• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • चौबीस अक्षर—चौबीस शक्तिस्रोत
    • चौबीस अक्षर चौबीस प्रत्यक्ष देवता
    • चौबीस देव गायत्री
    • गायत्री का तत्व दर्शन
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • चौबीस अक्षर—चौबीस शक्तिस्रोत
    • चौबीस अक्षर चौबीस प्रत्यक्ष देवता
    • चौबीस देव गायत्री
    • गायत्री का तत्व दर्शन
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - गायत्री का हर अक्षर शक्ति स्रोत

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


चौबीस अक्षर—चौबीस शक्तिस्रोत

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


2 Last


गायत्री मंत्र में 24 अक्षर हैं। इन्हें मिलाकर पढ़ने से ही इनका शब्दार्थ और भावार्थ समझ में आता है। पर शक्ति-साधना के सन्दर्भ में इनमें से प्रत्येक अक्षर का अपना स्वतंत्र अस्तित्व और महत्व है। इन अक्षरों को परस्पर मिला देने से परम तेजस्वी सविता देवता से सद्बुद्धि को प्रेरित करने के लिए प्रार्थना की गई है और साधक को प्रेरणा दी गई है कि वह जीवन की सर्वोपरि सम्पदा ‘सद्बुद्धि’ का—ऋतम्भरा प्रज्ञा का महत्व समझें और अपने अन्तराल में दूर दर्शिता का अधिकाधिक समावेश करें। यह प्रसंग अति महत्वपूर्ण होते हुए भी रहस्यमय तथ्य यह है कि इस महामन्त्र का प्रत्येक अक्षर शिक्षकों और सिद्धियों से भरा पूरा है।
शिक्षा की दृष्टि से गायत्री मन्त्र के प्रत्येक अक्षर में प्रमुख सद्गुणों का उल्लेख किया गया है और बताया गया है कि उनको आत्मसात करने पर मनुष्य देवोपम विशेषताओं से भर जाता है। अपना कल्याण करता है और अन्य असंख्यों को अपनी नाव पर बिठाकर पार लगाता है। हाड़-मांस से बनी और मल-मूत्र से बनी काया में जो कुछ विशिष्टता दिखाई पड़ती है वह उससे समाहित सत्प्रवृत्तियों के ही हैं। जिसके गुण-कर्म स्वभाव में जितनी उत्कृष्टता है वह उसी अनुपात से महत्वपूर्ण बनता है और महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त करके जीवन सौभाग्य को हर दृष्टि से सार्थक बनाता है।

इन सद्गुणों की उपलब्धि को लोक शिक्षण सम्पर्क एवं वातावरण के प्रभाव में से भी बहुत कुछ प्रगति हो सकती है। किन्तु अध्यात्म-विज्ञान के अनुसार साधना उपक्रम द्वारा भी इन विभूतियों में से जिसकी कमी दिखती है, जिसके सम्वर्धन की आवश्यकता अनुभव होती है उसके लिए उपासनात्मक उपचार किये जा सकते हैं।

जिस प्रकार शरीर में कोई रासायनिक पदार्थ कम पड़ जाने से स्वास्थ्य लड़खड़ाने लगता है, उसी प्रकार उपरोक्त 24 सद्गुणों में से किसी में न्यूनता रहने पर उसी अनुपात से व्यक्तित्व त्रुटिपूर्ण रह जाता है। उस अभाव के कारण प्रगति-पथ पर बढ़ने में अवरोध खड़ा होता है। फलतः पिछड़ापन लदा रहने से उन उपलब्धियों का लाभ नहीं मिल पाता जिनके लिए मनुष्य-जीवन सुरदुर्लभ अवसर हस्तगत हुआ है। आहार के द्वारा एवं औषधि, उपचार से शरीर की रासायनिक आवश्यकता पूरी हो जाती है तो फिर स्वस्थता का आनन्द मिलने लगता है। इसी प्रकार गायत्री उपासना के विशिष्ट उपचारों से सत्प्रवृत्तियों की कमी पूरी की जा सकती है। उस अभाव को पूरा करने पर स्वभावतः प्रखरता एवं प्रतिभा बढ़ती है। उसके सहारे मनुष्य अधिक पुरुषार्थ करता है—अधिक दूर दर्शिता का परिचय देता है, शारीरिक तत्परता और मानसिक तन्मयता बढ़ने से अभीष्ट प्रयोजन पूरा करने में सरलता रहने और सफलता मिलने लगती है। सत्प्रवृत्तियों की इसी परिणित को सिद्धियां कहते हैं।

