Magazine - Year 1982 - Version 2
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Language: HINDI
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दृश्य से भी अधिक विलक्षण और सामर्थ्यवान अदृश्य जगत
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योग वाशिष्ठ में एक उपाख्यान इस प्रकार आता है। “बहुत समय पूर्व पद्म नाम का एक राजा राज्य करता था। उसकी पत्नी का नाम शीला था। राजा और रानी में गहरी अनुरक्ति थी। शीला यह नहीं चाहती थी कि उसे कभी पति-वियोग सहना पड़े। वह माँ सरस्वती की उपासना करने लगी। प्रसन्न होकर ज्ञान की देवी प्रकट हुई और शीला से उन्होंने वर माँगने को कहा। शीला ने प्रार्थना की कि यदि उसके पति की मृत्यु पहले हो जाय तो भी पति की आत्मा उसके समक्ष बनी रहे। देवी सरस्वती यह वरदान देकर कि शीला जब भी स्मरण करेगी वह प्रकट हो जायेंगी और उसकी इस इच्छा की पूर्ति करेगी, अंतर्ध्यान हो गयी। कुछ समय बाद राजा की मृत्यु हो गयी। शोकातुर शीला ने वीणावादिनी का ध्यान किया। दिए गये वचन के अनुसार सरस्वती उपस्थित हुई। शीला ने पूछा कि उसके पति कहाँ हैं? देवी ने उत्तर दिया कि प्रत्यक्ष स्थूल सृष्टि के भीतर ही एक और सूक्ष्म सृष्टि है। उसके पति वही सूक्ष्म सृष्टि में निवास कर रहे हैं। शीला को देवी सरस्वती ने बताया कि एक जगत के भीतर दूसरा जगत और उसके भीतर तीसरा जगत इसी तरह यह सिलसिला अनन्त काल तक जारी है। एक सृष्टि के जीव दूसरी सूक्ष्म सृष्टि वाले जीवों को देख सकने में अक्षम हैं। पर साधना द्वारा विशिष्ट क्षमता अर्जित करके सूक्ष्मतम सृष्टियों में प्रविष्ट कर उनमें निवास करने वाले सूक्ष्म जीवों का स्वरूप और व्यवहार देखा जा सकता हैं।”
उपाख्यान में वर्णन आता हैं कि ‘सूक्ष्मतर’ सृष्टि में प्रवेश करके पति की स्थिति को देखने की उत्कट इच्छा शीला ने व्यक्त की। देवी की कृपा से अन्य सृष्टि में विचरण करने वाले पति के सशरीर स्वरूप को उसने देखा।’ कुछ ही समय में कितनी ही योनियों और सृष्टियों में भ्रमण करने के लम्बे कथानक के साथ उपाख्यान की समाप्ति होती हैं। आख्यान में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य का रहस्योद्घाटन यह हुआ है कि प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होने वाली सृष्टि के भीतर ही कितनी ही सूक्ष्मतर सृष्टियों का अस्तित्व विद्यमान है। जिसका बोध सामान्यतया मनुष्य को अपनी तन्मात्राओं तथा ज्ञानेन्द्रियों द्वारा नहीं हो पाता।
मानवी ज्ञान की पकड़ सीमा विआयामिक विश्व तक है। दृश्य जगत लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई अथवा गहराई के अंतर्गत आता है। हमारी इन्द्रियों की बनावट भी ऐसी है कि वे तीन आयामों वाली स्थूल सृष्टि भर का अनुभव कर पाती हैं। सापेक्षवाद के जनक विश्व के मूर्धन्य वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने दिक्−काल से परे चतुर्थ आयाम (फोर्थ डाइमेन्शन) की खोजकर विश्व के समक्ष एक नये रहस्य पर प्रकाश डाला। मूर्धन्य वैज्ञानिकों का मत हैं कि फोर्थ डाइमेन्शन में पहुँचने पर वस्तुओं का स्थूल स्वरूप दिखायी नहीं पड़ता। इस शृंखला में खो की एक रहस्यमय कड़ी यह जुड़ी हैं कि प्रत्येक पदार्थ के साथ प्रति पदार्थ जीव के साथ प्रति जीव तथा विश्व के एक प्रति विश्व का अस्तित्व भी है। एण्टीमैटर, एण्टी यूनीवर्स, एण्टी प्रोटान, एण्टी इलेक्ट्रान पर शोध करने वाले मूर्धन्य वैज्ञानिकों में पाल.