Books - गीत माला भाग १७
Media: TEXT
Language: EN
Language: EN
जैसे चलनी में दूध लगा
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
जैसे चलनी में दूध लगा, मूरख खुद ही पछताता है।
बस उसी तरह, असंयमी भी, जीवन रस व्यर्थ बहाता है॥
फिर दीन दरिद्री बन करके, खुद ही दुर्भाग्य बुलाता है।
जीवन संपदा मिटाकर नर, अति दुखद पंथ अपनाता है॥
दोहा- कामधेनु गऊ के सदृश, जीवन ही अभिराम।
इस अमृत को पानकर, नर बनता सुखधाम॥
दूध दही के मंथन से
दूध दही के मंथन से, नवनीत विज्ञजन पाते हैं।
योगीजन प्राणों को मथकर, कुण्डलिनी शक्ति जगाते हैं॥
करते हैं अरणि मंथन तो, यज्ञाग्नि प्रकट हो जाती है।
जब चिंतन का मंथन चलता, तब बात समझ में आती है॥
दोहा- सागर मंथन जब हुआ, निकले रत्न अनेक।
मंथन कर सुविचार का, जागृत करो विवेक॥