गायत्री में सन्निहित शक्तियां और उनकी प्रतिक्रियाओं के नामों का उल्लेख अनेक साधना शास्त्रों में अनेक प्रकार से हुआ है। इनके नाम, रूपों में भिन्नता दिखाई पड़ती है। इस मतभेद या विरोधाभास से किसी असमंजस में पड़ने की आवश्यकता नहीं है। एक ही शक्ति को विभिन्न प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त करने पर उसके विभिन्न परिणाम निकलते हैं। दूध पीने पर व्यायाम प्रिय व्यक्ति पहलवान बनता है। विद्यार्थी की स्मरण शक्ति बढ़ती है। योगी को उस सात्विक आहार से साधना में मन लगता है। प्रसूता के स्तनों में दूध बढ़ता है। यह लाभ एक दूसरे से भिन्न हैं। इससे प्रतीत होता है कि दूध के गुणों का जो वर्णन किया गया है, उसमें मतभेद है। यह विरोधाभास ऊपरी है। भीतरी व्यवस्था को समझने पर यों कहा जा सकता है कि हर स्थिति के व्यक्ति को उसकी आवश्यकता के अनुसार इससे लाभ पहुंचता है। यदि यह कहा जाता तो दूध के गुणों में जो विरोधाभास जान पड़ता है उसके लिए असमंजस न करना पड़ता। कई बार शब्दों के अन्तर से भी वस्तु की भिन्नता मालूम पड़ती है। एक ही पदार्थ के विभिन्न भाषाओं में विभिन्न नाम होते हैं। उन्हें सुनने पर सहज बुद्धि को भ्रम हो सकता है और अनेक पदार्थों की बात चलती लग सकती है। पर जब यह प्रतीत होगा कि एक ही वस्तु के भाव भेद से अनेक उच्चारण हो रहे हैं तो उस अन्तर को समझने में देर नहीं लगती, जिससे एकता को अनेकता में समझा जा रहा था।

एक सूर्य के अनेक लहरों पर अनेक प्रतिबिम्ब चमकते हैं। व्यक्तियों की मनःस्थिति के अनुरूप एक ही उपलब्धि का प्रतिफल अनेक प्रकार का हो सकता है। धन को पाकर एक व्यक्ति व्यवसायी, दूसरा दानी, तीसरा अपव्ययी हो सकता है। धन के इन गुणों को देखकर उसकी भिन्न प्रतिक्रियाएं झांकने की बात अवास्तविक है। वास्तविक बात यह है कि हर व्यक्ति अपनी इच्छानुसार धन का उपयोग करके अभीष्ट प्रयोजन पूरे कर सकता है। गायत्री के 24 अक्षरों में सन्निहित चौबीस शक्तियों का अभाव यह है कि मनुष्य की मौलिक विशिष्टताओं को उभारने में उनके आधार पर असाधारण सहायता मिलती है। इसे आन्तरिक उत्कर्ष या देवी अनुग्रह—दोनों में से किसी नाम से पुकारा जा सकता है। कहने-सुनने में इन दोनों शक्तियों में जमीन-आसमान जैसा अन्तर दिखता है और दो भिन्न बातें कही जाती प्रतीत होती हैं, किन्तु वास्तविकता यह है कि व्यक्तित्व में बढ़ी हुई विशिष्टताएं सुखद परिणाम उत्पन्न करती हैं और प्रगति क्रम में सहायक सिद्ध होती हैं। इतना कहने से भी काम चलता है। भीतरी उत्कर्ष और बाहरी अनुग्रह वस्तुतः एक ही तथ्य के दो प्रतिपादन भर हैं। उन्हें अन्योन्याश्रित भी कहा जा सकता है।

गायत्री की 24 शक्तियों का वर्णन शास्त्रों ने अनेक नाम रूपों से किया है। उनके क्रम में भी अन्तर है। इतने पर भी इस मूल तथ्य में रत्ती भर भी अन्तर नहीं आता कि इस महाशक्ति के अवलम्बन से मनुष्य की उच्चस्तरीय प्रगति का द्वार खुलता है और जिस दिशा में भी उसके कदम बढ़ते हैं उसमें सफलता का सहज दर्शन होता है। गायत्री की 24 की उपासना करने के लिए ‘‘शारदा तिलक-तंत्र’’ का मार्ग दर्शन इस प्रकार है :—

