Books - व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर - 1
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Language: HINDI
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प्रशिक्षकों द्वारा शिविर संचालन (याज प्रक्रिया)
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क. व्याख्यान की प्रस्तुति में ध्यान रखने योग्य बातें :-
1. सम्पूर्ण शिविर अवधि में समय सारिणी का यथासम्भव पालन हो।
2. व्याख्यान यथासम्भव समय ही आरम्भ हो।
3. व्याख्यान प्रवचन की शैली में प्रस्तुत न करके प्रश्रोत्तरी शैली में प्रस्तुत किया जाय। कक्षा को रोचक एवं हल्का फुल्का बनाने का प्रयास किया जाय।
4. विषय को प्रस्तुत करने का प्रयोजन सुनिश्चित हो (अर्थात कक्षा समाप्त होने के पश्चात् आप शिविरार्थी से कैसी मानसिकता एवं व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं।) उसी आधार पर विषय सामग्री प्रस्तुत की जाय।
5. विषय सामग्री विद्यार्थी वर्ग/नई युवा पीढ़ी के स्तर की हो। बहुत गूढ़ क्लिष्ट न हो। विषय का वैज्ञानिक व तार्किक विश्लेषण हो। विषय को भावनात्मक तरीके से भी समझाने का प्रयत्न किया जाय। यथास्थान दृष्टांत का प्रयोग हो।
6. डेढ़ घण्टे की निर्धारित कक्षा में आरम्भिक 5-7 मिनट संगीत एवं 15 प्रश्रोत्तरी के लिए निर्धारित हो। यदि शिविरार्थियों की ओर से कोई प्रश्र न हो तो प्रशिक्षक स्वयं प्रश्र करे। प्रश्र पूर्व निश्चित हो।
7. प्रश्रोत्तरी में शिविरार्थी द्वारा पूछे गये प्रश्रों का सटीक उत्तर देकर उन्हें संतुष्ट करें। शिविरार्थियों को अधिकाधिक प्रश्र करने हेतु प्रेरित करें।
ख. मनोरंजक खेल, योग, व्यसनमुक्ति रैली :-
1. खेल का चयन समय एवं उपयोगिता को ध्यान में रखकर किया जाय। खेल को प्रतियोगिता का स्वरूप दे दिया जाय, समापन दिन के उन्हें पुरस्कार दिया जाय।
2. ‘बाल संस्कार शाला’ में खेले जाने वाले खेलों को ही खेलाया जाय, जिससे संस्कार शाला के प्रायोगिक शिक्षण का समय बच सके। आउटडोर गेम्स-बहिष्कार, चौकोर रस्साकसी, रूमाल लेकर भागो तथा इन्डोर गेम्स में - शब्द संग्रह बढ़ाओ, सद्वाक्य-सूक्तियाँ विशेषण आदि हो सकते हैं।
3. योग की कक्षा में अंतिम दो दिनों में नेतृत्व की क्षमता रखने वाले युवाओं को चिह्नित करना एवं शिविरार्थियों के बीच सर्वश्रेष्ठ आसन-प्राणायाम प्रदर्शन करने वाले को पुरस्कार हेतु चिह्नित कर लेना चाहिए।
4. योग की प्रस्तुति हास्यात्मक शैली में हो तथा शिविरार्थियों के लिए दैनिक रूप से किए जाने वाले आसन-प्राणायाम का एक न्यूनतम पैकेज दिया जाय। प्रज्ञायोग, सूर्य नमस्कार एवं पवनमुक्तासन के साथ कुछ चुने हुए प्राणायाम का शिक्षण उपयुक्त रहेगा।
5. व्यसन मुक्ति रैली में कुछ प्रह्सन, अभिनय करने वाले शिविरार्थियों को भी अंतिम दिन पुरस्कृत करने हेतु चिह्नित कर लें। व्यसन मुक्ति रैली की तैयारी हेतु रैली संबंधी सामग्री की सूची का अवलोकन करें।
6. व्यसन मुक्ति कक्षा एवं रैली की सूचना शिविरार्थियों को एक दिन पूर्व दे देवें, जिससे उसकी तैयारी भी हो सके एवं शिविरार्थियों में नवीन उत्साह आ सके।
ग. टोली गठन :-
1. टोली गठन से पूर्व सभी शिविरार्थियों को (लडक़े/लड़कियाँ पृथक-पृथक) अपने स्थानीय साथियों के साथ (स्थानवार) एक ही पंक्ति में बैठाएँ। एक टोली में 10 से 15 सदस्य हो सकते हैं। सभी टोलियों में यथासम्भव समान सदस्य हों। लडक़ों एवं लड़कियों की टोली पृथक-पृथक हो।
2. एक टोली में एक गाँव या स्थान से आए हुए सभी शिविरार्थियों को साथ रखने पर संगठनात्मक लाभ मिलता है। उनमें आपस में सम्पूर्ण शिविर अवधि में घनिष्ठता पनप जाने के कारण शिविर से वापस जाने के बाद वे एक बेहतर अनोपचारिक समूह में परिवर्तित हो जाते हैं। इसी आधार पर शिविर के अंतिम दिन उनका संगठन बनता है एवं उन्हें स्थानीय स्तर पर मिशनरी कार्य-यथा साप्ताहिक या पाक्षिक स्वच्छता सफाई, साप्ताहिक गोष्ठी, बाल संस्कार शाला चलाना आदि सौंपा जा सकता है तथा युवा संगठन की नीव बन जाती है। अत: टोली स्थानवार ही हो।
3. जिन स्थानों से शिविरार्थी की संख्या पर्याप्त नहीं है उन्हें आवश्यकतानुसार आपस में जोडक़र 10-15 की संख्या बनाकर टोली का रूप दिया जा सकता है।
4. शिविरार्थियों की कुल संख्या के आधार पर टोलियों की संख्या निर्भर करती है। न्यूनतम 5 से अधिकतम 12 टोलियाँ उपयुक्त रहती हैं।
5. प्रत्येक टोली से एक टोलीनायक एवं एक उपटोलीनायक बना दें, उनका दायित्व अनुशासन गोष्ठी में बताएँ। प्रत्येक का टोली का नामकरण ऋषियों व महापुरुषों के नाम पर करें जैसे- लडक़ों का नाम-विवेकानन्द, विश्वामित्र, वशिष्ठ, रामकृष्ण परमहंस, एकलव्य, भगतसिंह आदि। लड़कियों का - गार्गी, मैत्रेयी, रानी लक्ष्मीबाई, दुर्गा, सरस्वती, गायत्री, मीरा, मदालसा आदि।
घ. अनुशासन गोष्ठी :-
