Books - आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि- विधान-२
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आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि- विधान-२
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आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि- विधान-२
गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ बोलें-
ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
मित्रो !, कल्प साधना के संबंध में कल थोड़ी सी जानकारी दी थी कि यह कल्प आखिर है क्या? यह भी बताया था कि कल्प माने है- परिवर्तन। पर यह परिवर्तन क्या होगा? कौन करेगा? कैसेसंभव होगा? आप कुछ सहयोग करेंगे और हम आपकी सहायता करेंगे। कल हमने कहा था कि आपको अपने भीतर के दृष्टिकोण को बदल देना चाहिए। क्रिया भी इसमें सहायक है। इसके लिए आपसे जप करा रहे हैं, अनुष्ठान करा रहे हैं, ध्यान करा रहे है। भोजन के बारे में, आहार की भी साधना करा रहे हैं। ये क्रियाएँ हैं। इन क्रियाओं का मतलब सिर्फ इतना है कि आप अपने भीतर वाले दृष्टिकोण,चिंतन चरित्र, स्वभाव, रुचि और आकांक्षाओं को बदल दें। अगर आपने यह अनुमान लगा लिया हो कि केवल क्रिया करने से जादूगरी के तरीके से आपको कहीं आसमान से कोई सिद्धियाँ आ टपकेंगी, तो आप इस ख्याल को निकाल दीजिए, करना आपको ही पड़ेगा। आपके किए बिना कोई रास्ता नहीं है। आप अगर चुपचाप बैठकर के गुरुजी के आशीर्वाद, सीधे गायत्री माता के आशीर्वाद से या किसी मंत्र के चमत्कार से बदलना चाहते हों और अपनी परिस्थितियों को सुधारना चाहते हों और स्वयं कष्ट उठाने से इनकार करते हों तो ख्याल रखिए आपको सफलता मिलने वाली नहीं है। एक महीने का समय भी आपका बेकार चला जाएगा। अच्छा हो आप वास्तविकता को पहले समझ लें, फिर कदम बढ़ाएँ।
कल आपको यह बताया था कि किस तरीके से लोगों ने अपने आप को बदल लिया और मनःस्थिति बदलने के बाद में परिस्थितियाँ किस तरीके से बदल गई। कायाकल्प का स्वरूप यही है। फिर कायाकल्प में करना क्या पड़ता है? चलिए इसके लिए एक उदाहरण मैं आपको सुनाऊँगा। वह उदाहरण महामना मालवीय जी का है। महामना मालवीय जी ने एक कायाकल्प किया था। वे भी यही सोचते थे कि शरीर का कायाकल्प होगा। हम कह चुके हैं कि शरीर का कायाकल्प संभव नहीं है, लेकिन मन का कायाकल्प करने के लिए भी प्रक्रिया वही इस्तेमाल करनी पड़ती है जो शरीर के कायाकल्प के लिए कभी की जाती रही होगी, या कभी सफल होती रही होगी। महामना मालवीय जी का कायाकल्प कैसे हुआ था? मथुरा जिले में कोसी नाम की एक जगह है। उसके पास जंगल में एक महात्मा रहते थे, तपसी बाबा उनका नाम था। उन्होंने मालवीय जी से संपर्क स्थापित किया और कहा कि हम आपका कायाकल्प करा देंगे, आपके बुढ़ापे को जवानी में बदल देंगे। यह प्रक्रिया जिस तरीके से इस्तेमाल की गई, यह आपके लिए बहुत ध्यान देने लायक है और आपके मानसिक कायाकल्प में वह प्रक्रिया जरूर सहायता कर सकती है।
क्या हुआ था उनका? उनके तीन काम हुए थे। मालवीय जी को सबसे पहले पंचकर्म करने पड़े थे। पंचकर्म किसे कहते हैं? पंचकर्म कहते हैं शरीर के संशोधन को। इसमें स्नेहन, स्वेदन, वमन, विरेचन और वस्ति आदि पंचकर्मों के द्वारा शरीर का शोधन किया जाता है। पंचकमों में वमन, विरेचन द्वारा आमाशय में जितना भी मल और जहर भरा पड़ा था उसे निकाल दिया। आँतों में जितना भी जहर भरा पड़ा था उसे उलटी और दस्त कराके बाहर निकाल दिया। यह दो कृत्य हो गए। तीन और रह जाते हैं, जिनमें स्वेदन कहते हैं पसीना निकालने को अर्थात भाप देकर पसीना निकालना। पसीना इसलिए निकाला गया कि उनके शरीर में जहाँ- कहीं भी कोई विषाणु भरे होंगे या संचित मल भरा होगा, उसको निकालने का प्रयत्न किया गया। इसके बाद उन्हें बार- बार छींक दी गई। जुकाम के कीटाणु अथवा मस्तिष्क में जो मल भरे पड़े थे, उनको निकाला गया। इस तरीके से सारे के सारे मलों का संशोधन किया गया। इस तरीके से कल्प का पहला कृत्य- पहला अध्याय मलों का संशोधन है। जिनको भी पूरा न सही अधूरा ही शारीरिक कायाकल्प करना होगा तो पहले मलों का निष्कासन करना पड़ेगा। दूसरा, मालवीय जी को यह करना पड़ा कि चालीस दिन एक झोंपड़ी के भीतर कैद रहना पड़ा। चारों ओर से झोंपड़ी बंद थी, न सूरज की रोशनी जाती थी, न हवा जाती थी और न धूप जाती थी। बस उसके भीतर एकांत कोठरी में चालीस दिन उनको काटने पड़े। उसी में नहाते थे, पूजा- पाठ करते थे। जो कुछ खाना खाते रहे होंगे, वह भी उसी में भेज दिया जाता था। शौचादि क्रिया भी उसी में करते थे। बहरहाल उसमें से निकलना नहीं होता था। टहलना होता तो उसी में टहलते। ठीक इसी तरीके से चालीस दिन उन्होंने काटे।
