Books - अपने ब्राह्मण एवं सन्त को जिन्दा कीजिए
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अपने ब्राह्मण एवं सन्त को जिन्दा कीजिए
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देवियो! भाइयो!! आप में से अधिकांश व्यक्ति सोच रहे होंगे कि मैं
यहाँ था, परन्तु व्याख्यान क्यों नहीं दिया? विशेष कारणवश व्याख्यान न दे
सका। बेटे! मैं अपने जीवन भर प्रयोग करता रहा हूँ। कौन- कौन से प्रयोग किये
हैं?
पहले ब्राह्मण बनने का प्रयोग किया कि ब्राह्मणत्व के क्या- क्या चमत्कार हो सकते हैं? मैंने उसे अपने जीवन में धारण करके देखा है और पाया है कि इसमें सफलताएँ भी हैं तथा चमत्कार भी हैं। ब्राह्मण जीवन किसे कहते हैं? किफायतसारी जीवन को कहते हैं। ब्राह्मण उसे कहते हैं जो अपना खर्च कम से कम में चला सकता हो तथा अधिक से अधिक अपना धन, अक्ल, मेहनत, समाज में लगा सकता है, जिससे उसके जीवन का लक्ष्य, समाज का लक्ष्य पूरा होता हो। जिस आदमी के पास कुछ बचता ही नहीं है, वह समाज को क्या देगा?
हमें यह कहना होगा कि अध्यात्मवादी बनने के लिए किफायतसारी बनना होगा, ब्राह्मण बनना होगा। हमने इसका प्रयोग किया है तथा लाभ पाया है। हमने अपना खाने- पीने तथा रहने का ढंग ब्राह्मण का रखा है। अपने जमीन के बाबत जो कुछ हमें मिला था, उसे गायत्री तपोभूमि के लिए दान कर दिया। मैंने अपनी पत्नी से पेशवा ब्राह्मणों की उपमा देते हुए कहा कि आपको भी यह जीवन जीना चाहिए। पेशवा के राम टांक ने अपने गुरु की पत्नी के आदेश पर सब कुछ दे दिया था। इन्होंने भी अपने सारे गहने गायत्री तपोभूमि के लिए लगा दिये। पैसों की दृष्टि से हम खाली हाथ हो गये, परन्तु शक्ति बहुत मिल गई।
मित्रो! धन की और बल की शक्ति नहीं होती है। वह ब्राह्मणत्व की शक्ति होती है। यह मैं आपको यकीन दिला सकता हूँ। मैं ब्राह्मण था और अब भी ब्राह्मण हूँ। जो कुछ भी आप देख रहे हैं यह ब्राह्मणत्व का चमत्कार है। इस दुनिया में मित्रों, एक ही बिरादरी रह गई है जिसका नाम बनिया है। बाकी सारी बिरादरी मर गई हैं- एक ही जिन्दा है वह है बनिया। सारे के सारे क्षेत्र में बनिया ही बनिया छाया है। ब्राह्मण कहीं नहीं। परन्तु हम ब्राह्मण हैं, इस पर हमें गर्व है तथा सन्तोष है। अगर कोई अपने को ब्राह्मण बना सकता हो, अपने खर्च और लागत को कम कर सकता हो तथा नीयत में ब्राह्मणत्व है तो हमें प्रसन्नता होगी परन्तु आपकी नीयत में तो चाण्डाल बसा हुआ है। आदमी को गरीब भी होना पड़ेगा, यह हमने ब्राह्मण का प्रयोग करके देखा है।
दूसरा वाला प्रयोग हमने किया- साधु का। जिसका नाम तपस्वी है। हमने अपने सारे छिद्रों को बन्द कर दिया। यह दूसरा कदम है। काँटे पर चलने वाले का नाम तपस्वी नहीं है। ठण्डे पानी से नहाने वाले का नाम तपस्वी नहीं है। उस आदमी का नाम साधु और तपस्वी है, जिसने अपने आप का तपाया, उसका नाम तपस्वी है, उसका नाम साधु है। हमने अपने आप को तपाया है। अक्ल की दृष्टि से आदमी से ज्यादा बेईमान, बहुरूपिया कोई नहीं है। हमने अपनी अक्ल को ठीक कर लिया है। आप भी मारे डण्डों से अपनी अक्ल को ठीक करें। हमने अपनी हर चीज को तपाया, भीतर वाले हिस्से को भी तपाया। हमने अपने मन को, बुद्धि को तपाया है, पर आपकी बुद्धि तो ऐसी चाण्डाल है, ऐसी पिशाचिनी है कि क्या कहें? किसी के जिन्दगी की समस्या को हल करने का सवाल था तो आपकी अक्ल, आपकी बुद्धि ने ऐसी मक्कारी की कि क्या कहना? पैसे से लेकर समय तक हमने केवल समाज के लिए खर्च किया। यह कसा हुआ जीवन हमारा तपस्वी का जीवन है। मन्त्रों में शक्ति है, गलत बात नहीं है। देवताओं में शक्ति है, यह भी गलत नहीं है, किन्तु, अगर कोई आदमी तपस्वी है तो वह हर काम को कर सकता है। अपने अनुष्ठान काल में हमने किसी से बात नहीं की, कोई भी अन्य चीज नहीं खायी। जौ की रोटी एवं छाछ, बस यही दो चीजें हम खाते रहे।
जैसे हमने अनुष्ठान खत्म किया कि एक व्यक्ति आये जो नकली रेशम बनाते थे, उन्होंने कहा कि हम आपको गुरु बनायेंगे। उन्होंने सवा रुपया हमारे हाथ पर रखा। इस पर हमने सोचा कि तब तो हम ब्राह्मण नहीं हो सकते हैं, हम मजदूर हैं। उन्होंने कहा कि ब्राह्मण को तो लेना चाहिए। यह आज से लगभग ३५- ४० साल पहले सन् १९४५- ४६ की बात है, उस सज्जन को लेकर हम बाजार गये। उस जमाने में ठण्डी में बिछाने के लिए पुराने कपड़ों के तथा रूई की हाथ से बनी दरियाँ दो रुपये में मिलती थीं। उससे वहीं चीजें खरीदकर जरूरतमन्दों में बाँट दी, पर अपने लिए हमने उसे स्वीकार नहीं किया। हमारी अक्ल एवं जो भी चीज हमारे पास थी, उसे हम हमेशा बाँटते चले गये। उस आदमी ने कुछ दिनों के बाद हमारे पास दो सौ रुपये भेजे। हमने उसे गायत्री तपोभूमि के मन्दिर बनाने में लगा दिया। यह वह पहला आदमी था जिसने हमें पैसा भेजा था। यह घटनाएँ सुना रहा हूँ मैं आपको अपने तपस्वी जीवन की। इसी तरह हमारे सारे कार्य होते चले गये। कोई काम हमारा रुका नहीं।
एक प्रयोग वाणी के संयम का हम सुनाते हैं आपको। हम चाहते थे कि हम मौन धारण कर लें तथा बैखरी वाणी का प्रयोग कम करें। हमने जितना व्याख्यान दिया है, दुनिया में शायद ही किसी व्यक्ति ने व्याख्यान दिये होंगे। हमारे व्याख्यानों में लोगों के कायाकल्प हो गये जैसे रामकृष्ण परमहंस के व्याख्यान से हुआ था। लेकिन जो लोग रीछ का तमाशा, रीछ का व्याख्यान सुनने आये, उनको कोई फायदा नहीं हुआ। जिन लोगों को हम व्याख्यान देते हैं, उसे सूँघकर जब देखते हैं, चखकर के देखते हैं कि आदमी कैसा है? घटिया है या वजनदार? तो वे हमें छोटे- छोटे आदमी घटिया आदमी दिखाई पड़ते हैं। हमें वजनदार आदमी दिखाई नहीं पड़ते हैं। वजनदार आदमी माने सिद्धान्तों के आदमी। सिद्धान्तों को सुनने वाले, मानने वाले, उस पर चलने वाले, सिद्धान्तों को जीवन में उतारने वाले कोई नहीं दिखाई पड़ते हैं। लोगों पर गुस्सा न करके अपने पर गुस्सा न करूँ तो क्या करूँ? आपको मालूम है, जब आदमी मरने को होता है तो बहुत- से आदमी मिलने आते हैं। बहुत- सी शक्ति खर्च होती है। कोई कहता है ताऊ जी अच्छे हैं, कोई कहता है कि हमें आशीर्वाद दे दीजिये। इससे बातें करने में बहुत शक्ति खर्च होती है। इसमें भीतरी शक्ति बेहद खर्च होती है इसलिए हमने विचार किया है हम मिलना बन्द कर देंगे। हम अपनी वैखरी वाणी को दूसरे काम में खर्च करेंगे। वैखरी वाणी कम हो जाएगी, तब पश्यन्ति वाणी, मध्यमा वाणी का उपयोग करेंगे ताकि हम ज्यादा काम कर सकें? बिना बातचीत किये ही ज्यादा काम कर सकते हैं तथा वातावरण को गर्म कर सकते हैं। बेटे! अरविन्द घोष ने, महर्षि रमण ने इस प्रकार का प्रयोग किया था और सारा हिन्दुस्तान गर्म हो गया था।
बैखरी वाणी के माध्यम से अनावश्यक शक्तियाँ खर्च होती चली जाती हैं। इसलिए मैंने विचार किया कि अब इसका खर्च कम करेंगे। भगवान की शक्ति बहुत है, अबकी बार मैंने प्रयोग किया। अब बोलने की बात कम करता जाऊँगा। इस काम में समय को कम खर्च करता जाऊँगा और लोगों से बातें कम करता जाऊँगा। कारण, अधिकांश लोग अपनी राम कहानी लेकर आते हैं। अनावश्यक भीड़ आ जाती है और कहती है कि हमारा मन नहीं लगता, ध्यान नहीं लगता। बेकार की बातें लोग करते हैं, यह नहीं कि मतलब की बातें करें। बेकार की बातें करने में अब हम समय खर्च नहीं करेंगे। वाणी से बात नहीं होगी तो क्या आप निष्ठुर हो जाएँगे। नहीं बेटे, हमने ब्राह्मण के बाद सन्त के रूप में कदम बढ़ाया है। सन्त उसे कहते हैं, जिसका मन करुणा से लबालब भरा हुआ होता है। जो दाढ़ी बढ़ा लेता है, रँगा हुआ कपड़ा पहन लेता है, ध्यान कर लेता है, उसे सन्त नहीं कहते हैं। करुणा से भरा हुआ व्यक्ति ही सन्त कहलाता है। जब तक हम हैं तब तक हम समाज के लिए काम करते रहेंगे।
