Books - गुरुगीता पाठ विधि
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Language: HINDI
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संकल्प
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गुरुगीता-पाठ विधि
साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर पवित्र स्थान व स्वच्छ आसन पर बैठकर षट्कर्म के पश्चात् दी गई विधि अनुसार संकल्प, विनियोग, न्यास के साथ गायत्री जप व गुरुगीता का पाठ करे।
॥ संकल्प॥
ऊँ विष्णु र्विष्णुर्विष्णु :श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणो द्वितीये परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भारतवर्षे, भरतखण्डे, आर्यावर्त्तान्तर्गते...................... क्षेत्रे मासानां मासोत्तमेमासे .............. मासे .............. पक्षे ............ तिथौ .......... वासरे ............गोत्रोत्पन्नः .............. नामाऽहं ममात्मनः जन्मजन्मान्तरकृत सर्वपापक्षयपूर्वकम् श्रीसद्गुरुअनुग्रहतो ग्रहकृतराजकृत - सर्वविधपीडानिवृत्तिपूर्वकम् नैरुज्यदीर्घायुः पुष्टिधनधान्य - समृद्ध््यर्थं श्रीसद्गुरुकृपाप्रसादेन सर्वापन्निवृत्तिसर्वाभीष्ट-फलावाप्तिधर्मार्थकाममोक्ष चतुॢवधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्री सद्गुरु भक्तिपूर्वकम् ब्रह्मविद्याप्राप्तिकामः श्रीसद्गुरुदेवता प्रीत्यर्थं श्री गुरुगीता विनियोग—न्यासध्यानपूर्वकं च ‘ऋषयः ऊचुः- गुह्यात गुह्यतरा’ इत्याद्यारभ्य ‘वन्दे महाभयहरं गुरुराज मंत्रम्’ इत्यन्तं श्रीगुरुगीतापाठं तदन्ते गायत्रीमहामंत्र जपं श्रीगुरुस्तुति पठनं च करिष्ये।
साधक गुरुगीता पाठ के साथ गायत्री महामंत्र का एक माला सविधि जप करे।
॥ गायत्री जप॥
विनियोग
ॐ कारस्य परब्रह्म ऋषिर्दैवी गायत्री छन्दः परमात्मा देवता, तिसृणां महाव्याहृतीनां प्रजापतिऋर्षिर्गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांस्यग्निवायुसूर्या देवताः तत्सवितुरिति विश्वामित्रऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवता जपे विनियोगः।
न्यास-करन्यास
ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः।
(दोनों हाथों की तर्जनी अँगुलियों से दोनों अँगूठों का स्पर्श)।
ॐ भूः तर्जनीभ्यां नमः।
(दोनों हाथों के अँगूठों से दोनों तर्जनी अँगुलियों का स्पर्श)।
ॐ भुवः मध्यमाभ्यां नमः।
(अँगूठों से मध्यमा अँगुलियों का स्पर्श)।
ॐ स्वः अनामिकाभ्यां नमः।
(अनामिका अँगुलियों का स्पर्श)।
ॐ भूर्भुवः कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
(कनिष्ठिका अँगुलियों का स्पर्श)।
ॐ भूर्भुवः स्वः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
(हथेलियों और उनके पृष्ठभागों का परस्पर स्पर्श)।
हृदयादिन्यास
इसमें दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से ‘हृदय’ आदि अंगों का स्पर्श किया जाता है।
ॐ हृदयाय नमः। (दाहिने हाथ की पाँचों अंगुलियों से हृदय का स्पर्श)।
ॐ भूः शिरसे स्वाहा। (सिर का स्पर्श)।
ॐ भुवः शिखायै वषट्। (शिखा का स्पर्श)।
ॐ स्वः कवचाय हुम्। (दाहिने हाथ की अँगुलियों से बायें कंधे का और बायें हाथ की अँगुलियों से दाहिने कंधे का एक साथ स्पर्श)।
ॐ भूर्भुवः नेत्राभ्यां वौषट्। (दाहिने हाथ की अँगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और ललाट के मध्यभाग का स्पर्श)।
ॐ भूर्भुवः स्वः अस्त्राय फट्। (यह वाक्य पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बायीं ओर से पीछे की ओर ले जाकर दाहिनी ओर से आगे की ओर ले आयें और तर्जनी तथा मध्यमा अँगुलियों से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजायें)।
ध्यानम्
ॐ आयातु वरदे देवि! त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि।
गायत्रिच्छन्दसां मातः ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते॥--
मंत्र जप
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
हाथ जोड़कर आद्यशक्ति का ध्यान करते हुए निम्न मंत्र के साथ प्रार्थना करें।
प्रार्थना
ॐ गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत् कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि! त्वत् प्रसादान्महेश्वरि॥
साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर पवित्र स्थान व स्वच्छ आसन पर बैठकर षट्कर्म के पश्चात् दी गई विधि अनुसार संकल्प, विनियोग, न्यास के साथ गायत्री जप व गुरुगीता का पाठ करे।
॥ संकल्प॥
ऊँ विष्णु र्विष्णुर्विष्णु :श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणो द्वितीये परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भारतवर्षे, भरतखण्डे, आर्यावर्त्तान्तर्गते...................... क्षेत्रे मासानां मासोत्तमेमासे .............. मासे .............. पक्षे ............ तिथौ .......... वासरे ............गोत्रोत्पन्नः .............. नामाऽहं ममात्मनः जन्मजन्मान्तरकृत सर्वपापक्षयपूर्वकम् श्रीसद्गुरुअनुग्रहतो ग्रहकृतराजकृत - सर्वविधपीडानिवृत्तिपूर्वकम् नैरुज्यदीर्घायुः पुष्टिधनधान्य - समृद्ध््यर्थं श्रीसद्गुरुकृपाप्रसादेन सर्वापन्निवृत्तिसर्वाभीष्ट-फलावाप्तिधर्मार्थकाममोक्ष चतुॢवधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्री सद्गुरु भक्तिपूर्वकम् ब्रह्मविद्याप्राप्तिकामः श्रीसद्गुरुदेवता प्रीत्यर्थं श्री गुरुगीता विनियोग—न्यासध्यानपूर्वकं च ‘ऋषयः ऊचुः- गुह्यात गुह्यतरा’ इत्याद्यारभ्य ‘वन्दे महाभयहरं गुरुराज मंत्रम्’ इत्यन्तं श्रीगुरुगीतापाठं तदन्ते गायत्रीमहामंत्र जपं श्रीगुरुस्तुति पठनं च करिष्ये।
साधक गुरुगीता पाठ के साथ गायत्री महामंत्र का एक माला सविधि जप करे।
॥ गायत्री जप॥
विनियोग
ॐ कारस्य परब्रह्म ऋषिर्दैवी गायत्री छन्दः परमात्मा देवता, तिसृणां महाव्याहृतीनां प्रजापतिऋर्षिर्गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांस्यग्निवायुसूर्या देवताः तत्सवितुरिति विश्वामित्रऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवता जपे विनियोगः।
न्यास-करन्यास
ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः।
(दोनों हाथों की तर्जनी अँगुलियों से दोनों अँगूठों का स्पर्श)।
ॐ भूः तर्जनीभ्यां नमः।
(दोनों हाथों के अँगूठों से दोनों तर्जनी अँगुलियों का स्पर्श)।
ॐ भुवः मध्यमाभ्यां नमः।
(अँगूठों से मध्यमा अँगुलियों का स्पर्श)।
ॐ स्वः अनामिकाभ्यां नमः।
(अनामिका अँगुलियों का स्पर्श)।
ॐ भूर्भुवः कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
(कनिष्ठिका अँगुलियों का स्पर्श)।
ॐ भूर्भुवः स्वः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
(हथेलियों और उनके पृष्ठभागों का परस्पर स्पर्श)।
हृदयादिन्यास
इसमें दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से ‘हृदय’ आदि अंगों का स्पर्श किया जाता है।
ॐ हृदयाय नमः। (दाहिने हाथ की पाँचों अंगुलियों से हृदय का स्पर्श)।
ॐ भूः शिरसे स्वाहा। (सिर का स्पर्श)।
ॐ भुवः शिखायै वषट्। (शिखा का स्पर्श)।
ॐ स्वः कवचाय हुम्। (दाहिने हाथ की अँगुलियों से बायें कंधे का और बायें हाथ की अँगुलियों से दाहिने कंधे का एक साथ स्पर्श)।
ॐ भूर्भुवः नेत्राभ्यां वौषट्। (दाहिने हाथ की अँगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और ललाट के मध्यभाग का स्पर्श)।
ॐ भूर्भुवः स्वः अस्त्राय फट्। (यह वाक्य पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बायीं ओर से पीछे की ओर ले जाकर दाहिनी ओर से आगे की ओर ले आयें और तर्जनी तथा मध्यमा अँगुलियों से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजायें)।
ध्यानम्
ॐ आयातु वरदे देवि! त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि।
गायत्रिच्छन्दसां मातः ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते॥--
मंत्र जप
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
हाथ जोड़कर आद्यशक्ति का ध्यान करते हुए निम्न मंत्र के साथ प्रार्थना करें।
प्रार्थना
ॐ गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत् कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि! त्वत् प्रसादान्महेश्वरि॥