अन्यान्य ग्रन्थों में गायत्री के एक-एक अक्षर के साथ जुड़ी हुई शक्तियों का वर्णन कई प्रकार से हुआ है। कहीं उन्हें शक्ति—कहीं मातृका—कहीं कला आदि नामों से संबोधित किया गया है। गायत्री मन्त्र के अक्षर एवं उनसे सम्बन्धित कलाओं का वर्णन इस प्रकार मिलता है—

ततः षडङ्गान्यभ्यर्चेंत्केसरेषु यथाविधि । आह्लादिनी प्रभा पश्चान्नित्यां विश्वम्भरां पुनः ।। विलासिनी प्रभावत्यौ जयां शान्ति यजेत्पुनः । कान्ति दुर्गा सरस्वत्यौ विश्वरूपा ततः परम् ।। विशाला संज्ञितामीशां व्यापिनी विमला यजेत् । ततोऽपहारिणी सूक्ष्मां विश्वयोनि जयावहाम् ।। पद्मालयां पराशोभां पद्मरूपां ततोऽर्चयेत् । ब्राह्माद्याः सारुणा वाह्ये पूजयेत प्रोक्तलक्षणाः ।। (शारदा. 21-23 से 26)

पूजन उपचारों से षडंग पूजन के बाद ‘आह्लादिनी प्रभा’ ‘नित्या’ तथा ‘विश्वम्भरा’ का यजन (पूजन) करे। पुनः ‘विलासिनी’ ‘प्रभावती’ ‘जया’ और शान्ति का अर्चन करना चाहिए। इसके बाद ‘कान्ति’ ‘दुर्गा’ ‘सरस्वती’ और ‘विश्वरूपा’ का पूजन करें। पुनः ‘विशाल संज्ञावाली’ ‘ईशा’ ‘व्यापिनी’ और ‘विमला’ का यजन करना चाहिए। इसके अनन्तर ‘अपहारिणी’ ‘सूक्ष्मा’ ‘विश्वयोनि’ ‘जयावहा’ ‘पद्मालया’ परा शोभा तथा पद्मरूपा आदि का यजन करे। ‘ब्राह्मी’ सारूणा का बाद में पूजन करना चाहिए।

गायत्री के 24 अक्षर :—

1-तत, 2-स, 3-वि, 4-तु, 5-र्व, 6-रे, 7-णि, 8-यं, 9-भ, 10-र्गो, 11-दे, 12-व, 13-स्य, 14-धी, 15-म, 16-हि, 17-धि, 18-यो, 19-यो, 20-नः, 21-प्र, 22-चो, 23-द, 24-यात् 24 अक्षरों से सम्बन्धित 24 कलाएं :—

(1) तापिनी (2) सफला (3) विश्वा (4) तुष्टा (5) वरदा (6) रेवती (7) शूक्ष्मा (8) ज्ञाना (9) भर्गा (10) गोमती (11) दर्विका (12) थरा (13) सिंहिका (14) ध्येया (15) मर्यादा (16) स्फुरा (17) बुद्धि (18) योगमाया (19) योगात्तरा (20) धरित्री (21) प्रभवा (22) कुला (23) दृष्या (24) ब्राह्मी 24 अक्षरों से सम्बन्धित 24 मातृकाएं :— (1) चन्द्रकेश्चवरी (2)अजतवला (3) दुरितारि (4) कालिका (5) महाकाली (6) श्यामा (7) शान्ता (8) ज्वाला (9) तारिका (10) अशोका (11) श्रीवत्सा (12) चण्डी (13) विजया (14) अंकुशा (15) पन्नगा (16) निर्वाक्षी (17) वेला (18) धारिणी (19) प्रिया (20) नरदता (21) गन्धारी (22) अम्बिका (23) पद्मावती (24) सिद्धायिका सामान्य दृष्टि से कलाएं और मातृकाएं अलग अलग प्रतीत होती हैं। किन्तु तात्विक दृष्ट से देखने पर उन दोनों का अन्तर समाप्त हो जाता है। उन्हें श्रेष्ठता की सामर्थ्य कह सकते हैं, और उनके नामों के अनुरूप उनके द्वारा उत्पन्न होने वाले सत्परिणामों का अनुमान लगा सकते हैं।