एक हमारा प्याऊ है जो कभी सूखेगा नहीं। जो पसीने से लथपथ हो गये हैं, थक गये हैं, हमारे प्याऊ पानी, हमारी तपस्या में से उनको देते रहेंगे, उन्हें हरा- भरा बनाये रखेंगे। आप सब लोग हमारे प्याऊ से पानी पी सकते हैं। ब्राह्मण, सन्त का जीवन चलता रहेगा। हम प्याऊ बन्द नहीं कर सकते हैं। हमने एक चिकित्सालय- डिस्पेन्सरी खोला है। जो भी दुःखी हमारे पास आये, हमने उसे छाती से लगाया। उसकी बीमारी का, दुःख का बराबर ख्याल रखा है। सन्त का काम भाव- संवेदना का है। हमें अपने बच्चे को खिलाना है, बच्चों की देख−भाल करनी है, बच्चों को गुब्बारा बाँटना है, बच्चों के चेहरे पर मुसकराहट देखनी है। ये चीजें देखकर हमको खुशी होती है। हम बच्चों के स्कूल चलाते हैं। इसका मतलब क्या है? हमारा अस्पताल चलता है, डिस्पेन्सरी चलती है। प्याऊ चलाने से क्या मतलब है? यह आध्यात्मिक बात है। यह सन्त की बातें हैं। तो क्या आप सन्त की दुकान बन्द कर देंगे? नहीं, बन्द नहीं करेंगे, जब तक हम जिन्दा हैं। आगे भी चलता रहेगा।
आप लोगों को हमने कई बार कहा है, हजार बार कहा है कि आपकी जो समस्याएँ हैं, उसे आप लिखकर देवें। आप आधा घण्टे भी भगवान का नाम नहीं ले सकते हैं। आप कहते हैं कि हम आपके रास्ते पर चल सकते हैं। बेकार की बातें मत कीजिये। तराजू हमारे पास है। हम जानते हैं, हमारा भगवान जानता है कि आप क्या हैं? इसलिए हमने इस बार यह कहना शुरू कर दिया है कि आप हमारा समय नष्ट करने के बजाय लिखकर दे जाइये। आप यहाँ न ध्यान करने आते हैं, न पूजा करने आते हैं, न मतलब की बात करने आते हैं, केवल घूमने आते हैं, किराया खर्च करते हैं। आप हमें बेअकल समझते हैं। हम आपकी नस- नस जानते हैं। इसलिए हमने बैखरी वाणी से बोलना बन्द कर दिया है। हमारे गुरु हम से बैखरी वाणी से नहीं बोलते, पश्यन्ति वाणी से बोलते हैं, परावाणी से बोलते हैं। आपकी बातों को हमने सुन लिया है और कहा है कि बेकार की रामकहानी कहकर हमारा समय क्यों खराब करते हैं? हमें राम कहानी से क्या मतलब है, आप मतलब की बात कहिये।
साथियों! हमारे मौन धारण करने का एक और कारण है। आप यह मत सोचिये कि मैं अपना प्याऊ बन्द करने जा रहा हूँ। हमें बच्चों को खिलाने का शौक है। हमें बच्चों को प्यार करना, उन्हें गुब्बारा देना बहुत प्यारा लगता है। स्वयं घोड़ा बन जाना तथा बच्चों को पीठ पर बैठा लेना तथा घुमाना बहुत प्यारा लगता है।
हम जो भी सहायता आपकी कर सकते हैं, वह अवश्य करेंगे, परन्तु आपको भी स्वयं में संवेदना पैदा करनी होगी। हमने कहा है कि आप उपासना करिये, जप करिये ताकि आपको उस समय परा एवं पश्यन्ति वाणी से दिशा दे सकूँ, अन्यथा मैं अपने मौन की शक्ति प्रेषित करूँगा और आपको नुकसान होगा।
मेरे गुरु के व्याख्यान देने का कार्य बन्द हो गया तो क्या उनकी शक्ति कम हो गई? हम नहीं बोल रहे हैं, हमारा गुरु बोल रहा है। आप भी उनकी शक्ति से बोलेंगे। प्रज्ञापुराण जब आप पढ़ेंगे और लोगों को सुनाएँगे तब वह आपकी वाणी में नहीं, बल्कि मेरे गुरु की वाणी में होगा, जिसमें अधिक ताकत होगी। आपकी वाणी में कोई ताकत नहीं होगी, आप ऐसे ही बकवास करते रहेंगे। हम मौन हो जाएँगे तो हमारी शक्ति बढ़ जाएगी। हमारी परा एवं पश्यन्ति वाणी की ताकत बढ़ जाएगी। आप मेरी उस वाणी को सुनेंगे तो आपके आँखों में पानी आएगा, भाव- संवेदना जगेगी। इससे हम आपकी सहायता ज्यादा कर सकेंगे।
आप क्या सोचते हैं कि आप लोगों के ऊपर हमारा कोई असर नहीं पड़ता है। यह हमारा मौन ब्राह्मणत्व है। यह तपस्वी की वाणी है। हमने सेवा करने में सन्त की प्रवृत्ति को जिन्दा रखा है कि हम समाज की सेवा करेंगे। आज व्यक्ति की सेवा ज्यादा है, समाज की सेवा गौण हो गयी है।
हमारे मरने के बाद आप देखेंगे कि गुरुजी के मरने के बाद उनका समय, धन, श्रम किस काम में खर्च हुआ है। हमारी शक्ति एवं सामर्थ्य बच्चों को खिलाने में, अस्पताल खोलकर मरीजों की सेवा में खर्च हुई हैं। हमने अभी तक समाज को चालीस प्रतिशत दिया है और लोगों को, दुखियारे को पाँच प्रतिशत दिया है। अब हमारा मन है कि इसका हिस्सा बढ़ाया जा सके। जब हम मौन धारण कर लेंगे तो हमारा ब्राह्मण और जाग जाएगा, उस समय हम व्यक्तियों की भी ज्यादा सेवा कर सकेंगे। ठोस सेवा कर सकेंगे। अभी तक हमारी सहानुभूति का अंश ज्यादा रहा है, सेवा का हिस्सा कम रहा है। हमने सहानुभूति दी है तथा पायी है। अगर हमने किसी की एक किलोग्राम सेवा की है तो उसमें पाँच सौ ग्राम सहानुभूति भी है। उस समय हम साधन सम्पन्न एवं समर्थ थे। पर अगले दिनों जब जीवात्मा को हम और ऊपर उठा लेंगे तब हम अधिक सेवा कर सकेंगे। आपके लिए हमने कुछ किया है या नहीं? इसका सबूत देखना हो तो दृष्टि पसारकर देखिये कि कुछ हुआ है, तो आप पायेंगे कि इसी कारण से यह पचास लाख आदमी हमसे जुड़े हैं, अन्यथा इतने आदमी कहाँ से आते? यह हम कहाँ कहते हैं कि कुछ नहीं हुआ। ५० लाख आदमी हमारे एक इशारे पर खड़े हो सकते हैं। इतने शक्तिपीठ कहाँ से बन गये? ५० लाख मुट्ठियाँ ५० लाख लोगों का एक घण्टे का समयदान कुछ मायने रखता है।
हम अपने ब्राह्मण को फिर जिन्दा करेंगे। सन्त दानी होता है। आदमी को दानी बनने के लिए सन्त बनना होगा। हम ब्राह्मण और सन्त को पुनः जिन्दा करेंगे। ब्राह्मण जमा करता है, सन्त उसे खर्च कर देता है। हमने निश्चय किया है, विचार किया है कि जिन्दगी के इन आखिरी क्षणों में अपने ब्राह्मण एवं सन्त को साधकर सबके लिए एक मिसाल स्थापित कर दूँ।
क्या हम जिन्दगी भर, अपने बीबी- बच्चों को ही खिलाते रहेंगे? जिस पर मनुष्य का भविष्य टिका है, क्या उसके लिए कुछ नहीं कर सकेंगे? अपने लिये अधिक, समाज के लिए इतना कम। यह कैसे होगा? मेरे गुरु ने दुखियारों की सेवा, समाज की सेवा कम की है, परन्तु उसने सारे विश्व को हिला दिया है। दूसरों के दुःखों को देखकर यह सोचते हैं कि इसके लिए हम क्या करें? उस समय मैं रो पड़ता हूँ तथा उसे सहायता किये बिना मेरा मन नहीं मानता है। यह क्रम चलेगा ही। परन्तु एक काम और है, इनसान को ऊँचा उठाने का। हम सोचते हैं कि और यदि यह काम भी किया होता तो मजा आ जाता। आप जितने लोग बैठे हैं, अगर आपको हम फुटबॉल की तरह ऊँचे उछाल दिये होते तो मजा आ जाता। आप लोगों को उछाल दें तो आप में से हर एक आदमी हनुमान, ऋषि विवेकानन्द दिखाई पड़ेगा। आप लोगों में से एक भी आदमी ऐसा नहीं है, जो रैदास की तुलना में गरीब हो। परन्तु आप इतने भारी हैं कि आपके सेल्स काम नहीं कर रहे हैं, आपके हाथ उठ नहीं पा रहे हैं। मानसिक दृष्टि से एक- एक बेड़ियाँ इतनी भारी हैं जैसे हजार मन की हों। ऐसे में आपको कैसे उठाऊँ? आपकी बेड़ियों को मैं काटूँगा क्योंकि हमारे बाद इन बच्चों को खिलाने वाला, नर्सिंगहोम चलाने वाला कहाँ से लायेंगे? यह अस्पताल बन्द हो जाने पर आपके अनुभव के बिना इनका ऑपरेशन कौन करेगा? इनसान को उठाया नहीं जा सका तो बात कैसे बनेगी?