‘‘सम्पूर्ण शिविर में आरम्भ से अंत तक अनुशासन ही अनुशासन है यही शिविरार्थी की पहली और अंतिम पहवान है। प्रात: जागरण में, भोजन में, शयन में, स्नान में, कक्षा में, विश्राम में हर कार्य अनुशासन के तहत हो तो महसूस करेंगे व आनन्द आ जाएगा। जो अनुशासन में रहता है उसी की उन्नति सम्भव है, इस शिविर में पहला शिक्षण यही है।
शिविर की व्यवस्था के अनुरूप हमें चलना होगा। इसी अनुशासन के बीच आप वह पा सकेंगे जो आज तक नहीं पाए हैं। अनुशासन बनाने में सुविधा हो इसके लिए पहले ही आपकी टोली बना दी गई है।’’
प्रशिक्षक उपरोक्त आरम्भिक बातों द्वारा भूमिका बनाते हुए निम्रलिचिात बिन्दुओं से संबंधित जानकारियाँ अपने शब्दों में शिविर की व्यवस्था के अनुसार दें। प्रत्येक पहलू को स्पष्ट करें। अनुशासन गोष्ठी के समय शिविर के आयोजक, व्यवस्थापक साथ हों जिन्हें सम्पूर्ण व्यवस्था की जानकारी हो। साथ ही शिविरार्थी युवा एवं युवतियों के आवास में उनके साथ रात्री विश्राम करने वाले जिम्मेदार प्रभारी कार्यकर्ता भी गोष्ठी में हों ताकि उन्हें शिविरार्थी पहचान लें। सम्पूर्ण गोष्ठी रोचक शैली में हो ताकि शिविरार्थी को अनुशासन की बातें सुनकर भय न लगे कि हम कहाँ फँस गये हैं।
अनुशासन संबंधी अनिवार्य बिन्दु :-
1. आवास व्यवस्था की जानकारी - आवास की व्यवस्था भाईयों व बहिनों हेतु पृथक-पृथक होना, आवास का स्थान बताना, बिस्तर व्यवस्था की जानकारी देना, रात्रि विश्राम में शिविरार्थियों के साथ रहने वाले कार्यकर्ताओं से परिचय कराना, आवास स्थल पर पानी के पीने की व्यवस्था, सफाई की जानकारी आदि।
2. प्रात: जागरण - समय सारिणी के अनुसार प्रात: 4.00 बजे जागना, रात्रि में समय पर सो जाना, रात्रि देर तक बातें नहीं करना, प्रात: की व्यवस्था बनाकर सोना, जैसे- उषापान हेतु अपने बोतल में पानी, स्नान व नित्यकर्म हेतु कपड़े व अन्य सामग्री।
3. शौच और स्नान व्यवस्था - शिविरार्थी युवा-युवतियों का शौच व स्नान हेतु क्षेत्र पृथक-पृथक होने की जानकारी, निर्धारित स्थान का ही उपयोग करना, शौच हेतु डिब्बा (आवश्यकतानुसार) एवं स्नान हेतु बाल्टी, मग, पानी की व्यवस्था, बोरिंग, नल, तालाब, मोटर पम्प हो तो उसे चालू करने का स्वीच का स्थान, मोटर चलाने वाला व्यक्ति का रात्रि विश्राम कहाँ है? आदि बातों की स्पष्ट जानकारी दें।
4. कक्षा में अनुशासन - शिविरार्थी कक्षा में समय पर उपस्थित हों, संगीत में सब भागीदारी करें। अपनी टोली के साथ अपनी पंक्ति में निर्धारित स्थान पर ही बैठें। टोली नायक पंक्ति में सबसे आगे तथा उपटोली नायक सबसे पीछे बैठेंगे। पंक्ति में अनुपस्थित शिविरार्थी की जानकारी टोली नायकों को होनी चाहिए। कक्षा में एवं कक्षा से बाहर भी (दिन भर) परिचय पत्र अनिवार्यत: लगाकर रखें। टोली नायक से अपना परिचय पत्र प्राप्त कर लें। यदि कक्षा के समय पर कहीं और कुछ अनिवार्य कार्य है जैसे- शौच या स्वास्थ्य खराब हो जाना या अन्य तो इसकी सूचना अपने टोली नायक एवं शिविर प्रभारी को दें। बिना किसी सूचना या अनुमति के कक्षा में अनुपस्थित होने पर प्रमाण पत्र रोक दिया जाएगा। टोली नायक को सूचना मिलने पर वह तत्काल शिविर प्रभारी या प्रशिक्षक को सूचना दें। शिविरार्थियों का प्रत्येक कक्षा में उपस्थित होना अनिवार्य है। प्रात: योग की कक्षा में सभी शिविरार्थी अपने स्वयं का चादर या कम्बल लेकर आएँगें। सभी कक्षाओं मे सबेरे से रात्रि तक स्वयं का पेन और कॉपी भी अनिवार्य रूप से साथ रखेंगे।
कोई शिविरार्थी शिविर अवधि में बिना अनुमति के परिसर से बाहर नहीं जाएँगे। यदि किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो प्रशिक्षकों से या शिविर प्रभारी से बतायें उसकी व्यवस्था बनाई जाएगी। स्थानीय शिविरार्थीगण भी शिविर की व्यवस्था के अनुसार ही रहेंगे। उन्हें अपने घर जाने की सुविधा नहीं होगी।
5. मर्यादा संबंधी अनुशासन - शिविरार्थी छात्र/छात्राएँ जो एक ही स्थान, गाँव से आए हैं भाई-बहन भी हो सकते हैं लेकिन यहाँ आश्रम की मर्यादा के अनुसार वे परस्पर अनावश्यक बातचीत या गप्प न करें। यदि चर्चा की आवश्यकता है तो शिविर प्रभारी से पूर्व अनुमति लें। आश्रम की पवित्रता को बनाए रखें। लडक़े/लड़कियाँ अनावश्यक रूप से परस्पर सम्पर्क न करें।
6. भोजन संबंधी अनुशासन - भोजन निर्धारित समय पर निर्धारित स्थान पर निर्देशानुसार करेंगे। शिविरार्थी अपना प्लेट, ग्लास साथ लेकर बैठेंगे। भोजन करते समय बातचीत करेंगे। भोजन उतना ही लेंगे जितनी आवश्यकता हो। जूठन नहीं छोड़ेंगे। भोजन परोसने का दायित्व जिस टोली का होगा वे अपने दायित्व का ध्यान रखेंगे।
7. स्वास्थ्य संबंधी जानकारी - स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या (छोटी से छोटी यथा-सिर दर्द, पेट दर्द भी) होने पर शिविरार्थी अपने स्वास्थ्य की जानकारी तत्काल शिविर प्रभारी और टोली नायक को दें तथा दवा लें। ऐसी स्थिति न तो कक्षा में अनुपस्थित रहना है और न ही कष्ट उठाते हुए आवास में रहना है।
