Magazine - Year 1989 - Version 2
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Language: HINDI
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संपदा का उपभोग नहीं, उपयोग
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समूचे संसार में ख्यातिप्राप्त मोटरगाड़ी के निर्माता एवं संस्थान के मालिक हैनरी फोर्ड जो कोट पहनकर ऑफिस आए, वह बहुत पुराना और एक स्थान पर फटा हुआ था।
फोर्ड अपने काम में इतने व्यस्त रहते कि उन्हें अपने कपड़ों का ध्यान नहीं रहता, पर इतने बड़े धनपति, उद्योगपति का ऐसा फटा कोट पहनना उनके सेक्रेटरी को उनके सम्मान के अनुरूप नहीं लगा। उसने मालिक का ध्यान कोट की ओर दिलाते हुए कहा— साहब! अब आप नया कोट सिलवा लें तो ठीक रहेगा। इतने बड़े आदमी होकर फटा कोट पहन रखा है, लोग क्या कहेंगे”?
सेक्रेटरी की बात सुनकर किंचित मुस्कुराते हुए वे बोले— "मुझे अमेरिका के सभी लोग जानते हैं। वे कहेंगे क्या? इसी कोट की मरम्मत करवा लेंगे तो यह नए का रूप ले लेगा”। साहब के मुँह से ऐसी बात सुनकर वह उनकी इस सादगी से बहुत प्रभावित हुआ और चकित भी।
दूसरे दिन सेक्रेटरी उनके पास दिन भर के कामों के बारे में आदेश लेने के लिए पहुँचा तो उन्होंने दिन भर के अन्य व्यावसायिक कामों के साथ एक काम यह भी लिखाया— अपने पुराने कोट की मरम्मत करवाना। पुराना कोट रफू होकर आ गया, वे उसे ही पहनते रहे, नया नहीं सिलवाया।
कुछ दिनों के बाद उन्हें अपने व्यावसायिक कामों के सिलसिले में इंग्लैंड जाना पड़ा। तब भी वे वही फटा कोट पहने थे। इस बार सेक्रेटरी ने साहस बटोरकर पुनः कहा— "आप विदेश यात्रा पर जा रहे हैं, अब तो इस कोट को बदल लें”
हैनरी फोर्ड फिर मुस्कराए और बोले— ”भाई! वहाँ तो मुझे कोई सूरत से जानता भी नहीं है कि मैं ही हेनरी फोर्ड हूँ, फिर कोट बदलने की क्या आवश्यकता” और उसी कोट को पहने इंग्लैंड चले गए।
सेक्रेटरी की समझ में यह बात नहीं आई कि धनवान होते हुए वे पुराना कोट ही क्यों पहने रहते हैं, नया क्यों नहीं बनवा लेते? वह भले ही न जानता रहा हो, पर फोर्ड तो जानते थे कि धन की अपनी उपयोगिता है। उसका उपयोग करना चाहिए उपभोग नहीं। अतः जब तक पुराना कोट पहनने लायक रहता है, नया क्यों बनवाया जाए?
एक बार उनके पौत्र ने एक छोटे सिक्के को यों ही फेंक दिया। वह पौत्र द्वारा इस प्रकार सिक्का फेंकना देख रहे थे। उन्होंने पूछा— "बेटे! तुमने सिक्का क्यों फेंक दिया?" "दादा जी! आपके पास तो ढेरों धन है, फिर एक सिक्का फेंक देने से क्या फरक पड़ेगा।” — बालक ने उत्तर दिया।
हेनरी फोर्ड ने बालक को धन का महत्त्व बताया— "बेटा! हमारी तरह सभी के पास धन नहीं होता और हमारे पास जो धन है, वह भी फेंकने के लिए नहीं है। हमें यह धन इसलिए मिला है कि हम उसका ऐसा उपयोग करें, जिससे जिनके पास धन नहीं है, उन्हें भी उसका लाभ मिले”। बच्चे को समझाते हुए उनने बताया कि हमारे कारखाने में जो मजदूर काम करते हैं, उन्हीं की तरह मैं भी एक दिन गरीब था। अपने पुरुषार्थ से धनी बना। हमारे पास जो संपदा आज है, उसे हम कारखाने में लगाते हैं, जिससे कितने ही लोगों को रोजगार मिलता है। यह धन समाज का है। उसी से हमें मिला है। अतः उसे फेंकना या अपनी शौक— मौज के लिए खरच करना उचित नहीं।”
फोर्ड ने पैसे की कीमत को जाना था, साथ ही उसके नियोजन की रीति को भी। धन कमाना अच्छी बात है, पर उसे नष्ट करना अथवा दुरुपयोग करना बुरी बात है। उस धन को मनुष्य व समाज की सेवा में खरच होना चाहिए। हेनरी फोर्ड इसी औचित्य मान्यता में विश्वास रखते थे। उनको सामान्य कृषक पुत्र से विश्व विख्यात धनपति बनाने में सादगी के अतिरिक्त उनका धन के प्रति यह उदात्त मानवतावादी दृष्टिकोण भी एक महत्त्वपूर्ण कारण था।