Magazine - Year 1998 - Version 2
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Language: HINDI
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किसी भ्रान्ति में न रहें, क्रान्ति होकर रहेगी
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आजकल सारी दुनिया एक असाधारण संक्रमण प्रक्रिया से गुजर रही है। राजनैतिक, आर्थिक और अन्य क्षेत्रों में संकटग्रस्त स्थिति के बारे में रोज ही पढ़ा जाता है। पिछले महायुद्धों और आने वाले सम्भावित युद्धों के बारे में सोचकर हर एक का मन सशंकित है। विवेकवान और दिव्यदर्शी जानते हैं कि जिन महान परिवर्तनों के बीच हम आजकल गुजर रहे हैं, वैसा मानव जीवन के पूर्व इतिहास में कभी नहीं हुआ। इतिहास के विराट ज्ञान में इसकी कोई मिसाल नहीं दिखाई देती। हो सकता है कि हर कोई उन विषयों को कुछ भी महत्व न दे, जिनके बारे में रोज सुना, देखा और अनुभव किया जाता है लेकिन इन सबका व्यापक लेखा-जोखा करने पर विचारशीलों के मन में यह अनुभूति सघन हो जाती है कि हम एक महान क्रान्ति से गुजर रहे हैं, जिससे सारे मानव समाज का ढाँचा पलटना अवश्यम्भावी है। यह एक बहुत बड़ी बात है कि हम सब इस महापरिवर्तन के समय मौजूद हैं।
ऐसे में समय का तकाजा यही है कि हम अपनी समस्याओं पर इस दृष्टिकोण से विचार करें। दुनिया भर में राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक परिवर्तन अवश्य होंगे। यह बात सुनिश्चित तौर पर कही जा सकती है कि दुनिया के जिस पुराने ढाँचे के आधार पर चलकर सारा संसार पिछले वर्षों मुसीबत में फँसता रहा है, उसे बदलना ही होगा। यदि हम वर्तमान समस्याओं को सुलझाने, युद्धों को टालने, शान्ति और सुशासन स्थापित करने का प्रयत्न करना चाहते हैं तो हमें इस दुनिया की नई रचना करनी होगी। नवयुग का सूत्रपात ही एकमात्र हल है।
यह अनुभूति स्पष्ट है कि आज जो राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर संकट उभरा है, उसकी जड़े गहरी हैं। उसे मनोवैज्ञानिक कहिए या आध्यात्मिक, उसका सम्बन्ध मनुष्य की आत्मा से है। इससे अधिक एवं व्यापक उसकी व्याख्या सम्भव नहीं है। आज दुनिया एक गहरी आत्मिक उथल-पुथल से गुजर रही है। सम्प्रदायों के संकुचित अर्थों में नहीं, न ही पोथियों के पन्नों में कैद शब्दों के सीमित दायरे में इस सत्य को समझा जा सकता है। यह तो समस्त मानवीय चेतना का तीव्र मंथन है, जो व्यक्ति ही नहीं, राष्ट्रों की परिधि में भी व्यापक है। इसकी परिणति मानवता के आमूलचूल परिवर्तन के रूप में होगी।
यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है, साथ ही एक महान चुनौती है। हममें से प्रत्येक के सामने इसे स्वीकार करने के सिवा और कोई चारा नहीं। यह हम सबको अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि हम बड़ी-बड़ी घटनाओं के अति निकट खड़े हैं। एक के बाद एक तीव्र वेग से आने वाली घटनाएँ कष्ट में, मुसीबत में फँसा सकती हैं। परन्तु इस सबके बदले हमें एक नवीन और सुन्दर भविष्य आगत के रूप में देखना चाहिए। हिमालय के दिव्य क्षेत्र से आध्यात्मिक धाराएँ पुनः सक्रिय रूप से प्रवाहित हो चली हैं। इनके कल-कल निनाद में सतत् यही ध्वनि गूँजती है- “किसी भ्रान्ति में न रहें, क्रान्ति होकर रहेगी। समय रहते चेतें और स्वयं को तैयार करें।”