Books - मनुष्य गिरा हुआ देवता या उठा हुआ पशु ?
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अद्भुत स्रष्टा के अद्भुत रहस्य
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लिंकन की भी प्रथम धर्म-पत्नी फैशनेबुल थीं, गृह-व्यवस्था, कविता तथा चित्रकला की शौकीन थीं, केनेडी की भी। दोनों लिबरल पार्टी के सदस्य थे। लिंकन 1861 में प्रेसीडेन्ट बने, केनेडी 1961 में। लिंकन के प्राणों की सर्वाधिक चिन्ता केनेडी नामक समकालीन व्यक्ति को रहती थी, केनेडी के सुरक्षार्थ उनका निजी सचिव लिंकन सर्वाधिक सतर्क रहता था। दोनों गोली से मारे गये व शुक्रवार के ही दिन। लिंकन की मृत्यु के बाद उनका पद सम्भाला दक्षिणी उपराष्ट्रपति जान्सन ने और केनेडी की मृत्यु के बाद भी इस जिम्मेदारी को संभालने वाले का नाम जान्सन ही था। वे दक्षिण से आये उपराष्ट्रपति थे।
क्या यह अद्भुत साम्य मात्र संयोग है? या इसके पीछे कोई सूक्ष्म आत्मिक विधान निहित है?
अमरीकी पादरी जिमविशप की मान्यता है कि राष्ट्रपति अब्राहमलिंकन ने ही राष्ट्रपति जान एफ. केनेडी के रूप में पुनर्जन्म ग्रहण किया। उन्होंने दोनों के जीवन का तुलनात्मक अध्ययन कर इन तथ्यों की ओर लोगों का ध्यान खींचा है।
लिंकन व केनेडी दोनों में गहरी धार्मिक भावना थी। व बाइबिल के प्रेमी पाठक भी दोनों थे। दोनों विश्व-शान्ति के उपासक थे। दोनों में 40 वर्ष की आयु में ही राष्ट्रपति बनने की इच्छा हुई। नीग्रो स्वतन्त्रता के लिए दोनों ने निरन्तर प्रयास किया। लिंकन के चार बच्चे थे, दो मर गये थे। शेष दो से उन्हें गहरा प्यार था। केनेडी के भी चार बच्चे हुए दो का निधन हो गया। उन्हें भी वैसा ही प्यार था। दोनों अपने बच्चों से विनोद-परिहास बहुत करते थे।
सन् 1215 में जन्मे फ्रांस के सन्त लुइस एक महान् क्रान्त दृष्टा थे। 539 वर्ष बाद सन् 1754 में सम्राट लुइस 16 वें का जन्म हुआ। दोनों के जीवन काल में 539 वर्ष का अन्तर था और दोनों की देह यानी रूपाकार में भी एकता थी। इसके अतिरिक्त दोनों के जीवन में असाधारण समानताएं थीं।
सन्तु लुइस की छोटी बहिन का नाम इसाबेल था, वह उनसे 10 वर्ष बाद पैदा हुई। सम्राट लुइस की बहिन भी 10 वर्ष ही छोटी थी। नाम था इलिजाबेथ। दोनों के पिताओं की मृत्यु उनकी आयु के 12 वें वर्ष में हुई। 15 वें वर्ष में सन्त लुइस बीमार हुए और सम्राट लुइस भी उसी आयु में उसी रोग से ग्रस्त हुए। दोनों का विवाह 17 वें वर्ष में हुआ व 21 वें वर्ष दोनों को बालिग अधिकार मिले।
सन्त लुइस ने 29 वें वर्ष में हेनरी तृतीय से और सम्राट् लुइस ने 29 वें जार्ज तृतीय से शान्ति वार्ता की। दोनों के पास उनकी 34 वर्ष की उम्र में पूर्व के एक राजकुमार का राजदूत, राजकुमार के ईसाई बनने की इच्छा से आया। 35 वर्ष की उम्र में सन्त लुइस क्रान्तिकारी विचारों के कारण नजर बन्द किये गये। 35 वर्ष की ही आयु में सम्राट लुइस के सभी सत्ताधिकार छिन गये। इसी आयु में सन्त भी पद से हटाये गये, सम्राट भी। आयु के उसी वर्ष में यानी 36 वें वर्ष में सन्त लुइस ने ट्रिस्टन की स्थापना की व क्रांति का उद्घोष किया। सम्राट लुइस ने भी 36 वें वर्ष वैस्टीन के पतन के साथ क्रान्ति का शुभारम्भ किया। सन्त ने उसी वर्ष जैकन की स्थापना की, सम्राट ने जैको विनस का सूत्रपात किया। सन्त के 36 वें वर्ष में इसाबेल ऐन्गुलेम की मृत्यु हुई। सम्राट के 36 वें वर्ष में इसावेल्ड ऐन्गुलेम का जन्म हुआ। दोनों 38 वर्ष के थे, जब मातृ-सुख से संचित हो गये। 39 वें वर्ष सन्त अवकाश ग्रहण कर जैकोबिन बने। सम्राट ने 39 वें वर्ष में जैकोबिन को जीवन अर्पण किया। उसी वर्ष सन्त मैडेलियम प्रान्त में वापस पहुंचे। 39 वें वर्ष में ही सम्राट लुइस मैडेलिन के अन्तिम संस्कार में पैरिस में सम्मिलित हुए।
इस तरह दोनों के जीवन की घटनाओं में अद्भुत साम्य है। सभी घटनाएं 539 वर्ष के अन्तर से मानो स्वयं को दुहराती रहीं।
नैपोलियन और ड्यूक आफ विलिंगडन के जीवन क्रम में तारीखों की दृष्टि से अद्भुत समता है, दोनों 15 अगस्त 1760 को जन्मे। दोनों के पिताओं की मृत्यु उनके सोलहवें वर्ष में हुई। ड्यूक को जिस दिन जनरल का पद मिला उसी दिन नेपोलियन की नियुक्ति लेफ्टिनेन्ट पद पर हुई। आश्चर्य है कि वे दोनों मरे भी एक ही दिन।
हिटलर और नेपोलियन के जीवन में भी तिथियों सम्बन्धी ऐसी ही समता है। वर्षों की दृष्टि से 129 वर्ष का अन्तर जरूर है, पर उनके क्रिया-कलापों में कितनी ही घटनाएं पुनरावृत्ति जैसी हैं। नैपोलियन 20 अप्रैल 1760 में जन्मा और हिटलर 29 अप्रैल 1879 को। फ्रांस में राज्य-क्रान्ति 1789 में हुई और जर्मनी में 1918 को, नेपोलियन ने 1804 में सत्ता हथियायी और हिटलर ने 1933 में। नेपोलियन ने रूस पर हमला 1812 में किया था और हिटलर ने 1941 में। वियना संधि 1815 में हुई और जरमन संधि 1944 में। यह ऐसे संयोग हैं जिनके आधार पर हिटलर को नेपोलियन का दूसरा संस्करण कहा जा सकता है।
सुप्रसिद्ध दार्शनिक एफ.एम. विलिस ने भारतीय धर्म को आत्मा के विकास के सिद्धान्त को पूरी तरह माना है और लिखा है कि कई बार एक जन्म के छोड़े हुए अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए श्रेष्ठ आत्माएं जन्म लेती हैं। और अगले जन्म के विचार तथा चिंतन में अद्भुत साम्य इस बात का प्रमाण होता है। श्री विलिस ने ऐसे अनेकों जोड़े ढूंढ़े थे और उनके द्वारा इस दर्शन की पुष्टि की थी। उनका कहना है कि ईसा मसीह जो काम शेष छोड़ गये थे, उन्हें उन्होंने दुबारा अपोलिनियस आफ रियाना के रूप में जन्म लेकर पूरा किया। ग्लैण्डस्टोन पहले जन्म में सिसरो थे, श्रीमती बीसेंट पहले ब्रनो थी। शोयेनहादर के विचार बौद्धमत से इतने मिलते जुलते हैं उन्हें बुद्ध ही कहा जा सकता है।
कोई अनिवार्य नहीं है कि ये संयोग उसी व्यक्ति का दूसरे रूप में पुनर्जन्म ही हो। परन्तु ऐसे व्यक्तियों के जीवन परस्पर एक ही सूत्र में सम्बद्ध है, इसकी पूरी सम्भावना है। आयरलैण्ड के कुक हैवेन शहर में एक ही मकान में रहने वाले दो परिवारों में कुछ मिनटों के अन्तर से दो पुत्र हुए। एक दम्पत्ति ने अपने बच्चे का नाम एलेनर ग्रेडी रखा दूसरे ने अपने बच्चे का नाम पैट्रिक रखा। दोनों बच्चे धीरे-धीरे अपने जीवन के स्वाभाविक विकास क्रम की ओर चल पड़े।
