Books - अमर वाणी -2
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Language: HINDI
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इस अभियान के साधन यों जुटेंगे
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छोटी-सी इमारत बनाने के लिए ईंट-चूने की, लोहा-लकड़ी की, पूँजी-श्रम एवं कौशल की आवश्यकता पड़ती है। फिर विश्व के नवनिर्माण जैसे अत्यन्त विशाल काम के प्रयोजनों को पूरा करने के लिए भी साधनों की तो आवश्यकता पड़ेगी ही। इन्हें कहाँ से जुटाया जायेगा, कैसे जुटाया जायेगा? इस प्रश्न पर योजना के निर्माताओं ने पहले ही विचार कर लिया है।
युग निर्माण परिवार के परिजनों द्वारा इस आन्दोलन का आरंभ किया गया है और उसे अग्रगामी बनाया जा रहा है। अस्तु, उनके ऊपर ही यह उत्तरदायित्व भी डाला गया है कि वे अपनी श्रद्धा, सद्भावना, सहानुभूति की भाव प्रक्रिया को व्यवहार क्षेत्र में विकसित करें। अपने श्रम का एक अंश और अपनी आजीविका का एक भाग इस महान् मिशन के लिए नियमित रूप से समर्पित करते रहने का व्रत ग्रहण करें। इसे इस भाव भरे विशाल परिवार द्वारा सहर्ष स्वीकारा भी गया है। उसी अनुदान का परिणाम है कि अब तक इतना आशाजनक और उत्साहवर्द्धक रचनात्मक कार्य संभव हो सका है।
दूसरा द्वार विभूतिवानों का खटखटाया जा रहा है। भावनाशील लोगों से कहा जा रहा है कि यदि उनकी अन्तरात्मा में मानव जीवन की महत्ता के अनुरूप कुछ उच्चस्तरीय कार्य करने की आकांक्षा जाग्रत् हो रही है, आत्मा यदि ईश्वर के सान्निध्य, साक्षात्कार को तड़प रही है, तो उन्हें इस विशाल विश्व को प्रभु की, साकार भगवान् की अपने श्रम बिन्दुओं से अर्चना करनी चाहिए। अपने देश में भावनाओं की कमी नहीं, त्याग बलिदान से लेकर पुण्य-परमार्थ तक के प्रयोजनों के लिए बहुत कुछ किया जाता रहता है। पर दुर्भाग्य यही है कि उस भावनात्मक विभूति को दिशा नहीं मिली। अपने देश में ८४ लाख साधु-महात्मा हैं। ७ लाख गाँव हंै। एक गाँव पीछे बारह साधुओं का औसत आता है। यदि वे इस क्रम से बिखर जायें और योजनाबद्ध होकर कार्य करें, तो आलस्य, प्रमाद, व्यसन, अपराध, अनाचार एवं अनैतिकता, मूढ़-मान्यता, निरक्षरता, सामाजिक कुरीतियों व परम्पराओं का सहज ही उन्मूलन कर सकते हैं। इतने अधिक लोक-सेवियों की सहायता से राष्ट्र का कायाकल्प हो सकता है।
युग निर्माण योजना ने इस भावुक वर्ग के हर पक्ष से गृही और विरक्त, उदार सहृदय व्यक्तियों को झकझोरा है कि वे अपनी उदात्त भावनाओं का सदुपयोग करें। अपनी सहृदय सद्भावना से नर नारायण को लाभान्वित होने दें। दरिद्र नारायण को उनकी उदार सद्भावना की स्नेहसिक्त सहायता मिल सके, इसका प्रयास करें।
इसी प्रकार विद्या विभूति से सम्पन्न लोगों से कहा गया कि उनकी मस्तिष्कीय उपलब्धियाँ उन्हीं के लिए सीमित न रहें, वरन् समाज का पिछड़ापन और व्यक्ति का अधःपतन रोकने के काम आयें। प्रतिभावानों को चुनौती दी गई है कि वे अपनी चतुरता एवं कुशलता का परिचय नव निर्माण के कर्मक्षेत्र में प्रस्तुत करें। अपने व्यक्तित्व की विशेषता को, धैर्य, साहस, शौर्य को इस कसौटी पर चढ़ने दें कि उन्होंने अपने बलबूते पर सृजन अभियान में क्या योगदान