Magazine - Year 1996 - Version 2
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Language: HINDI
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अचेतन की ढलाई के चमत्कारी परिणाम
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मनुष्य की भौतिक विभूति जितनी और जो कुछ दीखती है। उसे चेतन मस्तिष्क का चमत्कार कहना चाहिए। उसकी इस क्षमता से हर कोई परिचित है परन्तु उसको एक अचेतन और अविज्ञात पक्ष भी है जिसे ‘भानुमती का पिटारा’ कहना अत्युक्तिपूर्ण न होगा।
सर्वविदित है कि सम्पूर्ण अचेतन मस्तिष्क अभी अविज्ञात की स्थिति में पड़ा हुआ हैं उसमें इन दिनों तरह -तरह के शोध अनुसंधान हो रहे है’ पर अब तक उस बारे में जितना कुछ ज्ञात हुआ है, उसे बारे में जितना कुछ ज्ञात हुआ है उसे नगण्य ही कहा जा सकता है। शोधकर्मी वियों और चमत्कारों की संगति इससे बिठाते तो रहे है पर उस सम्बन्ध में कोई बुसिंगत व्याख्या करने में असफल रहे है। परामनोविज्ञानियों ने इस संसार का सर्वाधिक रहस्यमय , अद्भुत तथा शक्तिशाली यंत्र बताया और यह कहा -कि यदि इसके गूढ़तम अविज्ञात रहस्यों को प्रकट किया जा सके तो उस शक्ति के सहारे ही वह समस्त कार्य सम्भव हो सकेंगे जिसके लिए इन दिनों भौतिकी का अवलम्बन अनिवार्य अनुभव किया जाता है।
अचेतन मस्तिष्क का जीवन में कितना महत्वपूर्ण स्थान है इसका अन्दाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब वह किसी शब्द अथवा संदेश को दृढ़तापूर्वक पकड़ लेता है तो या तो व्यक्ति को उत्कर्ष की ऊंचाइयों की आरे ले चलता है। अथवा रोग-शोक की दुःखदायी स्थिति में ला पटकता है। यह सब कुछ इस बात पर निर्भर है कि संदेश किस प्रकार का और कैसा है? उसमें किसी स्वस्थ विचार की अभिव्यक्ति हो रहा है। वह अवाँछनीय एवं अप्रिय स्तर का है। मस्तिष्क के इस भाग की भूमिका को समझने के लिए लिवरपुल युनिवर्सिटी के दो मनःशास्त्रियों जी ब्राउन एवं हैरिस ने एक विशेष प्रकार का प्रयोग किया । उन्होंने एक थियेटर में एक फिल्म के दौरान थोड़े-थोड़े अन्तराल में दर्शकों के समक्ष एक संदेश संप्रेषित किया, जिसमें कहा गया “सैण्डविच खाना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। एक सप्ताह के इस प्रयोग के दौरान देखा गया कि इस मध्य सैण्डविच की बिक्री में अप्रत्याशित ढंग से वृद्धि हो गई बाद में इसकी व्याख्या करते हुए शोधकर्मियों ने यह स्पष्ट किया कि चेतन मस्तिष्क के लिए यह किन्तु अचेतन मस्तिष्क ने इसे गम्भीरतापूर्वक लिया। इसी का परिणाम था कि इस मध्य सैण्डविच के प्रति लोगों का सामान्य रुझान बढ़ा-बढ़ा देखा गया।
कुछ इसी प्रकार के एक प्रयोग का वर्णन जी के मार्लेट एवं डी जे रोहसेनोव ने अपने एक निबन्ध ‘दि थिंक-ड्रिक एफेक्ट’ में किया है उन्होंने कुछ लोगों के दो ग्रुप बनाये । दोनों ग्रुपों को एक महीने तक सेबों का ताजा रस पिलाया गया। इसके बाद एक ग्रुप से बताया गया कि जिन सेबों का रस उन्हें पिलाया गया वे कुछ विषैले थे। इससे उन्हें हानि हो सकती है। दूसरे ग्रुप को ऐसा कुछ नहीं कहा गया। एक सप्ताह तक बराबर इस के दोहराने से वे लोग सचमुच बीमार हो गये। बाद में उपचार के नाम पर उन्हें ग्लूकोज दिया जाने लगा। बताया गया कि यह एक तीक्ष्ण दवा है । इससे वे जल्द स्वस्थ हो जाएंगे। आश्चर्यजनक रूप से वे धीरे-धीरे फिर ठीक हो गये। इसे अचेतन मस्तिष्क की ग्रहणशीलता का अन्दाजा लगता है।
कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के हैराल्ड मैग्नी ने अचेतन रूप से प्राप्त विभिन्न संदेशों का मस्तिष्कीय तरंगों पर क्या और कितना प्रभाव पड़ता है-इस सम्बन्ध में समय-समय पर अनेक प्रयोग एवं अध्ययन किये। निष्कर्ष में उनने पाया कि यदि सही ढंग से कई सप्ताह तक संदेश सम्प्रेषित किया जाय और व्यक्ति का अचेतन उसे ठीक-ठीक ग्रहण कर ले, तो मस्तिष्कीय तरंगों में तद्नुकूल परिवर्तन स्पष्ट परिलक्षित होना लगता है अर्थात् यदि संदेश विधेयात्मक हो तो तरंगों में अल्फा किस्म के कम्पनों की बहुलता दिखाई पड़ती हैं और निषेधात्मक होने पर उसका स्थान ‘बीटा ले लेती हैं
इसी से सम्बन्धित एक प्रयोग कीव विश्वद्यालय के मनोवैज्ञानिकों ने किया। उनका विचार था कि अचेतन मन को संदेश देकर मनुष्य को सुयोग्य और विज्ञ बनाया जा सकना सम्भव हैं प्रयोग के लिए उन्हें 15-25 वर्ष जितने आयु -वर्ग के लोगों के दो दल बनाये। दोनों को प्रतिदिन साथ-साथ अँग्रेजी सिखायी जाती किन्तु दूसरे ग्रुप के लोगों को नींद के दौरान भी लिंग्वाफोन की मदद से इलेक्ट्रोड के सहारे अचेतन मस्तिष्क में यह पाठ प्रेषित किया जाता। दो महीने के इस शिक्षण के उपरान्त देखा गया कि जिन लोगों को नींद के दौरान पाठ सुनायें गये थे वे उन लोगों की तुलना में अधिक दक्ष पाये गये, जिन्हें इससे वंचित रखा गया था सीखने की गति उनकी अधिक तीव्र कार्य करता है, बल्कि यह कहना अधिक समीचीन होगा कि अचेतन मन की ग्रहण और धारण क्षमता चेतन मन की अपेक्षा कही अधिक होती है।
वेल्स विश्वविद्यालय के मनः- शास्त्री डॉ पीटर कोवेनी ने ‘वी आर हेल्दी’ (हम स्वस्थ हैं) का संदेश अनेक रोगियों को नित्यप्रति दस मिनट तक सुनाया , इसके परिणामस्वरूप अनेक रोगियों की बुरी लतें छूटती देखी गयी। जो धूम्रपान और मद्यपान के एकदम आदी थे।
उनकी अभिरुचि इनके प्रति घटने लगी। इसके अतिरिक्त मानसिक रोगों से भी उन्हें मुक्ति मिली। कई मोटापे के शिकार व्यक्तियों पर यही प्रयोग दुहराया गया। यहां भी नतीजा उत्साहवर्द्धक देखा गया। तीन महीने बाद उनके वजन में गिरावट देखी गया।
वास्तव में मानसिक रोगियों में अचेतन मन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जब वह कोई गलत संदेश ग्रहण कर लेता है तो व्यक्ति के लिए अच्छी परिस्थितियों भी भय पैदा करने लगती है और इससे वह इतना परेशान हो उठता है कि जीवन नीरस, निरानन्द लगने लगता है मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि साइकोसिस एक ऐसी ही दुःखदायी अवस्था है जिसमें रोगी को यह ज्ञात नहीं हो पाता कि दुःख का कारण उसके अन्दर विद्यमान है । या बाहर । डोरोथी रो अपनी पुस्तक ‘बियोण्ड फियर’ में लिखती है कि ऐसा इस कारण होता है क्योंकि व्यक्ति अपने चेतन और अचेतना स्तर में वीोद नहीं कर पाता और सही- सही यह अनुभव नहीं कर पाता कि उसके अन्दर क्या है और बाह्य जगत में क्या है? वे लिखती है कि इस अनुभव की कमी के कारण ही बाद के जीवन में लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है अतः ऐसे लोगों को अप्रिय प्रसंगों को बार-बार याद नहीं करना चाहिए, अन्यथा वे अचेतन की गहराइयों में उतरकर दुःख को घटाने के बजाय बढ़ायेंगे ही ऐसा उनका मत है वे लिखती है कि चेतना के उक्त दोनों स्तरों में यदि संतुलन एवं सामंजस्य नहीं हुआ तो फिर जीवन नरक तुल्य साबित होता है बहिर्मुखी व्यक्ति अपने अंतर्जगत में चूंकि बिना यह मान्यता