Magazine - Year 1991 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
क्या हमारे संकल्प अधूरे ही रह जाएँगे?
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
शाँतिकुँज ने बड़े-बड़े उत्तरदायित्व अपने कंधों पर लिए हैं। उन्हें निभाने को यह संस्थान संकल्पित है। सारे समाज का कायाकल्प एवं विश्व स्तर पर वैचारिक क्रान्ति एक ऐसा पुरुषार्थ है, जिसे पूरा करने के लिए एक यात्रा गायत्री परिवार के अधिष्ठाता-आराध्य परम पूज्य गुरुदेव ने आज से साठ वर्ष पूर्व आरंभ की थी। वह अनवरत चलती रहे, यह हमारा इस विराट समाज को व गुरुसत्ता को दिया गया आश्वासन है। इस आध्यात्मिक संगठन ने देव संस्कृति को पुनर्जीवित कर पुनः भारतवर्ष के हाथों समग्र विश्व का नेतृत्व सौंपने की जो बात कही है, वह एक भवितव्यता है, दैवी योजना है व महाकाल का संकल्प है। उसे तो पूरा होना ही है, यह सुनिश्चित माना जाना चाहिए।
विस्तार प्रक्रिया के अंतर्गत जो योजनाएँ अभी हाथ में हैं, वे एक से एक विलक्षण व असीम संभावनाओं को लिए हुए सामने खड़ी हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं :-
(1) कार्य विस्तार को देखते हुए न्यूनतम एक हजार नए कार्यकर्त्ताओं का मिशन में प्रवेश, उनके आवास आदि का प्रबन्ध।
(2) देवात्मा हिमालय की भव्य प्रतिमा का निर्माण।
(3) ज्योतिर्विज्ञान की एक अभिनव वेधशाला की स्थापना।
(4) दुर्लभ जड़ी−बूटियां एवं विलक्षण-समाप्त होती चली जा रही वनौषधियों से भरी एक विशाल नर्सरी की स्थापना ताकि पर्यावरण परिष्कार और प्रकृति पूजन के लिए युद्ध स्तर पर वृक्षारोपण और कृषि स्तर पर जड़ी-बूटी उत्पादन कार्यक्रम देश भर में चल पड़े।
(5) भारत के सात लाख गाँवों के उत्थान की ग्राम्य विकास योजना जिसके अंतर्गत हर गाँव के न्यूनतम पाँच व्यक्ति व अधिकारी प्रशिक्षित किए जा सकें। शाँतिकुँज तंत्र द्वारा ऐसा प्रशिक्षण दिए जाने के संबंध में निर्णायक स्तर पर वार्ता चल रही है।
(6) सारे देश के शिक्षक व प्रशासक वर्गों के लिए अपने शिविरों के समानान्तर मॉरल एजुकेशन सत्रों का नियमित आयोजन। फिलहाल उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग के प्रधानाचार्यों का शिक्षण यहाँ चल रहा है।
(7) सिनेमा व वीडियो की विकृति से लड़ने के लिए कला मंच का आधुनिक तकनीकी स्तर पर विकास।
(8) प्रवासी भारतीयों व देवसंस्कृति के बारे में जानने को जिज्ञासु विदेशियों के लिए सर्वांगपूर्ण शिक्षण।
(9) राष्ट्र की स्वास्थ समस्या से लड़ने हेतु एलोपैथी के समानान्तर वनौषधि विज्ञान पर आधारित वैद्यक प्रक्रिया का पुनर्जीवन व विस्तार।
इस सबके लिए नयी जमीन चाहिए, नया भवन निर्माण चाहिए और भारी भरकम साधन अपेक्षित हैं। सेना कितनी ही स्वस्थ, समर्थ और दक्ष हो, गोला बारूद और साजो-सामान के बिना कैसे तो लड़े व कैसे विजय प्राप्त करे? शासन से इस संगठन ने कभी सहयोग माँगा नहीं। पूज्य गुरुदेव कहते थे कि ब्राह्मण को राजा का धान्य नहीं खाना चाहिए। ब्रह्म बीज के विस्तार को संकल्पित हम सभी राजतंत्र का धन कभी शाँतिकुँज में प्रवेश नहीं होने देंगे। फिर समस्या वही सामने आ खड़ी होती है। हम माँग सकते नहीं और स्वजनों की कर्त्तव्यनिष्ठ नींद से उबरती नहीं तो किसके दरवाजे जाएं और किसके सामने हाथ पसारें? यह विशुद्धतः एक ब्राह्मण संस्था है तथापि किसी से न माँगने के संकल्प से हम निष्ठापूर्वक प्रतिबद्ध हैं। कुछ कहना होगा तो अपनों से ही कहेंगे राजी से दें या बेराजी से। महाकाल की अपेक्षाएँ तो हर स्थिति में पूर्ण अपनों को ही करनी पड़ेंगी। जिनने श्रद्धापूर्वक अपने आपको परम पूज्य गुरुदेव से, उनके महान मिशन से जोड़ा है, वे गिलहरी जितनी मिट्टी तो इस सेतुबन्ध में डालें ही। दीक्षा स्तर से लेकर अनुदान पाने तक विभिन्न रूपों में जुड़! परिजन अपना बीस पैसा प्रतिदिन मिशन को देने को कर्त्तव्य पालन करें तो हमें न किसी से कुछ कहना पड़ेगा और न साधनों के लिए मन मारकर बैठना पड़ेगा। इतना नियमित चलता रहा तो निश्चित ही सामने दिखाई दे रही मंजिल को हम सभी भावनाशीलों का कारवाँ पूरा कर सकेगा। बार-बार विचार आता है कि क्या भावना संपन्नों के होते हुए भी हमारी योजनाएँ अधूरी रह जाएँगी, संकल्प बिना पूरे किए रह जाएँगे?
वर्ष-53 संस्थापक- वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वार्षिक चंदा-
अंक-9 भारत में 35/-
सितम्बर-1991 विदेश में 300/-
वि.सं. अषाढ़ =श्रावण-2048 आजीवन 500/-