Books - युग यज्ञ पद्धति
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
विषय प्रवेश
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
युग निर्माण योजना के अंतर्गत-सद्भाव एवं सद्विचार संवर्धन के लिए गायत्री साधना तथा सत्कर्म के विकास-विस्तार के लिए यज्ञीय प्रक्रिया को आधार बनाकर, परम पूज्य गुरुदेव के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में एक जन-अभियान प्रारंभ किया गया था। दैवी अनुशासन एवं निर्देशों का पूरी तत्परता-पूरी निष्ठा से पालन होने से, दैवी संरक्षण में यह अभियान आश्चर्यजनक गति से बढ़ता चला गया।
समय की मांग को ध्यान में रखकर यज्ञीय प्रक्रिया को अधिक सुगम तथा अधिक व्यापक बनाने के लिए अनेक कदम उठाये गये, जिनके कारण जन-जीवन में यज्ञीय भावना का प्रवेश कराने में पर्याप्त सफलता मिलती चली गयी। इसी क्रम में दीप यज्ञों का अवतरण हुआ, जो अत्यधिक प्रभावशाली एवं लोकप्रिय सिद्ध हुए। इनमें कम समय, कम श्रम तथा कम साधनों से भी बड़ी संख्या में व्यक्ति यज्ञीय जीवन पद्धति से जुड़ने लगे। दीपक-अगरबत्ती सभी धार्मिक स्थलों में प्रज्वलित होते हैं, इसलिए उस आधार पर सभी वर्गों के लोग बिना किसी झिझक के दीपयज्ञों में सम्मिलित होते रहते हैं।
कुण्डीय यज्ञ लम्बे समय तक कई पारियों में होते हैं। श्रद्धालु किसी एक पारी में ही शामिल होकर चले जाते हैं। प्रारंभ और अंत के उपचारों से सम्बन्धित प्रेरणाओं से अधिकांश लोग वंचित ही रह जाते हैं। दीपयज्ञों की सारी प्रक्रिया लगभग डेढ़ घंटे में पूरी हो जाती है। अस्तु, सम्मिलित होने वाले सभी जन पूरी प्रक्रिया का, यज्ञीय दर्शन एवं ऊर्जा का पूरा-पूरा लाभ प्राप्त करते हैं।
इस अभियान को और अधिक गति मिली, युग यज्ञ पद्धति से; जिसमें श्लोकों के स्थान पर संस्कृत सूत्रों का उपयोग किया गया। शास्त्रों के निर्माण में श्लोक पद्धति और सूत्र पद्धति दोनों का उपयोग हुआ है। योग दर्शन, ब्रह्मसूत्र आदि ग्रंथ श्लोक पद्धति में नहीं, सूत्र पद्धति में ही हैं। समय की मांग के अनुरूप युग यज्ञ पद्धति सूत्र प्रधान है। समझने, बोलने, दुहराये जाने में सुगम होने के कारण यह पद्धति देश-विदेश में बहुत लोक प्रिय हुई। परिजनों ने आग्रह किया कि इस पद्धति को पहले छपी पद्धतियों की तरह भावनाओं-प्रेरणाओं एवं क्रिया निर्देशों को टिप्पणियों सहित छापा जाय, ताकि यज्ञ संपन्न कराने वालों के लिए अधिक प्रेरणा का लाभ मिल सके।
प्रस्तुत संस्करण इसी आवश्यकता की पूर्ति हेतु निकाला गया है। इसमें, प्रेरणा प्रकरण में दर्शन तथा महत्त्व प्रदर्शित किया गया है। इसका सारांश, समय और समुदाय के स्तर के अनुसार सुगम भाषा में समझाया जा सकता है।
क्रिया और भावना सम्बन्धी निर्देशों का उपयोग विवेकपूर्वक करते हुए जन-जन को यज्ञीय जीवन प्रक्रिया के साथ जोड़ा जा सकता है। कार्यक्रम में भाग लेने वाले, हर कर्मकाण्ड की प्रेरणा सुनने-समझने के बाद जब सूत्रों को स्वयं दोहराते हैं, तो वे भाव उनके अपने संकल्प के रूप में मानस में स्थान बना लेते हैं। इस प्रकार सुगमता से जन-जीवन में मानवीय आदर्शों की स्थापना होती चलती है।
कोई भी सुशिक्षित लोकसेवी मानस के कार्यकर्त्ता, दो-चार दिन के अभ्यास से ही इस विधि से यज्ञ संचालन की कुशलता प्राप्त कर सकते हैं। इसके माध्यम से जन मानस के परिष्कार के अभियान को तीव्रगति से व्यापक बनाया जाना संभव है।
समय की मांग को ध्यान में रखकर यज्ञीय प्रक्रिया को अधिक सुगम तथा अधिक व्यापक बनाने के लिए अनेक कदम उठाये गये, जिनके कारण जन-जीवन में यज्ञीय भावना का प्रवेश कराने में पर्याप्त सफलता मिलती चली गयी। इसी क्रम में दीप यज्ञों का अवतरण हुआ, जो अत्यधिक प्रभावशाली एवं लोकप्रिय सिद्ध हुए। इनमें कम समय, कम श्रम तथा कम साधनों से भी बड़ी संख्या में व्यक्ति यज्ञीय जीवन पद्धति से जुड़ने लगे। दीपक-अगरबत्ती सभी धार्मिक स्थलों में प्रज्वलित होते हैं, इसलिए उस आधार पर सभी वर्गों के लोग बिना किसी झिझक के दीपयज्ञों में सम्मिलित होते रहते हैं।
कुण्डीय यज्ञ लम्बे समय तक कई पारियों में होते हैं। श्रद्धालु किसी एक पारी में ही शामिल होकर चले जाते हैं। प्रारंभ और अंत के उपचारों से सम्बन्धित प्रेरणाओं से अधिकांश लोग वंचित ही रह जाते हैं। दीपयज्ञों की सारी प्रक्रिया लगभग डेढ़ घंटे में पूरी हो जाती है। अस्तु, सम्मिलित होने वाले सभी जन पूरी प्रक्रिया का, यज्ञीय दर्शन एवं ऊर्जा का पूरा-पूरा लाभ प्राप्त करते हैं।
इस अभियान को और अधिक गति मिली, युग यज्ञ पद्धति से; जिसमें श्लोकों के स्थान पर संस्कृत सूत्रों का उपयोग किया गया। शास्त्रों के निर्माण में श्लोक पद्धति और सूत्र पद्धति दोनों का उपयोग हुआ है। योग दर्शन, ब्रह्मसूत्र आदि ग्रंथ श्लोक पद्धति में नहीं, सूत्र पद्धति में ही हैं। समय की मांग के अनुरूप युग यज्ञ पद्धति सूत्र प्रधान है। समझने, बोलने, दुहराये जाने में सुगम होने के कारण यह पद्धति देश-विदेश में बहुत लोक प्रिय हुई। परिजनों ने आग्रह किया कि इस पद्धति को पहले छपी पद्धतियों की तरह भावनाओं-प्रेरणाओं एवं क्रिया निर्देशों को टिप्पणियों सहित छापा जाय, ताकि यज्ञ संपन्न कराने वालों के लिए अधिक प्रेरणा का लाभ मिल सके।
प्रस्तुत संस्करण इसी आवश्यकता की पूर्ति हेतु निकाला गया है। इसमें, प्रेरणा प्रकरण में दर्शन तथा महत्त्व प्रदर्शित किया गया है। इसका सारांश, समय और समुदाय के स्तर के अनुसार सुगम भाषा में समझाया जा सकता है।
क्रिया और भावना सम्बन्धी निर्देशों का उपयोग विवेकपूर्वक करते हुए जन-जन को यज्ञीय जीवन प्रक्रिया के साथ जोड़ा जा सकता है। कार्यक्रम में भाग लेने वाले, हर कर्मकाण्ड की प्रेरणा सुनने-समझने के बाद जब सूत्रों को स्वयं दोहराते हैं, तो वे भाव उनके अपने संकल्प के रूप में मानस में स्थान बना लेते हैं। इस प्रकार सुगमता से जन-जीवन में मानवीय आदर्शों की स्थापना होती चलती है।
कोई भी सुशिक्षित लोकसेवी मानस के कार्यकर्त्ता, दो-चार दिन के अभ्यास से ही इस विधि से यज्ञ संचालन की कुशलता प्राप्त कर सकते हैं। इसके माध्यम से जन मानस के परिष्कार के अभियान को तीव्रगति से व्यापक बनाया जाना संभव है।