Magazine - Year 1985 - Version 2
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Language: HINDI
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समष्टि की हलचलों का व्यष्टि चेतना पर प्रभाव
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इस सृष्टि में कोई भी वस्तु सर्वथा स्वतन्त्र नहीं है। प्रत्येक वस्तु और प्राणी अपने आस−पास की दूरवर्ती और कहा जाये कि विश्व ब्रह्माण्ड की सभी ज्ञात अज्ञात वस्तुओं और घटनाओं से प्रभावित होते हैं। प्रत्यक्षतः भले ही कोई स्वतन्त्र, अपनी मनमानी का स्वामी मालूम पड़े पर वस्तुतः उसके क्रिया−कलापों को उनके परिणामों को कितनी ही बातें प्रभावित करती हैं।
यह बात और है कि हम उन प्रभाव कारणों को समझ न पाते हों। हमारी स्थूल उन वस्तुओं की शक्ति और महत्ताएँ स्वीकार करती हैं, जो आँखों से दिखती हैं या प्रत्यक्ष अनुभव में आती हैं। किन्तु गहराई से देखा जाय तो प्रतीत होगा कि दृश्य का सूत्र संचालन अदृश्य से हो रहा है। जितनी महत्वपूर्ण शक्तियाँ संसार में हैं, वे सभी परोक्ष रूप से क्रियाशील हैं।
डा. क्लारेन्स ए. मिल्स ने अपनी खोज पूर्ण पुस्तक “क्लाइमेट मेक्स दि मैन” में ऐसे आँकड़े प्रस्तुत किये हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि मौसम के उतार−चढ़ाव के अनुसार अमुक बीमारियाँ घटतीं और अमुक बढ़ती हैं इसी प्रकार लोगों की प्रसन्नता−अप्रसन्नता, शांति तथा उद्विग्नता में भी अनायास ही अन्तर आता है। जुलाई, अगस्त में जब बड़ी गर्मी पड़ती है तब अक्सर पारिवारिक कलह बढ़ते हैं अप्रैल से अगस्त तक ही अवधि में सामूहिक उपद्रवों की बाढ़ आती है। मौसम की गर्मी लोगों का पारा गरम कर देती है। मानसून आने पर इस प्रकार के फिसाद अपने आप कम हो जाते हैं।
मौसम का मनुष्य की प्रवृत्तियों पर क्या असर पड़ता है इसका विशाल अध्ययन प्रो. ई. डेक्सटर ने किया है। उन्होंने 40 हजार अपराधों की−घटनाओं की जाँच−पड़ताल करके यह पाया कि जैसे−जैसे मौसम गरम होता गया वैसे−वैसे अपराध बढ़ते गये और जिस क्रम से ठण्डक आई उसी अनुपात से अपराधों की संख्या घटती चली गई।
जार्ज स्टीवर्ट ने अपने ग्रन्थ ‘स्टोर्म’ में यह दर्शाया है कि मौसम के उतार−चढ़ाव राज सत्ताओं को उखाड़ सकने वाले उपद्रवों की पृष्ठभूमि बना सकते हैं और ठण्डक में लोग निराश एवं ठण्डी तबियत के साथ दिन गुजार सकते हैं।
बसन्त ऋतु मनुष्यों में ही नहीं अन्य प्राणियों में भी कामोत्तेजना उत्पन्न करती है। गर्भ धारण का आधा औसत उन्हीं दो महीने में पूरा हो जाता है, जबकि शेष दस महीनों में कुल मिलाकर उतनी ही मात्रा पूरी होती है। कोई अविज्ञात शक्ति प्राणियों के मन में अकारण ही प्रणय केलि के लिये उत्साह भर देती है और वे उस दिशा में किसी के द्वारा खींचे, धकेले जाने वाले की तरह उस प्रयोजन में प्रवृत्त हो जाते हैं।
सूर्य विशेषज्ञों का कथन है कि जिन दिनों सूर्य में लम्बे धब्बों की लाइनें बनती हैं, भयंकर विस्फोट होते हैं, उन दिनों लोगों के दिमागों और परिस्थितियों में भी भयंकर उथल−पुथल होती है। अमेरिकी क्रान्ति, फ्रांसीसी राज क्रान्ति, रूपी क्रान्ति उन्हीं दिनों हुई जिन दिनों सूर्य में चिन्ह धब्बों के रूप में दिखाई पड़ रहे थे। इनका असर मौसम, फसल, वनस्पति, समुद्र तथा प्राणियों की शारीरिक और मानसिक स्थिति पर असाधारण रूप से पड़ता है।
सूर्य ग्रहण के समय प्रकृति पर पड़ने वाले प्रभाव तो आसानी से देखे व समझे जा सकते हैं। जब सूर्य ग्रहण होता है चौबीस घण्टे पूर्व से ही कुछ पक्षी चह-चहाना बन्द कर देते हैं, बन्दर वृक्षों को छोड़कर चुपचाप जमीन पर आकर बैठ जाते हैं। सदा चंचल रहने वाला बन्दर उस समय इतना शान्त हो जाता है कि लगता है उस जैसा शान्त और सीधा प्राणी कोई है ही नहीं। बहुत से जंगली जानवर भयभीत से दिखने लगते हैं।