अध्याय नंबर दो में मैं आपको यह समझाने वाला हूँ कि इन तीनों क्रियाओं का क्या उद्देश्य है और ये तीनों क्रियाएँ मनःक्षेत्र का कायाकल्प करने के लिए भी किस तरीके से लागू हो सकती हैं? दो बातें हो गई- एक हुआ उनका मल संशोधन और दूसरा हुआ एकांतसेवन। तीसरा एक और पक्ष यह था कि उनको विशेष पदार्थ खिलाए गए। क्या खिलाए गए, ऐसे पदार्थ खिलाए गए जिससे कि उनके शरीर में नए कोषाणु बने, नया जीवन आए। उनमें गिलोय जैसी टानिक टाइप की कुछ चीजें ऐसी थी जिन्हें एक फ्लास्क में बंद करके रखते थे और सात दिन बाद जब वह तैयार हो जाती थी तो पीसकर उन्हें पिलाते थे जिससे कि कायाकल्प में पुरानी खराबियाँ निकल जाएँ और नई अच्छाइयाँ शुरू हो जाएँ। यही कृत्य चालीस दिन तक चलता रहा। चालीस दिन के बाद क्या लाभ हुआ, ज्यादा तो मुझे नहीं मालूम, पर इतने लाभ तो मालवीय जी ने स्वयं छापे थे कि मेरी स्मरण शक्ति ठीक हो गई है और सफेद बाल काले हो गए हैं। ऐसे कई लाभ उनको हुए थे। ये लाभ कब तक टिके थे, इस बारे में मुझे कुछ नहीं कहना क्योंकि मैंने शारीरिक कायाकल्प को बावत कुछ कहा भी नहीं है और कुछ ऐसा कराने को स्थिति में भी मैं नहीं हूँ, लेकिन मानसिक कायाकल्प में भी इन्हीं तीनों सिद्धांतों को बराबर आपको लागू करना पड़ेगा। इससे कम में कुछ काम चलने वाला नहीं है। एक काम आपको यह करना पड़ेगा कि आपके भीतर जो भी संचित मल, आवरण और विक्षेप हैं, जो भी कषाय और कल्मष भरे पड़े हैं, उनकी ओर गौर करना पड़ेगा। न केवल गौर करना पड़ेगा, वरन इन्हें निकालना भी पड़ेगा। जद्दोजहद करनी पड़ेगी, लड़ना पड़ेगा।
आपका पिछला जीवन कैसे कुसंस्कारों से भरा पड़ा है और उन कुसंस्कारों को दूर करने के लिए आपको क्या करना चाहिए और यह कैसे संभव है? हमारी प्रायश्चित प्रणाली इसी के लिए है। प्रायश्चित पद्धति में यह बताया जाता है कि आदमी की आध्यात्मिक उन्नति में सबसे बड़ी रुकावट उसके पुराने किए हुए कर्म है। पुराने दुष्कर्म पत्थर की तरह से रास्ते में खड़े हो जाते हैं और एक कदम भी आगे बढ़ने नहीं देते, बार बार रोक देते हैं, क्योंकि उसका भविष्य बुरा होता है, उसको दंड मिलने हैं, इसलिए अच्छे काम भी नहीं करने देते और अच्छे कामों की ओर से मन उचाट देते हैं। इसलिए पहला काम हर साधक को अपने आपकी धुलाई के रूप में करना पड़ता है। रँगने से पहले धुलाई करनी पड़ती है। धुलाई अगर नहीं की जाए तो कपड़ा रँगा नहीं जाएगा। इसलिए पहला काम यह करना पड़ता है।
कल्प साधना में जो आप आए हैं तो यह कार्यपद्धति आपको समझनी होगी। आपके ऊपर दबाव डाला जाएगा और आप में उत्साह पैदा किया जाएगा कि आपके अंदर पिछले स्वभाव, पिछली गन्दी आदतें और पिछली क्रियापद्धति जो जम गई है, उसको आप हटा दीजिए उसको निकालिए, उसको छोड़िए। बुरी आदतें यदि छोड़ने से न छूटती हों तो उनसे लड़ना शुरू कीजिए। उनके विरुद्ध बगावत कीजिए। उनको अस्वीकार कर दीजिए, उनका असहयोग कीजिए और उनका दबाव मानने से इनकार कर दीजिए। आपके कायाकल्प में यह करने का पहला काम है। आप यह न करेंगे तो कल्प साधना, जिसके रंगीन सपने हमने दिखाए हैं और यह बताया है कि आपका जीवन दैवी जीवन होकर रहेगा और आप अच्छे शानदार आदमी होकर रहेंगे, पूरा हो सकना संभव नहीं है। यह एक काम तो आपको करना ही चाहिए। अगर आप यह नहीं करेंगे और पुराने घिनौने जीवन के ढर्रे पर ही चलते रहेंगे तो फिर हम क्या कर पाएँगे? फिर आपकी पूजा- उपासना क्या कर लेगी? आपको जप और अनुष्ठान चमत्कार कैसे दिखा पाएँगे? जादू- चमत्कार जैसा अध्यात्म नहीं है। अध्यात्म तो मानसिक पुरुषार्थ को कहते हैं। मानसिक पुरुषार्थ का यह एक काम तो आपको करना ही पड़ेगा।
दूसरा काम एक और आपको यहाँ करना पड़ेगा। उसका अर्थ है- जैसे मालवीय जी को चालीस दिन तक एक कोठरी में एकांतसेवन करना पड़ा था, आपको भी यहाँ चालीस दिन तो नहीं, पर एक महीने भर तक एकांतसेवन करना चाहिए। यह खास बात है। आपको निवास करने के लिए हमने एक कोठरी खासतौर से इसलिए दी है कि आप यह मानकर चलें कि आप एकाकी हैं। आप अकेले रह रहे हैं। इस दुनिया में आप अकेले हैं। अकेले ही आप आए थे और अकेले ही आपको जाना है, चलना है। किसी रास्ते पर हों तो भी आपको अकेले ही चलना है। वही एकांतसेवन है। इसी को कुटी प्रवेश कहते हैं। इसी को गुफा प्रवेश कहते है। प्राचीनकाल के संत महात्मा गुफा में घुस जाते थे, कोठरियों में रहते थे, एकांतसेवन करते थे, क्यों? क्योंकि उनके बाहर का, चारों ओर का जंजाल, जिसने उनको बुरी तरह से चक्रव्यूह में फँसे हुए अभिमन्यु के तरीके से जकड़ लिया है, उसमें से पार हो सकें। उससे अपने आप को अलग अनुभव कर सकें। अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिए आपको एकांत चाहिए। एकांत अगर आपको नहीं मिलेगा तो आप विचार तक नहीं कर पाएँगे कि क्या करें? हमको क्या करना है? पुरानी चीजों से कैसे आपको छुटकारा पाना है और नई चीजों को कैसे अपनाना है? इन दोनों के लिए एकांतसेवन आपके लिए आवश्यक है। एक महीने का यह एकांतसेवन आपके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। आपको रोका गया है कि आप जगह- जगह मत जाइए घूमिए मत। तीर्थयात्रा के बहाने यहाँ- वहाँ मटरगस्ती मत कीजिए, यहाँ- वहाँ चक्कर मत काटिए, कहीं मत जाइए। ऋषिकेश मत जाइए। एक महीने भर
आपको एक ही जगह रहना है।
