Books - बाल संस्कारशाला मार्गदर्शिका
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Language: HINDI
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अध्याय- ७ योग व्यायाम-प्राणायाम
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प्राणायाम ऋषियों की महान् देन में से प्राणायाम मनुष्य की प्राणशक्ति को बढ़ाने, अभिवर्द्धन करने हेतु एक विद्या है। प्राण शक्ति के अभिवर्द्धन से सामान्य व्यक्ति भी असाधारण कार्य कर सकता है। संतों- महापुरुषों में प्राण की अधिकता ही उन्हें महान् बनाती है। विश्व ब्रह्माण्ड में प्राण का अनन्त सरोवर लहरा रहा है। सामान्य रूप से श्वास- प्रश्वास के साथ काया में उतने ही प्राण का संचार होता है जिससे शरीर में प्राण टिका रह सके। उसकी वृद्धि होती रहे इसके लिए प्राणयाम करना चाहिए। यहाँ प्राणायाम की कुछ सरल विधियाँ दी जा रही हैं। बालकों को दनका अभ्यास कराएँ।
१) अंतरंग व्यायाम परक प्राणायाम इसमें ३ चरण होते हैं। (१) पूरक (श्वांस खींचना), (२) कुम्भक (श्वांस अंदर रोकना) और (३) रेचक (श्वांस बाहर निकालना)। इस तरह के प्राणायामों में उक्त तीनों क्रियाओं में लगने वाले समय का अनुपात १:२:१ (अर्थात् जितने समय में श्वांस खींचा जाए उससे दो गुने समय तक अंदर रोका जाये और श्वांस छोड़ने में श्वांस खींचने जितना समय लगाया जाये। )) अथवा १:४:२ (अर्थात् जितने समय में श्वांस खींचा जाए उससे चार गुने समय तक श्वांस अंदर रोका जाये और श्वांस खींचने के समय से दो गुना समय, श्वांस छोड़ने में लगाया जाये।) इन प्राणायामों में १:२:१ मात्रा से ही अभ्यास प्रारम्भ करना चाहिये। जब इसका अभ्यास ठीक तरह से हो जाये तब १:४:२ की मात्रा अपनाना उचित है।
२) तालयुक्त श्वांस- किसी भी आसन पर सीधे बैठकर तालयुक्त श्वांस का अभ्यास किया जाए। श्वांस खींचने और छोड़ने में समान समय लगाएँ। श्वांस को जितनी देर बाहर रोक सकें, उतनी ही देर अंदर रोकें। इस प्रकार श्वांस लयबद्ध होने लगती है। यह अभ्यास हो जाने पर श्वांस के साथ प्राण प्रवाह को शरीर के विभिन्न अंगों में प्रवाहित होने का ध्यान करें। भावना करें कि शरीर के प्राण प्रवाह के तमाम विकारों और दुर्बलताओं को यह शुद्ध प्राण प्रवाह दूर कर रहा है। इस क्रिया के अभ्यास से पीड़ित अंगों की पीड़ा भी कम की जा सकती है। तालयुक्त श्वांस की क्रिया का अभ्यास सतत किया जा सकता है।
३) प्राणाकर्षण प्राणायाम- सुखासन में, मेरुदण्ड सीधा रखते हुए सहज स्थिति में बैठें। दोनों हाथ गोद में या घुटनों पर रखें, आँखें बन्द करें। ध्यान करें कि विश्व ब्रह्माण्ड में प्राण का अनन्त सागर हिलोरें ले रहा है। वह हमारे आवाहन पर हमारे चारों ओर घनीभूत हो रहा है।
