Magazine - Year 1984 - Version 2
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Language: HINDI
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हर व्यक्ति प्रतिभावान बन सकता है
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मस्तिष्क की संरचना और कार्यपद्धति पर कुछ अधिक प्रकाश पड़ने से यह समझने में सरलता होती है कि किस प्रकार इस पारसमणि का उपयोग अपनी दरिद्रता-दुर्बलता को निरस्त करने में किया जा सकता है, किस प्रकार समस्त विभूतियों और सफलताओं के इस भांडागार का स्वरूप एवं उपयोग समझने के साथ-साथ मनःस्थिति— परिस्थिति का कायाकल्प किया जा सकता है। एक शब्द में यही मानव जीवन की महानतम उपलब्धि है।
न्यूरोलॉजी के विद्वानों के अनुसार मस्तिष्क के बाह्य धूसर पदार्थ में स्नायु कोशिकाओं की संख्या 10 अरब है। सेरिबेलम, जो संतुलन के लिए उत्तरदायी माना जाता है एवं पृष्ठ भाग में अवस्थित होता है तथा मेरुदंड की कोशिकाएँ इसके अतिरिक्त हैं, इन्हीं की सहचर सहेलियाँ ग्लाया ऊतकों के रूप में लगभग एक खरब कोशिकाओं की संख्या में इन्हें परस्पर बाँधे विद्यमान रहता है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन सबका सम्मिश्रित प्रयास ही मस्तिष्कीय चेतना को— न्यूरल कांशसनेस को जन्म देता है।
मस्तिष्कीय संरचना का अभी बहुत बड़ा हिस्सा अविज्ञात ही है। एनाटॉमी की दृष्टि से यह छान-बीन तो कर ली गई है कि कौन-सा अंग क्या है, लेकिन क्रियापद्धति, कार्यकारी मोटिव फोर्स एवं उनकी परिणतियों की कार्य-कारण संगति बिठा पाने में न्यूरोफिजियोलॉजिस्ट स्वयं को असमर्थ पाते हैं। सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि मस्तिष्कीय जानकारियाँ असीम होती हैं। एक मस्तिष्क इतना ज्ञानसंग्रह कर सकता है, जिसकी तुलना में पाँच सौ ‘एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका’ भी ओछे पड़ें। मानवकृत कंप्यूटर को ही यदि यह काम सौंपा जाता, तो उसे धरती के क्षेत्रफल को घेर सकने में समर्थ इलेक्ट्रोमैगनेटिक टेप की आवश्यकता पड़ती। यह सूक्ष्म-सा डायनेमो कैसे इतना सब कर पाता है, इस संबंध में शोध-अनुसंधान जारी है, फिर भी इस विलक्षणता पर हतप्रभ होने के अलावा वैज्ञानिक कोई कारण बता सकने में असमर्थ हैं।
इस विलक्षण संयंत्र की चमत्कारी परिणतियाँ प्रतिभा, स्मरणशक्ति जैसे दृश्य रूपों में समय-समय पर प्रकट होती रहती हैं। प्रतिभा उपार्जन के अवसर कभी-कभी वातावरण, परिस्थिति, पूर्वसंचय, प्रशिक्षण, आंतरिक उत्साह, लगन, पराक्रम आदि से किसी-किसी को इस प्रकार भी मिल जाते हैं कि देखने वाले उसे चमत्कार मानने लगें। फिर भी ऐसे उदाहरणों के पीछे यह संभावना तो विद्यमान रहती है कि जो एक के लिए संभव हो सका, वह दूसरों के लिए भी शक्य हो सकता है। जो संयोगवश मिल सका, उसे प्रयत्नपूर्वक भी किया जा सकता है। विज्ञान की प्रगति का यही क्रम रहा है, कोई विलक्षण घटना घटी और विलक्षणों ने उसका अनुसंधान आरंभ कर दिया। न्यूटन द्वारा पेड़ से सेब नीचे गिरने की घटना से पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का ढूँढ निकालना ऐसा है, जिसका अनुकरण शोधकर्त्ताओं ने आरंभ से ही किया है और अनंतकाल तक करते रहेंगे।
