Magazine - Year 1987 - Version 2
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Language: HINDI
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गुरु-दर्शन
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(मंगल विजय)
दर्शन बहुत किए गुरु-मुख के, गुरु-चरणों की ओर निहारो।सुनते-सुनते कभी न हारे, तो गति से भी तो मत हारो॥1॥ गुरु-मुख थका सुनाकर अब तक, हमने सुनने का सुख पाया।इससे सुन, उससे की बाहर दो कानों का लाभ उठाया॥ दर्शन श्रवण किए गुरु-दर्शन, कितना समझे तनिक विचारो।दर्शन बहुत किए गुरु-मुख के, गुरु-चरणों की ओर निहारो॥2॥ बीती चलो बिसारें अब तो, गुरु चरणों को ध्यान करें हम।जो मंजिल गुरु गति ने नापी, अपने डग उस डगर धरे हम॥ अपने को अपने पथ-दर्शक के, पथ पर अविलम्ब उतारो।दर्शन बहुत किए गुरु-मुख के, गुरु-चरणों की ओर निहारो॥3॥ महापुरुष जिस पथ पर चलते, वह ही पथ उत्तम होता है।जितने तर्क-कुतर्क उभरते, उतना ही पथ-भ्रम होता है। चरण-पादुकाएँ कहती हैं, चलने का उत्साह उभारो।दर्शन बहुत कि गुरु-मुख के, गुरु-चरणों की ओर निहारो॥4॥ सतपथ पर चलने वाले ही, चरण सदा पूजे जाते हैं।सच्चे अनुयाई चरणों से, दिव्य प्रेरणाएँ पाते हैं। गुरु चरणों की कृपा चाहिए, तो उनकी गति को न नकारो।दर्शन बहुत किए गुरु-मुख के, गुरु-चरणों की ओर निहारो॥5॥ हिमगिरी सा ऊँचा, सागर सा, गहरा, गुरु पाया हो जिसने।फिर भी ऊँचा चिंतन श्रेष्ठ, चरित्र न अपनाया हो जिसने। मत ऐसा दुर्भाग्य बुलाओ, मत ऐसा सौभाग्य बिसारो।दर्शन बहुत किए गुरु-मुख के, गुरु-चरणों की ओर निहारो॥6॥ *समाप्त*