8. सफाई स्वच्छता संबंधी अनुशासन - शिविरार्थी हर समय परिसर में सफाई स्वच्छता बनाए रखने में सहयोग करेंगे। स्नान, भोजन, आवास के स्थानों में गंदगी नहीं फैलाएँ, कचरा कूड़ेदान में डालें। अपने-अपने आवास में विश्राम के समय सफाई करें। कोई भी शिविरार्थी प्रात: योग की कक्षा के पहले कपड़े न धोएँ। कपड़े विश्राम के समय धोएँ।
9. टोली नायक सम्बन्धी दायित्व:- टोली नायक अपनी टोली के सदस्यों को भलीभांति पहचान लें। कक्षा में कौन नहीं है, क्यों नहीं है ध्यान रखें। टोली के सदस्यों की समस्या आवश्यकता, स्वास्थ्य, परिचय पत्र कापी पेन की उपलग्धता का ध्यान रखें। सदस्यों के सम्बन्ध में कोई भी जानकारी मिलने पर ततकाल शिविर प्रभारी या प्रशिक्षण तक सूचना पहुँचाएँ। स्वयं ही शिविरार्थी सम्बन्धी कोई निर्णय न लें। सम्पूर्ण शिविर अवधि में सभी टोलियों को प्रतिदिन, जो भी कार्य दिया जाएगा, उसे समय पर पूरा करेंगे जैसे- भोजन परोसना, जलपान कराना, श्रमदान करना, योग की कक्षा की तैयारी करना जैसे दरी बिछाना, मंच व माईक की व्यवस्था देखना आदि।
10. अन्य :- कोई गुमसुम न बैठा हो सब प्रसन्न रहे। कक्षा में जो बाते समझ में न आए उसे तुरन्त पूछ लें। खूग प्रश्न करें, दिन भर कक्षा में प्रसाारित विषयों का ही चिन्तन करें। आपको ज्ञानवद्र्धक बातों के साथ खेल, मनोरंजन, शिक्षाप्रद फिल्में भी दिखाई जाएंगी, खूब मनोरंजन होगा। आप अन्तिम दिन महसूस करेंगे कि यहाँ हमें दो दिन और रहना चाहिए।
(प्रशिक्षक प्रतिदिन सायंकाल १. रात्रि भोजन परोसने, २. प्रात: योग कक्षा की व्यवस्था बनाने, ३. प्रात: जलपान कराने, ४. दोपहर भोजन परोसने, ५. रात्रि भोजन परोसने आदि की जिम्मेदारी टोलियों को बदल बदल कर दें। ध्यान रहे सभी टोलियों को बराबरी में कार्य करने का अवसर मिले। लडक़े व लड़कियों को सम्मिलित रूप से कार्य न सौंपना उचित होगा। अनुशासन गोष्टी के समय पर एक बार में ही सभी बातें पूर्ण नहीं होती है। समय-समय पर प्रशिक्षक आवश्यकतानुसार (कक्षा के अन्त में शान्तिपाठ से पहले) तात्कालिक सूचना एवं टोली नायकों की मीटिंग के माध्यम से अनिवार्य बातों की जानकारी देते रहें।)
ड.) युवा संगठन का निर्माण एवं भावी कार्य योजना :-
1. शिविर के अन्तिम दूसरे दिन सभी शिविरर्थियों को समूह निर्माण हेतु अपने-अपने गाँव या स्थानीय साथियों (युवा-युवतियाँ एक साथ) के साथ समूह चर्चा हेतु बैठाएँ।
2. समूह चर्चा के दौरान उन्हें युवा संगठन निर्माण पत्रक बाँट दें एवं निर्देश दें, कि वे स्थानीय स्तर पर साप्ताहिक गोष्ठ एवं एक-दे रचनात्मक कार्य यथा साप्ताहिक स्वच्छता सफाई कार्य (स्थानीय स्तर पर) बाल संस्कार शाला संचालन व अन्य वैकल्पित कार्य सर्व सम्मति से करेंगे। उपासना व स्वाध्याय की न्यूनतम शर्तों का पालन करेंगे।
3. अप्रत्यकक्ष रूप से शिविरार्थियों को (दीक्षा एवं गुरु तत्व की महिमा को बताने वाली कक्षा के बाद) दीक्षा हेतु पे्ररित करें, परन्तु दबाव न डाला जाए। यह कार्य शिविरर्थियों के साथ रहने वाले प्रभारी कार्यकत्र्ता या मिशन से जुड़े हुए शिविरार्थियों द्वारा खाली समझ में किया जा सकता है।
4. जिन स्थानों से शिविरार्थी आए हैं, वहाँ के जिम्मेदार सक्रिया परिजनों को भी शिविर में समापन के एक दिन पहले युवा संगठन निर्माण के दिन आमंत्रित कर लिया जाए। जिससे दोनों पक्षों में परस्पर बेहतर- संवाद हो सके व वरिष्ठ परिजनों को मार्गदर्शन भी मिल सके।
5. शिविर पश्चात् शिविरार्थियों द्वारा उत्साहपूर्वक अपनायी जाने वाली गतिविधियों, यथा बालसंस्कार शाला, साप्ताहिक गोष्टी आदि हेतु जिम्मेदारी तो शिविरार्थियों के बीच के टोली नायक की ही होगी, परन्तु उन्हें समुचित पे्ररणा देते रहने, उनकी सम्बन्धित समस्याओं का समाधान करने तथा गतिविधियों को ढीली या बंद नहीं होने देने की अन्तिम जिम्मेदारी गायत्री परिवार के परिजनों को ही सौंपी जाए।
6. सभी शिविरार्थियों का पूरा रिकार्ड (बायोडाटा) सुरक्षित रखा जाए। साथ ही कितने और कहाँ-कहाँ युवा संगठन बने है तथा वे कौन सा कार्य कब-कब करने हेतु संकल्पित हुए है, उसकी भी पूरी जानकारी रखने हेतु व्यवस्था बनायी जाए। ताकि निर्धारित समय में कार्यों को आरंभ करवाया जा सके या अपेक्षित सहयोग की व्यवस्था बनाई जा सके।
७. प्रशिक्षकगण शिविरार्थियों की भावनाओं को भरपूर उभारे। इसके लिए युग ऋषि परम पूज्य गुरुदेव वन्दनीया माताजी का उदाहरण, पुराने देश भक्तों का यथास्थान उदाहरण देते हुए भावनाओं को सक्रियता में बदलने का माद्दा रखें।
८. विदाई समारोह गरिमामय हो। समारोह में पुराने परिजनों को तथा जहाँ पर आगामी शिविर आयोजन की योजना या कल्पना हो, वहाँ के कार्यकत्र्ताओं को अवश्य आमंत्रित करें। जिसमें उन्हें शिविर की उपलब्धियों को प्रत्यक्ष अनुभव करने का अवसर मिल सके। समापन अवसर पर प्रशिक्षकगण अपनी भावनाओं पर विशेष रूप से नियन्त्रण रखें।
युवा शक्ति का आह्वान
