Magazine - Year 1999 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
पुरुषार्थ की दिशा
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
हम कहाँ पहुँच गये? यह तो हमारा अभीष्ट स्थान नहीं। हमें यहाँ चैन नहीं मिल सकता। हम ऐसी स्थिति में क्यों पहुँचे, कैसे पहुँचे, किसकी भूल थी-इस ओर देखें या न देखें-यह देखना सार्थक हो या निरर्थक पर हमें यह सहन नहीं। इससे तो हटना ही पड़ेगा-बचना ही होगा। अवांछनीय परिस्थितियों में पड़े हुए, अपने पीड़ित अनुभव करने वाले व्यक्ति अगणित हैं। उन सबकी एक ही कामना-आकांक्षा होती है कि हम इस स्थिति से बाहर निकलें। ऐसी स्थिति का हर व्यक्ति कुछ-न-कुछ उपक्रम भी उसके लिए अपनाता ही है।
लेकिन कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते हैं, जो मात्र रोना ही रोते रहते हैं। अपने प्रयत्न का सबसे सार्थक पक्ष उन्हें यही दिखता है कि अपनी अवांछनीय परिस्थितियों के लिए किसी अन्य को दोषी ठहरा दें। भगवान से लेकर अपने आस-पास के किसी व्यक्ति को उसका लाँछन देने-उसका कारण सिद्ध करने में ही वह सारी अकल खर्च कर देते हैं। इससे उन्हें झूठा संतोष भले ही मिल जाता हो, पर उस यंत्रणा से मुक्ति तो मिल ही नहीं सकती।
कुछ व्यक्ति ऐसे समय पर परिस्थितियों से समझौता कर लेते हैं तथा उन्हीं हालातों में मरते -खपते रहने के लिए किसी प्रकार मन पक्का कर लेते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने समय-श्रम व सूझ-बूझ को विषम स्थितियों की प्रतिक्रियाओं को नहीं मूल कारणों को देखते हैं तथा उन्हें ही ठीक करने के लिए दम-खम्भ के साथ उतर पड़ते हैं। समय-श्रम और सूझ-बूझ उनकी भी लगती है, पर एक-एक कदम पर उनकी सार्थकता अधिक से अधिक होती जाती है। एक कारण का निवारण हो जाने पर उनकी अनेक कठिनाइयाँ अनायास ही सरल होती चली जाती है।
पुरुषार्थ की दिशा यदि सही नहीं है, तो धुँआधार काम करके भी परिणाम नहीं के बराबर ही रह जाना स्वाभाविक है। हाय-तौबा मचाते रहना, रोना रोते रहना, दोष किस पर मंढ़े? इसके प्रयास करते रहना भी एक प्रकार का पुरुषार्थ ही तो ही है, भले ही उसे दिशाविहीन कहा जाय।
बड़े परिवर्तन सदैव सही दिशा में कार्य करने वाले पुरुषार्थियों द्वारा संभव हुए हैं। महात्मा बुद्ध हों या फिर स्वामी विवेकानन्द सभी के साथ यह बात लागू होती है। वर्तमान परिवर्तनचक्र भी इससे भिन्न सिद्धांतों पर नहीं चल सकता। जो भी व्यक्ति इस युगपरिवर्तन के लिए की जाने वाली महासाधना के लिए आगे आएँगे, वे सभी इस दिशा में किये गए प्रखर पुरुषार्थ की मर्यादा से ही अपने बढ़ेंगे। जिनमें समझदारी का अंश है, उन्हें अवश्यंभावी परिवर्तन तथा उसकी आवश्यक शर्तों पर ध्यान देते हुए आज ही अपने पुरुषार्थ की सही दिशा तय कर लेनी चाहिए।