Books - अतीन्द्रिय सामर्थ्य संयोग नहीं तथ्य
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Language: HINDI
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चमत्कार बनाव परामनोविज्ञान
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चमत्कारों का तात्विक विश्लेषण करने पर जो निष्कर्ष सामने आता है वह यह है कि बुद्धि की पकड़ की सीमा में जो घटनाएं नहीं आतीं वे चमत्कार मालूम पड़ती हैं अथवा जो बातें आमतौर पर प्रचलन में नहीं हैं, तभी तक चमत्कारी प्रतीत होती हैं। जैसे ही उनका रहस्य प्रकट होता है, उनमें कोई आश्चर्यजनक बात नहीं जान पड़ती। वैज्ञानिक आविष्कारों के आरम्भिक दिनों में रेल, तार, टेलीफोन, वायुयान, मोटर आदि का नया-नया प्रचलन हुआ था। तब लोग इन्हें देखने के लिए सौ दो सौ मील पैदल चल कर आते थे, पर धीरे-धीरे जब ये वस्तुएं नित्य के व्यवहार में सर्वत्र प्रयोग में आने लगीं तो कुछ दिनों में उनका आकर्षण जाता रहा—वह चमत्कार समाप्त हो गया। पहली बार जब डायनामाइट का विस्फोट हुआ तो उसे एक अचरज की घटना मानी गयी। विस्फोट का सूत्र हाथ लगते ही वह एक सामान्य बात हो गयी है। जो परमाणु बम की बनावट तथा नाभिकीय विस्फोट के सिद्धान्त से अपरिचित हैं, उनके लिए वह एक असाधारण घटना मालूम पड़ती है, पर भौतिक शास्त्र के ज्ञाताओं के लिए वह उतनी आश्चर्यजनक नहीं। मानव विहीन उपग्रहों का धरती का गुरुत्वाकर्षण चीरकर अन्तरिक्ष की कक्षा में प्रतिष्ठापित होकर चक्कर काटने लगने की घटनाएं अज्ञ मस्तिष्कों को हैरत में डाल सकती हैं पर विज्ञ उसे तकनीकी ज्ञान की एक विशेष विधा भर मानते हैं।
मानवी मन की बनावट ही ऐसी है कि वह असामान्य वस्तुओं अथवा घटनाओं को देखकर उनके पीछे किसी अविज्ञात गुप्त शक्ति की कल्पना करता है। बिजली चमकने जैसी प्राकृतिक बात का ठीक कारण न मालूम होने से यह मान्यता मन में बिठाली गयी कि इन्द्र के हाथ में वज्र चमकता है। जो शरीर शास्त्र तथा आरोग्य विज्ञान से अनभिज्ञ हैं अथवा जिन क्षेत्रों में आधुनिक प्रगति नहीं हुई है, उनमें आज भी यह विश्वास प्रचलित है कि बीमारियां, महामारियां किसी देवी देवता के प्रकोप से पैदा होतीं तथा उनकी अनुकम्पा से ही दूर हो सकती हैं। विभिन्न प्रकार के रोगों के उपचार के लिए उनमें भूतों जिन्नों प्रेतों देवियों को भगाने वाले ओझा अभी भी पिछड़े हुए समाजों में पाये जाते हैं, पर विज्ञान की कसौटी पर उनकी मान्यताओं को मूर्खतापूर्ण माना जाता है तथा यह समझा जाता है कि उस समाज में घटनाओं की समीक्षा करने की बुद्धि संगत कसौटी का अभाव है। पर विज्ञ समाज में ये अन्धविश्वास नहीं पाये जाते।
अभी कुछ दशकों पूर्व तक प्रकृति की अनेकानेक घटनाएं रहस्यमय बनी हुई थी जिसे भारी आश्चर्य की दृष्टि से देखा जाता रहा है बारमूड़ा त्रिकोण की घटना अभी कल परसों की है जहां कि सैकड़ों जलयान, वायुयान यात्रियों समेत गायब होते हैं जिनका कोई अता पता अब तक नहीं मिल सका है। उसके साथ अनेकों किम्वदन्तियां जुड़ गयीं। किसी अन्यान्य ग्रह के लोगों के कारनामे, देवता का प्रकोप आदि मानकर सन्तोष किया जाता रहा, पर विज्ञान की नवीनतम खोजों ने उन सभी मान्यताओं को झुठलाकर यह सिद्ध कर दिया कि वह भी एक प्रकार का ब्लैक होल है। ऐसे केन्द्र एक ही सीध में पृथ्वी पर आठ स्थानों पर हैं उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर भी दो केन्द्र हैं। अन्तरिक्ष में असंख्यों की संख्या में ब्लैक होल मौजूद हैं इनकी आकर्षण शक्ति अत्याधिक प्रचण्ड है। हाथी जैसे विशालकाय जीव भी उसके आकर्षण से तिनके की तरह खिंचते हुए चले आते हैं। उस प्रचण्ड आकर्षण शक्ति के कारण ही जलयान, वायुयान बारमूडा त्रिकोण नामक स्थान पर जाकर गायब होते रहे। ऐसे प्रकृति रहस्यों की संख्या असंख्यों है, जिनके विषय में आधुनिक विज्ञान को भी कुछ ज्ञान नहीं है, पर समझा जाता है कि उनके रहस्योद्घाटन में लगे वैज्ञानिक उन रहस्यों को उजागर करने में अगले दिनों समर्थ होंगे। पर जब तक कि प्रकृति की उन विलक्षणताओं का कारण नहीं ज्ञात हो जाता, तब तक के लिए वे रहस्य हैं।
सृष्टि का दूसरा घटक चैतन्य है, वह जड़ प्रकृति की तुलना में कहीं अधिक सामर्थ्यवान अधिक विलक्षण है। जीवधारियों के भीतर उस चेतना का छोटा अंश कार्य करता, अनेकों प्रकार के अचम्भित करने वाले करतब दिखाता देखा जा सकता है। प्रकृति की तुलना में चेतना के अन्तराल में बहुमूल्य उपलब्धियों के भाण्डागार मौजूद हैं, जिन्हें प्राप्त करके असम्भव समझे जाने वाले कार्यों को भी सम्भव बनाया जा सकता है।
उपलब्धियों को करतलगत करने की एक सशक्त प्रयोगशाला मानवी काया के रूप में हर व्यक्ति को मिली हुई है। वह इतनी विलक्षण तथा उपयोगी यन्त्रों से सुसज्जित है, जितनी प्रकृति की अन्य कोई भी संरचना नहीं है। शरीर, बुद्धि, मन, अन्तःकरण में से प्रत्येक को विभिन्न आयाम समझा जा सकता है। अभी मानवी विकास की सीमा ‘‘मैटर’’ तक सीमित है। शरीर और बुद्धि भी इसी सीमा के अन्तर्गत आते हैं। बुद्धि का वह हिस्सा जो अधिक समर्थ है चैतन्य है जिसे वैज्ञानिक 93 प्रतिशत मानते हैं, इन्ट्यूशन प्रज्ञा का है, वह अविज्ञात का क्षेत्र है। सात प्रतिशत का ही समस्त व्यापार अनेकानेक वैज्ञानिक उपलब्धियों के रूप में परिलक्षित हो रहा है। बोलचाल की भाषा में जिसे मन कहा जाता है, उसकी अति नगण्य जानकारी मनुष्य को है। आधुनिक मनोविज्ञान को भी अपनी खोजों द्वारा जो प्राप्त हुआ है, वह अत्यल्प है। उसकी गहरी परतों की सामर्थ्यों का कुछ भी ज्ञान मनोविज्ञान का नहीं है। इसी क्षेत्र में अगणित रहस्यों की चाबी छुपी हुई है। अतीन्द्रिय सामर्थ्य के रूप में प्रख्यात शक्तियां इसी के अन्तराल से उपजती तथा किन्हीं-किन्हीं महापुरुषों में प्रकट होती दिखायी पड़ती हैं। इच्छा शक्ति के चमत्कृत कर देने वाले, कौतूहलवर्धक कृत्य आये दिन देखे जाते हैं। वह और कुछ भी नहीं मन की एकाग्रता का एक छोटा-सा पक्ष है। इसी की एक छोटी सामर्थ्य हिप्नोटिज्म को पश्चिमी मनःशास्त्रियों ने भी मान्यता दे दी है, उसके अभ्यास एवं सामर्थ्य के विकास के लिए कितने ही विद्यालय भी खुल गये हैं।
अमरीका के विस्कासिन विश्वविद्यालय में हिप्नोटिज्म, योग की विधिवत् शिक्षा दी जाने लगी है। वाशिंगटन विश्वविद्यालय में अतीन्द्रिय सामर्थ्य पर शोध कार्य चल रहा है। बोस्टन के एक महाविद्यालय में एक रहस्यमय विद्या पढ़ायी जा रही है—‘द रिटोरिक आफ डस्क’ (कोहरे की मूक भाषा) ओकलैंड विश्वविद्यालय में इच्छा शक्ति तथा प्राण शक्ति के प्रयोग उपचार चल रहे हैं। कैलिफोर्निया विश्व विद्यालय के प्रो. इडेन का मत है कि भोगवादी संस्कृति से ऊबा हुआ मनुष्य राहत के लिए किसी अतिमानवी सामर्थ्य की खोज में भटक रहा है। पश्चिम के व्यक्ति में एक ऐसी व्याकुलता पैदा हो गयी है जो अनायास ही उसे पूरब की आध्यात्मिक विशेषताओं की ओर आकर्षित कर रही है।
अतीन्द्रिय क्षमताओं एवं अलौकिक घटनाओं के प्रमाण अब इतनी अधिक संख्या में सामने आने लगे हैं कि इसका कारण ढूंढ़ने के लिए मनीषा को विवश होना पड़ा है। कभी यह बातें अन्धविश्वास या किम्वदन्ती कहकर ‘हंसी’ में उड़ाई जा सकती थी। किन्तु अब और विश्वस्त परीक्षण की कसौटी पर खरे उतरने वाले प्रमाणों की संख्या इतनी अधिक है कि उन्हें झुठलाया नहीं जा सकता। ऐसी दशा में प्रकृति के विज्ञात नियमों से आगे बढ़कर यह देखना पड़ रहा है कि इन रहस्यों के पीछे किन सिद्धान्तों एवं कारणों का समावेश है।
बीस बाईस वर्ष पूर्व तक रूस में टेलीपैथी को जादूगरी और धोखाधड़ी की संज्ञा दी जाती थी तथा उसका तिरस्कार पूर्वक उपहास उड़ाया जाता था। इस सम्बन्ध में कहा जाता था कि विचार सम्प्रेषण के लिए मस्तिष्क में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें चाहिए जब कि वहां उनका कोई अस्तित्व नहीं है। ऐसी दिशा में इस प्रकार की कोई संभावना विज्ञान स्वीकार नहीं कर सकता। इस प्रतिपादन के अग्रणी वैज्ञानिक अलेक्जेंडर किताई गोरोरस्की ने पीछे अपने विचार बदल दिये। विचार बदलने का कारण यह था कि आगे चलकर उन्होंने कई परामनोवैज्ञानिक शोधों का निकट से अध्ययन किया और जो तथ्य सामने आए उनके अनुसार अपनी पूर्व धारणाओं की गलती को ईमानदारी के साथ स्वीकार कर लिया। अब रूस इस शोधकार्य में सबसे आगे है। ‘साइकिक डिसकवरीज बिहाइण्ड आयरन करटेन’ पुस्तक में ऐसे अनेकों परामनोवैज्ञानिकों व उनके कार्यों का उल्लेख है। यह विधा वहां अच्छी खासी प्रतिष्ठा पा चुकी है।
अब मूर्धन्य मनःशास्त्रियों तथा वैज्ञानिकों ने पाश्चात्य जगत में भी परामानसिक शक्तियों का अस्तित्व स्वीकार कर लिया है। न्यूयार्क विश्वविद्यालय के मनःशास्त्री डा. मेहलान वैगनर ने एक सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें उल्लेख है कि अमरीका के 9 प्रतिशत विचारशील व्यक्ति अतीन्द्रिय शक्ति को एक वास्तविकता, 45 प्रतिशत एक प्रबल सम्भावना मानते हैं। फ्रांस, हालैण्ड, चैकोस्लोवाकिया, प. जर्मनी आदि के वैज्ञानिक भी परामानसिक शक्ति को एक सच्चाई के रूप में स्वीकार करने लगे हैं। प्रिंसटन विश्व विद्यालय के डा. राबर्ट डीन मानसिक शक्ति का पदार्थों पर प्रभाव का अध्ययन गम्भीरता से कर रहे हैं। नोबुल पुरस्कार विजेता डा. ब्रायन जोसेफसन के अनुसार परामनोविज्ञान के नये क्षेत्र के आविष्कार के बाद भौतिकी की नयी परिभाषा देनी होगी रूसी प्रोफेसर लियोनिद वासिलयेव ने हिप्नोटिज्म तथा टेलीपैथी पर अनेकों प्रकार के प्रयोग किये हैं। अपने अनुसन्धान निष्कर्ष में उन्होंने बताया है कि सुविकसित मानव मस्तिष्क विचार प्रसारण केन्द्र को सफल भूमिका सम्पन्न कर सकता है।
अति मानसिक शक्तियों के प्रति बढ़ती हुई मानवी अभिरुचि मनुष्य की उस सहज जिज्ञासा का परिचय देती है जो मात्र उथली बुद्धि के सहारे चेतना क्षेत्र के रहस्यों को जानना एवं पाना चाहती है। उन्हें चमत्कारिक इसलिए भी समझा जाता रहा है क्योंकि विज्ञान की यान्त्रिक तथा बुद्धि की पकड़ सीमा से वे बाहर हैं। उन्हें जानने, सामर्थ्यों को करतलगत करने की विद्या बुद्धि तथा उसके द्वारा अविष्कृत विज्ञान के पास नहीं है, हो भी नहीं सकती। कारण कि बुद्धि का क्षेत्र तर्क, विज्ञान का मैटर है। पदार्थ एवं तर्क से परामानसिक शक्तियां परे हैं। उनका भी एक विज्ञान है, वह विज्ञान भौतिक विज्ञान के नियमों पर नहीं, चेतना विज्ञान के नियमों पर आधारित है। ‘साइन्स आफ सोल’ आत्म विज्ञान के नाम से वह अध्यात्म जगत में जाना जाता है।
एक तथ्य सुनिश्चित रूप से जानना आवश्यक है कि पदार्थ विज्ञान की तरह चेतना विज्ञान के भी निश्चित नियम एवं विधान हैं। चमत्कार जैसी किसी कला का उस विधा में कोई स्थान नहीं है। बुद्धि उन्हें समझ नहीं पाती, इसलिए वह चमत्कार प्रतीत होता है। अन्यथा सब कुछ एक निर्धारित सिद्धान्त से परिचालित है। साथ ही यह बात भी हृदयंगम करने योग्य है कि हाथ पर सरसों जमाना, वस्तुएं मंगा देना, बाल से भभूत निकालना जैसी बाल-क्रीड़ाओं का अतीन्द्रिय सामर्थ्य से कोई सम्बन्ध नहीं है। बाजीगरी के वे कृत्य सिद्धियों के नाम पर जहां कहीं भी आते हों, समझना चाहिए वहां अवश्य ही धूर्तता का समावेश है। अतीन्द्रिय सामर्थ्य का प्रत्यक्ष स्वरूप बढ़े हुए संकल्पबल, प्राण शक्ति, वाक् शक्ति के रूप में उभर कर सामने आता तथा परिष्कृत-प्रखर व्यक्तित्व के रूप में अपना परिचय देता है। प्राण बल, संकल्पबल, विचारबल ही समीपवर्ती तथा दूरवर्ती वातावरण तथा सम्बद्ध व्यक्तियों को प्रभावित करता उन्हें जबरन अभीष्ट दिशा में चल पड़ने को बाध्य करता है।
संकल्प बल की चमत्कारी शक्ति—
संकल्पबल की शक्ति असीम है। जिन्हें ‘‘चमत्कार’’ संज्ञा दी जाती है वे इच्छा शक्ति द्वारा अंदर छिपी प्रसुप्त पड़ी विभूतियों का जागरण भर है। उन्हें हर कोई जगा सकता है। ऐसे अनेकों उदाहरणों से गत कुछ दशकों की पुस्तकें रंगी पड़ी हैं जिनमें प्रत्यक्षतः चमत्कारी किन्तु परोक्ष रूप से अतीन्द्रिय सामर्थ्यों की जागृति की परिणति रूप में सामान्य व्यक्तियों के माध्यम से घटना क्रम सम्पन्न हुए।
सन् 1910 की बात है। जर्मनी में एक ट्रेन में एक सोलह वर्षीय किशोर यात्रा कर रहा था। घर से भाग कर वह कहीं दूर जाना चाहता था। पैसे के अभाव में वह टिकट न ले सका। टिकट निरीक्षक को देखते ही उसने सीट के नीचे छिपने की कोशिश की। पर वह टिकट निरीक्षक की निगाहों से बच न सका। उसने किशोर से टिकट मांगा। टिकट तो उसके पास था नहीं। पास में अखबार का टुकड़ा पड़ा था। किशोर ने उसे हाथ में उठाया, मन में संकल्प किया कि यह टिकट है और उसने टिकट निरीक्षक के हाथों में वह टुकड़ा, थमा दिया। मन ही मन यह संकल्प दुहराता रहा हे परमात्मा उसे वह कागज का टुकड़ा टिकट दिखायी पड़ जाय। उसके आश्चर्य का तब टिकाना न रहा जब देखा कि निरीक्षक ने उस कागज के टुकड़े को वापस लौटाते हुए यह कहा कि—‘क्या तुम पागल हो गये हो। तुम्हारे पास जब टिकट है तो सीट के नीचे छिपने की आवश्यकता क्या है?’