इसी काम के लिए हम समय लगाना चाहते हैं। सवाल हमारे समय का है, आप तो केवल पूजा के पीछे पड़े हैं। देवी- देवता के पीछे लगे हैं कि मनोकामना पूरी हो जाए। किसी दिन मेरे दिमाग में गुस्सा आ गया तो पूजा को ही बन्द कर दूँगा और कहूँगा कि इसी के पीछे पड़ा है। पूजा के चक्कर में पड़ा है। पूजा से आज्ञाचक्र जगेगा। सुन लेना एक दिन मैं पूजा को गालियाँ दूँगा, यदि यही रटता रहा कि सब कुछ पूजा से मिल जाएगा और यही समझता रहा कि माला घुमाने को पूजा कहते हैं। देवी- देवता को पकड़ने का नाम पूजा है। अज्ञानी लोग, भ्रमित लोग मनुष्य को दबाने तथा चक्कर में डालने के नाम को पूजा कहते हैं। देवी- देवताओं को पकड़ने के लिए, मनोकामना पूर्ण करने के लिए जो आपने पूजा का स्वरूप बना रखा है, वह बहुत ही घटिया रूप है। पूजा ऐसी नहीं हो सकती, ध्यान ऐसा नहीं हो सकता, जैसा कि आप लोगों ने समझ रखा है कि अगरबत्तियाँ चढ़ाएँगे, चावल चढ़ाएँगे, शक्कर की गोली चढ़ाएँगे और मनोकामना पूर्ण हो जाएगी। इतना घटिया अध्यात्म नहीं हो सकता है जैसा कि आप लोगों ने सोच रखा है। आपकी पूजा घटिया, आपके देवता घटिया सब घटिया हैं। इसको समझना चाहिए।
हर रोज चिट्ठियाँ आती हैं, हर शाखाओं में मारकाट- मारकाट मुझे मैनेजर बनाइये, इस मैनेजर को निकालिये। हमने शाखा तथा शक्तिपीठें इसलिए नहीं बनाई थीं, देवता को इसलिए नहीं बैठाया था कि लोगों का अहंकार बढ़े। हमने ट्रस्टी इसलिए नहीं बनाया था कि इसे बरबाद करो। हमने स्वयं गलती की इन लोगों को मालिक, ट्रस्टी बनाकर, इनके अहंकार एवं स्वार्थपरता को आगे बढ़ाकर। अब पंचायत समितियों में जिस प्रकार झगड़ा होते हैं, हमारे शक्तिपीठों में भी हर जगह चाण्डालपन है, हमें क्या दिखता नहीं? क्या हमने शक्तिपीठें इसीलिए बनाई थीं, पूजा इसीलिए प्रारम्भ की थी, इसीलिए संगठन बनाया था कि आप लोग अहंकारी बन जाइये और आपस में ही एक- दूसरे की टाँग- खिचाई कीजिये, आप ऐसी पूजा को बंद कीजिए, पूजा मत कीजिये, पर यह घटियापन बन्द कीजिये। आप नास्तिक हो जाइये, भले ही पर आप इसी तरह के संगठन बनाना बन्द कर दीजिए। आप शक्तिपीठों को बनाना बन्द कर दीजिये।
यहाँ हम एक बात अवश्य कहेंगे कि आप आध्यात्मिकता के मौलिक सिद्धान्तों को समझिये। पूजा को पीछे हटाइए, आध्यात्मिकता के मौलिक सिद्धान्तों को समझिये। आप यह मत सोचिये कि गुरुजी ने चौबीस- चौबीस लाख का जप किया था। नहीं, हम और चौबीस लाख के जप करने वालों का नाम बता सकते हैं जो आज बिलकुल खाली एवं छूँछ हैं। जप करने वाले कुछ नहीं कर सकते हैं, हम ब्राह्मण की शक्ति, सन्त की शक्ति जगाना चाहते हैं। आप राम का नाम लें या न लें। अब तो मैं यहाँ तक कहता हूँ कि अब माला जप करें या न करें, एक माला जप करें या ८१ माला जप करें, परन्तु मुख्य बात यह है कि आप अपने ब्राह्मणत्व को जगाइए। प्याऊ को कौन चलाएगा। हनुमान चालीसा पाठ करने वालों ने कितनों का भला किया है? ब्राह्मणों ने भला किया है, सन्तों ने भला किया है? ब्राह्मणों की वाणी में, सन्तों की तपस्या में बल होता है। आपको इसी प्रकार कोई मिल जाएगा तो आप नास्तिक हो जाएँगे। आप पूजा का महत्त्व बढ़ाइये। अध्यात्म इन लोगों के द्वारा ही टिका हुआ है।आपके पास बैंक में धन जमा नहीं है, तो चैक कैसे काट सकते हैं। आपकी बैंक में पूँजी होनी चाहिए। पहले जमा तो कीजिए कुछ। केवल पूजा से ही काम चलने वाला नहीं है। हमारी सबसे बड़ी पूजा समाज की सेवा है। हमने लाखों आदमियों की ही नहीं, वरन् सारे विश्व की सेवा की है। हमने अपनी अक्ल, धन, अनुष्ठान, वर्चस् सभी इसी में लगाया है। हमने खेती करने वालों, मकान बनाने वालों को देखा है कि सेवा के नाम पर नगण्य हैं।
आप अकेले चलें। हमारे गुरु अकेले चले हैं। हम अकेले चले हैं। आप भी अकेले चलिये। संगठन के फेर में मत पड़िये। आपको बोलना नहीं आता है। आप कहते हैं कि व्याख्यान सिखा दीजिये। आप हैं कौन? हमें बतलाइये। भाषण से क्या होगा? आप हमारी बात मानिये। आपको बोलना नहीं आता है तो हम क्या करें? आप पोस्टमैन का काम करिये। हम बोलना सिखा देंगे। लड़कियों को सिखा दिया था। महाराज जी हमें भी बोलना सिखा दीजिए। आप त्याग करके तो हमें बतलाइये। जवाहरलाल नेहरू एवं शास्त्री जी को गाँधी जी ने खादी बेचने को कहा था। वे घर- घर जाकर खादी बेचते थे। घर- घर धकेल गाड़ी लेकर जाते थे तथा लोगों से कहते थे कि आप खादी पहनिये तो क्या वे खादी बेचते थे? हाँ बेटे, खादी बेचते थे।
आप अपने आप को निचोड़िये। ये हमारा बेटा, यह हमारी पत्नी। देखना यही तुझे ऐसा मारेंगे कि तुझे याद रहेगा। हमारा बेटा, हमारी पत्नी- यही रटता रहेगा कि कुछ समाज के लिए, भगवान् के लिए भी करेगा। नहीं गुरुजी हम तो हनुमान चालीस पढ़ते हैं, गायत्री चालीसा पढ़ते हैं। अरे स्वार्थी कहीं का, तेरी तो अक्ल खराब हो गयी है। अहंकार बढ़ गया है। हमने आपमें से हर किसी को कहा है कि आप ब्राह्मण बनिये। नहीं गुरुजी, हमने तो चन्दा इकट्ठा कर लिया, तो हम क्या करेंगे इसका? आप आदमी तो बनें पहले। आप आदमी बनना सीखें। आप घटियापन छोड़िये, सुबह से शाम तक काम कीजिये। पात्रता बढ़ाइये।
ऋषियों ने अपने रक्त को एक घड़े में भरा था, जिससे सीताजी उत्पन्न हुई थीं। आपको भी संस्कृति की सीता की खोज करनी है। समाज के लिए, संस्कृति के लिए आप भी अपना समय, अपना पैसा निकालिये, अपना रक्त निकालिये। आप अपने आप को निचोड़िये तो सही। निचोड़ने के नाम पर अँगूठा दिखाते हैं, त्याग के नाम पर जीभ निकालते हैं। बकवास के नाम पर, घूमने के नाम पर बिना मतलब के आडम्बर बना रखे हैं। अपने आपको निचोड़िये। आप अपने को यदि निचोड़ेंगे तो फिर देख लेना आप क्या बन जाते हैं? हमने अपने आपको निचोड़ा तो देखिये क्या बन गये?