धीरे- धीरे गहरी श्वांस खींचें। भावना करें कि दिव्य प्राण- प्रवाह श्वांस के साथ अन्दर प्रवेश कर रहा है तथा सारे शरीर में कोने- कोने तक पहुँच रहा है।
श्वांस रोकते हुए ध्यान करें कि दिव्य प्राण शरीर के कण- कण में सोखा जा रहा है और मलिन प्राण छोड़ा जा रहा है। श्वांस निकालते हुए भावना करें कि वायु के साथ मलिनताएँ बाहर निकल कर दूर चली जा रही हैं। श्वांस बाहर रोकते हुए ध्यान करें कि खींचा हुआ प्राण अन्दर स्थिर हो रहा है। बाहर श्रेष्ठ प्राण पुनः हिलोरें ले रहा है। श्वांस खींचने और निकालने में एक सा समय लगायें। अन्दर रोकने और बाहर रोकने में खींचने या छोड़ने से आधा समय ही लगायें। इस प्राणायाम से थोड़े प्रयास से ही दिव्य प्राण के बड़े अनुदान प्राप्त होते हैं।
४) नाड़ी शोधन प्राणायाम- नाड़ी शोधन प्राणायाम के लिये प्राणायाम की मुद्रा में बैठें। बायीं नासिका से श्वांस खींचें और उसी से छोड़ें। पूरक, रेचक, कुम्भक क्रमशः २:१:२:१ के निर्धारित क्रम से ३ बार श्वांस खींचना ३ बार निकालना। फिर यही क्रम दाहिने स्वर से अपनायें। फिर दोनों नासिका छिद्रों से गहरा श्वांस खींचें और मुंह से धीरे- धीरे उपयुक्त समय लगाते हुए रेचक करना चाहिये। यह एक प्राणायाम माना जाता है। इस प्रकार तीन बार क्रिया दोहराएँ। इसमें इड़ा, पिंगला, सुषुम्रा नाड़ी में प्राण का प्रवाह संतुलित किया जाता है।
इस प्रयोग में क्रमशः इड़ा, पिंगला और सुषुम्रा नाड़ियों में प्राणप्रवाह के साथ नाड़ी तंत्र के शोधन की भावना की जाती है। हर श्वांस के साथ दिव्य प्राण संचार तथा प्रश्वांस के साथ विकारों के बाहर फेंके जाने की धारणा की जाती है।
५) मानसिक शक्ति बढ़ाने के लिये प्राणायाम- दाहिने पैर की ऐड़ी, बाएँ पैर की जाँघ पर और बाएँ पैर की एड़ी गुदा पर रखें। ठोढ़ी को कंठ कूप से चिपकाएँ और नेत्र बंद करें। गहरा और लंबा श्वांस खींचें। थोड़ी देर भीतर रोक कर बाहर निकाल दें। इस क्रिया को कुछ देर तक दोहराएँ।
६) चित्त की ऐकाग्रता के लिये प्राणायाम- शवासन (शिथिलासन) में लेट जाओ। शरीर को बिल्कुल ढीला कर दो। कानों में रुई लगाकर नेत्र बंद कर लो, जिससे बाहर के शब्द सुनाई न पड़ें। दृष्टि नासिका के अग्र भाग पर रखो। साधारण रीति से गहरे साँस लेते और छोड़ते रहो, बीच में थोड़ा कुंभक भी करते रहो।
फिर नेत्रों की पुतलियों को ऊपर चढ़ाकर दोंनों भवों के मध्य- त्रिकुटी में दिव्य तेज कर ध्यान करो। कुछ निद्रा सी आये तो आने दो, उसे तोड़ो मत। इस अवस्था में ‘अनहद’ शब्द सुनाई पड़ते हैं और ज्योति स्वरूप परमात्मा के दर्शन होने से चित्त की एकाग्रता दिनों- दिन बढ़ती जाती है।
७) थकान मिटाने के लिये प्राणायाम- साधारण रीति से पूरक करें और वैसा ही थोड़ा कुंभक करें। रेचक मुँह से करें। मुँह को सिकोड़ कर इस प्रकार हवा बाहर फेंकें जैसे सीटी बजाते हैं। पूरी वायु एक बार में ही बाहर न निकालें, वरन् रुक- रुककर तीन बार में बाहर निकालें।