ए. एम. डिराक, डॉ. स्नोडिंगर, डॉ. कार्ल डी. एण्डरसन, एमेलियों जी. सेगरे, ओवेन चेम्बन लेन, तथा पी. वाइपसीलेन्टिस का नाम उल्लेखनीय है। प्रति पदार्थ का अस्तित्व प्रमाणित होते ही अब यह सोचा जा रहा है कि न केवल पदार्थ का वरन् प्रत्येक संरचना का एक स्वतन्त्र प्रति स्वरूप विद्यमान होना चाहिए। किन्तु एक प्रश्न सहज ही उठता है कि पदार्थ, विश्व तो दीखता है पर प्रति पदार्थ, प्रति विश्व मानवी नेत्रों से दृष्टिगोचर नहीं होता। ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि प्रति जगत एवं सम्बन्धित पदार्थों एवं जीवधारियों का अस्तित्व चतुर्थ आयामिक अदृश्य सूक्ष्म सृष्टि में ही कहीं होना चाहिए।
कभी-कभी ऐसी विलक्षण घटनाएँ घटित होती है जो यह सोचने को बाध्य करती हैं कि अपने ही इर्द-गिर्द किसी रहस्यमय अदृश्य सृष्टि का अस्तित्व विद्यमान है, जो पदार्थों एवं जीवों को भी उदरस्थ कर लेती हैं। समय-समय पर देखते ही देखते पल मात्र में विलुप्त हो जाने वाले व्यक्तियों एवं पदार्थों की रहस्यमय घटनाएँ जिनका अब तक कुछ भी अता-पता मालूम न हो सका, उपरोक्त सम्भावना को और भी अधिक परिपुष्ट करता हैं।
ऐसी ही एक घटना 1856 में घटी। 650 फ्राँसीसी सैनिकों का एक ग्रुप निकटवर्ती जर्मन चौकी पर हमला करने के लिए आगे बढ़ रहा था। सभी सैनिक अस्त्र-शस्त्रों से लैस थे। अचानक हवा का एक हल्का-सा बवंडर आया और देखते ही देखते 55 सैनिक अदृश्य हो गये। बचे हुए ६०५ सैनिकों ने उस स्थान की एक-एक इंच भूमि देख डाली, पर उनका कुछ भी पता न लग सका। महीनों तक खोज-बीन चलती रही, पर निराशा ही हाथ लगी और एक भी सैनिक की जानकारी न मिल सकी।
सन् 1939 में चीन और जापान के बीच युद्ध चल रहा था। चीनी सेना की तीन हजार सैनिकों की एक टुकड़ी का पड़ाव नानकिंग नामक स्थान पर था। टुकड़ी का संपर्क वायरलैस द्वारा केन्द्र से निरन्तर बना हुआ था। एक दिन प्रातः अचानक यह संपर्क टूट गया। केन्द्रीय सैनिक कमांडर ने अविलम्ब सैनिकों की एक दूसरी टुकड़ी उक्त ग्रुप का पता लगाने के लिए भेजी। इस दस्ते ने आकर नानकिंग स्थान पर खोज-बीन की। सैनिकों के अस्त्र, शस्त्र, खाद्य, सामग्री, वस्त्र, बिस्तर सभी सामान वहाँ मौजूद थे, पर एक भी सैनिक का वहाँ पता न था। खोजी कुत्ते उक्त स्थान पर भेजे गये। वे वहाँ पहुँचकर भौंकते रहे पर कहीं आगे नहीं बढ़े। एक फर्लांग दूरी पर दो सैनिक सुरक्षा पहरे पर नियुक्त थे। उनसे पूछताछ की गई, पर उन्होंने किसी प्रकार के बाह्य आक्रमण आदि की पुष्टि नहीं की। इस घटना का फिर कोई पता न चला। इतने सारे सैनिक आखिर कहां काले गये कुछ भी पता न कल सका। सन् 1920 में लन्दन के युवा पिक्टर ग्रेसर अपने एक मित्र के साथ दुकान से निकले। मार्ग में दोनों व्यक्ति राजनैतिक विषयों पर बातचीत करते हुए अपने निवास स्थल की ओर वापस लौट रहे थे। अकस्मात् मित्र के नेत्रों के सामने से ही पिक्टर ग्रेसर ओझल हो गये। आगे-पीछे चारों ओर मित्र ने देख डाला पर पिक्टर का दूर-दूर तक कोई पता नहीं था। जिस स्थान से वे विलुप्त हुए थे उसका भली-भाँति निरीक्षण कर लिया गया, पर कोई चिन्ह नहीं प्राप्त हो सका।