पैट्रिक और एलेनर दोनों अलग-अलग खेलते, अलग-अलग रहते। किन्तु एक दिन दोनों रोते-रोते घर पहुंचे, दोनों के दाहिने पैर पर एक ही स्थान पर चोट लगी थी। माता-पिता ने पट्टी कर दी, कोई ध्यान नहीं दिया। दोनों बच्चे पढ़ रहे थे तब कई बार ऐसा हुआ कि यदि परीक्षा में पैट्रिक को 300 अंक मिले तो दूसरे स्कूल में पढ़ रहे ग्रेडी को भी उतने ही अंग मिले। जिस दिन एलेनर के विवाह सम्बन्ध की बात चली ठीक उसी दिन पैट्रिक की भी और संयोग की बात यह कि दोनों का विवाह एक ही दिन हुआ। दोनों की शादी एक ही दिन तय हुई और पहला बच्चा भी एक ही दिन हुआ।
बचपन में एक ही मकान में रहे एलेनर और पैट्रिक बड़े होने पर आपस में मिले तब उन्होंने इन समानताओं पर ध्यान दिया और अन्तिम समय भी वे समानता की एक मिसाल छोड़ गये कि दोनों व्यक्तियों की मृत्यु भी एक दिन एक ही समय पर हुई। उस समय दोनों अपने-अपने खेत में काम कर रहे थे।
यह घटना जीवन की विचित्र रहस्यमयता को प्रतिपादित करती ही है यह भी बताती है कि मनुष्य का अस्तित्व शरीर तक ही सीमित नहीं है। बल्कि उसकी मूल सत्ता शरीर से बहुत सूक्ष्म और स्थूल नियमों से परे है। मनीषियों ने उस सूक्ष्म सत्ता को आत्म तत्व जीव सत्ता का नाम दिया है और कहा है कि वह काय-कलेवर तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि विकसित होकर विश्व ब्रह्माण्ड की विराट चेतना से भी जा जुड़ती है।
पैट्रिक और ‘एलिनेर’ के जीवन की समानता से भी अधिक विचित्र समानतायें थीं इटली के सम्राट डम्बर्टो प्रथम तथा वहीं के एक होटल मालिक थे। उस होटल मालिक को तो सम्राट का प्रतिरूप ही कहा जाता था। दोनों की सूरत शक्ल और चेहरे मोहरे इस प्रकार मिलते थे कि डम्बर्टो तथा होटल मालिक को एक समान कपड़े पहना कर खड़ा कर दिया जाय तो उनकी पत्नियों के लिए भी पहचानना असम्भव हो कि कौन हमारा पति है। सूरत शक्ल से ही नहीं नाम भी दोनों का एक ही था। पाठक किसी भ्रम में न पड़ जायं इसलिये यहां एक को डम्बर्टो प्रथम तथा दूसरे डम्बर्टो को होटल मालिक कहा जा रहा था।
सम्राट डम्बर्टो और होटल मालिक डम्बर्टो का जन्म 14 मार्च 1844 को प्रातः ठीक साढ़े दस बजे हुआ था। सम्राट डम्बर्टो टूरिन के राजमहल में जन्मे, तो होटल मालिक एक झोंपड़े में। 2 अप्रैल 1866 को सम्राट डम्बर्टो का विवाह हुआ और उनकी पत्नी का नाम मर्घरिटा था। होटल मालिक का विवाह भी उसी दिन हुआ और उसकी पत्नी का नाम भी मर्घरिटा था। एक ही दिन युवराज सिंहासनारूढ़ हुए और दूसरे डम्बर्टो ने होटल खोला। 28 जुलाई 1900 को होटल मालिक की हत्या किसी ने गोली मारकर कर दी। उसी दिन उसी समय सम्राट डम्बर्टो को भी एक पारितोषिक वितरण के समय गोली मार दी गयी।
ये घटनायें सिद्ध करती हैं कि सूक्ष्म चेतना की सत्ता स्थूल सत्ता से महान है और मनुष्य को किसी उद्देश्य से इस पृथ्वी पर भेजती है। अपने स्वरूप को भुलाने पर वह इन संकेतों से समझाती भी है।
ऐसे साम्य-संयोगों और असाधारण सादृश्यों की प्रचुरता आत्म-सत्ता के किसी गूढ़ नियम का संकेत करती है। वस्तुतः प्रकृति के अद्भुत रहस्यों में से कुछ को मनुष्य ने एक छोटी सीमा तक जाना है और उनको वैज्ञानिक शोधों एवं यन्त्र उपकरणों के माध्यम से उपयोग में लाकर लाभ भी उठाया है। आदिम कालीन मनुष्य का ज्ञान स्वल्प था—अन्य जीव-जन्तुओं की जानकारी कम है, इसलिए उन्हें वे लाभ नहीं मिल पाये जो आज का अन्वेषक मनुष्य प्राप्त करके सुविधा साधन उपलब्ध कर रहा है। प्रकृति का भण्डार इतना विशाल है कि उसे जितना खोजा जा सके उतना ही कम है। भौतिक विज्ञान से बढ़कर चेतना विज्ञान है। जड़ शक्तियों की तुलना में चेतना शक्तियों की क्षमता एवं उत्कृष्टता का बाहुल्य स्वीकार करना ही पड़ेगा। इस दिशा में और भी अधिक खोज होनी चाहिए। अध्यात्म विज्ञान की शोध में ही हमारी दिलचस्पी और तत्परता और भी अधिक होनी चाहिए। प्राचीन काल में ऋषि तपस्वियों ने बहुत कुछ खोज की थी पर वह उस समय की परिस्थितियों के अनुकूल थी। उन शोधों के बाद अब कुछ ढूंढ़ना शेष नहीं रहा ऐसी बात नहीं है। फिर प्राचीन काल की उपलब्धियां भी तो लुप्त हो गईं। ऐसी दशा में उस दिशा में हमें वैज्ञानिक आत्म विज्ञान की शोधों में नये सिरे से तत्पर होना चाहिए।
जीवन एक पहेली—
मनुष्य का कर्तृत्व उसकी सफलताओं का कारण है यह तथ्य सर्वविदित है। पर यह मान्यता भी असीम है। इसके साथ एक कारण और भी जुड़ा हुआ प्रतीत होता है—निर्धारित नियति। भले ही वह अपने ही पूर्व संचित कर्मों का फल ही हो या उसका संचालन किसी अदृष्ट से सम्बन्धित हो।
संख्या के साथ व्यक्ति विशेष का सम्बन्ध क्यों होता है? यह तो नहीं कहा जा सकता, पर होता अवश्य देखा गया। घटनाओं पर आश्चर्य करना भर पर्याप्त नहीं, इसके आधार को भी जानना चाहिए। जिससे उस नियति श्रृंखला के अनुकूल चलकर लाभान्वित होना और प्रतिकूलता से बच निकलना संभव हो सके।
तिथियों का कुछ विचित्र संयोग देखिये—चन्द्रवरदाई और पृथ्वीराज चौहान घनिष्ठ मित्र थे। वे दोनों एक ही दिन जन्मे और एक ही दिन मरे भी।
महाकवि शेक्सपियर के लिये 23 अप्रैल जन्म देने भी आई और वही 23 अप्रैल उन्हें उठा भी ले गई।
विवेकानन्द की शिष्या भगिनी निवेदिता के जीवन में अक्टूबर मास महत्वपूर्ण घटनायें प्रस्तुत करता रहा। वे 24 अक्टूबर 1867 में जन्मी 22 अक्टूबर 1895 को उनने विवेकानन्द को अपना समर्पण दिया। 20 अक्टूबर को उन्होंने महर्षि अरविंद से महत्वपूर्ण भेंट की और 13 अक्टूबर 1911 में वह संसार छोड़ कर चली गईं। वीर सावरकर के जीवन में फरवरी मास अशुभ रहा। हेग के अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय ने उन्हें 25 फरवरी 1911 को सजा दी और ठीक 55 वर्ष बाद 23 फरवरी 1966 को मृत्यु हो गई।
लोकमान्य तिलक के जीवन की महत्वपूर्ण घटनायें मंगलवार को घटित होती रही हैं। उनका केशरी पत्र मंगलवार को प्रकाशित हुआ। स्वतंत्रता संग्राम में वे मंगल को पकड़े गये और जमानत पर भी मंगल के दिन ही छूटे। मंगलवार से मुकदमा चला और जेल से छूटने का दिन भी वही वार था।
शुक्रवार को लोग शोक दिवस मानते हैं। ईसा, सुकरात, गांधी, लिंकन, केनेडी आदि कितने महापुरुषों को शुक्रवार ने उदरस्थ किया है।