साथियों आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं यह देश और युवाओं के लिए स्वर्णिम युग है। वो इसलिए कि देश में इस समय लगभग ६० प्रतिशत आबादी युवा है, जो आने वाले समय में देश की दशा एवं दिशाा के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहे है। ऐसे महत्वपूर्ण एवं दुर्लभ क्षण में आवश्यकता है वर्तमान पीढ़ी को सशक्त एवं समर्थ बनाने की। समर्थ एवं सशक्त बनाने की प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण कार्य है उनके आत्मबल, मनोबल को मजबूत बनाना ऊँचा उठाना, विजय इसी सदगुरु के आधार पर मिलेगी और आत्मबल को ऊँचा उठाने के लिए चाहिए आध्यात्मिक चिन्तन अर्थात् सकारात्मक सोच। इसी चिन्तन को आधार बनाकर गायत्री परिवार द्वारा संचालित विश्व का एकमात्र अनूठा विश्वविद्यालय देव संस्कृति विश्व विद्यालय शांतिकुंज हरिद्वार में स्थापित है जहाँ भारतीय संस्कृति को आधार बनाकर नालन्दा एवं तक्षशिला के समान राष्ट्रय चिन्तन से ओत-प्रोत युवाओं की फौज खड़ी की जा रही है। राष्ट्र के लिए यह शुभ लक्षण है कि इस विश्व विद्यालय में प्रवेश लेने हेतु न सिर्फ गायत्री परिवार से जुड़े हुये युवा रूचि दिखा रहे हैं बल्कि अन्य क्षेत्र के युवा भी बड़ी संख्या में प्रवेश लेकर देव संस्कृति के प्रति समर्पित हो रहे हैं। ये युवा विश्वविद्यालय से निकलकर देश के विभिन्न क्षेत्रों में युवाओं के बीच पहुँचकर उन्हें राष्ट्रय कर्तव्य के प्रति भाव जागृत कर रहे हैं। कहावत है कि लोहा लोहे को काटता है, हम उम्र की बात को व्यक्ति अधिक गहराई से सुनता है, इसीलिए आज यदि युवा पीढ़ी को दिशा देना है तो सुलझे हुये युवा ही दे सकते है। गायत्री परिवार के प्रमुख एवं युवाओं के पे्ररणास्रोत श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या भाई साहब कहते हैं कि विगत में हुई सभी आन्दोलनों का सूत्रधार युवा ही था, तो क्यों न आज एक आन्दोलन युवाओं के लिए ही किया जाए।
युवा आन्दोलन के चार सूत्र है :-१’ स्वस्थ युवा - सशक्त राष्ट्र, २. शालीन युवा - श्रेष्ठ राष्ट्र, ३. स्वावलम्बी युवा - सम्पन्न राष्ट्र, ४. सेवा भावी युवा - सुखीराष्ट्र।
स्वावलम्बी युवा :- छोटे-मोटे कार्यों के माध्यम से अपने अन्दर श्रम अरने की प्रवृत्ति को जागृत करना ही स्वालम्बन है। मनुष्य के तीन मलभूत आवश्यकताएँ है- रोटी, कपड़ा और मकान। इसकी प्राप्ति के लिए हर युवा को स्वावलम्बी बनना आवश्यक है। पर विडम्बना है कि अनपढ़ श्रम करके अर्थोंपार्जन कर लेना है, परन्तु एक पढ़ा लिखायुवक शिक्षित बेरोजगार रहता है, क्योंकि वे श्रम करना नहीं चाहता है। किसी महापुरुष ने ठीक ही कहा है कि - युवाओं को रोजगार के अवसर तलाशने के बजाय जीवन के मकसद तलाशना चाहिए यदि मकसद के हिसाब से श्रम करें तो सफलता निचित है। जो युवा जहाँ है जिस स्थिति में है वहीं से स्वावलम्बी बन सकता है और आगे बढ़ सकता है।
आज की युवा पीढ़ी यदि उपरोक्त सूत्रों को आधार बना ले तो युवा शक्ति को राष्ट्र शक्ति बनने से कोई रोक नहीं सकता। समस्या यह नहीं है कि युवाओं में ताकत नहीं है, समस्या यह है कि वे अपने आप को पहचान नहीं पा रहे हैं।
एक घटना है कि एक बार जंगल में शेर का बच्चा बिछुड़ गया, उधर से भेंड़ों का झूंड चला आ रहा था वह चच्चा भी भेंड़ों के साथ हो गया, उन्हीं के साथ रहते हुए बड़ा हुआ। कुछ दिन पश्चात उस जंगल में शेर आया, शेर की दहाड़ सुनकर भेंड़ भागने लगे, शेर का व बच्चा भी भागने लगा, शेर ने देख लिया उसे पकड़ा और उसे तालाब के पास ले गया, अपनी और उसकी परछाई दिखाया और उसे विश्वास दिलाया कि वह शेर का बच्चा है भेंड़ का नहीं और उसे अपने साथ ले गया। ठीक इसी प्रकार से हम है और दीनहीन हालत में जहाँ-तहाँ समय काट रहें हैं। साथियों वास्तव में हममें वह अदम्य साहस और ऊर्जा भरी पड़ी है जिसका नियोजन कर हम अपने घर परिवार ही नहीं बल्कि इस वसुन्धरा को चमका सकते हैं और ये दायित्व हमारा है इसे हमें करना ही है। युग ऋषि के संकल्प को पूरा करने का यही उपयुक्त समय है। क्या करें, आज के युवाओं की संवेदना को जागृत करें, यदि युवाओं की संवेदना जाग गई तो युवा वकील की नजरें पैसों पर न होकर पीडि़तों को न्याय दिलाने में होगा, डाक्टरों की अन्तर्भावना संवेदित हो गई तो कितनी ही कराहटें मुस्कराहटों में बदलेगी। विद्यार्थी जो ज्ञान की साधना करते हैं, कितनों को ज्ञान बाँटते नजर आएंगे। संवेदनशील धनपति युवा के सामने कोई विद्यार्थी धन के अभाव में पढऩे से वंचित नहीं रह पाएगा। संवेदना के जागृत होने पर कोई बहन दहेज के नाम जिंदा नहीं जलाई जाएगी। इस संवेदना को जागृत करने का बीड़ा उठाना है। कयोंकि इस पुनीत कार्य को करने हेतु ही आपका जन्म हुआ है और आप इस समय युवावस्था को प्राप्त हुए है।
अत: इस देश के समस्त युवा साथियों का हम आव्हान करते है कि महाकाल की पुकार को, हिमालयवासी ऋषि सत्ताओं की भावनाओं को सुनते हुए, समय की मांग को समझते हुए, आज का श्रेष्ठ धर्म का पालन करते हुए आज ही अपनी जिम्मेदारी तक करें, कार्य का निर्धारण करें और संकल्प करें कि -बदलेगी बदलेबी निश्चय दुनिया बदलेगी, कल नहीं ये आज ही दुनिया बदलेगी।
1. सम्पूर्ण शिविर अवधि में समय सारिणी का यथासम्भव पालन हो।
2. व्याख्यान यथासम्भव समय ही आरम्भ हो।
3. व्याख्यान प्रवचन की शैली में प्रस्तुत न करके प्रश्रोत्तरी शैली में प्रस्तुत किया जाय। कक्षा को रोचक एवं हल्का फुल्का बनाने का प्रयास किया जाय।
4. विषय को प्रस्तुत करने का प्रयोजन सुनिश्चित हो (अर्थात कक्षा समाप्त होने के पश्चात् आप शिविरार्थी से कैसी मानसिकता एवं व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं।) उसी आधार पर विषय सामग्री प्रस्तुत की जाय।
5. विषय सामग्री विद्यार्थी वर्ग/नई युवा पीढ़ी के स्तर की हो। बहुत गूढ़ क्लिष्ट न हो। विषय का वैज्ञानिक व तार्किक विश्लेषण हो। विषय को भावनात्मक तरीके से भी समझाने का प्रयत्न किया जाय। यथास्थान दृष्टांत का प्रयोग हो।
6. डेढ़ घण्टे की निर्धारित कक्षा में आरम्भिक 5-7 मिनट संगीत एवं 15 प्रश्रोत्तरी के लिए निर्धारित हो। यदि शिविरार्थियों की ओर से कोई प्रश्र न हो तो प्रशिक्षक स्वयं प्रश्र करे। प्रश्र पूर्व निश्चित हो।
7. प्रश्रोत्तरी में शिविरार्थी द्वारा पूछे गये प्रश्रों का सटीक उत्तर देकर उन्हें संतुष्ट करें। शिविरार्थियों को अधिकाधिक प्रश्र करने हेतु प्रेरित करें।
ख. मनोरंजक खेल, योग, व्यसनमुक्ति रैली :-
1. खेल का चयन समय एवं उपयोगिता को ध्यान में रखकर किया जाय। खेल को प्रतियोगिता का स्वरूप दे दिया जाय, समापन दिन के उन्हें पुरस्कार दिया जाय।
2. ‘बाल संस्कार शाला’ में खेले जाने वाले खेलों को ही खेलाया जाय, जिससे संस्कार शाला के प्रायोगिक शिक्षण का समय बच सके। आउटडोर गेम्स-बहिष्कार, चौकोर रस्साकसी, रूमाल लेकर भागो तथा इन्डोर गेम्स में - शब्द संग्रह बढ़ाओ, सद्वाक्य-सूक्तियाँ विशेषण आदि हो सकते हैं।
3. योग की कक्षा में अंतिम दो दिनों में नेतृत्व की क्षमता रखने वाले युवाओं को चिह्नित करना एवं शिविरार्थियों के बीच सर्वश्रेष्ठ आसन-प्राणायाम प्रदर्शन करने वाले को पुरस्कार हेतु चिह्नित कर लेना चाहिए।
4. योग की प्रस्तुति हास्यात्मक शैली में हो तथा शिविरार्थियों के लिए दैनिक रूप से किए जाने वाले आसन-प्राणायाम का एक न्यूनतम पैकेज दिया जाय। प्रज्ञायोग, सूर्य नमस्कार एवं पवनमुक्तासन के साथ कुछ चुने हुए प्राणायाम का शिक्षण उपयुक्त रहेगा।
5. व्यसन मुक्ति रैली में कुछ प्रह्सन, अभिनय करने वाले शिविरार्थियों को भी अंतिम दिन पुरस्कृत करने हेतु चिह्नित कर लें। व्यसन मुक्ति रैली की तैयारी हेतु रैली संबंधी सामग्री की सूची का अवलोकन करें।
6. व्यसन मुक्ति कक्षा एवं रैली की सूचना शिविरार्थियों को एक दिन पूर्व दे देवें, जिससे उसकी तैयारी भी हो सके एवं शिविरार्थियों में नवीन उत्साह आ सके।
ग. टोली गठन :-
1. टोली गठन से पूर्व सभी शिविरार्थियों को (लडक़े/लड़कियाँ पृथक-पृथक) अपने स्थानीय साथियों के साथ (स्थानवार) एक ही पंक्ति में बैठाएँ। एक टोली में 10 से 15 सदस्य हो सकते हैं। सभी टोलियों में यथासम्भव समान सदस्य हों। लडक़ों एवं लड़कियों की टोली पृथक-पृथक हो।
2. एक टोली में एक गाँव या स्थान से आए हुए सभी शिविरार्थियों को साथ रखने पर संगठनात्मक लाभ मिलता है। उनमें आपस में सम्पूर्ण शिविर अवधि में घनिष्ठता पनप जाने के कारण शिविर से वापस जाने के बाद वे एक बेहतर अनोपचारिक समूह में परिवर्तित हो जाते हैं। इसी आधार पर शिविर के अंतिम दिन उनका संगठन बनता है एवं उन्हें स्थानीय स्तर पर मिशनरी कार्य-यथा साप्ताहिक या पाक्षिक स्वच्छता सफाई, साप्ताहिक गोष्ठी, बाल संस्कार शाला चलाना आदि सौंपा जा सकता है तथा युवा संगठन की नीव बन जाती है। अत: टोली स्थानवार ही हो।
3. जिन स्थानों से शिविरार्थी की संख्या पर्याप्त नहीं है उन्हें आवश्यकतानुसार आपस में जोडक़र 10-15 की संख्या बनाकर टोली का रूप दिया जा सकता है।
4. शिविरार्थियों की कुल संख्या के आधार पर टोलियों की संख्या निर्भर करती है। न्यूनतम 5 से अधिकतम 12 टोलियाँ उपयुक्त रहती हैं।
5. प्रत्येक टोली से एक टोलीनायक एवं एक उपटोलीनायक बना दें, उनका दायित्व अनुशासन गोष्ठी में बताएँ। प्रत्येक का टोली का नामकरण ऋषियों व महापुरुषों के नाम पर करें जैसे- लडक़ों का नाम-विवेकानन्द, विश्वामित्र, वशिष्ठ, रामकृष्ण परमहंस, एकलव्य, भगतसिंह आदि। लड़कियों का - गार्गी, मैत्रेयी, रानी लक्ष्मीबाई, दुर्गा, सरस्वती, गायत्री, मीरा, मदालसा आदि।
घ. अनुशासन गोष्ठी :-
‘‘सम्पूर्ण शिविर में आरम्भ से अंत तक अनुशासन ही अनुशासन है यही शिविरार्थी की पहली और अंतिम पहवान है। प्रात: जागरण में, भोजन में, शयन में, स्नान में, कक्षा में, विश्राम में हर कार्य अनुशासन के तहत हो तो महसूस करेंगे व आनन्द आ जाएगा। जो अनुशासन में रहता है उसी की उन्नति सम्भव है, इस शिविर में पहला शिक्षण यही है।
