं गिरते देखे जाते हैं। अंतःस्रावी ग्रन्थियों की स्थिति सुधारने और समूची वैयक्तिक स्थिति में परिवर्तन करने के लिए वैज्ञानिक उपाय सोचे और प्रयोग में लाये जा रहे हैं, पर उनसे अभीष्ट परिणाम निकल नहीं रहा है। कई बार तो उलटे परिणाम भी देखे गये हैं। उपचार ने लाभ के स्थान पर हानि प्रस्तुत की हैं।
मानव शरीर में विद्यमान अंतःस्रावी ग्रन्थियों के क्रिया कलापों की जानकारी का क्षेत्र बढ़ता ही जा रहा है। किन्तु अभी तक यह नहीं जाना जा सका है कि इन स्रावों को कम या अधिक करने अथवा नियंत्रित करने के लिए क्या कुछ किया जा सकता है? औषधियों की तो वहाँ तक पहुँच अल्प ही होती है। शल्यचिकित्सा और इंजेक्शन आदि द्वारा भी इन्हें नियन्त्रित करने की निर्दोष विधियाँ ज्ञान नहीं हो सकी हैं। छेड़छाड़ करने पर अनेक नवीन समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं। उदाहरणार्थ- सौंदर्य वृद्धि की ललक से, स्त्रियों के बढ़े हुए स्तनों को छोटा करने के लिए ‘रिड्यूसिंग क्रीम’ का प्रयोग चला। इसी तरह छोटे स्थानों का बड़ा बनाने के लिए एस्ट्रोजन हारमोन शरीर में पहुँचाए गये। इससे तात्कालिक लाभ तो दृष्टिगोचर हुआ, पर थोड़े दिनों बाद अन्य शारीरिक विकृतियाँ पैदा हो गईं। एक फ्रेंच महिला इसी प्रयोग के चक्कर में दाढ़ी मूँछों वाला बन बैठी और सौंदर्य वृद्धि की साध पूरी होना तो दूर, रहा सहा सौंदर्य भी जाता रहा। विद्युत संचार के प्रयोगों के भी प्रतिकूल परिणाम ही देखे गये हैं।
हारमोन्स सम्बन्धी वैज्ञानिक गवेषणाएं हमें इसी निष्कर्ष पर पहुँचाती है कि शरीर संस्थान के विभिन्न अवयवों की अपेक्षा एक छोटी सी ग्रन्थि से स्रवित चन्द बूँदें अधिक महत्वपूर्ण हैं। सफलता और समृद्धि का आधार बाहरी रूपकार की विशालता विराटता पर नहीं, आन्तरिक प्रवृत्तियों पर ही गतिशील है। शक्ति का स्त्रोत चेतना का प्रकृति संस्थान ही है। उसकी की उत्कृष्टता निकृष्टता के आधार पर हमारा वास्तविक उत्थान पतन होता है। इससे अधिक गम्भीर क्षेत्र में उतरना हो तो हमें उन चक्रों और उपचक्रों का अन्वेषण करना पड़ेगा, जिन्हें योग शास्त्र में मनुष्य की आधार शिला माना है।
योग विज्ञान उस रहस्यमयी किन्तु सुनिश्चित प्रक्रिया का नाम है, जिनके आधार पर व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास हो सकता है और उस सफलता को प्राप्त किया जा सकता है, जिसे जीवन लक्ष्य की पूर्ति कहा जाता है।