किन्हीं के जीवन में कुछ अंकों की विशेष महत्ता रही है। प्रिंस विस्मार्क को 3 का अंक कुछ विलक्षण संयोग लाता रहा। उनने अपने तीन नाम रखे लाएन वर्ग-शोवासेनी और विस्मार्क। उन्हें तीन उपाधियां मिली प्रिंस, डयूक तथा काउन्ट। वे तीन कालेजों में पढ़े। उनके तीन बेटे हुए। वे तीन देशों में राजदूत रहे। वे तीन युद्धों में लड़ने गये। इनने तीन घोड़े गंवाये। तीन बार इन पर घातक आक्रमण हुए। तीन बार उन्होंने त्याग पत्र दिये।
लालबहादुर शास्त्री के लिए 10 के अंक से कुछ अनोखे सम्बन्ध थे। वे अंग्रेजी वर्ष के दशवें महीने अक्टूबर में जन्मे। उनने मन्त्रित्व आदि 10 महत्वपूर्ण पद संभाले। उनके दिल्ली निवास का स्थान नम्बर 10 था। उनकी मृत्यु 10 तारीख को हुई। रोमन लिपि में लालबहादुर शब्द लिखने में 10 अक्षर ही प्रयुक्त होते हैं।
साइप्रस के शासनाध्यक्ष मकरिआस के लिए 13 का अंक कुछ ऐसे ही संयोग लाता रहा। वे 13 अगस्त 1913 को जन्मे। 13 वर्ष की आयु में चर्च में भर्ती हुए। 13 नवम्बर 1946 में उनने प्रोस्ट दीक्षा ली। 13 जून 1948 में विशप बने तथा राजगद्दी पर बैठे। 13 मार्च 1951 में यूनान के राजा ने उनका अभिनन्दन किया। 13 दिसम्बर 1959 को वे राष्ट्रपति चुने गये।
विश्व-विख्यात चित्रकार अल्मा-टाडमा के जीवन में ‘‘17’’ की संख्या का महत्व एक बड़े जादू की तरह था—यह बात वे स्वयं स्वीकार करते हुए बताया करते थे—‘‘मैं 17 वर्ष की उम्र का था तब 17 तारीख को ही अपनी प्रिय पत्नी से मिला। मेरे पहले मकान का नम्बर 17 था और जब दुबारा मकान बनवाने की बात आई तो बहुत प्रयत्न करने पर भी वह 17 अगस्त से पहले प्रारम्भ नहीं हो सका। नवम्बर की 17 तारीख थी जब मैंने नूतन-गृह में प्रवेश किया अपने लिये जब ‘‘सेन्टजोन्स बुड में चित्रकारी के लिये कमरा लिया तो वह भी 17 नम्बर ही निकला।’’
निःसन्देह ‘‘अक्षरों’’ की महत्ता बहुत अधिक है पर लगता है संसार का नियमन संख्या द्वारा हो रहा है। तभी तो कई बार ऐसे विचित्र सांख्यिकी संयोग उपस्थित हो जाते हैं कि गैलीलियो जैसे वैज्ञानिक तक को यह मानना पड़ा था कि संसार गणित की भाषा में बोल रहा है—विधाता संसार का हिसाब-किताब संख्या में रखता है। इस तथ्य की पुष्टि में सुप्रसिद्ध भविष्य वक्ता और ज्योतिषियों ने आश्चर्यजनक घटनायें अपनी पुस्तक ‘‘कीरोज बुक आफ नम्बर्स में संकलित की हैं—प्रस्तुत घटनायें अधिकांश उस पुस्तक का ही अंश हैं।’’
ए.बी. फ्रेन्च के जीवन की घटनाओं में 7 संख्या का महत्व बताते हुए कीरो लिखते हैं कि—‘‘उनका जन्म 7 वें महीने की 7 तारीख को हुआ था। अपनी 7 वर्ष तक की उम्र में वे कभी बीमार नहीं हुए। 7 वीं कक्षा तक वे कभी फेल नहीं हुए। अपने विवाह के लिए उन्होंने 7 वीं लड़की को चुना और यह एक विस्मय की बात थी कि उस लड़की के लिए भी फ्रेन्च 7 वें ही लड़के थे। उनके जीवन की अधिकांश घटनायें 7 के ही साथ घटित हुईं।
उनके एक चाचाजी थे उनकी धर्मपत्नी एक बार रेल यात्रा कर रही थीं। रेलगाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। जिस डिब्बे में बैठी थीं उसका नम्बर 8631 था, एक बार लाटरी खरीदी उसका नं. 8631 था उसमें कुछ नहीं निकला, एक बार स्वयं भी एक ट्रक की चपेट में आ गये संयोग से उसका भी नम्बर 8631 ही था। उनके चार पुत्र हुए चारों मर गये। उन लड़कों की मृत्यु क्रमशः 8, 6, 3 और 1 वर्ष की आयु में हुई और इन संख्याओं को मिलाने से फिर वही 8631 संख्या बनती है जिसने दुर्भाग्य की दृष्टि से जीवन भर उनका पीछा नहीं छोड़ा।
लोगों का अनुमान है कि 13 की संख्या अशुभ होती है किन्तु कीरो की दृष्टि में यह कोई तर्क संगत बात नहीं है उन्होंने अनेक उदाहरणों द्वारा यह सिद्ध किया है कि 13 की संख्या को जहां अशुभ माना जाता है वहां वह कितने ही लोगों के जीवन की सौभाग्यदायक संख्या सिद्ध हुई। उत्तरी बर्टन यार्कस के डा. रूड के जीवन में 13 की संख्या दुर्भाग्य सूचक के रूप में आई। 13 वर्ष की आयु में वे बीमार पड़े। 13 दिन तक घोर कष्ट में रहे। 13 तारीख को ही हृदय की बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई। गांव के क्लब में जिसमें वे कुल 13 सप्ताह रहे, के फण्ड में उनकी मृत्यु के समय कुल 13 शिलिंग शेष थे। उनकी मृत्यु का दिन उनके सबसे छोटे बच्चे की 13 वीं वर्षगांठ थी। उनके अन्तिम संस्कार के लिये 13 सौ मील की यात्रा करनी पड़ी अन्तिम संस्कार के समय कुल 13 सदस्य उपस्थित हुये उनके परिवार के सदस्यों की संख्या भी 13 ही थी। उनके बड़े लड़के को नेवी में नौकरी मिली और साथ में जो नम्बर मिला वह भी 13 ही था। जिस जहाज में काम करना था उसका नम्बर भी 13 ही था। रूड का नाम फूवाह था जो कि बाइबिल के 13 वें छन्द में आता है। उनकी मृत्यु के समय शोक सम्वेदना के जो तार आये उनकी संख्या भी 13 ही थी।
यह तो थी दुर्भाग्य की बात—13 जिसके साथ सौभाग्य जुड़ा हुआ है। डनवर कोलराडो के धनाड्य उद्योगपति शेरमैन का जन्म 13 तारीख को हुआ। सगाई 13 तारीख को हुई और विवाह भी 13 जून 1913 को हुआ उनकी पत्नी का जन्मदिन भी 13 ता. का ही था। उनके विवाहोत्सव में भी कुछ 13 ही अतिथि थे। उन्हें जो फूल भेंट किये गये उनकी संख्या भी 13 थी। 13 की संख्या उनके जीवन में सदैव लाभदायक रही।
संख्या की विचित्रता का संसार बड़ा व्यापक है जन्म, मृत्यु और जीवन काल की घटनाओं को ध्यान पूर्वक देखें तो पता चलता है कि हर व्यक्ति के जीवन में जोड़, बाकी, गुणा, भाग काम करता है और यही तथ्य इस बात का प्रमाण है कि प्रकृति जड़ नहीं है वरन् उसमें एक मस्तिष्कीय प्रक्रिया हर क्षण, हर घड़ी काम कर रही है। इस तथ्य का प्रतिपादन संख्याओं की—गणित की यह विचित्रता प्रकट करती है। फ्रान्स के प्रथम सम्राट हेनरी 14 मई 1029 को सिंहासन पर बैठे जबकि वहां के आखिरी सम्राट का नाम भी हेनरी ही था 14 मई 1610 को उनकी हत्या करदी गई थी। जिस तारीख को एक को सिंहासन मिला उसी को दूसरी 14 मई को मृत्यु का उपहार। इस बीच वहां के अन्य सभी राजाओं के जीवन में 14 संख्या का सदैव महत्व बना रहा। हेनरी 14 वे का पूरा नाम हेनरी डिबारबन था पूरे नाम में 14 अक्षर होते हैं। 