Books - इक्कीसवीं सदी का संविधान
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
युग निर्माण मिशन का घोषणा-पत्र
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
Normal
0
false
false
false
EN-US
X-NONE
X-NONE
MicrosoftInternetExplorer4
युग निर्माण जिसे लेकर
गायत्री परिवार अपनी निष्ठा और तत्परतापूर्वक अग्रसर हो रहा है, उसका बीज सत्संकल्प है। उसी आधार पर
हमारी सारी विचारणा, योजना, गतिविधियाँ एवं कार्यक्रम संचालित होते
हैं, इसे
अपना घोषणा- पत्र
भी कहा जा सकता है। हम में से प्रत्येक को एक दैनिक धार्मिक कृत्य की तरह इसे
नित्य प्रातःकाल पढ़ना चाहिए और सामूहिक शुभ अवसरों पर एक व्यक्ति उच्चारण करें और
शेष लोगों को उसे दुहराने की शैली से पढ़ा जाना चाहिए। संकल्प की शक्ति अपार
है। यह विशाल ब्रह्माण्ड परमात्मा के एक छोटे संकल्प का ही प्रतिफल है। परमात्मा
में इच्छा उठी ‘एकोऽहं बहुस्याम’ मैं अकेला हूँ-
बहुत हो जाऊँ,
उस संकल्प के फलस्वरूप तीन गुण, पंचतत्त्व उपजे और सारा संसार बनकर तैयार
हो गया। मनुष्य के संकल्प द्वारा इस ऊबड़- खाबड़ दुनियाँ को ऐसा सुव्यवस्थित रूप मिला है। यदि ऐसी
आकांक्षा न जगी होती, आवश्यकता
अनुभव न होती तो कदाचित् मानव प्राणी भी अन्य वन्य पशुओं की भाँति अपनी मौत के दिन
पूरे कर रहा होता।
इच्छा जब बुद्धि द्वारा परिष्कृत होकर दृढ़ निश्चय का रूप धारण कर लेती है, तब वह संकल्प कहलाती है। मन का केन्द्रीकरण जब किसी संकल्प पर हो जाता है, तो उसकी पूर्ति में विशेष कठिनाई नहीं रहती। मन की सामर्थ्य अपार है, तो सफलता के उपकरण अनायास ही जुटते चले जाते हैं। बुरे संकल्पों की पूर्ति के लिए भी जब साधन बन जाते हैं, तो सत्संकल्पों के बारे में तो कहना ही क्या है? धर्म और संस्कृति को जो विशाल भवन मानव जाति के सिर पर छत्रछाया की तरह मौजूद है, उसका कारण ऋषियों का सत्संकल्प ही है। संकल्प इस विश्व की सबसे प्रचंड शक्ति है। विज्ञान की शोध द्वारा अगणित प्राकृतिक शक्तियों पर विजय प्राप्त करके वशवर्ती बना लेने का श्रेय मानव की संकल्प शक्ति को ही है। शिक्षा, चिकित्सा, शिल्प, उद्योग, साहित्य, कला, संगीत आदि विविध दिशाओं में जो प्रगति हुई आज दिखाई पड़ती है, उसके मूल में मानव का संकल्प ही सन्निहित है, इसे प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष कह सकते हैं। आकांक्षा को मूर्त रूप देने के लिए जब मनुष्य किसी दिशा विशेष में अग्रसर होने के लिए दृढ़ निश्चय कर लेता है तो उसकी सफलता में संदेह नहीं रह जाता।
आज प्रत्येक विचारशील व्यक्ति यह अनुभव करता है कि मानवीय चेतना में वे दुर्गुण पर्याप्त मात्रा में बढ़ चले हैं, जिनके कारण अशान्ति और अव्यवस्था छाई रहती है। इस स्थिति में परिवर्तन की आवश्यकता अनिवार्य रूप से प्रतीत होती है, पर यह कार्य केवल आकांक्षा मात्र से पूर्ण न हो सकेगा, इसके लिए एक सुनिश्चित दिशा निर्धारित करनी होगी और उसके लिए सक्रिय रूप से संगठित कदम बढ़ाने होंगे। इसके बिना हमारी चाहना एक कल्पना मात्र बनी रहेगी। युग निर्माण सत्संकल्प उसी दिशा में एक सुनिश्चित कदम है। इस घोषणापत्र में सभी भावनाएँ धर्म और शास्त्र की आदर्श परंपरा के अनुरूप एक व्यवस्थित ढंग से सरल भाषा में संक्षिप्त शब्दों में रख दी गई और चिंतन करें तथा यह निश्चय करें कि हमें अपना जीवन इसी ढाँचे