वैज्ञानिक अन्वेषक निरन्तर इस तथ्य की पुष्टि कर रहे हैं कि हमारी धरती का भाग्य ऊपर लाकों तथा ग्रहों से सीधा सम्बद्ध है। सूर्य में सतत् एक विशेष प्रकार के ज्वाला प्रकोप फूटते रहते हैं, तब धरती पर प्रचण्ड, चुम्बकीय तूफान उठते हैं और मानसिक दृष्टि से क्षीण व्यक्ति अस्त-व्यस्त हो उठते हैं, उनकी कमजोरी, खीझ और परेशानी बढ़ जाती है। इससे शराबखोरी, झगड़े−टंटे, सड़क दुर्घटनाएँ, आत्म−हत्याएँ आदि की संख्या कई गुनी बढ़ जाती है क्योंकि मस्तिष्कीय विद्युत की अल्फाएनर्जी पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से सम्बद्ध है और धरती का चुम्बकीय क्षेत्र आकाशीय पिण्डों से जुड़ा है। इस तरह आकाशीय पिण्ड हमारे जीवन को सीधे प्रभावित करते हैं। पदार्थ में ऊर्जा कम्पन के रूप में होती है। तीव्रतम कम्पन की स्थिति में पदार्थ ऊर्जा में परिवर्तित हो जाते हैं। जड़−पदार्थों की सक्रियता का कारण इलेक्ट्रानिक शक्तियाँ हैं। ये सौर−मण्डल की ही शक्तियाँ हैं।
विगत 22 फरवरी 1956 की रात्रि में सूर्य में प्रचण्ड विस्फोट हुआ और सौर−कण धरती की ओर तेजी से दौड़े। उन्हीं सौर−कणों की वायुमण्डल से टकराहट से कई एशियाई देशों और आस्ट्रेलिया में भयानक आँधी तूफान आये।
पहले माना जाता था कि पृथ्वी का मौसम केवल सूर्य के ही द्वारा मुख्यतः प्रभावित होता है। पर अब जाना गया है कि ऐक्स विकिरण के अनेक तारे अनन्त आकाश में हैं। छः वर्षों में ऐसे तीस तारे खोजे जा चुके हैं। पहला तारा 1962 में प्रक्षेपास्त्रों के परीक्षण के दौरान खोजा गया, जिसकी पृथ्वी से दूरी 1 हजार प्रकाश वर्ष है। पाया गया है कि यह वर्तमान सौर एक्स विकिरण की अपेक्षा दस लाख गुनी तीव्र गति से एक्स विकिरण कर रहा है। इसका नाम रखा गया− स्को एक्स वन। अभी विशिष्ट प्रभाव सम्पन्न अनेक तारे हैं, जिनकी विविध प्रकार की अति महत्वपूर्ण किरणें हैं। वैज्ञानिक अभी इनकी बाबत कुछ नहीं जान सके हैं।
वैज्ञानिकों का मत है कि अंतर्ग्रही शक्तियों के परिवर्तनों से मानवी काया में विभिन्न प्रकार के परिवर्तन आना स्वाभाविक है। इसका अनुमान चन्द्रमा की घट−बढ़ से लगाया जा सकता है। गाँधी मेडिकल कालेज (भोपाल) के डा. बी. के. तिवारी ने अपने शोध−पत्र प्रस्तुत करते हुए बताया है कि चन्द्रमा की कलाओं का नारी के मासिक धर्म पर विशेष प्रभाव पड़ता है।
“मासिक का चक्र और उससे सम्बद्ध घातक घटनाएँ” नामक विषय पर ‘फोरेंसिक मेडिसन तथा टाक्सिकॉलाली’ के प्रथम काँग्रेस में चर्चा करते हुए डा. तिवारी ने कहा कि पूर्णिमा के दिन का चाँद नारी में अवसाद और मानसिक तनाव की स्थिति उत्पन्न करता है। लम्बे समय तक चल रहे शोध कार्यों से पता चला है नारी के मासिक चक्र के नियन्त्रण की प्रक्रिया बड़ी जटिल है। रक्त स्राव व हारमोन की घट बढ़ के कारण महिलाएँ डिप्रेशन का शिकार बनती चली जाती हैं। उनके द्वारा हत्या और की जाने वाली आत्म−हत्याओं की घटनाएँ भी इसी समय अधिक होती देखी गयी हैं। 12 से 50 वर्ष की 50 महिलाओं के मृत शरीरों का परीक्षण डा. तिवारी ने किया और निष्कर्ष निकाला कि इनकी मृत्यु मासिक काल में ही हुई। इनमें से 33 दुर्घटना, 15 आत्म−हत्या, 1 मानव घात के रूप में काल का ग्रास बन गयीं। मात्र 1 महिला प्राकृतिक रूप से मृत्यु को प्राप्त हुयी थी। ये मौतें पूर्णिमा के निकट ही हुईं।
चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञों का कहना है कि ये दुर्घटनायें नारी की मानसिक दुर्बलताओं के फलस्वरूप हुई हैं जिसका एक मात्र कारण चन्द्र कलाओं का समय विशेष पर कुप्रभाव ही सिद्ध हुआ है।
अनेकानेक प्रमाणों से यह स्पष्ट होता है कि मानव के चिन्तन को परोक्ष रूप से प्रभावित करने में मौसम की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह भी प्रकारान्तर से ग्रह नक्षत्रों से आने वाली किरणों के प्रवाहों से विनिर्मित होता है। इस तरह कई बार जब अपराधों, आत्म−हत्याओं, रोगों की अनायास बाढ़ सी आने लगती है तो देखा जाना चाहिए कि कहीं अंतर्ग्रही परिस्थितियाँ तो इसका कारण नहीं हैं। यदि ऐसा है तो स्वयं को, अन्यों को इन प्रभावों से बचाकर अपने सुरक्षा कवच को मजबूत बनाकर अप्रिय प्रसंगों से बचा जा सकता है। ज्योतिर्विज्ञान की जानकारी इस प्रकार अनिवार्य भी है, लाभकारी भी।