समग्र गायत्री को सर्व विघ्न विनासिनी—सर्व सिद्धि प्रदायनी कहा गया है। संकटों का सम्वरण और सौभाग्य संवर्धन के लिए उसका आश्रय लेना सदा सुखद परिणाम ही उत्पन्न करता है। तो भी विशेष प्रयोजनों के लिए उसके 24 अक्षरों में प्रथक प्रथक प्रकार की विशेषताएं भरी हैं। किसी विशेष प्रयोजन की सामयिक आवश्यकता पूरी करने के लिए उसकी विशेष शक्ति धारा का भी आश्रय लिया जा सकता है। चौबीस अक्षरों की अपने विशेषताएं और प्रतिक्रियाएं हैं—जिन्हें सिद्धियां भी कहा जा सकता है—इस प्रकार बताई गई हैं—

(1) आरोग्य (2) आयुष्य (3) तुष्टि (4) पुष्टि (5) शान्ति (6) वैभव (7) ऐश्वर्य (8) कीर्ति (9) अनुग्रह (10) श्रेय (11) सौभाग्य (12) ओजस् (13) तेजस् (14) गृहलक्ष्मी (15) सुसंतति। (16) विजय (17) विद्या (18) बुद्धि (19) प्रतिभा (20) ऋद्धि (21) सिद्धि (22) संगति (23) स्वर्ग (24) मुक्ति।

जहां उपलब्धियों की चर्चा होती है वहां शक्तियों का भी उल्लेख होता है। शक्ति की चर्चा सामर्थ्य का स्वरूप निर्धारण करने के सन्दर्भ में होती है। बिजली एक शक्ति है। विज्ञान के विद्यार्थी उसका स्वरूप और प्रभाव अपने पाठ्यक्रम में पढ़ते हैं। इस जानकारी के बिना उसके प्रयोग करते समय जो अनेकानेक समस्याएं पैदा होती हैं उनका समाधान नहीं हो सकता। प्रयोक्ता की जानकारी इस प्रसंग में जितनी अधिक होगी वह उतनी ही सफलता पूर्वक उस शक्ति का सही रीति से प्रयोग करने तथा अभीष्ट लाभ उठाने में सफल हो सकेगा। प्रयोग के परिणाम को सिद्धि कहते हैं। सिद्धि अर्थात् लाभ। शक्ति अर्थात् पूंजी। शक्तियां सिद्धियों की आधार हैं। शक्ति के बिना सिद्धि नहीं मिलती। दोनों को अन्योन्याश्रित कहा जा सकता है। इतने पर भी प्रथकता तो माननी ही पड़ेगी।

गायत्री के चौबीस अक्षरों में जो प्रथक-प्रथक शक्तियां हैं, उनके नाम शास्त्रकारों ने प्राचीन काल की आध्यात्मिक भाषा में बतलाये हैं। उस समय हर शक्ति को एक देवी के रूप में अलंकृत किया जाता था। देवी का अर्थ अब तो अंतरिक्ष वासिनी अदृश्य महिला विशेष मानने का भ्रम चल पड़ा है। पर प्राचीन काल में देवी शब्द दिव्य शक्तियों के लिये ही प्रयोग किया जाता था। गायत्री की 24 शक्तियों का शास्त्रीय उल्लेख इस प्रकार है—

वर्णानां सक्तयः काश्च ताः श्रृणुष्व महामुने । वामदेवी प्रिया सत्या विश्वास भद्रविलासिनी ।। प्रभावती जया शान्ता कान्ता दुर्गा सरस्वती । विद्रुमा च विशालेशा व्यापिनी विमला तथा ।। तमोऽपहारिणी सूक्ष्माविश्वयोनिर्जया वशा । पद्मालया पराशोभा भद्रा च त्रिपदा स्मृता ।। चतुर्विशतिवर्णानां शक्तयः समुदाहृताः ।

हे मुनि! अब सुनो कि गायत्री के 24 अक्षरों में कौन-कौन 24 शक्तियां भरी पड़ी हैं। (1) वामदेवी (2) सत्या (3) प्रिया (4) विश्वा (5) भद्र विलासिनी (6) प्रभावती (7) शान्ता (8) कान्ता (9) दुर्गा (10) सरस्वती (11) विद्रुमा (12) विशालशा (13) व्यापिनी (14) विमला (15) तमोपहारिणी (16) सूक्ष्मा (17) विश्वयोनि (18) जया (19) वशा (20) पद्मालया (21) परा (22) शोभा (23) मुद्रा (24) त्रिपदा।