‘न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय’ में ‘अल्बुकर्क’ द्वारपाल था। उसने अपनी योग्यता बढ़ाई और कुछ ही समय में अध्यापक बन गया। इतना ही नहीं, संचालक समिति का वह बहुत समय तक सदस्य भी रहा। अंधा और वृद्ध हो जाने पर उसने पुस्तकालयाध्यक्ष की सेवा स्वेच्छापूर्वक करनी आरंभ कर दी। वह पुस्तकालय के हजारों सदस्यों को उनकी आवाज सुनकर ही पहचान लेता था और पुस्तकें देने, वापस लेने से लेकर उनके विषयों और मर्म स्थानों के संबंध में भी आवश्यक परामर्श देता था।
ज्ञानपिपासा के धनी ‘मेल्शियोर सेविस’ चिकित्सा शास्त्र में मूर्धन्य बनना चाहते थे। उनने चिकित्सा कार्य प्रारंभ करने से पूर्व यह आवश्यक समझा कि अपने विषय में निष्णात बनने के उपरांत किसी की चिकित्सा करने का उत्तरदायित्व सँभाले। इसके लिए उन्होंने प्रायः समूचा जीवन विद्यार्थी की तरह खपा डाला। वे एक-एक करके फ्रांस के 27 विश्वविद्यालयों में भर्ती हुए और वहाँ उन्होंने उस विषय में विशेषता प्राप्त की, जिनकी कमी अनुभव होती थी। अंत तक वे अपनी परिपक्वता में कमी ही अनुभव करते रहे। फलतः उन्होंने आजीविका के लिए फ्रांस के ‘स्ट्राम्सवर्ग विश्वविद्यालय’ में प्रोफेसर का काम अपना लिया, पर रोगियों की चिकित्सा में अपने ज्ञान की कमी बताते हुए उनने हाथ नहीं डाला।
न केवल नाटक लिखने में, वरन उन्हें प्रदर्शित करने की व्यवस्था बनाने में भी पैरिस का ‘मेरी डी. लेम्बर्ट थ्यूलान’ प्रख्यात था। उसने एक वर्ष में 50 तीन-तीन खंडों वाले नाटक लिखे। जिस दिन ये लिखकर पूर्ण किए गए, उसी दिन उन्हें प्रदर्शन के लिए भी व्यवस्था बनानी पड़ी। जनता का अत्यधिक आग्रह देखकर उसे कई नाटकों में स्वयं भी अभिनय करना पड़ा। अपने विषय में पूरा रस लेने और गहराई तक उतरने की विशेषता के कारण ही उसमें ऐसी सफलता और प्रतिष्ठा अर्जित की।
‘सीडर रैपिड्रस आइडोवा’ अमेरिका का एक प्रतिभावान व्यक्ति एक साथ कई उत्तरदायित्व सँभालता था। हर उत्तरदायित्व को इस प्रकार पूर्ण करता, मानों उसने इसी में विशेषता प्राप्त की हो।
वह वकील, वैज्ञानिक, अध्यापक, विधायक, संपादक, न्यायाधीश, मेयर, नर्सरी संचालक, होटल मालिक, और स्टीम वोट निर्माता है। हर काम में उसने चोटी की सफलता और ख्याति पाई। इसके अतिरिक्त वह 6 बैंकों, 17 कंपनियों का, 10 रेल लाइनों तथा 4 कालेजों का अध्यक्ष भी था। इनमें से किसी ने भी उसकी उपेक्षा, व्यस्तता या अयोग्यता की शिकायत नहीं की।
उपन्यास लेखन के क्षेत्र में ‘वैरोनस डी. मियर’ का अपना स्तर और कीर्तिमान है। वह पूरे 40 वर्ष तक उपन्यास-लेखन-कार्य में ही दत्तचित्त से जुटा रहा। इस अवधि में उसने 420 उपन्यास लिखे। सभी मूर्धन्य प्रकाशकों ने उन्हें प्रकाशित किया। करोड़ों की संख्या में वे उसके जीवनकाल में ही बिक गए। यह रिकार्ड अभी तक बरकरार है।