दिया और अपने प्रभाव से कितनों को इस प्रयोजन में लगाया। धनवानों से अनुरोध किया है कि वे बेटे से पोतों को सात पीढ़ियों तक ब्याज-भाड़े की कमाई खाने और अमीरों के गुलछर्रे उड़ाने की योजना बनाना बन्द करें। संग्रह से बाज आयें। विलासिता और अहंता से हाथ रोकें। कमाई का एक अंश युग की सबसे बड़ी आवश्यकता के लिये, भावनात्मक नवनिर्माण के लिए प्रस्तुत करें। स्वर्ग के लिये, यश के लिए नहीं मानवी महानता का अग्रिम वर्द्धन करने के लिए बढ़-चढ़कर अनुदान प्रस्तुत करें, यत्किंचित देकर दान लकीर न पीटें।
कलाकारों को कहा गया है कि उनमें साहित्य निर्माण की, काव्य रचना की, मधुर स्वर की, गायन की, मूर्तिकला और चित्रकला जैसी विशेषताएँ हैं, तो उसका उपयोग जनमानस में उदात्त भावनाएँ उभारने के लिए करें।
प्रसन्नता की बात है कि यह उद्बोधन निरर्थक नहीं जा रहा है। विभूतिवान् वर्ग को यह अनुभव करने का अवसर मिला है कि उन्हें जो अतिरिक्त विशेषताएँ ईश्वर ने प्रदान की हैं, उनकी सार्थकता इसी में है कि वे वंश, धर्म, समाज और संस्कृति के पुनरुत्थान को संभव बनाने वाले इस व्यापक अभियान में भाग लेकर अपनी विभूतियों का श्रेष्ठतम सदुपयोग करें। आशा की जानी चाहिए कि यथार्थता की उपयोगिता को अगले दिनों समझा जायेगा और विभूतिवान् वर्ग आगे आकर अभियान की आवश्यकता अपने सहज अनुदान से पूरा करेगा।युग निर्माण परिवार के परिजनों का वर्ग आरम्भ से ही काम कर रहा है। विभूतिवानों को खटखटाया और जगाया जा रहा है। आग्रह-अनुरोध के अतिरिक्त उन्हें यह भी कहा जा रहा है कि भावना, विद्या, प्रतिभा सम्पति, कला यह पाँचों ही विभूतियाँ भगवान् की विशेष अमानतें हैं, उन्हें यदि लोक-मंगल में प्रयुक्त करने में कृपणता की और अपने हेय स्वार्थों की पूर्ति में ही उनको लगाते रहे, तो प्रकारान्तर से यह एक अपराध होगा, जिसका दण्ड उन्हें जनता की ओर से भगवान् की अदालत में भुगतना पड़ेगा। अनुरोध कारगर न हुआ, तो अगले ही दिनों यह भी कहा जाएगा कि वह इन अपराधों को सुधारने के लिए कारगर उपाय अपनाएँ। यद्यपि अभी यह असमंजसपूर्ण क्षेत्र है, पर विश्वास किया गया है कि नवनिर्माण के अभियान में देर-सबेर में विभूतियों का उपयोग किया जा सकेगा। इस दिशा में प्रगति भी हो रही है।
तीसरा वर्ग जनता का है। उसे भी नवनिर्माण के लिए आवश्यक योगदान करने के लिए कहा गया है। आरम्भ में केवल युग निर्माण परिवार के सदस्य न्यूनतम अनुदान के रूप में एक घंटा श्रमदान और दस पैसे का अनुदान दे रहे हैं। यही कदम उठाने के लिए सर्वसाधारण को कह रहे हैं। इस आन्दोलन से प्रभावित हर व्यक्ति को नवनिर्माण के लिए समय दान-श्रमदान किसी न किसी रूप में करना ही चाहिए। अब भगवान् गंगाजल, गुलाबजल और पंचामृत से स्नान करके सन्तुष्ट होने वाले नहीं हैं। उनकी माँग श्रम बिन्दुओं की है। अब भगवान् का सच्चा भक्त वह माना जायेगा, जो पसीने की बूँदों से उन्हें स्नान कराये। नवनिर्माण के लिये अपना शारीरिक श्रम नित्य-नियमित रूप से करते रहने का व्रत ले।