पिण्ड को ब्रह्माण्ड की छोटी प्रतिकृति माना गया है। वृक्ष की सारी सत्ता छोटे से बीज में भरी रहती है। सौर मंडल की पूरी प्रक्रिया छोटे से परमाणु में ठीक उसी तरह काम करती देखी जा सकती है। मनुष्य की शारीरिक ओर मानसिक संरचना का छोटा रूप शुक्राणु में विद्यमान रहता है। यह ‘‘महतोमहियान् का अणोरणीयान्’’ में दर्शन है। छोटी सी ‘‘माइक्रो’’ फिल्म पर सुविस्तृत ग्रन्थों का चित्र उतर आता है। जीव में ब्रह्म की सारी विभूतियां और शक्तियां विद्यमान है। ब्रह्म का विस्तार यह ब्रह्माण्ड है। जीव का विस्तार शरीर में है। मानवी-काया यों हाड़-मांस की बनी दीखती है और मलमूत्र की गठरी प्रतीत होती है। पर उसकी मूल सत्ता, जो गम्भीर विवेचन करे पर प्रतीत होती है, वह है, जिससे इस छोटे से कलेवर में वह सब विद्यमान मिलता है, जो विराट विश्व में दृष्टिगोचर होता है।

स्थूल दृष्टि से स्थूल का दर्शन होता है और सूक्ष्म से सूक्ष्म का। चर्म चक्षुओं से सीमित आकार-प्रकार-दूरी की वस्तुएं देखी जा सकती हैं। शक्तिशाली माइक्रोस्कोप अदृश्य वस्तुओं को भी दृश्य रूप में प्रस्तुत कर देते हैं। दूरबीनों से वे दूरवर्ती वस्तुएं दीखती हैं जिन्हें साधारण दृष्टि से देख सकना संभव नहीं है। ज्ञान चक्षुओं से सूक्ष्म जगत की स्थिति को भली प्रकार जाना जा सकता है। अर्जुन को, यशोदा को भगवान कृष्ण ने ज्ञान चक्षुओं से ही अपने विराट रूप के दर्शन कराये थे। उसी माध्यम से राम के वास्तविक रूप का साक्षात्कार कौशल्या और काकभुसुण्डि को हुआ था। उसी दृष्टि से देख सकना जिस किसी के लिए भी संभव हुआ है वह अपनी ही मानवी-काया में देव शक्तियों की उपस्थिति सत्प्रवृत्तियों के रूप में स्पष्टतया देखता है। प्रसुप्त स्थिति में तो जीवित मनुष्य भी मृतकवत् पड़ा रहता है। पर जागृति की स्थिति में पहुंच कर वही प्रबल पुरुषार्थ करता और अपनी प्रखरता का परिचय देता है। मानवी काया वन-मानुष के—नर वानर के समतुल्य इसलिए बनी रहती है कि उसकी देवात्म प्रसुप्त स्थिति में पड़ी होती है। साधन, उपचारों की सहायता से जो उसे जगा लेते हैं, उन्हें दिव्य शक्ति सम्पन्न सिद्ध पुरुष बनने में देर नहीं लगती।

मानवी-सत्ता में देवशक्तियों की उपस्थिति का वर्णन करते हुए भगवान शिव, पार्वती के सम्मुख रहस्योद्घाटन करते हैं—

देहेऽस्मिन् वर्तते मेरुः सप्त द्वोप समन्वितः । सरितः सागराः शैलाः क्षेत्राणि क्षेत्र पालकाः ।। ऋषियो मुनयः सर्वे नक्षत्राणि ग्रहास्तथा । पुण्य तीर्थानि पीठानि वर्तन्ते पीठ देवताः ।। सृष्टि संहार कर्तारी भ्रमन्तौ शशि भास्करौ । नभो वायुश्च वह्निश्च जलं पृथ्वी तथैव च ।। त्रैलोक्ये यानि भूतानि तानि सर्वाण देहतः । मेरुं संघेठ्य सर्वत्र व्यवहारः प्रवर्तते ।। जानाति यः सर्वमिदं स योगी ना संशयः । ब्रह्मान्ड संत्तके देहे यथा देशं व्यवस्थितः ।। —शिव संहिता

इसी देह में मेरु, सप्त द्वीप, सरिता, सागर, शैल, क्षेत्र पालक, ऋषि, मुनि, नक्षत्र, ग्रह पीठ, पीठ देवता, शिव, चन्द्र, सूर्य, आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, तीनों लोक, सब प्राणि निवास करते हैं। जो ब्रह्माण्ड में है वही पिण्ड में है। इस रहस्य को जो जान सकता है वही योगी है।