अगर आपने अपने आपको निचोड़ दिया तो हमारा एक काम जरूर करना और वह यह कि हमारे विचार- हमारी आग को लोगों तक पहुँचाना। हम लेखक नहीं हैं। हमारे लिखे शब्दों में से आग निकलती है। विचारों की आग, भावनाओं की- क्रान्ति की आग निकलती है। आज जनता भी प्यासी, हम भी प्यासे हैं। हमारी विचारधारा ही आग है। हम आग उगलते हैं। हम लेखक नहीं हैं। हमारे लेखनी में से निकलती है आग, मस्तिष्क में से निकलती है आग, हमारी आँखों में से निकलती है आग। हमारे विचारणा की आग, भावनाओं की आग, संवेदनाओं की आग को आप घर- घर पहुँचाइये। आप में से हर आदमी को लालबहादुर शास्त्री जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल होना चाहिए। गाँधी जी के आदेश पर वे खादी धकेल पर रखकर बेचने गये थे।
ईसाई मिशन की महिलाएँ भी घर- घर जाती हैं और यह कहती हैं कि हमारी एक पैसा की किताब जरूर खरीदिये। अगर अच्छी न लगे तो कल मैं वापस ले लूँगी। अरे यह किताब बेचना नहीं है बाबा, मेरे विचार को घर- घर पहुँचाना है। आप लोगों के जिम्मे हमारा एक सूत्रीय कार्यक्रम है। आप जाइये, अपने को निचोड़िये। आपका घर का खर्च यदि १००० रुपये है तो निचोड़िये इसको और उसमें से बचत को ज्ञानयज्ञ के लिए खर्च कीजिये। हमारी आग को बिखेर दीजिये, वातावरण को गरम कर दीजिये, उससे अज्ञानता को जला दीजिये। आप लोग जाइये और अपने आपको निचोड़िये। ज्ञानघट का पैसा खर्च कीजिये तो क्या हम अपनी बीबी को बेच दें? बच्चे को बेच दें? चुप कंजूस कहीं के ऊपर से कहते हैं हम गरीब हैं। आप गरीब नहीं कंजूस हैं।
हर आदमी के ऊपर हमारा आक्रोश है। हमें आग लग रही है और आप निचोड़ते नहीं हैं। इनसान का ईमान, व्यक्तित्व समाप्त हो रहा है। आज शक्तिपीठें, प्रज्ञापीठें जितनी बढ़ती जा रही हैं, उतना ही आदमी का अहंकार बढ़ता जा रहा है। आपस में लड़ाई- झगड़े बढ़ते जा रहे हैं। सब हविश के मालिक बनते जा रहे हैं। हम चाहते हैं कि अब पन्द्रह- बीस हजार में फूस के शक्तिपीठ, प्रज्ञापीठ बन जाते तो कम से कम लोगों का राग- द्वेष अहंकार तो नहीं बढ़ता। आज आप लोगों से एक ही निवेदन कि आप हमारी आग स्वयं बिखेरिए, नौकरी से नहीं, सेवा से। आप जाइये एवं हमारा साहित्य पढ़िए तथा लोगों को पढ़ाइए और हम क्या कहना चाहते थे। हम दो ही बात आपसे कहना चाहते हैं- पहली हमारी आग को घर- घर पहुँचाइये, दूसरी ब्राह्मण एवं सन्त को जिन्दा कीजिये ताकि हमारा प्याऊ एवं अस्पताल चल सके, ताकि लोगों को- अपने बच्चों को खिला सकें तथा उन्हें जिन्दा रख सकें तथा मरी हुई संस्कृति को जिन्दा कर सकें। आप ११ माला जप करते हैं- आपको बहुत- बहुत धन्यवाद। यह जादूगरी नहीं है। किसी माला में कोई जादू नहीं है। मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि मनोकामना की मालाएँ, जादूगरी की माला में आग लगा दीजिये, आप मनोकामना की माला, जादूगरी की माला, आज्ञाचक्र जाग्रत करने की माला को पानी में बहा दीजिये।
तो क्या करें महाराज जी? आप अपने ब्राह्मणत्व को जगा दीजिये, साधु को जगा दीजिये ताकि आप अपनी नाव स्वयं पार कर सकें, अन्यथा हम यही कहेंगे कि शायद हमारा तप कम है नहीं तो कहीं न कहीं हमें ब्राह्मण, साधु मिल ही जाते। आपके पास धन नहीं तो अपनी भावना, विचार, श्रद्धा तो समाज में बिखेर ही सकते हैं। वही बिखेरिए, सन्त बनकर अपना परिचय दीजिये। सन्त दानी होता है, सन्त उदार होता है।
हमारा मन था कि अपने बचे हुए शेष दिनों में ब्राह्मण तथा सन्त का काम अधिक से अधिक कर सकूँ। लोगों की मध्यमा वाणी से, परावाणी से अधिक से अधिक सेवा कर सकूँ। यह हमारा मन है, मैं आप को एक ही बात कह सकता हूँ कि आप अपने को निचोड़िये- निचोड़िये बचत कीजिये। आपके श्रम, समय, धन और विचारणा- भावना की समाज को जरूरत है, संस्कृति को जरूरत है। इसे विलासिता में खर्च मत कीजिये। अगर किसी में ब्राह्मणत्व एवं सन्त जिन्दा है तो उसे निचोड़िये। उसे आप बिखेर दीजिये। हमने प्रार्थना की है कि यदि आप लोगों में कहीं भी किसी भी कोने में यदि ब्राह्मणत्व या सन्त जिन्दा हो तो वह जग जाये। उपासना- साधना के नाम पर आप जादूगरी बन्द कीजिये। देवता को गुमराह करने वाली, मनोकामना सिद्ध करने वाली पूजा बन्द कीजिए।
साधना किसे कहते हैं आपको मालूम नहीं? आप हनुमान जी की पूजा करते हैं, सन्तोषी माता की पूजा करते हैं। यह मन्त्र है, न यन्त्र है, न पूजा है। आप हनुमान जी या सन्तोषी माता को साधते हैं। अरे पहले अपने आपको तो साधिये न, पर यह जो जादूगरी आप करते हैं, वह बदमाशी के सिवा कुछ नहीं है। अगर आप पूजा- उपासना करते हैं, तो ठीक, यह आपकी मर्जी है, पर यह न तो कोई मन्त्र जप है, न भजन है, यह मात्र धूर्तगीरी है। पूजा के नाम पर यदि आप ऐसी बदमाशी करते हैं तो आपकी मर्जी, पर इससे कुछ होने वाला नहीं है। पहले आप समर्पण करना सीखिये, यह मोटी- मोटी बातें थीं जो हमने किसी तरह से आपसे कह दीं।
हमारे गुरुजी की यही मर्जी है कि हम आपमें से- हर आदमी में से ब्राह्मण तथा सन्त को जिन्दा करें और हम यही चाहते हैं कि अगर हमारे अन्दर बल हो तथा आपके अन्दर ब्राह्मणत्व तथा साधु हो तो वह जिन्दा हो जाए। इस विदाई के अवसर पर यही कहकर हम आप लोगों को विदा कर रहे हैं। मित्रों, गुरुजी ने हमेशा दिया है, आगे भी देते रहेंगे, शर्त एक ही है कि आप अपनी ब्राह्मण तथा सन्त की प्रवृत्ति जिन्दा करें। आप जाइये एवं अपने- अपने कामों में जुट जाइये।
पहले ब्राह्मण बनने का प्रयोग किया कि ब्राह्मणत्व के क्या- क्या चमत्कार हो सकते हैं? मैंने उसे अपने जीवन में धारण करके देखा है और पाया है कि इसमें सफलताएँ भी हैं तथा चमत्कार भी हैं। ब्राह्मण जीवन किसे कहते हैं? किफायतसारी जीवन को कहते हैं। ब्राह्मण उसे कहते हैं जो अपना खर्च कम से कम में चला सकता हो तथा अधिक से अधिक अपना धन, अक्ल, मेहनत, समाज में लगा सकता है, जिससे उसके जीवन का लक्ष्य, समाज का लक्ष्य पूरा होता हो। जिस आदमी के पास कुछ बचता ही नहीं है, वह समाज को क्या देगा?