‘टेनेसा’ (अमेरिका) निवासी किसान डेविड लाग अपने दो मित्रों के साथ 23 सित. 1948 को सायंकाल घूमने निकला। तीनों मित्र साथ-साथ चल रहे थे। अचानक डेविड लाग गायब हो गये। उस स्थान पर मित्रों ने ध्यान से देखा कि शायद कोई खाई अथवा गड्ढा हो, किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं था। भूमि समतल और कड़ी थी। जमीन में धँसने की भी कोई गुंजाइश न थी। ‘लाग‘ के दो मित्रों में से एक टेनेसी के प्रख्यात न्यायाधीश थे। घटना उनके नेत्रों के समक्ष ही घटी थी। अतएव किसी प्रकार के सन्देह की कोई गुँजाइश नहीं थी। उन्होंने अपने एक वक्तव्य में कहा कि–”यह एक अविश्वनीय किन्तु सत्य घटना है जिसका कोई समाधान ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलता।”
जून 1979 में लन्दन की ‘श्रीमती क्रिस्टीन जान्टन’ नामक महिला ने वहाँ के न्यायालय में विवाह विच्छेद का एक अजीब मुकदमा दायर किया। याचिका में बताया गया था कि “उसके पति श्री एलन” के हवा में गायब हो जाने के कारण तलाक की अनुमति दी जाय ताकि वह दूसरा विवाह कर सके।” गायब होने की घटना इस प्रकार घटी। सन् 1975 में गर्मी की छुट्टियाँ बिताने के लिए श्रीमती ‘क्रिस्टीन’ तथा उसके पति ‘श्री एलन’ उत्तरी ध्रुव की यात्रा पर निकले। दोनों पति-पत्नी रूसी सीमा से लगे ‘लैपलैण्ड’ में स्थित एक गिरजा-घर के निकट से होकर गुजर रहे थे। शीतल वायु के हल्के-हल्के झोंके कल तहे थे। जिसका आनन्द लेते हुए वे दोनों आगे बढ़ रहे थे। अचानक साथ में चल रहे ‘एलन’ गायब हो गये। श्रीमती क्रिस्टीन ने उस स्थान को अच्छी तरह देख डाला पर एलन का कहीं पता-ठिकाना नहीं था। रूसी सेना का पड़ाव निकट था। खोजी कुत्ते तथा विशेषज्ञों का एक दल श्रीमती क्रिस्टीन की मदद हेतु वहाँ आया पर एलेन की कोई खबर नहीं मिल सकी।
‘मलीना’ की यू. पी. आई नामक प्रामाणिक समाचार एजेन्सी ने पूरी खोज−बीन करने के बाद एक समाचार प्रकाशित कराया कि–”कार्मेलियो क्लोजा” नामक एक बारह वर्षीय छात्र अनायास ही कभी−कभी अदृश्य हो जाता है। स्कूल से दो−दो दिन तक गायब हो जाना और पुनः वापस आ जाना–आरम्भ में तो यह समझा गया कि लड़का चकमा दे रहा है पर कितनी ही बार वह सहपाठियों के सामने ही नेत्रों से ओझल हो गया। उसका कहना था कि कोई समवयस्क परी जैसी लड़की उसे खेलने के लिए बुलाती है और अचानक वह रुई जैसा हल्का होकर सूक्ष्म जगत में जा पहुँचते है। उसे कितनी ही बार बन्द कमरे में पुलिस के पहरे के भीतर रखा गया पर चारों ओर से बन्द रहने पर भी उसका गायब होना रुका नहीं।
व्यक्तियों ही नहीं वस्तुओं के अदृश्य हो जाने के समाचार भी कितनी ही बार मिले है। फ्रांसीसी वैज्ञानिक ‘सेलारियर’ ने एक घटना का उल्लेख किया है कि “पेरिस में एक प्राचीन प्रतिमा थी। एक दिन पुरातत्ववेत्ता प्रतिमा का परीक्षण कर रहे थे कि वह अकस्मात हवा में ओझल हो गयी। अटलाँटिक महासागर का रहस्यमय क्षेत्र वारमूडा त्रिकोण वैज्ञानिकों के लिए अभी भी शोध का विषय बना हुआ है। एक सदी के भीतर उस स्थान से सैकड़ों की संख्या में विशालकाय जलपोत तथा वायुयान गायब हो चुके हैं और उनमें बैठे हजारों व्यक्तियों का आज तक कोई सुराग नहीं मिल सका।
