Magazine - Year 1988 - Version 2
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हम अकेले नहीं है!
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मनुष्य, सृष्टि के जिस छोटे से घटक पृथ्वी पर निवास करता है, प्राणियों का अस्तित्व इसी तक सीमित नहीं है। अनन्त अन्तरिक्ष में अनेकानेक ग्रहों, उपग्रहों, निहारिकाओं तथा मंदाकिनियों की परिस्थितियाँ, जलवायु एवं वातावरण ऐसा है, जहाँ जीवन की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। वैज्ञानिक अनुसंधानों से जो तथ्य सामने आये हैं, उनसे स्पष्ट होता है कि हमसे भी कही अधिक बुद्धिमान स्तर का जीवन, समाज और सभ्यता अन्य ग्रहों पर विद्यमान है।
मनुष्य सृष्टि के जिस छोटे से घटक पृथ्वी पर निवास करता है। प्राणियों का अस्तित्व इसी तक सीमित नहीं है। अनन्त अन्तरिक्ष में अनेकानेक ग्रहों, उपग्रहों निहारिकाओं तथा मंदाकिनियों की परिस्थितियों, जलवायु एवं वातावरण ऐसा है जहाँ जीवन की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। वैज्ञानिक अनुसंधानों से जो तथ्य सामने आये है। उनसे स्पष्ट होता है कि हमसे भी कहीं अधिक बुद्धिमान स्तर का जीवन, समाज और सभ्यता अन्य ग्रहों पर विद्यमान है।
लोकान्तर स्थित बुद्धिमान प्राणियों के पता लगाने एवं संपर्क साधने में निरत अमेरिका के मेरीलैण्ड विश्वविद्यालय के रासायनिक विकास संस्थान के निर्देशक डॉ. सिरल पोन्नेमपेरुपा के अनुसार हमारे नभ मण्डल में दस लाख सभ्यताएं अस्तित्व में है। उनका अध्ययन करने के लिए विभिन्न देशों में विशालकाय रेडियो टेलिस्कोप, कम्प्यूटर आदि लगाये गये हैं। उनसे संदेश प्राप्त करने का प्रयास निरन्तर चल रहा है। रेडियो एस्ट्रोनोमी के विकास ने हमारे लिए सुदूर ग्रह नक्षत्रों के प्राणियों से संबंध स्थापित करने एवं उनसे विचारों का आदान-प्रदान करने की एक नई खिड़की खोल दी है।
लोकान्तर स्थिति सभ्यता का अनुसंधान कार्य पश्चिम एर्जीनिया स्थित ग्रीनबैंक की ‘नेशनल रेडियो एस्ट्रोनामी आब्जरवेट्री’ में सन् 1949-60 में मूर्धन्य वैज्ञानिक डॉ. फै्रक ड्रैक् की देख-रेख में आरम्भ हुआ था। इस योजना का नाम “प्रोजेक्ट ओज्मा” रखा गया था। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिक फिलिप मौरसन के निर्देशन में नासा प्रोजेक्ट कमेटी, मौशाचुसेट्स इन्स्टीच्यूट आफ टेक्नोलॉजी की स्थापना की गई। इन वैज्ञानिकों ने शोध परीक्षणों के पश्चात् जजो प्रतिवेदन प्रस्तुत किया उसमें कहा गया है कि इस दिशा में अभी और अत्यधिक शक्तिशाली रेडियो, कम्प्यूटर, टेलीविजन आदि की आवश्यकता पड़ेगा, जिसके आधार पर दूरस्थ प्राणियों से आदान-प्रदान की संभावना साकार हो सके।