बैंगलोर की एक भारतीय महिला शकुंतला ने संसार में कठिन गणित के उत्तर देने में असाधारण ख्याति पाई है। सिडनी (आस्ट्रेलिया) में उनने एक करोड़ों की लागत वाले कंप्यूटर से बाजी वदकर गणित के उत्तर और आगे रहने में सफलता पाई। कंप्यूटर जितनी देर में उत्तर बताता था, शकुंतला उससे पहले ही प्रस्तुत कर देती थी। उन्हें गणित की जादूगरनी कहा जाता है, जो गलत नहीं है।
संप्रति हैदराबाद के रामकृष्ण मिशन मठ के ‘स्वामी रंगनाथानंद’ के बारे में प्रसिद्ध है कि 8 वर्ष की आयु में एक बालक कर्मचारी के रूप में अपना कार्य आरंभकर उन्होंने मात्र अपनी प्रखर प्रतिभा के सहारे न केवल पूर्वार्त्त दर्शन साहित्य, अपितु भौतिकी एवं पाश्चात्य दर्शन के विभिन्न पक्षों में स्वयं को पारंगत बनाते हुए अल्पायु में ही मठ अध्यक्ष का पद ग्रहण किया। अनपढ़ के रूप में आए स्वामी जी को, अब न केवल अनेकों विश्वविद्यालयों की डिग्री प्राप्त है, अपितु उनकी हर विषय में गहरी पैठ के कारण— संदर्भों की असीम जानकारी के कारण एक विद्वान वक्ता के रूप में विश्व भर में ख्याति प्राप्त है। बड़े विनम्र भाव से इसे वे अपनी साधना-पुरुषार्थ का प्रतिफल ही बताते हैं।
ये सारे उदाहरण बताते हैं कि यदि इन प्रतिभाओं और क्षमताओं को उपलब्ध करने का सुनिश्चित मार्ग मिल सके और उनका श्रेष्ठतम सदुपयोग बन पड़े, तो निश्चित ही मनुष्य आज की तुलना में कहीं अधिक सुयोग्य एवं समर्थ बन सकता है। साधनों की तलाश में ही हमें अपनी सारी शोध- क्षमता नहीं खपा देनी चाहिए, वरन प्रयत्न भी करना चाहिए कि व्यक्तित्व को समुन्नत बनाने वाले अध्यात्म विज्ञान के साथ जुड़ी हुई विभूतियों को किस प्रकार हस्तगत किया जाए और किस प्रकार सच्ची समृद्धि के आनंद का उपयोग किया जाए।
न्यूरोलॉजी के विद्वानों के अनुसार मस्तिष्क के बाह्य धूसर पदार्थ में स्नायु कोशिकाओं की संख्या 10 अरब है। सेरिबेलम, जो संतुलन के लिए उत्तरदायी माना जाता है एवं पृष्ठ भाग में अवस्थित होता है तथा मेरुदंड की कोशिकाएँ इसके अतिरिक्त हैं, इन्हीं की सहचर सहेलियाँ ग्लाया ऊतकों के रूप में लगभग एक खरब कोशिकाओं की संख्या में इन्हें परस्पर बाँधे विद्यमान रहता है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन सबका सम्मिश्रित प्रयास ही मस्तिष्कीय चेतना को— न्यूरल कांशसनेस को जन्म देता है।
मस्तिष्कीय संरचना का अभी बहुत बड़ा हिस्सा अविज्ञात ही है। एनाटॉमी की दृष्टि से यह छान-बीन तो कर ली गई है कि कौन-सा अंग क्या है, लेकिन क्रियापद्धति, कार्यकारी मोटिव फोर्स एवं उनकी परिणतियों की कार्य-कारण संगति बिठा पाने में न्यूरोफिजियोलॉजिस्ट स्वयं को असमर्थ पाते हैं। सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि मस्तिष्कीय जानकारियाँ असीम होती हैं। एक मस्तिष्क इतना ज्ञानसंग्रह कर सकता है, जिसकी तुलना में पाँच सौ ‘एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका’ भी ओछे पड़ें। मानवकृत कंप्यूटर को ही यदि यह काम सौंपा जाता, तो उसे धरती के क्षेत्रफल को घेर सकने में समर्थ इलेक्ट्रोमैगनेटिक टेप की आवश्यकता पड़ती। यह सूक्ष्म-सा डायनेमो कैसे इतना सब कर पाता है, इस संबंध में शोध-अनुसंधान जारी है, फिर भी इस विलक्षणता पर हतप्रभ होने के अलावा वैज्ञानिक कोई कारण बता सकने में असमर्थ हैं।