आपको ऐसे रहना चाहिए जैसे कि माता के गर्भ में बच्चा रहता है। कल्पना कीजिए कि आप जिस कोठरी में अथवा गायत्री नगर शांतिकुंज जिसमें आप निवास करते हैं, यह माताजी का गर्भ है और आप माताजी के गर्भ में पल रहे हैं। आपका नया जन्म हो रहा है। आप अपना कायाकल्प करा रहे हैं। पेट में जो भ्रूण रहता है, वह चुपचाप बैठा रहता है। गड़बड़ नहीं फैलाता है। जो माता देती रहती है, उसी से अपना गुजारा करता रहता है। माता जिस हैसियत में रखती है, उसी में रहता है। आपको भी इसी हैसियत में रहना चाहिए। आपको यह अनुभव करना चाहिए कि आप यहाँ शांतिकुंज में निवास करते है गायत्री नगर में निवास करते हैं। यह क्या है? गुरु जी का बरतन पकाने का आँवा है। कुम्हार को आप जानते हैं, वह बरतन बनाता है और बनाने के बाद में कच्चे बरतनों को पकाता है। इस आँवे में से खिलौने भी निकलते हैं और न जाने क्या क्या निकलते हैं। आप चाहें तो यह मान सकते हैं कि गुरुजी ने यह आँवा लगाया हुआ है। कहाँ है आँवा? इस कोठरी में जिसमें कि आप रहते हैं। शांतिकुंज को आप आँवा मानिए। इस आँवे में आपको कैद कर दिया गया है और आपको पकाया जा रहा है। अगर आप एक महीने तक पकते रहेंगे, गड़बड़ नहीं फैलाएँगे, तो मजा आ जाएगा। आप अपने चित्त को इधर- उधर मत ले जाइए। घर वालों को याद मत कीजिए, बाहर वालों की समस्या पर ध्यान मत दीजिए। मन को इधर- उधर भागने मत दीजिए, शरीर को यहाँ- वहाँ भटकने मत दीजिए। यहाँ- वहाँ घूमते रहेंगे तो बताइए फिर काम कैसे बनेगा? कोई बच्चा भी के पेट में दंगल मचाए कि मम्मी मैं तो अभी नौ महीने पेट में नहीं रह सकता, जरा छुट्टी दे दीजिए मैं बाजार में से घूमकर आऊँ। तब आप समझ सकते हैं कि बच्चे का क्या हाल होगा? इसी तरह से अगर कुम्हार के बरतन चुपचाप बैठे न रहें और यह कहें कि साहब हम जाम को आ जाया करेंगे, पर दिन में तो बाजार में घूमा करेंगे और रात को आँवे में घुस जाया करेंगे। आप ही बताइए तब बरतन पकेंगे क्या? सब बिगड़ जाएगा। इसलिए आप बाहर की चिंता न कीजिए और न मन को बाहर भागने दीजिए।
तो क्या काम करें? यही मैं बताने वाला था कि अगर आप तीसरा वाला काम पूरा कर लेते हैं तो समझना चाहिए कि आपके कल्प- साधना का उद्देश्य पूरा हो गया और जिस लक्ष्य पर पहुँचने की आप इच्छा करते थे, अथवा जिस लक्ष्य पर हम आपको पहुँचाना चाहते थे, वह निश्चित रूप से सफल हो जाएगा। एक काम और कीजिए कि जिस तरह से मालवीय जी से तीसरा जो काम टॉनिक सेवन का कराया गया था, आपको भी टॉनिक सेवन करना चाहिए। टॉनिक सेवन से क्या मतलब हैं? टॉनिक सेवन से मतलब है कि जिन विचारों का आप में अभाव रहा है, उन विचारों को फिर से सेवन करना शुरू कीजिए। टॉनिक तो आपको मिला ही नहीं। इस संदर्भ में आप तो कुपोषण के शिकार रहे हैं अथवा विकृत भोजन करते रहे हैं। इसलिए आपका सारे का सारा मानसिक स्वास्थ्य गड़बड़ा गया है। तब क्या करें? तब आपको भविष्य में ऐसी विचारधारा के साथ, ऐसे लोगों के साथ, ऐसे लक्ष्य के साथ, ऐसी महान सत्ता के साथ अपने आप को संपर्क में रखना है जो आपको महान बनाने में समर्थ है? जो आपको सहारा दे सकती है, ऊँचा उठा सकती है, आप उसके संपर्क में आइए। इस बीच आप भगवान से संपर्क मिलाने की कोशिश कीजिए और लोगों से अपने आप को पीछे हटाइए। थोड़े दिनों के लिए यह मानकर चलिए कि आप और आपका भगवान दो ही हैं। फिर लक्ष्य की प्राप्ति आसान हो जाएगी।
भगवान किसे कहते हैं? भगवान सद्गुणों के, सत्प्रयासों के, आदर्शों के समुच्चय का नाम है। एक भगवान तो वह है जो सारे विश्व को सँभालता है, जिसको हम नियामक सत्ता कह सकते हैं, नियमन- नियंत्रण कह सकते हैं। एक भगवान वह है जो विश्वव्यापी है। विश्वव्यापी भगवान के लिए तो आप उसका कायदा- पालन कीजिए और फायदा उठाइए। कायदे को तोड़ेंगे तो मार खाएँगे। वह भगवान तो आदमी के लिए न्याय और नियमन के अलावा दूसरा कुछ करता भी नहीं है, लेकिन जो हमारी व्यक्तिगत सहायता कर सकता है, वह हमारी 'सुपरकांशसनेस' है, हमारी अंतरात्मा है। अंतरात्मा को ही परमात्मा कहते हैं। गुण- कर्म की विशेषता का नाम परमात्मा है। उसी को सुपरकांशसनेस कहते हैं। आप उसके साथ में अपने आप को जोड़ दीजिए। अभी तक आपका संबंध कुसंस्कारों के साथ, घिनौनेपन के साथ रहा है। घटिया लोगों के साथ रहा है। चारों ओर जो वातावरण छाया हुआ है, वह आपको गिरावट के अलावा और क्या नसीहत देगा। आपने जो स्वभाव सीखा है, यह घिनौने जीवन के अलावा क्या सिखा सकता है? आप चारों तरफ से नर- पशुओं से घिरे हैं। आप थोड़े दिनों के लिए इस दायरे से बाहर हो जाइए और बाहर होकर के ऐसे लोगों के साथ रिश्ता बनाइए जिसके समुदाय में जाकर के आपका ऊँचा उठना संभव है। ऋषियों के साथ संबंध बनाइए, संतों के साथ संबंध बनाइए, देवताओं के साथ संबंध बनाइए भगवान के साथ संबंध बनाइए।