हमें यह कहना होगा कि अध्यात्मवादी बनने के लिए किफायतसारी बनना होगा, ब्राह्मण बनना होगा। हमने इसका प्रयोग किया है तथा लाभ पाया है। हमने अपना खाने- पीने तथा रहने का ढंग ब्राह्मण का रखा है। अपने जमीन के बाबत जो कुछ हमें मिला था, उसे गायत्री तपोभूमि के लिए दान कर दिया। मैंने अपनी पत्नी से पेशवा ब्राह्मणों की उपमा देते हुए कहा कि आपको भी यह जीवन जीना चाहिए। पेशवा के राम टांक ने अपने गुरु की पत्नी के आदेश पर सब कुछ दे दिया था। इन्होंने भी अपने सारे गहने गायत्री तपोभूमि के लिए लगा दिये। पैसों की दृष्टि से हम खाली हाथ हो गये, परन्तु शक्ति बहुत मिल गई।
मित्रो! धन की और बल की शक्ति नहीं होती है। वह ब्राह्मणत्व की शक्ति होती है। यह मैं आपको यकीन दिला सकता हूँ। मैं ब्राह्मण था और अब भी ब्राह्मण हूँ। जो कुछ भी आप देख रहे हैं यह ब्राह्मणत्व का चमत्कार है। इस दुनिया में मित्रों, एक ही बिरादरी रह गई है जिसका नाम बनिया है। बाकी सारी बिरादरी मर गई हैं- एक ही जिन्दा है वह है बनिया। सारे के सारे क्षेत्र में बनिया ही बनिया छाया है। ब्राह्मण कहीं नहीं। परन्तु हम ब्राह्मण हैं, इस पर हमें गर्व है तथा सन्तोष है। अगर कोई अपने को ब्राह्मण बना सकता हो, अपने खर्च और लागत को कम कर सकता हो तथा नीयत में ब्राह्मणत्व है तो हमें प्रसन्नता होगी परन्तु आपकी नीयत में तो चाण्डाल बसा हुआ है। आदमी को गरीब भी होना पड़ेगा, यह हमने ब्राह्मण का प्रयोग करके देखा है।
दूसरा वाला प्रयोग हमने किया- साधु का। जिसका नाम तपस्वी है। हमने अपने सारे छिद्रों को बन्द कर दिया। यह दूसरा कदम है। काँटे पर चलने वाले का नाम तपस्वी नहीं है। ठण्डे पानी से नहाने वाले का नाम तपस्वी नहीं है। उस आदमी का नाम साधु और तपस्वी है, जिसने अपने आप का तपाया, उसका नाम तपस्वी है, उसका नाम साधु है। हमने अपने आप को तपाया है। अक्ल की दृष्टि से आदमी से ज्यादा बेईमान, बहुरूपिया कोई नहीं है। हमने अपनी अक्ल को ठीक कर लिया है। आप भी मारे डण्डों से अपनी अक्ल को ठीक करें। हमने अपनी हर चीज को तपाया, भीतर वाले हिस्से को भी तपाया। हमने अपने मन को, बुद्धि को तपाया है, पर आपकी बुद्धि तो ऐसी चाण्डाल है, ऐसी पिशाचिनी है कि क्या कहें? किसी के जिन्दगी की समस्या को हल करने का सवाल था तो आपकी अक्ल, आपकी बुद्धि ने ऐसी मक्कारी की कि क्या कहना? पैसे से लेकर समय तक हमने केवल समाज के लिए खर्च किया। यह कसा हुआ जीवन हमारा तपस्वी का जीवन है। मन्त्रों में शक्ति है, गलत बात नहीं है। देवताओं में शक्ति है, यह भी गलत नहीं है, किन्तु, अगर कोई आदमी तपस्वी है तो वह हर काम को कर सकता है। अपने अनुष्ठान काल में हमने किसी से बात नहीं की, कोई भी अन्य चीज नहीं खायी। जौ की रोटी एवं छाछ, बस यही दो चीजें हम खाते रहे।
जैसे हमने अनुष्ठान खत्म किया कि एक व्यक्ति आये जो नकली रेशम बनाते थे, उन्होंने कहा कि हम आपको गुरु बनायेंगे। उन्होंने सवा रुपया हमारे हाथ पर रखा। इस पर हमने सोचा कि तब तो हम ब्राह्मण नहीं हो सकते हैं, हम मजदूर हैं। उन्होंने कहा कि ब्राह्मण को तो लेना चाहिए। यह आज से लगभग ३५- ४० साल पहले सन् १९४५- ४६ की बात है, उस सज्जन को लेकर हम बाजार गये। उस जमाने में ठण्डी में बिछाने के लिए पुराने कपड़ों के तथा रूई की हाथ से बनी दरियाँ दो रुपये में मिलती थीं। उससे वहीं चीजें खरीदकर जरूरतमन्दों में बाँट दी, पर अपने लिए हमने उसे स्वीकार नहीं किया। हमारी अक्ल एवं जो भी चीज हमारे पास थी, उसे हम हमेशा बाँटते चले गये। उस आदमी ने कुछ दिनों के बाद हमारे पास दो सौ रुपये भेजे। हमने उसे गायत्री तपोभूमि के मन्दिर बनाने में लगा दिया। यह वह पहला आदमी था जिसने हमें पैसा भेजा था। यह घटनाएँ सुना रहा हूँ मैं आपको अपने तपस्वी जीवन की। इसी तरह हमारे सारे कार्य होते चले गये। कोई काम हमारा रुका नहीं।
एक प्रयोग वाणी के संयम का हम सुनाते हैं आपको। हम चाहते थे कि हम मौन धारण कर लें तथा बैखरी वाणी का प्रयोग कम करें। हमने जितना व्याख्यान दिया है, दुनिया में शायद ही किसी व्यक्ति ने व्याख्यान दिये होंगे। हमारे व्याख्यानों में लोगों के कायाकल्प हो गये जैसे रामकृष्ण परमहंस के व्याख्यान से हुआ था। लेकिन जो लोग रीछ का तमाशा, रीछ का व्याख्यान सुनने आये, उनको कोई फायदा नहीं हुआ। जिन लोगों को हम व्याख्यान देते हैं, उसे सूँघकर जब देखते हैं, चखकर के देखते हैं कि आदमी कैसा है? घटिया है या वजनदार? तो वे हमें छोटे- छोटे आदमी घटिया आदमी दिखाई पड़ते हैं। हमें वजनदार आदमी दिखाई नहीं पड़ते हैं। वजनदार आदमी माने सिद्धान्तों के आदमी। सिद्धान्तों को सुनने वाले, मानने वाले, उस पर चलने वाले, सिद्धान्तों को जीवन में उतारने वाले कोई नहीं दिखाई पड़ते हैं। लोगों पर गुस्सा न करके अपने पर गुस्सा न करूँ तो क्या करूँ? आपको मालूम है, जब आदमी मरने को होता है तो बहुत- से आदमी मिलने आते हैं। बहुत- सी शक्ति खर्च होती है। कोई कहता है ताऊ जी अच्छे हैं, कोई कहता है कि हमें आशीर्वाद दे दीजिये। इससे बातें करने में बहुत शक्ति खर्च होती है। इसमें भीतरी शक्ति बेहद खर्च होती है इसलिए हमने विचार किया है हम मिलना बन्द कर देंगे। हम अपनी वैखरी वाणी को दूसरे काम में खर्च करेंगे। वैखरी वाणी कम हो जाएगी, तब पश्यन्ति वाणी, मध्यमा वाणी का उपयोग करेंगे ताकि हम ज्यादा काम कर सकें? बिना बातचीत किये ही ज्यादा काम कर सकते हैं तथा वातावरण को गर्म कर सकते हैं। बेटे! अरविन्द घोष ने, महर्षि रमण ने इस प्रकार का प्रयोग किया था और सारा हिन्दुस्तान गर्म हो गया था।
बैखरी वाणी के माध्यम से अनावश्यक शक्तियाँ खर्च होती चली जाती हैं। इसलिए मैंने विचार किया कि अब इसका खर्च कम करेंगे। भगवान की शक्ति बहुत है, अबकी बार मैंने प्रयोग किया। अब बोलने की बात कम करता जाऊँगा। इस काम में समय को कम खर्च करता जाऊँगा और लोगों से बातें कम करता जाऊँगा। कारण, अधिकांश लोग अपनी राम कहानी लेकर आते हैं। अनावश्यक भीड़ आ जाती है और कहती है कि हमारा मन नहीं लगता, ध्यान नहीं लगता। बेकार की बातें लोग करते हैं, यह नहीं कि मतलब की बातें करें। बेकार की बातें करने में अब हम समय खर्च नहीं करेंगे। वाणी से बात नहीं होगी तो क्या आप निष्ठुर हो जाएँगे। नहीं बेटे, हमने ब्राह्मण के बाद सन्त के रूप में कदम बढ़ाया है। सन्त उसे कहते हैं, जिसका मन करुणा से लबालब भरा हुआ होता है। जो दाढ़ी बढ़ा लेता है, रँगा हुआ कपड़ा पहन लेता है, ध्यान कर लेता है, उसे सन्त नहीं कहते हैं। करुणा से भरा हुआ व्यक्ति ही सन्त कहलाता है। जब तक हम हैं तब तक हम समाज के लिए काम करते रहेंगे।