न्यूयार्क के इटाहका शहर स्थित “नक्षत्र मंडल अध्ययन प्रयोगशाला” के निर्देशक प्रख्यात वैज्ञानिक कार्ल सैगन ने खगोल विद्या के अति महत्वपूर्ण पक्षों पर प्रकाश डालते हुए प्रतिपादित किया है कि हमारी पृथ्वी सभ्यता से अन्तरिक्ष स्थित ग्रह नक्षत्रों की सभ्यता कहीं अधिक उन्नतिशील है। उन्होंने अपनी अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुस्तकों- ‘‘दि ड्रैगन्स आफ इडन, “ब्रोकास ब्रेन” तथा “कास्माँस” में भी इसी प्रकार का वर्णन किया है। उनका कहना है कि आकाश गंगा में दस लाख तकनीकी सभ्यताएं निवास करा रही है। यदि उनमें किसी प्रकार संबंध जोड़ा जा सकेगा सके और आदान प्रदान का क्रम चल पड़े तो मनुष्य उन्नति पथ पर कहाँ से कहाँ पहुँच सकता है।
विश्व की सबसे बड़ी वेधशाला पोर्टारिकों में है। उसमें अन्तर्ग्रही ध्वनि प्रवाहों के जो भी संकेत प्राप्त किये गये हैं उनमें वीप-वीप की आवाज के साथ 1, 2, 3, 4, 5, 11, 13, 17, 19, 23, 29, 31 संख्याओं के अंक भी नोट किये गये हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार संभवतः ये अन्तरिक्षीय लोकों के बुद्धिमान प्राणियों के संकेत सूत्र हैं, जिनके माध्यम से वे अपनी उपस्थिति की जानकारी देते हैं, साथ ही पृथ्वी वासियों से संपर्क साधने का भी प्रयत्न करते हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए अब वैज्ञानिकों ने उनसे विचार विनिमय के लिए अंक गणितीय संख्याओं के संक्षिप्त सूत्र बना कर भेजे जाने पर अनुसंधान कार्य आरम्भ कर दिया है। कम्प्यूटर के माध्यम से प्राप्त किये गये आँकड़ों से भी यह स्पष्ट हो चुका है कि वहाँ पाँच रासायनिक तत्व विशेष मात्रा में विद्यमान है जैसे हाइड्रोजन, मीथेन, नाइट्रोजन, आक्सीजन तथा फास्फोरस। इसके अतिरिक्त कार्बन तथा अमोनिया की मात्रा भी अधिक है। आज से अरबों वर्ष पहले यही सब तत्व पृथ्वी की आरंभिक अवस्था में बिखरे पड़े थे। कालान्तर में अणु परमाणुओं के संगठन, स्वरूप रासायनिक तत्वों के उथल-पुथल होते रहने से पृथ्वी वर्तमान स्वरूप में आ सकी है। अतः इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस प्रकार के तत्व वाले ग्रहों पर जीवन, समाज सभ्यता अवश्य ही होंगे।
अन्तरिक्षीय अन्तर्ग्रही सभ्यताओं और पृथ्वी की सभ्यता के मध्य अत्यधिक दूरी का अंतर है। परन्तु यदि प्रकाश से अधिक तीव्र गति से चलने वाले फोटोन प्रवाह पर नियंत्रण किया जा सके तो उसके माध्यम से यह दूरी कुछ ही वर्षों में पूरी की जा सकती है। इस संदर्भ में अंतरिक्ष भौतिकी की सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक श्री वैलेस सालीवाल ने एक पुस्तक लिखी है - “हम अकेले नहीं है।” इसमें ब्रह्माण्डव्यापी संचार व्यवस्था पर बल देते हुए उन्होंने नई वेवलेंथ प्रस्तुत की है जो प्रकाश गति से कई गुनी तीव्र बताई गई है। यह वेवलेंथ पद्धति 1420 मेगासाइकिल्स वेवलेंथ के रेडियो कंपनों पर आधारित है। अणु विकिरण की यह स्वाभाविक गति है। अंतरिक्ष संचार व्यवस्था में इस गति को यदि अपनाया जा सके तो अन्य लोकों के प्राणियों से आसानी से संपर्क साधा जा सकता है। हमारे लिए जो दूरी पार करना संभव नहीं, अंतरिक्षवासी संभवतः इस गति को प्राप्त कर चुके हैं तभी वे ऐसे यान बनाने में सफल हुए हैं।
अंतरिक्ष में उन्नत सभ्यता के अवस्थित होने का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए वैज्ञानिकों ने कहा है कि न केवल मनुष्य उनसे संपर्क साधने का प्रयत्न कर रहा है वरन् लोकांतरवासी भी पृथ्वी के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है। इसका अनुमान धरती पर उड़न तश्तरियों के आवागमन से सहज ही लगाया जा सकता है। सन् 1947 से अब तक हजारों उड़न तश्तरियाँ सामान्यजनों, वैज्ञानिकों, अंतरिक्ष विज्ञानियों द्वारा आकाश में मँडराते एवं धरती पर उतरते देखी गयी है।” इनके अनेकों प्रमाण भी मौजूद है। राडारों एवं फोटो कैमरों द्वारा भी इनकी पुष्टि की जा चुकी है।
आस्टे्रलियन अंतरिक्ष विशेषज्ञ प्रोफेसर रोनाल्ड ब्रेसवेल ने अपने अनुसंधान निष्कर्ष में बताया है कि उड़न तश्तरियाँ वस्तुतः दूसरे ग्रहों के सर्वेयान है जो पृथ्वी की उन्नत सभ्यता और विज्ञान का पता लगाने के लिए यहाँ आते हैं। ये संकेत सूत्रों के माध्यम से यहाँ की जानकारी अपने देश को भेजते हैं। फ्रेंच परमाणु वैज्ञानिक जैक्स वेल्ली का कहना है कि ब्रह्माण्ड की सर्वोत्कृष्ट शक्तियाँ इन तश्तरियों के द्वारा मानव से संबंध स्थापित करने आती है। इनके संचालक कद में छोटे होते है किन्तु इनकी बुद्धि प्रखर है। इनकी भाषा हमारी समझ में नहीं आती फिर भी उनकी सभ्यता हमारे लिए अनुकरणीय है। इवान सैंडर्सन एवं अमेरिका के एलन हाइनेक जैसे मूर्धन्य वैज्ञानिकों ने इन्हें उच्च मनःशक्ति सम्पन्न एवं अतीन्द्रिय सामर्थ्ययुक्त माना है। इंग्लैण्ड के गार्डन क्रीटर ने लोकान्तर वासियों से घनिष्ठ संपर्क स्थापित करने को बहुत महत्वपूर्ण बताया है।
प्रख्यात मनोवैज्ञानिक कार्लजुंग का कहना है कि उड़न-तश्तरियाँ अन्य ग्रहों से आने वाले अद्भुत शक्ति सम्पन्न लोगों के यान हैं। ये अनेक प्रकार की होती है और विश्व के सब देशों में देखी गई है सन् 1957 के एक लेख में उन्होंने कहा कि सारा संसार इनकी यथार्थता को अब मानने लगा है। ये चेतना के अज्ञात रहस्यों के द्योतक है। इन्हें एकता, मित्रता एवं सहानुभूति का द्योतक माना जा सकता है। सुविख्यात वैज्ञानिक विशेषज्ञ डेविड टान्सले के अनुसार ये तश्तरियाँ मनुष्य को दूसरे लोकों की समर्थता एवं रहस्यों का बोध कराती है। मानवी चेतना में नये भाव एवं विचार पैदा करके मानसिक एवं भौतिक उन्नति करने को प्रेरित करती है।
मनोवैज्ञानिकों का मत है कि मानव जाति दूसरे ग्रहों के अनुदान से जीवित है। अपनी प्रजा के सुख दुःख एवं उन्नति का पता लगाने के लिए ये ग्रहवासी उड़नतश्तरियों से पृथ्वी का भ्रमण करते हैं। जर्मन विशेषज्ञ एरिक वान डानिकेन ने अपनी कृति - रिटर्न टू दि स्टार्स” एवं “चैरियटस आफ द गाड्स” में ऐसे अनेकों प्रमाण प्रस्तुत किये हैं जिनसे प्रतीत होता है कि अन्य ग्रहों में उन्नत सभ्यता वाले बुद्धिमान प्राणी विद्यमान हैं जो समय-समय पर धरती वासियों की सहायता करने के लिए आते हैं। मनीषियों की मान्यता है कि निकट भविष्य में अन्तरिक्ष वासियों के साथ हमारे संबंध जुड़ेंगे और प्रतिभा के आदान प्रदान का नया क्रम आरंभ होगा।