ये सब हैं क्या? बिलकुल हैं और आपके साथ हैं, आप देख नहीं पा रहे हैं। यहाँ जिस कोठरी में आप रहते है, जिस वातावरण में रहते हैं, उसमें चारों ओर संत छाया हुआ है, ऋषि छाया हुआ है, चारों ओर भगवान छाया हुआ है और साथ में आदर्श छाए हुए हैं। दृष्टिकोण छाए हुए हैं, प्रेरणाएँ छाई हुई हैं और आपको ऊँचा उठाने के लिए जो दिशाधाराएँ आवश्यक थी, छाई हुई हैं। आप इनके साथ अपना संबंध मिलाइए। आप पीछे मुड़कर के मत देखिए, आगे की तरफ विचार कीजिए। आप महानता के साथ में जुड़ जाइए, आदर्शों के साथ में जुड़ जाइए। एक महीने तक तो आपको यही करना है, अपने आप को साधना में लगाए रखना है, चिंतन- मनन करना है। इस बीच में आपको जप और अनुष्ठान करना है, योगाभ्यास करना है और अपने आप का परिशोधन करना है। तो क्या हम अकेले कर लेंगे? नहीं आप अकेले कहाँ हैं? पीठ पीछे हम जो हैं। हम आपकी जरूर सहायता करेंगे। इम्तहान में पास तो बच्चे ही होते हैं, पढ़ना तो उन्हीं को पड़ता है, स्कूल तो वही जाया करते हैं, पर क्या आप समझते हैं कि बच्चे जब स्कूल जाते हैं तो अपने ही बलबूते पर पास हो जाते हैं? माता उनके खाने- पीने का प्रबंध करती है, पिता उनकी फीस का इंतजाम करते हैं, मास्टर उनको पढ़ने में सहायता करते हैं। तीनों ओर की सहायता मिलती है, तब कहीं वह हो पाता है कि उनकी पढ़ने की मेहनत और पुरुषार्थ सफल हो जाएँ। हम आपके लिए सब तीनों इंतजाम कर रहे हैं। माता आपको खुराक देने के लिए तैयार है। आपको ऊँचा उठाने के लिए पिता का जो कर्तव्य था, उसको पूर्ण करने के लिए हम तैयार हैं। गुरु का हम और हमारे गुरु वह भी इस वातावरण में जिसमें आप निवास करते हैं, आपकी सहायता के लिए हम तीनों तैयार है।
गुरु के रूप में वह सत्ता जिसके आधार पर शांतिकुंज बनाया गया है और जिसकी आज्ञा से ये कल्पसाधना के शिविर लगाए गए हैं, ऐसी परम- सत्ता आपको गुरु के तरीके से मार्गदर्शन करने के लिए तैयार है और सहर्ष यहाँ विद्यमान है। आप लोग उसका फायदा उठाइए, वे आपकी सहायता करेंगे। हमको चाहें तो आप वही मान सकते हैं, अभिभावक मान सकते हैं। हमारे पास जो कुछ तप होगा, पुण्य होगा, ज्ञात होगा, चरित्र होगा, दबाव होगा, तो आप यकीन रखिए कि हम न केवल आप पर दबाव डालेंगे, सिखावेंगे वरन उसका एक हिस्सा भी देंगे, बाप भी तो अपने बच्चे को शिक्षा ही थोड़े देता है, सहायता भी देता है। हमारी शिक्षा भी आपको मिलने वाली है और सहायता भी मिलने वाली है। माता जी का भी आपको स्नेह मिलने वाला है, प्यार- दुलार भी मिलने वाला है और अनुदान भी मिलने वाला है। तीनों तरफ से आपके ऊपर सौभाग्य की वर्षा होने वाली है। आप कैसे भाग्यवान हैं। आप माता जी का स्नेह यहाँ पा रहे हैं, पिता का अनुशासन और उनका सहयोग प्राप्त कर रहे हैं। आप कैसे भाग्यवान हैं जो एक ऐसे महान गुरु से जो न केवल आपको, वरन आप जैसे लाखों व्यक्तियों को, न केवल लाखों व्यक्तियों को, बल्कि सारे जमाने को और सारे जमाने की प्रवृत्तियों को मार्गदर्शन करने में समर्थ है और जो इस लायक हैं कि सारे जमाने को पलटकर रख देगा। आपको तीनों का सहयोग मिलता रहता है, आपके भाग्य की सराहना किए विना हम रह नहीं सकते। आपके लिए कल्प की संभावनाएँ बिलकुल सुनिश्चित हैं। आपका भूतकाल जैसे था, वह यहाँ का यहीं रह जाए, आपका पुराना वाला केंचुल यहीं रह जाए और आप जाएँ तो ऐसे नए आदमी होकर जाएँ कि मजा आ जाए।
अभी तक आप जिस पिंजड़े में कैद रहे हैं, उसकी तीलियों को काटने का हमारा मन है। आप भी थोड़ा प्रयत्न कीजिए, थोड़ा हम प्रयत्न करेंगे। अपने पंखों को पैने कीजिए, ताकि जैसे ही पिंजड़े की तीलियाँ कटें आप इसमें से भागना शुरू कर दें तीलियाँ हम काट देते हैं, पंखों को आप पैना कीजिए। अगर आप अपने पंखों को पैना नहीं करेंगे, सिकोड़कर रखेंगे, तो हम तीलियाँ काट भी दे तो भी आप पिंजड़े में यहीं बैठे रहेंगे। पंख तो आपको ही उड़ाने हैं, हम उड़ेंगे थोड़े ही। हम तो तीलियाँ काटेंगे। आप हमारे सहयोग का फायदा उठाइए। यहाँ की परिस्थितियों का फायदा उठाइए। यहाँ के मार्गदर्शन का फायदा उठाइए और अपने भाग्य तथा भविष्य को शानदार बनाने के लिए कमर कसकर तैयार हो जाइए।
आप गुफा में रहिए, एकान्तसेवी रहिए, हृदय की गुफा में घुस जाइए। अंतर्मुखी होकर रहिए, बाहर की बातों में विचार मत कीजिए, केवल अपनी ही समस्या पर विचार कीजिए, अपने भविष्य के बारे में विचार कीजिए, अपने भूतकाल पर विचार कीजिए और अपने भविष्य का निर्धारण करने के लिए वह काम कीजिए जिनकी कि आपको जरूरत है। हमारे सहयोग को आप ग्रहण कीजिए उसे हजम कीजिए। हम आपको थाली में भोजन परोसकर देते हैं, आप खाइए उसको और उसे पचा जाइए। खाना आपका काम है, पचाना आपका काम है। भोजन ही तो हम दे पाएँगे, आपके बदले हम पचा थोड़े की देंगे। खाइए आप परोसते हम हैं। दोनों का सहयोग भगवान करे कितना शानदार हो और आपके उज्ज्वल भविष्य करने में इस शिविर का कितना बड़ा योगदान हो। आप यह देख पाएँगे और यह संभव है जैसी कि हम आशा करते थे और आपको आशा दिलाते थे। थोड़ा सा उत्साह दिखाइए थोड़ासा मनोबल बढ़ाइए, फिर देखिए आपको यह कल्प साधना सत्र कितना शानदार और कितना आपके भविष्य को उज्ज्वल करने में सहायक सिद्ध होता है?