एक हमारा प्याऊ है जो कभी सूखेगा नहीं। जो पसीने से लथपथ हो गये हैं, थक गये हैं, हमारे प्याऊ पानी, हमारी तपस्या में से उनको देते रहेंगे, उन्हें हरा- भरा बनाये रखेंगे। आप सब लोग हमारे प्याऊ से पानी पी सकते हैं। ब्राह्मण, सन्त का जीवन चलता रहेगा। हम प्याऊ बन्द नहीं कर सकते हैं। हमने एक चिकित्सालय- डिस्पेन्सरी खोला है। जो भी दुःखी हमारे पास आये, हमने उसे छाती से लगाया। उसकी बीमारी का, दुःख का बराबर ख्याल रखा है। सन्त का काम भाव- संवेदना का है। हमें अपने बच्चे को खिलाना है, बच्चों की देख−भाल करनी है, बच्चों को गुब्बारा बाँटना है, बच्चों के चेहरे पर मुसकराहट देखनी है। ये चीजें देखकर हमको खुशी होती है। हम बच्चों के स्कूल चलाते हैं। इसका मतलब क्या है? हमारा अस्पताल चलता है, डिस्पेन्सरी चलती है। प्याऊ चलाने से क्या मतलब है? यह आध्यात्मिक बात है। यह सन्त की बातें हैं। तो क्या आप सन्त की दुकान बन्द कर देंगे? नहीं, बन्द नहीं करेंगे, जब तक हम जिन्दा हैं। आगे भी चलता रहेगा।
आप लोगों को हमने कई बार कहा है, हजार बार कहा है कि आपकी जो समस्याएँ हैं, उसे आप लिखकर देवें। आप आधा घण्टे भी भगवान का नाम नहीं ले सकते हैं। आप कहते हैं कि हम आपके रास्ते पर चल सकते हैं। बेकार की बातें मत कीजिये। तराजू हमारे पास है। हम जानते हैं, हमारा भगवान जानता है कि आप क्या हैं? इसलिए हमने इस बार यह कहना शुरू कर दिया है कि आप हमारा समय नष्ट करने के बजाय लिखकर दे जाइये। आप यहाँ न ध्यान करने आते हैं, न पूजा करने आते हैं, न मतलब की बात करने आते हैं, केवल घूमने आते हैं, किराया खर्च करते हैं। आप हमें बेअकल समझते हैं। हम आपकी नस- नस जानते हैं। इसलिए हमने बैखरी वाणी से बोलना बन्द कर दिया है। हमारे गुरु हम से बैखरी वाणी से नहीं बोलते, पश्यन्ति वाणी से बोलते हैं, परावाणी से बोलते हैं। आपकी बातों को हमने सुन लिया है और कहा है कि बेकार की रामकहानी कहकर हमारा समय क्यों खराब करते हैं? हमें राम कहानी से क्या मतलब है, आप मतलब की बात कहिये।
साथियों! हमारे मौन धारण करने का एक और कारण है। आप यह मत सोचिये कि मैं अपना प्याऊ बन्द करने जा रहा हूँ। हमें बच्चों को खिलाने का शौक है। हमें बच्चों को प्यार करना, उन्हें गुब्बारा देना बहुत प्यारा लगता है। स्वयं घोड़ा बन जाना तथा बच्चों को पीठ पर बैठा लेना तथा घुमाना बहुत प्यारा लगता है।
हम जो भी सहायता आपकी कर सकते हैं, वह अवश्य करेंगे, परन्तु आपको भी स्वयं में संवेदना पैदा करनी होगी। हमने कहा है कि आप उपासना करिये, जप करिये ताकि आपको उस समय परा एवं पश्यन्ति वाणी से दिशा दे सकूँ, अन्यथा मैं अपने मौन की शक्ति प्रेषित करूँगा और आपको नुकसान होगा।
मेरे गुरु के व्याख्यान देने का कार्य बन्द हो गया तो क्या उनकी शक्ति कम हो गई? हम नहीं बोल रहे हैं, हमारा गुरु बोल रहा है। आप भी उनकी शक्ति से बोलेंगे। प्रज्ञापुराण जब आप पढ़ेंगे और लोगों को सुनाएँगे तब वह आपकी वाणी में नहीं, बल्कि मेरे गुरु की वाणी में होगा, जिसमें अधिक ताकत होगी। आपकी वाणी में कोई ताकत नहीं होगी, आप ऐसे ही बकवास करते रहेंगे। हम मौन हो जाएँगे तो हमारी शक्ति बढ़ जाएगी। हमारी परा एवं पश्यन्ति वाणी की ताकत बढ़ जाएगी। आप मेरी उस वाणी को सुनेंगे तो आपके आँखों में पानी आएगा, भाव- संवेदना जगेगी। इससे हम आपकी सहायता ज्यादा कर सकेंगे।
आप क्या सोचते हैं कि आप लोगों के ऊपर हमारा कोई असर नहीं पड़ता है। यह हमारा मौन ब्राह्मणत्व है। यह तपस्वी की वाणी है। हमने सेवा करने में सन्त की प्रवृत्ति को जिन्दा रखा है कि हम समाज की सेवा करेंगे। आज व्यक्ति की सेवा ज्यादा है, समाज की सेवा गौण हो गयी है।
हमारे मरने के बाद आप देखेंगे कि गुरुजी के मरने के बाद उनका समय, धन, श्रम किस काम में खर्च हुआ है। हमारी शक्ति एवं सामर्थ्य बच्चों को खिलाने में, अस्पताल खोलकर मरीजों की सेवा में खर्च हुई हैं। हमने अभी तक समाज को चालीस प्रतिशत दिया है और लोगों को, दुखियारे को पाँच प्रतिशत दिया है। अब हमारा मन है कि इसका हिस्सा बढ़ाया जा सके। जब हम मौन धारण कर लेंगे तो हमारा ब्राह्मण और जाग जाएगा, उस समय हम व्यक्तियों की भी ज्यादा सेवा कर सकेंगे। ठोस सेवा कर सकेंगे। अभी तक हमारी सहानुभूति का अंश ज्यादा रहा है, सेवा का हिस्सा कम रहा है। हमने सहानुभूति दी है तथा पायी है। अगर हमने किसी की एक किलोग्राम सेवा की है तो उसमें पाँच सौ ग्राम सहानुभूति भी है। उस समय हम साधन सम्पन्न एवं समर्थ थे। पर अगले दिनों जब जीवात्मा को हम और ऊपर उठा लेंगे तब हम अधिक सेवा कर सकेंगे। आपके लिए हमने कुछ किया है या नहीं? इसका सबूत देखना हो तो दृष्टि पसारकर देखिये कि कुछ हुआ है, तो आप पायेंगे कि इसी कारण से यह पचास लाख आदमी हमसे जुड़े हैं, अन्यथा इतने आदमी कहाँ से आते? यह हम कहाँ कहते हैं कि कुछ नहीं हुआ। ५० लाख आदमी हमारे एक इशारे पर खड़े हो सकते हैं। इतने शक्तिपीठ कहाँ से बन गये? ५० लाख मुट्ठियाँ ५० लाख लोगों का एक घण्टे का समयदान कुछ मायने रखता है।
हम अपने ब्राह्मण को फिर जिन्दा करेंगे। सन्त दानी होता है। आदमी को दानी बनने के लिए सन्त बनना होगा। हम ब्राह्मण और सन्त को पुनः जिन्दा करेंगे। ब्राह्मण जमा करता है, सन्त उसे खर्च कर देता है। हमने निश्चय किया है, विचार किया है कि जिन्दगी के इन आखिरी क्षणों में अपने ब्राह्मण एवं सन्त को साधकर सबके लिए एक मिसाल स्थापित कर दूँ।
क्या हम जिन्दगी भर, अपने बीबी- बच्चों को ही खिलाते रहेंगे? जिस पर मनुष्य का भविष्य टिका है, क्या उसके लिए कुछ नहीं कर सकेंगे? अपने लिये अधिक, समाज के लिए इतना कम। यह कैसे होगा? मेरे गुरु ने दुखियारों की सेवा, समाज की सेवा कम की है, परन्तु उसने सारे विश्व को हिला दिया है। दूसरों के दुःखों को देखकर यह सोचते हैं कि इसके लिए हम क्या करें? उस समय मैं रो पड़ता हूँ तथा उसे सहायता किये बिना मेरा मन नहीं मानता है। यह क्रम चलेगा ही। परन्तु एक काम और है, इनसान को ऊँचा उठाने का। हम सोचते हैं कि और यदि यह काम भी किया होता तो मजा आ जाता। आप जितने लोग बैठे हैं, अगर आपको हम फुटबॉल की तरह ऊँचे उछाल दिये होते तो मजा आ जाता। आप लोगों को उछाल दें तो आप में से हर एक आदमी हनुमान, ऋषि विवेकानन्द दिखाई पड़ेगा। आप लोगों में से एक भी आदमी ऐसा नहीं है, जो रैदास की तुलना में गरीब हो। परन्तु आप इतने भारी हैं कि आपके सेल्स काम नहीं कर रहे हैं, आपके हाथ उठ नहीं पा रहे हैं। मानसिक दृष्टि से एक- एक बेड़ियाँ इतनी भारी हैं जैसे हजार मन की हों। ऐसे में आपको कैसे उठाऊँ? आपकी बेड़ियों को मैं काटूँगा क्योंकि हमारे बाद इन बच्चों को खिलाने वाला, नर्सिंगहोम चलाने वाला कहाँ से लायेंगे? यह अस्पताल बन्द हो जाने पर आपके अनुभव के बिना इनका ऑपरेशन कौन करेगा? इनसान को उठाया नहीं जा सका तो बात कैसे बनेगी?
