Magazine - Year 1987 - Version 2
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Language: HINDI
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द्वैत का अद्वैत में विलय (Kavita)
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इतना चिन्तन किया तुम्हारा, तुमसे इतना प्यार हो गया।
तजकर अपना रूप, तुम्हारा मैं पावन आकार हो गया॥
एक एक मिल दो होते हैं,
यह तो है सिद्धान्त पुराना।
एक एक मिल एक हो गया,
गणित भला यह किसने जाना?
हम तुम मिलकर एक हो गये, यह अद्भुत व्यापार हो गया॥
तजकर अपना रूप, तुम्हारा मैं पावन आकार हो गया॥
तब तक दूर रहे तुम जब तक
द्वैत भाव ने मन को घेरा।
ज्योति तुम्हारी पड़ी दिखाई,
जब अद्वैत ने किया बसेरा।
अब तक था जो निराकार, वह नयनों में साकार हो गया॥
तजकर अपना रूप, तुम्हारा मैं पावन आकार हो गया॥
भव बन्धन ने मुझ को बाँधा,
माया ने प्रतिफल भर पाया।
इस संसृति को जानूँ कैसे,
जबकि स्वयं को जान न पाया।
अपने को पहचान सका तब, जब मन पर अधिकार हो गया॥
तजकर अपना रूप, तुम्हारा मैं पावन आकार हो गया॥
*समाप्त*