इस विलक्षण संयंत्र की चमत्कारी परिणतियाँ प्रतिभा, स्मरणशक्ति जैसे दृश्य रूपों में समय-समय पर प्रकट होती रहती हैं। प्रतिभा उपार्जन के अवसर कभी-कभी वातावरण, परिस्थिति, पूर्वसंचय, प्रशिक्षण, आंतरिक उत्साह, लगन, पराक्रम आदि से किसी-किसी को इस प्रकार भी मिल जाते हैं कि देखने वाले उसे चमत्कार मानने लगें। फिर भी ऐसे उदाहरणों के पीछे यह संभावना तो विद्यमान रहती है कि जो एक के लिए संभव हो सका, वह दूसरों के लिए भी शक्य हो सकता है। जो संयोगवश मिल सका, उसे प्रयत्नपूर्वक भी किया जा सकता है। विज्ञान की प्रगति का यही क्रम रहा है, कोई विलक्षण घटना घटी और विलक्षणों ने उसका अनुसंधान आरंभ कर दिया। न्यूटन द्वारा पेड़ से सेब नीचे गिरने की घटना से पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का ढूँढ निकालना ऐसा है, जिसका अनुकरण शोधकर्त्ताओं ने आरंभ से ही किया है और अनंतकाल तक करते रहेंगे।
‘न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय’ में ‘अल्बुकर्क’ द्वारपाल था। उसने अपनी योग्यता बढ़ाई और कुछ ही समय में अध्यापक बन गया। इतना ही नहीं, संचालक समिति का वह बहुत समय तक सदस्य भी रहा। अंधा और वृद्ध हो जाने पर उसने पुस्तकालयाध्यक्ष की सेवा स्वेच्छापूर्वक करनी आरंभ कर दी। वह पुस्तकालय के हजारों सदस्यों को उनकी आवाज सुनकर ही पहचान लेता था और पुस्तकें देने, वापस लेने से लेकर उनके विषयों और मर्म स्थानों के संबंध में भी आवश्यक परामर्श देता था।
ज्ञानपिपासा के धनी ‘मेल्शियोर सेविस’ चिकित्सा शास्त्र में मूर्धन्य बनना चाहते थे। उनने चिकित्सा कार्य प्रारंभ करने से पूर्व यह आवश्यक समझा कि अपने विषय में निष्णात बनने के उपरांत किसी की चिकित्सा करने का उत्तरदायित्व सँभाले। इसके लिए उन्होंने प्रायः समूचा जीवन विद्यार्थी की तरह खपा डाला। वे एक-एक करके फ्रांस के 27 विश्वविद्यालयों में भर्ती हुए और वहाँ उन्होंने उस विषय में विशेषता प्राप्त की, जिनकी कमी अनुभव होती थी। अंत तक वे अपनी परिपक्वता में कमी ही अनुभव करते रहे। फलतः उन्होंने आजीविका के लिए फ्रांस के ‘स्ट्राम्सवर्ग विश्वविद्यालय’ में प्रोफेसर का काम अपना लिया, पर रोगियों की चिकित्सा में अपने ज्ञान की कमी बताते हुए उनने हाथ नहीं डाला।
न केवल नाटक लिखने में, वरन उन्हें प्रदर्शित करने की व्यवस्था बनाने में भी पैरिस का ‘मेरी डी. लेम्बर्ट थ्यूलान’ प्रख्यात था। उसने एक वर्ष में 50 तीन-तीन खंडों वाले नाटक लिखे। जिस दिन ये लिखकर पूर्ण किए गए, उसी दिन उन्हें प्रदर्शन के लिए भी व्यवस्था बनानी पड़ी। जनता का अत्यधिक आग्रह देखकर उसे कई नाटकों में स्वयं भी अभिनय करना पड़ा। अपने विषय में पूरा रस लेने और गहराई तक उतरने की विशेषता के कारण ही उसमें ऐसी सफलता और प्रतिष्ठा अर्जित की।