इसी काम के लिए हम समय लगाना चाहते हैं। सवाल हमारे समय का है, आप तो केवल पूजा के पीछे पड़े हैं। देवी- देवता के पीछे लगे हैं कि मनोकामना पूरी हो जाए। किसी दिन मेरे दिमाग में गुस्सा आ गया तो पूजा को ही बन्द कर दूँगा और कहूँगा कि इसी के पीछे पड़ा है। पूजा के चक्कर में पड़ा है। पूजा से आज्ञाचक्र जगेगा। सुन लेना एक दिन मैं पूजा को गालियाँ दूँगा, यदि यही रटता रहा कि सब कुछ पूजा से मिल जाएगा और यही समझता रहा कि माला घुमाने को पूजा कहते हैं। देवी- देवता को पकड़ने का नाम पूजा है। अज्ञानी लोग, भ्रमित लोग मनुष्य को दबाने तथा चक्कर में डालने के नाम को पूजा कहते हैं। देवी- देवताओं को पकड़ने के लिए, मनोकामना पूर्ण करने के लिए जो आपने पूजा का स्वरूप बना रखा है, वह बहुत ही घटिया रूप है। पूजा ऐसी नहीं हो सकती, ध्यान ऐसा नहीं हो सकता, जैसा कि आप लोगों ने समझ रखा है कि अगरबत्तियाँ चढ़ाएँगे, चावल चढ़ाएँगे, शक्कर की गोली चढ़ाएँगे और मनोकामना पूर्ण हो जाएगी। इतना घटिया अध्यात्म नहीं हो सकता है जैसा कि आप लोगों ने सोच रखा है। आपकी पूजा घटिया, आपके देवता घटिया सब घटिया हैं। इसको समझना चाहिए।
हर रोज चिट्ठियाँ आती हैं, हर शाखाओं में मारकाट- मारकाट मुझे मैनेजर बनाइये, इस मैनेजर को निकालिये। हमने शाखा तथा शक्तिपीठें इसलिए नहीं बनाई थीं, देवता को इसलिए नहीं बैठाया था कि लोगों का अहंकार बढ़े। हमने ट्रस्टी इसलिए नहीं बनाया था कि इसे बरबाद करो। हमने स्वयं गलती की इन लोगों को मालिक, ट्रस्टी बनाकर, इनके अहंकार एवं स्वार्थपरता को आगे बढ़ाकर। अब पंचायत समितियों में जिस प्रकार झगड़ा होते हैं, हमारे शक्तिपीठों में भी हर जगह चाण्डालपन है, हमें क्या दिखता नहीं? क्या हमने शक्तिपीठें इसीलिए बनाई थीं, पूजा इसीलिए प्रारम्भ की थी, इसीलिए संगठन बनाया था कि आप लोग अहंकारी बन जाइये और आपस में ही एक- दूसरे की टाँग- खिचाई कीजिये, आप ऐसी पूजा को बंद कीजिए, पूजा मत कीजिये, पर यह घटियापन बन्द कीजिये। आप नास्तिक हो जाइये, भले ही पर आप इसी तरह के संगठन बनाना बन्द कर दीजिए। आप शक्तिपीठों को बनाना बन्द कर दीजिये।
यहाँ हम एक बात अवश्य कहेंगे कि आप आध्यात्मिकता के मौलिक सिद्धान्तों को समझिये। पूजा को पीछे हटाइए, आध्यात्मिकता के मौलिक सिद्धान्तों को समझिये। आप यह मत सोचिये कि गुरुजी ने चौबीस- चौबीस लाख का जप किया था। नहीं, हम और चौबीस लाख के जप करने वालों का नाम बता सकते हैं जो आज बिलकुल खाली एवं छूँछ हैं। जप करने वाले कुछ नहीं कर सकते हैं, हम ब्राह्मण की शक्ति, सन्त की शक्ति जगाना चाहते हैं। आप राम का नाम लें या न लें। अब तो मैं यहाँ तक कहता हूँ कि अब माला जप करें या न करें, एक माला जप करें या ८१ माला जप करें, परन्तु मुख्य बात यह है कि आप अपने ब्राह्मणत्व को जगाइए। प्याऊ को कौन चलाएगा। हनुमान चालीसा पाठ करने वालों ने कितनों का भला किया है? ब्राह्मणों ने भला किया है, सन्तों ने भला किया है? ब्राह्मणों की वाणी में, सन्तों की तपस्या में बल होता है। आपको इसी प्रकार कोई मिल जाएगा तो आप नास्तिक हो जाएँगे। आप पूजा का महत्त्व बढ़ाइये। अध्यात्म इन लोगों के द्वारा ही टिका हुआ है।आपके पास बैंक में धन जमा नहीं है, तो चैक कैसे काट सकते हैं। आपकी बैंक में पूँजी होनी चाहिए। पहले जमा तो कीजिए कुछ। केवल पूजा से ही काम चलने वाला नहीं है। हमारी सबसे बड़ी पूजा समाज की सेवा है। हमने लाखों आदमियों की ही नहीं, वरन् सारे विश्व की सेवा की है। हमने अपनी अक्ल, धन, अनुष्ठान, वर्चस् सभी इसी में लगाया है। हमने खेती करने वालों, मकान बनाने वालों को देखा है कि सेवा के नाम पर नगण्य हैं।
आप अकेले चलें। हमारे गुरु अकेले चले हैं। हम अकेले चले हैं। आप भी अकेले चलिये। संगठन के फेर में मत पड़िये। आपको बोलना नहीं आता है। आप कहते हैं कि व्याख्यान सिखा दीजिये। आप हैं कौन? हमें बतलाइये। भाषण से क्या होगा? आप हमारी बात मानिये। आपको बोलना नहीं आता है तो हम क्या करें? आप पोस्टमैन का काम करिये। हम बोलना सिखा देंगे। लड़कियों को सिखा दिया था। महाराज जी हमें भी बोलना सिखा दीजिए। आप त्याग करके तो हमें बतलाइये। जवाहरलाल नेहरू एवं शास्त्री जी को गाँधी जी ने खादी बेचने को कहा था। वे घर- घर जाकर खादी बेचते थे। घर- घर धकेल गाड़ी लेकर जाते थे तथा लोगों से कहते थे कि आप खादी पहनिये तो क्या वे खादी बेचते थे? हाँ बेटे, खादी बेचते थे।
आप अपने आप को निचोड़िये। ये हमारा बेटा, यह हमारी पत्नी। देखना यही तुझे ऐसा मारेंगे कि तुझे याद रहेगा। हमारा बेटा, हमारी पत्नी- यही रटता रहेगा कि कुछ समाज के लिए, भगवान् के लिए भी करेगा। नहीं गुरुजी हम तो हनुमान चालीस पढ़ते हैं, गायत्री चालीसा पढ़ते हैं। अरे स्वार्थी कहीं का, तेरी तो अक्ल खराब हो गयी है। अहंकार बढ़ गया है। हमने आपमें से हर किसी को कहा है कि आप ब्राह्मण बनिये। नहीं गुरुजी, हमने तो चन्दा इकट्ठा कर लिया, तो हम क्या करेंगे इसका? आप आदमी तो बनें पहले। आप आदमी बनना सीखें। आप घटियापन छोड़िये, सुबह से शाम तक काम कीजिये। पात्रता बढ़ाइये।
ऋषियों ने अपने रक्त को एक घड़े में भरा था, जिससे सीताजी उत्पन्न हुई थीं। आपको भी संस्कृति की सीता की खोज करनी है। समाज के लिए, संस्कृति के लिए आप भी अपना समय, अपना पैसा निकालिये, अपना रक्त निकालिये। आप अपने आप को निचोड़िये तो सही। निचोड़ने के नाम पर अँगूठा दिखाते हैं, त्याग के नाम पर जीभ निकालते हैं। बकवास के नाम पर, घूमने के नाम पर बिना मतलब के आडम्बर बना रखे हैं। अपने आपको निचोड़िये। आप अपने को यदि निचोड़ेंगे तो फिर देख लेना आप क्या बन जाते हैं? हमने अपने आपको निचोड़ा तो देखिये क्या बन गये?