‘‘एबाउट माई सेल्फ’’ पुस्तक में बुल्फ मैसिंग नामक एक रशियन परामनोवैज्ञानिक उपरोक्त घटना का उल्लेख करते हुए लिखता है कि ‘‘उस दिन से मेरा पूरा जीवन बदल गया। पहले मैं अपने आप को असमर्थ, असहाय तथा मूर्ख मानता था पर उस घटना के बाद यह विश्वास पैदा हुआ कि मेरे भीतर कोई महान शक्ति सोयी पड़ी है जिसे जगाया—उभारा जा सकता है। उन प्रयत्नों में मैं प्राणपण से लग गया तथा सफल भी रहा।’’
सन 1910 से 1950 तक मैसिंग को दुनिया भर में ख्याति मिली। उसकी संकल्प शक्ति की विलक्षणता का परीक्षण अनेकों बार विशेषज्ञ वैज्ञानिकों के समक्ष किया गया। स्टालिन जैसा मनोबल सम्पन्न व्यक्ति भी मैसिंग से डरने लगा। भयभीत होकर स्टालिन ने उसे गिरफ्तार करा लिया। स्टालिन को सुनी हुई बातों पर विश्वास न था। मैसिंग की परीक्षा उसने स्वयं ली। उसने मैसिंग से कहा—‘‘तुम मेरे सामने अपनी सामर्थ्य का परिचय दो।’ वह सहर्ष इसके लिए राजी हो गया।
स्टालिन ने आदेश दिया—‘‘बन्द कमरे से कल दो बजे तुम्हें छोड़ा जायेगा। एक व्यक्ति तुम्हें मास्को के एक बड़े बैंक में ले जायेगा तुम्हें बैंक के कैशियर से एक लाख रुपये निकलवा कर लाना होगा। पर ध्यान रहे—तुम मात्र अपनी वाणी का प्रयोग कर सकते हो—किसी शस्त्र का नहीं।’’
दूसरे दिन पूरी बैंक को सैनिकों से घिरवा दिया गया। दो व्यक्ति पिस्तौलें लिए छद्म वेश में मैसिंग के पीछे-पीछे चल पड़े ताकि वह किसी प्रकार की चाल न चल सके। ट्रेजरर के सामने उसे खड़ा कर दिया गया। मैसिंग ने जेब से एक कोरा कागज निकाला—एकाग्र नेत्रों से देखा तथा ट्रेजरर को दे दिया। ट्रेजरर गौर से उस कागज को उलट-पुलट कर देखकर आश्वस्त हो गया कि वह एक चैक है एवं सही है। उसे अपने पास रखकर उसने एक लाख रुपये मैसिंग को दे दिए। उसे लेकर वह स्टालिन के पास पहुंचा तथा सौंप दिया। सारा विवरण जानकर स्टालिन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
इतने पर भी स्टालिन को उसकी संकल्प शक्ति पर पूर्ण विश्वास न हुआ। उधर मैसिंग वह धनराशि लेकर खजांची के पास पहुंचा—पूरी बात बतायी। उसने चैक समझकर रखे हुए कागज को दुबारा देखा तो वह अब मात्र कोरा कागज था। धन राशि को वापस करते हुए मैसिंग ने खजांची से कहा—‘‘महोदय! क्षमा करें, यह संकल्प शक्ति का एक छोटा-सा प्रयोग था। आपको इसका दण्ड न भुगतना पड़े, इस कारण लौटाने आया।’ वह क्लर्क इस घटना से इतना अधिक हतप्रभ हुआ कि उसे हार्ट अटैक का दौरा पड़ा और कई दिनों तक भयावह सपने आते रहे।
इस रहस्य की और भी पुष्टि करने की दृष्टि से उधर स्टालिन ने मैसिंग को दूसरा आदेश दिया कि सैनिकों की देख-रेख में बन्द कमरे से निकलकर वह ठीक बारह बजे रात्रि को स्टालिन से मिले। स्टालिन के लिये सैनिकों की कड़ी सुरक्षा वैसे भी रखी जाती थी लेकिन यह व्यवस्था और कड़ी कर दी गयी ताकि किसी प्रकार मैसिंग निकलकर स्टालिन तक पहुंचने न पाये। पर इन सबके बावजूद भी निर्धारित समय पर वह स्टालिन के समक्ष पहुंचकर मुस्कराने लगा। स्टालिन को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। पर जो सामने घटित हुआ था उससे इन्कार भी कैसे कर सकता था? भय मिश्रित स्वर में उसने मैसिंग से पूछा कि यह असम्भव कार्य तुमने किस प्रकार—किस शक्ति के सहारे किया थोड़ा विस्तार में बताओ।
मैसंग बोला—यह और कुछ भी नहीं संकल्प बल का एक छोटा चमत्कार है। मैंने मात्र इतना किया कि मन को एक विचार एक लक्ष्य के लिए एकाग्र किया। तत्पश्चात दरवाजे पर आकर सैनिक से निर्देश के स्वर में बोला—‘‘मैं बेरिया हूं’’ ज्ञातव्य है कि बेरिया को रूसी फौज का सबसे बड़ा अधिकारी, स्टालिन के बाद सर्व शक्तिमान अधिकारी माना जाता था।
आपसे मिलने की इच्छा जाहिर करते ही सैनिकों की पहली कतार ने मुझे एक कमरे का नम्बर बताया। वहां पहुंचने पर मैंने पुनः अपना परिचय पहले की भांति दिया। सुरक्षा पर तैनात सैनिकों ने एक दूसरे दिशा वाले कमरे की ओर संकेत किया। वहां भी सशस्त्र सैनिकों की एक टोली मौजूद थी। जनरल बेरिया का नाम सुनकर व उन्हें प्रत्यक्ष सामने देखकर उन सैनिकों ने भी अभिवादन करते हुए आगे का रास्ता बताया। इस प्रकार सैनिकों की सात टोली पार करने के बाद निश्चित रूप से यह मालूम हुआ कि आप कहां हैं। अपना पूर्व की भांति परिचय देकर मैं यहां आ सकने में सफल हुआ।
मैसिंग के द्वारा स्टालिन को एक नया सूत्र हाथ लगा कि मनुष्य के भीतर कोई ऐसी अविज्ञात शक्ति विद्यमान है जो प्रत्यक्ष सभी आयुधों से भी अधिक समर्थ है। उसके द्वारा असम्भव स्तर के कार्य भी पूरे किये जा सकते हैं। स्टालिन ने मैसिंग की अतीन्द्रिय सामर्थ्य के परीक्षण के लिए एक दूसरे मनःशास्त्री इवान नैमोर को नियुक्त किया जो अपने समय का मनोविज्ञान का मूर्धन्य विशेषज्ञ माना जाता था। लम्बे समय तक उसने मैसिंग का अध्ययन किया। अन्ततः उसने घोषणा की कि मन की अचेतन शक्ति चेतन की तुलना में अधिक सबल है। उसे उभारकर अच्छे-बुरे दोनों ही तरह के काम लिए जा सकते हैं। मैसिंग के भीतर का अचेतन प्रचण्ड रूप से जागृत है। उसी के माध्यम से वह प्रचण्ड संकल्प की प्रेरणा देकर दूसरों को सम्मोहित कर लेता है तथा अपने प्रयोजन में सफल हो जाता है। यह उसकी जागृत अतीन्द्रिय शक्ति ही है।
काशी के प्रसिद्ध सन्त और सिद्धयोगी स्वामी विशुद्धानन्द ने अपने एक शिष्य के साथ दो अन्य व्यक्ति भी थे, उन्होंने तीनों शिष्यों की जिज्ञासा का समाधान करते हुए कहा ‘देखो इच्छाशक्ति के विषय में मैं तुम्हें एक प्रयोग बताता हूं। तुम तीनों अपने हाथ की मुट्ठी बांध लो और उसमें रखने लायक किसी भी वस्तु की इच्छा करो।’ तीनों शिष्य मुट्ठी बांधकर स्वामीजी के निर्देशानुसार मनचाही वस्तु की इच्छा करने लगे। कुछ देर बाद स्वामी जी ने कहा—‘मुट्ठी खोल कर देखो तुम्हारी वस्तु मुट्ठी में आ गयी है या नहीं।’ तीनों शिष्यों ने मुट्ठी खोल कर देखा तो वह पहले जैसी ही खाली मिली। बाबा ने फिर कहा—एक बार और मुट्ठी बांधो तथा पुनः अपनी इच्छित वस्तु का चिन्तन करो। तुम लोगों ने यह तो देख लिया कि मात्र इच्छा से कुछ नहीं होता। अब मैं तुम्हारी इच्छा में शक्ति का संचार करता हूं। तीनों शिष्यों ने फिर मुट्ठियां बन्द कर लीं। बाबा के कहने पर जब उन्होंने पाया तो तीनों की मुट्ठियों में इच्छित वस्तुएं विद्यमान थीं।
इस घटना की व्याख्या में सिद्ध योगी ने अपने शिष्यों को बताया—‘तुम्हारी इच्छा और मेरी शक्ति दोनों मिलकर ही इच्छा शक्ति के रूप में परिणत हो गयीं। जब तुम स्वयं अपनी शक्ति का विकास कर लोगे तो तुम्हें इस शक्ति संचार की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।’’
जहां कहीं भी कभी चमत्कारी घटनाओं के विवरण मिलते हैं, इच्छा शक्ति ही उनके मूल में विद्यमान रहती है। अमेरिका के ‘मिशिगन पैरासाइकिक रिसर्च सेण्टर’ ने इस प्रकार की कितनी ही घटनाओं के विवरण संकलित किये और उनकी वास्तविकता की जांच की। रिसर्च सेण्टर द्वारा खोज के लिए चुनी गई घटनाओं में से कई निराधार और झूठ थी परन्तु ऐसी भी कितनी ही घटनायें निकलीं जिनसे इच्छा शक्ति के चमत्कारों तथा उसके विकास सम्बन्धी नियमों के बारे में नयी जानकारियां मिलीं।
न केवल अमेरिका वरन् रूस में भी जहां स्थूल से परे किसी वस्तु या शक्ति का अस्तित्व पहली ही प्रतिक्रिया में झूठ, और फ्रॉड समझा जाता है, ऐसे कई व्यक्ति हैं जो अपनी इच्छा शक्ति की अद्भुत सामर्थ्य का वैज्ञानिक परीक्षण करवाने में भी निस्संकोच आगे आये। रूस की महिला श्रीमती मिखाइलोवा अपनी अतीन्द्रिय सामर्थ्य के लिए विख्यात है। एक रात्रि भोज में, जिसमें प्रसिद्ध रूसो पत्रकार बादिम मारिम भी उपस्थित थे लोगों के आग्रह पर मिखाइलोवा ने कुछ चमत्कार प्रस्तुत कर उपस्थित लोगों को हैरत में डाल दिया। वादिम मारिन ने अपने पत्र के ताजे अंक में उस प्रदर्शन के बारे में लिखा—‘वहां मेज पर कुछ दूर एक डबल रोटी रखी थी। उन्होंने उसकी ओर निर्निमेष दृष्टि से देखना आरम्भ किया। कुछ ही क्षणों के पश्चात् डबल रोटी उनकी ओर सरकने लगी जैसे ही डबलरोटी उनके निकट आती वैसे ही श्रीमती मिखाइलोवा ने झुककर थोड़ा मुंह खोला और वह डबल रोटी उनके खुले मुंह में पहुंच गयी।
रूस के ही एक दूसरे मनश्चिकित्सक डा. बैन्शनोई अपनी अलौकिक शक्ति के लिए विख्यात हैं। वे किसी भी वस्तु को केवल दृष्टि केन्द्रित कर उसे अपने स्थान से हटा सकते हैं और किसी खाली पात्र को दूध या किसी अन्य वस्तु से परिपूर्णतः कर सकते हैं। इन बातों पर रूस में अभी तक बहुत कम विश्वास किया जाता है। इसलिए कुछ वैज्ञानिकों ने वैन्शनोई की परीक्षा लेने का कार्यक्रम बनाया वैज्ञानिकों ने हर तरह से डा. बैन्शनोई के प्रत्येक कार्यक्रम की परीक्षा ली और उनको बारीकी से जांचा परन्तु कहीं कोई धोखा-धड़ी या हाथ की सफाई नहीं दिखाई दी।
डा. नैन्डोर फीडोर ने एक पुस्तक लिखी है, ‘बिटबीन टूवर्ल्डस्’ इस पुस्तक में उन्होंने कितनी ही ऐसी घटनाओं का उल्लेख किया है जिनके मूल में स्थूल मानवीय सामर्थ्य से परे कोई शक्ति काम करती थी इसमें उन्होंने अमेरिका की एक घटना दी है।
अमेरिका के प्रसिद्ध मनोविज्ञान-शास्त्री डा. राल्फ-एलेक्जेण्ड ने सन् 1951 में मेक्सिको सिटी में कई विद्वानों एवं वैज्ञानिकों के समक्ष अपनी इच्छाशक्ति के प्रयोग द्वारा मेघ रहित आकाश में 12 मिनट के अन्दर बादलों को पैदा करके कुछ बूंदा-बांदी भी करा दी थी। उस समय तो उपस्थित लोगों ने डा. राल्फ की शक्ति को एक संयोग मात्र कह दिया। इन्हीं डा. राल्फ ने सन् 1954 में फिर 12 सितम्बर को ओण्टैरियो नामक स्थान पर खुलेआम प्रदर्शन करने का निश्चय किया। पचासों वैज्ञानिक पत्रकार नगर के वरिष्ठ अधिकारी एवं मेयर भी उपस्थित थे। प्रामाणिकता की कसौटी के लिए तेज फोटो खींचने वाले कैमरे भी लगा दिये गये थे।