बना लेता है कि दुनिया बड़ी ही शोकपूर्ण, दुःखदायी और खतरों से भरी हैं वह इसे अपने अन्दर की उपज नहीं स्वीकार कर पाता । इसी तरह अन्तर्मुखी व्यक्ति अपने अंतस् में विभिन्न प्रकार की जटिलताएं अनुभव करता और सोचता है कि यह सब बाह्य जगत द्वारा उस पर आरोपित किये गये है, पर यथार्थता यह है कि वह सब उसी के अचेतन द्वारा उत्पादित होता है किन्तु इसे वह सरलता से अंगीकार नहीं कर पाता इस प्रकार हम देखते हैं कि अचेतन मस्तिष्क सचेतन की तुलना में कही अधिक सामर्थ्यवान है। चेतन मस्तिष्क यदि जाने,सीखने , अनुभव प्राप्त करने तक सीमित है तो अचेतन स्तर में जानने-सीखने के अतिरिक्त उन विधाओं को अपने में पूरी तरह आत्मसात् कर लेने की भी क्षमता है चेतन मस्तिष्क सीखे ज्ञान की, अभ्यास को कालान्तर में भूल सकता है किन्तु जो जानकारी अचिंतन स्तर में उतर गयी, वह मस्तिष्क को स्थायी निधि बन जाती है। उसे कभी भी जगाया और उभरा जा सकता है। सम्मोहन की कला में पारंगत व्यक्ति इसी स्तर की अपना आधार बनाकर कौशल का प्रदर्शन करते हैं व्यक्ति को सम्मोहन की स्थिति में लाकर वे चाहे तो उसकी अंतर्चेतना में विद्यमान विकृतियों से उसे छुटकारा दिला सकते हैं इसके विपरीत वह उसे अपार क्षति भी पहुँचा सकते हैं। निद्रित व्यक्ति की जानकारी से परे वह उसमें ऐसे दुर्गुण डाल सकते हैं।
जो उसे विनाश के कगार तक पहुँचा दे। यह इसका दुरुपयोग हुआ। किसी भी कलामर्मज्ञ को सदा उसके उस पक्ष का उपयोग करना चाहिए जिसमें लोगों का हित हो। अनहित वाले पहलू को गुप्त और असार्वजनिक ही रखना चाहिए। पर इन दिनों उलटा ही रहा हैं जो हानिकारक पहलू है उसका खुलकर प्रयोग हो रहा है यह वस्तुतः उसका अपमान हैं।
अचेतन स्तर की एक बड़ी विशेषता यह है कि वह किसी भी तथ्य को बड़ी आसानी से स्वीकार और सँजों लेता है । पी मोलोन ने एक पुस्तक लिखी है-” हिप्नोटिज्म-हेल और हेवन’ इस ग्रन्थ में उनने एक घटना का उल्लेख किया है और यह दर्शाने का प्रयास किया है कि अचेतन की सुविकसित और समुन्नत बनाने के उद्देश्य से यदि सम्मोहन का प्रयोग किया जाय तो जनसाधारण के लिए यह कितना लाभकारी सिद्ध होता है किन्तु यदि इसके पीछे विकृत मानसिकता हो तो वह समाज को कितनी अपार हानि पहुंचाती है।
घटना की चर्चा करते हुए वे लिखते हैं कि मिशिगन कालेज के कुछ पुस्तक हाथ लग गई । उनने उसके आर पर कुछ प्रयोग करने का निश्चय किया । एक दिन छात्रावास में अपने एक मित्र को सम्मोहित कर दिया। अब उन्हें कुछ मसखरी सूझी तो सम्मोहित छात्र पर रबड़ के एक बर्तन ट्ष्ब के यहसो एयकर कनसई में बूँद -बूंद पानी टपकाना आरम्भ किया और छात्र को बताया कि उसकी नस काट दी गयी है। खून उसमें तेजी से निकल रहा है। अब कुछ ही देर में उसकी मृत्यु सुनिश्चित है कुछ देर तक इस तरह का संदेश देने के उपरान्त सचमुच उस छात्र की मृत्यु हो गई है। इस घटना के पश्चात सम्पूर्ण अमेरिका में सम्मोहन पर पाबन्दी लगा दी गई।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है। कि चेतन की तुलना में अचेतन को प्रशिक्षित-विकसित अधिक सुगमता-पूर्वक किया जा सकता है। साधना विज्ञान में इसके लिए अनेकानेक उपाय सुझाये गये इन उपायों को अपनाया जा सके, तो आज भी व्यक्ति अचेतन मस्तिष्क के उन रहस्यमय केन्द्रों को जगाने और उभारने में सफलता हस्तगत कर सकता है जिसके जाग्रत होने पर क्षुद्र से महान और नर से नारायण में बदल जानें की बात कही गई हैं।