शिविर की व्यवस्था के अनुरूप हमें चलना होगा। इसी अनुशासन के बीच आप वह पा सकेंगे जो आज तक नहीं पाए हैं। अनुशासन बनाने में सुविधा हो इसके लिए पहले ही आपकी टोली बना दी गई है।’’
प्रशिक्षक उपरोक्त आरम्भिक बातों द्वारा भूमिका बनाते हुए निम्रलिचिात बिन्दुओं से संबंधित जानकारियाँ अपने शब्दों में शिविर की व्यवस्था के अनुसार दें। प्रत्येक पहलू को स्पष्ट करें। अनुशासन गोष्ठी के समय शिविर के आयोजक, व्यवस्थापक साथ हों जिन्हें सम्पूर्ण व्यवस्था की जानकारी हो। साथ ही शिविरार्थी युवा एवं युवतियों के आवास में उनके साथ रात्री विश्राम करने वाले जिम्मेदार प्रभारी कार्यकर्ता भी गोष्ठी में हों ताकि उन्हें शिविरार्थी पहचान लें। सम्पूर्ण गोष्ठी रोचक शैली में हो ताकि शिविरार्थी को अनुशासन की बातें सुनकर भय न लगे कि हम कहाँ फँस गये हैं।
अनुशासन संबंधी अनिवार्य बिन्दु :-
1. आवास व्यवस्था की जानकारी - आवास की व्यवस्था भाईयों व बहिनों हेतु पृथक-पृथक होना, आवास का स्थान बताना, बिस्तर व्यवस्था की जानकारी देना, रात्रि विश्राम में शिविरार्थियों के साथ रहने वाले कार्यकर्ताओं से परिचय कराना, आवास स्थल पर पानी के पीने की व्यवस्था, सफाई की जानकारी आदि।
2. प्रात: जागरण - समय सारिणी के अनुसार प्रात: 4.00 बजे जागना, रात्रि में समय पर सो जाना, रात्रि देर तक बातें नहीं करना, प्रात: की व्यवस्था बनाकर सोना, जैसे- उषापान हेतु अपने बोतल में पानी, स्नान व नित्यकर्म हेतु कपड़े व अन्य सामग्री।
3. शौच और स्नान व्यवस्था - शिविरार्थी युवा-युवतियों का शौच व स्नान हेतु क्षेत्र पृथक-पृथक होने की जानकारी, निर्धारित स्थान का ही उपयोग करना, शौच हेतु डिब्बा (आवश्यकतानुसार) एवं स्नान हेतु बाल्टी, मग, पानी की व्यवस्था, बोरिंग, नल, तालाब, मोटर पम्प हो तो उसे चालू करने का स्वीच का स्थान, मोटर चलाने वाला व्यक्ति का रात्रि विश्राम कहाँ है? आदि बातों की स्पष्ट जानकारी दें।
4. कक्षा में अनुशासन - शिविरार्थी कक्षा में समय पर उपस्थित हों, संगीत में सब भागीदारी करें। अपनी टोली के साथ अपनी पंक्ति में निर्धारित स्थान पर ही बैठें। टोली नायक पंक्ति में सबसे आगे तथा उपटोली नायक सबसे पीछे बैठेंगे। पंक्ति में अनुपस्थित शिविरार्थी की जानकारी टोली नायकों को होनी चाहिए। कक्षा में एवं कक्षा से बाहर भी (दिन भर) परिचय पत्र अनिवार्यत: लगाकर रखें। टोली नायक से अपना परिचय पत्र प्राप्त कर लें। यदि कक्षा के समय पर कहीं और कुछ अनिवार्य कार्य है जैसे- शौच या स्वास्थ्य खराब हो जाना या अन्य तो इसकी सूचना अपने टोली नायक एवं शिविर प्रभारी को दें। बिना किसी सूचना या अनुमति के कक्षा में अनुपस्थित होने पर प्रमाण पत्र रोक दिया जाएगा। टोली नायक को सूचना मिलने पर वह तत्काल शिविर प्रभारी या प्रशिक्षक को सूचना दें। शिविरार्थियों का प्रत्येक कक्षा में उपस्थित होना अनिवार्य है। प्रात: योग की कक्षा में सभी शिविरार्थी अपने स्वयं का चादर या कम्बल लेकर आएँगें। सभी कक्षाओं मे सबेरे से रात्रि तक स्वयं का पेन और कॉपी भी अनिवार्य रूप से साथ रखेंगे।
कोई शिविरार्थी शिविर अवधि में बिना अनुमति के परिसर से बाहर नहीं जाएँगे। यदि किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो प्रशिक्षकों से या शिविर प्रभारी से बतायें उसकी व्यवस्था बनाई जाएगी। स्थानीय शिविरार्थीगण भी शिविर की व्यवस्था के अनुसार ही रहेंगे। उन्हें अपने घर जाने की सुविधा नहीं होगी।
5. मर्यादा संबंधी अनुशासन - शिविरार्थी छात्र/छात्राएँ जो एक ही स्थान, गाँव से आए हैं भाई-बहन भी हो सकते हैं लेकिन यहाँ आश्रम की मर्यादा के अनुसार वे परस्पर अनावश्यक बातचीत या गप्प न करें। यदि चर्चा की आवश्यकता है तो शिविर प्रभारी से पूर्व अनुमति लें। आश्रम की पवित्रता को बनाए रखें। लडक़े/लड़कियाँ अनावश्यक रूप से परस्पर सम्पर्क न करें।
6. भोजन संबंधी अनुशासन - भोजन निर्धारित समय पर निर्धारित स्थान पर निर्देशानुसार करेंगे। शिविरार्थी अपना प्लेट, ग्लास साथ लेकर बैठेंगे। भोजन करते समय बातचीत करेंगे। भोजन उतना ही लेंगे जितनी आवश्यकता हो। जूठन नहीं छोड़ेंगे। भोजन परोसने का दायित्व जिस टोली का होगा वे अपने दायित्व का ध्यान रखेंगे।
7. स्वास्थ्य संबंधी जानकारी - स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या (छोटी से छोटी यथा-सिर दर्द, पेट दर्द भी) होने पर शिविरार्थी अपने स्वास्थ्य की जानकारी तत्काल शिविर प्रभारी और टोली नायक को दें तथा दवा लें। ऐसी स्थिति न तो कक्षा में अनुपस्थित रहना है और न ही कष्ट उठाते हुए आवास में रहना है।
8. सफाई स्वच्छता संबंधी अनुशासन - शिविरार्थी हर समय परिसर में सफाई स्वच्छता बनाए रखने में सहयोग करेंगे। स्नान, भोजन, आवास के स्थानों में गंदगी नहीं फैलाएँ, कचरा कूड़ेदान में डालें। अपने-अपने आवास में विश्राम के समय सफाई करें। कोई भी शिविरार्थी प्रात: योग की कक्षा के पहले कपड़े न धोएँ। कपड़े विश्राम के समय धोएँ।