दर्शकों ने आसमान में छाये बादलों में से जिस बादल पट्टी को हटाने के लिए कहा—डा. एलेक्जेण्डर ने आठ मिनट के भीतर उसको अपनी दृष्टि जमाकर गायब करके दिखा दिया। कैमरों ने भी बादल हटने के ही चित्र दिये। लोग इसे संयोग मात्र न समझें, इसलिए उन्होंने यह प्रयोग तीन बार दुहराकर दिखाया, तब वहां के सभी प्रमुख समाचार पत्रों ने इस समाचार को ‘‘क्लाउड डेस्ट्रायड बाई डॉक्टर’’ (बादल डॉक्टर द्वारा नष्ट किए गए) का शीर्षक देकर सुर्खियों के साथ प्रकाशित किया था। उपरोक्त प्रदर्शन पर टिप्पणी करते हुए एक प्रसिद्ध विज्ञानी ऐलेन एप्रागेट ने ‘‘साइकोलोजी टुडे’’ पत्रिका में एक विस्तृत लेख छाप कर यह बताया कि मनुष्य की इच्छा शक्ति अपने ढंग की एक सामर्थ्यवान विद्युत धारा है और उसके आधार पर प्रकृति की हलचलों को प्रभावित कर सकना पूर्णतया सम्भव है। इसे जादू नहीं समझना चाहिए।
इच्छा शक्ति द्वारा वस्तुओं को प्रभावित करना अब एक स्वतन्त्र विज्ञान बन गया है, जिसे साइकोकाइनेसिस (पी.के.) कहते हैं। इस विज्ञान पक्ष का प्रतिपादन है कि ठोस दीखने वाले पदार्थों के भीतर भी विद्युत अणुओं की तीव्रगामी हलचलें जारी रहती हैं। इन अणुओं के अन्तर्गत जो चेतना तत्व विद्यमान हैं उन्हें मनोबल की शक्ति तरंगों द्वारा प्रभावित, नियन्त्रित और परिवर्तित किया जा सकता है। इस प्रकार मौलिक जगत पर मनःशक्ति के नियन्त्रण को एक तथ्य माना जा सकता है।
अमेरिका के ही ओरीलिया शहर में इन डा. एलेक्जेंडर राल्फ ने एक शोध संस्थान खोल रखा है, जहां वस्तुओं पर मनःशक्ति के प्रभावों का वैज्ञानिक अध्ययन विधिवत किया जा रहा है। कई शोधकर्ता और विद्यार्थी इस संस्थान में शोध निरत हैं। डॉ. एलेक्जेण्डर राल्फ ने एक पुस्तक भी लिखी है—‘पावर आफ माइण्ड’। इसमें उन्होंने इच्छाशक्ति संबंधी विभिन्न प्रमाण दिए हैं। एक स्थान पर उन्होंने लिखा है कि प्रगाढ़ ध्यान-शक्ति द्वारा एकाग्र मानव-मन शरीर के बाहर स्थित सजीव एवं निर्जीव पदार्थों पर भी इच्छानुकूल प्रभाव डाल सकता है। राल्फ का कहना है कि यह एक निर्विवाद तथ्य है कि इच्छा-शक्ति द्वारा स्थूल जगत पर नियंत्रण सम्भव है।
इलेक्ट्रानिक ब्रेन के निर्माण की प्रक्रिया में ज्ञात तथ्यों द्वारा वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अवचेतन मन एक सशक्त कम्प्यूटर की तरह कार्य करता है और जिस तरह एक कम्प्यूटर में की गई फीडिंग के अनुसार ही वह क्रियाशील होता है, उसी तरह अवचेतन भी अपना आहार हमारे विचारों तथा संकल्पों से प्राप्त करता है। इस तरह अवचेतन की दिशा मनुष्य की इच्छाओं से ही प्रभावित होती है। स्पष्ट है कि इस अवचेतन पर व्यक्ति प्रयास द्वारा पूर्ण नियन्त्रण पा सकता है और तब सभी अलौकिक लगने वाले काम कर सकता है।
व्यक्ति स्वयं अपना विद्युत-चुम्बकीय बल-क्षेत्र या गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र विकसित कर सकता है, ऐसा वैज्ञानिक मानने लगे हैं। पर उसका आधार एवं प्रक्रिया अभी तक वे नहीं जान पाये हैं। मनुष्य चलता-फिरता बिजलीघर है। उसका भीतरी समस्त क्रिया-कलाप स्नायु जाल में निरन्तर बहते रहने वाले विद्युत प्रवाह से ही सम्पादित होता है। बाह्य जीवन में ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों द्वारा जो विभिन्न प्रकार की हलचलें होती हैं उनमें खर्च होने वाली ऊर्जा वस्तुतः मानव विद्युत-शक्ति ही होती है। रक्त आदि रसायन तो मात्र उसके निर्माण में ईंधन भर का काम देते हैं।
व्यक्ति के बिजली, भाप, तेल जैसे साधनों में ही अब विचार शक्ति को भी स्थान मिलने जा रहा है। अध्यात्म शास्त्र में तो आरम्भ से ही विचारों को ऐसा समर्थ तत्व माना है जो न केवल अपने उद्गमकर्त्ता को वरन् पूरे सम्पर्क क्षेत्र को भी प्रभावित करता है। इतना ही नहीं उससे दूरवर्ती एवं अपरिचित प्राणियों तथा पदार्थों तक को प्रभावित किया जा सकता है।
टेलीपैथी के एक प्रयोगकर्त्ता इङ्गलैण्ड के ए.एन. क्रीरी ने बहुत समय तक यह प्रयोग चलाया कि बन्द कमरे में क्या हो रहा है इसकी जानकारी प्राप्त की जाय। इस प्रयोग में एक महिला अधिक दिव्यदृष्टि सम्पन्न सिद्ध हुई।
क्रीरी ने अपने प्रयोगों की सचाई जांचने के लिए अनेक प्रामाणिक व्यक्तियों से अनुरोध किया। जांचने वालों में डबलिन विश्व विद्यालय के प्रो. सर विलियम बैरट इंगलैण्ड की सोसाइटी फॉर साइकिकल रिसर्च के प्रधान प्रो. सिजवि जैसे मूर्धन्य लोग थे। उन्होंने कई तरह से उलट-पलटकर इन प्रयोगों को देखा और उन प्रयोगों के पीछे निहित सचाई को स्वीकारा। इन प्रयोगों की जांच का विवरण ‘विचार संप्रेक्षण समिति’ ने प्रकाशित किया है।
दूरवर्ती लोगों के मस्तिष्कों को प्रभावित करने और उनमें अभीष्ट परिवर्तन लाने की दिशा में आस्तिकों और नास्तिकों को समान रूप से सफलता मिली है। इन प्रयोगों में रूसी वैज्ञानिक भी योग साधकों के पद-चिन्हों पर चल रहे हैं। लेनिन ग्राड विश्व-विद्यालय के शरीर विज्ञानी प्रो. लियोनिद वासिलयेव ने दूर संचार क्षमता का प्रयोग एक शोध कार्यों में निरत मण्डली पर किया। उनने अपने प्रयोगों द्वारा चालू शोध के प्रति धीरे-धीरे उदासीन होने और उसे छोड़कर अन्य शोध में लाने का प्रयोग चालू रखा और उसके सफल परिणाम पर सभी को आश्चर्य हुआ। लियोनिद ने अपना अभिप्राय गुप्त कागजों में नोट करके साथियों को बता दिया था कि वे अमुक शोध मंडली की मनःस्थिति में उच्चाटन उत्पन्न करके अन्य कार्य में रुचि बदल देंगे। कुछ समय में वस्तुतः वैसा ही परिवर्तन हो गया और उस मण्डली ने बड़ी सीमा तक पूरा किया गया अपना कार्य रद्द करके नया कार्य हाथ में ले लिया।
इतिहास, पुराणों की बात छोड़ दें तो भी प्रत्यक्ष दर्शियों की प्रामाणिक साक्षियों के आधार पर यह विश्वास किया जा सकता है कि विचार और शब्द के मिश्रण से बनने वाले मन्त्र प्रवाह का प्रयोग आत्मशक्ति द्वारा करके वातावरण तक में हेर-फेर करने को सफलता मिल सकती है।
अफ्रीकी जन-जातियों की तरह ही मलाया में भी मन्त्र विद्या के प्रयोग और चमत्कार बहुत प्रस्तुत होते रहते हैं। वहां के मान्त्रिक ऋतु परिवर्तन को भी प्रभावित करते देखे गये हैं। यह भी संकल्प शक्ति का चमत्कार है।
मलाया के राजा ‘परमेसुरी अगोंग’ की पुत्री राजकुमारी शरीफा साल्वा के विवाह की तैयारियां बहुत धूम-धाम से की गईं। उत्सव बहुत शानदार मनाया जाना था। किन्तु विवाह के दिन घनघोर वर्षा आरम्भ हो गई और सर्वत्र पानी भरा नजर आने लगा। अब उत्सव का क्या हो? निदान रहमान नामक एक तान्त्रिक महिला राजकीय सम्मान के साथ बुलाई गई और उससे वर्षा रोकने के लिए कुछ उपाय, उपचार करने के लिए कहा गया। फलतः एक आश्चर्य चकित करने वाला प्रतिफल यह देखा गया कि पानी तो उस सारे क्षेत्र में बरसता रहा पर समारोह के लिए जितनी जगह नियत थी उस पर एक बूंद पानी भी नहीं गिरा और उत्सव अपने निर्धारित क्रम के अनुसार ठीक तरह सम्पन्न हो गया। ठीक ऐसी ही एक और भी घटना उस देश में सन् 1964 में हुई थी। उन दिनों राष्ट्र मण्डलीय हाकी दल खेलने आया था और उसे देखने के लिए भारी भीड़ उपस्थित थी। दुर्भाग्य से नियत समय पर भारी वर्षा आरम्भ हो गई। कुआलालम्पुर नगर पर घनघोर घटाएं बरस रही थीं। अब खेल का क्या हो? मैदान पानी से भर जाने पर तो सूखना बहुत दिनों तक सम्भव नहीं हो सकता था। इस विपत्ति से बचने का उपाय वहां के मान्त्रिकों की सहायता लेना उचित समझा गया। अस्तु मलाया स्पोर्ट अध्यक्ष ने आग्रह पूर्वक रैम्वाऊ के जाने-माने मन्त्रिक को बुलाया। उसका प्रयोग भी चकित करने वाला रहा। खेल के मैदान पर एक अदृश्य छतरी तन गई और वहां एक बूंद भी न गिरी जब कि चारों और भयंकर वर्षा के दृश्य दिखाई देते रहे।
एक और तीसरी घटना भी अंतर्राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनी रही है। ‘दि इयर आफ दि ड्रैगन’ फिल्म की शूटिंग वहां चल रही थी। जिस दिन प्रधान शूटिंग होनी थी उसी दिन वर्षा उमड़ पड़ी, इस अवसर पर भी अब्दुल्ला बिन उमर नाम के मान्त्रिक की सहायता ली गई और शूटिंग क्षेत्र पूरे समय वर्षा से बचा रहा।
‘द रायल एस्ट्रीनामिकल सोसाइटी’ के तत्कालीन अध्यक्ष तथा अन्य प्रमुख लोगों ने श्री डनियल डगलस होम की विलक्षण कलाबाजियों का आंखों देखा विवरण लिखा है। प्रख्यात वैज्ञानिक, रेडियो मीटर के निर्माता, थीलियम व गोलियम के अन्वेषक सर विलियम क्रुक्स ने भी श्री डेनियल डगलस होम का बारीकी से अध्ययन कर उन्हें चालाकी से रहित पाया था।
इन करिश्मों में हवा में ऊंचे उठ जाना, हवा में चलना और तैरना, जलते हुए अंगारे हाथ में रखना आदि हैं। सर विलियम क्रुक्स अपने समय के शीर्षस्थ रसायन शास्त्री थे। उन्होंने भली-भांति निरीक्षण कर श्री डी.डी. होम की हथेलियों की जांच की, उनमें कुछ भी लगा नहीं था। हाथ मुलायम और नाजुक थे। फिर श्री क्रुक्स के देखते-देखते श्री डी.डी. होम ने धधकती अंगीठी से सर्वाधिक लाल चमकदार कोयला उठाकर अपनी हथेली में रखा और रखे रहे। उनके हाथ में छाले, फफोले कुछ भी नहीं पड़े।
‘रिपोर्ट आफ द डायलेक्टिकल सोसायटीज कमेटी आफ स्पिरिचुअलिज्म’ में लार्ड अडारे ने भी श्री होम का विवरण दिया है। आपने बताया कि एक ‘सियान्स’ में वे आठ व्यक्तियों के साथ उपस्थित थे। श्री डी.डी. होम ने दहकते अंगारे न केवल अपनी हथेलियों पर रखे, बल्कि उन्हें अन्य व्यक्तियों के भी हाथों में रखाया। सात ने तो तनिक भी जलन या तकलीफ के बिना उन्हें अपने हाथ में रखा। इनमें से 4 महिलाएं थीं। दो अन्य व्यक्ति उसे सहन नहीं कर सके। लार्ड अडारे ने ऐसे अन्य अनेक अनुभव भी लिखे हैं, जो श्री होम की अति मानसिक क्षमताओं तथा अदृश्य शक्तियों से उनके सम्बन्ध पर प्रकाश डालते हैं। इनमें अनेक व्यक्तियों की उपस्थिति में कमरे की सभी वस्तुओं का होम की इच्छा मात्र से थर-थराने लगना, किसी एक पदार्थ (जैसे टेबिल या कुर्सी आदि) का हवा में चार-छः फुट ऊपर उठ जाना और होम के इच्छित समय तक वहां उनका लटके रहना, टेबिल के उलटने-पलटने के बाद भी उस पर सामान्य रीति से रखा संगमरमर का पत्थर और कागज पेन्सिल का यथावत् बने रहना आदि है।
