Books - परिवर्तन के महान् क्षण
Media: TEXT
Language: EN
Language: EN
हमारी भविष्यवाणी
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
अब बात भविष्य की आती है, जिसमें प्रचलित दुष्प्रवृत्तियों का उन्मूलन,
अभावों का निराकरण, सदाशयता का अभिवर्धन प्रमुख है। यह कार्य विज्ञान तो
कदाचित् कितने ही प्रयत्न कर लेने पर भी समय की माँग को पूरा न कर सकेगा।
पर यह विश्वास किया जा सकता है कि चिन्तन, चरित्र और व्यवहार में
उत्कृष्टता का असाधारण मात्रा में अभिवर्धन होगा, तो वे सभी समस्याएँ
अनायास ही सुलझती चलेंगी, जिन्हें इन दिनों सर्वनाशी और खण्ड प्रलय जैसी
विभीषिकाएँ माना जा रहा है।
चेतना में ऐसी शक्ति उभरने पर मनुष्य की भावना और क्रिया- प्रक्रिया में ऐसा आश्चर्यजनक परिवर्तन होगा कि दुरुपयोग में लगी हुई क्षमताएँ सदुपयोग की ओर मुड़ चलेंगी और ऐसे सत्परिणाम उत्पन्न करेंगी, जिन्हें सतयुग की वापसी का नाम दिया जा सके।
विज्ञान आगे भी अनर्थ पैदा करता रह सकेगा; ऐसी आशंकाएँ किसी को भी नहीं करनी चाहिए; क्योंकि खनिज तेल, विद्युत उत्पादन जैसे स्रोत ही सूख जाएँगे, तब विज्ञान जीवित कैसे रह सकेगा? लोगों को लौटकर फिर प्राकृतिक जीवन अपनाना पड़ेगा, जिसमें विकृतियों के अभिवर्धन की कोई गुंजायश ही नहीं है।
विज्ञान जीवित रहेगा; पर उसका नाम भौतिक विज्ञान न होकर अध्यात्म विज्ञान ही हो जाएगा। उस आधार को अपनाते ही वे सभी समस्याएँ सुलझ जाएँगी, जो इन दिनों अत्यन्त भयावह दीख पड़ती हैं। उन आवश्यकताओं को प्रकृति ही पूरा करने लगेगी, जिनके अभाव में मनुष्य अतिशय उद्विग्न, आशंकित, आतंकित दीख पड़ता है। न अगली शताब्दी में युद्ध होंगे, न महामारियाँ फैलेंगी और न जनसंख्या की अभिवृद्धि से वस्तुओं में कमी पड़ने के कारण चिन्तित होने की आवश्यकता पड़ेगी। जागृत नारी अनावश्यक सन्तानोत्पादन से स्वयं इंकार कर देगी और अपनी बर्बाद होने वाली शक्ति को उन प्रयोजनों के लिए नियोजित करेगी, जो समृद्धि और सद्भावना के अभिवर्द्धन के लिए नितान्त आवश्यक है। नारी प्रधान इक्कीसवीं शताब्दी का वातावरण ऐसा होगा, जिसे सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा की संयुक्त शक्ति द्वारा अपनाया गया क्रिया- कलाप कहा जा सके। शिक्षा मात्र उदरपूर्णा न रहेगी, वरन् उसका अभिनव स्वरूप व्यक्तियों को प्रामाणिक, प्रखर एवं प्रतिभा सम्पन्न बनाने की अपनी जिम्मेदारी पूरी करेगा।
यह सब कैसे होगा, इसकी प्रत्यक्षदर्शी योजनाओं का स्वरूप पूछने या जानने की जरूरत नहीं है। अदृश्य जगत में संव्याप्त दैवी चेतना का अनुपात वर्तमान परिस्थितियों की प्राणचेतना के आधार पर असाधारण रूप में उभरेगा और ऐसे परिवर्तन अनायास ही करता चला जाएगा, जिसे वसन्त का अभिनव अभियान कहा जा सके या उज्ज्वल भविष्य को साथ लेकर आने वाले ‘‘सतयुग की वापसी’’ कहा जा सके। इक्कीसवीं सदी का उज्ज्वल भविष्य इन्हीं आधारों को साथ लेकर अवतरित होगा। इसी की पृष्ठभूमि इन दिनों बन रही है।
चेतना में ऐसी शक्ति उभरने पर मनुष्य की भावना और क्रिया- प्रक्रिया में ऐसा आश्चर्यजनक परिवर्तन होगा कि दुरुपयोग में लगी हुई क्षमताएँ सदुपयोग की ओर मुड़ चलेंगी और ऐसे सत्परिणाम उत्पन्न करेंगी, जिन्हें सतयुग की वापसी का नाम दिया जा सके।
विज्ञान आगे भी अनर्थ पैदा करता रह सकेगा; ऐसी आशंकाएँ किसी को भी नहीं करनी चाहिए; क्योंकि खनिज तेल, विद्युत उत्पादन जैसे स्रोत ही सूख जाएँगे, तब विज्ञान जीवित कैसे रह सकेगा? लोगों को लौटकर फिर प्राकृतिक जीवन अपनाना पड़ेगा, जिसमें विकृतियों के अभिवर्धन की कोई गुंजायश ही नहीं है।
विज्ञान जीवित रहेगा; पर उसका नाम भौतिक विज्ञान न होकर अध्यात्म विज्ञान ही हो जाएगा। उस आधार को अपनाते ही वे सभी समस्याएँ सुलझ जाएँगी, जो इन दिनों अत्यन्त भयावह दीख पड़ती हैं। उन आवश्यकताओं को प्रकृति ही पूरा करने लगेगी, जिनके अभाव में मनुष्य अतिशय उद्विग्न, आशंकित, आतंकित दीख पड़ता है। न अगली शताब्दी में युद्ध होंगे, न महामारियाँ फैलेंगी और न जनसंख्या की अभिवृद्धि से वस्तुओं में कमी पड़ने के कारण चिन्तित होने की आवश्यकता पड़ेगी। जागृत नारी अनावश्यक सन्तानोत्पादन से स्वयं इंकार कर देगी और अपनी बर्बाद होने वाली शक्ति को उन प्रयोजनों के लिए नियोजित करेगी, जो समृद्धि और सद्भावना के अभिवर्द्धन के लिए नितान्त आवश्यक है। नारी प्रधान इक्कीसवीं शताब्दी का वातावरण ऐसा होगा, जिसे सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा की संयुक्त शक्ति द्वारा अपनाया गया क्रिया- कलाप कहा जा सके। शिक्षा मात्र उदरपूर्णा न रहेगी, वरन् उसका अभिनव स्वरूप व्यक्तियों को प्रामाणिक, प्रखर एवं प्रतिभा सम्पन्न बनाने की अपनी जिम्मेदारी पूरी करेगा।
यह सब कैसे होगा, इसकी प्रत्यक्षदर्शी योजनाओं का स्वरूप पूछने या जानने की जरूरत नहीं है। अदृश्य जगत में संव्याप्त दैवी चेतना का अनुपात वर्तमान परिस्थितियों की प्राणचेतना के आधार पर असाधारण रूप में उभरेगा और ऐसे परिवर्तन अनायास ही करता चला जाएगा, जिसे वसन्त का अभिनव अभियान कहा जा सके या उज्ज्वल भविष्य को साथ लेकर आने वाले ‘‘सतयुग की वापसी’’ कहा जा सके। इक्कीसवीं सदी का उज्ज्वल भविष्य इन्हीं आधारों को साथ लेकर अवतरित होगा। इसी की पृष्ठभूमि इन दिनों बन रही है।