Magazine - Year 1994 - Version 2
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Language: HINDI
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आसक्ति भटकाती है , हमें मौत के बाद
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योगवाशिष्ठ में एक श्लोक है जिसमें गुरु वशिष्ठ कहते हैं --
“ आशापाश शताबद्धा बासनाभाव धारिणः।
कायात्कायमुपायन्ति वृक्षाद्वृक्षमिवाण्डजा ॥ “
अर्थात् हे राम ! मनुष्य का मन सैकड़ों आशाओं - महत्वाकाँक्षाओं और वासनाओं के बंधन में बँधा हुआ मृत्यु के पश्चात उन छुद्र वासनाओं की पूर्ति करने वाली योनियों और शरीरों में उसी प्रकार चला जाता है जिस प्रकार एक पक्षी एक वृक्ष को छोड़कर फल की आशा से दूसरे वृक्ष पर जा बैठता है। इस प्रकार कितने ही व्यक्ति जीवन काल की इच्छा पूरी न होने पर मृत्योपराँत भी वे अतृप्त बने रहते हैं और विक्षुब्ध हो प्रेत योनि में जीवन काटते रहते हैं श्राद्ध-तर्पण संस्कार , पिण्डदान आदि के माध्यम से देव संस्कृति के उपक्रमों में इसी लक्ष्य को पूरा किया जाता है ताकि पूर्वजों की आत्मायें तथा अन्यान्य अतृप्त मृतात्मायें शान्ति व सद्गति प्राप्त कर सकें। पुनर्जन्म एवं कर्मफल की सुनिश्चितता पर पाश्चात्य मनीषियों को भी अब दृढ़ विश्वास हो चला है और इस संदर्भ में उनने भी अनेकों तथ्य एवं प्रमाण जुटायें है।
भारत ही नहीं , वरन् पाश्चात्य जगत में भी ऐसे अनेकों घटनाक्रम देखे जाते हैं जो प्रमाणित करते हैं कि अतृप्त आत्मायें बहुत दिनों तक प्रेत योनि में भटकती रहती हैं और जिस-तिस प्रकार अपनी आकाँक्षाओं - वासनाओं को पूरा करने का प्रयास करती हैं। प्रेत विद्या विशारदों में प्रमुख माने जाने वाले इंग्लैण्ड के श्री जे0 डी0 विलियम्स ने इस क्षेत्र में गहन अध्ययन एवं अनुसंधान किया है। प्रेत विद्या की गुत्थियों को सुलझाने के लिए वे विख्यात हैं। मैनचेस्टर के एक घर से उनको एक दंपत्ति का बुलावा ऐसी ही एक गुत्थी के समाधान हेतु आया।
घर की स्त्री जे0 डी0 विलियम्स को एक आलमारी के पास ले गयी। यहीं पर वह प्रेत था जो दिखाई तो नहीं दे रहा था, पूछे गये किसी भी प्रश्न और अपनी उपस्थिति का प्रमाण एक विशेष प्रकार की खटपट के द्वारा दे रहा था। उसके संकेत बड़े ही शिक्षित व्यक्तियों जैसे थे। अंग्रेजी वर्णमाला के प्रथम अक्षर ‘ए’ के लिए वह एक बार खट्-खट् की आवाज करता था और ‘बी’ के लिए दो बार खट्-खट् की आवाज करता था। इसके जो अक्षर जितने नम्बर पर पड़ता है , उस अक्षर के लिए उतने ही बार बिना रुके खट् खट् का उसने संकेत बना लिया था और उसी के माध्यम से वह पूछे गये प्रश्नों के उत्तर भी देता था।
यह खेल सारे दिन चलता रहा। घर के दूसरी ओर कोई वस्तु नहीं थी कि वहाँ से खट् खट् की आवाज आ रही होती। लोगों ने सारी संभावनायें पहले ही छानबीन कर ली थीं। विलियम्स को तो बहुत देर के बाद बुलाया गया था। उनकी परा विद्या में निष्णातता होने के कारण ही उन्हें बुलाया गया था। उन्होंने सब जाँच पड़ताल कर ली , पर उन्हें कोई भौतिक कारण न मिला जिससे खट्-खट् का सूत्र समझ में आता।