सर विलियम क्रुक्स ने भी एक सुन्दर हाथ के सहसा प्रकट होने, होम के बटन में लगे फूल की पत्ती को उस हाथ द्वारा तोड़े जाने किसी वस्तु के हिलने, उसके इर्द-गिर्द चमकीले बनने और फिर उस बादल को स्पष्ट हाथ में परिवर्तित होने तथा उस हाथ को स्पर्श करने पर कभी बेहद सर्द, कभी उष्ण और जीवंत लगने आदि के विवरण लिखे हैं।
विचारों की शक्ति का सामान्य जीवन में भी महत्व पूर्ण उपयोग होता रहता है। उन्हीं के आधार पर क्रिया-कलाप बनते हैं और तद्नुरूप परिणाम सामने आते हैं। बहिरंग व्यक्तित्व वस्तुतः मनुष्य के अन्तरंग की प्रतिक्रिया भर ही होता है। विचारों से समीपवर्ती लोग सहयोगी विरोधी बनते हैं। निन्दा और प्रशंसा के आधारों की जड़े अन्तःक्षेत्र में ही गहराई तक धंसी होती हैं। सामान्य स्तर की विचार-शक्ति भी जीवन का क्रम बनाती है, तो फिर विशेष स्तर की विचार-शक्ति जो योगाभ्यास के साधना विज्ञान के आधार पर तैयार की जाती है, चमत्कारी परिणाम उत्पन्न कर सके तो इसे अबुद्धिसम्मत नहीं कहा जा सकता। मन्त्र शक्ति के प्रयोगों में जहां दंभ और बहकावे की भी भरमार रहती है वहां ऐसे प्रामाणिक प्रसंगों की भी कमी नहीं होती जिनके आधार पर इस अलौकिकता का आधार समझ में न आने पर उसे अविश्वस्त नहीं कहा जा सकता।
कई बार ऐसा भी देखा गया है कि किन्हीं व्यक्तियों में वस्तुओं को विचार-शक्ति से प्रभावित करने की क्षमता अनायास ही पाई जाती है। उन्होंने कोई योगाभ्यास नहीं किया तो भी वे अदृश्य को देख सकने—अविज्ञान को जान सकने में समर्थ रहे। ऐसी विलक्षणता हर मनुष्य के अचेतन मन में मौजूद है। मानवी विद्युत सामान्यतया दैनिक क्रिया-कलापों में ही खर्च होती रहती है। पर यदि उसे बढ़ाया जा कसे तो कितने ही विलक्षण कर्म भी हो सकते हैं। साधना से दिव्य क्षमता बढ़ती है और उससे कितने ही प्रकार के असामान्य कार्य कर सकना सम्भव होता है। यह आध्यात्मिक उपलब्धियां अगले जन्मों तक साथ चली जाती हैं। ऐसे लोग बिना साधना के भी पूर्व संचित सम्पदा के आधार पर चमत्कारी आचरण प्रस्तुत करते देखे गये हैं। ऐसे ही लोगों में एक नाम यूरीगेलर का भी है।
अंग्रेजी भाषा की वैज्ञानिक पत्रिकाएं ‘नेचर’ और ‘न्यू साइन्टिस्ट’ विश्व विख्यात हैं। उनका सम्पादन और प्रकाशन विश्व के मूर्धन्य वैज्ञानिकों द्वारा होता है और उसमें प्रकाशित विवरणों को खोज युक्त एवं तथ्यपूर्ण माना जाता है। इन्हीं पत्रिकाओं में ‘यूरीगेलर के शरीर में पाई गई अतीन्द्रिय शक्ति के प्रामाणिक विवरण विस्तार पूर्वक छपे हैं।
यूरीगेलर अभी मात्र 40 वर्ष का है। उसका जन्म 20 दिसम्बर 1946 में तेलअबीब (इजराइल) में हुआ। उसकी माता जर्मन थीं। जब यह युवक साइप्रस में पढ़ता था तभी उसने अपने में कुछ विचित्रताएं पाई और उन्हें बिना किसी संकोच या छिपाव के अपने परिचितों को बताया, दिखाया। वह जब घड़ियों के निकट जाता तो सुईयां अकारण ही अपना स्थान छोड़कर आगे-पीछे हिलने लगतीं। स्कूल के छात्रों के सामने अपनी दृष्टि मात्र से धातुओं की बनी चीजों को मोड़कर ही नहीं तोड़कर भी दिखाया।
उसने खुले मैदान में बिना किसी पर्दे या जादुई लाग लपेट के—हर प्रकार के सन्देहों का—निवारण का अवसर देते हुए अनेक प्रदर्शन किये हैं। किसी को किसी चालाकी की आशंका हो तो वह यह अवसर देता है कि तथ्य को किसी भी कसौटी पर जांच लिया जाय उसे जादूगरों जैसे करिश्मे दिखाने का न तो अभ्यास है न अनुभव। ‘सम्मोहन’ कला उसे नहीं आती। जो भी वह करता है स्पष्टतः प्रत्यक्ष होता है। स्टैनफोर्ड रिसर्च इन्स्टीट्यूट द्वारा आयोजित परीक्षण गोष्ठियों में मूर्धन्य वैज्ञानिकों के सम्मुख वह अपनी कड़ी परीक्षा में पूर्णतया सफल होता रहा है। जर्मनी और इंगलैण्ड के प्रतिष्ठित पत्रकारों के सम्मुख उसने अपनी विशेषता प्रदर्शित की है और टेलीविजन पर उसके प्रदर्शनों को दिखाया गया है।
यूरीगेलर दूर तक अपनी चेतना को फेंक सकता है। वहां की स्थिति जान सकता है। इतना ही नहीं प्रमाण स्वरूप वहां की वस्तुओं को भी लाकर दिखा सकता है। उससे जब ब्राजील जाने और वहां की कोई वस्तु लाने के लिए कहा गया तो उसने वैसा ही किया और वहां का विवरण सुनाने के साथ-साथ ब्राजील में चलने वाले नोटों का एक बण्डल भी सामने लाकर रख दिया।
फिलाडेलफिया के दो वैज्ञानिकों के कक्ष में गेलर को मुलाकात देनी थी। उन प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के नाम हैं—आर्थर यंग और टेडबास्टिन। इन दोनों के सम्मुख भेंट देकर जब वे जीने से उतर कर नीचे की मंजिल में आये तो ऊपर के कमरे में रखी भारी मूर्ति भी नीचे उतर आई और उनके कन्धे पर बैठ गई।
पूछने पर गैलर ने बताया है कि यह क्षमता उन्हें बिना किसी प्रयास के अनायास ही मिली है। इन प्रदर्शनों में उन्हें तन्त्र-मन्त्र आदि कुछ नहीं करना पड़ता। अदृश्य दर्शन के लिए एक साधारण सा पर्दा खड़ा कर लेते हैं और उसी पर उतरते चित्रों को टेलीविजन की तरह देखते रहते हैं।
वह मेज पर रखे हुए धातुओं के बने मोटे उपकरणों को दृष्टि मात्र से मोड़ देने या तोड़ देने की विद्या में विशेष रूप से निष्णात् है। ऐसे प्रदर्शन वह घण्टों करता रह सकता है। सन् 1968 में उसने आंखों में मजबूत पट्टी बंधवा कर और ऊपर से सील कराकर इसराइल की सड़कों पर मोटर चलाई थी।
उसकी अदृश्य दर्शन की शक्ति भी अद्भुत है। उसकी माता को जुए का चस्का था। जब वह घर लौटती तो गैलर अपने आप ही बता देता कि वह कितना पैदा जीती या हारी है।
इसकी अतीन्द्रिय विशेषताओं का परीक्षण वैज्ञानिकों और अन्वेषकों की मण्डलियों के समक्ष कितनी ही बार किया गया किन्तु वह निर्भ्रान्त ही सिद्ध हुआ है। पदार्थ वैज्ञानिक अपनी हठ धर्मिता के कारण अभी यूरीगेलर की इच्छाशक्ति की सामर्थ्य को मान्यता नहीं देते पर इससे कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ता। जो प्रत्यक्ष है, उसे नकारा नहीं जा सकता।
‘‘स्ट्रेज हैपनिंग्स’ एवं ‘विटवीन टू वर्ल्ड’ पुस्तकों में ऐसी अनेकों घटनाओं का उल्लेख है, जैसी कि ऊपर वर्णित की गयीं, जिनमें इच्छा शक्ति के बल पर चमत्कारी प्रदर्शनों का वर्णन है।
इस सामर्थ्य को प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमण्ड फ्रायड ने किस प्रकार मान्यता दी, यह भी एक ऐतिहासिक विस्मयकारी प्रसंग है।
25 मार्च सन् 1909 की घटना है। मनोविज्ञान शास्त्र के पितामह फ्रायड से मिलने के लिए उनके समकालीन मनःशास्त्री जुंग गये। चर्चा का विषय परा मानसिक शक्ति का प्रभाव था। फ्रायड इस तरह की किसी विशेष मानसिक क्षमता पर विश्वास नहीं करते थे। जुंग ने अपने पक्ष के समर्थन में अपनी मनः क्षमता का एक विशेष प्रदर्शन किया। फ्रायड के कमरे में रखी वस्तुएं इस तरह थर-थराने लगीं मानो कोई तूफान उनकी उठक-पटक कर रहा हो। पुस्तकों की अलमारी में पटाखा फूटने जैसा धमाका हुआ। इससे फ्रायड चकित रह गये और उन्होंने अपनी असहमति का तुरन्त परित्याग कर दिया। उन्होंने माना कि मानवी मन विलक्षण है। उसमें विलक्षण सामर्थ्यों का भण्डागार है। एकाग्रचित्त हो, अपनी संकल्प शक्ति से वह कुछ भी कर दिखा सकता है।
विचार सम्प्रेषण की प्रक्रिया में भी संकल्प शक्ति का ही प्रयोग निहित है। दैनंदिन जीवन में भी उस सामर्थ्य का एक छोटा सा पक्ष देखने को मिलता है। कितने ही व्यक्ति दूसरों को अपनी बातों—अपने विचारों से प्रभावित कर असम्भव कार्य करा लेते हैं। इच्छानुरूप दिशा में दूसरों को मोड़ने में भी सफल हो जाते हैं यह इस बात का प्रमाण है कि वे प्रभावित व्यक्तियों की तुलना में कहीं अधिक संकल्पवान हैं।
वह शक्तिबीज प्रत्येक में विद्यमान है। उसे अंकुरित एवं विकसित किया जा सकता है। साधना के—तप तितीक्षा के छोटे-बड़े प्रयोग इसलिए किये जाते हैं कि किसी प्रकार संकल्प शक्ति के जगने एवं सुदृढ़ होने का अवसर मिले। भौतिक क्षेत्र में अभीष्ट स्तर की सफलता के लिए तद्नुरूप प्रयास करने पड़ते हैं। मनःक्षेत्र आत्मिकी की परिधि में आता है। किसी-किसी में संस्कारों वश सहज ही उभार आता है जबकि किसी-किसी को पुरुषार्थ साधना करनी पड़ती है। आवश्यकता अपने अंतः की इस सामर्थ्य को पहचानने, आत्मशोधन एवं आत्मविकास के प्रयोजन पूरे कर संकल्प शक्ति के सुनियोजन भर की है। जिन्हें भी चमत्कार के दर्शन को समझना हो परामनोविज्ञान के उपरोक्त तथ्यों एवं मानव की सूक्ष्म संरचना को ध्यान में रखना चाहिए।
मानवी मन की बनावट ही ऐसी है कि वह असामान्य वस्तुओं अथवा घटनाओं को देखकर उनके पीछे किसी अविज्ञात गुप्त शक्ति की कल्पना करता है। बिजली चमकने जैसी प्राकृतिक बात का ठीक कारण न मालूम होने से यह मान्यता मन में बिठाली गयी कि इन्द्र के हाथ में वज्र चमकता है। जो शरीर शास्त्र तथा आरोग्य विज्ञान से अनभिज्ञ हैं अथवा जिन क्षेत्रों में आधुनिक प्रगति नहीं हुई है, उनमें आज भी यह विश्वास प्रचलित है कि बीमारियां, महामारियां किसी देवी देवता के प्रकोप से पैदा होतीं तथा उनकी अनुकम्पा से ही दूर हो सकती हैं। विभिन्न प्रकार के रोगों के उपचार के लिए उनमें भूतों जिन्नों प्रेतों देवियों को भगाने वाले ओझा अभी भी पिछड़े हुए समाजों में पाये जाते हैं, पर विज्ञान की कसौटी पर उनकी मान्यताओं को मूर्खतापूर्ण माना जाता है तथा यह समझा जाता है कि उस समाज में घटनाओं की समीक्षा करने की बुद्धि संगत कसौटी का अभाव है। पर विज्ञ समाज में ये अन्धविश्वास नहीं पाये जाते।
