Magazine - Year 1988 - Version 2
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Language: HINDI
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अनीति त्रास ही त्रास देती है।
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धन-सम्पदा का अपना महत्व है। हर व्यक्ति जीवन में सुख-समृद्धि-वैभव देखना चाहता है, किन्तु जब यह लालसा अति की सीमा को पार कर जाती है। तो येन-केन-प्रकारेण उसे पूरा करने का प्रयास किया जाता है। पुरातत्व विज्ञान एवं नृतत्व विज्ञान की शोधों में ऐसे कई घटनाक्रम प्रकाश में आये है। जिनसे पता चलता है कि अगणित व्यक्तियों ने सम्पदा जुटाने हेतु किस प्रकार प्रयास किए एवं कैसे उनसे जुड़े अभिशापों से उन्हें दण्डित भी होना पड़ा। प्रकृति की यह व्यवस्था स्वयं में अद्भुत है कि आतंक व अनीति की कीमत पर प्राप्त की गई वस्तु जिस किसी के पास जाती है, उसे सुख नहीं कष्ट-ही-कष्ट देती है। होप डायमण्ड पर यह तथ्य अक्षरशः लागू होता है।
नीली प्रकाश किरणों वाला यह हीरा देखने में जितना आकर्षक व सुन्दर है, वह उतना ही खतरनाक भी है। अब तक यह जिस-जिस के पास गया, उसे चैन से नहीं रहने दिया। कइयों ने इसे पाकर आत्महत्या कर लीं, कई पागल हो गये, काल के गाल में समा गये। जबकि कुछ के घरों में ऐसी तबाही मचायी कि उन्हें राजा से रंक की स्थिति में ही लाकर छोड़ा। तात्पर्य यह कि हर किसी को जिसने इसका स्वामित्व प्राप्त किया, किसी-न-किसी प्रकार भी हानि अवश्य उठानी पड़ी। ढूंढ़ने से ऐसा एक भी प्रसंग में नहीं आया, जिसमें व्यक्ति इसके अभिशाप से बिल्कुल अछूता रह सका हों। आखिर यह अभिशाप से बिल्कुल अछूता रह सका हो। आखिर यह अभिशाप इसके साथ जुड़ा कैसे? इसे जानने के लिए इसके पिछले इतिहास का अवलोकन करना पड़ेगा।
आज से करीब साढ़े सौ वर्ष पूर्व इस हीरे को दक्षिण भारत में कृष्णा नदी के तटवर्ती क्षेत्र से निकाला गया था। इसके बाद इस भगवान वैंकटेश्वर की प्रतिमा में जड़ दिया गया। मंदिर के पुजारी ने जब इस मनमोहक हीरे को देखा, तो अपना लोभ संवरण नहीं कर सका, और दिन-रात इसे प्राप्त करने के ताने-बाने बुनता रहा एवं एक दिन इसे मुकुट से निकाल ही लिया तथा चोरी छिपे बेच कर रातों रात लाखों की सम्पत्ति का मािलक बन बैठा। जब इस चोरी की जानकारी भक्तजनों को हुई, तो पुजारी की धूर्त्तता उनसे छिपी न रही ओर एक विशाल भीड़ ने उस पर आक्रमण कर उसकी हत्या कर डाली। यह हीरा एक ऐसे जौहरी के हाथ लगा जिसने उसे तत्काल एक फ्राँसीसी तस्कर जीन वापतीसे के हाथों बेच दिया। यही से हीरे के प्रतिकार कहानी शुरू होती है। जिस जौहरी ने उसे फ्राँसीसी तस्कर को बेचा था, उसे अपनी जान एक सड़क दुर्घटना में गंवानी पड़ी।
वापतीसे ने हीरे को फ्राँस के राजा लुई चतुर्दश को बेचकर अच्छी खासी धनराशि अर्जित कर ली। लेकिन दूसरी बार जब वह दूसरी बार भारत आया तो कालीकट के निकट जंगल में शिकार खेलते समय जंगली कुत्तों का आहार बन गया।
लुई चौदहवें के एक दरबारी निकोलस ने हीरे अपने शान-शौकत का प्रतीक समझा और किसी राजकीय भोज में उसे राजा से माँगकर सम्मिलित हुआ। कुछ समय पश्चात् निकोलस को हिसाब में गड़बड़ी के आरोप में बन्दी बनाया गया ओर वहीं कारावास में उसने दम तोड़ दिया। लोगों का कहना है लुई की मृत्यु एक कुत्ते के समान हुयी। साथ ही उसके राज घराने के तीन सदस्यों को भी असामयिक रूप से काल का ग्रास बनना पड़ा। हीरे को गले में पहनने वाली राजकुमारी डी0 लैम्वाले की हत्या भी किन्हीं अज्ञात लोगों द्वारा कर दी गयी।