अगर आपने अपने आपको निचोड़ दिया तो हमारा एक काम जरूर करना और वह यह कि हमारे विचार- हमारी आग को लोगों तक पहुँचाना। हम लेखक नहीं हैं। हमारे लिखे शब्दों में से आग निकलती है। विचारों की आग, भावनाओं की- क्रान्ति की आग निकलती है। आज जनता भी प्यासी, हम भी प्यासे हैं। हमारी विचारधारा ही आग है। हम आग उगलते हैं। हम लेखक नहीं हैं। हमारे लेखनी में से निकलती है आग, मस्तिष्क में से निकलती है आग, हमारी आँखों में से निकलती है आग। हमारे विचारणा की आग, भावनाओं की आग, संवेदनाओं की आग को आप घर- घर पहुँचाइये। आप में से हर आदमी को लालबहादुर शास्त्री जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल होना चाहिए। गाँधी जी के आदेश पर वे खादी धकेल पर रखकर बेचने गये थे।
ईसाई मिशन की महिलाएँ भी घर- घर जाती हैं और यह कहती हैं कि हमारी एक पैसा की किताब जरूर खरीदिये। अगर अच्छी न लगे तो कल मैं वापस ले लूँगी। अरे यह किताब बेचना नहीं है बाबा, मेरे विचार को घर- घर पहुँचाना है। आप लोगों के जिम्मे हमारा एक सूत्रीय कार्यक्रम है। आप जाइये, अपने को निचोड़िये। आपका घर का खर्च यदि १००० रुपये है तो निचोड़िये इसको और उसमें से बचत को ज्ञानयज्ञ के लिए खर्च कीजिये। हमारी आग को बिखेर दीजिये, वातावरण को गरम कर दीजिये, उससे अज्ञानता को जला दीजिये। आप लोग जाइये और अपने आपको निचोड़िये। ज्ञानघट का पैसा खर्च कीजिये तो क्या हम अपनी बीबी को बेच दें? बच्चे को बेच दें? चुप कंजूस कहीं के ऊपर से कहते हैं हम गरीब हैं। आप गरीब नहीं कंजूस हैं।
हर आदमी के ऊपर हमारा आक्रोश है। हमें आग लग रही है और आप निचोड़ते नहीं हैं। इनसान का ईमान, व्यक्तित्व समाप्त हो रहा है। आज शक्तिपीठें, प्रज्ञापीठें जितनी बढ़ती जा रही हैं, उतना ही आदमी का अहंकार बढ़ता जा रहा है। आपस में लड़ाई- झगड़े बढ़ते जा रहे हैं। सब हविश के मालिक बनते जा रहे हैं। हम चाहते हैं कि अब पन्द्रह- बीस हजार में फूस के शक्तिपीठ, प्रज्ञापीठ बन जाते तो कम से कम लोगों का राग- द्वेष अहंकार तो नहीं बढ़ता। आज आप लोगों से एक ही निवेदन कि आप हमारी आग स्वयं बिखेरिए, नौकरी से नहीं, सेवा से। आप जाइये एवं हमारा साहित्य पढ़िए तथा लोगों को पढ़ाइए और हम क्या कहना चाहते थे। हम दो ही बात आपसे कहना चाहते हैं- पहली हमारी आग को घर- घर पहुँचाइये, दूसरी ब्राह्मण एवं सन्त को जिन्दा कीजिये ताकि हमारा प्याऊ एवं अस्पताल चल सके, ताकि लोगों को- अपने बच्चों को खिला सकें तथा उन्हें जिन्दा रख सकें तथा मरी हुई संस्कृति को जिन्दा कर सकें। आप ११ माला जप करते हैं- आपको बहुत- बहुत धन्यवाद। यह जादूगरी नहीं है। किसी माला में कोई जादू नहीं है। मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि मनोकामना की मालाएँ, जादूगरी की माला में आग लगा दीजिये, आप मनोकामना की माला, जादूगरी की माला, आज्ञाचक्र जाग्रत करने की माला को पानी में बहा दीजिये।
तो क्या करें महाराज जी? आप अपने ब्राह्मणत्व को जगा दीजिये, साधु को जगा दीजिये ताकि आप अपनी नाव स्वयं पार कर सकें, अन्यथा हम यही कहेंगे कि शायद हमारा तप कम है नहीं तो कहीं न कहीं हमें ब्राह्मण, साधु मिल ही जाते। आपके पास धन नहीं तो अपनी भावना, विचार, श्रद्धा तो समाज में बिखेर ही सकते हैं। वही बिखेरिए, सन्त बनकर अपना परिचय दीजिये। सन्त दानी होता है, सन्त उदार होता है।
हमारा मन था कि अपने बचे हुए शेष दिनों में ब्राह्मण तथा सन्त का काम अधिक से अधिक कर सकूँ। लोगों की मध्यमा वाणी से, परावाणी से अधिक से अधिक सेवा कर सकूँ। यह हमारा मन है, मैं आप को एक ही बात कह सकता हूँ कि आप अपने को निचोड़िये- निचोड़िये बचत कीजिये। आपके श्रम, समय, धन और विचारणा- भावना की समाज को जरूरत है, संस्कृति को जरूरत है। इसे विलासिता में खर्च मत कीजिये। अगर किसी में ब्राह्मणत्व एवं सन्त जिन्दा है तो उसे निचोड़िये। उसे आप बिखेर दीजिये। हमने प्रार्थना की है कि यदि आप लोगों में कहीं भी किसी भी कोने में यदि ब्राह्मणत्व या सन्त जिन्दा हो तो वह जग जाये। उपासना- साधना के नाम पर आप जादूगरी बन्द कीजिये। देवता को गुमराह करने वाली, मनोकामना सिद्ध करने वाली पूजा बन्द कीजिए।
साधना किसे कहते हैं आपको मालूम नहीं? आप हनुमान जी की पूजा करते हैं, सन्तोषी माता की पूजा करते हैं। यह मन्त्र है, न यन्त्र है, न पूजा है। आप हनुमान जी या सन्तोषी माता को साधते हैं। अरे पहले अपने आपको तो साधिये न, पर यह जो जादूगरी आप करते हैं, वह बदमाशी के सिवा कुछ नहीं है। अगर आप पूजा- उपासना करते हैं, तो ठीक, यह आपकी मर्जी है, पर यह न तो कोई मन्त्र जप है, न भजन है, यह मात्र धूर्तगीरी है। पूजा के नाम पर यदि आप ऐसी बदमाशी करते हैं तो आपकी मर्जी, पर इससे कुछ होने वाला नहीं है। पहले आप समर्पण करना सीखिये, यह मोटी- मोटी बातें थीं जो हमने किसी तरह से आपसे कह दीं।
हमारे गुरुजी की यही मर्जी है कि हम आपमें से- हर आदमी में से ब्राह्मण तथा सन्त को जिन्दा करें और हम यही चाहते हैं कि अगर हमारे अन्दर बल हो तथा आपके अन्दर ब्राह्मणत्व तथा साधु हो तो वह जिन्दा हो जाए। इस विदाई के अवसर पर यही कहकर हम आप लोगों को विदा कर रहे हैं। मित्रों, गुरुजी ने हमेशा दिया है, आगे भी देते रहेंगे, शर्त एक ही है कि आप अपनी ब्राह्मण तथा सन्त की प्रवृत्ति जिन्दा करें। आप जाइये एवं अपने- अपने कामों में जुट जाइये।