इन घटनाओं को देखते हुए विश्व के मूर्धन्य वैज्ञानिक अब यह सोचने पर विवश हो गये है कि अपने ही इर्द−गिर्द किसी अदृश्य जगत का अस्तित्व मौजूद है जो दृश्य की तुलना में कहीं अधिक विलक्षण और सामर्थ्यवान है। भौतिकीविद् हर्बर्ट गोल्डस्टीन अपने शोध प्रबन्ध ‘प्रापेगेशम ऑफ शार्ट रेडियो वेव्स’ में लिखते हैं कि “प्रत्यक्ष दुनिया के भीतर ही सूक्ष्म अदृश्य जगत विद्यमान है जिसमें प्राणी और पदार्थ दोनों ही भरे पड़े है, पर वे मानवी नेत्रों से दिखायी नहीं पड़ सकते। किसी न किसी रूप में वह संसार हमसे भी जुड़ा हुआ है तथा प्रभावित भी करता है।” सुप्रसिद्ध विज्ञान कथा लेखक “एच.जी.वेल्सन ने–”अपने फिक्सन उपन्यास दि इन विजिवल मैन” में मानव के भीतर उन सम्भावनाओं पर प्रकाश डाला है जिसके द्वारा वह देश, काल के नियमों से परे अदृश्य लोक में पहुँच सकता है तथा उससे सम्बन्ध स्थापित कर सकता है। कैलीफोर्निया विश्व विद्यालय के डॉ.रॉबर्ट सिरगी अपने सहयोगियों के साथ ऐसे आधार खोजने में संलग्न है जिसके द्वारा पदार्थ के चौथे आयाम को देखना एवं समझ सकना सम्भव हो सके।
भारतीय ऋषियों ने सृष्टि में सात लोकों का वर्णन किया है जो एक से अधिक सूक्ष्मतर और शक्ति सम्पन्न है। भूः, भुव, स्वः जनः, तपः, सत्यम् लोकों का उल्लेख आर्ष ग्रन्थों में मिलता है। सर्वदृष्टा ऋषिगण इन लोकों में भी समय−समय पर आवागमन करते थे। देश, काल के बन्धन उन्हें नहीं बाँध पाते थे। देवर्षि नारद का लोक−लोकान्तरों में सदा भ्रमण करते रहने तथा उनमें वालों की खोज−खबर लेते रहने के कई आख्यान सुप्रसिद्ध है। ऋषियों की–योगियों की ऐसी सामर्थ्य का भी वर्णन मिलता है कि वे शरीर,एवं दिक्−काल के सभी बन्धनों को तोड़ कर अदृश्य हो जाते थे तथा अपने आप प्रकट भी हो जाते थे। प्राचीन और अर्वाचीन दोनों ही मान्यताओं से किसी ऐसे अदृश्य लोक का परिचय मिलता है जो दृश्य संसार की तुलना में कहीं अधिक विलक्षण है। उसमें पदार्थ और प्राणियों की एक विचित्र सृष्टि हो सकती है। सम्भव है उन जीवों की आकृति और प्रकृति भू−लोक पर निवास करने वाले जीवधारियों की तुलना में सर्वथा भिन्न हो। उनकी गतिविधियाँ एवं अभिरुचियों में भी भू−लोक के जीवधारियों से भारी भिन्नता हो सकती है। भूत, प्रेत, पितर, देवी−देवता जैसी कितनी ही रहस्यमय शक्तियों का परिचय समय−समय पर मिलता है। हो सकता है वे सभी उसी सूक्ष्म जगत में अपना अड्डा जमाये हुए हों और हमारे इर्द−गिर्द ही अदृश्य बने रहकर विचरण कर रहे हों, जिनकी अनुभूति हमारी इन्द्रियाँ न कर पाती हों।
निश्चित ही रहस्यों–विलक्षणताओं एवं सामर्थ्यों का भाण्डागार अदृश्य जगत अपने गर्भ में असीम सम्भावनाएँ छुपाये हुए हैं। भारतीय ऋषियों ने मानवी चेतना की शक्ति को भी असीम सम्भावनाओं से ओत−प्रोत माना है। विशिष्ट अध्यात्म साधनाओं द्वारा न केवल उस अदृश्य जगत से संपर्क साधा जा सकता है। वरन् उसमें सन्निहित विविध प्रकार की क्षमताओं तथा जीवधारियों को कल्याणकारी योजनाओ का माध्यम बनाया जा सकता है।