गृहणी ने सर्वप्रथम विलियम्स का परिचय प्रेत से कराया , फिर पूछा- क्या तुम यहाँ उपस्थित हो ? प्रेत ने उत्तर में सबसे पहले बिना रुके पच्चीस बार खट्-खट् की जिसका अर्थ अँग्रेजी का ‘वाई’ अक्षर था। फिर थोड़ा रुक कर 5 बार खट् खट् की और थोड़ा रुककर 19 बार खट् खट् की जिसका संकेत क्रमशः ‘ई’ और ‘एस’ था। इस तरह उसने अँग्रेजी में ‘ घश्वस् ‘ ‘ अर्थात् ‘हाँ’ कह कर वहाँ होने की सूचना दी।
इसके बाद विलियम्स ने उससे अनेक प्रश्न पूछे। प्रेतात्मा ने उनमें से अनेक प्रश्नों के उत्तर दिये , पर ऐसे किसी भी प्रश्न से सहमति प्रकट नहीं की , न उनके उत्तर ही बताये जो मनुष्य जाति के लिए अहितकर होते। उदाहरण के लिए जुये , सट्टे , शराब संबंधी प्रश्नों के उत्तर उसने नहीं बताये। उसका कहना था कि जिन बातों से वह स्वयं दुखी है , वह बातें नहीं बतायेगा। पर इससे एक बात स्पष्ट हो गयी कि मनुष्य को मृत्यु के बाद जीवन की अनेक घटनाओं की ही नहीं, भाषा आदि की भी जानकारी रहती है और उसमें भविष्य को भी जानने की क्षमता आ जाती है जो आत्म के गुण का परिचालक है।
एकाएक विलियम्स ने उससे पूछा “ आप कौन हैं, क्यों उपस्थित हुए हैं। “ इस प्रश्न के उत्तर में उसी खट्-खट् वाली विधि से उसने बताया - मैं इस मकान में रहता था। जब मैं वृद्ध था तभी मैंने अपने बच्चों से कह दिया था कि मुझे अमुक कब्रिस्तान में दफनाया गया। तब से मैं अतृप्त बना अपने घर का चक्कर काटता रहता हूँ।
इसके पश्चात् श्री विलियम्स ने लोगों से पूछ कर उस मकान में रहने वाले किरायेदारों का पता लगाया तो उनसे मालूम हुआ कि वास्तव में उस वृद्ध ने मृत्यु से पूर्व इस तरह की इच्छा व्यक्त की थी।
एक और विलक्षण बात थी कि वह प्रेतात्मा तभी तक यह खट्-खट् की आवाज करती थी जब तक घर में सबसे छोटा लड़का उपस्थित रहता था। पहले कई दिन जब-जब वह स्कूल या घर से बाहर रहा, उसने उपस्थिति नहीं दर्शायी। उस दिन श्री विलियम्स और अधिक खोजबीन करते के लिए एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक और एक पादरी को भी साथ लाये थे। उनकी उपस्थिति में प्रेतात्मा एक दो बातों के सामान्य उत्तर दे ही रहा था कि लड़का जो आज कई दिन से छिपा-छिपा रह रहा था , इतना भयभीत हो गया कि उसे तीव्र ज्वर हो आया । उसे अस्पताल ले जाना पड़ा । इसके बाद उसके माता - पिता को भी बच्चे की ओर से बड़ी चिंता हो गयी और उन्होंने दूसरा मकान ढूँढ़कर उस मकान को ही बदल लिया।
परामनोविज्ञानी श्री विलियम्स ने भूत-प्रेत संबंधी जिन तथ्यों का पता लगाया, उनमें से कई जानकारी की दृष्टि से बड़े ही उपयोगी हैं। उनमें से प्रमुख यह कि भूत-प्रेत किसी का अहित नहीं कर सकते। यदि करते भी हैं तो मात्र इतना ही कि वह कोमल और भीरु मस्तिष्क वालों को ही डरा सकते हैं या उनके शरीर पर किसी तरह का नियंत्रण स्थापित कर सकते हैं। दूसरे उनकी जिस वस्तु में इच्छा या आसक्ति होती है , वह केवल उतना ही सोचते रहते और उसी का दुख करते रहते हैं। जब तक उस अवस्था में भी उनकी इच्छा आकाँक्षा या आसक्ति शिथिल नहीं पड़ जाती , तब तक मृत्यु वाली निद्रा नहीं आती और जीवात्मा भटकती रहती है और ऐसी दशा में दूसरे जन्म की तैयारी भी नहीं कर पाती। अतृप्त कामनायें एवं आसक्ति मनुष्य को मृत्यु के बाद भी घुमाती रहती है यह एक अकाट्य सत्य है।