Magazine - Year 1985 - Version 2
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Language: HINDI
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प्रयाण गीत (kavita)
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ज्ञान की मशाल है, सूर्य लाल−लाल है।
नींद आ रही तुम्हें, कमाल है कमाल है॥
रात का पता नहीं, हँसा प्रभात ज्ञान का,
प्राण−प्राण लीन है, चढ़ा खुमार ध्यान का,
सहास अश्रु−पात, से भरा कमल−मृणाल है।
ज्ञान की मशाल है, सूर्य लाल−लाल है।
नींद आ रही तुम्हें, कमाल है कमाल है॥
हँसी−हँसी है पाँखुरी, सहस्र दल खिले−खिले,
कि प्राण की बयार से हृदय कमल हिल−डुले,
बौर से लदी−लदी कि कल्प वृक्ष डाल है।
ज्ञान की मशाल है सूर्य लाल−लाल है।
नींद आ रही तुम्हें, कमाल है कमाल है॥
प्राण−पुष्प, तुम खिला−खिला के अर्घ्यदान दो,
आज तक दिया नहीं वो दान दो, वो ध्यान दो,
जिन्दगी के देवता का एक ही सवाल है।
ज्ञान की मशाल है सूर्य लाल−लाल है।
नींद आ रही तुम्हें, कमाल है कमाल है॥
अबोध, बोधमय हुआ, जगी प्रज्ञा, ऋतम्भरा,
ऋद्धि−सिद्धि नाचती, हरी भरी वसुंधरा,
पास स्वर्ग का जुलूस, अब न अन्तराल है।
ज्ञान की मशाल है, सूर्य लाल−लाल है।
नींद आ रही तुम्हें, कमाल है कमाल है॥
-लाखन सिंह भदौरिया
*समाप्त*