ॐ शांतिः:
गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ बोलें-
ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
मित्रो !, कल्प साधना के संबंध में कल थोड़ी सी जानकारी दी थी कि यह कल्प आखिर है क्या? यह भी बताया था कि कल्प माने है- परिवर्तन। पर यह परिवर्तन क्या होगा? कौन करेगा? कैसेसंभव होगा? आप कुछ सहयोग करेंगे और हम आपकी सहायता करेंगे। कल हमने कहा था कि आपको अपने भीतर के दृष्टिकोण को बदल देना चाहिए। क्रिया भी इसमें सहायक है। इसके लिए आपसे जप करा रहे हैं, अनुष्ठान करा रहे हैं, ध्यान करा रहे है। भोजन के बारे में, आहार की भी साधना करा रहे हैं। ये क्रियाएँ हैं। इन क्रियाओं का मतलब सिर्फ इतना है कि आप अपने भीतर वाले दृष्टिकोण,चिंतन चरित्र, स्वभाव, रुचि और आकांक्षाओं को बदल दें। अगर आपने यह अनुमान लगा लिया हो कि केवल क्रिया करने से जादूगरी के तरीके से आपको कहीं आसमान से कोई सिद्धियाँ आ टपकेंगी, तो आप इस ख्याल को निकाल दीजिए, करना आपको ही पड़ेगा। आपके किए बिना कोई रास्ता नहीं है। आप अगर चुपचाप बैठकर के गुरुजी के आशीर्वाद, सीधे गायत्री माता के आशीर्वाद से या किसी मंत्र के चमत्कार से बदलना चाहते हों और अपनी परिस्थितियों को सुधारना चाहते हों और स्वयं कष्ट उठाने से इनकार करते हों तो ख्याल रखिए आपको सफलता मिलने वाली नहीं है। एक महीने का समय भी आपका बेकार चला जाएगा। अच्छा हो आप वास्तविकता को पहले समझ लें, फिर कदम बढ़ाएँ।
कल आपको यह बताया था कि किस तरीके से लोगों ने अपने आप को बदल लिया और मनःस्थिति बदलने के बाद में परिस्थितियाँ किस तरीके से बदल गई। कायाकल्प का स्वरूप यही है। फिर कायाकल्प में करना क्या पड़ता है? चलिए इसके लिए एक उदाहरण मैं आपको सुनाऊँगा। वह उदाहरण महामना मालवीय जी का है। महामना मालवीय जी ने एक कायाकल्प किया था। वे भी यही सोचते थे कि शरीर का कायाकल्प होगा। हम कह चुके हैं कि शरीर का कायाकल्प संभव नहीं है, लेकिन मन का कायाकल्प करने के लिए भी प्रक्रिया वही इस्तेमाल करनी पड़ती है जो शरीर के कायाकल्प के लिए कभी की जाती रही होगी, या कभी सफल होती रही होगी। महामना मालवीय जी का कायाकल्प कैसे हुआ था? मथुरा जिले में कोसी नाम की एक जगह है। उसके पास जंगल में एक महात्मा रहते थे, तपसी बाबा उनका नाम था। उन्होंने मालवीय जी से संपर्क स्थापित किया और कहा कि हम आपका कायाकल्प करा देंगे, आपके बुढ़ापे को जवानी में बदल देंगे। यह प्रक्रिया जिस तरीके से इस्तेमाल की गई, यह आपके लिए बहुत ध्यान देने लायक है और आपके मानसिक कायाकल्प में वह प्रक्रिया जरूर सहायता कर सकती है।
क्या हुआ था उनका? उनके तीन काम हुए थे। मालवीय जी को सबसे पहले पंचकर्म करने पड़े थे। पंचकर्म किसे कहते हैं? पंचकर्म कहते हैं शरीर के संशोधन को। इसमें स्नेहन, स्वेदन, वमन, विरेचन और वस्ति आदि पंचकर्मों के द्वारा शरीर का शोधन किया जाता है। पंचकमों में वमन, विरेचन द्वारा आमाशय में जितना भी मल और जहर भरा पड़ा था उसे निकाल दिया। आँतों में जितना भी जहर भरा पड़ा था उसे उलटी और दस्त कराके बाहर निकाल दिया। यह दो कृत्य हो गए। तीन और रह जाते हैं, जिनमें स्वेदन कहते हैं पसीना निकालने को अर्थात भाप देकर पसीना निकालना। पसीना इसलिए निकाला गया कि उनके शरीर में जहाँ- कहीं भी कोई विषाणु भरे होंगे या संचित मल भरा होगा, उसको निकालने का प्रयत्न किया गया। इसके बाद उन्हें बार- बार छींक दी गई। जुकाम के कीटाणु अथवा मस्तिष्क में जो मल भरे पड़े थे, उनको निकाला गया। इस तरीके से सारे के सारे मलों का संशोधन किया गया। इस तरीके से कल्प का पहला कृत्य- पहला अध्याय मलों का संशोधन है। जिनको भी पूरा न सही अधूरा ही शारीरिक कायाकल्प करना होगा तो पहले मलों का निष्कासन करना पड़ेगा। दूसरा, मालवीय जी को यह करना पड़ा कि चालीस दिन एक झोंपड़ी के भीतर कैद रहना पड़ा। चारों ओर से झोंपड़ी बंद थी, न सूरज की रोशनी जाती थी, न हवा जाती थी और न धूप जाती थी। बस उसके भीतर एकांत कोठरी में चालीस दिन उनको काटने पड़े। उसी में नहाते थे, पूजा- पाठ करते थे। जो कुछ खाना खाते रहे होंगे, वह भी उसी में भेज दिया जाता था। शौचादि क्रिया भी उसी में करते थे। बहरहाल उसमें से निकलना नहीं होता था। टहलना होता तो उसी में टहलते। ठीक इसी तरीके से चालीस दिन उन्होंने काटे।