में ढालना है। दूसरों को उपदेश करने की अपेक्षा इस संकल्प पत्र में आत्म- निर्माण पर सारा ध्यान केंद्रित किया गया है। दूसरों को कुछ करने के लिए कहने का सबसे प्रभावशाली तरीका एक ही है कि हम वैसा करने लगें। अपना निर्माण ही युग निर्माण का अत्यंत महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है। बूँद- बूँद जल के मिलने से ही समुद्र बना है। एक- एक अच्छा मनुष्य मिलकर ही अच्छा समाज बनेगा। व्यक्ति निर्माण का व्यापक स्वरूप ही युग निर्माण के रूप में परिलक्षित होगा। प्रस्तुत युग निर्माण सत्संकल्प की भावनाओं का स्पष्टीकरण और विवेचन पाठक इसी पुस्तक के अगले लेखों में पढ़ेंगे। इस भावनाओं को गहराई से अपने अंतःकरणों में जब हम जान लेंगे, तो उसका सामूहिक स्वरूप एक युग आकांक्षा के रूप में प्रस्तुत होगा और उसकी पूर्ति के लिए अनेक देवता, अनेक महामानव, नर तन में नारायण रूप धारण करके प्रगट हो पड़ेंगे। युग परिवर्तन के लिए जिस अवतार की आवश्यकता है, वह पहले आकांक्षा के रूप में ही अवतरित होगा। इसी अवतार का सूक्ष्म स्वरूप यह युग निर्माण सत्संकल्प है, इसके महत्त्व का मूल्यांकन हमें गंभीरतापूर्वक ही करना चाहिए। युग निर्माण सत्संकल्प का प्रारूप निम्न प्रकार है /* Style Definitions */ table.MsoNormalTable {mso-style-name:"Table Normal"; mso-tstyle-rowband-size:0; mso-tstyle-colband-size:0; mso-style-noshow:yes; mso-style-priority:99; mso-style-qformat:yes; mso-style-parent:""; mso-padding-alt:0in 5.4pt 0in 5.4pt; mso-para-margin:0in; mso-para-margin-bottom:.0001pt; mso-pagination:widow-orphan; font-size:11.0pt; font-family:"Calibri","sans-serif"; mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin; mso-fareast-font-family:"Times New Roman"; mso-fareast-theme-font:minor-fareast; mso-hansi-font-family:Calibri; mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-font-family:"Times New Roman"; mso-bidi-theme-font:minor-bidi;} हमारा युग निर्माण सत्संकल्प —हम ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारेंगे। —शरीर को भगवान् का मंदिर समझकर आत्म- संयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे। —मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाए रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रख रहेंगे। —इंद्रिय संयम, अर्थ संयम, समय संयम और विचार संयम का सतत अभ्यास करेंगे। — अपने आपको समाज का एक अभिन्न अंग मानेंगे और सबके हित में अपना हित समझेंगे। —मर्यादाओं को पालेंगे, वर्जनाओं से बचेंगे, नागरिक कर्तव्यों का पालन करेंगे और समाजनिष्ठ बने रहेंगे। —समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे। —चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे। — अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे। —मनुष्य के मूल्यांकन की कसौटी उसकी सफलताओं, योग्यताओं एवं विभूतियों को नहीं, उसके सद्विचारों और सत्कर्मों को मानेंगे। —दूसरों के साथ वह व्यवहार न करेंगे, जो हमें अपने लिए पसंद नहीं। —नर- नारी परस्पर पवित्र दृष्टि रखेंगे। —संसार में सत्प्रवृत्तियों के पुण्य प्रसार के लिए अपने समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ एवं धन का एक अंश नियमित रूप से लगाते रहेंगे। —परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्त्व देंगे। —सज्जनों को संगठित करने, अनीति से लोहा लेने और नव- सृजन की गतिविधियों में पूरी रुचि लेंगे। —राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान् रहेंगे। जाति, लिंग, भाषा, प्रांत, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न बरतेंगे। —मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनाएँगे, तो युग अवश्य बदलेगा। —‘‘हम बदलेंगे- युग बदलेगा’’, ‘‘हम सुधरेंगे- युग सुधरेगा’’ इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है।
इच्छा जब बुद्धि द्वारा परिष्कृत होकर दृढ़ निश्चय का रूप धारण कर लेती है, तब वह संकल्प कहलाती है। मन का केन्द्रीकरण जब किसी संकल्प पर हो जाता है, तो उसकी पूर्ति में विशेष कठिनाई नहीं रहती। मन की सामर्थ्य अपार है, तो सफलता के उपकरण अनायास ही जुटते चले जाते हैं। बुरे संकल्पों की पूर्ति के लिए भी जब साधन बन जाते हैं, तो सत्संकल्पों के बारे में तो कहना ही क्या है? धर्म और संस्कृति को जो विशाल भवन मानव जाति के सिर पर छत्रछाया की तरह मौजूद है, उसका कारण ऋषियों का सत्संकल्प ही है। संकल्प इस विश्व की सबसे प्रचंड शक्ति है। विज्ञान की शोध द्वारा अगणित प्राकृतिक शक्तियों पर विजय प्राप्त करके वशवर्ती बना लेने का श्रेय मानव की संकल्प शक्ति को ही है। शिक्षा, चिकित्सा, शिल्प, उद्योग, साहित्य, कला, संगीत आदि विविध दिशाओं में जो प्रगति हुई आज दिखाई पड़ती है, उसके मूल में मानव का संकल्प ही सन्निहित है, इसे प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष कह सकते हैं। आकांक्षा को मूर्त रूप देने के लिए जब मनुष्य किसी दिशा विशेष में अग्रसर होने के लिए दृढ़ निश्चय कर लेता है तो उसकी सफलता में संदेह नहीं रह जाता।
आज प्रत्येक विचारशील व्यक्ति यह अनुभव करता है कि मानवीय चेतना में वे दुर्गुण पर्याप्त मात्रा में बढ़ चले हैं, जिनके कारण अशान्ति और अव्यवस्था छाई रहती है। इस स्थिति में परिवर्तन की आवश्यकता अनिवार्य रूप से प्रतीत होती है, पर यह कार्य केवल आकांक्षा मात्र से पूर्ण न हो सकेगा, इसके लिए एक सुनिश्चित दिशा निर्धारित करनी होगी और उसके लिए सक्रिय रूप से संगठित कदम बढ़ाने होंगे। इसके बिना हमारी चाहना एक कल्पना मात्र बनी रहेगी। युग निर्माण सत्संकल्प उसी दिशा में एक सुनिश्चित कदम है। इस घोषणापत्र में सभी भावनाएँ धर्म और शास्त्र की आदर्श परंपरा के अनुरूप एक व्यवस्थित ढंग से सरल भाषा में संक्षिप्त शब्दों में रख दी गई और चिंतन करें तथा यह निश्चय करें कि हमें अपना जीवन इसी ढाँचे में ढालना है। दूसरों को उपदेश करने की अपेक्षा इस संकल्प पत्र में आत्म- निर्माण पर सारा ध्यान केंद्रित किया गया है। दूसरों को कुछ करने के लिए कहने का सबसे प्रभावशाली तरीका एक ही है कि हम वैसा करने लगें। अपना निर्माण ही युग निर्माण का अत्यंत महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है। बूँद- बूँद जल के मिलने से ही समुद्र बना है। एक- एक अच्छा मनुष्य मिलकर ही अच्छा समाज बनेगा। व्यक्ति निर्माण का व्यापक स्वरूप ही युग निर्माण के रूप में परिलक्षित होगा। प्रस्तुत युग निर्माण सत्संकल्प की भावनाओं का स्पष्टीकरण और विवेचन पाठक इसी पुस्तक के अगले