Magazine - Year 1988 - Version 2
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Language: HINDI
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आत्मिक प्रगति का सर्वोपरि आधार श्रद्धा
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जिस प्रकार भौतिक क्षेत्र में अग्नि की शक्ति को प्रमुख माना गया हैं, उसी प्रकार अध्यात्म क्षेत्र की ऊर्जा श्रद्धा द्वारा उपलब्ध होती हैं। किसी तथ्य को समझने में तर्क और प्रमाण की आवश्यकता होती हैं। किसी निश्चय -निर्णय पर पहुँचने के लिए प्रमाण और उदाहरणों की जरूरत पड़ती हैं। समाधान हो जाने पर उस निश्चय को कार्यान्वित करने के लिए संकल्प शक्ति का प्रयोग करना पड़ता हैं, ताकि मन की चंचलता उसे उतावले बालक की तरह छोड़नी न पड़े । मान का स्वभाव बन्दर जैसा है। उसमें जल्दी-जल्दी काम बदलने की आतुरता पाई जाती हैं, इसलिए उसकी रोकथाम करके नियत काम में लगाये रहने के लिए अनुशासन की लगाम लगाये रहनी पड़ती हैं, अन्यथा समय साध्य कामों में चंचलता प्रदर्शित करने से वे बीच में ही छूट जाते हैं। उतावली निराशा में बदल जाती हैं। चिरस्थायी वट वृक्ष विकसित होने में देर लगती हैं। बाजीगर हथेली पर सरसों जमा सकते है, पर माली विशाल वृक्षों का उद्यान उतनी जल्दी लगा देने का वायदा नहीं कर सकता। ताश का महल तुरन्त भी खड़ा किया जा सकता हैं, पर किसी सुनियोजित नगर को बसा देना समय साध्य हैं। आत्मिक प्रगति के बार में भी यही बात हैं। इसलिए उस दिशा में कदम बढ़ाने वाले को संकल्प करना होता हैं कि इतना तो पूरा करके ही रहा जायेगा, चाहे असुविधा का सामना ही क्यों न करना पड़े ?
प्रसिद्ध दार्शनिक चिन्तक मूर का मत हैं कि अच्छे काम को करने में धन की आवश्यकता कम पड़ती हैं, परÞक्क्कहृह्य द्दभ्ठ्ठ; क्द्मस्द्भ द्यड्डस्रंघद्ब स्रद्ध क्द्ध/द्मस्रव ्न ;द्द ,स्र द्यह्नद्धह्वद्ध'श्चह् ह्स्न; ,शड्ड द्बद्भद्धद्धम्द्मह् द्बभ्;द्मह्यफ् द्दस्ड्ड द्धस्र द्धह्लद्य स्रर्द्म; स्रह्य द्बद्धहृह्य द्गह्वद्मह्य;द्मह्यफ् द्बर्ख्शंस्र ड्ढक्कहृद्म 'द्मद्धु स्रह्य द्यद्मस्नद्म ब्फ्द्म ह्लद्मह्द्म द्दस्ड्ड] शद्द ॥द्मब्द्ध ॥द्मद्मड्डद्धह् द्बख्द्भद्म द्दद्मह्यस्रद्भ द्भद्दह्द्म द्दस्ड्ड्न द्यद्मड्डद्यद्मद्धद्भस्र क्स्नद्मशद्म क्द्म/;द्मद्धक्रद्गस्र द्दद्भ म्द्मह्य= द्गह्यड्ड ;द्द ष्द्मह् ब्द्मफ्ख् द्दद्मह्यह्द्ध द्दस्ड्ड्न
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द्भद्मद्गस्रक्व".द्म द्धह्लद्य स्रद्मब्द्ध स्रद्ध द्बख्ह्लद्म स्रद्भह्ह्य स्नद्मह्य] द्वह्वस्रह्य श्चद्गक्रस्रद्मद्भद्मह्यड्ड स्रद्ध स्रद्मह्यर्ड्ढं फ्.द्मह्वद्म ह्वद्दद्धड्ड्न द्धशशह्यस्रद्मह्वठ्ठ स्रद्मह्य द्वद्यद्ध ह्वह्य ठ्ठ'र्द्मंह्व ठ्ठह्यस्रद्भ द्धह्वद्दद्मब् द्धस्र;द्म स्नद्मद्म्न ब्द्मह्यफ्द्मह्यड्ड ह्वह्य स्रद्मब्द्ध स्रद्मह्य द्बद्भद्गद्दड्डद्य स्रह्य द्यद्मस्नद्म ॥द्मद्मह्यफ् ब्फ्द्मह्ह्य ठ्ठह्य[द्मद्म स्नद्मद्म्न ;द्द द्यष् छ्व)द्म स्रह्य श्चद्गक्रस्रद्मद्भ द्दस्ड्ड्न द्वद्यस्रह्य क्॥द्मद्मश द्गह्यड्ड ,स्रब्ह्र;] द्गद्धद्भद्म क्द्मस्द्भ द्बद्भद्गद्दड्डद्य स्रह्य द्दद्मस्नद्म द्गह्यड्ड द्धश्वद्मंक−कद्ध&द्बक्रस्नद्मद्भ स्रह्य क्द्मफ् ,स्र ह्र;द्धु स्रह्य द्बद्मद्य ,ह्यद्यद्म क्द्गक्वह् ह्लब् स्नद्मद्म द्वद्यस्रद्ध ,स्र ष्ख्ड्डठ्ठ द्यद्म/द्मद्मद्भ.द्म द्बद्मह्वद्ध द्गह्यड्ड द्धद्गब्द्मस्रद्भ द्धद्बब्द्मह्द्म ह्द्मह्य स्रद्धक्चह्व&द्यह्य&स्रद्धक्चह्व द्भद्मह्यफ् क्क्कहृह्य द्दद्मह्य ह्लद्मह्ह्य्न द्वद्यस्रद्ध [;द्मद्धह् ठ्ठख्द्भ&ठ्ठख्द्भ ह्स्र क्तस्ब्द्ध क्द्मस्द्भ द्दह्द्मद्भद्मह्यड्ड ह्र;द्धु द्धह्वक्र; ब्द्म॥द्म द्वक्चद्मह्वह्य स्रह्यद्धब्, क्द्मह्वह्य ब्फ्ह्य्न