इसी प्रकार जनसाधारण को यह कहा जा रहा है कि अपने परिवार का सदस्य ‘नवयुग’ अवतरण अनुष्ठान को भी मान लेना चाहिए। घर में, परिवार में यदि पाँच व्यक्ति हैं तो छठा नवनिर्माण समझा जाना चाहिए और एक बढ़े हुए सदस्य के भरण-पोषण में जो खर्च पड़ता है, वह युग परिवर्तन के लिए प्रस्तुत करना चाहिए। यह प्रवृत्ति तब पनपेगी जबकि हर व्यक्ति यह अनुभव करेगा कि उसके शारीरिक, पारिवारिक उत्तरदायित्व में ही एक समाज के नवनिर्माण का प्रयोजन भी जुड़ा हुआ है। तब मात्र मौखिक चर्चा तक वह सीमित न होगा, वरन् उस दिशा में कुछ शुरू करेगा। करने के लिए तो काम यह है कि हर भावनाशील व्यक्ति को अपने श्रम बिन्दुओं का, अपनी आजीविका के एक अंश का अनुदान नियमित रूप से प्रस्तुत करना चाहिए।
विश्वास किया गया है कि यह प्रवृत्ति जनसाधारण में निश्चित रूप से पनपेगी और जब वह पनपेगी तो नव-निर्माण के विशालकाय अभियान में काम आने वाले साधन सहज ही जुटते चले जायेंगे। व्यक्ति विशेष का बड़े से बड़ा अनुदान तुच्छ है। जनता का एक बूँद अनुदान इकट्ठा होकर वह समुद्र के बराबर बन सकता है, कोटि-कोटि जन-साधारण का एक-एक रज कण एकत्रित होकर एक बड़ा पहाड़ बन सकता है। जनशक्ति को विश्व की महानतम शक्ति कह सकते हैं। जहाँ वह है वहाँ किसी भी वस्तु की कमी नहीं रह सकती। जहाँ यह नहीं है वहाँ बहुत कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है, यह मानना होगा।
युग निर्माण आन्दोलन की संरचना के लिये आवश्यक साधन जुटाने के लिए जो आधार सोचे गये हैं, प्रयुक्त किये गए हैं तथा जिन पर आशा केन्द्र स्थिर किये गए हैं इनमें (१)युग निर्माण परिवार के परिजनों द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले समयदान तथा नियमित अनुदान, (२) विभूतिवान् आत्माओं के संभावित सहयोग को (३) जनसाधारण के श्रमदान तथा अपने परिवार में एक नया सदस्य नवयुग अभियान मानने को प्रधानता दी गई है और यह आशा हो गई है कि इन तीन आधारों पर वे सभी साधन जुटाये जा सकेंगे, जिनकी युग परिवर्तन के लिए आवश्यकता पड़ेगी। -वाङ्मय-६६.१.२८-३०
युग निर्माण परिवार के परिजनों द्वारा इस आन्दोलन का आरंभ किया गया है और उसे अग्रगामी बनाया जा रहा है। अस्तु, उनके ऊपर ही यह उत्तरदायित्व भी डाला गया है कि वे अपनी श्रद्धा, सद्भावना, सहानुभूति की भाव प्रक्रिया को व्यवहार क्षेत्र में विकसित करें। अपने श्रम का एक अंश और अपनी आजीविका का एक भाग इस महान् मिशन के लिए नियमित रूप से समर्पित करते रहने का व्रत ग्रहण करें। इसे इस भाव भरे विशाल परिवार द्वारा सहर्ष स्वीकारा भी गया है। उसी अनुदान का परिणाम है कि अब तक इतना आशाजनक और उत्साहवर्द्धक रचनात्मक कार्य संभव हो सका है।
दूसरा द्वार विभूतिवानों का खटखटाया जा रहा है। भावनाशील लोगों से कहा जा रहा है कि यदि उनकी अन्तरात्मा में मानव जीवन की महत्ता के अनुरूप कुछ उच्चस्तरीय कार्य करने की आकांक्षा जाग्रत् हो रही है, आत्मा यदि ईश्वर के सान्निध्य, साक्षात्कार को तड़प रही है, तो उन्हें इस विशाल विश्व को प्रभु की, साकार भगवान् की अपने श्रम बिन्दुओं से अर्चना करनी चाहिए। अपने देश में भावनाओं की कमी नहीं, त्याग बलिदान से लेकर पुण्य-परमार्थ तक के प्रयोजनों के लिए बहुत कुछ किया जाता रहता है। पर दुर्भाग्य यही है कि उस भावनात्मक विभूति को दिशा नहीं मिली। अपने देश में ८४ लाख साधु-महात्मा हैं। ७ लाख गाँव हंै। एक गाँव पीछे बारह साधुओं का औसत आता है। यदि वे इस क्रम से बिखर जायें और योजनाबद्ध होकर कार्य करें, तो आलस्य, प्रमाद, व्यसन, अपराध, अनाचार एवं अनैतिकता, मूढ़-मान्यता, निरक्षरता, सामाजिक कुरीतियों व परम्पराओं का सहज ही उन्मूलन कर सकते हैं। इतने अधिक लोक-सेवियों की सहायता से राष्ट्र का कायाकल्प हो सकता है।