किस संस्थान में किस देव शक्ति का निवास है और वहां कौन-सी विशिष्ट शक्ति छिपी पड़ी है इसका उल्लेख शास्त्रकारों ने संकेत रूप से किया है। न्यास, कवच, रक्षा-विधान आदि के माध्यम से पूजा-प्रार्थना करते हुए यह अनुभव किया जाता है, कि इस स्थान पर विद्यमान अमुक शक्ति का नव जागरण हो रहा है, उस केन्द्र पर ब्रह्माण्ड में संव्याप्त दिव्य कामनाओं का अवतरण हो रहा है। स्थापना, श्रद्धा, अनुभूति एवं उपलब्धि के चार चरण ध्यान-धारणा में प्रयुक्त होते हैं। यह संगति इन उपचारों के सहारे भरी प्रकार बैठ जाती है। फलतः न्यास, कवच, रक्षा विधान आदि कृत्यों के माध्यम से शरीर में देवशक्तियों के जागरण एवं अवतरण का द्वार खुल जाता है। इन उपासनात्मक विधि विधानों का शास्त्रीय उल्लेख इस प्रकार है—

न्यास विधान

ॐ तत्पादङ्गुलिषर्वभ्यां नमः (पैरों की उंगलियों की गांठों को) ॐ सपादाङ्गुलिभ्यो नमः (पैरों की उंगलियों को) ॐ विजङ्घाभ्यां नमः (दोनों जांघों को) ॐ तुर्जानुभ्यां नमः (दोनों जानुओं को) ॐ व ऊरुभ्यां नमः (कटि के नीचे के भाग को) ॐ रे शिश्नाय नमः (शिश्न को) ॐ णि वृषणाभ्यां नमः (वृषण को) ॐ यं कट्यै नमः (कटि को) ॐ भर्नाभ्यै नमः (नाभि को) ॐ गो उदराय नमः (पेट को) ॐ दे स्तनाय नमः (दोनों स्तनों को) ॐ व उरुसे नमः (छाती को) ॐ स्य कण्ठाय नमः (कण्ठ को) ॐ धी दन्तेभ्यो नमः (दांतों को) ॐ म तालुने नमः (तालु को) ॐ हि नासिकायै नमः (नासिका को) ॐ धि नेत्राभ्यां नमः (नेत्रों को) ॐ यो भ्रूभ्यां नमः (भौहों को) ॐ यो ललाटाय नमः (ललाट को) ॐ नः पूर्वमुखाय नमः (मुख के पूर्वी भाग को) ॐ प्र दक्षिण मुखायनमः (मुख के दक्षिणी भाग को) ॐ चो पश्चिममुखाय नमः (मुख के पश्चिम भाग को) ॐ द उत्तर मुखाय नमः (मुख के उत्तर भाग को) ॐ यात् मूर्ध्ने नमः (सिर को)

बांये हाथ पर जल रख कर दाहिने हाथ की पांचों उंगलियों को डुबाना, और फिर उन भीगी उंगलियों को निर्धारित स्थानों पर स्पर्श कराना न्यास कहलाता है। इस न्यास कृत्य से उन स्थानों में सन्निहित देव शक्तियों में अन्तः जागृति उत्पन्न होती है।

रक्षा बन्धन

तद्वर्णः पातु मूर्द्धान साकारः पातु भालकम् ।। ‘तत्’ वर्ण मूर्धा की, ‘स’ कार भाल की रक्षा करे । चक्षुषी ये विकारस्तु श्रोत्रे रक्षेतु कारकः । नासापुटे वकारो ते रेकारस्तु कपालकम् ।। ‘वि’ मेरे नेत्रों की और ‘तु’ कार कर्णों की रक्षा करे, ‘व’ कार नासापुट की और ‘रे’ कार कपाल की रक्षा करे।

णिकारस्त्वधरोष्ठ च यकारस्तुर्ध्व ओष्ठके । आस्य मध्ये मकारस्तु गोकारस्तु कपोलयोः ।। ‘णि’ कार नीचे के ओष्ठ की ‘य’ कार उपरोष्ठ की, मुख के मध्य में ‘भ’ कार ‘गो’ कार दोनों कपोलों की रक्षा करें।