द्वद्य ह्र;द्धु स्रह्य फ्ह्न: ह्वह्य क्द्बह्वह्य द्ध'द्म"; स्रद्ध द्बभ्'द्मड्डद्यद्म द्यह्नह्वद्ध ह्द्मह्य ष्द्दह्नह् श्चद्धस्रह् द्दह्न, क्द्मस्द्भ क्द्बह्वद्ध स्रर्ड्ढं ष्द्धद्गद्मद्धद्भ;द्मँ ठ्ठख्द्भ स्रद्भद्मह्वह्य स्रह्य द्धब्, द्वद्य ह्र;द्धु स्रह्य द्बद्मद्य द्बद्दह्नँश्चह्यड्ड द्वद्यह्वह्य क्द्मठ्ठ द्धस्र;द्म क्द्मस्द्भ शद्दद्ध ठ्ठशद्म द्धद्बब्द्म स्रद्भ द्वद्दह्यड्ड ॥द्मद्ध क्क्कहृद्म स्रद्भ द्धठ्ठ;द्म्न फ्ह्न: स्रह्य द्गह्व द्गह्यड्ड ;द्द द्धशश्चद्मद्भ क्द्म;द्म द्धस्र ;द्धठ्ठ ड्ढद्य ठ्ठशद्म स्रद्म ह्वह्नरु[द्मद्म द्गद्मब्ख्द्ग स्रद्भ द्धब्;द्म ह्लद्म; ह्द्मह्य द्दद्गह्यड्ड ॥द्मद्ध ,ह्यद्यद्ध द्दद्ध [;द्मद्धह् द्धद्गब्ह्य्न द्वह्वह्वह्य द्ध'द्म"; द्यह्य ठ्ठशद्म स्रद्म द्भद्दरु; द्बख्हृद्म] ह्द्मह्य द्ध'द्म"; ह्वह्य द्यक्कश्चह्य द्दभ्ठ्ठ; द्यह्य 'द्मद्बस्नद्म द्बर्ख्शंस्र ष्ह्द्म द्धठ्ठ;द्म द्धस्र ;द्द क्द्मद्बस्रह्य श्चद्भ.द्मद्मह्यड्ड स्रद्म /द्मद्मह्य;द्म द्बद्मह्वद्ध द्दस्ड्ड] द्धह्लद्यह्य द्गस्ड्ड द्दद्भ द्यद्मब् क्द्मद्बस्रद्ध द्यह्यशद्म द्गह्यड्ड द्वद्बद्धरुस्नद्मह् द्दद्मह्यस्रद्भ ,स्र ष्रुद्ध ष्द्मह्यह्ब् ॥द्मद्भ ब्द्मह्द्म द्दख् क्द्मस्द्भ द्वद्यद्ध स्रद्ध ,स्र&,स्र ष्ख्ठ्ठ स्रद्भ क्द्यड्ड[;द्मह्यड्ड स्रद्म ॥द्मब्द्म स्रद्भह्द्म द्दख््न
फ्ह्न: स्रद्मह्य क्द्बह्वद्ध स्रद्भद्मद्गद्मह् द्बद्भ ष्रु+द्म र्फ्शं द्दह्नक्द्म्न द्वह्वह्वह्य द्यद्मद्भह्य फ्द्मँश द्गह्यड्ड द्भद्मह्यफ् द्गह्नद्धु स्रद्ध ठ्ठशद्म ह्लद्मह्व ब्ह्यह्वह्य स्रद्ध ?द्मद्मह्य"द्म.द्मद्म स्रद्ध्न द्गद्भद्धह्ल क्द्म;ह्य्न द्वह्वह्वह्य ,स्र ष्रु+द्ध द्बद्भद्मह् द्गह्यड्ड क्द्बह्वह्य श्चद्भ.द्म /द्मद्मह्य;ह्य क्द्मस्द्भ ,स्र&,स्र स्रंकद्मह्यद्भद्म द्यष् स्रद्मह्य द्धद्बब्द्म;द्म] द्बद्भ स्रद्मह्यर्ड्ढं क्क्कहृद्म ह्व द्दह्नक्द्म] ह्द्मह्य द्य॥द्मद्ध द्वह्वद्यह्य ब्रु+ह्वह्य क्द्म;ह्य्न फ्ह्न: द्धक्तद्भ द्ध'द्म"; स्रह्य द्बद्मद्य द्बद्दह्नँश्चह्य क्द्मस्द्भ द्यक्तब्ह्द्म स्रद्म स्रद्मद्भ.द्म द्बख्हृद्म ह्द्मह्य द्वद्यह्वह्य द्यद्ध/द्मद्म&द्यद्मठ्ठद्म द्वनद्मद्भ द्धठ्ठ;द्म द्धस्र द्गह्यद्भह्य श्चद्भ.