9. टोली नायक सम्बन्धी दायित्व:- टोली नायक अपनी टोली के सदस्यों को भलीभांति पहचान लें। कक्षा में कौन नहीं है, क्यों नहीं है ध्यान रखें। टोली के सदस्यों की समस्या आवश्यकता, स्वास्थ्य, परिचय पत्र कापी पेन की उपलग्धता का ध्यान रखें। सदस्यों के सम्बन्ध में कोई भी जानकारी मिलने पर ततकाल शिविर प्रभारी या प्रशिक्षण तक सूचना पहुँचाएँ। स्वयं ही शिविरार्थी सम्बन्धी कोई निर्णय न लें। सम्पूर्ण शिविर अवधि में सभी टोलियों को प्रतिदिन, जो भी कार्य दिया जाएगा, उसे समय पर पूरा करेंगे जैसे- भोजन परोसना, जलपान कराना, श्रमदान करना, योग की कक्षा की तैयारी करना जैसे दरी बिछाना, मंच व माईक की व्यवस्था देखना आदि।
10. अन्य :- कोई गुमसुम न बैठा हो सब प्रसन्न रहे। कक्षा में जो बाते समझ में न आए उसे तुरन्त पूछ लें। खूग प्रश्न करें, दिन भर कक्षा में प्रसाारित विषयों का ही चिन्तन करें। आपको ज्ञानवद्र्धक बातों के साथ खेल, मनोरंजन, शिक्षाप्रद फिल्में भी दिखाई जाएंगी, खूब मनोरंजन होगा। आप अन्तिम दिन महसूस करेंगे कि यहाँ हमें दो दिन और रहना चाहिए।
(प्रशिक्षक प्रतिदिन सायंकाल १. रात्रि भोजन परोसने, २. प्रात: योग कक्षा की व्यवस्था बनाने, ३. प्रात: जलपान कराने, ४. दोपहर भोजन परोसने, ५. रात्रि भोजन परोसने आदि की जिम्मेदारी टोलियों को बदल बदल कर दें। ध्यान रहे सभी टोलियों को बराबरी में कार्य करने का अवसर मिले। लडक़े व लड़कियों को सम्मिलित रूप से कार्य न सौंपना उचित होगा। अनुशासन गोष्टी के समय पर एक बार में ही सभी बातें पूर्ण नहीं होती है। समय-समय पर प्रशिक्षक आवश्यकतानुसार (कक्षा के अन्त में शान्तिपाठ से पहले) तात्कालिक सूचना एवं टोली नायकों की मीटिंग के माध्यम से अनिवार्य बातों की जानकारी देते रहें।)
ड.) युवा संगठन का निर्माण एवं भावी कार्य योजना :-
1. शिविर के अन्तिम दूसरे दिन सभी शिविरर्थियों को समूह निर्माण हेतु अपने-अपने गाँव या स्थानीय साथियों (युवा-युवतियाँ एक साथ) के साथ समूह चर्चा हेतु बैठाएँ।
2. समूह चर्चा के दौरान उन्हें युवा संगठन निर्माण पत्रक बाँट दें एवं निर्देश दें, कि वे स्थानीय स्तर पर साप्ताहिक गोष्ठ एवं एक-दे रचनात्मक कार्य यथा साप्ताहिक स्वच्छता सफाई कार्य (स्थानीय स्तर पर) बाल संस्कार शाला संचालन व अन्य वैकल्पित कार्य सर्व सम्मति से करेंगे। उपासना व स्वाध्याय की न्यूनतम शर्तों का पालन करेंगे।
3. अप्रत्यकक्ष रूप से शिविरार्थियों को (दीक्षा एवं गुरु तत्व की महिमा को बताने वाली कक्षा के बाद) दीक्षा हेतु पे्ररित करें, परन्तु दबाव न डाला जाए। यह कार्य शिविरर्थियों के साथ रहने वाले प्रभारी कार्यकत्र्ता या मिशन से जुड़े हुए शिविरार्थियों द्वारा खाली समझ में किया जा सकता है।
4. जिन स्थानों से शिविरार्थी आए हैं, वहाँ के जिम्मेदार सक्रिया परिजनों को भी शिविर में समापन के एक दिन पहले युवा संगठन निर्माण के दिन आमंत्रित कर लिया जाए। जिससे दोनों पक्षों में परस्पर बेहतर- संवाद हो सके व वरिष्ठ परिजनों को मार्गदर्शन भी मिल सके।
5. शिविर पश्चात् शिविरार्थियों द्वारा उत्साहपूर्वक अपनायी जाने वाली गतिविधियों, यथा बालसंस्कार शाला, साप्ताहिक गोष्टी आदि हेतु जिम्मेदारी तो शिविरार्थियों के बीच के टोली नायक की ही होगी, परन्तु उन्हें समुचित पे्ररणा देते रहने, उनकी सम्बन्धित समस्याओं का समाधान करने तथा गतिविधियों को ढीली या बंद नहीं होने देने की अन्तिम जिम्मेदारी गायत्री परिवार के परिजनों को ही सौंपी जाए।
6. सभी शिविरार्थियों का पूरा रिकार्ड (बायोडाटा) सुरक्षित रखा जाए। साथ ही कितने और कहाँ-कहाँ युवा संगठन बने है तथा वे कौन सा कार्य कब-कब करने हेतु संकल्पित हुए है, उसकी भी पूरी जानकारी रखने हेतु व्यवस्था बनायी जाए। ताकि निर्धारित समय में कार्यों को आरंभ करवाया जा सके या अपेक्षित सहयोग की व्यवस्था बनाई जा सके।
७. प्रशिक्षकगण शिविरार्थियों की भावनाओं को भरपूर उभारे। इसके लिए युग ऋषि परम पूज्य गुरुदेव वन्दनीया माताजी का उदाहरण, पुराने देश भक्तों का यथास्थान उदाहरण देते हुए भावनाओं को सक्रियता में बदलने का माद्दा रखें।
८. विदाई समारोह गरिमामय हो। समारोह में पुराने परिजनों को तथा जहाँ पर आगामी शिविर आयोजन की योजना या कल्पना हो, वहाँ के कार्यकत्र्ताओं को अवश्य आमंत्रित करें। जिसमें उन्हें शिविर की उपलब्धियों को प्रत्यक्ष अनुभव करने का अवसर मिल सके। समापन अवसर पर प्रशिक्षकगण अपनी भावनाओं पर विशेष रूप से नियन्त्रण रखें।
युवा शक्ति का आह्वान