अध्याय नंबर दो में मैं आपको यह समझाने वाला हूँ कि इन तीनों क्रियाओं का क्या उद्देश्य है और ये तीनों क्रियाएँ मनःक्षेत्र का कायाकल्प करने के लिए भी किस तरीके से लागू हो सकती हैं? दो बातें हो गई- एक हुआ उनका मल संशोधन और दूसरा हुआ एकांतसेवन। तीसरा एक और पक्ष यह था कि उनको विशेष पदार्थ खिलाए गए। क्या खिलाए गए, ऐसे पदार्थ खिलाए गए जिससे कि उनके शरीर में नए कोषाणु बने, नया जीवन आए। उनमें गिलोय जैसी टानिक टाइप की कुछ चीजें ऐसी थी जिन्हें एक फ्लास्क में बंद करके रखते थे और सात दिन बाद जब वह तैयार हो जाती थी तो पीसकर उन्हें पिलाते थे जिससे कि कायाकल्प में पुरानी खराबियाँ निकल जाएँ और नई अच्छाइयाँ शुरू हो जाएँ। यही कृत्य चालीस दिन तक चलता रहा। चालीस दिन के बाद क्या लाभ हुआ, ज्यादा तो मुझे नहीं मालूम, पर इतने लाभ तो मालवीय जी ने स्वयं छापे थे कि मेरी स्मरण शक्ति ठीक हो गई है और सफेद बाल काले हो गए हैं। ऐसे कई लाभ उनको हुए थे। ये लाभ कब तक टिके थे, इस बारे में मुझे कुछ नहीं कहना क्योंकि मैंने शारीरिक कायाकल्प को बावत कुछ कहा भी नहीं है और कुछ ऐसा कराने को स्थिति में भी मैं नहीं हूँ, लेकिन मानसिक कायाकल्प में भी इन्हीं तीनों सिद्धांतों को बराबर आपको लागू करना पड़ेगा। इससे कम में कुछ काम चलने वाला नहीं है। एक काम आपको यह करना पड़ेगा कि आपके भीतर जो भी संचित मल, आवरण और विक्षेप हैं, जो भी कषाय और कल्मष भरे पड़े हैं, उनकी ओर गौर करना पड़ेगा। न केवल गौर करना पड़ेगा, वरन इन्हें निकालना भी पड़ेगा। जद्दोजहद करनी पड़ेगी, लड़ना पड़ेगा।
आपका पिछला जीवन कैसे कुसंस्कारों से भरा पड़ा है और उन कुसंस्कारों को दूर करने के लिए आपको क्या करना चाहिए और यह कैसे संभव है? हमारी प्रायश्चित प्रणाली इसी के लिए है। प्रायश्चित पद्धति में यह बताया जाता है कि आदमी की आध्यात्मिक उन्नति में सबसे बड़ी रुकावट उसके पुराने किए हुए कर्म है। पुराने दुष्कर्म पत्थर की तरह से रास्ते में खड़े हो जाते हैं और एक कदम भी आगे बढ़ने नहीं देते, बार बार रोक देते हैं, क्योंकि उसका भविष्य बुरा होता है, उसको दंड मिलने हैं, इसलिए अच्छे काम भी नहीं करने देते और अच्छे कामों की ओर से मन उचाट देते हैं। इसलिए पहला काम हर साधक को अपने आपकी धुलाई के रूप में करना पड़ता है। रँगने से पहले धुलाई करनी पड़ती है। धुलाई अगर नहीं की जाए तो कपड़ा रँगा नहीं जाएगा। इसलिए पहला काम यह करना पड़ता है।
कल्प साधना में जो आप आए हैं तो यह कार्यपद्धति आपको समझनी होगी। आपके ऊपर दबाव डाला जाएगा और आप में उत्साह पैदा किया जाएगा कि आपके अंदर पिछले स्वभाव, पिछली गन्दी आदतें और पिछली क्रियापद्धति जो जम गई है, उसको आप हटा दीजिए उसको निकालिए, उसको छोड़िए। बुरी आदतें यदि छोड़ने से न छूटती हों तो उनसे लड़ना शुरू कीजिए। उनके विरुद्ध बगावत कीजिए। उनको अस्वीकार कर दीजिए, उनका असहयोग कीजिए और उनका दबाव मानने से इनकार कर दीजिए। आपके कायाकल्प में यह करने का पहला काम है। आप यह न करेंगे तो कल्प साधना, जिसके रंगीन सपने हमने दिखाए हैं और यह बताया है कि आपका जीवन दैवी जीवन होकर रहेगा और आप अच्छे शानदार आदमी होकर रहेंगे, पूरा हो सकना संभव नहीं है। यह एक काम तो आपको करना ही चाहिए। अगर आप यह नहीं करेंगे और पुराने घिनौने जीवन के ढर्रे पर ही चलते रहेंगे तो फिर हम क्या कर पाएँगे? फिर आपकी पूजा- उपासना क्या कर लेगी? आपको जप और अनुष्ठान चमत्कार कैसे दिखा पाएँगे? जादू- चमत्कार जैसा अध्यात्म नहीं है। अध्यात्म तो मानसिक पुरुषार्थ को कहते हैं। मानसिक पुरुषार्थ का यह एक काम तो आपको करना ही पड़ेगा।
दूसरा काम एक और आपको यहाँ करना पड़ेगा। उसका अर्थ है- जैसे मालवीय जी को चालीस दिन तक एक कोठरी में एकांतसेवन करना पड़ा था, आपको भी यहाँ चालीस दिन तो नहीं, पर एक महीने भर तक एकांतसेवन करना चाहिए। यह खास बात है। आपको निवास करने के लिए हमने एक कोठरी खासतौर से इसलिए दी है कि आप यह मानकर चलें कि आप एकाकी हैं। आप अकेले रह रहे हैं। इस दुनिया में आप अकेले हैं। अकेले ही आप आए थे और अकेले ही आपको जाना है, चलना है। किसी रास्ते पर हों तो भी आपको अकेले ही चलना है। वही एकांतसेवन है। इसी को कुटी प्रवेश कहते हैं। इसी को गुफा प्रवेश कहते है। प्राचीनकाल के संत महात्मा गुफा में घुस जाते थे, कोठरियों में रहते थे, एकांतसेवन करते थे, क्यों? क्योंकि उनके बाहर का, चारों ओर का जंजाल, जिसने उनको बुरी तरह से चक्रव्यूह में फँसे हुए अभिमन्यु के तरीके से जकड़ लिया है, उसमें से पार हो सकें। उससे अपने आप को अलग अनुभव कर सकें। अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिए आपको एकांत चाहिए। एकांत अगर आपको नहीं मिलेगा तो आप विचार तक नहीं कर पाएँगे कि क्या करें? हमको क्या करना है? पुरानी चीजों से कैसे आपको छुटकारा पाना है और नई चीजों को कैसे अपनाना है? इन दोनों के लिए एकांतसेवन आपके लिए आवश्यक है। एक महीने का यह एकांतसेवन आपके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। आपको रोका गया है कि आप जगह- जगह मत जाइए घूमिए मत। तीर्थयात्रा के बहाने यहाँ- वहाँ मटरगस्ती मत कीजिए, यहाँ- वहाँ चक्कर मत काटिए, कहीं मत जाइए। ऋषिकेश मत जाइए। एक महीने भर
आपको एक ही जगह रहना है।