युग निर्माण योजना ने इस भावुक वर्ग के हर पक्ष से गृही और विरक्त, उदार सहृदय व्यक्तियों को झकझोरा है कि वे अपनी उदात्त भावनाओं का सदुपयोग करें। अपनी सहृदय सद्भावना से नर नारायण को लाभान्वित होने दें। दरिद्र नारायण को उनकी उदार सद्भावना की स्नेहसिक्त सहायता मिल सके, इसका प्रयास करें।
इसी प्रकार विद्या विभूति से सम्पन्न लोगों से कहा गया कि उनकी मस्तिष्कीय उपलब्धियाँ उन्हीं के लिए सीमित न रहें, वरन् समाज का पिछड़ापन और व्यक्ति का अधःपतन रोकने के काम आयें। प्रतिभावानों को चुनौती दी गई है कि वे अपनी चतुरता एवं कुशलता का परिचय नव निर्माण के कर्मक्षेत्र में प्रस्तुत करें। अपने व्यक्तित्व की विशेषता को, धैर्य, साहस, शौर्य को इस कसौटी पर चढ़ने दें कि उन्होंने अपने बलबूते पर सृजन अभियान में क्या योगदान दिया और अपने प्रभाव से कितनों को इस प्रयोजन में लगाया। धनवानों से अनुरोध किया है कि वे बेटे से पोतों को सात पीढ़ियों तक ब्याज-भाड़े की कमाई खाने और अमीरों के गुलछर्रे उड़ाने की योजना बनाना बन्द करें। संग्रह से बाज आयें। विलासिता और अहंता से हाथ रोकें। कमाई का एक अंश युग की सबसे बड़ी आवश्यकता के लिये, भावनात्मक नवनिर्माण के लिए प्रस्तुत करें। स्वर्ग के लिये, यश के लिए नहीं मानवी महानता का अग्रिम वर्द्धन करने के लिए बढ़-चढ़कर अनुदान प्रस्तुत करें, यत्किंचित देकर दान लकीर न पीटें।
कलाकारों को कहा गया है कि उनमें साहित्य निर्माण की, काव्य रचना की, मधुर स्वर की, गायन की, मूर्तिकला और चित्रकला जैसी विशेषताएँ हैं, तो उसका उपयोग जनमानस में उदात्त भावनाएँ उभारने के लिए करें।
प्रसन्नता की बात है कि यह उद्बोधन निरर्थक नहीं जा रहा है। विभूतिवान् वर्ग को यह अनुभव करने का अवसर मिला है कि उन्हें जो अतिरिक्त विशेषताएँ ईश्वर ने प्रदान की हैं, उनकी सार्थकता इसी में है कि वे वंश, धर्म, समाज और संस्कृति के पुनरुत्थान को संभव बनाने वाले इस व्यापक अभियान में भाग लेकर अपनी विभूतियों का श्रेष्ठतम सदुपयोग करें। आशा की जानी चाहिए कि यथार्थता की उपयोगिता को अगले दिनों समझा जायेगा और विभूतिवान् वर्ग आगे आकर अभियान की आवश्यकता अपने सहज अनुदान से पूरा करेगा।युग निर्माण परिवार के परिजनों का वर्ग आरम्भ से ही काम कर रहा है। विभूतिवानों को खटखटाया और जगाया जा रहा है। आग्रह-अनुरोध के अतिरिक्त उन्हें यह भी कहा जा रहा है कि भावना, विद्या, प्रतिभा सम्पति, कला यह पाँचों ही विभूतियाँ भगवान् की विशेष अमानतें हैं, उन्हें यदि लोक-मंगल में प्रयुक्त करने में कृपणता की और अपने हेय स्वार्थों की पूर्ति में ही उनको लगाते रहे, तो प्रकारान्तर से यह एक अपराध होगा, जिसका दण्ड उन्हें जनता की ओर से भगवान् की अदालत में भुगतना पड़ेगा। अनुरोध कारगर न हुआ, तो अगले ही दिनों यह भी कहा जाएगा कि वह इन अपराधों को सुधारने के लिए कारगर उपाय अपनाएँ। यद्यपि अभी यह असमंजसपूर्ण क्षेत्र है, पर विश्वास किया गया है कि नवनिर्माण के अभियान में देर-सबेर में विभूतियों का उपयोग किया जा सकेगा। इस दिशा में प्रगति भी हो रही है।