14 वीं शताब्दी में 14 वीं 10 वर्षीय काल सारणी (डिकेड) में ईसा के जन्म से 14 वर्ष बाद हेनरी चतुर्थ का जन्म 14 मई को ही हुआ। सन् 1443 में जन्म हुआ यह सब अक्षर जोड़ने से भी 14 की ही संख्या आती है। 14 मई को ही हेनरी द्वितीय ने फ्रांस का राज्य विस्तार किया था। हेनरी चतुर्थ की पत्नी का जन्म भी 14 मई को हुआ। हेनरी तृतीया को 14 मई के दिन युद्ध मोर्चे पर जाना पड़ा। हेनरी चतुर्थ ने आयवरी का युद्ध 14 मार्च 1590 को जीता। 14 मई 1590 में उनकी फौज की पेरिस के फाक्सवर्ग में हार हुई नवम्बर मास की 14 तारीख ही थी जिस दिन फ्रांस के 16 बड़े व्यक्तियों ने हेनरी चतुर्थ की सेवा करते-करते मर जाने की ऐतिहासिक प्रतिज्ञा की थी। इसी के ठीक 2 वर्ष बाद 14 नवम्बर को फ्रांस की पार्लियामेंट ने एक कानून पास कर पापलबुल को हेनरी के स्थान पर सत्ताधिकारी चुना। 14 दिसम्बर 1599 को सवाय के ड्यूक ने अपने आपको हेनरी को आत्म-समर्पण किया। 14 तारीख ही थी जिस दिन लार्ड डफिन ने लुई 13 वें के रूप में वैपतिस्मा ग्रहण किया।
14 मई 1643 को हेनरी चतुर्थ के पुत्र लुई 13 वें की मृत्यु हुई। लुई 14 वें 1643 में सिंहासन पर बैठे इन चारों संख्याओं का योग भी 14 ही होता है। उन्होंने 77 वर्ष (7+7=14) तक का जीवन जिया और 1715 में मृत्यु हुई। यह चारों अक्षर जोड़ने पर भी 14 की ही संख्या आती है। लुई 15 वें ने कुल 14 वर्ष राज्य किया। इस प्रकार फ्रांस के सिंहासन पर 14 का महत्व सदैव बना रहा।
जर्मनी के शासक चार्ल्स चौथे का विश्वास था कि उनके जीवन में चार की संख्या सौभाग्य सूचक है सो उनने अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में चार को महत्व दिया। वह चार रंग की पोशाक पहनते थे और दिन में चार बार पहनते थे। चार प्रकार का भाजन, चार मेजों पर दिन में चार बार करते थे, चार प्रकार की शराब पीते थे, उनके अंग रक्षक चार थे, बग्घी में चार पहिये, और चार घोड़े जुतते थे। उनके राज्य में चार गवर्नर नियुक्त थे, चार सेनापति, चार ड्यूक और कप्तान भी चार ही थे। उनके चार महल थे उनमें चार-चार ही दरवाजे थे। हर महल में चार-चार कमरे, हर कमरे में चार-चार खिड़कियां थीं ओर यह एक संयोग ही था कि मृत्यु के समय चार डॉक्टर उपस्थित थे उन्होंने चार बार ‘‘गुड बाय’’ कहा और ठीक चार बजकर चार मिनट पर इस संसार से विदा हो गये।
संसार कितना विचित्र और विलक्षण है। इसके रहस्यमय परत क्रमशः ही खुले और खुलते जा रहे हैं। मानवी बुद्धि प्रकृति के रहस्यों को धीरे धीरे ही जानने समझने लायक बनी है और बनती चली जा रही है। अंकों का क्या कुछ सम्बन्ध मनुष्य जीवन के साथ जुड़े हुए घटनाक्रमों से भी है यह तथ्य की यथार्थता कभी न कभी स्पष्ट होकर ही रहेगी।
अन्तर्जगत के सन्देश—
मनुष्य क्षुद्र जीव सत्ता से क्रमशः विकसित होता हुआ बन्दर से आदमी बना—यह सिद्धान्त अपने आप में अपूर्ण है। क्योंकि विज्ञान अभी जीवन की इन विचित्र पहेलियों को ही नहीं सुलझा सका तो पृथ्वी पर मानवी सत्ता का प्राकट्य कैसे हुआ, यह किस आधार पर कहा जा सकता है। मानवी सत्ता की विलक्षण सामर्थ्य का एक और उदाहरण इटली निवासी अल्बर्टो अस्करी के स्पष्ट घटी घटना से मिलता है। अल्बर्टो अक्सरी को सन् 1953 तथा 1954 में सर्वप्रथम आने का पुरस्कार मिल चुका था, के जीवन में भी इस तरह का लोमहर्षक क्षण आया जब उनकी मृत्यु उन्हें पूर्व ही आकर दर्शन दे गई। 1955 में जिन दिनों वे पुनः रेस में भाग लेने की तैयारी कर रहे थे। उन्हें 20 वर्ष पुरानी एक घटना याद हो आयी। तब अल्बर्टो 16 वर्ष के बालक थे। उन दिनों कार-रेस में उनके पिता एन्टोनियो अस्करी शीर्ष स्थान पर थे। उस वर्ष की प्रतियोगिता में पिता के साथ कार में पुत्र अल्बर्टो भी दोड़ रहे थे। जिस समय कार वायलोन का घना जंगल पार कर रही थी, एकाएक एक काली बिल्ली ने रास्ता काटा। बिल्ली को बचाने के लिए एन्टोनियो ने तेज स्टीयरिंग काटा, किन्तु तीव्र गति से चल रही गाड़ी नियन्त्रण खो बैठी और एक पेड़ से जा टकराई। ऐन्टोनियो का घटनास्थल पर ही देहावसान हो गया। न जाने क्यों उसी क्षण अल्बर्टो जो अब तक सकुशल था, को एकाएक ऐसा आभास हुआ कि 20 वर्ष बाद जब वह 36 वर्ष का होगा, उसकी भी इसी तरह मृत्यु हो जावेगी। यह आभास कुछ ही क्षणों में विश्वास में बदल गया।
दुर्घटना के चार दिन पूर्व जब एकाएक अल्बर्टी की तबियत खराब हुई तब तो उनका विश्वास कतई परिपुष्ट हो गया क्योंकि उनके पिता को भी ठीक चार दिन पूर्व तबियत बिगड़ी थी उनका मन रेस में भाग लेने का नहीं कर रहा था। किन्तु उसके प्रशिक्षक भूतपूर्व कार रेस चैम्पियन लुई बिल्लोरसी ने उन्हें आश्वस्त किया—ऐसा कुछ नहीं होगा। उन्होंने इस अन्धविश्वास जैसी भीति के लिए अल्बर्टी को फटकार दी, किन्तु नियति तो जैसे अमेद्य हो, अल्बर्टो ने नियत समय पर प्रतियोगिता के लिए अन्तिम अभ्यास के लिए अपनी कार स्टार्ट की। बिल्लोरसी की कार उसके पीछे थी। जैसे ही कार वायलोन के जंगल में उस स्थान पर पहुंची ठीक वही 20 वर्ष पूर्व का दृश्य—एक काली बिल्ली ने रास्ता काटा। अल्बर्टो ने हर चन्द बचने की कोशिश की, किन्तु कार एक दैत्याकार पेड़ से जा टकराई और अल्बर्टो ने वहीं अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी।
इस घटना से दैवी विधान की निश्चितता सिद्ध की जा सकती है। वस्तुतः बात ऐसी नहीं है। किसी स्थान पर आग लगने से पूर्व धुंआ निकलता है। वह एक प्रकार से इस बात का संकेत होता है कि अभी समय है पानी डालकर आग लगने के सम्भावित संकट को टाला जा सकता है, किन्तु कोई ध्यान न दे तो ईश्वर-विधान का क्या दोष। विकासवाद सिद्धान्त के जनक चार्ल्स डार्विन ने अपने निष्कर्षों को प्रमाणित करने के लिए जो अध्ययन निरीक्षण किया उसमें इन विचित्रताओं के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है। इस तरह के विलक्षण संयोगों को न तो डार्विन ने अपने अध्ययन में सम्मिलित किया और न ही इनका कोई कारण बताया है। आगे के अध्यायों में हम देखेंगे कि विकासवाद का वर्तमान सिद्धान्त कितना एकांगी और अधूरा है। वह एक सीमा तक ही सही हो सकता, उस सीमा तक जहां तक कि उससे मानवीय सत्ता जीवन चेतना की समर्थता और सशक्तता का नियम पुष्ट होता है।
क्या यह अद्भुत साम्य मात्र संयोग है? या इसके पीछे कोई सूक्ष्म आत्मिक विधान निहित है?
