Books - गीत संजीवनी-11
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Language: HINDI
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सावधान होशियार
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सावधान होशियार नौजवान।
हाथ में उठा मशाल युग रहा तुम्हें पुकार॥ सावधान॥
एक युद्ध जीतकर हम स्वतन्त्र हो गये।
किन्तु हाय! स्वप्न लोक में तुरन्त खो गये॥
भूल गये प्रीति- रीति भरा रास्ता।
द्वेष- भेद, द्रोह आदि- में प्रवीण हो गये॥
पकड़ लिया है कौन मार्ग- कौन मार्ग है सही।
छोड़कर प्रमाद आज- क्रान्ति युक्त कर विचार॥ सावधान॥
आँख खोल देख चोर घुस पड़े हैं गेह में।हीन भाव मानस में- आलस बन देह में॥
मानव के गौरव को- चाट गई क्षुद्रता।
वृद्धि हुई कटुता में- कमी हुई नेह में॥
पहुँचा दे संस्कार जन- जन में घर- घर में।
एक सबल ठोकर से- दूर कर सभी विकार॥ सावधान॥
आज इस समाज को- खा रही कुरीतियाँ।नीति पक्ष दुर्बल है- बढ़ रही अनीतियाँ॥
जाति- पाँति ऊँच- नीच बढ़ रहे।
जाने क्यों रूठ गईं- प्यार भरी रीतियाँ॥
वक्त आ गया निकट- हम सभी सचेत हों।
दानवता मानव की आबरू न ले उतार॥ सावधान॥
प्रज्ञा आह्वान करो- छूट जाये मूढ़ता।उमड़े यज्ञीय भाव- भाग जाये क्षुद्रता॥
ऋषियों की थाती फिर पहुँचा दे जन- जन तक।
आदर्शों से हो फिर- मानव की मित्रता॥
समयदान- अंशदान बना परम्परा॥
नवयुग का सूत्रधार- बन सपूत होनहार॥ सावधान
मुक्तक-
समय है यह भयंकर- राह इसमें ही बनानी है।न दुहरानी हमें फिर से- पराजय की कहानी है॥
ढलानें, फिसलनें हैं- हर तरफ छाया अँधेरा है।
इसी से हर निमिष रखनी- बहुत ही सावधानी है॥
हाथ में उठा मशाल युग रहा तुम्हें पुकार॥ सावधान॥
एक युद्ध जीतकर हम स्वतन्त्र हो गये।
किन्तु हाय! स्वप्न लोक में तुरन्त खो गये॥
भूल गये प्रीति- रीति भरा रास्ता।
द्वेष- भेद, द्रोह आदि- में प्रवीण हो गये॥
पकड़ लिया है कौन मार्ग- कौन मार्ग है सही।
छोड़कर प्रमाद आज- क्रान्ति युक्त कर विचार॥ सावधान॥
आँख खोल देख चोर घुस पड़े हैं गेह में।हीन भाव मानस में- आलस बन देह में॥
मानव के गौरव को- चाट गई क्षुद्रता।
वृद्धि हुई कटुता में- कमी हुई नेह में॥
पहुँचा दे संस्कार जन- जन में घर- घर में।
एक सबल ठोकर से- दूर कर सभी विकार॥ सावधान॥
आज इस समाज को- खा रही कुरीतियाँ।नीति पक्ष दुर्बल है- बढ़ रही अनीतियाँ॥
जाति- पाँति ऊँच- नीच बढ़ रहे।
जाने क्यों रूठ गईं- प्यार भरी रीतियाँ॥
वक्त आ गया निकट- हम सभी सचेत हों।
दानवता मानव की आबरू न ले उतार॥ सावधान॥
प्रज्ञा आह्वान करो- छूट जाये मूढ़ता।उमड़े यज्ञीय भाव- भाग जाये क्षुद्रता॥
ऋषियों की थाती फिर पहुँचा दे जन- जन तक।
आदर्शों से हो फिर- मानव की मित्रता॥
समयदान- अंशदान बना परम्परा॥
नवयुग का सूत्रधार- बन सपूत होनहार॥ सावधान
मुक्तक-
समय है यह भयंकर- राह इसमें ही बनानी है।न दुहरानी हमें फिर से- पराजय की कहानी है॥
ढलानें, फिसलनें हैं- हर तरफ छाया अँधेरा है।
इसी से हर निमिष रखनी- बहुत ही सावधानी है॥