तीसरा वर्ग जनता का है। उसे भी नवनिर्माण के लिए आवश्यक योगदान करने के लिए कहा गया है। आरम्भ में केवल युग निर्माण परिवार के सदस्य न्यूनतम अनुदान के रूप में एक घंटा श्रमदान और दस पैसे का अनुदान दे रहे हैं। यही कदम उठाने के लिए सर्वसाधारण को कह रहे हैं। इस आन्दोलन से प्रभावित हर व्यक्ति को नवनिर्माण के लिए समय दान-श्रमदान किसी न किसी रूप में करना ही चाहिए। अब भगवान् गंगाजल, गुलाबजल और पंचामृत से स्नान करके सन्तुष्ट होने वाले नहीं हैं। उनकी माँग श्रम बिन्दुओं की है। अब भगवान् का सच्चा भक्त वह माना जायेगा, जो पसीने की बूँदों से उन्हें स्नान कराये। नवनिर्माण के लिये अपना शारीरिक श्रम नित्य-नियमित रूप से करते रहने का व्रत ले।
इसी प्रकार जनसाधारण को यह कहा जा रहा है कि अपने परिवार का सदस्य ‘नवयुग’ अवतरण अनुष्ठान को भी मान लेना चाहिए। घर में, परिवार में यदि पाँच व्यक्ति हैं तो छठा नवनिर्माण समझा जाना चाहिए और एक बढ़े हुए सदस्य के भरण-पोषण में जो खर्च पड़ता है, वह युग परिवर्तन के लिए प्रस्तुत करना चाहिए। यह प्रवृत्ति तब पनपेगी जबकि हर व्यक्ति यह अनुभव करेगा कि उसके शारीरिक, पारिवारिक उत्तरदायित्व में ही एक समाज के नवनिर्माण का प्रयोजन भी जुड़ा हुआ है। तब मात्र मौखिक चर्चा तक वह सीमित न होगा, वरन् उस दिशा में कुछ शुरू करेगा। करने के लिए तो काम यह है कि हर भावनाशील व्यक्ति को अपने श्रम बिन्दुओं का, अपनी आजीविका के एक अंश का अनुदान नियमित रूप से प्रस्तुत करना चाहिए।
विश्वास किया गया है कि यह प्रवृत्ति जनसाधारण में निश्चित रूप से पनपेगी और जब वह पनपेगी तो नव-निर्माण के विशालकाय अभियान में काम आने वाले साधन सहज ही जुटते चले जायेंगे। व्यक्ति विशेष का बड़े से बड़ा अनुदान तुच्छ है। जनता का एक बूँद अनुदान इकट्ठा होकर वह समुद्र के बराबर बन सकता है, कोटि-कोटि जन-साधारण का एक-एक रज कण एकत्रित होकर एक बड़ा पहाड़ बन सकता है। जनशक्ति को विश्व की महानतम शक्ति कह सकते हैं। जहाँ वह है वहाँ किसी भी वस्तु की कमी नहीं रह सकती। जहाँ यह नहीं है वहाँ बहुत कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है, यह मानना होगा।
युग निर्माण आन्दोलन की संरचना के लिये आवश्यक साधन जुटाने के लिए जो आधार सोचे गये हैं, प्रयुक्त किये गए हैं तथा जिन पर आशा केन्द्र स्थिर किये गए हैं इनमें (१)युग निर्माण परिवार के परिजनों द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले समयदान तथा नियमित अनुदान, (२) विभूतिवान् आत्माओं के संभावित सहयोग को (३) जनसाधारण के श्रमदान तथा अपने परिवार में एक नया सदस्य नवयुग अभियान मानने को प्रधानता दी गई है और यह आशा हो गई है कि इन तीन आधारों पर वे सभी साधन जुटाये जा सकेंगे, जिनकी युग परिवर्तन के लिए आवश्यकता पड़ेगी। -वाङ्मय-६६.१.२८-३०