अमरीकी पादरी जिमविशप की मान्यता है कि राष्ट्रपति अब्राहमलिंकन ने ही राष्ट्रपति जान एफ. केनेडी के रूप में पुनर्जन्म ग्रहण किया। उन्होंने दोनों के जीवन का तुलनात्मक अध्ययन कर इन तथ्यों की ओर लोगों का ध्यान खींचा है।
लिंकन व केनेडी दोनों में गहरी धार्मिक भावना थी। व बाइबिल के प्रेमी पाठक भी दोनों थे। दोनों विश्व-शान्ति के उपासक थे। दोनों में 40 वर्ष की आयु में ही राष्ट्रपति बनने की इच्छा हुई। नीग्रो स्वतन्त्रता के लिए दोनों ने निरन्तर प्रयास किया। लिंकन के चार बच्चे थे, दो मर गये थे। शेष दो से उन्हें गहरा प्यार था। केनेडी के भी चार बच्चे हुए दो का निधन हो गया। उन्हें भी वैसा ही प्यार था। दोनों अपने बच्चों से विनोद-परिहास बहुत करते थे।
सन् 1215 में जन्मे फ्रांस के सन्त लुइस एक महान् क्रान्त दृष्टा थे। 539 वर्ष बाद सन् 1754 में सम्राट लुइस 16 वें का जन्म हुआ। दोनों के जीवन काल में 539 वर्ष का अन्तर था और दोनों की देह यानी रूपाकार में भी एकता थी। इसके अतिरिक्त दोनों के जीवन में असाधारण समानताएं थीं।
सन्तु लुइस की छोटी बहिन का नाम इसाबेल था, वह उनसे 10 वर्ष बाद पैदा हुई। सम्राट लुइस की बहिन भी 10 वर्ष ही छोटी थी। नाम था इलिजाबेथ। दोनों के पिताओं की मृत्यु उनकी आयु के 12 वें वर्ष में हुई। 15 वें वर्ष में सन्त लुइस बीमार हुए और सम्राट लुइस भी उसी आयु में उसी रोग से ग्रस्त हुए। दोनों का विवाह 17 वें वर्ष में हुआ व 21 वें वर्ष दोनों को बालिग अधिकार मिले।
सन्त लुइस ने 29 वें वर्ष में हेनरी तृतीय से और सम्राट् लुइस ने 29 वें जार्ज तृतीय से शान्ति वार्ता की। दोनों के पास उनकी 34 वर्ष की उम्र में पूर्व के एक राजकुमार का राजदूत, राजकुमार के ईसाई बनने की इच्छा से आया। 35 वर्ष की उम्र में सन्त लुइस क्रान्तिकारी विचारों के कारण नजर बन्द किये गये। 35 वर्ष की ही आयु में सम्राट लुइस के सभी सत्ताधिकार छिन गये। इसी आयु में सन्त भी पद से हटाये गये, सम्राट भी। आयु के उसी वर्ष में यानी 36 वें वर्ष में सन्त लुइस ने ट्रिस्टन की स्थापना की व क्रांति का उद्घोष किया। सम्राट लुइस ने भी 36 वें वर्ष वैस्टीन के पतन के साथ क्रान्ति का शुभारम्भ किया। सन्त ने उसी वर्ष जैकन की स्थापना की, सम्राट ने जैको विनस का सूत्रपात किया। सन्त के 36 वें वर्ष में इसाबेल ऐन्गुलेम की मृत्यु हुई। सम्राट के 36 वें वर्ष में इसावेल्ड ऐन्गुलेम का जन्म हुआ। दोनों 38 वर्ष के थे, जब मातृ-सुख से संचित हो गये। 39 वें वर्ष सन्त अवकाश ग्रहण कर जैकोबिन बने। सम्राट ने 39 वें वर्ष में जैकोबिन को जीवन अर्पण किया। उसी वर्ष सन्त मैडेलियम प्रान्त में वापस पहुंचे। 39 वें वर्ष में ही सम्राट लुइस मैडेलिन के अन्तिम संस्कार में पैरिस में सम्मिलित हुए।
इस तरह दोनों के जीवन की घटनाओं में अद्भुत साम्य है। सभी घटनाएं 539 वर्ष के अन्तर से मानो स्वयं को दुहराती रहीं।
नैपोलियन और ड्यूक आफ विलिंगडन के जीवन क्रम में तारीखों की दृष्टि से अद्भुत समता है, दोनों 15 अगस्त 1760 को जन्मे। दोनों के पिताओं की मृत्यु उनके सोलहवें वर्ष में हुई। ड्यूक को जिस दिन जनरल का पद मिला उसी दिन नेपोलियन की नियुक्ति लेफ्टिनेन्ट पद पर हुई। आश्चर्य है कि वे दोनों मरे भी एक ही दिन।
हिटलर और नेपोलियन के जीवन में भी तिथियों सम्बन्धी ऐसी ही समता है। वर्षों की दृष्टि से 129 वर्ष का अन्तर जरूर है, पर उनके क्रिया-कलापों में कितनी ही घटनाएं पुनरावृत्ति जैसी हैं। नैपोलियन 20 अप्रैल 1760 में जन्मा और हिटलर 29 अप्रैल 1879 को। फ्रांस में राज्य-क्रान्ति 1789 में हुई और जर्मनी में 1918 को, नेपोलियन ने 1804 में सत्ता हथियायी और हिटलर ने 1933 में। नेपोलियन ने रूस पर हमला 1812 में किया था और हिटलर ने 1941 में। वियना संधि 1815 में हुई और जरमन संधि 1944 में। यह ऐसे संयोग हैं जिनके आधार पर हिटलर को नेपोलियन का दूसरा संस्करण कहा जा सकता है।
सुप्रसिद्ध दार्शनिक एफ.एम. विलिस ने भारतीय धर्म को आत्मा के विकास के सिद्धान्त को पूरी तरह माना है और लिखा है कि कई बार एक जन्म के छोड़े हुए अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए श्रेष्ठ आत्माएं जन्म लेती हैं। और अगले जन्म के विचार तथा चिंतन में अद्भुत साम्य इस बात का प्रमाण होता है। श्री विलिस ने ऐसे अनेकों जोड़े ढूंढ़े थे और उनके द्वारा इस दर्शन की पुष्टि की थी। उनका कहना है कि ईसा मसीह जो काम शेष छोड़ गये थे, उन्हें उन्होंने दुबारा अपोलिनियस आफ रियाना के रूप में जन्म लेकर पूरा किया। ग्लैण्डस्टोन पहले जन्म में सिसरो थे, श्रीमती बीसेंट पहले ब्रनो थी। शोयेनहादर के विचार बौद्धमत से इतने मिलते जुलते हैं उन्हें बुद्ध ही कहा जा सकता है।
कोई अनिवार्य नहीं है कि ये संयोग उसी व्यक्ति का दूसरे रूप में पुनर्जन्म ही हो। परन्तु ऐसे व्यक्तियों के जीवन परस्पर एक ही सूत्र में सम्बद्ध है, इसकी पूरी सम्भावना है। आयरलैण्ड के कुक हैवेन शहर में एक ही मकान में रहने वाले दो परिवारों में कुछ मिनटों के अन्तर से दो पुत्र हुए। एक दम्पत्ति ने अपने बच्चे का नाम एलेनर ग्रेडी रखा दूसरे ने अपने बच्चे का नाम पैट्रिक रखा। दोनों बच्चे धीरे-धीरे अपने जीवन के स्वाभाविक विकास क्रम की ओर चल पड़े।
पैट्रिक और एलेनर दोनों अलग-अलग खेलते, अलग-अलग रहते। किन्तु एक दिन दोनों रोते-रोते घर पहुंचे, दोनों के दाहिने पैर पर एक ही स्थान पर चोट लगी थी। माता-पिता ने पट्टी कर दी, कोई ध्यान नहीं दिया। दोनों बच्चे पढ़ रहे थे तब कई बार ऐसा हुआ कि यदि परीक्षा में पैट्रिक को 300 अंक मिले तो दूसरे स्कूल में पढ़ रहे ग्रेडी को भी उतने ही अंग मिले। जिस दिन एलेनर के विवाह सम्बन्ध की बात चली ठीक उसी दिन पैट्रिक की भी और संयोग की बात यह कि दोनों का विवाह एक ही दिन हुआ। दोनों की शादी एक ही दिन तय हुई और पहला बच्चा भी एक ही दिन हुआ।
बचपन में एक ही मकान में रहे एलेनर और पैट्रिक बड़े होने पर आपस में मिले तब उन्होंने इन समानताओं पर ध्यान दिया और अन्तिम समय भी वे समानता की एक मिसाल छोड़ गये कि दोनों व्यक्तियों की मृत्यु भी एक दिन एक ही समय पर हुई। उस समय दोनों अपने-अपने खेत में काम कर रहे थे।
यह घटना जीवन की विचित्र रहस्यमयता को प्रतिपादित करती ही है यह भी बताती है कि मनुष्य का अस्तित्व शरीर तक ही सीमित नहीं है। बल्कि उसकी मूल सत्ता शरीर से बहुत सूक्ष्म और स्थूल नियमों से परे है। मनीषियों ने उस सूक्ष्म सत्ता को आत्म तत्व जीव सत्ता का नाम दिया है और कहा है कि वह काय-कलेवर तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि विकसित होकर विश्व ब्रह्माण्ड की विराट चेतना से भी जा जुड़ती है।
पैट्रिक और ‘एलिनेर’ के जीवन की समानता से भी अधिक विचित्र समानतायें थीं इटली के सम्राट डम्बर्टो प्रथम तथा वहीं के एक होटल मालिक थे। उस होटल मालिक को तो सम्राट का प्रतिरूप ही कहा जाता था। दोनों की सूरत शक्ल और चेहरे मोहरे इस प्रकार मिलते थे कि डम्बर्टो तथा होटल मालिक को एक समान कपड़े पहना कर खड़ा कर दिया जाय तो उनकी पत्नियों के लिए भी पहचानना असम्भव हो कि कौन हमारा पति है। सूरत शक्ल से ही नहीं नाम भी दोनों का एक ही था। पाठक किसी भ्रम में न पड़ जायं इसलिये यहां एक को डम्बर्टो प्रथम तथा दूसरे डम्बर्टो को होटल मालिक कहा जा रहा था।
सम्राट डम्बर्टो और होटल मालिक डम्बर्टो का जन्म 14 मार्च 1844 को प्रातः ठीक साढ़े दस बजे हुआ था। सम्राट डम्बर्टो टूरिन के राजमहल में जन्मे, तो होटल मालिक एक झोंपड़े में। 2 अप्रैल 1866 को सम्राट डम्बर्टो का विवाह हुआ और उनकी पत्नी का नाम मर्घरिटा था। होटल मालिक का विवाह भी उसी दिन हुआ और उसकी पत्नी का नाम भी मर्घरिटा था। एक ही दिन युवराज सिंहासनारूढ़ हुए और दूसरे डम्बर्टो ने होटल खोला। 28 जुलाई 1900 को होटल मालिक की हत्या किसी ने गोली मारकर कर दी। उसी दिन उसी समय सम्राट डम्बर्टो को भी एक पारितोषिक वितरण के समय गोली मार दी गयी।
ये घटनायें सिद्ध करती हैं कि सूक्ष्म चेतना की सत्ता स्थूल सत्ता से महान है और मनुष्य को किसी उद्देश्य से इस पृथ्वी पर भेजती है। अपने स्वरूप को भुलाने पर वह इन संकेतों से समझाती भी है।
ऐसे साम्य-संयोगों और असाधारण सादृश्यों की प्रचुरता आत्म-सत्ता के किसी गूढ़ नियम का संकेत करती है। वस्तुतः प्रकृति के अद्भुत रहस्यों में से कुछ को मनुष्य ने एक छोटी सीमा तक जाना है और उनको वैज्ञानिक शोधों एवं यन्त्र उपकरणों के माध्यम से उपयोग में लाकर लाभ भी उठाया है। आदिम कालीन मनुष्य का ज्ञान स्वल्प था—अन्य जीव-जन्तुओं की जानकारी कम है, इसलिए उन्हें वे लाभ नहीं मिल पाये जो आज का अन्वेषक मनुष्य प्राप्त करके सुविधा साधन उपलब्ध कर रहा है। प्रकृति का भण्डार इतना विशाल है कि उसे जितना खोजा जा सके उतना ही कम है। भौतिक विज्ञान से बढ़कर चेतना विज्ञान है। जड़ शक्तियों की तुलना में चेतना शक्तियों की क्षमता एवं उत्कृष्टता का बाहुल्य स्वीकार करना ही पड़ेगा। इस दिशा में और भी अधिक खोज होनी चाहिए। अध्यात्म विज्ञान की शोध में ही हमारी दिलचस्पी और तत्परता और भी अधिक होनी चाहिए। प्राचीन काल में ऋषि तपस्वियों ने बहुत कुछ खोज की थी पर वह उस समय की परिस्थितियों के अनुकूल थी। उन शोधों के बाद अब कुछ ढूंढ़ना शेष नहीं रहा ऐसी बात नहीं है। फिर प्राचीन काल की उपलब्धियां भी तो लुप्त हो गईं। ऐसी दशा में उस दिशा में हमें वैज्ञानिक आत्म विज्ञान की शोधों में नये सिरे से तत्पर होना चाहिए।
जीवन एक पहेली—
मनुष्य का कर्तृत्व उसकी सफलताओं का कारण है यह तथ्य सर्वविदित है। पर यह मान्यता भी असीम है। इसके साथ एक कारण और भी जुड़ा हुआ प्रतीत होता है—निर्धारित नियति। भले ही वह अपने ही पूर्व संचित कर्मों का फल ही हो या उसका संचालन किसी अदृष्ट से सम्बन्धित हो।
संख्या के साथ व्यक्ति विशेष का सम्बन्ध क्यों होता है? यह तो नहीं कहा जा सकता, पर होता अवश्य देखा गया। घटनाओं पर आश्चर्य करना भर पर्याप्त नहीं, इसके आधार को भी जानना चाहिए। जिससे उस नियति श्रृंखला के अनुकूल चलकर लाभान्वित होना और प्रतिकूलता से बच निकलना संभव हो सके।
तिथियों का कुछ विचित्र संयोग देखिये—चन्द्रवरदाई और पृथ्वीराज चौहान घनिष्ठ मित्र थे। वे दोनों एक ही दिन जन्मे और एक ही दिन मरे भी।
महाकवि शेक्सपियर के लिये 23 अप्रैल जन्म देने भी आई और वही 23 अप्रैल उन्हें उठा भी ले गई।
विवेकानन्द की शिष्या भगिनी निवेदिता के जीवन में अक्टूबर मास महत्वपूर्ण घटनायें प्रस्तुत करता रहा। वे 24 अक्टूबर 1867 में जन्मी 22 अक्टूबर 1895 को उनने विवेकानन्द को अपना समर्पण दिया। 20 अक्टूबर को उन्होंने महर्षि अरविंद से महत्वपूर्ण भेंट की और 13 अक्टूबर 1911 में वह संसार छोड़ कर चली गईं। वीर सावरकर के जीवन में फरवरी मास अशुभ रहा। हेग के अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय ने उन्हें 25 फरवरी 1911 को सजा दी और ठीक 55 वर्ष बाद 23 फरवरी 1966 को मृत्यु हो गई।
लोकमान्य तिलक के जीवन की महत्वपूर्ण घटनायें मंगलवार को घटित होती रही हैं। उनका केशरी पत्र मंगलवार को प्रकाशित हुआ। स्वतंत्रता संग्राम में वे मंगल को पकड़े गये और जमानत पर भी मंगल के दिन ही छूटे। मंगलवार से मुकदमा चला और जेल से छूटने का दिन भी वही वार था।
शुक्रवार को लोग शोक दिवस मानते हैं। ईसा, सुकरात, गांधी, लिंकन, केनेडी आदि कितने महापुरुषों को शुक्रवार ने उदरस्थ किया है।
किन्हीं के जीवन में कुछ अंकों की विशेष महत्ता रही है। प्रिंस विस्मार्क को 3 का अंक कुछ विलक्षण संयोग लाता रहा। उनने अपने तीन नाम रखे लाएन वर्ग-शोवासेनी और विस्मार्क। उन्हें तीन उपाधियां मिली प्रिंस, डयूक तथा काउन्ट। वे तीन कालेजों में पढ़े। उनके तीन बेटे हुए। वे तीन देशों में राजदूत रहे। वे तीन युद्धों में लड़ने गये। इनने तीन घोड़े गंवाये। तीन बार इन पर घातक आक्रमण हुए। तीन बार उन्होंने त्याग पत्र दिये।
लालबहादुर शास्त्री के लिए 10 के अंक से कुछ अनोखे सम्बन्ध थे। वे अंग्रेजी वर्ष के दशवें महीने अक्टूबर में जन्मे। उनने मन्त्रित्व आदि 10 महत्वपूर्ण पद संभाले। उनके दिल्ली निवास का स्थान नम्बर 10 था। उनकी मृत्यु 10 तारीख को हुई। रोमन लिपि में लालबहादुर शब्द लिखने में 10 अक्षर ही प्रयुक्त होते हैं।
साइप्रस के शासनाध्यक्ष मकरिआस के लिए 13 का अंक कुछ ऐसे ही संयोग लाता रहा। वे 13 अगस्त 1913 को जन्मे। 13 वर्ष की आयु में चर्च में भर्ती हुए। 13 नवम्बर 1946 में उनने प्रोस्ट दीक्षा ली। 13 जून 1948 में विशप बने तथा राजगद्दी पर बैठे। 13 मार्च 1951 में यूनान के राजा ने उनका अभिनन्दन किया। 13 दिसम्बर 1959 को वे राष्ट्रपति चुने गये।
विश्व-विख्यात चित्रकार अल्मा-टाडमा के जीवन में ‘‘17’’ की संख्या का महत्व एक बड़े जादू की तरह था—यह बात वे स्वयं स्वीकार करते हुए बताया करते थे—‘‘मैं 17 वर्ष की उम्र का था तब 17 तारीख को ही अपनी प्रिय पत्नी से मिला। मेरे पहले मकान का नम्बर 17 था और जब दुबारा मकान बनवाने की बात आई तो बहुत प्रयत्न करने पर भी वह 17 अगस्त से पहले प्रारम्भ नहीं हो सका। नवम्बर की 17 तारीख थी जब मैंने नूतन-गृह में प्रवेश किया अपने लिये जब ‘‘सेन्टजोन्स बुड में चित्रकारी के लिये कमरा लिया तो वह भी 17 नम्बर ही निकला।’’
निःसन्देह ‘‘अक्षरों’’ की महत्ता बहुत अधिक है पर लगता है संसार का नियमन संख्या द्वारा हो रहा है। तभी तो कई बार ऐसे विचित्र सांख्यिकी संयोग उपस्थित हो जाते हैं कि गैलीलियो जैसे वैज्ञानिक तक को यह मानना पड़ा था कि संसार गणित की भाषा में बोल रहा है—विधाता संसार का हिसाब-किताब संख्या में रखता है। इस तथ्य की पुष्टि में सुप्रसिद्ध भविष्य वक्ता और ज्योतिषियों ने आश्चर्यजनक घटनायें अपनी पुस्तक ‘‘कीरोज बुक आफ नम्बर्स में संकलित की हैं—प्रस्तुत घटनायें अधिकांश उस पुस्तक का ही अंश हैं।’’
ए.बी. फ्रेन्च के जीवन की घटनाओं में 7 संख्या का महत्व बताते हुए कीरो लिखते हैं कि—‘‘उनका जन्म 7 वें महीने की 7 तारीख को हुआ था। अपनी 7 वर्ष तक की उम्र में वे कभी बीमार नहीं हुए। 7 वीं कक्षा तक वे कभी फेल नहीं हुए। अपने विवाह के लिए उन्होंने 7 वीं लड़की को चुना और यह एक विस्मय की बात थी कि उस लड़की के लिए भी फ्रेन्च 7 वें ही लड़के थे। उनके जीवन की अधिकांश घटनायें 7 के ही साथ घटित हुईं।
उनके एक चाचाजी थे उनकी धर्मपत्नी एक बार रेल यात्रा कर रही थीं। रेलगाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। जिस डिब्बे में बैठी थीं उसका नम्बर 8631 था, एक बार लाटरी खरीदी उसका नं. 8631 था उसमें कुछ नहीं निकला, एक बार स्वयं भी एक ट्रक की चपेट में आ गये संयोग से उसका भी नम्बर 8631 ही था। उनके चार पुत्र हुए चारों मर गये। उन लड़कों की मृत्यु क्रमशः 8, 6, 3 और 1 वर्ष की आयु में हुई और इन संख्याओं को मिलाने से फिर वही 8631 संख्या बनती है जिसने दुर्भाग्य की दृष्टि से जीवन भर उनका पीछा नहीं छोड़ा।
लोगों का अनुमान है कि 13 की संख्या अशुभ होती है किन्तु कीरो की दृष्टि में यह कोई तर्क संगत बात नहीं है उन्होंने अनेक उदाहरणों द्वारा यह सिद्ध किया है कि 13 की संख्या को जहां अशुभ माना जाता है वहां वह कितने ही लोगों के जीवन की सौभाग्यदायक संख्या सिद्ध हुई। उत्तरी बर्टन यार्कस के डा. रूड के जीवन में 13 की संख्या दुर्भाग्य सूचक के रूप में आई। 13 वर्ष की आयु में वे बीमार पड़े। 13 दिन तक घोर कष्ट में रहे। 13 तारीख को ही हृदय की बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई। गांव के क्लब में जिसमें वे कुल 13 सप्ताह रहे, के फण्ड में उनकी मृत्यु के समय कुल 13 शिलिंग शेष थे। उनकी मृत्यु का दिन उनके सबसे छोटे बच्चे की 13 वीं वर्षगांठ थी। उनके अन्तिम संस्कार के लिये 13 सौ मील की यात्रा करनी पड़ी अन्तिम संस्कार के समय कुल 13 सदस्य उपस्थित हुये उनके परिवार के सदस्यों की संख्या भी 13 ही थी। उनके बड़े लड़के को नेवी में नौकरी मिली और साथ में जो नम्बर मिला वह भी 13 ही था। जिस जहाज में काम करना था उसका नम्बर भी 13 ही था। रूड का नाम फूवाह था जो कि बाइबिल के 13 वें छन्द में आता है। उनकी मृत्यु के समय शोक सम्वेदना के जो तार आये उनकी संख्या भी 13 ही थी।
यह तो थी दुर्भाग्य की बात—13 जिसके साथ सौभाग्य जुड़ा हुआ है। डनवर कोलराडो के धनाड्य उद्योगपति शेरमैन का जन्म 13 तारीख को हुआ। सगाई 13 तारीख को हुई और विवाह भी 13 जून 1913 को हुआ उनकी पत्नी का जन्मदिन भी 13 ता. का ही था। उनके विवाहोत्सव में भी कुछ 13 ही अतिथि थे। उन्हें जो फूल भेंट किये गये उनकी संख्या भी 13 थी। 13 की संख्या उनके जीवन में सदैव लाभदायक रही।
संख्या की विचित्रता का संसार बड़ा व्यापक है जन्म, मृत्यु और जीवन काल की घटनाओं को ध्यान पूर्वक देखें तो पता चलता है कि हर व्यक्ति के जीवन में जोड़, बाकी, गुणा, भाग काम करता है और यही तथ्य इस बात का प्रमाण है कि प्रकृति जड़ नहीं है वरन् उसमें एक मस्तिष्कीय प्रक्रिया हर क्षण, हर घड़ी काम कर रही है। इस तथ्य का प्रतिपादन संख्याओं की—गणित की यह विचित्रता प्रकट करती है। फ्रान्स के प्रथम सम्राट हेनरी 14 मई 1029 को सिंहासन पर बैठे जबकि वहां के आखिरी सम्राट का नाम भी हेनरी ही था 14 मई 1610 को उनकी हत्या करदी गई थी। जिस तारीख को एक को सिंहासन मिला उसी को दूसरी 14 मई को मृत्यु का उपहार। इस बीच वहां के अन्य सभी राजाओं के जीवन में 14 संख्या का सदैव महत्व बना रहा। हेनरी 14 वे का पूरा नाम हेनरी डिबारबन था पूरे नाम में 14 अक्षर होते हैं। 14 वीं शताब्दी में 14 वीं 10 वर्षीय काल सारणी (डिकेड) में ईसा के जन्म से 14 वर्ष बाद हेनरी चतुर्थ का जन्म 14 मई को ही हुआ। सन् 1443 में जन्म हुआ यह सब अक्षर जोड़ने से भी 14 की ही संख्या आती है। 14 मई को ही हेनरी द्वितीय ने फ्रांस का राज्य विस्तार किया था। हेनरी चतुर्थ की पत्नी का जन्म भी 14 मई को हुआ। हेनरी तृतीया को 14 मई के दिन युद्ध मोर्चे पर जाना पड़ा। हेनरी चतुर्थ ने आयवरी का युद्ध 14 मार्च 1590 को जीता। 14 मई 1590 में उनकी फौज की पेरिस के फाक्सवर्ग में हार हुई नवम्बर मास की 14 तारीख ही थी जिस दिन फ्रांस के 16 बड़े व्यक्तियों ने हेनरी चतुर्थ की सेवा करते-करते मर जाने की ऐतिहासिक प्रतिज्ञा की थी। इसी के ठीक 2 वर्ष बाद 14 नवम्बर को फ्रांस की पार्लियामेंट ने एक कानून पास कर पापलबुल को हेनरी के स्थान पर सत्ताधिकारी चुना। 14 दिसम्बर 1599 को सवाय के ड्यूक ने अपने आपको हेनरी को आत्म-समर्पण किया। 14 तारीख ही थी जिस दिन लार्ड डफिन ने लुई 13 वें के रूप में वैपतिस्मा ग्रहण किया।
14 मई 1643 को हेनरी चतुर्थ के पुत्र लुई 13 वें की मृत्यु हुई। लुई 14 वें 1643 में सिंहासन पर बैठे इन चारों संख्याओं का योग भी 14 ही होता है। उन्होंने 77 वर्ष (7+7=14) तक का जीवन जिया और 1715 में मृत्यु हुई। यह चारों अक्षर जोड़ने पर भी 14 की ही संख्या आती है। लुई 15 वें ने कुल 14 वर्ष राज्य किया। इस प्रकार फ्रांस के सिंहासन पर 14 का महत्व सदैव बना रहा।
जर्मनी के शासक चार्ल्स चौथे का विश्वास था कि उनके जीवन में चार की संख्या सौभाग्य सूचक है सो उनने अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में चार को महत्व दिया। वह चार रंग की पोशाक पहनते थे और दिन में चार बार पहनते थे। चार प्रकार का भाजन, चार मेजों पर दिन में चार बार करते थे, चार प्रकार की शराब पीते थे, उनके अंग रक्षक चार थे, बग्घी में चार पहिये, और चार घोड़े जुतते थे। उनके राज्य में चार गवर्नर नियुक्त थे, चार सेनापति, चार ड्यूक और कप्तान भी चार ही थे। उनके चार महल थे उनमें चार-चार ही दरवाजे थे। हर महल में चार-चार कमरे, हर कमरे में चार-चार खिड़कियां थीं ओर यह एक संयोग ही था कि मृत्यु के समय चार डॉक्टर उपस्थित थे उन्होंने चार बार ‘‘गुड बाय’’ कहा और ठीक चार बजकर चार मिनट पर इस संसार से विदा हो गये।
संसार कितना विचित्र और विलक्षण है। इसके रहस्यमय परत क्रमशः ही खुले और खुलते जा रहे हैं। मानवी बुद्धि प्रकृति के रहस्यों को धीरे धीरे ही जानने समझने लायक बनी है और बनती चली जा रही है। अंकों का क्या कुछ सम्बन्ध मनुष्य जीवन के साथ जुड़े हुए घटनाक्रमों से भी है यह तथ्य की यथार्थता कभी न कभी स्पष्ट होकर ही रहेगी।
अन्तर्जगत के सन्देश—
मनुष्य क्षुद्र जीव सत्ता से क्रमशः विकसित होता हुआ बन्दर से आदमी बना—यह सिद्धान्त अपने आप में अपूर्ण है। क्योंकि विज्ञान अभी जीवन की इन विचित्र पहेलियों को ही नहीं सुलझा सका तो पृथ्वी पर मानवी सत्ता का प्राकट्य कैसे हुआ, यह किस आधार पर कहा जा सकता है। मानवी सत्ता की विलक्षण सामर्थ्य का एक और उदाहरण इटली निवासी अल्बर्टो अस्करी के स्पष्ट घटी घटना से मिलता है। अल्बर्टो अक्सरी को सन् 1953 तथा 1954 में सर्वप्रथम आने का पुरस्कार मिल चुका था, के जीवन में भी इस तरह का लोमहर्षक क्षण आया जब उनकी मृत्यु उन्हें पूर्व ही आकर दर्शन दे गई। 1955 में जिन दिनों वे पुनः रेस में भाग लेने की तैयारी कर रहे थे। उन्हें 20 वर्ष पुरानी एक घटना याद हो आयी। तब अल्बर्टो 16 वर्ष के बालक थे। उन दिनों कार-रेस में उनके पिता एन्टोनियो अस्करी शीर्ष स्थान पर थे। उस वर्ष की प्रतियोगिता में पिता के साथ कार में पुत्र अल्बर्टो भी दोड़ रहे थे। जिस समय कार वायलोन का घना जंगल पार कर रही थी, एकाएक एक काली बिल्ली ने रास्ता काटा। बिल्ली को बचाने के लिए एन्टोनियो ने तेज स्टीयरिंग काटा, किन्तु तीव्र गति से चल रही गाड़ी नियन्त्रण खो बैठी और एक पेड़ से जा टकराई। ऐन्टोनियो का घटनास्थल पर ही देहावसान हो गया। न जाने क्यों उसी क्षण अल्बर्टो जो अब तक सकुशल था, को एकाएक ऐसा आभास हुआ कि 20 वर्ष बाद जब वह 36 वर्ष का होगा, उसकी भी इसी तरह मृत्यु हो जावेगी। यह आभास कुछ ही क्षणों में विश्वास में बदल गया।
दुर्घटना के चार दिन पूर्व जब एकाएक अल्बर्टी की तबियत खराब हुई तब तो उनका विश्वास कतई परिपुष्ट हो गया क्योंकि उनके पिता को भी ठीक चार दिन पूर्व तबियत बिगड़ी थी उनका मन रेस में भाग लेने का नहीं कर रहा था। किन्तु उसके प्रशिक्षक भूतपूर्व कार रेस चैम्पियन लुई बिल्लोरसी ने उन्हें आश्वस्त किया—ऐसा कुछ नहीं होगा। उन्होंने इस अन्धविश्वास जैसी भीति के लिए अल्बर्टी को फटकार दी, किन्तु नियति तो जैसे अमेद्य हो, अल्बर्टो ने नियत समय पर प्रतियोगिता के लिए अन्तिम अभ्यास के लिए अपनी कार स्टार्ट की। बिल्लोरसी की कार उसके पीछे थी। जैसे ही कार वायलोन के जंगल में उस स्थान पर पहुंची ठीक वही 20 वर्ष पूर्व का दृश्य—एक काली बिल्ली ने रास्ता काटा। अल्बर्टो ने हर चन्द बचने की कोशिश की, किन्तु कार एक दैत्याकार पेड़ से जा टकराई और अल्बर्टो ने वहीं अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी।
इस घटना से दैवी विधान की निश्चितता सिद्ध की जा सकती है। वस्तुतः बात ऐसी नहीं है। किसी स्थान पर आग लगने से पूर्व धुंआ निकलता है। वह एक प्रकार से इस बात का संकेत होता है कि अभी समय है पानी डालकर आग लगने के सम्भावित संकट को टाला जा सकता है, किन्तु कोई ध्यान न दे तो ईश्वर-विधान का क्या दोष। विकासवाद सिद्धान्त के जनक चार्ल्स डार्विन ने अपने निष्कर्षों को प्रमाणित करने के लिए जो अध्ययन निरीक्षण किया उसमें इन विचित्रताओं के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है। इस तरह के विलक्षण संयोगों को न तो डार्विन ने अपने अध्ययन में सम्मिलित किया और न ही इनका कोई कारण बताया है। आगे के अध्यायों में हम देखेंगे कि विकासवाद का वर्तमान सिद्धान्त कितना एकांगी और अधूरा है। वह एक सीमा तक ही सही हो सकता, उस सीमा तक जहां तक कि उससे मानवीय सत्ता जीवन चेतना की समर्थता और सशक्तता का नियम पुष्ट होता है।