देकारं कण्ठ देशे च वकारः स्कन्ध देशयोः । स्यकारो दक्षिणं हस्तं धी काशे वाम् हस्तकम् ।। ‘दे’ कार कण्ठ प्रदेश की, ‘ब’ कार दोनों कन्धों की, ‘स्य’ कार दायें हाथ की तथा ‘धी’ यह बायें हाथ की रक्षा करे।

मकारो हृदयं रक्षोद्धिकारो जठरं तथा । धिकारौ नाभिदेशं तु यो कारस्तु कटि द्वयम् ।। ‘म’ कार हृदय की रक्षा करे, ‘हि’ कार पेट की और ‘यो’ कार कटि द्वय की रक्षा करे।

गुह्यं रक्षतु यो कार उरू मे नः पदाक्षरमः । प्रकारो जाननी रक्षेच्चोकारी जघ देशयोः ।। ‘यो’ कार गुह्य प्रदेश की रक्षा करे। दोनों उरुओं की ‘न’ पद रक्षा करे। ‘प्र’ कार दोनों घुटनों की रक्षा करे। ‘च’ कार जंघा प्रदेश की रक्षा करे।

दकारो गुल्फा देशे तु यात्कारः पाद युग्मकम् ।। ‘द’ कार गुल्फ की रक्षा करे, ‘यात्’ पद दोनों पैरों की रक्षा करे।

बांई हथेली ऊपर—दाहिनी नीचे रख कर उस संयुक्त करतल पृष्ठ का निर्धारित स्थानों पर स्पर्श करना रक्षा विधान है। दूसरी विधि वह भी है कि हाथ जोड़कर निर्धारित स्थानों पर देव शक्तियों के अवतरण होने और अवयवों की स्थूल शक्ति तथा वहां विद्यमान दिव्य शक्ति के संरक्षण, अभिवर्धन का उत्तर दायित्व निभा लेने की भावना करे। देव शक्तियों के जागरण एवं अवतरण की अनुभूति प्रायः दो रूपों में होती है। प्रथम रंग-दूसरा गन्ध। ध्यानावस्था में भीतर एवं बाहर किसी रंग विशेष की झांकी बार-बार ही अथवा किसी पुष्प विशेष की गन्ध भीतर से बाहर को उभरती प्रतीत हो तो समझना चाहिये कि गायत्री के अक्षरों में सन्निहित अमुक शक्ति उभार विशेष रूप से हो रहा है। इस अनुभूति के लिए 24 पुरुषों का उदाहरण दिया गया है। उनके रंग या गन्ध की अन्तः अनुभूति के आधार पर देव शक्तियों का अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसा भी कहा जाता है कि अमुक शब्द शक्तियों की साधना में इन फूलों का उपयोग विशेष सहायक सिद्ध होता है।

अक्षरों और पुष्पों की संगति का उल्लेख इस प्रकार है

अत परम वर्णवर्णान्व्याहरामि यथातथम् ।। चम्पका अतसीपुष्पसन्निभं विद्रु मम् तथा । स्फटिकारकं चैव पद्यपुष्पसमप्रभम् ।। तरुणादित्यसङ्काशं शङ्खकुन्देन्दुसन्निभम् । प्रवाल पद्मपत्राभम् पद्मरागसमप्रभम् ।। इन्द्रनीलमणिप्रख्यं मौक्तिकम् कुम्कुमप्रभम् । अन्जनाभम् च रक्तं च वैदूर्य क्षौद्रसन्निभम् ।। हारिद्रम् कुन्ददुग्धाभम् रविकांतिसमप्रभम् । शुकपुच्छनिभम् तद्वच्छतपत्र निभम् तथा ।। केतकीपुष्पसङ्काशंमल्लिकाकुसुमप्रभम् । करवीरश्च इत्येते क्रमेण परिकीर्तिताः ।। वर्णाः प्रोक्ताश्च वर्णानां महापापविधनाः ।

गायत्री महामंत्र के 24 अक्षरों की प्रकाश किरणों के 24 रंग नीचे दिये पदार्थों तथा पुरुषों के रंग जैसे समझने चाहिये।

(1) चम्पा (2) अलसी (3) स्फुटिक (4) कमल (5) सूर्य (6) कुन्द (7) शंख (8) प्रवाल (9) पद्म पत्र (10) पद्मराग (11) इन्द्रनील (12) मुक्ता (13) कुंकुम (14) अंजन (15) बैदूर्य (16) हल्दी (17) कुन्द (18) द्रध (19) सूर्य कान्त (20) शुक की पूछ (21) शतपत्र (22) केतकी (23) मल्लिका (24) कन्नेर।