अभी कुछ दशकों पूर्व तक प्रकृति की अनेकानेक घटनाएं रहस्यमय बनी हुई थी जिसे भारी आश्चर्य की दृष्टि से देखा जाता रहा है बारमूड़ा त्रिकोण की घटना अभी कल परसों की है जहां कि सैकड़ों जलयान, वायुयान यात्रियों समेत गायब होते हैं जिनका कोई अता पता अब तक नहीं मिल सका है। उसके साथ अनेकों किम्वदन्तियां जुड़ गयीं। किसी अन्यान्य ग्रह के लोगों के कारनामे, देवता का प्रकोप आदि मानकर सन्तोष किया जाता रहा, पर विज्ञान की नवीनतम खोजों ने उन सभी मान्यताओं को झुठलाकर यह सिद्ध कर दिया कि वह भी एक प्रकार का ब्लैक होल है। ऐसे केन्द्र एक ही सीध में पृथ्वी पर आठ स्थानों पर हैं उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर भी दो केन्द्र हैं। अन्तरिक्ष में असंख्यों की संख्या में ब्लैक होल मौजूद हैं इनकी आकर्षण शक्ति अत्याधिक प्रचण्ड है। हाथी जैसे विशालकाय जीव भी उसके आकर्षण से तिनके की तरह खिंचते हुए चले आते हैं। उस प्रचण्ड आकर्षण शक्ति के कारण ही जलयान, वायुयान बारमूडा त्रिकोण नामक स्थान पर जाकर गायब होते रहे। ऐसे प्रकृति रहस्यों की संख्या असंख्यों है, जिनके विषय में आधुनिक विज्ञान को भी कुछ ज्ञान नहीं है, पर समझा जाता है कि उनके रहस्योद्घाटन में लगे वैज्ञानिक उन रहस्यों को उजागर करने में अगले दिनों समर्थ होंगे। पर जब तक कि प्रकृति की उन विलक्षणताओं का कारण नहीं ज्ञात हो जाता, तब तक के लिए वे रहस्य हैं।
सृष्टि का दूसरा घटक चैतन्य है, वह जड़ प्रकृति की तुलना में कहीं अधिक सामर्थ्यवान अधिक विलक्षण है। जीवधारियों के भीतर उस चेतना का छोटा अंश कार्य करता, अनेकों प्रकार के अचम्भित करने वाले करतब दिखाता देखा जा सकता है। प्रकृति की तुलना में चेतना के अन्तराल में बहुमूल्य उपलब्धियों के भाण्डागार मौजूद हैं, जिन्हें प्राप्त करके असम्भव समझे जाने वाले कार्यों को भी सम्भव बनाया जा सकता है।
उपलब्धियों को करतलगत करने की एक सशक्त प्रयोगशाला मानवी काया के रूप में हर व्यक्ति को मिली हुई है। वह इतनी विलक्षण तथा उपयोगी यन्त्रों से सुसज्जित है, जितनी प्रकृति की अन्य कोई भी संरचना नहीं है। शरीर, बुद्धि, मन, अन्तःकरण में से प्रत्येक को विभिन्न आयाम समझा जा सकता है। अभी मानवी विकास की सीमा ‘‘मैटर’’ तक सीमित है। शरीर और बुद्धि भी इसी सीमा के अन्तर्गत आते हैं। बुद्धि का वह हिस्सा जो अधिक समर्थ है चैतन्य है जिसे वैज्ञानिक 93 प्रतिशत मानते हैं, इन्ट्यूशन प्रज्ञा का है, वह अविज्ञात का क्षेत्र है। सात प्रतिशत का ही समस्त व्यापार अनेकानेक वैज्ञानिक उपलब्धियों के रूप में परिलक्षित हो रहा है। बोलचाल की भाषा में जिसे मन कहा जाता है, उसकी अति नगण्य जानकारी मनुष्य को है। आधुनिक मनोविज्ञान को भी अपनी खोजों द्वारा जो प्राप्त हुआ है, वह अत्यल्प है। उसकी गहरी परतों की सामर्थ्यों का कुछ भी ज्ञान मनोविज्ञान का नहीं है। इसी क्षेत्र में अगणित रहस्यों की चाबी छुपी हुई है। अतीन्द्रिय सामर्थ्य के रूप में प्रख्यात शक्तियां इसी के अन्तराल से उपजती तथा किन्हीं-किन्हीं महापुरुषों में प्रकट होती दिखायी पड़ती हैं। इच्छा शक्ति के चमत्कृत कर देने वाले, कौतूहलवर्धक कृत्य आये दिन देखे जाते हैं। वह और कुछ भी नहीं मन की एकाग्रता का एक छोटा-सा पक्ष है। इसी की एक छोटी सामर्थ्य हिप्नोटिज्म को पश्चिमी मनःशास्त्रियों ने भी मान्यता दे दी है, उसके अभ्यास एवं सामर्थ्य के विकास के लिए कितने ही विद्यालय भी खुल गये हैं।
अमरीका के विस्कासिन विश्वविद्यालय में हिप्नोटिज्म, योग की विधिवत् शिक्षा दी जाने लगी है। वाशिंगटन विश्वविद्यालय में अतीन्द्रिय सामर्थ्य पर शोध कार्य चल रहा है। बोस्टन के एक महाविद्यालय में एक रहस्यमय विद्या पढ़ायी जा रही है—‘द रिटोरिक आफ डस्क’ (कोहरे की मूक भाषा) ओकलैंड विश्वविद्यालय में इच्छा शक्ति तथा प्राण शक्ति के प्रयोग उपचार चल रहे हैं। कैलिफोर्निया विश्व विद्यालय के प्रो. इडेन का मत है कि भोगवादी संस्कृति से ऊबा हुआ मनुष्य राहत के लिए किसी अतिमानवी सामर्थ्य की खोज में भटक रहा है। पश्चिम के व्यक्ति में एक ऐसी व्याकुलता पैदा हो गयी है जो अनायास ही उसे पूरब की आध्यात्मिक विशेषताओं की ओर आकर्षित कर रही है।
अतीन्द्रिय क्षमताओं एवं अलौकिक घटनाओं के प्रमाण अब इतनी अधिक संख्या में सामने आने लगे हैं कि इसका कारण ढूंढ़ने के लिए मनीषा को विवश होना पड़ा है। कभी यह बातें अन्धविश्वास या किम्वदन्ती कहकर ‘हंसी’ में उड़ाई जा सकती थी। किन्तु अब और विश्वस्त परीक्षण की कसौटी पर खरे उतरने वाले प्रमाणों की संख्या इतनी अधिक है कि उन्हें झुठलाया नहीं जा सकता। ऐसी दशा में प्रकृति के विज्ञात नियमों से आगे बढ़कर यह देखना पड़ रहा है कि इन रहस्यों के पीछे किन सिद्धान्तों एवं कारणों का समावेश है।
बीस बाईस वर्ष पूर्व तक रूस में टेलीपैथी को जादूगरी और धोखाधड़ी की संज्ञा दी जाती थी तथा उसका तिरस्कार पूर्वक उपहास उड़ाया जाता था। इस सम्बन्ध में कहा जाता था कि विचार सम्प्रेषण के लिए मस्तिष्क में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें चाहिए जब कि वहां उनका कोई अस्तित्व नहीं है। ऐसी दिशा में इस प्रकार की कोई संभावना विज्ञान स्वीकार नहीं कर सकता। इस प्रतिपादन के अग्रणी वैज्ञानिक अलेक्जेंडर किताई गोरोरस्की ने पीछे अपने विचार बदल दिये। विचार बदलने का कारण यह था कि आगे चलकर उन्होंने कई परामनोवैज्ञानिक शोधों का निकट से अध्ययन किया और जो तथ्य सामने आए उनके अनुसार अपनी पूर्व धारणाओं की गलती को ईमानदारी के साथ स्वीकार कर लिया। अब रूस इस शोधकार्य में सबसे आगे है। ‘साइकिक डिसकवरीज बिहाइण्ड आयरन करटेन’ पुस्तक में ऐसे अनेकों परामनोवैज्ञानिकों व उनके कार्यों का उल्लेख है। यह विधा वहां अच्छी खासी प्रतिष्ठा पा चुकी है।
अब मूर्धन्य मनःशास्त्रियों तथा वैज्ञानिकों ने पाश्चात्य जगत में भी परामानसिक शक्तियों का अस्तित्व स्वीकार कर लिया है। न्यूयार्क विश्वविद्यालय के मनःशास्त्री डा. मेहलान वैगनर ने एक सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें उल्लेख है कि अमरीका के 9 प्रतिशत विचारशील व्यक्ति अतीन्द्रिय शक्ति को एक वास्तविकता, 45 प्रतिशत एक प्रबल सम्भावना मानते हैं। फ्रांस, हालैण्ड, चैकोस्लोवाकिया, प. जर्मनी आदि के वैज्ञानिक भी परामानसिक शक्ति को एक सच्चाई के रूप में स्वीकार करने लगे हैं। प्रिंसटन विश्व विद्यालय के डा. राबर्ट डीन मानसिक शक्ति का पदार्थों पर प्रभाव का अध्ययन गम्भीरता से कर रहे हैं। नोबुल पुरस्कार विजेता डा. ब्रायन जोसेफसन के अनुसार परामनोविज्ञान के नये क्षेत्र के आविष्कार के बाद भौतिकी की नयी परिभाषा देनी होगी रूसी प्रोफेसर लियोनिद वासिलयेव ने हिप्नोटिज्म तथा टेलीपैथी पर अनेकों प्रकार के प्रयोग किये हैं। अपने अनुसन्धान निष्कर्ष में उन्होंने बताया है कि सुविकसित मानव मस्तिष्क विचार प्रसारण केन्द्र को सफल भूमिका सम्पन्न कर सकता है।
अति मानसिक शक्तियों के प्रति बढ़ती हुई मानवी अभिरुचि मनुष्य की उस सहज जिज्ञासा का परिचय देती है जो मात्र उथली बुद्धि के सहारे चेतना क्षेत्र के रहस्यों को जानना एवं पाना चाहती है। उन्हें चमत्कारिक इसलिए भी समझा जाता रहा है क्योंकि विज्ञान की यान्त्रिक तथा बुद्धि की पकड़ सीमा से वे बाहर हैं। उन्हें जानने, सामर्थ्यों को करतलगत करने की विद्या बुद्धि तथा उसके द्वारा अविष्कृत विज्ञान के पास नहीं है, हो भी नहीं सकती। कारण कि बुद्धि का क्षेत्र तर्क, विज्ञान का मैटर है। पदार्थ एवं तर्क से परामानसिक शक्तियां परे हैं। उनका भी एक विज्ञान है, वह विज्ञान भौतिक विज्ञान के नियमों पर नहीं, चेतना विज्ञान के नियमों पर आधारित है। ‘साइन्स आफ सोल’ आत्म विज्ञान के नाम से वह अध्यात्म जगत में जाना जाता है।
एक तथ्य सुनिश्चित रूप से जानना आवश्यक है कि पदार्थ विज्ञान की तरह चेतना विज्ञान के भी निश्चित नियम एवं विधान हैं। चमत्कार जैसी किसी कला का उस विधा में कोई स्थान नहीं है। बुद्धि उन्हें समझ नहीं पाती, इसलिए वह चमत्कार प्रतीत होता है। अन्यथा सब कुछ एक निर्धारित सिद्धान्त से परिचालित है। साथ ही यह बात भी हृदयंगम करने योग्य है कि हाथ पर सरसों जमाना, वस्तुएं मंगा देना, बाल से भभूत निकालना जैसी बाल-क्रीड़ाओं का अतीन्द्रिय सामर्थ्य से कोई सम्बन्ध नहीं है। बाजीगरी के वे कृत्य सिद्धियों के नाम पर जहां कहीं भी आते हों, समझना चाहिए वहां अवश्य ही धूर्तता का समावेश है। अतीन्द्रिय सामर्थ्य का प्रत्यक्ष स्वरूप बढ़े हुए संकल्पबल, प्राण शक्ति, वाक् शक्ति के रूप में उभर कर सामने आता तथा परिष्कृत-प्रखर व्यक्तित्व के रूप में अपना परिचय देता है। प्राण बल, संकल्पबल, विचारबल ही समीपवर्ती तथा दूरवर्ती वातावरण तथा सम्बद्ध व्यक्तियों को प्रभावित करता उन्हें जबरन अभीष्ट दिशा में चल पड़ने को बाध्य करता है।
संकल्प बल की चमत्कारी शक्ति—
संकल्पबल की शक्ति असीम है। जिन्हें ‘‘चमत्कार’’ संज्ञा दी जाती है वे इच्छा शक्ति द्वारा अंदर छिपी प्रसुप्त पड़ी विभूतियों का जागरण भर है। उन्हें हर कोई जगा सकता है। ऐसे अनेकों उदाहरणों से गत कुछ दशकों की पुस्तकें रंगी पड़ी हैं जिनमें प्रत्यक्षतः चमत्कारी किन्तु परोक्ष रूप से अतीन्द्रिय सामर्थ्यों की जागृति की परिणति रूप में सामान्य व्यक्तियों के माध्यम से घटना क्रम सम्पन्न हुए।
सन् 1910 की बात है। जर्मनी में एक ट्रेन में एक सोलह वर्षीय किशोर यात्रा कर रहा था। घर से भाग कर वह कहीं दूर जाना चाहता था। पैसे के अभाव में वह टिकट न ले सका। टिकट निरीक्षक को देखते ही उसने सीट के नीचे छिपने की कोशिश की। पर वह टिकट निरीक्षक की निगाहों से बच न सका। उसने किशोर से टिकट मांगा। टिकट तो उसके पास था नहीं। पास में अखबार का टुकड़ा पड़ा था। किशोर ने उसे हाथ में उठाया, मन में संकल्प किया कि यह टिकट है और उसने टिकट निरीक्षक के हाथों में वह टुकड़ा, थमा दिया। मन ही मन यह संकल्प दुहराता रहा हे परमात्मा उसे वह कागज का टुकड़ा टिकट दिखायी पड़ जाय। उसके आश्चर्य का तब टिकाना न रहा जब देखा कि निरीक्षक ने उस कागज के टुकड़े को वापस लौटाते हुए यह कहा कि—‘क्या तुम पागल हो गये हो। तुम्हारे पास जब टिकट है तो सीट के नीचे छिपने की आवश्यकता क्या है?’
