Books - व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर - 2
Language: HINDI
स्वास्थ
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1) शिविरार्थियों के मन में यह भाव जागे कि - ‘शरीर को स्वस्थ रखना, बीमारी से बचना मेरा परम कत्र्तव्य है।’
2) चाय, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक्स, मांसाहार एवं अन्य अभक्ष्य पदार्थों को आजीवन त्यागने का दृढ़ संकल्प जागे।
3) वर्तमान समय में बीमारीयों के मुख्य कारणों से शिविरार्थी अवगत हो।
4) स्वस्थ रहने व बीमारी से बचने के प्राथमिक व अनिवार्य सूत्रों को जीवन में लागू करने हेतु दृढ़ संकल्पित हों।
5)आयुर्वेद व जड़ी-बूटी के प्रति जानकारी प्राप्त करने तथा घर के गमलों में जड़ी-बूटियाँ लगाने की ललक जागे।
व्याख्यान क्रम :-
1. स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है, कत्र्तव्य भी है :-
शरीर माद्यम् खलु धर्म साधनम्।।
प्रथम सुख निरोगी काया।।
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है।।
बीमार व्यक्ति का किसी भी काम में मन नहीं लगता।
युग निर्माण सत्संकल्प में भी आरोग्य हेतु संकल्प है....
‘शरीर को भगवान का मन्दिर समझ कर आत्मा संयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे।’
2. स्वस्थ व्यक्ति के लक्षण क्या-क्या हैं? :-
समदोषा: समाग्निश्च, समधातुमलक्रिय:।
प्रसन्नामेन्द्रियमन: स्वस्थइत्यभिधीयते।। सुश्रुत सूत्र 15/41
1. समय पर कड़ी भूख लगे। 2. शौच क्रिया ठीक से हो। 3. नींद शीघ्र व गहरी आए। 4. काम करने में मन लगे, आलस्य न हो। 5. मुख पर प्रसन्नता व आशावादी झलक हो। 6. मन में प्रसन्नता व स्फूर्ति हो। 7. किसी प्रकार का शारीरिक कष्ट न हो (कोई अंग किसी बाहरी कारण से क्षतिग्रस्त हो तो वह बीमारी नहीं है।)
3. बीमारी क्या है? कारण क्या हैं?
1. प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करने की सजा का नाम ही बीमार है (बीमार पडऩा अपने आप में अपराधी होना है।)
2. प्रकृति में अन्य सभी जीव स्वस्थ रहते हैं।
3. मनुष्य के पास रहने वाले पशु-पक्षी भी बीमार पड़ जाते हैं।
* प्रकृति से दूर विकृति है। (पर प्रकृति के सभी वस्तु प्राकृतिक अवस्था में हमेशा उपयोगी नहीं बनाया नहीं होती। उन्हें प्रकृति के ही संस्कार प्रक्रिया द्वारा उपयोगी बनाया जाता है। पर आजकल इस प्रक्रिया में लोग अतिवादी और भोगवादी प्रक्रिया भी शामिल कर लेते हैं, जो कि रोगों का कारण है।)
4. बीमार पडऩे के विविध कारण :-
1. खड़े होकर पानी पीना। 2. भोजन के दरम्यिान व तुरंत बाद पानी पीना। 3. रिफाइन्ड तेल का प्रयोग। 4. प्रात: सूर्योदय के बाद उठना, रात्रि देर तक जागना। 5. क्षमता से ज्यादा मेहनत करना, आराम कम करना। 6. शारीरिक मेहनत नहीं के बराबर करना, आलस्य करना। 7. खाद्य पदार्थ रासायनिक खेती द्वारा उत्पादित होना। 8. मांसाहार, चाय, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक्स, नशा आदि का सेवन। 9. होटल आदि का खाद्य सेवन करना। 10. टेंशन व डिप्रेशन में रहना। 1. अधिक क्रोध करना। 12. विकृत चिन्तन में निमग्न रहना। 13. भोजन पकाने की पद्धति विकृत होना।
5. स्वस्थ रहने के प्राथमिक व अनिवार्य सूत्र :-
1. प्रात: ऊषापान करें।
2. नियमित योगासन व प्राणायाम करें।
3. कड़ी भूख लगे बिना कुछ भी न खाने की आदत डालें।
4. वे खाद्य पदार्थ कभी न खाएं, जिसे सूर्य प्रकाश और वायु के स्पर्श से वंचित रखा गया हो। (अर्थात् फ्रीज से बचें, डिब्बा बंद खाद्य सामग्री से बचें।) - अष्टाग हृद्य।
