Magazine - Year 1980 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
चरणपीठों की स्थापना प्रत्येक गाँव में हो
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
सन् 80 युग सन्धि का बीजारोपण वर्ष है इसका प्रधान कार्यक्रम है - प्रज्ञावतरण का ध्वजारोपण। यह हर गाँव में किया जाना है।गायत्री चरण-पीठ की स्थापना के रुप में यह पुण्य प्रयोजन सम्पन्न किया जाना है । भारत भूमि का एक भी गाँव ऐसा न बचने पाये जाहँ गायत्री चरणपीठ की स्थापना न हो । इसके माध्यकम से उन सत्प्रवृतियों को अग्रगामी बनाये जाने +++ परिवार और समाज +++ सम्भव हो सके ।
यह चरणपीठों +++ सुलभ एवं नवयुग को +++ में पूर्णतया समर्थ ऐसी शक्तिपीठ है जिसके माध्यम से हर गाँव, हर घर, हर व्यक्ति तक युग-चेतना का प्रवेष पदार्पण सम्भव हो सके ।
गाँव के मध्य या समीप एक हरा-भरा वृक्ष-उसके नीचे न्यूनतम 6 ग् 6 फुट का पक्का चबूतरा-चबूतरे के तकियो में गायत्री माता के चरणो की स्थापना,सूर्यार्व मात्र से उसकी पूजा, अर्घ के लिए चबूतरे के नीचे एक छोटा पत्थर बहते हुण् ज्ल का उपयोग तुलसी के थावले में। बस यही है गायत्री चरणपीठ जो प्रायः ढाई सौ रुप्ये की लागात से बन सकती है । इसके लिए उपयुक्त स्थान सामूहिक श्रमदान तथा थोडा-थोडा करके एकत्रित किया गया धन, किसी भी प्रतिभावान व्यक्ति के प्रयत्न से सहज हो उपलब्ध हो सकता है । इसे बनाने बनवाने के लिए एकाकी या टोली बनाकर निकलने बाले हर जगह इस निर्माण से सफलता प्राप्त कर सकते है । हजारी किसान ने बिहार प्रान्त के एक क्षेत्र में अपने प्रयत्न से हजार आम्र उद्यानों से चरणपीठों की दूरगानी उपयोगिता कम नही, वरन् अधिक ही है । आवष्यकता मात्र शारीरिक आलस्य और मानसिक अवसाद छोड कर निकल पडने भर की है । सूक्ष्म जगत में बहने वाला प्रज्ञा प्रवाह इस प्रयत्न को सफल बनाने में हर जगह अनुकूलता उत्पन्न करेगा।
जहाँ भी चरणपीठ बनें वहाँ उसके निकट हर सप्ताह श्रद्धालु लोग जल चढाने ,दीपक जलाने एवं हवन कराने जाया करें हवन में गुड मिश्रित खीर का शाकल्य और मात्र गायत्री मन्त्र का उच्चारण पर्याप्त है। हर शक्तिपीठ के निकट सप्ताह में या महीने में एकबार भजन-कीर्तन भी हुआ करे। ×
चरणपीठ की व्यवस्था का उत्तरदायित्व कोई श्रद्धालुजन सँभाले । पूजा व्यवस्था के साथ उस क्षेत्र के षिक्षितों को युग साहित्य पढाने एवं वापिस लाने का क्रम भी तत्काल आरम्भ कर दिया जाय। सहयोगीजनों के जन्म दिन मनाने और इस माध्यम से परिवार गोष्ठियाँ चलाने का प्रयत्न आरम्भ किया जाय। सहवोगी बढने पर बीस हजार या उससे भी कम में बन सकने वाले छोटे प्रज्ञापीठ भी वहाँ बन सकते हैं।
श्रद्धालूजनो यहाँ नित्य दस पैसे वाले ज्ञान घर और मुट्ठी अन्न वाले धर्मवट रखे जाँय । उस संग्रह से चरणपीठ के क्रिया -कलापों में पूरे या अधूरे समय तक सहयोग देने वाले स्वयं सेवक का खर्च चल सकता है । साथ ही चल-पुस्तकालय,प्रौढ षिक्षा, घरों में तुलसी आरोपण,दीवारों पर आदर्ष लेखन जैसे रचनात्मक कार्या का खर्च भी निकल सकता है।
गायत्री परिवार के हर प्राणवान सदस्यो को इस बीजारोपण वर्ष में यही लक्ष्य लेकर चलना चाहिए कि उसे अपने क्षेत्र में अधिकाधिक चरण-पीठों की स्थापना करनी एवं करानी है । प्रज्ञा पुत्रों में से एक भी ऐसा न बचे जिसने इस पुण्य प्रयास में अपना सहयोग, समयदान न दिया हो ।