‘‘एबाउट माई सेल्फ’’ पुस्तक में बुल्फ मैसिंग नामक एक रशियन परामनोवैज्ञानिक उपरोक्त घटना का उल्लेख करते हुए लिखता है कि ‘‘उस दिन से मेरा पूरा जीवन बदल गया। पहले मैं अपने आप को असमर्थ, असहाय तथा मूर्ख मानता था पर उस घटना के बाद यह विश्वास पैदा हुआ कि मेरे भीतर कोई महान शक्ति सोयी पड़ी है जिसे जगाया—उभारा जा सकता है। उन प्रयत्नों में मैं प्राणपण से लग गया तथा सफल भी रहा।’’
सन 1910 से 1950 तक मैसिंग को दुनिया भर में ख्याति मिली। उसकी संकल्प शक्ति की विलक्षणता का परीक्षण अनेकों बार विशेषज्ञ वैज्ञानिकों के समक्ष किया गया। स्टालिन जैसा मनोबल सम्पन्न व्यक्ति भी मैसिंग से डरने लगा। भयभीत होकर स्टालिन ने उसे गिरफ्तार करा लिया। स्टालिन को सुनी हुई बातों पर विश्वास न था। मैसिंग की परीक्षा उसने स्वयं ली। उसने मैसिंग से कहा—‘‘तुम मेरे सामने अपनी सामर्थ्य का परिचय दो।’ वह सहर्ष इसके लिए राजी हो गया।
स्टालिन ने आदेश दिया—‘‘बन्द कमरे से कल दो बजे तुम्हें छोड़ा जायेगा। एक व्यक्ति तुम्हें मास्को के एक बड़े बैंक में ले जायेगा तुम्हें बैंक के कैशियर से एक लाख रुपये निकलवा कर लाना होगा। पर ध्यान रहे—तुम मात्र अपनी वाणी का प्रयोग कर सकते हो—किसी शस्त्र का नहीं।’’
दूसरे दिन पूरी बैंक को सैनिकों से घिरवा दिया गया। दो व्यक्ति पिस्तौलें लिए छद्म वेश में मैसिंग के पीछे-पीछे चल पड़े ताकि वह किसी प्रकार की चाल न चल सके। ट्रेजरर के सामने उसे खड़ा कर दिया गया। मैसिंग ने जेब से एक कोरा कागज निकाला—एकाग्र नेत्रों से देखा तथा ट्रेजरर को दे दिया। ट्रेजरर गौर से उस कागज को उलट-पुलट कर देखकर आश्वस्त हो गया कि वह एक चैक है एवं सही है। उसे अपने पास रखकर उसने एक लाख रुपये मैसिंग को दे दिए। उसे लेकर वह स्टालिन के पास पहुंचा तथा सौंप दिया। सारा विवरण जानकर स्टालिन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
इतने पर भी स्टालिन को उसकी संकल्प शक्ति पर पूर्ण विश्वास न हुआ। उधर मैसिंग वह धनराशि लेकर खजांची के पास पहुंचा—पूरी बात बतायी। उसने चैक समझकर रखे हुए कागज को दुबारा देखा तो वह अब मात्र कोरा कागज था। धन राशि को वापस करते हुए मैसिंग ने खजांची से कहा—‘‘महोदय! क्षमा करें, यह संकल्प शक्ति का एक छोटा-सा प्रयोग था। आपको इसका दण्ड न भुगतना पड़े, इस कारण लौटाने आया।’ वह क्लर्क इस घटना से इतना अधिक हतप्रभ हुआ कि उसे हार्ट अटैक का दौरा पड़ा और कई दिनों तक भयावह सपने आते रहे।
इस रहस्य की और भी पुष्टि करने की दृष्टि से उधर स्टालिन ने मैसिंग को दूसरा आदेश दिया कि सैनिकों की देख-रेख में बन्द कमरे से निकलकर वह ठीक बारह बजे रात्रि को स्टालिन से मिले। स्टालिन के लिये सैनिकों की कड़ी सुरक्षा वैसे भी रखी जाती थी लेकिन यह व्यवस्था और कड़ी कर दी गयी ताकि किसी प्रकार मैसिंग निकलकर स्टालिन तक पहुंचने न पाये। पर इन सबके बावजूद भी निर्धारित समय पर वह स्टालिन के समक्ष पहुंचकर मुस्कराने लगा। स्टालिन को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। पर जो सामने घटित हुआ था उससे इन्कार भी कैसे कर सकता था? भय मिश्रित स्वर में उसने मैसिंग से पूछा कि यह असम्भव कार्य तुमने किस प्रकार—किस शक्ति के सहारे किया थोड़ा विस्तार में बताओ।
मैसंग बोला—यह और कुछ भी नहीं संकल्प बल का एक छोटा चमत्कार है। मैंने मात्र इतना किया कि मन को एक विचार एक लक्ष्य के लिए एकाग्र किया। तत्पश्चात दरवाजे पर आकर सैनिक से निर्देश के स्वर में बोला—‘‘मैं बेरिया हूं’’ ज्ञातव्य है कि बेरिया को रूसी फौज का सबसे बड़ा अधिकारी, स्टालिन के बाद सर्व शक्तिमान अधिकारी माना जाता था।
आपसे मिलने की इच्छा जाहिर करते ही सैनिकों की पहली कतार ने मुझे एक कमरे का नम्बर बताया। वहां पहुंचने पर मैंने पुनः अपना परिचय पहले की भांति दिया। सुरक्षा पर तैनात सैनिकों ने एक दूसरे दिशा वाले कमरे की ओर संकेत किया। वहां भी सशस्त्र सैनिकों की एक टोली मौजूद थी। जनरल बेरिया का नाम सुनकर व उन्हें प्रत्यक्ष सामने देखकर उन सैनिकों ने भी अभिवादन करते हुए आगे का रास्ता बताया। इस प्रकार सैनिकों की सात टोली पार करने के बाद निश्चित रूप से यह मालूम हुआ कि आप कहां हैं। अपना पूर्व की भांति परिचय देकर मैं यहां आ सकने में सफल हुआ।
मैसिंग के द्वारा स्टालिन को एक नया सूत्र हाथ लगा कि मनुष्य के भीतर कोई ऐसी अविज्ञात शक्ति विद्यमान है जो प्रत्यक्ष सभी आयुधों से भी अधिक समर्थ है। उसके द्वारा असम्भव स्तर के कार्य भी पूरे किये जा सकते हैं। स्टालिन ने मैसिंग की अतीन्द्रिय सामर्थ्य के परीक्षण के लिए एक दूसरे मनःशास्त्री इवान नैमोर को नियुक्त किया जो अपने समय का मनोविज्ञान का मूर्धन्य विशेषज्ञ माना जाता था। लम्बे समय तक उसने मैसिंग का अध्ययन किया। अन्ततः उसने घोषणा की कि मन की अचेतन शक्ति चेतन की तुलना में अधिक सबल है। उसे उभारकर अच्छे-बुरे दोनों ही तरह के काम लिए जा सकते हैं। मैसिंग के भीतर का अचेतन प्रचण्ड रूप से जागृत है। उसी के माध्यम से वह प्रचण्ड संकल्प की प्रेरणा देकर दूसरों को सम्मोहित कर लेता है तथा अपने प्रयोजन में सफल हो जाता है। यह उसकी जागृत अतीन्द्रिय शक्ति ही है।
काशी के प्रसिद्ध सन्त और सिद्धयोगी स्वामी विशुद्धानन्द ने अपने एक शिष्य के साथ दो अन्य व्यक्ति भी थे, उन्होंने तीनों शिष्यों की जिज्ञासा का समाधान करते हुए कहा ‘देखो इच्छाशक्ति के विषय में मैं तुम्हें एक प्रयोग बताता हूं। तुम तीनों अपने हाथ की मुट्ठी बांध लो और उसमें रखने लायक किसी भी वस्तु की इच्छा करो।’ तीनों शिष्य मुट्ठी बांधकर स्वामीजी के निर्देशानुसार मनचाही वस्तु की इच्छा करने लगे। कुछ देर बाद स्वामी जी ने कहा—‘मुट्ठी खोल कर देखो तुम्हारी वस्तु मुट्ठी में आ गयी है या नहीं।’ तीनों शिष्यों ने मुट्ठी खोल कर देखा तो वह पहले जैसी ही खाली मिली। बाबा ने फिर कहा—एक बार और मुट्ठी बांधो तथा पुनः अपनी इच्छित वस्तु का चिन्तन करो। तुम लोगों ने यह तो देख लिया कि मात्र इच्छा से कुछ नहीं होता। अब मैं तुम्हारी इच्छा में शक्ति का संचार करता हूं। तीनों शिष्यों ने फिर मुट्ठियां बन्द कर लीं। बाबा के कहने पर जब उन्होंने पाया तो तीनों की मुट्ठियों में इच्छित वस्तुएं विद्यमान थीं।
इस घटना की व्याख्या में सिद्ध योगी ने अपने शिष्यों को बताया—‘तुम्हारी इच्छा और मेरी शक्ति दोनों मिलकर ही इच्छा शक्ति के रूप में परिणत हो गयीं। जब तुम स्वयं अपनी शक्ति का विकास कर लोगे तो तुम्हें इस शक्ति संचार की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।’’
जहां कहीं भी कभी चमत्कारी घटनाओं के विवरण मिलते हैं, इच्छा शक्ति ही उनके मूल में विद्यमान रहती है। अमेरिका के ‘मिशिगन पैरासाइकिक रिसर्च सेण्टर’ ने इस प्रकार की कितनी ही घटनाओं के विवरण संकलित किये और उनकी वास्तविकता की जांच की। रिसर्च सेण्टर द्वारा खोज के लिए चुनी गई घटनाओं में से कई निराधार और झूठ थी परन्तु ऐसी भी कितनी ही घटनायें निकलीं जिनसे इच्छा शक्ति के चमत्कारों तथा उसके विकास सम्बन्धी नियमों के बारे में नयी जानकारियां मिलीं।
न केवल अमेरिका वरन् रूस में भी जहां स्थूल से परे किसी वस्तु या शक्ति का अस्तित्व पहली ही प्रतिक्रिया में झूठ, और फ्रॉड समझा जाता है, ऐसे कई व्यक्ति हैं जो अपनी इच्छा शक्ति की अद्भुत सामर्थ्य का वैज्ञानिक परीक्षण करवाने में भी निस्संकोच आगे आये। रूस की महिला श्रीमती मिखाइलोवा अपनी अतीन्द्रिय सामर्थ्य के लिए विख्यात है। एक रात्रि भोज में, जिसमें प्रसिद्ध रूसो पत्रकार बादिम मारिम भी उपस्थित थे लोगों के आग्रह पर मिखाइलोवा ने कुछ चमत्कार प्रस्तुत कर उपस्थित लोगों को हैरत में डाल दिया। वादिम मारिन ने अपने पत्र के ताजे अंक में उस प्रदर्शन के बारे में लिखा—‘वहां मेज पर कुछ दूर एक डबल रोटी रखी थी। उन्होंने उसकी ओर निर्निमेष दृष्टि से देखना आरम्भ किया। कुछ ही क्षणों के पश्चात् डबल रोटी उनकी ओर सरकने लगी जैसे ही डबलरोटी उनके निकट आती वैसे ही श्रीमती मिखाइलोवा ने झुककर थोड़ा मुंह खोला और वह डबल रोटी उनके खुले मुंह में पहुंच गयी।
रूस के ही एक दूसरे मनश्चिकित्सक डा. बैन्शनोई अपनी अलौकिक शक्ति के लिए विख्यात हैं। वे किसी भी वस्तु को केवल दृष्टि केन्द्रित कर उसे अपने स्थान से हटा सकते हैं और किसी खाली पात्र को दूध या किसी अन्य वस्तु से परिपूर्णतः कर सकते हैं। इन बातों पर रूस में अभी तक बहुत कम विश्वास किया जाता है। इसलिए कुछ वैज्ञानिकों ने वैन्शनोई की परीक्षा लेने का कार्यक्रम बनाया वैज्ञानिकों ने हर तरह से डा. बैन्शनोई के प्रत्येक कार्यक्रम की परीक्षा ली और उनको बारीकी से जांचा परन्तु कहीं कोई धोखा-धड़ी या हाथ की सफाई नहीं दिखाई दी।
डा. नैन्डोर फीडोर ने एक पुस्तक लिखी है, ‘बिटबीन टूवर्ल्डस्’ इस पुस्तक में उन्होंने कितनी ही ऐसी घटनाओं का उल्लेख किया है जिनके मूल में स्थूल मानवीय सामर्थ्य से परे कोई शक्ति काम करती थी इसमें उन्होंने अमेरिका की एक घटना दी है।