प्राणायाम से पुष्ट नाड़ी एवं चक्र तंत्र, जप- ध्यान आदि प्रयोगों से उत्पादित ऊर्जा के धारण और नियोजन में भली प्रकार सक्षम हो जाता है। आरोग्य शक्ति, संकल्प शक्ति, पूर्वाभास, विचार संचार (टेलीपैथी) जैसी क्षमताएँ अनायास हस्तगत होने लगती हैं। उच्चस्तरीय प्राणायाम कभी शांतिकुंज के शिविर में आकर सीख सकते हैं।
१) अंतरंग व्यायाम परक प्राणायाम इसमें ३ चरण होते हैं। (१) पूरक (श्वांस खींचना), (२) कुम्भक (श्वांस अंदर रोकना) और (३) रेचक (श्वांस बाहर निकालना)। इस तरह के प्राणायामों में उक्त तीनों क्रियाओं में लगने वाले समय का अनुपात १:२:१ (अर्थात् जितने समय में श्वांस खींचा जाए उससे दो गुने समय तक अंदर रोका जाये और श्वांस छोड़ने में श्वांस खींचने जितना समय लगाया जाये। )) अथवा १:४:२ (अर्थात् जितने समय में श्वांस खींचा जाए उससे चार गुने समय तक श्वांस अंदर रोका जाये और श्वांस खींचने के समय से दो गुना समय, श्वांस छोड़ने में लगाया जाये।) इन प्राणायामों में १:२:१ मात्रा से ही अभ्यास प्रारम्भ करना चाहिये। जब इसका अभ्यास ठीक तरह से हो जाये तब १:४:२ की मात्रा अपनाना उचित है।
२) तालयुक्त श्वांस- किसी भी आसन पर सीधे बैठकर तालयुक्त श्वांस का अभ्यास किया जाए। श्वांस खींचने और छोड़ने में समान समय लगाएँ। श्वांस को जितनी देर बाहर रोक सकें, उतनी ही देर अंदर रोकें। इस प्रकार श्वांस लयबद्ध होने लगती है। यह अभ्यास हो जाने पर श्वांस के साथ प्राण प्रवाह को शरीर के विभिन्न अंगों में प्रवाहित होने का ध्यान करें। भावना करें कि शरीर के प्राण प्रवाह के तमाम विकारों और दुर्बलताओं को यह शुद्ध प्राण प्रवाह दूर कर रहा है। इस क्रिया के अभ्यास से पीड़ित अंगों की पीड़ा भी कम की जा सकती है। तालयुक्त श्वांस की क्रिया का अभ्यास सतत किया जा सकता है।
३) प्राणाकर्षण प्राणायाम- सुखासन में, मेरुदण्ड सीधा रखते हुए सहज स्थिति में बैठें। दोनों हाथ गोद में या घुटनों पर रखें, आँखें बन्द करें। ध्यान करें कि विश्व ब्रह्माण्ड में प्राण का अनन्त सागर हिलोरें ले रहा है। वह हमारे आवाहन पर हमारे चारों ओर घनीभूत हो रहा है।
धीरे- धीरे गहरी श्वांस खींचें। भावना करें कि दिव्य प्राण- प्रवाह श्वांस के साथ अन्दर प्रवेश कर रहा है तथा सारे शरीर में कोने- कोने तक पहुँच रहा है।
श्वांस रोकते हुए ध्यान करें कि दिव्य प्राण शरीर के कण- कण में सोखा जा रहा है और मलिन प्राण छोड़ा जा रहा है। श्वांस निकालते हुए भावना करें कि वायु के साथ मलिनताएँ बाहर निकल कर दूर चली जा रही हैं। श्वांस बाहर रोकते हुए ध्यान करें कि खींचा हुआ प्राण अन्दर स्थिर हो रहा है। बाहर श्रेष्ठ प्राण पुनः हिलोरें ले रहा है। श्वांस खींचने और निकालने में एक सा समय लगायें। अन्दर रोकने और बाहर रोकने में खींचने या छोड़ने से आधा समय ही लगायें। इस प्राणायाम से थोड़े प्रयास से ही दिव्य प्राण के बड़े अनुदान प्राप्त होते हैं।
४) नाड़ी शोधन प्राणायाम- नाड़ी शोधन प्राणायाम के लिये प्राणायाम की मुद्रा में बैठें। बायीं नासिका से श्वांस खींचें और उसी से छोड़ें। पूरक, रेचक, कुम्भक क्रमशः २:१:२:१ के निर्धारित क्रम से ३ बार श्वांस खींचना ३ बार निकालना। फिर यही क्रम दाहिने स्वर से अपनायें। फिर दोनों नासिका छिद्रों से गहरा श्वांस खींचें और मुंह से धीरे- धीरे उपयुक्त समय लगाते हुए रेचक करना चाहिये। यह एक प्राणायाम माना जाता है। इस प्रकार तीन बार क्रिया दोहराएँ। इसमें इड़ा, पिंगला, सुषुम्रा नाड़ी में प्राण का प्रवाह संतुलित किया जाता है।
इस प्रयोग में क्रमशः इड़ा, पिंगला और सुषुम्रा नाड़ियों में प्राणप्रवाह के साथ नाड़ी तंत्र के शोधन की भावना की जाती है। हर श्वांस के साथ दिव्य प्राण संचार तथा प्रश्वांस के साथ विकारों के बाहर फेंके जाने की धारणा की जाती है।
५) मानसिक शक्ति बढ़ाने के लिये प्राणायाम- दाहिने पैर की ऐड़ी, बाएँ पैर की जाँघ पर और बाएँ पैर की एड़ी गुदा पर रखें। ठोढ़ी को कंठ कूप से चिपकाएँ और नेत्र बंद करें। गहरा और लंबा श्वांस खींचें। थोड़ी देर भीतर रोक कर बाहर निकाल दें। इस क्रिया को कुछ देर तक दोहराएँ।
६) चित्त की ऐकाग्रता के लिये प्राणायाम- शवासन (शिथिलासन) में लेट जाओ। शरीर को बिल्कुल ढीला कर दो। कानों में रुई लगाकर नेत्र बंद कर लो, जिससे बाहर के शब्द सुनाई न पड़ें। दृष्टि नासिका के अग्र भाग पर रखो। साधारण रीति से गहरे साँस लेते और छोड़ते रहो, बीच में थोड़ा कुंभक भी करते रहो।
फिर नेत्रों की पुतलियों को ऊपर चढ़ाकर दोंनों भवों के मध्य- त्रिकुटी में दिव्य तेज कर ध्यान करो। कुछ निद्रा सी आये तो आने दो, उसे तोड़ो मत। इस अवस्था में ‘अनहद’ शब्द सुनाई पड़ते हैं और ज्योति स्वरूप परमात्मा के दर्शन होने से चित्त की एकाग्रता दिनों- दिन बढ़ती जाती है।
७) थकान मिटाने के लिये प्राणायाम- साधारण रीति से पूरक करें और वैसा ही थोड़ा कुंभक करें। रेचक मुँह से करें। मुँह को सिकोड़ कर इस प्रकार हवा बाहर फेंकें जैसे सीटी बजाते हैं। पूरी वायु एक बार में ही बाहर न निकालें, वरन् रुक- रुककर तीन बार में बाहर निकालें।
प्राणायाम से पुष्ट नाड़ी एवं चक्र तंत्र, जप- ध्यान आदि प्रयोगों से उत्पादित ऊर्जा के धारण और नियोजन में भली प्रकार सक्षम हो जाता है। आरोग्य शक्ति, संकल्प शक्ति, पूर्वाभास, विचार संचार (टेलीपैथी) जैसी क्षमताएँ अनायास हस्तगत होने लगती हैं। उच्चस्तरीय प्राणायाम कभी शांतिकुंज के शिविर में आकर सीख सकते हैं।