Books - आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना
Media: TEXT
Language: EN
Language: EN
संस्कारों की सुलभ व्यवस्था
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
शान्तिकुञ्ज में यज्ञोपवीत संस्कार और विवाह संस्कार कराने की भी
सुव्यवस्था है। इस प्रयोजन में प्राय: आडम्बर बहुत होता देखा जाता है।
खर्चीले रस्मों रिवाज भी पूरे करने पड़ते हैं, इसलिए उनकी ओर हर किसी की
उपेक्षा बढ़ती जाती है। शान्तिकुञ्ज में यह भी कृत्य बिना खर्च के होते
हैं, इसलिए परिजनों के परिवारों में यह प्रचलन विशेष रूप से चल पड़ा है कि
यज्ञोपवीत धारण के साथ जुड़ी हुई गायत्री मंत्र की अवधारणा इसी पुण्य भूमि
में सम्पन्न कराई जाये।
स्पष्ट है कि खर्चीली शादियाँ हमें दरिद्र और बेईमान बनाती हैं। बिना दहेज और जेवर वाली शादियाँ प्राय: स्थानीय प्रतिगामिता के बीच ठीक तरह बिना विरोध के बन नहीं पड़तीं। इसलिए विगत लम्बे समय से चलने वाली ९ कुण्डों की यज्ञशाला का दैवी प्रभाव अनुभव करते हुए संस्कार सम्पन्न कराने के लिए गायत्री माता के संस्कारों से अनुप्राणित, यह स्थान ही अधिक उपयुक्त माना जाता है। हर वर्ष बड़ी संख्या में ऐसे विवाह यहाँ सम्पन्न होते रहते हैं।
साधना के लिए, विशेषतया गायत्री उपासना के लिए शान्तिकुञ्ज में यह उपक्रम सम्पन्न करना सोने और सुगन्ध के सम्मिश्रण जैसा काम देता है।
इस भूमि में रहकर साधना करने की इसलिए भी अधिक महत्ता है कि उसके साथ युगसन्धि महापुरश्चरण की प्रचण्ड प्रक्रिया भी अनायास ही जुड़ जाती है और प्रतिभा परिष्कार का वह प्रयोजन भी पूरा होता है, जिसके माध्यम से भावी शताब्दी में महामानवों के स्तर की भूमिका निबाहने का सुयोग बन पड़ता है। युगशक्ति गायत्री का, मिशन के संचालन को दिया गया यह आश्वासन जो है।
प्रस्तुत पुस्तक को ज्यादा से ज्यादा प्रचार- प्रसार कर अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने एवं पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने का अनुरोध है।
स्पष्ट है कि खर्चीली शादियाँ हमें दरिद्र और बेईमान बनाती हैं। बिना दहेज और जेवर वाली शादियाँ प्राय: स्थानीय प्रतिगामिता के बीच ठीक तरह बिना विरोध के बन नहीं पड़तीं। इसलिए विगत लम्बे समय से चलने वाली ९ कुण्डों की यज्ञशाला का दैवी प्रभाव अनुभव करते हुए संस्कार सम्पन्न कराने के लिए गायत्री माता के संस्कारों से अनुप्राणित, यह स्थान ही अधिक उपयुक्त माना जाता है। हर वर्ष बड़ी संख्या में ऐसे विवाह यहाँ सम्पन्न होते रहते हैं।
साधना के लिए, विशेषतया गायत्री उपासना के लिए शान्तिकुञ्ज में यह उपक्रम सम्पन्न करना सोने और सुगन्ध के सम्मिश्रण जैसा काम देता है।
इस भूमि में रहकर साधना करने की इसलिए भी अधिक महत्ता है कि उसके साथ युगसन्धि महापुरश्चरण की प्रचण्ड प्रक्रिया भी अनायास ही जुड़ जाती है और प्रतिभा परिष्कार का वह प्रयोजन भी पूरा होता है, जिसके माध्यम से भावी शताब्दी में महामानवों के स्तर की भूमिका निबाहने का सुयोग बन पड़ता है। युगशक्ति गायत्री का, मिशन के संचालन को दिया गया यह आश्वासन जो है।
प्रस्तुत पुस्तक को ज्यादा से ज्यादा प्रचार- प्रसार कर अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने एवं पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने का अनुरोध है।