अमेरिका के प्रसिद्ध मनोविज्ञान-शास्त्री डा. राल्फ-एलेक्जेण्ड ने सन् 1951 में मेक्सिको सिटी में कई विद्वानों एवं वैज्ञानिकों के समक्ष अपनी इच्छाशक्ति के प्रयोग द्वारा मेघ रहित आकाश में 12 मिनट के अन्दर बादलों को पैदा करके कुछ बूंदा-बांदी भी करा दी थी। उस समय तो उपस्थित लोगों ने डा. राल्फ की शक्ति को एक संयोग मात्र कह दिया। इन्हीं डा. राल्फ ने सन् 1954 में फिर 12 सितम्बर को ओण्टैरियो नामक स्थान पर खुलेआम प्रदर्शन करने का निश्चय किया। पचासों वैज्ञानिक पत्रकार नगर के वरिष्ठ अधिकारी एवं मेयर भी उपस्थित थे। प्रामाणिकता की कसौटी के लिए तेज फोटो खींचने वाले कैमरे भी लगा दिये गये थे।
दर्शकों ने आसमान में छाये बादलों में से जिस बादल पट्टी को हटाने के लिए कहा—डा. एलेक्जेण्डर ने आठ मिनट के भीतर उसको अपनी दृष्टि जमाकर गायब करके दिखा दिया। कैमरों ने भी बादल हटने के ही चित्र दिये। लोग इसे संयोग मात्र न समझें, इसलिए उन्होंने यह प्रयोग तीन बार दुहराकर दिखाया, तब वहां के सभी प्रमुख समाचार पत्रों ने इस समाचार को ‘‘क्लाउड डेस्ट्रायड बाई डॉक्टर’’ (बादल डॉक्टर द्वारा नष्ट किए गए) का शीर्षक देकर सुर्खियों के साथ प्रकाशित किया था। उपरोक्त प्रदर्शन पर टिप्पणी करते हुए एक प्रसिद्ध विज्ञानी ऐलेन एप्रागेट ने ‘‘साइकोलोजी टुडे’’ पत्रिका में एक विस्तृत लेख छाप कर यह बताया कि मनुष्य की इच्छा शक्ति अपने ढंग की एक सामर्थ्यवान विद्युत धारा है और उसके आधार पर प्रकृति की हलचलों को प्रभावित कर सकना पूर्णतया सम्भव है। इसे जादू नहीं समझना चाहिए।
इच्छा शक्ति द्वारा वस्तुओं को प्रभावित करना अब एक स्वतन्त्र विज्ञान बन गया है, जिसे साइकोकाइनेसिस (पी.के.) कहते हैं। इस विज्ञान पक्ष का प्रतिपादन है कि ठोस दीखने वाले पदार्थों के भीतर भी विद्युत अणुओं की तीव्रगामी हलचलें जारी रहती हैं। इन अणुओं के अन्तर्गत जो चेतना तत्व विद्यमान हैं उन्हें मनोबल की शक्ति तरंगों द्वारा प्रभावित, नियन्त्रित और परिवर्तित किया जा सकता है। इस प्रकार मौलिक जगत पर मनःशक्ति के नियन्त्रण को एक तथ्य माना जा सकता है।
अमेरिका के ही ओरीलिया शहर में इन डा. एलेक्जेंडर राल्फ ने एक शोध संस्थान खोल रखा है, जहां वस्तुओं पर मनःशक्ति के प्रभावों का वैज्ञानिक अध्ययन विधिवत किया जा रहा है। कई शोधकर्ता और विद्यार्थी इस संस्थान में शोध निरत हैं। डॉ. एलेक्जेण्डर राल्फ ने एक पुस्तक भी लिखी है—‘पावर आफ माइण्ड’। इसमें उन्होंने इच्छाशक्ति संबंधी विभिन्न प्रमाण दिए हैं। एक स्थान पर उन्होंने लिखा है कि प्रगाढ़ ध्यान-शक्ति द्वारा एकाग्र मानव-मन शरीर के बाहर स्थित सजीव एवं निर्जीव पदार्थों पर भी इच्छानुकूल प्रभाव डाल सकता है। राल्फ का कहना है कि यह एक निर्विवाद तथ्य है कि इच्छा-शक्ति द्वारा स्थूल जगत पर नियंत्रण सम्भव है।
इलेक्ट्रानिक ब्रेन के निर्माण की प्रक्रिया में ज्ञात तथ्यों द्वारा वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अवचेतन मन एक सशक्त कम्प्यूटर की तरह कार्य करता है और जिस तरह एक कम्प्यूटर में की गई फीडिंग के अनुसार ही वह क्रियाशील होता है, उसी तरह अवचेतन भी अपना आहार हमारे विचारों तथा संकल्पों से प्राप्त करता है। इस तरह अवचेतन की दिशा मनुष्य की इच्छाओं से ही प्रभावित होती है। स्पष्ट है कि इस अवचेतन पर व्यक्ति प्रयास द्वारा पूर्ण नियन्त्रण पा सकता है और तब सभी अलौकिक लगने वाले काम कर सकता है।
व्यक्ति स्वयं अपना विद्युत-चुम्बकीय बल-क्षेत्र या गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र विकसित कर सकता है, ऐसा वैज्ञानिक मानने लगे हैं। पर उसका आधार एवं प्रक्रिया अभी तक वे नहीं जान पाये हैं। मनुष्य चलता-फिरता बिजलीघर है। उसका भीतरी समस्त क्रिया-कलाप स्नायु जाल में निरन्तर बहते रहने वाले विद्युत प्रवाह से ही सम्पादित होता है। बाह्य जीवन में ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों द्वारा जो विभिन्न प्रकार की हलचलें होती हैं उनमें खर्च होने वाली ऊर्जा वस्तुतः मानव विद्युत-शक्ति ही होती है। रक्त आदि रसायन तो मात्र उसके निर्माण में ईंधन भर का काम देते हैं।
व्यक्ति के बिजली, भाप, तेल जैसे साधनों में ही अब विचार शक्ति को भी स्थान मिलने जा रहा है। अध्यात्म शास्त्र में तो आरम्भ से ही विचारों को ऐसा समर्थ तत्व माना है जो न केवल अपने उद्गमकर्त्ता को वरन् पूरे सम्पर्क क्षेत्र को भी प्रभावित करता है। इतना ही नहीं उससे दूरवर्ती एवं अपरिचित प्राणियों तथा पदार्थों तक को प्रभावित किया जा सकता है।
टेलीपैथी के एक प्रयोगकर्त्ता इङ्गलैण्ड के ए.एन. क्रीरी ने बहुत समय तक यह प्रयोग चलाया कि बन्द कमरे में क्या हो रहा है इसकी जानकारी प्राप्त की जाय। इस प्रयोग में एक महिला अधिक दिव्यदृष्टि सम्पन्न सिद्ध हुई।
क्रीरी ने अपने प्रयोगों की सचाई जांचने के लिए अनेक प्रामाणिक व्यक्तियों से अनुरोध किया। जांचने वालों में डबलिन विश्व विद्यालय के प्रो. सर विलियम बैरट इंगलैण्ड की सोसाइटी फॉर साइकिकल रिसर्च के प्रधान प्रो. सिजवि जैसे मूर्धन्य लोग थे। उन्होंने कई तरह से उलट-पलटकर इन प्रयोगों को देखा और उन प्रयोगों के पीछे निहित सचाई को स्वीकारा। इन प्रयोगों की जांच का विवरण ‘विचार संप्रेक्षण समिति’ ने प्रकाशित किया है।
दूरवर्ती लोगों के मस्तिष्कों को प्रभावित करने और उनमें अभीष्ट परिवर्तन लाने की दिशा में आस्तिकों और नास्तिकों को समान रूप से सफलता मिली है। इन प्रयोगों में रूसी वैज्ञानिक भी योग साधकों के पद-चिन्हों पर चल रहे हैं। लेनिन ग्राड विश्व-विद्यालय के शरीर विज्ञानी प्रो. लियोनिद वासिलयेव ने दूर संचार क्षमता का प्रयोग एक शोध कार्यों में निरत मण्डली पर किया। उनने अपने प्रयोगों द्वारा चालू शोध के प्रति धीरे-धीरे उदासीन होने और उसे छोड़कर अन्य शोध में लाने का प्रयोग चालू रखा और उसके सफल परिणाम पर सभी को आश्चर्य हुआ। लियोनिद ने अपना अभिप्राय गुप्त कागजों में नोट करके साथियों को बता दिया था कि वे अमुक शोध मंडली की मनःस्थिति में उच्चाटन उत्पन्न करके अन्य कार्य में रुचि बदल देंगे। कुछ समय में वस्तुतः वैसा ही परिवर्तन हो गया और उस मण्डली ने बड़ी सीमा तक पूरा किया गया अपना कार्य रद्द करके नया कार्य हाथ में ले लिया।
इतिहास, पुराणों की बात छोड़ दें तो भी प्रत्यक्ष दर्शियों की प्रामाणिक साक्षियों के आधार पर यह विश्वास किया जा सकता है कि विचार और शब्द के मिश्रण से बनने वाले मन्त्र प्रवाह का प्रयोग आत्मशक्ति द्वारा करके वातावरण तक में हेर-फेर करने को सफलता मिल सकती है।
अफ्रीकी जन-जातियों की तरह ही मलाया में भी मन्त्र विद्या के प्रयोग और चमत्कार बहुत प्रस्तुत होते रहते हैं। वहां के मान्त्रिक ऋतु परिवर्तन को भी प्रभावित करते देखे गये हैं। यह भी संकल्प शक्ति का चमत्कार है।
मलाया के राजा ‘परमेसुरी अगोंग’ की पुत्री राजकुमारी शरीफा साल्वा के विवाह की तैयारियां बहुत धूम-धाम से की गईं। उत्सव बहुत शानदार मनाया जाना था। किन्तु विवाह के दिन घनघोर वर्षा आरम्भ हो गई और सर्वत्र पानी भरा नजर आने लगा। अब उत्सव का क्या हो? निदान रहमान नामक एक तान्त्रिक महिला राजकीय सम्मान के साथ बुलाई गई और उससे वर्षा रोकने के लिए कुछ उपाय, उपचार करने के लिए कहा गया। फलतः एक आश्चर्य चकित करने वाला प्रतिफल यह देखा गया कि पानी तो उस सारे क्षेत्र में बरसता रहा पर समारोह के लिए जितनी जगह नियत थी उस पर एक बूंद पानी भी नहीं गिरा और उत्सव अपने निर्धारित क्रम के अनुसार ठीक तरह सम्पन्न हो गया। ठीक ऐसी ही एक और भी घटना उस देश में सन् 1964 में हुई थी। उन दिनों राष्ट्र मण्डलीय हाकी दल खेलने आया था और उसे देखने के लिए भारी भीड़ उपस्थित थी। दुर्भाग्य से नियत समय पर भारी वर्षा आरम्भ हो गई। कुआलालम्पुर नगर पर घनघोर घटाएं बरस रही थीं। अब खेल का क्या हो? मैदान पानी से भर जाने पर तो सूखना बहुत दिनों तक सम्भव नहीं हो सकता था। इस विपत्ति से बचने का उपाय वहां के मान्त्रिकों की सहायता लेना उचित समझा गया। अस्तु मलाया स्पोर्ट अध्यक्ष ने आग्रह पूर्वक रैम्वाऊ के जाने-माने मन्त्रिक को बुलाया। उसका प्रयोग भी चकित करने वाला रहा। खेल के मैदान पर एक अदृश्य छतरी तन गई और वहां एक बूंद भी न गिरी जब कि चारों और भयंकर वर्षा के दृश्य दिखाई देते रहे।
एक और तीसरी घटना भी अंतर्राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनी रही है। ‘दि इयर आफ दि ड्रैगन’ फिल्म की शूटिंग वहां चल रही थी। जिस दिन प्रधान शूटिंग होनी थी उसी दिन वर्षा उमड़ पड़ी, इस अवसर पर भी अब्दुल्ला बिन उमर नाम के मान्त्रिक की सहायता ली गई और शूटिंग क्षेत्र पूरे समय वर्षा से बचा रहा।
‘द रायल एस्ट्रीनामिकल सोसाइटी’ के तत्कालीन अध्यक्ष तथा अन्य प्रमुख लोगों ने श्री डनियल डगलस होम की विलक्षण कलाबाजियों का आंखों देखा विवरण लिखा है। प्रख्यात वैज्ञानिक, रेडियो मीटर के निर्माता, थीलियम व गोलियम के अन्वेषक सर विलियम क्रुक्स ने भी श्री डेनियल डगलस होम का बारीकी से अध्ययन कर उन्हें चालाकी से रहित पाया था।
इन करिश्मों में हवा में ऊंचे उठ जाना, हवा में चलना और तैरना, जलते हुए अंगारे हाथ में रखना आदि हैं। सर विलियम क्रुक्स अपने समय के शीर्षस्थ रसायन शास्त्री थे। उन्होंने भली-भांति निरीक्षण कर श्री डी.डी. होम की हथेलियों की जांच की, उनमें कुछ भी लगा नहीं था। हाथ मुलायम और नाजुक थे। फिर श्री क्रुक्स के देखते-देखते श्री डी.डी. होम ने धधकती अंगीठी से सर्वाधिक लाल चमकदार कोयला उठाकर अपनी हथेली में रखा और रखे रहे। उनके हाथ में छाले, फफोले कुछ भी नहीं पड़े।
‘रिपोर्ट आफ द डायलेक्टिकल सोसायटीज कमेटी आफ स्पिरिचुअलिज्म’ में लार्ड अडारे ने भी श्री होम का विवरण दिया है। आपने बताया कि एक ‘सियान्स’ में वे आठ व्यक्तियों के साथ उपस्थित थे। श्री डी.डी. होम ने दहकते अंगारे न केवल अपनी हथेलियों पर रखे, बल्कि उन्हें अन्य व्यक्तियों के भी हाथों में रखाया। सात ने तो तनिक भी जलन या तकलीफ के बिना उन्हें अपने हाथ में रखा। इनमें से 4 महिलाएं थीं। दो अन्य व्यक्ति उसे सहन नहीं कर सके। लार्ड अडारे ने ऐसे अन्य अनेक अनुभव भी लिखे हैं, जो श्री होम की अति मानसिक क्षमताओं तथा अदृश्य शक्तियों से उनके सम्बन्ध पर प्रकाश डालते हैं। इनमें अनेक व्यक्तियों की उपस्थिति में कमरे की सभी वस्तुओं का होम की इच्छा मात्र से थर-थराने लगना, किसी एक पदार्थ (जैसे टेबिल या कुर्सी आदि) का हवा में चार-छः फुट ऊपर उठ जाना और होम के इच्छित समय तक वहां उनका लटके रहना, टेबिल के उलटने-पलटने के बाद भी उस पर सामान्य रीति से रखा संगमरमर का पत्थर और कागज पेन्सिल का यथावत् बने रहना आदि है।
सर विलियम क्रुक्स ने भी एक सुन्दर हाथ के सहसा प्रकट होने, होम के बटन में लगे फूल की पत्ती को उस हाथ द्वारा तोड़े जाने किसी वस्तु के हिलने, उसके इर्द-गिर्द चमकीले बनने और फिर उस बादल को स्पष्ट हाथ में परिवर्तित होने तथा उस हाथ को स्पर्श करने पर कभी बेहद सर्द, कभी उष्ण और जीवंत लगने आदि के विवरण लिखे हैं।
विचारों की शक्ति का सामान्य जीवन में भी महत्व पूर्ण उपयोग होता रहता है। उन्हीं के आधार पर क्रिया-कलाप बनते हैं और तद्नुरूप परिणाम सामने आते हैं। बहिरंग व्यक्तित्व वस्तुतः मनुष्य के अन्तरंग की प्रतिक्रिया भर ही होता है। विचारों से समीपवर्ती लोग सहयोगी विरोधी बनते हैं। निन्दा और प्रशंसा के आधारों की जड़े अन्तःक्षेत्र में ही गहराई तक धंसी होती हैं। सामान्य स्तर की विचार-शक्ति भी जीवन का क्रम बनाती है, तो फिर विशेष स्तर की विचार-शक्ति जो योगाभ्यास के साधना विज्ञान के आधार पर तैयार की जाती है, चमत्कारी परिणाम उत्पन्न कर सके तो इसे अबुद्धिसम्मत नहीं कहा जा सकता। मन्त्र शक्ति के प्रयोगों में जहां दंभ और बहकावे की भी भरमार रहती है वहां ऐसे प्रामाणिक प्रसंगों की भी कमी नहीं होती जिनके आधार पर इस अलौकिकता का आधार समझ में न आने पर उसे अविश्वस्त नहीं कहा जा सकता।
कई बार ऐसा भी देखा गया है कि किन्हीं व्यक्तियों में वस्तुओं को विचार-शक्ति से प्रभावित करने की क्षमता अनायास ही पाई जाती है। उन्होंने कोई योगाभ्यास नहीं किया तो भी वे अदृश्य को देख सकने—अविज्ञान को जान सकने में समर्थ रहे। ऐसी विलक्षणता हर मनुष्य के अचेतन मन में मौजूद है। मानवी विद्युत सामान्यतया दैनिक क्रिया-कलापों में ही खर्च होती रहती है। पर यदि उसे बढ़ाया जा कसे तो कितने ही विलक्षण कर्म भी हो सकते हैं। साधना से दिव्य क्षमता बढ़ती है और उससे कितने ही प्रकार के असामान्य कार्य कर सकना सम्भव होता है। यह आध्यात्मिक उपलब्धियां अगले जन्मों तक साथ चली जाती हैं। ऐसे लोग बिना साधना के भी पूर्व संचित सम्पदा के आधार पर चमत्कारी आचरण प्रस्तुत करते देखे गये हैं। ऐसे ही लोगों में एक नाम यूरीगेलर का भी है।
अंग्रेजी भाषा की वैज्ञानिक पत्रिकाएं ‘नेचर’ और ‘न्यू साइन्टिस्ट’ विश्व विख्यात हैं। उनका सम्पादन और प्रकाशन विश्व के मूर्धन्य वैज्ञानिकों द्वारा होता है और उसमें प्रकाशित विवरणों को खोज युक्त एवं तथ्यपूर्ण माना जाता है। इन्हीं पत्रिकाओं में ‘यूरीगेलर के शरीर में पाई गई अतीन्द्रिय शक्ति के प्रामाणिक विवरण विस्तार पूर्वक छपे हैं।
यूरीगेलर अभी मात्र 40 वर्ष का है। उसका जन्म 20 दिसम्बर 1946 में तेलअबीब (इजराइल) में हुआ। उसकी माता जर्मन थीं। जब यह युवक साइप्रस में पढ़ता था तभी उसने अपने में कुछ विचित्रताएं पाई और उन्हें बिना किसी संकोच या छिपाव के अपने परिचितों को बताया, दिखाया। वह जब घड़ियों के निकट जाता तो सुईयां अकारण ही अपना स्थान छोड़कर आगे-पीछे हिलने लगतीं। स्कूल के छात्रों के सामने अपनी दृष्टि मात्र से धातुओं की बनी चीजों को मोड़कर ही नहीं तोड़कर भी दिखाया।
उसने खुले मैदान में बिना किसी पर्दे या जादुई लाग लपेट के—हर प्रकार के सन्देहों का—निवारण का अवसर देते हुए अनेक प्रदर्शन किये हैं। किसी को किसी चालाकी की आशंका हो तो वह यह अवसर देता है कि तथ्य को किसी भी कसौटी पर जांच लिया जाय उसे जादूगरों जैसे करिश्मे दिखाने का न तो अभ्यास है न अनुभव। ‘सम्मोहन’ कला उसे नहीं आती। जो भी वह करता है स्पष्टतः प्रत्यक्ष होता है। स्टैनफोर्ड रिसर्च इन्स्टीट्यूट द्वारा आयोजित परीक्षण गोष्ठियों में मूर्धन्य वैज्ञानिकों के सम्मुख वह अपनी कड़ी परीक्षा में पूर्णतया सफल होता रहा है। जर्मनी और इंगलैण्ड के प्रतिष्ठित पत्रकारों के सम्मुख उसने अपनी विशेषता प्रदर्शित की है और टेलीविजन पर उसके प्रदर्शनों को दिखाया गया है।
यूरीगेलर दूर तक अपनी चेतना को फेंक सकता है। वहां की स्थिति जान सकता है। इतना ही नहीं प्रमाण स्वरूप वहां की वस्तुओं को भी लाकर दिखा सकता है। उससे जब ब्राजील जाने और वहां की कोई वस्तु लाने के लिए कहा गया तो उसने वैसा ही किया और वहां का विवरण सुनाने के साथ-साथ ब्राजील में चलने वाले नोटों का एक बण्डल भी सामने लाकर रख दिया।
फिलाडेलफिया के दो वैज्ञानिकों के कक्ष में गेलर को मुलाकात देनी थी। उन प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के नाम हैं—आर्थर यंग और टेडबास्टिन। इन दोनों के सम्मुख भेंट देकर जब वे जीने से उतर कर नीचे की मंजिल में आये तो ऊपर के कमरे में रखी भारी मूर्ति भी नीचे उतर आई और उनके कन्धे पर बैठ गई।
पूछने पर गैलर ने बताया है कि यह क्षमता उन्हें बिना किसी प्रयास के अनायास ही मिली है। इन प्रदर्शनों में उन्हें तन्त्र-मन्त्र आदि कुछ नहीं करना पड़ता। अदृश्य दर्शन के लिए एक साधारण सा पर्दा खड़ा कर लेते हैं और उसी पर उतरते चित्रों को टेलीविजन की तरह देखते रहते हैं।
वह मेज पर रखे हुए धातुओं के बने मोटे उपकरणों को दृष्टि मात्र से मोड़ देने या तोड़ देने की विद्या में विशेष रूप से निष्णात् है। ऐसे प्रदर्शन वह घण्टों करता रह सकता है। सन् 1968 में उसने आंखों में मजबूत पट्टी बंधवा कर और ऊपर से सील कराकर इसराइल की सड़कों पर मोटर चलाई थी।
उसकी अदृश्य दर्शन की शक्ति भी अद्भुत है। उसकी माता को जुए का चस्का था। जब वह घर लौटती तो गैलर अपने आप ही बता देता कि वह कितना पैदा जीती या हारी है।
इसकी अतीन्द्रिय विशेषताओं का परीक्षण वैज्ञानिकों और अन्वेषकों की मण्डलियों के समक्ष कितनी ही बार किया गया किन्तु वह निर्भ्रान्त ही सिद्ध हुआ है। पदार्थ वैज्ञानिक अपनी हठ धर्मिता के कारण अभी यूरीगेलर की इच्छाशक्ति की सामर्थ्य को मान्यता नहीं देते पर इससे कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ता। जो प्रत्यक्ष है, उसे नकारा नहीं जा सकता।
‘‘स्ट्रेज हैपनिंग्स’ एवं ‘विटवीन टू वर्ल्ड’ पुस्तकों में ऐसी अनेकों घटनाओं का उल्लेख है, जैसी कि ऊपर वर्णित की गयीं, जिनमें इच्छा शक्ति के बल पर चमत्कारी प्रदर्शनों का वर्णन है।
इस सामर्थ्य को प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमण्ड फ्रायड ने किस प्रकार मान्यता दी, यह भी एक ऐतिहासिक विस्मयकारी प्रसंग है।
25 मार्च सन् 1909 की घटना है। मनोविज्ञान शास्त्र के पितामह फ्रायड से मिलने के लिए उनके समकालीन मनःशास्त्री जुंग गये। चर्चा का विषय परा मानसिक शक्ति का प्रभाव था। फ्रायड इस तरह की किसी विशेष मानसिक क्षमता पर विश्वास नहीं करते थे। जुंग ने अपने पक्ष के समर्थन में अपनी मनः क्षमता का एक विशेष प्रदर्शन किया। फ्रायड के कमरे में रखी वस्तुएं इस तरह थर-थराने लगीं मानो कोई तूफान उनकी उठक-पटक कर रहा हो। पुस्तकों की अलमारी में पटाखा फूटने जैसा धमाका हुआ। इससे फ्रायड चकित रह गये और उन्होंने अपनी असहमति का तुरन्त परित्याग कर दिया। उन्होंने माना कि मानवी मन विलक्षण है। उसमें विलक्षण सामर्थ्यों का भण्डागार है। एकाग्रचित्त हो, अपनी संकल्प शक्ति से वह कुछ भी कर दिखा सकता है।
विचार सम्प्रेषण की प्रक्रिया में भी संकल्प शक्ति का ही प्रयोग निहित है। दैनंदिन जीवन में भी उस सामर्थ्य का एक छोटा सा पक्ष देखने को मिलता है। कितने ही व्यक्ति दूसरों को अपनी बातों—अपने विचारों से प्रभावित कर असम्भव कार्य करा लेते हैं। इच्छानुरूप दिशा में दूसरों को मोड़ने में भी सफल हो जाते हैं यह इस बात का प्रमाण है कि वे प्रभावित व्यक्तियों की तुलना में कहीं अधिक संकल्पवान हैं।
वह शक्तिबीज प्रत्येक में विद्यमान है। उसे अंकुरित एवं विकसित किया जा सकता है। साधना के—तप तितीक्षा के छोटे-बड़े प्रयोग इसलिए किये जाते हैं कि किसी प्रकार संकल्प शक्ति के जगने एवं सुदृढ़ होने का अवसर मिले। भौतिक क्षेत्र में अभीष्ट स्तर की सफलता के लिए तद्नुरूप प्रयास करने पड़ते हैं। मनःक्षेत्र आत्मिकी की परिधि में आता है। किसी-किसी में संस्कारों वश सहज ही उभार आता है जबकि किसी-किसी को पुरुषार्थ साधना करनी पड़ती है। आवश्यकता अपने अंतः की इस सामर्थ्य को पहचानने, आत्मशोधन एवं आत्मविकास के प्रयोजन पूरे कर संकल्प शक्ति के सुनियोजन भर की है। जिन्हें भी चमत्कार के दर्शन को समझना हो परामनोविज्ञान के उपरोक्त तथ्यों एवं मानव की सूक्ष्म संरचना को ध्यान में रखना चाहिए।