साथियों आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं यह देश और युवाओं के लिए स्वर्णिम युग है। वो इसलिए कि देश में इस समय लगभग ६० प्रतिशत आबादी युवा है, जो आने वाले समय में देश की दशा एवं दिशाा के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहे है। ऐसे महत्वपूर्ण एवं दुर्लभ क्षण में आवश्यकता है वर्तमान पीढ़ी को सशक्त एवं समर्थ बनाने की। समर्थ एवं सशक्त बनाने की प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण कार्य है उनके आत्मबल, मनोबल को मजबूत बनाना ऊँचा उठाना, विजय इसी सदगुरु के आधार पर मिलेगी और आत्मबल को ऊँचा उठाने के लिए चाहिए आध्यात्मिक चिन्तन अर्थात् सकारात्मक सोच। इसी चिन्तन को आधार बनाकर गायत्री परिवार द्वारा संचालित विश्व का एकमात्र अनूठा विश्वविद्यालय देव संस्कृति विश्व विद्यालय शांतिकुंज हरिद्वार में स्थापित है जहाँ भारतीय संस्कृति को आधार बनाकर नालन्दा एवं तक्षशिला के समान राष्ट्रय चिन्तन से ओत-प्रोत युवाओं की फौज खड़ी की जा रही है। राष्ट्र के लिए यह शुभ लक्षण है कि इस विश्व विद्यालय में प्रवेश लेने हेतु न सिर्फ गायत्री परिवार से जुड़े हुये युवा रूचि दिखा रहे हैं बल्कि अन्य क्षेत्र के युवा भी बड़ी संख्या में प्रवेश लेकर देव संस्कृति के प्रति समर्पित हो रहे हैं। ये युवा विश्वविद्यालय से निकलकर देश के विभिन्न क्षेत्रों में युवाओं के बीच पहुँचकर उन्हें राष्ट्रय कर्तव्य के प्रति भाव जागृत कर रहे हैं। कहावत है कि लोहा लोहे को काटता है, हम उम्र की बात को व्यक्ति अधिक गहराई से सुनता है, इसीलिए आज यदि युवा पीढ़ी को दिशा देना है तो सुलझे हुये युवा ही दे सकते है। गायत्री परिवार के प्रमुख एवं युवाओं के पे्ररणास्रोत श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या भाई साहब कहते हैं कि विगत में हुई सभी आन्दोलनों का सूत्रधार युवा ही था, तो क्यों न आज एक आन्दोलन युवाओं के लिए ही किया जाए।
युवा आन्दोलन के चार सूत्र है :-१’ स्वस्थ युवा - सशक्त राष्ट्र, २. शालीन युवा - श्रेष्ठ राष्ट्र, ३. स्वावलम्बी युवा - सम्पन्न राष्ट्र, ४. सेवा भावी युवा - सुखीराष्ट्र।
स्वावलम्बी युवा :- छोटे-मोटे कार्यों के माध्यम से अपने अन्दर श्रम अरने की प्रवृत्ति को जागृत करना ही स्वालम्बन है। मनुष्य के तीन मलभूत आवश्यकताएँ है- रोटी, कपड़ा और मकान। इसकी प्राप्ति के लिए हर युवा को स्वावलम्बी बनना आवश्यक है। पर विडम्बना है कि अनपढ़ श्रम करके अर्थोंपार्जन कर लेना है, परन्तु एक पढ़ा लिखायुवक शिक्षित बेरोजगार रहता है, क्योंकि वे श्रम करना नहीं चाहता है। किसी महापुरुष ने ठीक ही कहा है कि - युवाओं को रोजगार के अवसर तलाशने के बजाय जीवन के मकसद तलाशना चाहिए यदि मकसद के हिसाब से श्रम करें तो सफलता निचित है। जो युवा जहाँ है जिस स्थिति में है वहीं से स्वावलम्बी बन सकता है और आगे बढ़ सकता है।
आज की युवा पीढ़ी यदि उपरोक्त सूत्रों को आधार बना ले तो युवा शक्ति को राष्ट्र शक्ति बनने से कोई रोक नहीं सकता। समस्या यह नहीं है कि युवाओं में ताकत नहीं है, समस्या यह है कि वे अपने आप को पहचान नहीं पा रहे हैं।
एक घटना है कि एक बार जंगल में शेर का बच्चा बिछुड़ गया, उधर से भेंड़ों का झूंड चला आ रहा था वह चच्चा भी भेंड़ों के साथ हो गया, उन्हीं के साथ रहते हुए बड़ा हुआ। कुछ दिन पश्चात उस जंगल में शेर आया, शेर की दहाड़ सुनकर भेंड़ भागने लगे, शेर का व बच्चा भी भागने लगा, शेर ने देख लिया उसे पकड़ा और उसे तालाब के पास ले गया, अपनी और उसकी परछाई दिखाया और उसे विश्वास दिलाया कि वह शेर का बच्चा है भेंड़ का नहीं और उसे अपने साथ ले गया। ठीक इसी प्रकार से हम है और दीनहीन हालत में जहाँ-तहाँ समय काट रहें हैं। साथियों वास्तव में हममें वह अदम्य साहस और ऊर्जा भरी पड़ी है जिसका नियोजन कर हम अपने घर परिवार ही नहीं बल्कि इस वसुन्धरा को चमका सकते हैं और ये दायित्व हमारा है इसे हमें करना ही है। युग ऋषि के संकल्प को पूरा करने का यही उपयुक्त समय है। क्या करें, आज के युवाओं की संवेदना को जागृत करें, यदि युवाओं की संवेदना जाग गई तो युवा वकील की नजरें पैसों पर न होकर पीडि़तों को न्याय दिलाने में होगा, डाक्टरों की अन्तर्भावना संवेदित हो गई तो कितनी ही कराहटें मुस्कराहटों में बदलेगी। विद्यार्थी जो ज्ञान की साधना करते हैं, कितनों को ज्ञान बाँटते नजर आएंगे। संवेदनशील धनपति युवा के सामने कोई विद्यार्थी धन के अभाव में पढऩे से वंचित नहीं रह पाएगा। संवेदना के जागृत होने पर कोई बहन दहेज के नाम जिंदा नहीं जलाई जाएगी। इस संवेदना को जागृत करने का बीड़ा उठाना है। कयोंकि इस पुनीत कार्य को करने हेतु ही आपका जन्म हुआ है और आप इस समय युवावस्था को प्राप्त हुए है।
अत: इस देश के समस्त युवा साथियों का हम आव्हान करते है कि महाकाल की पुकार को, हिमालयवासी ऋषि सत्ताओं की भावनाओं को सुनते हुए, समय की मांग को समझते हुए, आज का श्रेष्ठ धर्म का पालन करते हुए आज ही अपनी जिम्मेदारी तक करें, कार्य का निर्धारण करें और संकल्प करें कि -बदलेगी बदलेबी निश्चय दुनिया बदलेगी, कल नहीं ये आज ही दुनिया बदलेगी।