अब बारी आती है फ्राँस के राजा लुई सोलहवें की। हीरे को विरासत में प्राप्त करते ही गृह युद्ध की स्थिति उसके शासन काल में पैदा हो गयी। हत्यारों ने राजा ओर रानी दोनों को ही गिलोटीन से काटकर निर्मम हत्या कर दी।
अभिशप्त हीरा में फ्राँस के जैकस कैलोट जौहरी के पास आया। जौहरी हीरे की सुन्दरता को देखते-देखते पागलों जैसा हो गया और अन्ततोगत्वा आत्महत्या कर बैठा। इस को अब पेरिस में बसे एक रूसी राजकुमार इवान ने खरीद लिया और अपनी प्रेयसी को उपहार स्वरूप भेंट किया। न जाने क्यों इवान को अपनी प्रेयसी के चरित्र पर आशंका हुई ओर उस बेचारी की हत्या करवा दी। तदुपरान्त स्वयं इवान भी दरबारियों के चंगुल में फंस कर मारा गया।
रूस की महारानी कैथरीन ने जब यह अभिशप्त “हापडायमण्ड” गले में पहना, तो कुछ ही दिनों में दमे रोग की शिकार बन कर अपनी जीवन लीला पूरी कर गयी। सन् में जब वही हीरा एक अन्य जौहरी के यहाँ पहुँचा तो जौहरी का सौतेला लड़का उस हीरे को तिजोरी से निकाल कर चलता बना। जौहरी इस आघात को सहन न कर सका। अन्ततः उसने दम तोड़ दिया। उसका लड़का भी एक नदी में डूबा पाया गया।
सन् में आयरलैण्ड के एक सुप्रसिद्ध बैंक मालिक हैनरी थामस होप के हाथों यह हीरा नियति के विधानानुसार हजार पौण्ड में क्रय किया गया। हेनरी ने हीरा का नाम “होपडायमण्ड” रखा। दो साल पूरे हुए भी न थे कि बैंक दिवालिया घोषित हो गयी और हेनरी की तीन पीढ़ियों ने गरीबी से संत्रस्त होकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी।
वर्ष में हीरे को हजार पौण्ड में क्रय करने वाले तुर्की सुल्तान हमीद थे। भाग्य की विडम्बना ही कहनी चाहिए कि लिया तो बेगम को उपहार स्वरूप भेंट करने हेतु पर आपस में तालमेल न बैठ पाने के कारण सुल्तान ने बेगम की गोली मार कर हत्या कर दी। सन् में विरोधी सेनाओं ने सुल्तान को भी गोलियों से भून डाला।
सन् में इस अभागे हीरे को अमेरिका के नेंड में मेकलीन ने लाख हजार में लिया। कुछ दिनों में उसका जवान बेटा विनसेंट कार में कुचल कर मृत्यु को प्राप्त हुआ। इधर पुत्र वियोग का दुःख, दूसरी तरफ व्यापार में घाटा होने से मैकलीन विष पान करके आत्म-हत्या कर बैठा। उसकी पत्नी भी थोड़े ही दिनों में चल बसी।
इस प्रकार इसके रक्तरंजित इतिहास को देखते हुए अन्ततः इसे वाशिंगटन के स्निथ सोनियन संग्रहालय को दान स्वरूप भेंट कर दिया गया, जो आज भी वहाँ सुरक्षित पड़ा है, जिसे देखने के लिए अब भी लोग दूर-दूर से आते है।
कोहिनूर हीरे का इतिहास भी इसी प्रकार का बताया जाता हैं वह जहाँ भी गया, जहाँ भी रहा, अपने साथ विपत्ति ही लेकर आया ओर उसे रखने वाले के लिए सदा प्राणघात की व्यथा संजोये रहा। इतना सब होते हुए भी सम्पत्ति बटोरने वालों को यह नहीं सूझ पड़ता कि यह अन्याय की कमाई है इससे बचा जाना चाहिए पर दुर्बुद्धि के आगे उनका विवेक मारा जाता है। वे आनन-फानन में जैसे भी बन पड़ता है लूट खसोट कर धन कुबेर बनने की अभिलाषा पूरी करने की कोशिश करते हैं, मगर जब उनकी महत्वाकाँक्षा पूरी नहीं होती ओर लाभ के स्थान पर उल्टे नुकसान होता है, तो उनकी समझ में आता है कि शेखचिल्लियों का-सा सपना पालना कितना खतरनाक है, किन्तु तक काफी देर हो चूंकि होती है। वे भंवर में इस बुरी तरह फंस चुके होते है कि उस से आसानी से उबर पाना उनके लिए संभव नहीं होता ओर प्राण तक गंवाने की स्थिति बन पड़ती है।
वस्तुतः इस प्रकार के कारण यही सिद्ध करते हैं कि अनीति-अत्याचार की कमाई कभी फलती नहीं वह व्यक्ति को हर प्रकार से हैरान-परेशान ही करती है। यदि इसे दुष्कर्मों का प्रत्यक्ष फल माना जाये ओर भगवान की विधि-व्यवस्था की संज्ञा दी जायें, तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी।