Books - अदृश्य जगत का पर्यवेक्षण सपनों की खिड़की से
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स्वप्नों में निहित मनोवैज्ञानिक तथ्य
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मनुष्य जीवन का सर्वाधिक समय सोने में लगता है। यद्यपि दिन के 24 घण्टों में से सामान्यतः 16 घण्टे जागते हुए ही बीतते हैं परन्तु इन 16 घण्टों में अनेक विध क्रिया कलाप अपनाया जाता रहता है। यदि एक ही काम में समय लगने की दृष्टि से समय विभाजन और उसका मूल्यांकन किया जाय तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचना पड़ेगा कि निद्रा ही मनुष्य का सबसे ज्यादा समय लेती है। स्वस्थ मनुष्य के लिए प्रायः आठ घण्टे नींद लेना आवश्यक समझा गया है।
नींद के सम्बन्ध में एक तथ्य यह भी प्रकाश में आया है कि उस समय शरीर तो सोया रहता है किन्तु मन जागता रहता है और वह तरह-तरह की हलचलें किया करता है। जागृत अवस्था में मन के जो क्रिया-कलाप, व्यवहार, आचरण और कार्यों के रूप में अभिव्यक्त होते जान पड़ते हैं सुप्तावस्था में मन की वही हलचलें स्वप्न के रूप में दिखाई देती हैं। जागृत स्थिति में मन की उचंगों को सामाजिक दबाव, नैतिकता और सभ्यता के मानदण्डों से दबाना पड़ता है उन्हें व्यक्त होने से रोकना पड़ता है। लेनिन स्वप्न एक ऐसी स्थिति है कि वहां इस तरह का कोई दबाव अथवा नैतिक बाध्यता नहीं रहती, इसी लिए सपनों में मन स्वच्छन्द होकर बिहार करता है। इसी आधार पर प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक फ्राइड ने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया, कि ‘‘प्रत्येक स्वप्न अतीत की अनुभूतियों और दैहिक संवेदनों, विकारों का संयुक्त परिणाम होता है। स्वप्न यह स्पष्ट करते हैं कि हमारा चेतन मन, हमारी भावनाओं के हाथ का एक खिलौना मात्र है।
फ्राइड ने यह भी कहा कि मन की उचित वासनाएं ही प्रायः स्वप्न के रूप में प्रकट होती हैं और तरह-तरह के रंग बिरंगे चित्र दिखाकर अपनी तृप्ति का उपाय सृजती रहती हैं। लेकिन अब यह धारणा पुरानी पड़ चुकी है और यह स्वप्नों का एक पक्ष सिद्ध हुई, न कि उन्हें समझने या व्याख्यायित करने का सम्पूर्ण आधार।
‘‘ऐसा कोई स्वप्न जो नींद खुलने के बाद भी याद रहे, दबी हुई आकांक्षाओं की छद्म पूर्ति ही होता है’’ इन पंक्तियों में सुप्रसिद्ध यौन विज्ञानी सिगमण्ड फ्रायड ने अपने स्वप्न सिद्धान्तों को सूत्र रूप में कह दिया है। इस सिद्धान्त का विवेचन और विश्लेषण करते हुए फ्रायड ने ‘‘इमर्जेन्स एण्ड डेवलपमेण्ट ऑफ साइको—एनालिसस’’ पुस्तक में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि मनुष्य रात में सोते समय जो स्वप्न देखता है उनसे वह अपनी दबी हुई कामनाओं विशेषतः राग और यौन आकांक्षाओं की पूर्ति ही करता है।
यह ठीक है कि अचेतन मन में दबी हुई इच्छायें आकांक्षायें प्रायः स्वप्न के रूप में भी सामने आती हैं। परन्तु यह पूर्णतः सत्य नहीं है। हमारा मन शरीर के माध्यम से अपनी इच्छाओं और कामनाओं को पूरा करता है। कई इच्छायें ऐसी भी होती हैं जिन्हें वह अपने आस पास के वातावरण, सामाजिक दबाव और अक्षमता या असमर्थता के कारण पूर्ण नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में वह इच्छा पूर्ति की कल्पनायें भर करता रह सकता है। यह पूरी न होने वाली इच्छायें मन की मन में ही दबी रहती हैं और रात को जब व्यक्ति सो जाता है, तब उन कल्पनाओं को दृश्यों के रूप में देखकर इच्छा पूर्ति का आनन्द लेने लगता है। रात में जब व्यक्ति सो जाता है तो उसका शरीर तो शिथिल हो जाता है पर मन तब भी जागृत रहता है और वही अपनी इच्छाओं आकांक्षाओं के स्वप्न सजाता देखता रहता है। फ्रायड ने स्वप्नों की इतनी ही व्याख्या की है और मान लिया गया है कि स्वप्न मनुष्य की दमित अपूर्ण इच्छाओं की प्रतीकात्मक पूर्ति मात्र हैं, इससे अधिक कुछ भी नहीं।
सिगमण्ड फ्रायड ने 2900 स्वप्न संग्रह करके उनके आधार पर एक बड़ी 70 विवेचनात्मक पुस्तक लिखी है ‘‘ड्रीम एक्सप्लेण्ड’’ स्वप्नों की गम्भीर समीक्षायें की हैं और उन्हें अधिकांश मन में दबी हुई वासनाओं की अवचेतन मन में काल्पनिक स्थिति माना है। फ्रायड का कथन है कि मनुष्य दिन भर अनेक तरह की इच्छायें किया करता है, किन्तु सामाजिक नियन्त्रणों प्रतिबन्धों, कानून के भय व साधनों के अभाव आदि कारणों से वह अपनी इच्छायें, वासनायें पूरी नहीं कर पाता है। मन स्वप्नावस्था में इन दमित इच्छाओं व वासनाओं की ही मनचीती किया करता है। उसकी सभी मानसिक कल्पनायें फिल्म की भांति लगातार उभरती और प्रकट होती रहती है।
फ्रायड के विचारों का खण्डन प्रख्यात मनःशास्त्री कार्ल गुस्ताव जुंग ने किया है। वे कहते हैं कि दैनिक घटनाओं और संवेदनाओं का प्रभाव स्वप्नों में रहता तो है, पर वे इतने तक ही सीमित नहीं है। ब्रह्माण्ड में प्रवाहित होती रहने वाली पराचेतना में स्थितिवश अनेक विश्व प्रतिबिम्ब तैरते रहते हैं। मनुष्य की अनुभूतियां उनसे प्रभावित होती हैं और प्रभाव व्यक्ति की निज की स्थिति के साथ सम्मिलित होकर स्वप्न जैसी विचित्र प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है। उनका अभिप्राय यह है कि व्यक्ति की सीमित चेतना व्यापक पराचेतना के साथ मिलकर जिस स्तर का अनुभव करती है उसका सीधा तो नहीं, पर आड़ा टेड़ा परिचय स्वप्न संकेतों में मिल जाता है।
स्वप्न सभी सत्य होते हों यह बात नहीं। अनेक स्वप्न ऐसे होते हैं जो केवल मात्र अपनी शारीरिक और मानसिक स्थिति का संकेत करते हैं। जिस तरह वैद्य नाड़ी, और लक्षणों को देखकर रोग और बीमारी का पता लगा लेते हैं और उसी तरह इन समझ में आने वाले स्वप्नों से शरीर और मनोजगम की अपनी स्थिति का अध्ययन शीशे की भांति किया और उन्हें सुधारा जा सकता है। फ्रायड मनोविज्ञान में स्वप्नों की समीक्षा को इसी रूप में लिया जा सकता है।
स्वप्नों का, स्थान विशेष से भी सम्बन्ध होता है। इस सम्बन्ध में डा. फिशर द्वारा उल्लखित एक स्त्री का स्वप्न बहुत महत्व रखता है वह स्त्री जब एक विशेष स्थान पर सोती तो उसे सदैव यही स्वप्न आता कि कोई व्यक्ति एक हाथ में छुरी लिये दूसरे से उसकी गर्दन दबोच रहा है। पता लगाने पर ज्ञात हुआ कि उस स्थान पर सचमुच ही एक व्यक्ति ने एक युवती का इतना गला दबाया था जिससे वह लगभग मौत के समीप जा पहुंची थी। स्थान विशेष में मानव विद्युत के कम्पन चिरकाल तक बने रहते हैं। कब्रिस्तान की भयानकता और देव-मन्दिरों की पवित्रता इसके साक्ष्य के रूप में लिये जा सकते हैं।
स्वप्नों पर आस-पास के वातावरण का जिनमें व्यक्ति की दैहिक स्थिति भी सम्मिलित है, स्पष्ट प्रभाव इस तथ्य का परिचायक है कि उस समय हमारा सशक्त अवचेतन सक्रिय रहता है तथा वह अपने संस्कारों के अनुरूप उनकी अनुभूति करता है। यदि आहार ज्यादा कर लिया गया हो तो आमाशय एवं मस्तिष्क अधिक रक्त प्रवाह से उत्तेजित रहते हैं। यह उत्तेजना स्वप्नों के रूप में व्यक्त होती है और स्वप्नों का स्वरूप व्यक्ति मन के ढांचे के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है।
प्यासा आदमी स्वप्न में जलाशय की तलाश में फिरता है और शौच की इच्छा होने पर टट्टी के लिए स्थान ढूंढ़ता है। वीर्य में गर्मी बढ़ जाने से काम सेवन और स्वप्न दोष होने की घटना अनेकों के साथ घटित होती है। यह शारीरिक स्थिति से सम्बन्धित स्वप्न के बढ़े-चढ़े प्रतीकात्मक रूप हैं। बालकों की तरह अचेतन मन भी बहुत कल्पनाशील होता है। जरा से इशारे पर तिल का ताड़ गढ़ लेता है।
दो महिलाओं के सोते समय एक प्रयोग के अधीन पैर के पास गर्म मोमबत्ती ले जाई गई। एक ने स्वप्न में देखा कि वह तपते रेगिस्तान में सहसा आ पड़ी है, दूसरी ने स्वप्न देखा कि उसका पैर झुलस रहा है।
एक अन्य प्रयोग में कई व्यक्तियों की हथेलियों को रूई से सहलाया गया। फलस्वरूप स्वप्न में किसी ने देखा कि वह अपनी प्रेमिका का शरीर सहला रहा है तो दूसरे ने देखा वह मालिश करवा रहा है, तीसरे ने देखा कि वह स्केटिंग कर रहा है यानी बर्फ पर फिसल रहा है, चौथे ने देखा कि उसके शरीर से एक झबरी बिल्ली अपनी देह रगड़ रही है। एक अन्य प्रयोग में एक ही व्यक्ति के हाथ में दो बार अन्तराल से मोमबत्ती रखने पर पहली बार हाकी-स्टिक से खेलने का, दूसरी बार मुगदर घुमाने का स्वप्न देखा। स्पष्ट है कि अवचेतन का कौन-सा तार कब झंकृत हो उठा है, यही स्वप्न दृश्यों का आधार बनता है। स्वप्न स्थिति में भी व्यक्ति-मन का बाह्य जगत से सम्पर्क बना रहता है। यह मन चेतन न होकर अवचेतन होता है।
मन मस्तिष्क पर पड़ने वाले विभिन्न दबावों, इच्छाओं, वासनाओं के आघातों-प्रतिघातों से उत्पन्न दृश्य द्वितीय श्रेणी के स्वप्नों की कोटि में आते हैं। स्वप्न शास्त्री कार्ल—शेरनल का कथन है कि—‘‘शरीर या मन का प्रत्येक विक्षोभ एक विशिष्ट स्वप्न को उत्पन्न करता है। स्वप्न तथ्यों पर ही आधारित होते हैं, पर वे तथ्यों की सीमा में बंधे नहीं होते। उनमें कल्पनात्मक उड़ान भी भरपूर होती है।’’
प्रख्यात वैज्ञानिक एवं मनःशास्त्री हैवलाक एलिस के अनुसार ‘‘प्रत्येक स्वप्न अतीत की अनुभूतियों और दैहिक सम्वेदनों, विकारों का संयुक्त परिणाम होता है। स्वप्न यह स्पष्ट करते हैं कि हमारा चेतन मन हमारी भावनाओं के हाथ का खिलौना मात्र है।
फ्रायड ने स्वप्नों के विश्लेषण द्वारा यह निष्कर्ष निकाला है कि दबी हुई इच्छायें स्वप्न बनकर उभरती हैं। सभ्यता के साथ-साथ मनुष्य की कामनायें—आकांक्षाएं, वासनाएं और लिप्साएं भी बढ़ी हैं। वे अतृप्त रहने पर विद्रोही बनती हैं और स्वप्नों की अपनी अलग दुनिया रचकर उन्हें चरितार्थ करने का नाटक खेलती हैं। कामनाओं की न्यूनता से स्वभाव सन्तोषी बनता है और अन्तःकरण में चैन रहता है अथवा इतनी सुविधा होनी चाहिए कि हर इच्छा तृप्त हो सके। दोनों ही बातें न बनें तो असन्तुष्ट मनःस्थिति में मानसिक ग्रन्थियां बनती हैं और वे ऊबड़-खाबड़ स्वप्न दिखाने से लेकर मनोविकार तक उत्पन्न करने का कारण बनती हैं।
‘गेस्टाल्ट साइकोलॉजी’ ग्रन्थ में मानसिक संरचना और उनमें स्वप्नों की भूमिका के सम्बन्ध में विस्तृत विज्ञान पर प्रकाश डाला है और लिखा है कि सच होने वाले स्वप्न उत्तेजना भरे होते हैं और सामान्य स्वप्न ऐसे ही हंसी मजाक जैसे निरर्थक लगते हैं। उस ग्रन्थ में इस पर भी प्रकाश डाला है कि शरीर अपनी वर्तमान तथा भावी बीमारियों सम्बन्धी विवरण भी प्रकट करता है और कभी-कभी स्वयं ही आभास होता है कि निवारण के लिए क्या उपचार करना चाहिए।
अचेतन मन की कितनी ही परतों का गेस्टाल्ट थ्योरी में विवेचन है। स्वप्न किस परत से उठ रहे हैं इसका पता सर्वसाधारण को अनायास ही नहीं लगता पर अभ्यास से उस जानकारी का पता लग सकता है।
सेन्ट विल्सन अस्पताल (यू.के.) के डा. ग्लैडिका को मरणासन्न रोगियों में बहुत दिलचस्पी रही है। वे उनसे वार्त्तालाप करके इस सम्भावना का पता लगाते रहे हैं कि किस रोगी की मृत्यु का समय कब हो सकता है। वे लिखते हैं कि अधिकांश रोगी सूर्योदय से पूर्व प्रभात काल में अथवा रात्रि को जब गहरी नींद सोने का समय होता है, तब मरते हैं। उनने ऐसे भी कुछ रोगियों का वर्णन किया है जो पहली जांच-पड़ताल में मृतक घोषित कर दिये गये थे पर वस्तुतः उनका मस्तिष्क गहरी निद्रा में चला गया था। वह नींद जैसे ही हटी वे जीवित हो उठे।
भारतीय दर्शन ने सपनों के सम्बन्ध में और भी सर्वांगपूर्ण व्याख्या की है। आयुर्वेद के आचार्य सुश्रुत ने लिखा है कि मनुष्य का वात, पित्त और कफ कुपित रहता है, तब भी सपने आते हैं। सोते समय शरीर की विभिन्न अवस्थाओं का भी स्वप्न पर प्रभाव पड़ता है। कहा जाता है कि सीधे चित्त होकर लेटने और छाती पर हाथ रख कर सोने से डरावने सपने आने लगते हैं।
फ्रायड और शरीर विज्ञान ने स्वप्न के जो कारण बताये वह भारतीय मनीषियों ने पहले ही अथर्ववेद, दैवज्ञ, कल्पद्रुम, सुश्रूत संहिता, अग्निपुराण आदि ग्रन्थों में लिख दिये हैं। परन्तु सपनों के इतने भर ही कारण नहीं हैं। भारतीय मनीषियों के अनुसार मन की गति बहुत तीव्र है। ऋग्वेद के अनुसार—मन संसार के एक कोने से दूसरे कोने तक क्षण भर में पहुंच जाता है—