‘सीडर रैपिड्रस आइडोवा’ अमेरिका का एक प्रतिभावान व्यक्ति एक साथ कई उत्तरदायित्व सँभालता था। हर उत्तरदायित्व को इस प्रकार पूर्ण करता, मानों उसने इसी में विशेषता प्राप्त की हो।
वह वकील, वैज्ञानिक, अध्यापक, विधायक, संपादक, न्यायाधीश, मेयर, नर्सरी संचालक, होटल मालिक, और स्टीम वोट निर्माता है। हर काम में उसने चोटी की सफलता और ख्याति पाई। इसके अतिरिक्त वह 6 बैंकों, 17 कंपनियों का, 10 रेल लाइनों तथा 4 कालेजों का अध्यक्ष भी था। इनमें से किसी ने भी उसकी उपेक्षा, व्यस्तता या अयोग्यता की शिकायत नहीं की।
उपन्यास लेखन के क्षेत्र में ‘वैरोनस डी. मियर’ का अपना स्तर और कीर्तिमान है। वह पूरे 40 वर्ष तक उपन्यास-लेखन-कार्य में ही दत्तचित्त से जुटा रहा। इस अवधि में उसने 420 उपन्यास लिखे। सभी मूर्धन्य प्रकाशकों ने उन्हें प्रकाशित किया। करोड़ों की संख्या में वे उसके जीवनकाल में ही बिक गए। यह रिकार्ड अभी तक बरकरार है।
बैंगलोर की एक भारतीय महिला शकुंतला ने संसार में कठिन गणित के उत्तर देने में असाधारण ख्याति पाई है। सिडनी (आस्ट्रेलिया) में उनने एक करोड़ों की लागत वाले कंप्यूटर से बाजी वदकर गणित के उत्तर और आगे रहने में सफलता पाई। कंप्यूटर जितनी देर में उत्तर बताता था, शकुंतला उससे पहले ही प्रस्तुत कर देती थी। उन्हें गणित की जादूगरनी कहा जाता है, जो गलत नहीं है।
संप्रति हैदराबाद के रामकृष्ण मिशन मठ के ‘स्वामी रंगनाथानंद’ के बारे में प्रसिद्ध है कि 8 वर्ष की आयु में एक बालक कर्मचारी के रूप में अपना कार्य आरंभकर उन्होंने मात्र अपनी प्रखर प्रतिभा के सहारे न केवल पूर्वार्त्त दर्शन साहित्य, अपितु भौतिकी एवं पाश्चात्य दर्शन के विभिन्न पक्षों में स्वयं को पारंगत बनाते हुए अल्पायु में ही मठ अध्यक्ष का पद ग्रहण किया। अनपढ़ के रूप में आए स्वामी जी को, अब न केवल अनेकों विश्वविद्यालयों की डिग्री प्राप्त है, अपितु उनकी हर विषय में गहरी पैठ के कारण— संदर्भों की असीम जानकारी के कारण एक विद्वान वक्ता के रूप में विश्व भर में ख्याति प्राप्त है। बड़े विनम्र भाव से इसे वे अपनी साधना-पुरुषार्थ का प्रतिफल ही बताते हैं।
ये सारे उदाहरण बताते हैं कि यदि इन प्रतिभाओं और क्षमताओं को उपलब्ध करने का सुनिश्चित मार्ग मिल सके और उनका श्रेष्ठतम सदुपयोग बन पड़े, तो निश्चित ही मनुष्य आज की तुलना में कहीं अधिक सुयोग्य एवं समर्थ बन सकता है। साधनों की तलाश में ही हमें अपनी सारी शोध- क्षमता नहीं खपा देनी चाहिए, वरन प्रयत्न भी करना चाहिए कि व्यक्तित्व को समुन्नत बनाने वाले अध्यात्म विज्ञान के साथ जुड़ी हुई विभूतियों को किस प्रकार हस्तगत किया जाए और किस प्रकार सच्ची समृद्धि के आनंद का उपयोग किया जाए।