द्मद्मह्यठ्ठस्र द्गह्यड्ड छ्व)द्म स्रद्म फ्द्दद्भद्म द्बह्नंक क्द्मस्द्भ क्द्मद्बस्रह्य द्बस्द्भ /द्मद्मह्यशह्व द्गह्यड्ड क्द्दड्डस्रद्मद्भ स्रद्ध क्द्ध॥द्मह्र;द्धु द्दस््न ड्ढद्यद्धब्, ठ्ठद्मह्यह्वद्मह्यड्ड ,स्र शरुह्ह्न द्दद्मह्यह्ह्य द्दह्न, ॥द्मद्ध द्वह्वस्रह्य फ्ह्न.द्मद्मह्यड्ड द्गह्यड्ड ह्लद्गद्धह्व&क्द्मद्यद्गद्मह्व ह्लस्द्यद्म क्ह्द्भ द्दद्मह्य फ्;द्म्न द्यद्मद्गर्स्न; ह्लब् द्गह्यड्ड ह्वद्दद्धड्ड] छ्व)द्म द्गह्यड्ड द्यद्गद्मद्धद्दह् द्दस््न
,स्र क्द्मस्द्भ ॥द्मद्ध ,ह्यद्यद्ध द्दद्ध स्रस्नद्मद्म द्दस्ड्ड्न ,स्र द्यड्डह् फ्ड्डफ्द्म ह्क द्बद्भ द्भद्दह्ह्य स्नद्मह्य्न ह्वद्मश ह्व द्दद्मह्यह्वह्य द्बद्भ द्बद्मद्भ ह्लद्मह्वह्य शद्मब्द्मह्यड्ड स्रह्य स्रद्मह्व द्गह्यड्ड द्भद्मद्ग द्गड्ड= ष्ह्द्म ठ्ठह्यह्ह्य क्द्मस्द्भ स्रद्दह्ह्य ड्ढद्य ह्लद्बह्ह्य द्दह्न, द्बद्मद्भ द्धह्वस्रब् ह्लद्मह्वद्म्न ह्लद्मह्वह्य शद्मब्ह्य द्यद्दह्ल द्दद्ध द्बद्मद्भ द्वह्द्भ ह्लद्मह्ह्य्न
स्रह्नहृ ठ्ठख्द्भ ह्स्र ,स्र क्तस्रद्धद्भ द्भद्दह्ह्य स्नद्मह्य शह्य ॥द्मद्ध ,ह्यद्यद्म द्दद्ध श्चद्गक्रस्रद्मद्भ द्धठ्ठ[द्मद्मह्ह्य्न द्वह्द्भह्वह्य शद्मब्द्मह्यड्ड स्रद्मह्य [द्मह्नठ्ठ स्रद्म ह्वद्मद्ग द्धद्य[द्मद्म ठ्ठह्यह्ह्य्न शह्य ॥द्मद्ध द्यष् द्बद्मद्भ द्धह्वस्रब् ह्लद्मह्ह्य्न
,स्र श्चह्ह्नद्भ ह्वह्य ठ्ठद्मह्यह्वद्मह्यड्ड स्रद्म ॥द्मह्यड्डठ्ठ ह्लद्मह्वद्म क्द्मस्द्भ ठ्ठद्मह्यह्वद्मह्यड्ड स्रद्म द्यद्धश्वद्गछ्व.द्म स्रद्भ क्द्मस्द्भ ॥द्मद्ध क्द्ध/द्मस्र क्द्मद्यद्मह्वद्ध द्यह्य द्बद्मब् द्धह्वस्रब्ह्वह्य स्रद्म द्धद्दद्यद्मष् ब्फ्द्म;द्म्न शद्द द्भद्मद्ग&[द्मह्नठ्ठद्म स्रद्दह्द्म द्दह्नक्द्म द्बद्मद्भ ह्लद्मह्वह्य स्रद्म द्बभ्;क्रह्व स्रद्भह्वह्य ब्फ्द्म क्द्मस्द्भ द्ग>/द्मद्मद्भ द्गह्यड्ड रुख्ष् फ्;द्म्न 'द्मद्धु 'द्मष्टठ्ठद्मह्यड्ड द्गह्यड्ड ह्वद्दद्ध] द्वह्वस्रह्य द्यद्मस्नद्म ब्फ्द्ध ॥द्मद्मशह्वद्म 'द्मद्धु द्गह्यड्ड छ्व)द्म स्रह्य द्यश्वद्बह्नंक द्गह्यड्ड द्दद्मह्यह्द्ध द्दस्ड्ड्न ष्द्मंघद्गद्धद्धस्र स्रद्मह्य ह्वद्मद्भठ्ठ ह्वह्य द्भद्मद्ग ह्वद्मह्ल ह्लद्ब स्रद्भह्वह्य स्रह्य द्धब्, स्रद्दद्म स्नद्मद्म्न द्बद्भ शह्य द्वब्कद्म ह्वद्मद्ग वद्गद्भद्म&द्गद्भद्मÞ ह्लद्बह्वह्य ब्फ्ह्य क्द्मस्द्भ द्वद्यद्ध स्रह्य द्बभ्ह्द्मद्ब द्यह्य ट्ठद्ध"द्म द्दद्मह्य फ्;ह्य्न ड्ढद्यद्यह्य द्बभ्स्रंक द्दस् द्धस्र स्रर्द्गंस्रद्म.रुद्मह्यड्ड स्रद्ध द्यद्म/द्मह्वद्म द्धश/द्मद्मह्वद्मह्यड्ड स्रद्ध द्वह्ह्वद्ध द्गद्दनद्मद्म ह्वद्दद्धड्ड] द्धह्लह्ह्वद्ध द्धस्र द्वद्यस्रह्य द्गख्ब् द्गह्यड्ड स्रद्मद्ग स्रद्भह्वह्य शद्मब्द्ध छ्व)द्म ॥द्मद्मशह्वद्म स्रद्ध .... द्धश्चनद्म ष्ह्यफ्द्मद्भ ॥द्मह्नफ्ह्ह्वह्य स्रद्ध ह्द्भद्द] द्धस्रद्यद्ध द्बभ्स्रद्मद्भ द्यड्ड'द्म; द्गह्व द्यह्य द्यद्म/द्मह्वद्म स्रद्ध ब्स्रद्धद्भ द्बद्धंकह्ह्य .... क्द्मस्द्भ ष्ह्द्म;ह्यह्य फ्;ह्य द्गद्मद्दद्मक्रद्ग; स्रह्य क्ह्वह्न:द्ब द्वद्यस्रद्म द्बभ्द्धह्क्तब् ह्वद्दद्धड्ड ठ्ठह्य[द्मह्ह्य ह्द्मह्य द्धह्वद्भद्म'द्म द्दद्मह्य ह्लद्मह्ह्य द्दस्ड्ड क्द्मस्द्भ द्यद्म/द्मह्वद्म&द्धशय़द्मह्व क्स्नद्मशद्म क्द्बह्वद्म;ह्य फ्;ह्य द्धय;द्म&स्रक्वक्र; द्बद्भ क्द्धश'शद्मद्य स्रद्भह्वह्य ब्फ्ह्ह्य द्दस्ड्ड्न
द्यद्म/द्मह्वद्म म्द्मह्य= स्रह्य द्बभ्द्धह् ह्लद्मह्य ह्रद्मरुह्ह्नह्त्न फ्ड्ड॥द्मद्धद्भ द्दद्मह्यड्ड क्द्मस्द्भ द्वद्यस्रद्म श्चद्गक्रस्रद्मद्भद्ध द्बभ्द्धह्क्तब् द्बद्मह्वद्म श्चद्मद्दह्ह्य द्दद्मह्यड्ड] द्वद्दह्यड्ड श्चद्मद्धद्द, द्धस्र क्ह्द्य− द्गह्यड्ड छ्व)द्म स्रद्म ष्द्धह्ल ष्द्मह्य;ह्यह्य] द्धश'शद्मद्य क्द्मस्द्भ द्यड्डस्रंघद्ब स्रद्म [द्मद्मठ्ठ द्बद्मह्वद्ध ब्फ्द्म;ह्यड्ड्न क्तद्यब् द्धह्वद्ध'श्चह् :द्ब द्यह्य ,ह्यद्यद्ध द्वद्बह्लह्यफ्द्ध] द्धह्लद्य द्बद्भ द्यह्द्मह्य"द्म द्दद्ध ह्वद्दद्धड्ड] र्फ्शं ॥द्मद्ध द्धस्र;द्म ह्लद्म द्यस्रह्य्न