यत् ते विश्वमिदं जगन्मनो जगाम दूरकम् यत् ते पराः पांरवतो मनो जगाम दूरकम् ।
10।58।11
कठोपनिषद् में कहा है—‘‘यन्मन सहाइन्द्र’’—अर्थात् मन विद्युत शक्ति के समान हैं। मन सामान्य स्थिति में अपने शरीर और विषयों तक ही सीमित रहता है इसलिए सपने की सामान्य अवस्था में ऐसे ही ऊल जलूल और ऊटपटांग सपने आते हैं; जिनमें से कई तो याद भी नहीं रहते। शास्त्रकारों ने इस प्रकार के सपनों को तामसिक सपना बताया है।
जब शरीर में या स्वप्न अवस्था में रजोगुण प्रधान रहता है तो उस समय जागृत अवस्था में देखे हुए पदार्थ ही कुछ रूपान्तर से दिखाई देते हैं ऐसे स्वप्न जागने के बाद भी याद रहते हैं। शास्त्रकारों ने इन सपनों से भिन्न प्रकार के सपनों का भी उल्लेख किया है जिन्हें सात्विक सपना कहा है। इस स्थिति को उत्तम कहा गया है और बताया गया है कि ऐसे सपने मन के आत्मभूत होने पर देखे जाते हैं।
अन्तःस्थिति का परिचय देने वाले चित्र-विचित्र सपने
स्वप्न वस्तुतः जीवन का एक अनिवार्य अंग है। जिस प्रकार जागृत स्थिति में मनुष्य अपनी समझ मनःस्थिति और भावनाओं के अनुसार चित्र विचित्र कामनाएं करता रहता है उसी प्रकार सुषुप्तावस्था में स्वप्न देखता रहता है। यों जागते हुए भी लोग अपनी कल्पनाओं के चित्र बनाते और उन्हें देखकर आनन्दित होते रहते हैं। मनोविज्ञान की प्रचलित मान्यता के अनुसार सपने आने का मुख्य उद्देश्य मन में दमित वासनाओं और इच्छाओं की पूर्ति करना है। लेकिन अध्यात्म विज्ञान के अनुसार कई बार सपनों के माध्यम से अन्तर्जगत की झांकी भी मिलती है और उस झांकी से वह सब कुछ देखा समझा जा सकता है जो गहन से गहन विश्लेषण और निदान परीक्षा द्वारा भी सम्भव न हो सके।
विज्ञान और मनोविज्ञान के क्षेत्र में सपनों को लेकर कई खोज हुई हैं। उनसे प्राप्त निष्कर्षों से अभी तक तो सपनों के विश्लेषण द्वारा व्यक्ति पर पड़ने वाले या उसे अनुभव होने वाले व्यक्त-अव्यक्त दबावों का ही पता लगाया जाता था। लेकिन अब सपनों के माध्यम से रोग-निदान भी किया जाने लगा है। ऐसे-ऐसे रोगों का निदान स्वप्न विश्लेषण द्वारा सम्भव हो सका है, जिनके लक्षण चिकित्सा-उपकरणों की पकड़ में नहीं आते थे।
28 वर्षों के प्रयोग, निरीक्षण और विश्लेषणों के बाद के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डा. कासानकिन ने प्रतिपादित किया है कि रोग के लक्षण प्रकट होने से पूर्व ही सपनों के माध्यम से रोग अपने आगमन की सूचना दे देते हैं।
कुछ ही दिनों बाद यह स्थिति आने वाली है कि कोई स्वस्थ व्यक्ति स्वप्न विशेषज्ञ के पास जाकर अपने सपनों के बारे में बतायेगा और उस आधार पर विशेषज्ञ सतर्क कर देंगे कि अमुक रोग आपके शरीर दुर्ग में घुस-पैठ कर रहा है।
इसी विषय पर शोध करने वाले एक-दूसरे रूसी मनःचिकित्सक ने अपनी पुस्तक ‘‘सपनों का वैज्ञानिक अध्ययन’’ में लिखा है, व्यक्ति के भविष्य एवं उसकी स्वास्थ्य सम्बन्धी भावी सम्भावनाओं पर सपनों के द्वारा काफी प्रकाश पड़ता है। इतना ही नहीं, शरीर और मन से पूरी तरह स्वस्थ दिखाई देने वाले व्यक्तियों के स्वप्न भी यह बता सकते हैं कि भविष्य में किन रोगों का आक्रमण होने वाला है।
सामान्य जीवन में अनागत घटनाओं पर सपनों के माध्यम से पूर्वाभास होने के तो ढेरों प्रमाण बिखरे पड़े हैं। टीपू सुल्तान के सपने लिंकन द्वारा अपनी मृत्यु का स्वप्न में पूर्वज्ञान, कैनेडी की हत्या का पूर्वाभास आदि तो प्रख्यात उदाहरण हैं। सपनों के माध्यम से सुदूर स्थित अति आत्मीयजनों के साथ घटी दुःखद घटनाओं की जानकारी के विवरण भी मिलते हैं। परन्तु रोग विवेचन के उदाहरण कुछ वर्ष पूर्व ही देखने में आये हैं।
फ्रायड के अनुसार, जब मनुष्य मूल प्रवृत्ति की दृष्टि से स्वाभाविक इच्छाओं को नैतिक या अन्य तरह के दबावों के कारण पूरी नहीं कर पाता और उनका दमन कर देता है तो चेतन मन उन इच्छाओं को अचेतन मन में धकेल देता है। ये इच्छायें अचेतन मन का अंश बन जाती हैं और अचेतन मन सपनों के माध्यम से उनकी पूर्ति करता है। फ्रायड के इस सिद्धान्त के अनुसार अनेकानेक मनोरोगों का विश्लेषण स्वप्न के माध्यम से सम्भव हो सका।
रोगों की जड़ तन में नहीं मन में, यह सोचा जाने लगा तो इस दिशा में किये गये प्रयासों से यह भी निष्कर्ष सामने आये कि रोगों का एक कारण मनुष्य के मन में दबी इच्छायें, दूषित संस्कार भी हो सकते हैं, डा. ब्राउन, डा. पीले, मैगडूगल, हैंडफील्ड और डा. जुंग आदि प्रसिद्ध मनःशास्त्रियों ने तो यहां तक कहा कि फोड़े-फुंसी से लेकर टी.बी. और कैन्सर जैसी बीमारियों तक में, प्रत्येक बीमारी का कारण कोई न कोई दमित इच्छा, अनैतिक कार्य या दूषित संस्कार है। मनुष्य बाहर से कैसा भी दिखाई दे या अपने को दिखाने का प्रयास करे, उसके बाहरी व्यक्तित्व और दमित इच्छाओं तथा दूषित संस्कारों में अनवरत एक द्वन्द चलता रहता है। यह अन्तर्द्वन्द्व ही रोग को जन्म देता है।
डा. स्टैकिल ने इस सिद्धान्त की पुष्टि में अपने कई रोगियों का उदाहरण प्रस्तुत किया है। कई चिकित्सकों के पास इलाज कराने और कोई लाभ न होने पर निराश होकर अस्थमा का एक रोगी डा. स्टैकिल के पास आया। उसने अपने रोग का पूरा इतिहास डॉक्टर को बता दिया। रोग और हुए उपचार का विवरण देखने के बाद रोगी से बातचीत करते हुए डा. स्टैकिल ने एक विचित्र बात देखी। रोगी के अनुसार उसे स्वप्न की एक विशेष स्थिति में, जब वह अपने आपको बकते हुए देखता था, तभी डरकर अचानक जाग उठता और उसकी सांस उखड़ने लगती।
डा. स्टैकिल ने सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार से विश्वास जीत लिया और उस कांटे को उगलवा लिया, जो उसके मन में चुभ रहा था। विगत जीवन में एक बार बहक गये कदम से रोगी जो कुछ अनुचित कर बैठा था उसकी स्मृति ही निरन्तर रिसती रहती थी। डा. को अपने मन का पाप बता देने के बाद रोगी का चित्त कुछ हलका हुआ तो वह सपना भी आना बन्द हो गया और धीरे-धीरे रोग भी जाता रहा।
कैलिफोर्निया के डा. मार्टिन, रोशमान और इविगि ओयल का तो यह मानना ही है अधिकांश रोग ‘‘साइको सोमेटिक’’ होते हैं, अर्थात् मानसिक अवसाद की प्रतिक्रिया शरीर पर भिन्न-भिन्न रोगों के रूप में होती है, अमेरिका के एक चिकित्सक द्वय इस सिद्धान्त को चिकित्सा जगत में क्रान्ति के रूप में प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि शरीर का प्रत्येक रोग, भले वह छोटे सा छोटा हो अथवा बड़े से बड़ा मन की किसी न किसी गुत्थी से जन्मता है। इतना ही नहीं, यदि उस गुत्थी को सुलझाया जा सके तो रोग ठीक भी हो सकता है।
सपनों के माध्यम से रोग-निदान की पद्धति का भी यही आधार है। फ्रायड के अनुसार भी तो मन की भली-बुरी इच्छायें अतृप्त रह जाने के कारण अचेतन मन में जा छुपती हैं और जब चेतन मन सो जाता है तो उभर कर क्रीड़ा कल्लोल कर तृप्त होती है। इच्छाओं की भांति ही स्मृतियां भी सपनों में उभर आयें तो इसमें क्या आश्चर्य है।
मानसिक गुत्थियों को रोगों का कारण मानने की तरह सपनों में उनकी प्रतिक्रियाओं का उभरना भी अस्वाभाविक नहीं है। यह बात और है कि सपनों का पूरी तरह विश्लेषण किया जाना अभी सम्भव नहीं हुआ है क्योंकि प्रतिकरण, प्रतिस्थापन, अभिनयकरण और आकुंचन आदि उसे बहुत जटिल बना देते हैं। लेकिन जब सपनों का पूरे तौर पर विश्लेषण कर पाना सम्भव हो जायेगा तो स्वस्थ व्यक्ति से भी उसके स्वप्न पूछकर रोगों का पूर्व संकेत प्राप्त किया जा सकेगा।
आंशिक रूप से इस दिशा में अब सफलतायें प्राप्त होने लगी हैं। डा. कासातकिन का कहना है कि—सपनों द्वारा टान्सिल्स, अपेडिसाइटीस और पाचन संस्थान के रोगों की जानकारी उनके प्रारम्भ होने से काफी समय पहले प्राप्त की जा सकती है। इतना ही नहीं, ब्रेन ट्यूमर जैसे रोग का पूर्व परिचय भी एक वर्ष पहले ही सपनों के माध्यम से मिल सकता है।
आधुनिक चिकित्सकों का ध्यान इस दिशा में अब गया है किन्तु आयुर्वेद में रोग-निदान के लिए सपनों को पहले ही काफी महत्व दिया गया था। कुछ आयुर्वेदिक ग्रन्थों में स्वप्नाध्याय के नाम से एक अलग ही खण्ड मिलता है। महान् ज्योतिष शास्त्री डा. कार्ल जुंग का कहना है कि जब कोई स्वप्न बार-बार आता है तो निश्चित ही उसका सम्बन्ध मनुष्य के भावी जीवन से रहता है। ऐसे स्वप्नों की कभी अवहेलना नहीं करनी चाहिए वह पूर्वाभास भी हो सकती है और शरीर के स्वप्न द्वार पर रोग की दस्तक भी। और आयुर्वेदिक आचार्य वराहमिहिर ने ‘‘कला प्रकाशिका’’ में सपनों के द्वारा त्रिदोष ज्ञान का सविस्तार विवेचन किया है। स्मरणीय है, आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्त और कफ ये त्रिदोष ही समस्त रोगों के मूल कारण हैं।
‘‘कला प्रकाशिका’’ में उल्लेख आया है कि जो व्यक्ति स्वयं को स्वप्न में प्रायः घिरा हुआ या अग्नि और उससे सम्बन्धित दृश्य देखता है, उसके शरीर में वात और पित्त का प्रभाव बढ़ा हुआ होता है। कपाल पर उष्णता अनुभव होने या भयावह दृश्य दिखाई पड़ने पर पित्त विकार की सम्भावना रहती है। इसी प्रकार रक्त वर्ण की वस्तुएं—रक्त विकार की, की ज्वाला और पुष्प पित्त दोष अथवा श्लेष्म के सूचक बताये गये हैं।
इसके साथ ही सतर्क भी किया है कि एक से सपनों का सभी के लिए एक सा अर्थ नहीं होता। अपितु रोग निदान के लिए व्यक्ति की मानसिक स्थिति और प्रकृति को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
आचार्य सुश्रुत ने सुश्रुत संहिता में लिखा है—‘स्वप्न से केवल रोग निदान में ही सहायता नहीं मिलती वरन् रोगी मनुष्य के रोग की वृद्धि या सुधार का भी पता चलता है। उदाहरण के तौर पर उन्होंने कुछ सपनों के प्रकार भी दिये हैं जैसे प्रमेह तथा अतिसार के रोगी को यदि पानी पीने का स्वप्न दीखे तो निश्चय ही रोग बढ़ेगा। श्वांस रोगी रास्ते में चलने या दौड़ने का सपना देखें तो यह भी कष्ट वृद्धि का सूचक है।
ग्रामीण महिलाएं भी इस विद्या की थोड़ी बहुत जानकार होती हैं। बच्चों को नींद में हंसते देखकर कई स्त्रियां निकट भविष्य में उसे रोग क्रान्त होने का अनुमान लगा लेती हैं। इसी तरह दूसरे सपनों की भी रोग व्याख्या कर लेती है। भले ही अधिकांश में वे अटकलबाजी से काम लेती हों परन्तु कई महिलायें सपनों की अर्थपूर्ण व्याख्या करने में आश्चर्यजनक रूप से सफल सिद्ध देखी गयी हैं।
सपनों की व्याख्या को लेकर विदेशों में भी कई पुस्तकें लिखी गई हैं। लेकिन इस विषय में अधिकांशतः भविष्यसूचक सपनों को व्याख्यायित किया जाता रहा है, सपनों के द्वारा रोग निदान की विज्ञान सम्मत गवेषणाओं का अभी श्रीगणेश ही हुआ है। इस क्षेत्र में किये जा रहे प्रयासों और प्राप्त निष्कर्षों से बीस पच्चीस वर्ष बाद रोगों के आगमन से पूर्व ही उनसे निबटने की सतर्कता बरतने के लिए आश्वस्त हुआ जा सकेगा। तब जानकार लोग उसे किसी साइकियाट्रिस्ट के पास जाने की सलाह दे सकेंगे ठीक उसी तरह जैसे आज सांस उखड़ने और चक्कर आने पर डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी जाती है।
सपनों के माध्यम से इस प्रकार अन्तरंग की शरीर और मन की यहां तक कि आत्मिक स्थिति की भी बहुत कुछ जानकारी मिल जाती है। सर्वविदित है कि मनुष्य के भीतर दैवी और आसुरी दोनों ही प्रवृत्तियां बसती हैं, मनुष्य के भीतर भगवान और शैतान दोनों ही विद्यमान हैं। किस का आधिपत्य है और कौन दुर्बल है—यह सपनों के विश्लेषण द्वारा बड़ी सरलतापूर्वक जाना जा सकता है। कहने को भले ही कोई कहता रहे कि हम सपने नहीं देखते, स्वप्न रहित नींद लेते हैं। पर यह सत्य नहीं है। यह बात अलग है कि किसी को सपने याद नहीं रहते हों, पर बिना सपने की नींद कभी आती ही नहीं है।
