Magazine - Year 1994 - Version 2
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Language: HINDI
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अपनों से अपनी बात (गुरू पर्व पर विशेष) - अनुदानों की यह वर्षा सतत् होती ही रहेगी
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माता अपने गर्भ में भ्रूण को रखती, पोषण देती तथा उसके स्वस्थ है। इसके लिए उसे कितना ही कष्ट क्यों न झेलना पड़ें, वह सहती है। आहार में वह जो भी लेती है, गर्भस्थ शिशु के लिए, जो भी चिंतन करती है, शिशु में सुसंस्कारिता के समावेश के लिए तथा उसके रक्त-माँस-मज्जा का एक-एक कण नियोजित रहता है - गर्भ में पल रही उस जीव सत्ता के लिए, जो नौ माह की अवधि पूरी कर माँ से लगाव की वेदना भरी कराह के साथ बाहर आता है व एक नये संसार से अपनी इंद्रियों के माध्यम से साक्षात्कार करता है। माँ से बढ़कर श्रेष्ठतम सत्ता ब्रह्म के बाद इस धरती पर कोई नहीं। सरस संवेदना की प्रतिमूर्ति हमेशा देती रहने वाली सतत् जीवन यज्ञ कर अपना सब कुछ अर्पित करने वाली मातृसत्ता अब तक इस धरती पर है, भगवान का अस्तित्व प्रमाणित होता रहेगा व आस्तिकता कभी भी इस धरित्री से मिटेगी नहीं।
प्रसंग यहाँ गुरु-पूर्णिमा पर्व के परिप्रेक्ष्य में मातृसत्ता की अपने संतानों के प्रति गहरी आँतरिक वेदना एवं अजस्र स्नेह की वर्षा का चल रहा है जो विगत चौबीस वर्षों से निरंतर प्रवाहित होती रह हमें आत्मिक प्रगति के पथ पर प्रशस्त कर अब देवसंस्कृति दिग्विजय वाहिनी का सदस्य बनाकर सतयुगी भविष्य की ओर ले जाने को कृत संकल्प है। अठारह अश्वमेध यज्ञ संपन्न हो चुके, जिसकी घोषणा पूज्यवर ने प्रायः पचास वर्ष पूर्व ‘अखण्ड-ज्योति’ पत्रिका में कर दी थी तथा जिसे यज्ञदेवता की दैनन्दिन स्तुति में समाहित कर प्रत्येक के लिए अपने स्थूल-शरीर के महाप्रयाण के बाद एक समर्थ सत्ता के सहारे छोड़कर सूक्ष्म व कारण सत्ता में स्वयं को प्रविष्ट करा विराट के एकाकार कर लिया था। अठारह की संख्या अब एक सौ आठ तक छोटे बड़े दिग्विजयी पराक्रमों के रूप में - विश्वव्यापी संकल्पों के रूप में पहुँचेगी, इसमें किसी को संदेह नहीं करना चाहिए।
परम वंदनीया माताजी 1943 में परम पूज्य गुरुदेव के सान्निध्य में इस संस्था की संरक्षक अभिभावक -’ परिवार की मुखिया पद पर आसीन हुई थीं किन्तु प्रत्यक्षतः यह भूमिका उनने 1971 में सँभाली, जब पूज्यवर ने मथुरा से विदाई लेकर स्वयं को दृश्य पटल से हटाकर हिमालय की ओर प्रस्थान कर दिया था व बाद में शाँतिकुँज में साधनात्मक पराक्रम द्वारा लाखों-करोड़ों आत्मबल संपन्न महामानवों के सृजन के निमित्त अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। विगत चौबीस वर्षों में गायत्री परिवार के प्रत्येक पुराने-नये सदस्य ने शक्ति के स्त्रोत के रूप के में स्नेह सलिला माताजी की ओर से न केवल अजस्रं प्रवाह बहता अनुभूत किया है, वरन् अनेकानेक रूपों में उनके अनुदानों से स्वयं को लाभान्वित होता पाया है।
क्या यह संरक्षण इसी प्रकार मिलता रहेगा ? कोई कमी प्रत्यक्ष दर्शन न हो पाने के कारण कहीं होने तो न लगेगी ? क्या मिशन अपनी यह आगामी दस वर्षीय यात्रा सफलतापूर्वक पूरी कर सकेगा ? शारीरिक स्वास्थ्य पर दबाव के चलते कहीं हम उनके अनुदानों से वंचित तो नहीं हर जायेंगे ऐसे अनेकानेक ऊहापोह परिजनों के मन में चलते होंगे चलते हैं एवं प्रत्यक्ष चर्या में सुनने को भी मिलते हैं। परम वंदनीया माताजी ने विश्व मात्र के कष्टों के निवारण के लिए विगत मई माह में बहुत बड़ा कष्ट अपने ऊपर लिया व उस डेढ़ माह की अवधि से गुजर कर अब अधिकाँश समय मौन एकाकी साधना-तप द्वारा शक्ति संचय करोड़ों व्यक्तियों में मनोबल आत्मबल के संचार के निमित्त लगाने का निश्चय किया है। दूर से हमें भले ही उनके दर्शन होते रहें निकट से परामर्श उनके समीपवर्ती वरिष्ठ परिजनों के माध्यम से मिलते रहें, हमें अपनी गुरु पूर्णिमा की श्रद्धांजलि इसी रूप में देनी चाहिए कि हमारे पुरुषार्थ में कोई कभी किसी रूप में न आने पाये। निषेधात्मक चिंतन हम पर हावी न हों। आगामी यज्ञायोजन, विगत अश्वमेधों के अनुयाज यथावत तीव्र वेग से चलते रहें तथा हर व्यक्ति एक से अनेक गुना बनता हुआ इक्कीसवीं सदी को उज्ज्वल बनाने वाले इस मिशन की प्रतिष्ठा में वृद्धि करता चले, यही हमसे उनकी अपेक्षा है।
माता ने पुत्र को दिया, पुत्रियों को दिया कहीं भेदभाव न रखा, आगे भी वह नहीं रहेगा। सभी को वे सतत् देती रहेंगी व इक्कीसवीं सदी के आगमन तक युगसंधि महापुरश्चरण की महापूर्णाहुति एक हमें शक्ति प्रदान करती रहेंगी इसमें। किसी को कोई संदेह नहीं करना चाहिए। इस माह 22 जुलाई को गुरू पूर्णिमा है। हमारी श्रद्धा मिशन के लक्ष्योँ के प्रति और बढ़ें, आचार संहिता का पालन कर हम आदर्श पुत्र व पुत्री अपनी मातृ सत्ता के ऋषियुग्म के कहे जा सकें। नव जागरण के आलोक वितरण में हम से कोई कृपणता न हो, तो मानना चाहिए कि दीक्षा व दक्षिणा के उभय पक्षीय संयोग से चलने वाला सशक्त विद्युतप्रवाह कभी अवरुद्ध नहीं होगा। हम सतत् पाते ही रहेंगे, अनुभूतियों व अनुदानों के रूप में आइए। यह विशिष्ट गुरु पूर्णिमा पर्व इसी पावन उद्देश्य को लेकर हर्षोल्लास मनाएँ।
*समाप्त*