5. रोटी को पीएं पानी को खाएं।
6. हमेशा बैठकर व धीरे-धीरे पानी पीएं।
7. भोजन के आधे घंटे पूर्व पानी लें व भोजन के एक घंटे बाद अनिवार्यत: पानी पीएं, बीच में नहीं। बर्फ मिला पानी न पीएं। हमेशा पानी को चूस-चूसकर (सिप करके) पीएं। हर घण्टे में पानी पीएं।
8. गौवंश आधारित प्राकृतिक कृषि द्वारा उत्पादित अनाज, दाल, सब्जी, फल आदि का प्रयोग करें, रसायनिक खाद (यूरिया, डी.ए.पी. आदि) वाला बिल्कुल नहीं।
9. सफेद शक्कर और नमक धीमा जहर है, इनसे बचें। सेंधा नमक उपयोगी है।
10. चाय, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक्स, मांसाहार, नशा, बिस्कुट, चॉकलेट, डबल रोटी, चाऊमिन, मेगी, फास्टफूड, हॉटेल के खाद्य आदि से बचें।
11. भोजन पकाने में रिफाइन्ड तेल का परहेज करें। साधारण फिल्टर्ड तेल (सरसों, मूंगफली आदि) का प्रयोग करें।
12. बैमौसम व बेमेल आहार से बचें।
13. चोकर बिन आटा - स्वास्थ्य का घाटा।
14. टूथपेस्ट ब्रश से बचें। दातौन या स्वदेशी मञ्जन का प्रयोग करें।
15. स्नान के लिए प्राकृतिक साबुन, हल्दी, मिटटी, नीबू आदि का प्रयोग करें। झाग पाले साबुन से बचें।
16. भोजनोपरांत 15 मिनट वज्रासन में बैठें।
17. रात्रि शयन के समय सिर दक्षिण व पैर उत्तर या सिर पूर्व व पैर पश्चिम में रखें।
18. सप्ताह में एक दिन या एक समय का उपवास रखें। पानी पर्याप्त पीएं।
19. एल्यूमिनियम का बर्तन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। भोजन बनाने व ग्रहण करने हेतु मिटटी के बर्तन सर्वोत्तम है। मिटटी के बर्तन उपलब्ध न होने पर लोहा, स्टील, कांसा का उपयोग करें।
20. भोजन पकाते समय यह ध्यान रखें कि उसे हल्के आंच में पकाया जाय। कम मिर्च मसालों का प्रयोग हो। सब्जियों को काटने से पहले धो लें, बाद में नहीं।
21. क्रोध ,तनाव, हीन भावना, चिन्ता, विकृत चिन्तन से बचें।
22. बीमार पडऩे पर आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा को प्राथमिकता दें।
23. भोजन करते समय यथासम्भव मौन रहें, टी.वी. आदि न देखें, न कुछ पढ़ें।
24. व्यस्त रहें, मस्त रहें।
6. जड़ी-बूटी ज्ञान :- अजवाइन, लहसुन, हल्दी, मेथा, तुलसी, नीम, घृतकुमारी (एलोविरा), गिलोय, आंवला, कालमेध (चिरायता), दावना,......, चरोटा (चक्रमर्द), भस्कटिया (कंटकारी), गोड़ेली फूल (गोरख मुंडी) एवं अन्य जो हमारे आसपास उपलब्ध हैं। (प्रशिक्षक इनके प्रयोग समझाएं)
सरल घरेलू नुस्खे :-
1. दस्त - ठंडा दूध, एक गिलास नींबू का रस - मिलाकर पीएं।
2. कब्ज - हरितकी चूर्ण - दो चम्मच गर्म पानी से खाली पेट लेवें।
3. सर्दी-जुकाम-बुखार - तुलसी 10 कालीमिर्च 6, मिश्री या गुड़ आवश्यकतानुसार, गिलोय, चिरायता पत्ती (उपलब्ध होने पर) 3 नग पानी 5 कप स्टील के बर्तन में उबालें। 1 कप बचने पर छानकर गरम-गरम पीएं व कम्बल ओढक़र सो जाएं।
प्रश्नावली :-
1. स्वास्थ व्यक्ति के लक्षण बताइये? (कोई 5)
2. बीमारी क्या है? समझाइये।
3. बीमार पडऩे के कारण बताइये। (कोई 5)
4. निरोग रहने के लिए आप क्या-क्या उपाय करेंगे?
5. सर्दी जुकाम बुखार होने पर आप क्या करेंगे?
सन्दर्भ ग्रन्थ :-
1. निरोग जीवन के महत्वपूर्ण सूत्र - (वाङमय 39)
2. स्वस्थ रहने के सरल उपाय।
3. स्वस्थ रहने की कला।
4. सात्विक जीवनचर्या और दीर्घायुष्य।
5. जीवेम् शरद: शतम् (वाङमय 41)
6. चिकित्सा उपचार के विविध आयाम (वाङमय 40)
7. चिरयौवन एवं शाश्वत सौन्दर्य (वाङमय 42)
8. स्व. श्री राजीव दीक्षित जी की सी.डी.
9. तुलसी के चमत्कारी गुण। 10. घरेलू चिकित्सा।