Magazine - Year 1986 - Version 2
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Language: HINDI
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महाराज प्रसिचेत (kahani)
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बिना किसी कारण के, तथ्य जाने बगैर यदि जीवन साथी को त्याग दिया जाय, तो ऐसे व्यक्ति अपयश के भागी होते हैं।
किसी बात पर रुष्ट होकर महाराज प्रसिचेत ने अपनी पत्नी का परित्याग कर दिया। उनके इस अहंकार पूर्ण कृत्य से दुःखी होकर राजपुरोहित ने उनका साथ छोड़ दिया। धीरे-धीरे बात प्रजा के कानों में पहुँची। लोग स्पष्ट कहने लगे जो व्यक्ति अपने स्वजन सम्बन्धी की रक्षा नहीं कर सकता वह प्रजा की क्या रक्षा करेगा। लोग राजाज्ञाओं का उल्लंघन करने लगे। इस स्थिति में पड़ोसी राजा ने प्रसिचेत पर आक्रमण कर दिया।
प्रसिचेत सेना लेकर मुकाबले के लिए चल पड़े। मार्ग में महर्षि उद्दालक का आश्रम पड़ता था। वे महर्षि से मिलने को रुके पहले तो महर्षि ने शासकोचित स्वागत की तैयारी की पर तभी उन्हें पता चला कि महाराज ने अपनी पत्नी का परित्याग कर दिया है तो उन्होंने स्वागत की सारी तैयारियाँ स्थगित कर दीं ओर उनसे एक साधारण नागरिक की तरह मिले।
राजा ने इसका कारण पूछा तो महर्षि ने कहा राजन् पत्नी का परित्याग करना अधर्म है और धर्म से पतित कोई भी क्यों न हो उसकी मान मर्यादा वैसे ही नष्ट हो जाती है, जैसे आपकी। राजा ने भूल समझी और पत्नी को फिर बुला लिया उससे उनकी शासन व्यवस्था भी सम्भल गयी।
साथी के स्वभाव में कोई कमजोरी हो तो उससे मुख मोड़ना लोक निन्दा, पतन और अपमान का कारण बनता है।