लेखों में पढ़ेंगे। इस भावनाओं को गहराई से अपने अंतःकरणों में जब हम जान लेंगे, तो उसका सामूहिक स्वरूप एक युग आकांक्षा के रूप में प्रस्तुत होगा और उसकी पूर्ति के लिए अनेक देवता, अनेक महामानव, नर तन में नारायण रूप धारण करके प्रगट हो पड़ेंगे। युग परिवर्तन के लिए जिस अवतार की आवश्यकता है, वह पहले आकांक्षा के रूप में ही अवतरित होगा। इसी अवतार का सूक्ष्म स्वरूप यह युग निर्माण सत्संकल्प है, इसके महत्त्व का मूल्यांकन हमें गंभीरतापूर्वक ही करना चाहिए। युग निर्माण सत्संकल्प का प्रारूप निम्न प्रकार है /* Style Definitions */ table.MsoNormalTable {mso-style-name:"Table Normal"; mso-tstyle-rowband-size:0; mso-tstyle-colband-size:0; mso-style-noshow:yes; mso-style-priority:99; mso-style-qformat:yes; mso-style-parent:""; mso-padding-alt:0in 5.4pt 0in 5.4pt; mso-para-margin:0in; mso-para-margin-bottom:.0001pt; mso-pagination:widow-orphan; font-size:11.0pt; font-family:"Calibri","sans-serif"; mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin; mso-fareast-font-family:"Times New Roman"; mso-fareast-theme-font:minor-fareast; mso-hansi-font-family:Calibri; mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-font-family:"Times New Roman"; mso-bidi-theme-font:minor-bidi;} हमारा युग निर्माण सत्संकल्प —हम ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारेंगे। —शरीर को भगवान् का मंदिर समझकर आत्म- संयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे। —मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाए रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रख रहेंगे। —इंद्रिय संयम, अर्थ संयम, समय संयम और विचार संयम का सतत अभ्यास करेंगे। — अपने आपको समाज का एक अभिन्न अंग मानेंगे और सबके हित में अपना हित समझेंगे। —मर्यादाओं को पालेंगे, वर्जनाओं से बचेंगे, नागरिक कर्तव्यों का पालन करेंगे और समाजनिष्ठ बने रहेंगे। —समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे। —चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे। — अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे। —मनुष्य के मूल्यांकन की कसौटी उसकी सफलताओं, योग्यताओं एवं विभूतियों को नहीं, उसके सद्विचारों और सत्कर्मों को मानेंगे। —दूसरों के साथ वह व्यवहार न करेंगे, जो हमें अपने लिए पसंद नहीं। —नर- नारी परस्पर पवित्र दृष्टि रखेंगे। —संसार में सत्प्रवृत्तियों के पुण्य प्रसार के लिए अपने समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ एवं धन का एक अंश नियमित रूप से लगाते रहेंगे। —परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्त्व देंगे। —सज्जनों को संगठित करने, अनीति से लोहा लेने और नव- सृजन की गतिविधियों में पूरी रुचि लेंगे। —राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान् रहेंगे। जाति, लिंग, भाषा, प्रांत, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न बरतेंगे। —मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनाएँगे, तो युग अवश्य बदलेगा। —‘‘हम बदलेंगे- युग बदलेगा’’, ‘‘हम सुधरेंगे- युग सुधरेगा’’ इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है।