सपनों की भाषा कुछ बेतुकी, असंगत और आधारहीन है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक मानसिक संरचना भी भिन्न-भिन्न होती है। इसलिए सपनों की व्याख्या के लिए कोई सर्वमान्य सिद्धान्त स्थिर नहीं किया जा सकता, फिर भी उनकी उपयोगिता इस दृष्टि से समझी जा सकती है कि वे शारीरिक, मानसिक प्रस्तुत परिस्थितियों की सांकेतिक भाषा में जानकारी देते हैं। उस पर्यवेक्षण के आधार पर अपनी त्रुटियों को सुधारा जा सकता है। कहना न होगा कि अनुपयुक्तताओं का सुधार करके ही प्रगति पथ पर बढ़ सकना सम्भव होता है। इस दृष्टि से सपनों का लाभ भी है और उपयोग। हर किसी को उनका लाभ उठाने की विधा से परिचित होना भी चाहिए।
नींद के सम्बन्ध में एक तथ्य यह भी प्रकाश में आया है कि उस समय शरीर तो सोया रहता है किन्तु मन जागता रहता है और वह तरह-तरह की हलचलें किया करता है। जागृत अवस्था में मन के जो क्रिया-कलाप, व्यवहार, आचरण और कार्यों के रूप में अभिव्यक्त होते जान पड़ते हैं सुप्तावस्था में मन की वही हलचलें स्वप्न के रूप में दिखाई देती हैं। जागृत स्थिति में मन की उचंगों को सामाजिक दबाव, नैतिकता और सभ्यता के मानदण्डों से दबाना पड़ता है उन्हें व्यक्त होने से रोकना पड़ता है। लेनिन स्वप्न एक ऐसी स्थिति है कि वहां इस तरह का कोई दबाव अथवा नैतिक बाध्यता नहीं रहती, इसी लिए सपनों में मन स्वच्छन्द होकर बिहार करता है। इसी आधार पर प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक फ्राइड ने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया, कि ‘‘प्रत्येक स्वप्न अतीत की अनुभूतियों और दैहिक संवेदनों, विकारों का संयुक्त परिणाम होता है। स्वप्न यह स्पष्ट करते हैं कि हमारा चेतन मन, हमारी भावनाओं के हाथ का एक खिलौना मात्र है।
फ्राइड ने यह भी कहा कि मन की उचित वासनाएं ही प्रायः स्वप्न के रूप में प्रकट होती हैं और तरह-तरह के रंग बिरंगे चित्र दिखाकर अपनी तृप्ति का उपाय सृजती रहती हैं। लेकिन अब यह धारणा पुरानी पड़ चुकी है और यह स्वप्नों का एक पक्ष सिद्ध हुई, न कि उन्हें समझने या व्याख्यायित करने का सम्पूर्ण आधार।
‘‘ऐसा कोई स्वप्न जो नींद खुलने के बाद भी याद रहे, दबी हुई आकांक्षाओं की छद्म पूर्ति ही होता है’’ इन पंक्तियों में सुप्रसिद्ध यौन विज्ञानी सिगमण्ड फ्रायड ने अपने स्वप्न सिद्धान्तों को सूत्र रूप में कह दिया है। इस सिद्धान्त का विवेचन और विश्लेषण करते हुए फ्रायड ने ‘‘इमर्जेन्स एण्ड डेवलपमेण्ट ऑफ साइको—एनालिसस’’ पुस्तक में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि मनुष्य रात में सोते समय जो स्वप्न देखता है उनसे वह अपनी दबी हुई कामनाओं विशेषतः राग और यौन आकांक्षाओं की पूर्ति ही करता है।
यह ठीक है कि अचेतन मन में दबी हुई इच्छायें आकांक्षायें प्रायः स्वप्न के रूप में भी सामने आती हैं। परन्तु यह पूर्णतः सत्य नहीं है। हमारा मन शरीर के माध्यम से अपनी इच्छाओं और कामनाओं को पूरा करता है। कई इच्छायें ऐसी भी होती हैं जिन्हें वह अपने आस पास के वातावरण, सामाजिक दबाव और अक्षमता या असमर्थता के कारण पूर्ण नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में वह इच्छा पूर्ति की कल्पनायें भर करता रह सकता है। यह पूरी न होने वाली इच्छायें मन की मन में ही दबी रहती हैं और रात को जब व्यक्ति सो जाता है, तब उन कल्पनाओं को दृश्यों के रूप में देखकर इच्छा पूर्ति का आनन्द लेने लगता है। रात में जब व्यक्ति सो जाता है तो उसका शरीर तो शिथिल हो जाता है पर मन तब भी जागृत रहता है और वही अपनी इच्छाओं आकांक्षाओं के स्वप्न सजाता देखता रहता है। फ्रायड ने स्वप्नों की इतनी ही व्याख्या की है और मान लिया गया है कि स्वप्न मनुष्य की दमित अपूर्ण इच्छाओं की प्रतीकात्मक पूर्ति मात्र हैं, इससे अधिक कुछ भी नहीं।
सिगमण्ड फ्रायड ने 2900 स्वप्न संग्रह करके उनके आधार पर एक बड़ी 70 विवेचनात्मक पुस्तक लिखी है ‘‘ड्रीम एक्सप्लेण्ड’’ स्वप्नों की गम्भीर समीक्षायें की हैं और उन्हें अधिकांश मन में दबी हुई वासनाओं की अवचेतन मन में काल्पनिक स्थिति माना है। फ्रायड का कथन है कि मनुष्य दिन भर अनेक तरह की इच्छायें किया करता है, किन्तु सामाजिक नियन्त्रणों प्रतिबन्धों, कानून के भय व साधनों के अभाव आदि कारणों से वह अपनी इच्छायें, वासनायें पूरी नहीं कर पाता है। मन स्वप्नावस्था में इन दमित इच्छाओं व वासनाओं की ही मनचीती किया करता है। उसकी सभी मानसिक कल्पनायें फिल्म की भांति लगातार उभरती और प्रकट होती रहती है।
फ्रायड के विचारों का खण्डन प्रख्यात मनःशास्त्री कार्ल गुस्ताव जुंग ने किया है। वे कहते हैं कि दैनिक घटनाओं और संवेदनाओं का प्रभाव स्वप्नों में रहता तो है, पर वे इतने तक ही सीमित नहीं है। ब्रह्माण्ड में प्रवाहित होती रहने वाली पराचेतना में स्थितिवश अनेक विश्व प्रतिबिम्ब तैरते रहते हैं। मनुष्य की अनुभूतियां उनसे प्रभावित होती हैं और प्रभाव व्यक्ति की निज की स्थिति के साथ सम्मिलित होकर स्वप्न जैसी विचित्र प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है। उनका अभिप्राय यह है कि व्यक्ति की सीमित चेतना व्यापक पराचेतना के साथ मिलकर जिस स्तर का अनुभव करती है उसका सीधा तो नहीं, पर आड़ा टेड़ा परिचय स्वप्न संकेतों में मिल जाता है।
स्वप्न सभी सत्य होते हों यह बात नहीं। अनेक स्वप्न ऐसे होते हैं जो केवल मात्र अपनी शारीरिक और मानसिक स्थिति का संकेत करते हैं। जिस तरह वैद्य नाड़ी, और लक्षणों को देखकर रोग और बीमारी का पता लगा लेते हैं और उसी तरह इन समझ में आने वाले स्वप्नों से शरीर और मनोजगम की अपनी स्थिति का अध्ययन शीशे की भांति किया और उन्हें सुधारा जा सकता है। फ्रायड मनोविज्ञान में स्वप्नों की समीक्षा को इसी रूप में लिया जा सकता है।
स्वप्नों का, स्थान विशेष से भी सम्बन्ध होता है। इस सम्बन्ध में डा. फिशर द्वारा उल्लखित एक स्त्री का स्वप्न बहुत महत्व रखता है वह स्त्री जब एक विशेष स्थान पर सोती तो उसे सदैव यही स्वप्न आता कि कोई व्यक्ति एक हाथ में छुरी लिये दूसरे से उसकी गर्दन दबोच रहा है। पता लगाने पर ज्ञात हुआ कि उस स्थान पर सचमुच ही एक व्यक्ति ने एक युवती का इतना गला दबाया था जिससे वह लगभग मौत के समीप जा पहुंची थी। स्थान विशेष में मानव विद्युत के कम्पन चिरकाल तक बने रहते हैं। कब्रिस्तान की भयानकता और देव-मन्दिरों की पवित्रता इसके साक्ष्य के रूप में लिये जा सकते हैं।
स्वप्नों पर आस-पास के वातावरण का जिनमें व्यक्ति की दैहिक स्थिति भी सम्मिलित है, स्पष्ट प्रभाव इस तथ्य का परिचायक है कि उस समय हमारा सशक्त अवचेतन सक्रिय रहता है तथा वह अपने संस्कारों के अनुरूप उनकी अनुभूति करता है। यदि आहार ज्यादा कर लिया गया हो तो आमाशय एवं मस्तिष्क अधिक रक्त प्रवाह से उत्तेजित रहते हैं। यह उत्तेजना स्वप्नों के रूप में व्यक्त होती है और स्वप्नों का स्वरूप व्यक्ति मन के ढांचे के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है।
प्यासा आदमी स्वप्न में जलाशय की तलाश में फिरता है और शौच की इच्छा होने पर टट्टी के लिए स्थान ढूंढ़ता है। वीर्य में गर्मी बढ़ जाने से काम सेवन और स्वप्न दोष होने की घटना अनेकों के साथ घटित होती है। यह शारीरिक स्थिति से सम्बन्धित स्वप्न के बढ़े-चढ़े प्रतीकात्मक रूप हैं। बालकों की तरह अचेतन मन भी बहुत कल्पनाशील होता है। जरा से इशारे पर तिल का ताड़ गढ़ लेता है।
दो महिलाओं के सोते समय एक प्रयोग के अधीन पैर के पास गर्म मोमबत्ती ले जाई गई। एक ने स्वप्न में देखा कि वह तपते रेगिस्तान में सहसा आ पड़ी है, दूसरी ने स्वप्न देखा कि उसका पैर झुलस रहा है।
एक अन्य प्रयोग में कई व्यक्तियों की हथेलियों को रूई से सहलाया गया। फलस्वरूप स्वप्न में किसी ने देखा कि वह अपनी प्रेमिका का शरीर सहला रहा है तो दूसरे ने देखा वह मालिश करवा रहा है, तीसरे ने देखा कि वह स्केटिंग कर रहा है यानी बर्फ पर फिसल रहा है, चौथे ने देखा कि उसके शरीर से एक झबरी बिल्ली अपनी देह रगड़ रही है। एक अन्य प्रयोग में एक ही व्यक्ति के हाथ में दो बार अन्तराल से मोमबत्ती रखने पर पहली बार हाकी-स्टिक से खेलने का, दूसरी बार मुगदर घुमाने का स्वप्न देखा। स्पष्ट है कि अवचेतन का कौन-सा तार कब झंकृत हो उठा है, यही स्वप्न दृश्यों का आधार बनता है। स्वप्न स्थिति में भी व्यक्ति-मन का बाह्य जगत से सम्पर्क बना रहता है। यह मन चेतन न होकर अवचेतन होता है।
मन मस्तिष्क पर पड़ने वाले विभिन्न दबावों, इच्छाओं, वासनाओं के आघातों-प्रतिघातों से उत्पन्न दृश्य द्वितीय श्रेणी के स्वप्नों की कोटि में आते हैं। स्वप्न शास्त्री कार्ल—शेरनल का कथन है कि—‘‘शरीर या मन का प्रत्येक विक्षोभ एक विशिष्ट स्वप्न को उत्पन्न करता है। स्वप्न तथ्यों पर ही आधारित होते हैं, पर वे तथ्यों की सीमा में बंधे नहीं होते। उनमें कल्पनात्मक उड़ान भी भरपूर होती है।’’
प्रख्यात वैज्ञानिक एवं मनःशास्त्री हैवलाक एलिस के अनुसार ‘‘प्रत्येक स्वप्न अतीत की अनुभूतियों और दैहिक सम्वेदनों, विकारों का संयुक्त परिणाम होता है। स्वप्न यह स्पष्ट करते हैं कि हमारा चेतन मन हमारी भावनाओं के हाथ का खिलौना मात्र है।
फ्रायड ने स्वप्नों के विश्लेषण द्वारा यह निष्कर्ष निकाला है कि दबी हुई इच्छायें स्वप्न बनकर उभरती हैं। सभ्यता के साथ-साथ मनुष्य की कामनायें—आकांक्षाएं, वासनाएं और लिप्साएं भी बढ़ी हैं। वे अतृप्त रहने पर विद्रोही बनती हैं और स्वप्नों की अपनी अलग दुनिया रचकर उन्हें चरितार्थ करने का नाटक खेलती हैं। कामनाओं की न्यूनता से स्वभाव सन्तोषी बनता है और अन्तःकरण में चैन रहता है अथवा इतनी सुविधा होनी चाहिए कि हर इच्छा तृप्त हो सके। दोनों ही बातें न बनें तो असन्तुष्ट मनःस्थिति में मानसिक ग्रन्थियां बनती हैं और वे ऊबड़-खाबड़ स्वप्न दिखाने से लेकर मनोविकार तक उत्पन्न करने का कारण बनती हैं।
‘गेस्टाल्ट साइकोलॉजी’ ग्रन्थ में मानसिक संरचना और उनमें स्वप्नों की भूमिका के सम्बन्ध में विस्तृत विज्ञान पर प्रकाश डाला है और लिखा है कि सच होने वाले स्वप्न उत्तेजना भरे होते हैं और सामान्य स्वप्न ऐसे ही हंसी मजाक जैसे निरर्थक लगते हैं। उस ग्रन्थ में इस पर भी प्रकाश डाला है कि शरीर अपनी वर्तमान तथा भावी बीमारियों सम्बन्धी विवरण भी प्रकट करता है और कभी-कभी स्वयं ही आभास होता है कि निवारण के लिए क्या उपचार करना चाहिए।
अचेतन मन की कितनी ही परतों का गेस्टाल्ट थ्योरी में विवेचन है। स्वप्न किस परत से उठ रहे हैं इसका पता सर्वसाधारण को अनायास ही नहीं लगता पर अभ्यास से उस जानकारी का पता लग सकता है।
सेन्ट विल्सन अस्पताल (यू.के.) के डा. ग्लैडिका को मरणासन्न रोगियों में बहुत दिलचस्पी रही है। वे उनसे वार्त्तालाप करके इस सम्भावना का पता लगाते रहे हैं कि किस रोगी की मृत्यु का समय कब हो सकता है। वे लिखते हैं कि अधिकांश रोगी सूर्योदय से पूर्व प्रभात काल में अथवा रात्रि को जब गहरी नींद सोने का समय होता है, तब मरते हैं। उनने ऐसे भी कुछ रोगियों का वर्णन किया है जो पहली जांच-पड़ताल में मृतक घोषित कर दिये गये थे पर वस्तुतः उनका मस्तिष्क गहरी निद्रा में चला गया था। वह नींद जैसे ही हटी वे जीवित हो उठे।
भारतीय दर्शन ने सपनों के सम्बन्ध में और भी सर्वांगपूर्ण व्याख्या की है। आयुर्वेद के आचार्य सुश्रुत ने लिखा है कि मनुष्य का वात, पित्त और कफ कुपित रहता है, तब भी सपने आते हैं। सोते समय शरीर की विभिन्न अवस्थाओं का भी स्वप्न पर प्रभाव पड़ता है। कहा जाता है कि सीधे चित्त होकर लेटने और छाती पर हाथ रख कर सोने से डरावने सपने आने लगते हैं।
फ्रायड और शरीर विज्ञान ने स्वप्न के जो कारण बताये वह भारतीय मनीषियों ने पहले ही अथर्ववेद, दैवज्ञ, कल्पद्रुम, सुश्रूत संहिता, अग्निपुराण आदि ग्रन्थों में लिख दिये हैं। परन्तु सपनों के इतने भर ही कारण नहीं हैं। भारतीय मनीषियों के अनुसार मन की गति बहुत तीव्र है। ऋग्वेद के अनुसार—मन संसार के एक कोने से दूसरे कोने तक क्षण भर में पहुंच जाता है—
यत् ते विश्वमिदं जगन्मनो जगाम दूरकम् यत् ते पराः पांरवतो मनो जगाम दूरकम् ।
10।58।11
कठोपनिषद् में कहा है—‘‘यन्मन सहाइन्द्र’’—अर्थात् मन विद्युत शक्ति के समान हैं। मन सामान्य स्थिति में अपने शरीर और विषयों तक ही सीमित रहता है इसलिए सपने की सामान्य अवस्था में ऐसे ही ऊल जलूल और ऊटपटांग सपने आते हैं; जिनमें से कई तो याद भी नहीं रहते। शास्त्रकारों ने इस प्रकार के सपनों को तामसिक सपना बताया है।
जब शरीर में या स्वप्न अवस्था में रजोगुण प्रधान रहता है तो उस समय जागृत अवस्था में देखे हुए पदार्थ ही कुछ रूपान्तर से दिखाई देते हैं ऐसे स्वप्न जागने के बाद भी याद रहते हैं। शास्त्रकारों ने इन सपनों से भिन्न प्रकार के सपनों का भी उल्लेख किया है जिन्हें सात्विक सपना कहा है। इस स्थिति को उत्तम कहा गया है और बताया गया है कि ऐसे सपने मन के आत्मभूत होने पर देखे जाते हैं।
अन्तःस्थिति का परिचय देने वाले चित्र-विचित्र सपने
स्वप्न वस्तुतः जीवन का एक अनिवार्य अंग है। जिस प्रकार जागृत स्थिति में मनुष्य अपनी समझ मनःस्थिति और भावनाओं के अनुसार चित्र विचित्र कामनाएं करता रहता है उसी प्रकार सुषुप्तावस्था में स्वप्न देखता रहता है। यों जागते हुए भी लोग अपनी कल्पनाओं के चित्र बनाते और उन्हें देखकर आनन्दित होते रहते हैं। मनोविज्ञान की प्रचलित मान्यता के अनुसार सपने आने का मुख्य उद्देश्य मन में दमित वासनाओं और इच्छाओं की पूर्ति करना है। लेकिन अध्यात्म विज्ञान के अनुसार कई बार सपनों के माध्यम से अन्तर्जगत की झांकी भी मिलती है और उस झांकी से वह सब कुछ देखा समझा जा सकता है जो गहन से गहन विश्लेषण और निदान परीक्षा द्वारा भी सम्भव न हो सके।
विज्ञान और मनोविज्ञान के क्षेत्र में सपनों को लेकर कई खोज हुई हैं। उनसे प्राप्त निष्कर्षों से अभी तक तो सपनों के विश्लेषण द्वारा व्यक्ति पर पड़ने वाले या उसे अनुभव होने वाले व्यक्त-अव्यक्त दबावों का ही पता लगाया जाता था। लेकिन अब सपनों के माध्यम से रोग-निदान भी किया जाने लगा है। ऐसे-ऐसे रोगों का निदान स्वप्न विश्लेषण द्वारा सम्भव हो सका है, जिनके लक्षण चिकित्सा-उपकरणों की पकड़ में नहीं आते थे।
28 वर्षों के प्रयोग, निरीक्षण और विश्लेषणों के बाद के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डा. कासानकिन ने प्रतिपादित किया है कि रोग के लक्षण प्रकट होने से पूर्व ही सपनों के माध्यम से रोग अपने आगमन की सूचना दे देते हैं।
कुछ ही दिनों बाद यह स्थिति आने वाली है कि कोई स्वस्थ व्यक्ति स्वप्न विशेषज्ञ के पास जाकर अपने सपनों के बारे में बतायेगा और उस आधार पर विशेषज्ञ सतर्क कर देंगे कि अमुक रोग आपके शरीर दुर्ग में घुस-पैठ कर रहा है।
इसी विषय पर शोध करने वाले एक-दूसरे रूसी मनःचिकित्सक ने अपनी पुस्तक ‘‘सपनों का वैज्ञानिक अध्ययन’’ में लिखा है, व्यक्ति के भविष्य एवं उसकी स्वास्थ्य सम्बन्धी भावी सम्भावनाओं पर सपनों के द्वारा काफी प्रकाश पड़ता है। इतना ही नहीं, शरीर और मन से पूरी तरह स्वस्थ दिखाई देने वाले व्यक्तियों के स्वप्न भी यह बता सकते हैं कि भविष्य में किन रोगों का आक्रमण होने वाला है।
सामान्य जीवन में अनागत घटनाओं पर सपनों के माध्यम से पूर्वाभास होने के तो ढेरों प्रमाण बिखरे पड़े हैं। टीपू सुल्तान के सपने लिंकन द्वारा अपनी मृत्यु का स्वप्न में पूर्वज्ञान, कैनेडी की हत्या का पूर्वाभास आदि तो प्रख्यात उदाहरण हैं। सपनों के माध्यम से सुदूर स्थित अति आत्मीयजनों के साथ घटी दुःखद घटनाओं की जानकारी के विवरण भी मिलते हैं। परन्तु रोग विवेचन के उदाहरण कुछ वर्ष पूर्व ही देखने में आये हैं।
फ्रायड के अनुसार, जब मनुष्य मूल प्रवृत्ति की दृष्टि से स्वाभाविक इच्छाओं को नैतिक या अन्य तरह के दबावों के कारण पूरी नहीं कर पाता और उनका दमन कर देता है तो चेतन मन उन इच्छाओं को अचेतन मन में धकेल देता है। ये इच्छायें अचेतन मन का अंश बन जाती हैं और अचेतन मन सपनों के माध्यम से उनकी पूर्ति करता है। फ्रायड के इस सिद्धान्त के अनुसार अनेकानेक मनोरोगों का विश्लेषण स्वप्न के माध्यम से सम्भव हो सका।
रोगों की जड़ तन में नहीं मन में, यह सोचा जाने लगा तो इस दिशा में किये गये प्रयासों से यह भी निष्कर्ष सामने आये कि रोगों का एक कारण मनुष्य के मन में दबी इच्छायें, दूषित संस्कार भी हो सकते हैं, डा. ब्राउन, डा. पीले, मैगडूगल, हैंडफील्ड और डा. जुंग आदि प्रसिद्ध मनःशास्त्रियों ने तो यहां तक कहा कि फोड़े-फुंसी से लेकर टी.बी. और कैन्सर जैसी बीमारियों तक में, प्रत्येक बीमारी का कारण कोई न कोई दमित इच्छा, अनैतिक कार्य या दूषित संस्कार है। मनुष्य बाहर से कैसा भी दिखाई दे या अपने को दिखाने का प्रयास करे, उसके बाहरी व्यक्तित्व और दमित इच्छाओं तथा दूषित संस्कारों में अनवरत एक द्वन्द चलता रहता है। यह अन्तर्द्वन्द्व ही रोग को जन्म देता है।
डा. स्टैकिल ने इस सिद्धान्त की पुष्टि में अपने कई रोगियों का उदाहरण प्रस्तुत किया है। कई चिकित्सकों के पास इलाज कराने और कोई लाभ न होने पर निराश होकर अस्थमा का एक रोगी डा. स्टैकिल के पास आया। उसने अपने रोग का पूरा इतिहास डॉक्टर को बता दिया। रोग और हुए उपचार का विवरण देखने के बाद रोगी से बातचीत करते हुए डा. स्टैकिल ने एक विचित्र बात देखी। रोगी के अनुसार उसे स्वप्न की एक विशेष स्थिति में, जब वह अपने आपको बकते हुए देखता था, तभी डरकर अचानक जाग उठता और उसकी सांस उखड़ने लगती।
डा. स्टैकिल ने सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार से विश्वास जीत लिया और उस कांटे को उगलवा लिया, जो उसके मन में चुभ रहा था। विगत जीवन में एक बार बहक गये कदम से रोगी जो कुछ अनुचित कर बैठा था उसकी स्मृति ही निरन्तर रिसती रहती थी। डा. को अपने मन का पाप बता देने के बाद रोगी का चित्त कुछ हलका हुआ तो वह सपना भी आना बन्द हो गया और धीरे-धीरे रोग भी जाता रहा।
कैलिफोर्निया के डा. मार्टिन, रोशमान और इविगि ओयल का तो यह मानना ही है अधिकांश रोग ‘‘साइको सोमेटिक’’ होते हैं, अर्थात् मानसिक अवसाद की प्रतिक्रिया शरीर पर भिन्न-भिन्न रोगों के रूप में होती है, अमेरिका के एक चिकित्सक द्वय इस सिद्धान्त को चिकित्सा जगत में क्रान्ति के रूप में प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि शरीर का प्रत्येक रोग, भले वह छोटे सा छोटा हो अथवा बड़े से बड़ा मन की किसी न किसी गुत्थी से जन्मता है। इतना ही नहीं, यदि उस गुत्थी को सुलझाया जा सके तो रोग ठीक भी हो सकता है।
सपनों के माध्यम से रोग-निदान की पद्धति का भी यही आधार है। फ्रायड के अनुसार भी तो मन की भली-बुरी इच्छायें अतृप्त रह जाने के कारण अचेतन मन में जा छुपती हैं और जब चेतन मन सो जाता है तो उभर कर क्रीड़ा कल्लोल कर तृप्त होती है। इच्छाओं की भांति ही स्मृतियां भी सपनों में उभर आयें तो इसमें क्या आश्चर्य है।
मानसिक गुत्थियों को रोगों का कारण मानने की तरह सपनों में उनकी प्रतिक्रियाओं का उभरना भी अस्वाभाविक नहीं है। यह बात और है कि सपनों का पूरी तरह विश्लेषण किया जाना अभी सम्भव नहीं हुआ है क्योंकि प्रतिकरण, प्रतिस्थापन, अभिनयकरण और आकुंचन आदि उसे बहुत जटिल बना देते हैं। लेकिन जब सपनों का पूरे तौर पर विश्लेषण कर पाना सम्भव हो जायेगा तो स्वस्थ व्यक्ति से भी उसके स्वप्न पूछकर रोगों का पूर्व संकेत प्राप्त किया जा सकेगा।
आंशिक रूप से इस दिशा में अब सफलतायें प्राप्त होने लगी हैं। डा. कासातकिन का कहना है कि—सपनों द्वारा टान्सिल्स, अपेडिसाइटीस और पाचन संस्थान के रोगों की जानकारी उनके प्रारम्भ होने से काफी समय पहले प्राप्त की जा सकती है। इतना ही नहीं, ब्रेन ट्यूमर जैसे रोग का पूर्व परिचय भी एक वर्ष पहले ही सपनों के माध्यम से मिल सकता है।
आधुनिक चिकित्सकों का ध्यान इस दिशा में अब गया है किन्तु आयुर्वेद में रोग-निदान के लिए सपनों को पहले ही काफी महत्व दिया गया था। कुछ आयुर्वेदिक ग्रन्थों में स्वप्नाध्याय के नाम से एक अलग ही खण्ड मिलता है। महान् ज्योतिष शास्त्री डा. कार्ल जुंग का कहना है कि जब कोई स्वप्न बार-बार आता है तो निश्चित ही उसका सम्बन्ध मनुष्य के भावी जीवन से रहता है। ऐसे स्वप्नों की कभी अवहेलना नहीं करनी चाहिए वह पूर्वाभास भी हो सकती है और शरीर के स्वप्न द्वार पर रोग की दस्तक भी। और आयुर्वेदिक आचार्य वराहमिहिर ने ‘‘कला प्रकाशिका’’ में सपनों के द्वारा त्रिदोष ज्ञान का सविस्तार विवेचन किया है। स्मरणीय है, आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्त और कफ ये त्रिदोष ही समस्त रोगों के मूल कारण हैं।
‘‘कला प्रकाशिका’’ में उल्लेख आया है कि जो व्यक्ति स्वयं को स्वप्न में प्रायः घिरा हुआ या अग्नि और उससे सम्बन्धित दृश्य देखता है, उसके शरीर में वात और पित्त का प्रभाव बढ़ा हुआ होता है। कपाल पर उष्णता अनुभव होने या भयावह दृश्य दिखाई पड़ने पर पित्त विकार की सम्भावना रहती है। इसी प्रकार रक्त वर्ण की वस्तुएं—रक्त विकार की, की ज्वाला और पुष्प पित्त दोष अथवा श्लेष्म के सूचक बताये गये हैं।
इसके साथ ही सतर्क भी किया है कि एक से सपनों का सभी के लिए एक सा अर्थ नहीं होता। अपितु रोग निदान के लिए व्यक्ति की मानसिक स्थिति और प्रकृति को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
आचार्य सुश्रुत ने सुश्रुत संहिता में लिखा है—‘स्वप्न से केवल रोग निदान में ही सहायता नहीं मिलती वरन् रोगी मनुष्य के रोग की वृद्धि या सुधार का भी पता चलता है। उदाहरण के तौर पर उन्होंने कुछ सपनों के प्रकार भी दिये हैं जैसे प्रमेह तथा अतिसार के रोगी को यदि पानी पीने का स्वप्न दीखे तो निश्चय ही रोग बढ़ेगा। श्वांस रोगी रास्ते में चलने या दौड़ने का सपना देखें तो यह भी कष्ट वृद्धि का सूचक है।
ग्रामीण महिलाएं भी इस विद्या की थोड़ी बहुत जानकार होती हैं। बच्चों को नींद में हंसते देखकर कई स्त्रियां निकट भविष्य में उसे रोग क्रान्त होने का अनुमान लगा लेती हैं। इसी तरह दूसरे सपनों की भी रोग व्याख्या कर लेती है। भले ही अधिकांश में वे अटकलबाजी से काम लेती हों परन्तु कई महिलायें सपनों की अर्थपूर्ण व्याख्या करने में आश्चर्यजनक रूप से सफल सिद्ध देखी गयी हैं।
सपनों की व्याख्या को लेकर विदेशों में भी कई पुस्तकें लिखी गई हैं। लेकिन इस विषय में अधिकांशतः भविष्यसूचक सपनों को व्याख्यायित किया जाता रहा है, सपनों के द्वारा रोग निदान की विज्ञान सम्मत गवेषणाओं का अभी श्रीगणेश ही हुआ है। इस क्षेत्र में किये जा रहे प्रयासों और प्राप्त निष्कर्षों से बीस पच्चीस वर्ष बाद रोगों के आगमन से पूर्व ही उनसे निबटने की सतर्कता बरतने के लिए आश्वस्त हुआ जा सकेगा। तब जानकार लोग उसे किसी साइकियाट्रिस्ट के पास जाने की सलाह दे सकेंगे ठीक उसी तरह जैसे आज सांस उखड़ने और चक्कर आने पर डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी जाती है।
सपनों के माध्यम से इस प्रकार अन्तरंग की शरीर और मन की यहां तक कि आत्मिक स्थिति की भी बहुत कुछ जानकारी मिल जाती है। सर्वविदित है कि मनुष्य के भीतर दैवी और आसुरी दोनों ही प्रवृत्तियां बसती हैं, मनुष्य के भीतर भगवान और शैतान दोनों ही विद्यमान हैं। किस का आधिपत्य है और कौन दुर्बल है—यह सपनों के विश्लेषण द्वारा बड़ी सरलतापूर्वक जाना जा सकता है। कहने को भले ही कोई कहता रहे कि हम सपने नहीं देखते, स्वप्न रहित नींद लेते हैं। पर यह सत्य नहीं है। यह बात अलग है कि किसी को सपने याद नहीं रहते हों, पर बिना सपने की नींद कभी आती ही नहीं है।
सपनों की भाषा कुछ बेतुकी, असंगत और आधारहीन है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक मानसिक संरचना भी भिन्न-भिन्न होती है। इसलिए सपनों की व्याख्या के लिए कोई सर्वमान्य सिद्धान्त स्थिर नहीं किया जा सकता, फिर भी उनकी उपयोगिता इस दृष्टि से समझी जा सकती है कि वे शारीरिक, मानसिक प्रस्तुत परिस्थितियों की सांकेतिक भाषा में जानकारी देते हैं। उस पर्यवेक्षण के आधार पर अपनी त्रुटियों को सुधारा जा सकता है। कहना न होगा कि अनुपयुक्तताओं का सुधार करके ही प्रगति पथ पर बढ़ सकना सम्भव होता है। इस दृष्टि से सपनों का लाभ भी है और उपयोग। हर किसी को उनका लाभ उठाने की विधा से परिचित होना भी चाहिए।