आपको ऐसे रहना चाहिए जैसे कि माता के गर्भ में बच्चा रहता है। कल्पना कीजिए कि आप जिस कोठरी में अथवा गायत्री नगर शांतिकुंज जिसमें आप निवास करते हैं, यह माताजी का गर्भ है और आप माताजी के गर्भ में पल रहे हैं। आपका नया जन्म हो रहा है। आप अपना कायाकल्प करा रहे हैं। पेट में जो भ्रूण रहता है, वह चुपचाप बैठा रहता है। गड़बड़ नहीं फैलाता है। जो माता देती रहती है, उसी से अपना गुजारा करता रहता है। माता जिस हैसियत में रखती है, उसी में रहता है। आपको भी इसी हैसियत में रहना चाहिए। आपको यह अनुभव करना चाहिए कि आप यहाँ शांतिकुंज में निवास करते है गायत्री नगर में निवास करते हैं। यह क्या है? गुरु जी का बरतन पकाने का आँवा है। कुम्हार को आप जानते हैं, वह बरतन बनाता है और बनाने के बाद में कच्चे बरतनों को पकाता है। इस आँवे में से खिलौने भी निकलते हैं और न जाने क्या क्या निकलते हैं। आप चाहें तो यह मान सकते हैं कि गुरुजी ने यह आँवा लगाया हुआ है। कहाँ है आँवा? इस कोठरी में जिसमें कि आप रहते हैं। शांतिकुंज को आप आँवा मानिए। इस आँवे में आपको कैद कर दिया गया है और आपको पकाया जा रहा है। अगर आप एक महीने तक पकते रहेंगे, गड़बड़ नहीं फैलाएँगे, तो मजा आ जाएगा। आप अपने चित्त को इधर- उधर मत ले जाइए। घर वालों को याद मत कीजिए, बाहर वालों की समस्या पर ध्यान मत दीजिए। मन को इधर- उधर भागने मत दीजिए, शरीर को यहाँ- वहाँ भटकने मत दीजिए। यहाँ- वहाँ घूमते रहेंगे तो बताइए फिर काम कैसे बनेगा? कोई बच्चा भी के पेट में दंगल मचाए कि मम्मी मैं तो अभी नौ महीने पेट में नहीं रह सकता, जरा छुट्टी दे दीजिए मैं बाजार में से घूमकर आऊँ। तब आप समझ सकते हैं कि बच्चे का क्या हाल होगा? इसी तरह से अगर कुम्हार के बरतन चुपचाप बैठे न रहें और यह कहें कि साहब हम जाम को आ जाया करेंगे, पर दिन में तो बाजार में घूमा करेंगे और रात को आँवे में घुस जाया करेंगे। आप ही बताइए तब बरतन पकेंगे क्या? सब बिगड़ जाएगा। इसलिए आप बाहर की चिंता न कीजिए और न मन को बाहर भागने दीजिए।
तो क्या काम करें? यही मैं बताने वाला था कि अगर आप तीसरा वाला काम पूरा कर लेते हैं तो समझना चाहिए कि आपके कल्प- साधना का उद्देश्य पूरा हो गया और जिस लक्ष्य पर पहुँचने की आप इच्छा करते थे, अथवा जिस लक्ष्य पर हम आपको पहुँचाना चाहते थे, वह निश्चित रूप से सफल हो जाएगा। एक काम और कीजिए कि जिस तरह से मालवीय जी से तीसरा जो काम टॉनिक सेवन का कराया गया था, आपको भी टॉनिक सेवन करना चाहिए। टॉनिक सेवन से क्या मतलब हैं? टॉनिक सेवन से मतलब है कि जिन विचारों का आप में अभाव रहा है, उन विचारों को फिर से सेवन करना शुरू कीजिए। टॉनिक तो आपको मिला ही नहीं। इस संदर्भ में आप तो कुपोषण के शिकार रहे हैं अथवा विकृत भोजन करते रहे हैं। इसलिए आपका सारे का सारा मानसिक स्वास्थ्य गड़बड़ा गया है। तब क्या करें? तब आपको भविष्य में ऐसी विचारधारा के साथ, ऐसे लोगों के साथ, ऐसे लक्ष्य के साथ, ऐसी महान सत्ता के साथ अपने आप को संपर्क में रखना है जो आपको महान बनाने में समर्थ है? जो आपको सहारा दे सकती है, ऊँचा उठा सकती है, आप उसके संपर्क में आइए। इस बीच आप भगवान से संपर्क मिलाने की कोशिश कीजिए और लोगों से अपने आप को पीछे हटाइए। थोड़े दिनों के लिए यह मानकर चलिए कि आप और आपका भगवान दो ही हैं। फिर लक्ष्य की प्राप्ति आसान हो जाएगी।
भगवान किसे कहते हैं? भगवान सद्गुणों के, सत्प्रयासों के, आदर्शों के समुच्चय का नाम है। एक भगवान तो वह है जो सारे विश्व को सँभालता है, जिसको हम नियामक सत्ता कह सकते हैं, नियमन- नियंत्रण कह सकते हैं। एक भगवान वह है जो विश्वव्यापी है। विश्वव्यापी भगवान के लिए तो आप उसका कायदा- पालन कीजिए और फायदा उठाइए। कायदे को तोड़ेंगे तो मार खाएँगे। वह भगवान तो आदमी के लिए न्याय और नियमन के अलावा दूसरा कुछ करता भी नहीं है, लेकिन जो हमारी व्यक्तिगत सहायता कर सकता है, वह हमारी 'सुपरकांशसनेस' है, हमारी अंतरात्मा है। अंतरात्मा को ही परमात्मा कहते हैं। गुण- कर्म की विशेषता का नाम परमात्मा है। उसी को सुपरकांशसनेस कहते हैं। आप उसके साथ में अपने आप को जोड़ दीजिए। अभी तक आपका संबंध कुसंस्कारों के साथ, घिनौनेपन के साथ रहा है। घटिया लोगों के साथ रहा है। चारों ओर जो वातावरण छाया हुआ है, वह आपको गिरावट के अलावा और क्या नसीहत देगा। आपने जो स्वभाव सीखा है, यह घिनौने जीवन के अलावा क्या सिखा सकता है? आप चारों तरफ से नर- पशुओं से घिरे हैं। आप थोड़े दिनों के लिए इस दायरे से बाहर हो जाइए और बाहर होकर के ऐसे लोगों के साथ रिश्ता बनाइए जिसके समुदाय में जाकर के आपका ऊँचा उठना संभव है। ऋषियों के साथ संबंध बनाइए, संतों के साथ संबंध बनाइए, देवताओं के साथ संबंध बनाइए भगवान के साथ संबंध बनाइए।
ये सब हैं क्या? बिलकुल हैं और आपके साथ हैं, आप देख नहीं पा रहे हैं। यहाँ जिस कोठरी में आप रहते है, जिस वातावरण में रहते हैं, उसमें चारों ओर संत छाया हुआ है, ऋषि छाया हुआ है, चारों ओर भगवान छाया हुआ है और साथ में आदर्श छाए हुए हैं। दृष्टिकोण छाए हुए हैं, प्रेरणाएँ छाई हुई हैं और आपको ऊँचा उठाने के लिए जो दिशाधाराएँ आवश्यक थी, छाई हुई हैं। आप इनके साथ अपना संबंध मिलाइए। आप पीछे मुड़कर के मत देखिए, आगे की तरफ विचार कीजिए। आप महानता के साथ में जुड़ जाइए, आदर्शों के साथ में जुड़ जाइए। एक महीने तक तो आपको यही करना है, अपने आप को साधना में लगाए रखना है, चिंतन- मनन करना है। इस बीच में आपको जप और अनुष्ठान करना है, योगाभ्यास करना है और अपने आप का परिशोधन करना है। तो क्या हम अकेले कर लेंगे? नहीं आप अकेले कहाँ हैं? पीठ पीछे हम जो हैं। हम आपकी जरूर सहायता करेंगे। इम्तहान में पास तो बच्चे ही होते हैं, पढ़ना तो उन्हीं को पड़ता है, स्कूल तो वही जाया करते हैं, पर क्या आप समझते हैं कि बच्चे जब स्कूल जाते हैं तो अपने ही बलबूते पर पास हो जाते हैं? माता उनके खाने- पीने का प्रबंध करती है, पिता उनकी फीस का इंतजाम करते हैं, मास्टर उनको पढ़ने में सहायता करते हैं। तीनों ओर की सहायता मिलती है, तब कहीं वह हो पाता है कि उनकी पढ़ने की मेहनत और पुरुषार्थ सफल हो जाएँ। हम आपके लिए सब तीनों इंतजाम कर रहे हैं। माता आपको खुराक देने के लिए तैयार है। आपको ऊँचा उठाने के लिए पिता का जो कर्तव्य था, उसको पूर्ण करने के लिए हम तैयार हैं। गुरु का हम और हमारे गुरु वह भी इस वातावरण में जिसमें आप निवास करते हैं, आपकी सहायता के लिए हम तीनों तैयार है।
गुरु के रूप में वह सत्ता जिसके आधार पर शांतिकुंज बनाया गया है और जिसकी आज्ञा से ये कल्पसाधना के शिविर लगाए गए हैं, ऐसी परम- सत्ता आपको गुरु के तरीके से मार्गदर्शन करने के लिए तैयार है और सहर्ष यहाँ विद्यमान है। आप लोग उसका फायदा उठाइए, वे आपकी सहायता करेंगे। हमको चाहें तो आप वही मान सकते हैं, अभिभावक मान सकते हैं। हमारे पास जो कुछ तप होगा, पुण्य होगा, ज्ञात होगा, चरित्र होगा, दबाव होगा, तो आप यकीन रखिए कि हम न केवल आप पर दबाव डालेंगे, सिखावेंगे वरन उसका एक हिस्सा भी देंगे, बाप भी तो अपने बच्चे को शिक्षा ही थोड़े देता है, सहायता भी देता है। हमारी शिक्षा भी आपको मिलने वाली है और सहायता भी मिलने वाली है। माता जी का भी आपको स्नेह मिलने वाला है, प्यार- दुलार भी मिलने वाला है और अनुदान भी मिलने वाला है। तीनों तरफ से आपके ऊपर सौभाग्य की वर्षा होने वाली है। आप कैसे भाग्यवान हैं। आप माता जी का स्नेह यहाँ पा रहे हैं, पिता का अनुशासन और उनका सहयोग प्राप्त कर रहे हैं। आप कैसे भाग्यवान हैं जो एक ऐसे महान गुरु से जो न केवल आपको, वरन आप जैसे लाखों व्यक्तियों को, न केवल लाखों व्यक्तियों को, बल्कि सारे जमाने को और सारे जमाने की प्रवृत्तियों को मार्गदर्शन करने में समर्थ है और जो इस लायक हैं कि सारे जमाने को पलटकर रख देगा। आपको तीनों का सहयोग मिलता रहता है, आपके भाग्य की सराहना किए विना हम रह नहीं सकते। आपके लिए कल्प की संभावनाएँ बिलकुल सुनिश्चित हैं। आपका भूतकाल जैसे था, वह यहाँ का यहीं रह जाए, आपका पुराना वाला केंचुल यहीं रह जाए और आप जाएँ तो ऐसे नए आदमी होकर जाएँ कि मजा आ जाए।
अभी तक आप जिस पिंजड़े में कैद रहे हैं, उसकी तीलियों को काटने का हमारा मन है। आप भी थोड़ा प्रयत्न कीजिए, थोड़ा हम प्रयत्न करेंगे। अपने पंखों को पैने कीजिए, ताकि जैसे ही पिंजड़े की तीलियाँ कटें आप इसमें से भागना शुरू कर दें तीलियाँ हम काट देते हैं, पंखों को आप पैना कीजिए। अगर आप अपने पंखों को पैना नहीं करेंगे, सिकोड़कर रखेंगे, तो हम तीलियाँ काट भी दे तो भी आप पिंजड़े में यहीं बैठे रहेंगे। पंख तो आपको ही उड़ाने हैं, हम उड़ेंगे थोड़े ही। हम तो तीलियाँ काटेंगे। आप हमारे सहयोग का फायदा उठाइए। यहाँ की परिस्थितियों का फायदा उठाइए। यहाँ के मार्गदर्शन का फायदा उठाइए और अपने भाग्य तथा भविष्य को शानदार बनाने के लिए कमर कसकर तैयार हो जाइए।
आप गुफा में रहिए, एकान्तसेवी रहिए, हृदय की गुफा में घुस जाइए। अंतर्मुखी होकर रहिए, बाहर की बातों में विचार मत कीजिए, केवल अपनी ही समस्या पर विचार कीजिए, अपने भविष्य के बारे में विचार कीजिए, अपने भूतकाल पर विचार कीजिए और अपने भविष्य का निर्धारण करने के लिए वह काम कीजिए जिनकी कि आपको जरूरत है। हमारे सहयोग को आप ग्रहण कीजिए उसे हजम कीजिए। हम आपको थाली में भोजन परोसकर देते हैं, आप खाइए उसको और उसे पचा जाइए। खाना आपका काम है, पचाना आपका काम है। भोजन ही तो हम दे पाएँगे, आपके बदले हम पचा थोड़े की देंगे। खाइए आप परोसते हम हैं। दोनों का सहयोग भगवान करे कितना शानदार हो और आपके उज्ज्वल भविष्य करने में इस शिविर का कितना बड़ा योगदान हो। आप यह देख पाएँगे और यह संभव है जैसी कि हम आशा करते थे और आपको आशा दिलाते थे। थोड़ा सा उत्साह दिखाइए थोड़ासा मनोबल बढ़ाइए, फिर देखिए आपको यह कल्प साधना सत्र कितना शानदार और कितना आपके भविष्य को उज्ज्वल करने में सहायक सिद्ध होता है?
ॐ शांतिः: