Books - क्या धर्म ? क्या अधर्म
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
भूमिका
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
धर्म और अधर्म का प्रश्न बड़ा पेचीदा है। जिस बात को एक समुदाय धर्म मानता है, दूसरा समुदाय उसे अधर्म घोषित करता है। इस पेचीदगी के कारण धर्म का वास्तविक तत्व जानने वाले जिज्ञासुओं को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। मानवीय बौद्धिक विकास के साथ-साथ ‘क्यों’ और ‘कैसे’ का बहुत प्राबल्य हुआ है। इस युग का मनुष्य सिर्फ इतने से ही संतुष्ट नहीं हो सकता कि—अमुक पुस्तक में ऐसा लिखा है या अमुक व्यक्ति ने ऐसा कहा है। आज तो तर्क और प्रमाणों से युक्त बुद्धि संगत बात ही स्वीकार की जाती है।
हर एक वस्तु अपना जन्मसिद्ध धर्म अपने साथ रखती है। ईश्वर प्रदत्त जन्मजात स्वभाव को धर्म कहते हैं। इस सच्चाई को आधार भूत मानकर हमने भी उसी धर्म का महत्व प्रतिपादित किया है, जिसका उपदेश वेद शास्त्रों में दिया गया है। धर्म पालन करना परलोक के लिए ही नहीं इस लोक की उन्नति के लिए भी आवश्यक है। इस तथ्य का प्रतिपादन करने के लिए हमने शक्ति भर प्रयत्न किया है। मनोविज्ञान शास्त्र और समाजशास्त्र के ठोस तथ्य के आधार पर धर्म के सम्बन्ध में की हुई यह विवेचना आधुनिक युग की तार्किक सन्तान को रुकेगी, ऐसा हमारा अनुमान है। यदि यह तथ्य अपनी नई पीढ़ी को सदाचार, परमार्थ और उन्नति की ओर अग्रसर कर सके तो लेखक अपने प्रयास पर प्रसन्न होगा।
इस पुस्तक में धर्म, अधर्म के प्रायः सभी प्रमुख प्रश्नों पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया गया है। निष्पक्ष दृष्टिकोण रखने वाले विचारकों के लिए यह पुस्तक विशेष उपयोगी होगी, ऐसा हमारा विश्वास है।
—श्रीराम शर्मा आचार्य
***
हर एक वस्तु अपना जन्मसिद्ध धर्म अपने साथ रखती है। ईश्वर प्रदत्त जन्मजात स्वभाव को धर्म कहते हैं। इस सच्चाई को आधार भूत मानकर हमने भी उसी धर्म का महत्व प्रतिपादित किया है, जिसका उपदेश वेद शास्त्रों में दिया गया है। धर्म पालन करना परलोक के लिए ही नहीं इस लोक की उन्नति के लिए भी आवश्यक है। इस तथ्य का प्रतिपादन करने के लिए हमने शक्ति भर प्रयत्न किया है। मनोविज्ञान शास्त्र और समाजशास्त्र के ठोस तथ्य के आधार पर धर्म के सम्बन्ध में की हुई यह विवेचना आधुनिक युग की तार्किक सन्तान को रुकेगी, ऐसा हमारा अनुमान है। यदि यह तथ्य अपनी नई पीढ़ी को सदाचार, परमार्थ और उन्नति की ओर अग्रसर कर सके तो लेखक अपने प्रयास पर प्रसन्न होगा।
इस पुस्तक में धर्म, अधर्म के प्रायः सभी प्रमुख प्रश्नों पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया गया है। निष्पक्ष दृष्टिकोण रखने वाले विचारकों के लिए यह पुस्तक विशेष उपयोगी होगी, ऐसा हमारा विश्वास है।
—श्रीराम शर्मा आचार्य
***