किस अक्षर का नियोजन किस स्थान पर हो इस सन्दर्भ में भी मतभेद पाये जाते हैं। इन बारीकियों में न उलझ कर हमें इतना ही मानने से भी काम चल सकता है कि इन स्थानों में विशेष शक्तियों का निवास है और उन्हें गायत्री साधना के माध्यम से जगाया जा सकता है। पौष्टिक आहार-विहार से शरीर के समस्त अवयवों का परिपोषण होता है। रोग निवारक औषधि से किसी भी अंग में छिपी बीमारी के निराकरण का लाभ मिलता है, इसी प्रकार समग्र गायत्री उपासना साधारण रीति से कहने पर भी विभिन्न अवयवों में विद्यमान देव शक्तियां समर्थ बनाई जा सकती हैं। सामान्यतया विशिष्ठ अंग साधना की अतिरिक्त आवश्यकता नहीं पड़ती। संयुक्त साधना से ही सन्तुलित उत्कर्ष होता रहता है।

वेदमंत्र का संक्षिप्त रूप बीजमंत्र कहलाता है। वेद वृक्ष का सार संक्षेप बीज है। बीज है। मनुष्य का बीज वीर्य है। समूचा काम विस्तार बीज में सन्निहित रहता है। गायत्री के तीन चरण हैं। इन तीनों का एक-एक बीज ‘‘भूः-भुवः-स्वः’’ है। इस व्याहृति भाग का भी बीज है—ॐ। यह समग्र गायत्री मंत्र की बात हुई। प्रत्येक अक्षर का भी एक-एक बीज है। उसमें उस अक्षर की सार-शक्ति विद्यमान है। तांत्रिक प्रयोजनों में बीजमंत्र का अत्यधिक महत्व है। इस लिए गायत्री—मृत्युंजय जैसे प्रख्यात मंत्रों की भी एक या कई बीजों समेत उपासना की जाती है। चौबीस अक्षरों के 24 बीज इस प्रकार हैं—

(1) ॐ   (2) हृीं   (3) श्री   (4) क्लीं   (5) हों   (6) जूं   (7) यं   (8) रं   (9) लं    (10) वं    (11) शं    (12) सं    (13) ऐं    (14) क्रो   (15) हूं   (16) ह्लीं   (17) पं   (18) फं   (19) टं   (20) ठं   (21) डं   (22) ढं   (23) क्षं    (24) लं

यह बीज मंत्र व्याहृतियों के पश्चात् एवं मंत्र-भाग से पूर्व लगाये जाते हैं। ‘भूर्भुवः स्वः’ के पश्चात् ‘तत्सवितुः’ से पहले का स्थान ही बीज लगाने का स्थान है। ‘प्रचोदयात्’ के पश्चात् भी इन्हें लगाया जाता है। ऐसी दशा में उसे सम्पुट कहा जाता है। बीज या सम्पुट में से किसे कहां लगाना चाहिए इसका निर्णय किसी अनुभवी के परामर्श से करना चाहिए। बीज-विधान, तंत्र-विधान के अन्तर्गत आता है। इसलिए इनके प्रयोग में विशेष सतर्कता की आवश्यकता रहती है।

प्रत्येक बीज मंत्र का एक यंत्र भी है। इन्हें अक्षर-यंत्र या बीज यंत्र कहते हैं। तांत्रिक उपासनाओं में पूजा प्रतीक में चित्र-प्रतीक की भांति किसी धातु पर खोदे हुए यंत्र की भी प्रतिष्ठापना की जाती है और प्रतिमा-पूजन की तरह यंत्र का भी पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन किया जाता है। दक्षिणमार्गी साधनाओं में प्रतिमा-पूजन का जो स्थान है वही वाममार्गी उपासना उपचार में यंत्र-स्थापना का है गायत्री यंत्र विख्यात है। बीजाक्षरों से युक्त 24 यंत्र उसके अतिरिक्त हैं। इन्हें 24 अक्षरों में सन्निहित 24 शक्तियों की प्रतीक प्रतिमा कहा जा सकता है।


2 Last


Other Version of this book



गायत्री का हर अक्षर शक्ति स्रोत
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गायत्री का हर अक्षर शक्ति स्रोत
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • चौबीस अक्षर—चौबीस शक्तिस्रोत
  • चौबीस अक्षर चौबीस प्रत्यक्ष देवता
  • चौबीस देव गायत्री
  • गायत्री का तत्व दर्शन
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj