Books - जीवन को धन्य बनाने का महानतम अवसर
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जीवन को धन्य बनाने का महानतम अवसर
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(सितम्बर, १९८० में शान्तिकुञ्ज में दिया गया उद्बोधन)गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो, भाइयो! यह प्रज्ञावतार के अवतरण का समय है। ये बीस वर्ष बड़े ही महत्त्वपूर्ण हैं ।। इन बीस वर्षों में घोर परिवर्तन की तैयारियाँ महाकाल ने कर ली हैं। ये बीस वर्ष भगवान् के द्वारा गलाई एवं ढलाई के हैं। दुनिया इसे याद करेगी कि ऐसा कौन- सा समय आया जिसमें इतने महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो गए। इसमें आप देखेंगे कि पुराने जमाने की अवांछनीयताएँ समाप्त हो जाएँगी तथा नये जमाने की सुखद संभावनाएँ लोगों को दिखायी पड़ने लगेंगी। मनुष्य का सुख- शान्ति के साथ जीवन जीना संभव हो सकेगा। हमने इस बात को युगशक्ति गायत्री में, अखण्ड ज्योति में छाप दिया है। इस समय हर धर्मवेत्ता तथा हर महान भविष्यवक्ता ने एक स्वर से इस बात को स्वीकार किया है कि अगले बीस वर्ष बड़े ही उथल- पुथल के होंगे।
इस समय अपनी पृथ्वी के संतुलन को ठीक करने के लिए भगवान् ने अवतार लेने का निश्चय किया है। ये चौबीसवाँ अवतार अन्तिम अवतार होगा। चौबीस अक्षर गायत्री मंत्र के होते हैं। यह प्रज्ञावतार ही गायत्री का अवतार होगा, जो इस शतक के अंत तक अपना काम पूरा कर लेगा और नया युग लाएगा। इसकी तैयारियाँ हो चुकी हैं। ये जो भविष्यवाणियाँ हैं, इन्हें आप मखौल न मानें। ये शब्द स्वयं महाकाल ने- भगवान् ने कहे हैं, ऐसा मानना चाहिए।
ऐसे समय में आप सभी जाग्रत आत्माओं को केवल हाथ पर हाथ रखकर बैठना नहीं है, बल्कि विशेष काम पूरा करना है। भगवान् का अवतार तो होता है, परन्तु वह निराकार होता है। उनकी वास्तविक शक्ति जाग्रत आत्मा होती है, जो भगवान् का संदेश प्राप्त करके अपना रोल अदा करती है। जो भी भगवान् हुए हैं, वे साकार लोगों के माध्यम से ही अपना काम करते हैं, क्योंकि निराकार अपना काम स्वयं नहीं कर सकता। वह तो प्रेरणा, प्रकाश, शक्ति, मार्गदर्शन कर सकता है। काम तो साकार व्यक्तित्व- जो महान आत्मा, जाग्रत आत्मा होते हैं, उन्हें ही पूरा करना होता है। वास्तव में उन्हें साकार यानि आकार बनाकर ही वह काम करना पड़ता है। प्राण निराकार है, परन्तु उसका आधार साकार ही होता है। इसीलिए उसे शरीर धारण करके अपना कार्य पूरा करना पड़ता है। ठीक इसी प्रकार प्रज्ञावतार अपनी जो गतिविधियाँ चलाने जा रहे हैं, उसमें अनीति, अत्याचार से लड़ना है। उसके लिए उन्होंने कुछ माध्यम- साधन बनाया है या यह कह सकते हैं कि उन्होंने कुछ माध्यम चुना है।
वास्तव में भगवान् के कार्य में जिन्हें हाथ बँटाने का मौका मिल सके, उन्हें हम बड़ा सौभाग्यशाली मानते हैं। वे स्वयं भी इस बात को अपना सौभाग्य मानेंगे। इतना ही नहीं सारी दुनिया उनको याद करती रहेगी कि हमारे बुजुर्ग, हमारे बाप- दादे इतने महान तथा सौभाग्यशाली थे, जिन्होंने आगे बढ़कर भगवान् का हाथ बँटाया था तथा उनके कन्धे से कन्धा लगाया था। ये बातें आने वाली पीढ़ियाँ गर्व से कहेंगी। आज तो सब चादर तानकर सोये हुए हैं। आज किस प्रकार की स्थिति हो गयी है? चारों तरफ अंधकार ही अंधकार दिखाई पड़ रहा है। आज जो व्यक्ति प्रतिभाशाली हैं तथा आत्मबल से सम्पन्न हैं, उनमें से भी अधिकांश दो बातें ही सोचते हैं कि हमें पेट भरना चाहिए तथा कीड़े- मकोड़े की तरह औलाद पैदा करनी चाहिए। इसके अलावा उनको किसी बात की चिन्ता नहीं है। न तो वे परमार्थ की बात सोचते हैं, न आत्मा की बाबत सोचते हैं, वे केवल अपने स्वार्थ में ही संलग्न हैं।
इस विषम परिस्थिति में युग- निर्माण परिवार के व्यक्तियों को महाकाल ने बड़े जतन से ढूँढ़- खोजकर निकाला है। आप सभी बड़े ही महत्त्वपूर्ण एवं सौभाग्यशाली हैं। इस समय कुछ खास जिम्मेदारियों के लिए आपको महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। आपको भगवान् के कार्य में भागीदारी निभानी है। आपको ऐसा सुन्दर मौका मिला है। वास्तव में आपको यह तथ्य समझना चाहिए कि आप भगवान् के विशेष आदमी हैं तथा भगवान् के विशेष काम के लिए आपको धरती पर अवतरित होना पड़ा है। आप धरती पर केवल बच्चे पैदा करने और पेट भरने के लिए नहीं आए हैं, बल्कि आज की इस विषम परिस्थितियों को बदलने में भगवान् की मदद करने के लिए आए हैं। इस बात को फिर से समझ लीजिए।
आपका यह ख्याल है कि भगवान् अगर किसी पर प्रसन्न होते हैं, तो उसे बहुत सारी धन- सम्पत्ति देते हैं तथा औलाद देते हैं। यह बिलकुल गलत और घटिया ख्याल है, भगवान के बारे में आपका। आपको इस ख्याल को बदलना चाहिए। वास्तविकता ये है कि जो भगवान् के नजदीकी होते हैं, उन्हें धन- सम्पत्ति एवं औलाद से अलग कर दिया जाता है। ऐसी परिस्थिति में ही उनके द्वारा यह सम्भव हुआ है कि वे भगवान् का काम करने के लिए अपना साहस एकत्रित कर सकें और श्रेय भी प्राप्त कर सकें। इससे कम कीमत पर किसी को भी श्रेय नहीं मिला है। आप चाहेंगे कि आपको धन- सम्पत्ति भी मिले, औलाद भी मिले तथा भगवान् का प्यार भी मिले, तो यह कदापि संभव नहीं है। आपको एक चीज तो अवश्य छोड़ना पड़ेगा। तभी आप भगवान् के प्यार, आशीर्वाद, अनुदान के भागीदार हो सकते हैं।
मित्रो, ऐसे समय में जिसे हम युग- संधि कहते हैं, प्रभातकाल की वेला तथा स्वर्णिम सौभाग्य की वेला कहते हैं। इस महान समय में आप लोगों को केवल आवश्यक कार्य ही करने चाहिए। इस खास समय में आप लोगों को अपनी- अपनी हथकड़ियों को थोड़ा ढीला कर देना चाहिए। इसका मतलब इस समय में सम्पत्ति इकट्ठा करने की प्रवृत्ति तथा औलाद पैदा करने की प्रवृत्ति को बन्द कर देना चाहिए। इस समय आपको अपने मन को थोड़ा संयमित कर लेना चाहिए। हमारी उनसे प्रार्थना है, जो जागरूक हैं। जो सोये हैं, उनसे हम क्या कह सकते हैं, परन्तु जो जागरूक हैं, उन्हीं से हम कुछ कह सकते हैं। आप जागरूक हैं, इसलिए हम आपसे कुछ कह रहे हैं। वास्तव में इस समय हर क्षेत्र के लोग सोये पड़े हैं। इससे अध्यात्म का क्षेत्र भी अछूता नहीं है। आज अध्यात्म क्षेत्र में वे ही व्यक्ति हैं, जो थोड़ा बहुत पूजा- पाठ करने के बाद अपनी सभी मनोकामनाएँ पूरी कराना चाहते हैं। ये सारे के सारे व्यक्ति सोये हुए हैं। ये चाहे सेठ हों या मंत्री या अध्यापक, सभी सोये हुए हैं। उनसे कुछ कहा भी जाए, तो उनकी आत्मा के ऊपर कोई असर नहीं पड़ेगा। ये इस कान से सुनकर उस कान से निकाल देंगे। इनको तो हम पूजा के क्षेत्र में भी सोये हुए कहते हैं, अध्यात्म के क्षेत्र में सोये हुए कहते हैं।
आज प्रज्ञावतार को ऐसे जागरूकों की आवश्यकता है, जो दुनिया के कोने- कोने में जाकर सोये हुए लोगों को जगा सकें, उनके मन- प्राणों को झकझोर सकें। उनमें साहस और हिम्मत पैदा कर सकें। हम आपको देखकर यह बतला सकते हैं कि आप जागरूक व्यक्ति हैं। युगसंधि के समय पर जो महत्त्वपूर्ण कामों में हनुमान, अंगद और अर्जुन जैसा सहयोग कर सकते हैं तथा भगवान् के उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं। हम आप लोगों को सौभाग्यवान मानते हैं। हम आप लोगों को युगप्रहरी मानते हैं। हम आपको भगवान् का सहयोगी- सहायक मानते हैं। हम आप लोगों से इस समय एक ही निवेदन करना चाहते हैं कि आप लोगों को उन बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए, न ही वैसा करना चाहिए, जिन बातों पर सामान्य लोग ध्यान देते हैं और जो करते हैं। हमें पूरा विश्वास है कि आपने पिछले हजारों वर्षों में इसी प्रकार कई बार भगवान् का काम किया है। अब आप चाहें, तो पुनः हजार वर्षों तक अपना जीवन धन्य कर सकते हैं तथा महामानव बनने का श्रेय एवं सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं।
हम एक बात पुनः आपसे कहना चाहते हैं कि फिर ऐसा कोई समय नहीं आयेगा, जिसमें आपको औलाद या धन से वंचित रहना पड़े, परन्तु अभी इस जन्म में इन दोनों की बाबत न सोचें। आपको भगवान् के इस काम के अन्तर्गत रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकता सदा पूरी होती रहेगी, इसके लिए किसी प्रकार की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। भगवान् के काम में सहयोग करने, हाथ बँटाने से आपको दोहरा लाभ मिलता रहेगा- एक लोकमंगल का, दूसरा प्रभु समर्पित जीवन जीने का। मित्रो, हमारी इतनी सी बात अगर आप मान लें कि आप अपने चिन्तन से औलाद एवं धन के प्रति थोड़ा विराम लगा दें, तो मजा आ जाएगा और आपका जीवन सार्थक हो जाएगा। समय की माँग को समझें और जीवन को धन्य बनाने का यह सुयोग हाथ से न जाने दें।
आप यह मान्यता बनाकर चलें कि इस समय भगवान् का काम करने की आपको नितांत आवश्यकता है। इस काम के प्रति इस समय आपको भी प्यास होनी चाहिए। भगवान् को भी अपने काम कराने की प्यास है। आपसे भगवान् कुछ चाहते हैं। आपको भी भगवान् की आवश्यकता को पूरा करने के लिए साहस एवं हिम्मत के साथ आगे बढ़ना चाहिए। अगले दिनों में धन का संग्रह कोई नहीं कर सकेगा, क्योंकि आने वाले दिनों में धन के वितरण पर लोग जोर देंगे। शासन भी अगले दिनों आपको कुछ जमा नहीं करने देगा, अतः आप मालदार बनने का विचार छोड़ दें। आप अगर जमाखोरी का विचार छोड़ देंगे, तो इसमें कुछ हर्ज नहीं है। अगर आप पेट भरने- गुजारे भर की बात सोचें, तो कुछ हर्ज नहीं है। आप संतान के लिए धन जमा करने, उनके लिए व्यवस्था बनाने की चिन्ता छोड़ दें। उन्हें उनके ढंग से जीने दें। संसार में जो आया है, वह अपना भाग्य लेकर आता है।
जार्ज वाशिंगटन अपने भाग्य से ही महान बने थे। उनके खानदान वालों ने उन्हें महान नहीं बनाया था। दूसरे और भी मनुष्य जो गरीब खानदान में पैदा हुए, उनके माँ- बाप ने उनके लिए दौलत नहीं छोड़ी थी, परन्तु वे अपने पुरुषार्थ से- हिम्मत से आगे बढ़े, धनवान बने। इस समय औलाद के लिए पैसे- धन छोड़कर जाने की बात न सोचें। उन्हें श्रेष्ठ संस्कार दें। औलाद के पास धन नहीं, तो कोई बात नहीं है। आपके पास भी धन नहीं है, तो क्या हुआ? इस महत्त्वपूर्ण समय में आप प्रज्ञावतार का काम तो कर सकते हैं।
यह युगसन्धि का पहला वर्ष है। इस समय हर प्रज्ञापरिवार को तीन उत्तरदायित्व सौंपे गए हैं। आपको भी तीन उत्तरदायित्वों को पूरा करना चाहिए। आपको इस समय पुरुषार्थ करना चाहिए तथा वरदान पाना चाहिए। कभी भी किसी को फोकट में कुछ नहीं मिला है। जब से यह इतिहास बना, तब से अब तक मुफ्त में किसी को कुछ नहीं मिला है। स्वामी विवेकानन्द ने, शिवाजी ने भी कीमत चुकाई, तब कुछ पाया। आप फोकट के फेर में है। मित्रो, मिट्टी भी फोकट में नहीं मिलती। आप तो कीमत चुकाना भी नहीं चाहते। यह कीमत चुकाने का वक्त है। आप कीमत चुकाने के लिए आगे आइए न। आप बीज बोने का प्रयास तो कीजिए। अगर आप बीज नहीं बोएँगे, तो फसल कैसे काटेंगे। आप कहते हैं कि गुरुजी हम तो भजन करते हैं। भजन का हम क्या करें? केवल भजन से कोई बात नहीं बनने वाली है। भजन के साथ- साथ पुरुषार्थ भी करें। जितने संत, महामानव इस धरती पर हुए हैं, उन्होंने पुरुषार्थ किया है। तब फल पाया है। आप इस तरह पड़े रहेंगे तथा तीन माला का जप करते रहेंगे तो आप घाटे में रहेंगे। आपको कुछ लाभ नहीं मिलने वाला है। आप वरदान माँगते रहिए- कोई भी देने वाला नहीं है।
हमने पुरुषार्थ किया है। हाँ, हमने भजन भी किया है, लेकिन भजन से कुछ नहीं होता। आप में से कोई भी ऐसा आदमी नहीं है, जो पुरुषार्थ नहीं कर सकता है। आप कहते हैं कि हमारे पास क्या है, हम पुरुषार्थ कैसे करें? हम पूछते हैं कि अगर आपके पास धन- दौलत नहीं है, तो अक्ल तो है। आपके पास समय तो है, श्रम तो है। लगाइए न इन्हें भगवान् के काम में। समय की माँग को देखते हुए हम फिर से आप लोगों से यह प्रार्थना करते हैं कि यह महत्त्वपूर्ण समय है। आपको अपनी अक्ल, समय, श्रम, धन जो भी हो उसे भगवान् के खाते में जमा करने का प्रयास करना चाहिए। इस समय महाकाल, जो हिमालय में रहते हैं, उनका तीन कार्य का आदेश है। उसे पूरा करने का प्रयास करें। इन कामों के द्वारा आप घाटे में नहीं रहेंगे। ये बातें आपको अवश्य माननी चाहिए।
पहला- युगसंधि महापुरश्चरण की भागीदारी अवश्य निभाने का प्रयास करना चाहिए। नैष्ठिक उपासना- पाँच माला गायत्री मंत्र का जप करें। इससे आपका आत्मबल बढ़ेगा। इसमें अवश्य भाग लें। इसमें आत्म- कल्याण और विश्व कल्याण का भाव जुड़ा है।
दूसरा- हर गाँव में, हर शहर में प्रज्ञावतार का संदेश घर- घर तक पहुँचाने का आपको प्रयास करना चाहिए। इस बार हम सामूहिक कार्यक्रम करना चाहते हैं। इसके लिए हम चाहते हैं कि कुछ लोग परिव्राजक के रूप में युग- चेतना के संदेश को पूरे देश में पहुँचाने का प्रयास करें। वे समयदान दें और साधु- ब्राह्मण का जीवन जिए।
तीसरा- अब व्यक्ति एकाकी काम न करे, बल्कि सब मिलजुल कर काम करेंगे। हम चाहते हैं कि हर गाँव में एक चरणपीठ, ग्रामतीर्थ स्थापित हो जाए और सभी लोग वहाँ इकट्ठे हों तथा मिलजुलकर आगे के काम की- प्रगति की योजना बनायी जाए। जिस तरह एम.एल.ए. अपने क्षेत्र के विकास की योजना बनाते हैं, उसी प्रकार चरणपीठ वाले अपने- अपने गाँव के विकास की योजना बनाएँ और उसे चरितार्थ करें।
हमने शक्तिपीठ के लिए अनुरोध किया था। वह वजन हमने उठा लिया है। प्रज्ञापीठों का भी काम, उत्तरदायित्व पूरा होने वाला है, परन्तु हम उससे ज्यादा महत्त्व चरणपीठ को देना चाहते हैं, जो हर गाँव में हो। यह हमारे प्रज्ञावतार का प्रतीक हो- देवी का प्रतीक हो। इस वर्ष हमें हर गाँव में जाने की इच्छा है। अतः आप अपने- अपने मित्रों, रिश्तेदारों को बोल कर हर गाँव में एक चरणपीठ बनाने का प्रयास करें। इस चरणपीठ का काम कोई महँगा नहीं है। आप इसे सहज में पूरा कर सकते हैं। एक विवाह- शादी में कम से कम खर्च ६००० रुपये से कम नहीं होता है। चरणपीठ में तो उतना भी नहीं लगने वाला है। आप यह मानकर चलें कि आपको भगवान् ने एक संतान चरणपीठ के रूप में दी है। आप अपना दिल चौड़ा तो कर लीजिए, हिम्मत तो कर लीजिए, इसके बाद आपका काम सरलता से हो जाएगा। आपको मालूम नहीं है मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के एक भील ने प्रज्ञापीठ के लिए अपनी जमीन दे दी। उसकी व्यवस्था एवं परिव्राजक खर्च के लिए एक और भी खेत दान कर दिया। आप क्या उस भील से भी गए- गुजरे हैं।
आप भगवान् के भक्त हैं, प्रज्ञापुत्र हैं, फिर आपकी हिम्मत इतनी कम कैसे है? आप चाहें तो किसी के पास हाथ पसारने की आवश्यकता नहीं है। आप तो एक बीघा जमीन बेचकर इस काम को कर सकते हैं। भगवान् के भक्त इतने कंजूस एवं कायर? यह देखकर तो हमें आश्चर्य होता है। आपको इतना कृपण नहीं होना चाहिए। आप दूसरों पर दोष लगाते हैं कि अमुक ने समय नहीं दिया, अमुक ने पैसा नहीं दिया। आप अपने को तो पहले तैयार करें। हम आपको कह रहे हैं। इतना ही नहीं सबसे पहले आपको आगे बढ़कर काम करना चाहिए। आप स्वयं २०० रुपये देकर पहल कीजिए, फिर देखिए चरणपीठ बनता है या नहीं। आप तो लोगों से पहले चार आना, रुपया माँगते हैं। आप अगर स्वयं पहल करेंगे, तो देखेंगे कि आप घाटे में नहीं रहेंगे। आप अपने से काम शुरू करें।
हमने ६००० रुपये में चरणपीठ बनाने की एक योजना दी है। उसमें चार चीजें हैं। इसमें कार्यकर्ता निवास नितान्त आवश्यक है। मंदिर बनाकर ताला लगा देंगे, तो कैसे काम चलेगा? इसलिए एक कार्यकर्ता निवास अवश्य बनाना होगा। दूसरा एक हॉल बना दिया जाए, जिसमें हवन, सत्संग के कार्य के साथ- साथ रात्रि को कथा- गोष्ठी योग शिविर प्रशिक्षण भी चल सकें। उसी में देवमन्दिर भी होना चाहिए, क्योंकि देवता नहीं होंगे, तो श्रद्धा कहाँ से जुड़ेगी। ये सभी चीजें ६००० रुपये में शामिल हैं। आपको अगर गायत्री माता की मूर्ति लेनी है, तो १००० रुपये का खर्च अतिरिक्त हो जाएगा। उस परिस्थिति में ७००० रुपये खर्च होगा। आप बड़ी मूर्ति नहीं लगा सकते, तो छोटी लगा दें। इसमें एक पुस्तकालय भी शामिल है। इस प्रकार ६००० रुपये का त्याग आप सभी को मिलजुल कर करना चाहिए। इसके अलावा जहाँ बड़ी शक्तिपीठें बन रही हैं, वहाँ भी आपको सहयोग देना चाहिए। उनके बन जाने के बाद वहाँ से कार्यकर्ता आपको मिलेंगे, वहाँ से सहयोग और मार्गदर्शन मिलेगा। आप सभी उन्हें सहयोग करें, ताकि वे जल्दी बन जाएँ और मिशन का उद्देश्य पूरा हो सके। हमारी गुजरात में पाँच सौ- छह सौ शाखाएँ हैं। हम चाहते हैं कि कम से कम २४० चरणपीठें वहाँ अवश्य बनें। ६००० रुपये कोई बड़ी बात नहीं है। इतना खर्च करके आप इसे बना डालिए। हम आपका ब्याज सहित रुपया वापस कर देंगे।
हमने जो कुछ भी समाज को दिया है, उससे अधिक पा लिया है। प्राचीनकाल में भी जिन लोगों ने जो कुछ दिया, उससे ज्यादा पाया था। आप यकीन रखें, आप भी जितना लगाएँगे, उससे अधिक पाएँगे। आप ज्यादा देने के लिए पात्रता साबित कीजिए। आप दे नहीं पाएँगे, तो हम आपकी सहायता कैसे कर सकते हैं। आप कृपण बने रहें, तो हम क्या करेंगे? आपको महत्त्वपूर्ण श्रेय किस प्रकार दे पाएँगे। आप आगे बढ़िए और इस चरणपीठ के कार्य को पूरा कीजिए। आपके क्षेत्र में जहाँ कहीं भी शक्तिपीठें बन रही हैं, उन्हें पूरा कराने का प्रयास कीजिए।
तीसरी बात यह है कि मात्र इतने से काम नहीं चलेगा, बल्कि आपको जनशक्ति को भी जगाना होगा। इसके बिना युग- परिवर्तन की भूमिका सम्भव नहीं होगी। आदमी की भी इसमें नितान्त आवश्यकता है। आपने मशीन तो बना दी, परन्तु कारीगर न हो, तो मशीन चलेगी कैसे? हमारे मिशन के साथ जनशक्ति की भी आवश्यकता है। इतने बड़े समाज की माँग केवल शान्तिकुञ्ज से कहाँ पूरी हो सकती है। आप लोगों में से हर आदमी से प्रार्थना है कि आपके अन्दर जो चाण्डाल एवं बनिया छिपा हुआ है, उसे निकालिए। चाण्डाल आपको अच्छे काम नहीं करने देता है। वह हमेशा आपको बुरे काम करने की ही प्रेरणा देता है। आपके भीतर बनिया भी छिपा है, जो आपको कंजूस बनाकर रखता है। एक दमड़ी भी समाज के लिए, लोकमंगल के लिए सही ढंग से खर्च करने की प्रेरणा भी नहीं देता है। इसी के साथ यह बात भी सत्य है कि आपके भीतर ब्राह्मण एवं संत भी छिपा है। उसे भी देखने का, जाग्रत एवं जिन्दा करने का प्रयास करें। ब्राह्मण एवं संत को आगे आना चाहिए। इसका क्या मतलब? इसका मतलब यह है कि आपमें से जो पचास साल के हो गए हैं या जिनकी घरेलू जिम्मेदारी पूरी हो गई है अथवा कम हैं, उन्हें संत- ब्राह्मण के काम के लिए आगे आना चाहिए। आपके लिए गुजारे का है तो आप हाय- हाय क्यों करते हैं? आपके बच्चे जब कमाने लग गए हैं, तो क्यों आप घर में बैठकर मर रहे हैं? आपको घर से बाहर निकलना चाहिए। आपको परिव्राजक के रूप में बादलों की तरह घर से निकलना चाहिए तथा समाज के लोगों को नया प्रकाश, नयी प्रेरणा, नयी रोशनी देनी चाहिए।
गायत्री परिवार के हर व्यक्ति से हमारा अनुरोध है कि जितने व्यक्ति अपने घर की व्यवस्था करके जितना समय समाजसेवा के लिए निकाल सकते हों, वे युगसृजन की भूमिका निभाने के लिए आगे आएँ। संत की प्रवृत्ति को आप जगाइए तथा अपने समय का एक अंश लगाकर समाज के लोगों को ऊँचा उठाने का प्रयास करें। उन्हें जीवन जीने की कला सिखाएँ। अगर संत की प्रवृत्ति आपमें जाग जाए, तो जो आप अपने परिवार, बाल- बच्चों के लिए खर्च कर रहे हैं, उसका एक अंश समाज के लिए अवश्य खर्च करेंगे, ऐसा हमारा विश्वास है। संत अगर मुर्दा पड़ा रहे, संत अगर सोता रहे, तो हम क्या कर पायेंगे? आप में संत की प्रवृत्ति जागनी ही चाहिए। आपके भीतर एक और भी चीज है, जिसे हम ब्राह्मण कहते हैं। ब्राह्मण कौन है? जो किफायतसारी जीवन जीता हो। अगर आप ब्राह्मण हैं, तो हम आपके खर्चे की व्यवस्था कर सकते हैं। आप आगे आएँ और भगवान् का कार्य करें। पिछले जमाने में लोग ब्राह्मणों को दक्षिणा देते थे। इसका मतलब यह था कि वे उनके खर्चों का भार उठाते थे।
हमने भी अपने परिजनों से दक्षिणा माँगी है। घर- घर में ज्ञानघट स्थापित किए हैं और लोगों से कहा है कि आप इसमें दस पैसे नित्य डालिए। हमें दक्षिणा दीजिए, समाज एवं राष्ट्र के उत्थान के लिए इसकी आवश्यकता है। लोगों ने हमारी बात मानी और ज्ञानघटों की संख्या बढ़ रही है। आप इसमें कंजूसी मत कीजिए। नियमित रूप से इसमें दस पैसे डालिए। इससे हम युग- परिवर्तन की सारी जिम्मेदारी पूरी करेंगे। साथ ही साथ हम ब्राह्मणों को भी जीवित करेंगे और उनकी न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करेंगे। हम अपने देश, समाज के लोगों को ऊँचा उठाएँगे।
मित्रो, ब्राह्मण किसे कहते हैं? यह कोई जाति नहीं, वरन् मानव समुदाय का वह वर्ग है, जो केवल अपने लिए ही नहीं, देश समाज और संस्कृति के लिए जीता है। जो पेट भरने और तन ढकने के लिए दो कपड़े की व्यवस्था जुटा लेने के पश्चात् बाकी बचे समय में समाज का काम करता है। यही ब्राह्मण की वास्तविक पहचान है। जो इस आदर्श एवं सिद्धान्त पर चल रहे हैं, वे सारे के सारे लोग ब्राह्मण है। आपको मालूम होना चाहिए कि आगामी दिनों प्रज्ञावतार का जो कार्य विस्तार होने वाला है, उस काम की जिम्मेदारी केवल ब्राह्मण तथा संत ही पूरा कर सकते हैं। अतः आपको इन दो वर्गों में आकर खड़ा हो जाना चाहिए तथा प्रज्ञावतार के सहयोगी बनकर उनके कार्य को पूरा करना चाहिए। अगर आप अपने खर्च में कटौती करके तथा समय में से कुछ बचत करके इस ब्राह्मण एवं संत परम्परा को जीवित कर सकें, तो आने वाली पीढ़ियाँ आप पर गर्व करेंगी। अगर आपको इस युग की समस्याओं के समाधान करने के लिए खर्चे में कुछ कमी आती है, तो हम आपको सहयोग करेंगे, परन्तु एक बात मालूम रहे कि हम आपके लिए प्रोविडेण्ट फण्ड की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं। अगर आप समय निकाल सकते हों, तो समय निकालने का प्रयास करें। हमें समयदानियों की नितान्त आवश्यकता है। आप आगे आएँ तथा प्रज्ञावतार के कामों को पूरा करें। आपमें से जहाँ कहीं भी संत, ब्राह्मण जिन्दा हों, वे आगे आवें और महाकाल के साथी- सहचर बन कर लोकमंगल का काम करें।
संत पूरा समय देते हैं और ब्राह्मण कुछ समय देते हैं। आपको इन दोनों में से जो अच्छा लगता हो, उस उत्तरदायित्व को पूरा करें। आपको इस समय तीन काम अवश्य पूरे करने चाहिए-
(१) युगसंधि महापुरश्चरण आपको करना ही चाहिए
(२) किसी न किसी प्रकार हर गाँव में एक चरणपीठ, ग्रामतीर्थ जिसकी लागत लगभग ६ हजार रुपये है, अवश्य बनाना चाहिए।
(३) आपको संत या ब्राह्मण दोनों में से किसी न किसी परम्परा को अपनाना चाहिए।
आप इसे स्वयं करें, जो आपके लिए सम्भव दिखलाई पड़ता है। इसके साथ ही आप औरों से भी कराइए। अगर आप इन तीनों कामों को कर सकते हैं, तो हमें विश्वास है कि आप प्रज्ञावतार के कामों को पूरा करने में सक्षम हो सकते हैं। आपसे हमारा निवेदन है कि आप हमारे सच्चे साथी- सहचर बनकर, महाकाल के सच्चे साथी- सहचर बनकर, अगर इतना कर पाए, तो जो इस समय की माँग है, वह पूरी हो सकेगी। हमें विश्वास है कि आप इसे पूरा कर सकेंगे।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माकश्चिद् दुःखमाप्रुयात्॥
ॐ शान्तिः
देवियो, भाइयो! यह प्रज्ञावतार के अवतरण का समय है। ये बीस वर्ष बड़े ही महत्त्वपूर्ण हैं ।। इन बीस वर्षों में घोर परिवर्तन की तैयारियाँ महाकाल ने कर ली हैं। ये बीस वर्ष भगवान् के द्वारा गलाई एवं ढलाई के हैं। दुनिया इसे याद करेगी कि ऐसा कौन- सा समय आया जिसमें इतने महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो गए। इसमें आप देखेंगे कि पुराने जमाने की अवांछनीयताएँ समाप्त हो जाएँगी तथा नये जमाने की सुखद संभावनाएँ लोगों को दिखायी पड़ने लगेंगी। मनुष्य का सुख- शान्ति के साथ जीवन जीना संभव हो सकेगा। हमने इस बात को युगशक्ति गायत्री में, अखण्ड ज्योति में छाप दिया है। इस समय हर धर्मवेत्ता तथा हर महान भविष्यवक्ता ने एक स्वर से इस बात को स्वीकार किया है कि अगले बीस वर्ष बड़े ही उथल- पुथल के होंगे।
इस समय अपनी पृथ्वी के संतुलन को ठीक करने के लिए भगवान् ने अवतार लेने का निश्चय किया है। ये चौबीसवाँ अवतार अन्तिम अवतार होगा। चौबीस अक्षर गायत्री मंत्र के होते हैं। यह प्रज्ञावतार ही गायत्री का अवतार होगा, जो इस शतक के अंत तक अपना काम पूरा कर लेगा और नया युग लाएगा। इसकी तैयारियाँ हो चुकी हैं। ये जो भविष्यवाणियाँ हैं, इन्हें आप मखौल न मानें। ये शब्द स्वयं महाकाल ने- भगवान् ने कहे हैं, ऐसा मानना चाहिए।
ऐसे समय में आप सभी जाग्रत आत्माओं को केवल हाथ पर हाथ रखकर बैठना नहीं है, बल्कि विशेष काम पूरा करना है। भगवान् का अवतार तो होता है, परन्तु वह निराकार होता है। उनकी वास्तविक शक्ति जाग्रत आत्मा होती है, जो भगवान् का संदेश प्राप्त करके अपना रोल अदा करती है। जो भी भगवान् हुए हैं, वे साकार लोगों के माध्यम से ही अपना काम करते हैं, क्योंकि निराकार अपना काम स्वयं नहीं कर सकता। वह तो प्रेरणा, प्रकाश, शक्ति, मार्गदर्शन कर सकता है। काम तो साकार व्यक्तित्व- जो महान आत्मा, जाग्रत आत्मा होते हैं, उन्हें ही पूरा करना होता है। वास्तव में उन्हें साकार यानि आकार बनाकर ही वह काम करना पड़ता है। प्राण निराकार है, परन्तु उसका आधार साकार ही होता है। इसीलिए उसे शरीर धारण करके अपना कार्य पूरा करना पड़ता है। ठीक इसी प्रकार प्रज्ञावतार अपनी जो गतिविधियाँ चलाने जा रहे हैं, उसमें अनीति, अत्याचार से लड़ना है। उसके लिए उन्होंने कुछ माध्यम- साधन बनाया है या यह कह सकते हैं कि उन्होंने कुछ माध्यम चुना है।
वास्तव में भगवान् के कार्य में जिन्हें हाथ बँटाने का मौका मिल सके, उन्हें हम बड़ा सौभाग्यशाली मानते हैं। वे स्वयं भी इस बात को अपना सौभाग्य मानेंगे। इतना ही नहीं सारी दुनिया उनको याद करती रहेगी कि हमारे बुजुर्ग, हमारे बाप- दादे इतने महान तथा सौभाग्यशाली थे, जिन्होंने आगे बढ़कर भगवान् का हाथ बँटाया था तथा उनके कन्धे से कन्धा लगाया था। ये बातें आने वाली पीढ़ियाँ गर्व से कहेंगी। आज तो सब चादर तानकर सोये हुए हैं। आज किस प्रकार की स्थिति हो गयी है? चारों तरफ अंधकार ही अंधकार दिखाई पड़ रहा है। आज जो व्यक्ति प्रतिभाशाली हैं तथा आत्मबल से सम्पन्न हैं, उनमें से भी अधिकांश दो बातें ही सोचते हैं कि हमें पेट भरना चाहिए तथा कीड़े- मकोड़े की तरह औलाद पैदा करनी चाहिए। इसके अलावा उनको किसी बात की चिन्ता नहीं है। न तो वे परमार्थ की बात सोचते हैं, न आत्मा की बाबत सोचते हैं, वे केवल अपने स्वार्थ में ही संलग्न हैं।
इस विषम परिस्थिति में युग- निर्माण परिवार के व्यक्तियों को महाकाल ने बड़े जतन से ढूँढ़- खोजकर निकाला है। आप सभी बड़े ही महत्त्वपूर्ण एवं सौभाग्यशाली हैं। इस समय कुछ खास जिम्मेदारियों के लिए आपको महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। आपको भगवान् के कार्य में भागीदारी निभानी है। आपको ऐसा सुन्दर मौका मिला है। वास्तव में आपको यह तथ्य समझना चाहिए कि आप भगवान् के विशेष आदमी हैं तथा भगवान् के विशेष काम के लिए आपको धरती पर अवतरित होना पड़ा है। आप धरती पर केवल बच्चे पैदा करने और पेट भरने के लिए नहीं आए हैं, बल्कि आज की इस विषम परिस्थितियों को बदलने में भगवान् की मदद करने के लिए आए हैं। इस बात को फिर से समझ लीजिए।
आपका यह ख्याल है कि भगवान् अगर किसी पर प्रसन्न होते हैं, तो उसे बहुत सारी धन- सम्पत्ति देते हैं तथा औलाद देते हैं। यह बिलकुल गलत और घटिया ख्याल है, भगवान के बारे में आपका। आपको इस ख्याल को बदलना चाहिए। वास्तविकता ये है कि जो भगवान् के नजदीकी होते हैं, उन्हें धन- सम्पत्ति एवं औलाद से अलग कर दिया जाता है। ऐसी परिस्थिति में ही उनके द्वारा यह सम्भव हुआ है कि वे भगवान् का काम करने के लिए अपना साहस एकत्रित कर सकें और श्रेय भी प्राप्त कर सकें। इससे कम कीमत पर किसी को भी श्रेय नहीं मिला है। आप चाहेंगे कि आपको धन- सम्पत्ति भी मिले, औलाद भी मिले तथा भगवान् का प्यार भी मिले, तो यह कदापि संभव नहीं है। आपको एक चीज तो अवश्य छोड़ना पड़ेगा। तभी आप भगवान् के प्यार, आशीर्वाद, अनुदान के भागीदार हो सकते हैं।
मित्रो, ऐसे समय में जिसे हम युग- संधि कहते हैं, प्रभातकाल की वेला तथा स्वर्णिम सौभाग्य की वेला कहते हैं। इस महान समय में आप लोगों को केवल आवश्यक कार्य ही करने चाहिए। इस खास समय में आप लोगों को अपनी- अपनी हथकड़ियों को थोड़ा ढीला कर देना चाहिए। इसका मतलब इस समय में सम्पत्ति इकट्ठा करने की प्रवृत्ति तथा औलाद पैदा करने की प्रवृत्ति को बन्द कर देना चाहिए। इस समय आपको अपने मन को थोड़ा संयमित कर लेना चाहिए। हमारी उनसे प्रार्थना है, जो जागरूक हैं। जो सोये हैं, उनसे हम क्या कह सकते हैं, परन्तु जो जागरूक हैं, उन्हीं से हम कुछ कह सकते हैं। आप जागरूक हैं, इसलिए हम आपसे कुछ कह रहे हैं। वास्तव में इस समय हर क्षेत्र के लोग सोये पड़े हैं। इससे अध्यात्म का क्षेत्र भी अछूता नहीं है। आज अध्यात्म क्षेत्र में वे ही व्यक्ति हैं, जो थोड़ा बहुत पूजा- पाठ करने के बाद अपनी सभी मनोकामनाएँ पूरी कराना चाहते हैं। ये सारे के सारे व्यक्ति सोये हुए हैं। ये चाहे सेठ हों या मंत्री या अध्यापक, सभी सोये हुए हैं। उनसे कुछ कहा भी जाए, तो उनकी आत्मा के ऊपर कोई असर नहीं पड़ेगा। ये इस कान से सुनकर उस कान से निकाल देंगे। इनको तो हम पूजा के क्षेत्र में भी सोये हुए कहते हैं, अध्यात्म के क्षेत्र में सोये हुए कहते हैं।
आज प्रज्ञावतार को ऐसे जागरूकों की आवश्यकता है, जो दुनिया के कोने- कोने में जाकर सोये हुए लोगों को जगा सकें, उनके मन- प्राणों को झकझोर सकें। उनमें साहस और हिम्मत पैदा कर सकें। हम आपको देखकर यह बतला सकते हैं कि आप जागरूक व्यक्ति हैं। युगसंधि के समय पर जो महत्त्वपूर्ण कामों में हनुमान, अंगद और अर्जुन जैसा सहयोग कर सकते हैं तथा भगवान् के उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं। हम आप लोगों को सौभाग्यवान मानते हैं। हम आप लोगों को युगप्रहरी मानते हैं। हम आपको भगवान् का सहयोगी- सहायक मानते हैं। हम आप लोगों से इस समय एक ही निवेदन करना चाहते हैं कि आप लोगों को उन बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए, न ही वैसा करना चाहिए, जिन बातों पर सामान्य लोग ध्यान देते हैं और जो करते हैं। हमें पूरा विश्वास है कि आपने पिछले हजारों वर्षों में इसी प्रकार कई बार भगवान् का काम किया है। अब आप चाहें, तो पुनः हजार वर्षों तक अपना जीवन धन्य कर सकते हैं तथा महामानव बनने का श्रेय एवं सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं।
हम एक बात पुनः आपसे कहना चाहते हैं कि फिर ऐसा कोई समय नहीं आयेगा, जिसमें आपको औलाद या धन से वंचित रहना पड़े, परन्तु अभी इस जन्म में इन दोनों की बाबत न सोचें। आपको भगवान् के इस काम के अन्तर्गत रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकता सदा पूरी होती रहेगी, इसके लिए किसी प्रकार की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। भगवान् के काम में सहयोग करने, हाथ बँटाने से आपको दोहरा लाभ मिलता रहेगा- एक लोकमंगल का, दूसरा प्रभु समर्पित जीवन जीने का। मित्रो, हमारी इतनी सी बात अगर आप मान लें कि आप अपने चिन्तन से औलाद एवं धन के प्रति थोड़ा विराम लगा दें, तो मजा आ जाएगा और आपका जीवन सार्थक हो जाएगा। समय की माँग को समझें और जीवन को धन्य बनाने का यह सुयोग हाथ से न जाने दें।
आप यह मान्यता बनाकर चलें कि इस समय भगवान् का काम करने की आपको नितांत आवश्यकता है। इस काम के प्रति इस समय आपको भी प्यास होनी चाहिए। भगवान् को भी अपने काम कराने की प्यास है। आपसे भगवान् कुछ चाहते हैं। आपको भी भगवान् की आवश्यकता को पूरा करने के लिए साहस एवं हिम्मत के साथ आगे बढ़ना चाहिए। अगले दिनों में धन का संग्रह कोई नहीं कर सकेगा, क्योंकि आने वाले दिनों में धन के वितरण पर लोग जोर देंगे। शासन भी अगले दिनों आपको कुछ जमा नहीं करने देगा, अतः आप मालदार बनने का विचार छोड़ दें। आप अगर जमाखोरी का विचार छोड़ देंगे, तो इसमें कुछ हर्ज नहीं है। अगर आप पेट भरने- गुजारे भर की बात सोचें, तो कुछ हर्ज नहीं है। आप संतान के लिए धन जमा करने, उनके लिए व्यवस्था बनाने की चिन्ता छोड़ दें। उन्हें उनके ढंग से जीने दें। संसार में जो आया है, वह अपना भाग्य लेकर आता है।
जार्ज वाशिंगटन अपने भाग्य से ही महान बने थे। उनके खानदान वालों ने उन्हें महान नहीं बनाया था। दूसरे और भी मनुष्य जो गरीब खानदान में पैदा हुए, उनके माँ- बाप ने उनके लिए दौलत नहीं छोड़ी थी, परन्तु वे अपने पुरुषार्थ से- हिम्मत से आगे बढ़े, धनवान बने। इस समय औलाद के लिए पैसे- धन छोड़कर जाने की बात न सोचें। उन्हें श्रेष्ठ संस्कार दें। औलाद के पास धन नहीं, तो कोई बात नहीं है। आपके पास भी धन नहीं है, तो क्या हुआ? इस महत्त्वपूर्ण समय में आप प्रज्ञावतार का काम तो कर सकते हैं।
यह युगसन्धि का पहला वर्ष है। इस समय हर प्रज्ञापरिवार को तीन उत्तरदायित्व सौंपे गए हैं। आपको भी तीन उत्तरदायित्वों को पूरा करना चाहिए। आपको इस समय पुरुषार्थ करना चाहिए तथा वरदान पाना चाहिए। कभी भी किसी को फोकट में कुछ नहीं मिला है। जब से यह इतिहास बना, तब से अब तक मुफ्त में किसी को कुछ नहीं मिला है। स्वामी विवेकानन्द ने, शिवाजी ने भी कीमत चुकाई, तब कुछ पाया। आप फोकट के फेर में है। मित्रो, मिट्टी भी फोकट में नहीं मिलती। आप तो कीमत चुकाना भी नहीं चाहते। यह कीमत चुकाने का वक्त है। आप कीमत चुकाने के लिए आगे आइए न। आप बीज बोने का प्रयास तो कीजिए। अगर आप बीज नहीं बोएँगे, तो फसल कैसे काटेंगे। आप कहते हैं कि गुरुजी हम तो भजन करते हैं। भजन का हम क्या करें? केवल भजन से कोई बात नहीं बनने वाली है। भजन के साथ- साथ पुरुषार्थ भी करें। जितने संत, महामानव इस धरती पर हुए हैं, उन्होंने पुरुषार्थ किया है। तब फल पाया है। आप इस तरह पड़े रहेंगे तथा तीन माला का जप करते रहेंगे तो आप घाटे में रहेंगे। आपको कुछ लाभ नहीं मिलने वाला है। आप वरदान माँगते रहिए- कोई भी देने वाला नहीं है।
हमने पुरुषार्थ किया है। हाँ, हमने भजन भी किया है, लेकिन भजन से कुछ नहीं होता। आप में से कोई भी ऐसा आदमी नहीं है, जो पुरुषार्थ नहीं कर सकता है। आप कहते हैं कि हमारे पास क्या है, हम पुरुषार्थ कैसे करें? हम पूछते हैं कि अगर आपके पास धन- दौलत नहीं है, तो अक्ल तो है। आपके पास समय तो है, श्रम तो है। लगाइए न इन्हें भगवान् के काम में। समय की माँग को देखते हुए हम फिर से आप लोगों से यह प्रार्थना करते हैं कि यह महत्त्वपूर्ण समय है। आपको अपनी अक्ल, समय, श्रम, धन जो भी हो उसे भगवान् के खाते में जमा करने का प्रयास करना चाहिए। इस समय महाकाल, जो हिमालय में रहते हैं, उनका तीन कार्य का आदेश है। उसे पूरा करने का प्रयास करें। इन कामों के द्वारा आप घाटे में नहीं रहेंगे। ये बातें आपको अवश्य माननी चाहिए।
पहला- युगसंधि महापुरश्चरण की भागीदारी अवश्य निभाने का प्रयास करना चाहिए। नैष्ठिक उपासना- पाँच माला गायत्री मंत्र का जप करें। इससे आपका आत्मबल बढ़ेगा। इसमें अवश्य भाग लें। इसमें आत्म- कल्याण और विश्व कल्याण का भाव जुड़ा है।
दूसरा- हर गाँव में, हर शहर में प्रज्ञावतार का संदेश घर- घर तक पहुँचाने का आपको प्रयास करना चाहिए। इस बार हम सामूहिक कार्यक्रम करना चाहते हैं। इसके लिए हम चाहते हैं कि कुछ लोग परिव्राजक के रूप में युग- चेतना के संदेश को पूरे देश में पहुँचाने का प्रयास करें। वे समयदान दें और साधु- ब्राह्मण का जीवन जिए।
तीसरा- अब व्यक्ति एकाकी काम न करे, बल्कि सब मिलजुल कर काम करेंगे। हम चाहते हैं कि हर गाँव में एक चरणपीठ, ग्रामतीर्थ स्थापित हो जाए और सभी लोग वहाँ इकट्ठे हों तथा मिलजुलकर आगे के काम की- प्रगति की योजना बनायी जाए। जिस तरह एम.एल.ए. अपने क्षेत्र के विकास की योजना बनाते हैं, उसी प्रकार चरणपीठ वाले अपने- अपने गाँव के विकास की योजना बनाएँ और उसे चरितार्थ करें।
हमने शक्तिपीठ के लिए अनुरोध किया था। वह वजन हमने उठा लिया है। प्रज्ञापीठों का भी काम, उत्तरदायित्व पूरा होने वाला है, परन्तु हम उससे ज्यादा महत्त्व चरणपीठ को देना चाहते हैं, जो हर गाँव में हो। यह हमारे प्रज्ञावतार का प्रतीक हो- देवी का प्रतीक हो। इस वर्ष हमें हर गाँव में जाने की इच्छा है। अतः आप अपने- अपने मित्रों, रिश्तेदारों को बोल कर हर गाँव में एक चरणपीठ बनाने का प्रयास करें। इस चरणपीठ का काम कोई महँगा नहीं है। आप इसे सहज में पूरा कर सकते हैं। एक विवाह- शादी में कम से कम खर्च ६००० रुपये से कम नहीं होता है। चरणपीठ में तो उतना भी नहीं लगने वाला है। आप यह मानकर चलें कि आपको भगवान् ने एक संतान चरणपीठ के रूप में दी है। आप अपना दिल चौड़ा तो कर लीजिए, हिम्मत तो कर लीजिए, इसके बाद आपका काम सरलता से हो जाएगा। आपको मालूम नहीं है मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के एक भील ने प्रज्ञापीठ के लिए अपनी जमीन दे दी। उसकी व्यवस्था एवं परिव्राजक खर्च के लिए एक और भी खेत दान कर दिया। आप क्या उस भील से भी गए- गुजरे हैं।
आप भगवान् के भक्त हैं, प्रज्ञापुत्र हैं, फिर आपकी हिम्मत इतनी कम कैसे है? आप चाहें तो किसी के पास हाथ पसारने की आवश्यकता नहीं है। आप तो एक बीघा जमीन बेचकर इस काम को कर सकते हैं। भगवान् के भक्त इतने कंजूस एवं कायर? यह देखकर तो हमें आश्चर्य होता है। आपको इतना कृपण नहीं होना चाहिए। आप दूसरों पर दोष लगाते हैं कि अमुक ने समय नहीं दिया, अमुक ने पैसा नहीं दिया। आप अपने को तो पहले तैयार करें। हम आपको कह रहे हैं। इतना ही नहीं सबसे पहले आपको आगे बढ़कर काम करना चाहिए। आप स्वयं २०० रुपये देकर पहल कीजिए, फिर देखिए चरणपीठ बनता है या नहीं। आप तो लोगों से पहले चार आना, रुपया माँगते हैं। आप अगर स्वयं पहल करेंगे, तो देखेंगे कि आप घाटे में नहीं रहेंगे। आप अपने से काम शुरू करें।
हमने ६००० रुपये में चरणपीठ बनाने की एक योजना दी है। उसमें चार चीजें हैं। इसमें कार्यकर्ता निवास नितान्त आवश्यक है। मंदिर बनाकर ताला लगा देंगे, तो कैसे काम चलेगा? इसलिए एक कार्यकर्ता निवास अवश्य बनाना होगा। दूसरा एक हॉल बना दिया जाए, जिसमें हवन, सत्संग के कार्य के साथ- साथ रात्रि को कथा- गोष्ठी योग शिविर प्रशिक्षण भी चल सकें। उसी में देवमन्दिर भी होना चाहिए, क्योंकि देवता नहीं होंगे, तो श्रद्धा कहाँ से जुड़ेगी। ये सभी चीजें ६००० रुपये में शामिल हैं। आपको अगर गायत्री माता की मूर्ति लेनी है, तो १००० रुपये का खर्च अतिरिक्त हो जाएगा। उस परिस्थिति में ७००० रुपये खर्च होगा। आप बड़ी मूर्ति नहीं लगा सकते, तो छोटी लगा दें। इसमें एक पुस्तकालय भी शामिल है। इस प्रकार ६००० रुपये का त्याग आप सभी को मिलजुल कर करना चाहिए। इसके अलावा जहाँ बड़ी शक्तिपीठें बन रही हैं, वहाँ भी आपको सहयोग देना चाहिए। उनके बन जाने के बाद वहाँ से कार्यकर्ता आपको मिलेंगे, वहाँ से सहयोग और मार्गदर्शन मिलेगा। आप सभी उन्हें सहयोग करें, ताकि वे जल्दी बन जाएँ और मिशन का उद्देश्य पूरा हो सके। हमारी गुजरात में पाँच सौ- छह सौ शाखाएँ हैं। हम चाहते हैं कि कम से कम २४० चरणपीठें वहाँ अवश्य बनें। ६००० रुपये कोई बड़ी बात नहीं है। इतना खर्च करके आप इसे बना डालिए। हम आपका ब्याज सहित रुपया वापस कर देंगे।
हमने जो कुछ भी समाज को दिया है, उससे अधिक पा लिया है। प्राचीनकाल में भी जिन लोगों ने जो कुछ दिया, उससे ज्यादा पाया था। आप यकीन रखें, आप भी जितना लगाएँगे, उससे अधिक पाएँगे। आप ज्यादा देने के लिए पात्रता साबित कीजिए। आप दे नहीं पाएँगे, तो हम आपकी सहायता कैसे कर सकते हैं। आप कृपण बने रहें, तो हम क्या करेंगे? आपको महत्त्वपूर्ण श्रेय किस प्रकार दे पाएँगे। आप आगे बढ़िए और इस चरणपीठ के कार्य को पूरा कीजिए। आपके क्षेत्र में जहाँ कहीं भी शक्तिपीठें बन रही हैं, उन्हें पूरा कराने का प्रयास कीजिए।
तीसरी बात यह है कि मात्र इतने से काम नहीं चलेगा, बल्कि आपको जनशक्ति को भी जगाना होगा। इसके बिना युग- परिवर्तन की भूमिका सम्भव नहीं होगी। आदमी की भी इसमें नितान्त आवश्यकता है। आपने मशीन तो बना दी, परन्तु कारीगर न हो, तो मशीन चलेगी कैसे? हमारे मिशन के साथ जनशक्ति की भी आवश्यकता है। इतने बड़े समाज की माँग केवल शान्तिकुञ्ज से कहाँ पूरी हो सकती है। आप लोगों में से हर आदमी से प्रार्थना है कि आपके अन्दर जो चाण्डाल एवं बनिया छिपा हुआ है, उसे निकालिए। चाण्डाल आपको अच्छे काम नहीं करने देता है। वह हमेशा आपको बुरे काम करने की ही प्रेरणा देता है। आपके भीतर बनिया भी छिपा है, जो आपको कंजूस बनाकर रखता है। एक दमड़ी भी समाज के लिए, लोकमंगल के लिए सही ढंग से खर्च करने की प्रेरणा भी नहीं देता है। इसी के साथ यह बात भी सत्य है कि आपके भीतर ब्राह्मण एवं संत भी छिपा है। उसे भी देखने का, जाग्रत एवं जिन्दा करने का प्रयास करें। ब्राह्मण एवं संत को आगे आना चाहिए। इसका क्या मतलब? इसका मतलब यह है कि आपमें से जो पचास साल के हो गए हैं या जिनकी घरेलू जिम्मेदारी पूरी हो गई है अथवा कम हैं, उन्हें संत- ब्राह्मण के काम के लिए आगे आना चाहिए। आपके लिए गुजारे का है तो आप हाय- हाय क्यों करते हैं? आपके बच्चे जब कमाने लग गए हैं, तो क्यों आप घर में बैठकर मर रहे हैं? आपको घर से बाहर निकलना चाहिए। आपको परिव्राजक के रूप में बादलों की तरह घर से निकलना चाहिए तथा समाज के लोगों को नया प्रकाश, नयी प्रेरणा, नयी रोशनी देनी चाहिए।
गायत्री परिवार के हर व्यक्ति से हमारा अनुरोध है कि जितने व्यक्ति अपने घर की व्यवस्था करके जितना समय समाजसेवा के लिए निकाल सकते हों, वे युगसृजन की भूमिका निभाने के लिए आगे आएँ। संत की प्रवृत्ति को आप जगाइए तथा अपने समय का एक अंश लगाकर समाज के लोगों को ऊँचा उठाने का प्रयास करें। उन्हें जीवन जीने की कला सिखाएँ। अगर संत की प्रवृत्ति आपमें जाग जाए, तो जो आप अपने परिवार, बाल- बच्चों के लिए खर्च कर रहे हैं, उसका एक अंश समाज के लिए अवश्य खर्च करेंगे, ऐसा हमारा विश्वास है। संत अगर मुर्दा पड़ा रहे, संत अगर सोता रहे, तो हम क्या कर पायेंगे? आप में संत की प्रवृत्ति जागनी ही चाहिए। आपके भीतर एक और भी चीज है, जिसे हम ब्राह्मण कहते हैं। ब्राह्मण कौन है? जो किफायतसारी जीवन जीता हो। अगर आप ब्राह्मण हैं, तो हम आपके खर्चे की व्यवस्था कर सकते हैं। आप आगे आएँ और भगवान् का कार्य करें। पिछले जमाने में लोग ब्राह्मणों को दक्षिणा देते थे। इसका मतलब यह था कि वे उनके खर्चों का भार उठाते थे।
हमने भी अपने परिजनों से दक्षिणा माँगी है। घर- घर में ज्ञानघट स्थापित किए हैं और लोगों से कहा है कि आप इसमें दस पैसे नित्य डालिए। हमें दक्षिणा दीजिए, समाज एवं राष्ट्र के उत्थान के लिए इसकी आवश्यकता है। लोगों ने हमारी बात मानी और ज्ञानघटों की संख्या बढ़ रही है। आप इसमें कंजूसी मत कीजिए। नियमित रूप से इसमें दस पैसे डालिए। इससे हम युग- परिवर्तन की सारी जिम्मेदारी पूरी करेंगे। साथ ही साथ हम ब्राह्मणों को भी जीवित करेंगे और उनकी न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करेंगे। हम अपने देश, समाज के लोगों को ऊँचा उठाएँगे।
मित्रो, ब्राह्मण किसे कहते हैं? यह कोई जाति नहीं, वरन् मानव समुदाय का वह वर्ग है, जो केवल अपने लिए ही नहीं, देश समाज और संस्कृति के लिए जीता है। जो पेट भरने और तन ढकने के लिए दो कपड़े की व्यवस्था जुटा लेने के पश्चात् बाकी बचे समय में समाज का काम करता है। यही ब्राह्मण की वास्तविक पहचान है। जो इस आदर्श एवं सिद्धान्त पर चल रहे हैं, वे सारे के सारे लोग ब्राह्मण है। आपको मालूम होना चाहिए कि आगामी दिनों प्रज्ञावतार का जो कार्य विस्तार होने वाला है, उस काम की जिम्मेदारी केवल ब्राह्मण तथा संत ही पूरा कर सकते हैं। अतः आपको इन दो वर्गों में आकर खड़ा हो जाना चाहिए तथा प्रज्ञावतार के सहयोगी बनकर उनके कार्य को पूरा करना चाहिए। अगर आप अपने खर्च में कटौती करके तथा समय में से कुछ बचत करके इस ब्राह्मण एवं संत परम्परा को जीवित कर सकें, तो आने वाली पीढ़ियाँ आप पर गर्व करेंगी। अगर आपको इस युग की समस्याओं के समाधान करने के लिए खर्चे में कुछ कमी आती है, तो हम आपको सहयोग करेंगे, परन्तु एक बात मालूम रहे कि हम आपके लिए प्रोविडेण्ट फण्ड की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं। अगर आप समय निकाल सकते हों, तो समय निकालने का प्रयास करें। हमें समयदानियों की नितान्त आवश्यकता है। आप आगे आएँ तथा प्रज्ञावतार के कामों को पूरा करें। आपमें से जहाँ कहीं भी संत, ब्राह्मण जिन्दा हों, वे आगे आवें और महाकाल के साथी- सहचर बन कर लोकमंगल का काम करें।
संत पूरा समय देते हैं और ब्राह्मण कुछ समय देते हैं। आपको इन दोनों में से जो अच्छा लगता हो, उस उत्तरदायित्व को पूरा करें। आपको इस समय तीन काम अवश्य पूरे करने चाहिए-
(१) युगसंधि महापुरश्चरण आपको करना ही चाहिए
(२) किसी न किसी प्रकार हर गाँव में एक चरणपीठ, ग्रामतीर्थ जिसकी लागत लगभग ६ हजार रुपये है, अवश्य बनाना चाहिए।
(३) आपको संत या ब्राह्मण दोनों में से किसी न किसी परम्परा को अपनाना चाहिए।
आप इसे स्वयं करें, जो आपके लिए सम्भव दिखलाई पड़ता है। इसके साथ ही आप औरों से भी कराइए। अगर आप इन तीनों कामों को कर सकते हैं, तो हमें विश्वास है कि आप प्रज्ञावतार के कामों को पूरा करने में सक्षम हो सकते हैं। आपसे हमारा निवेदन है कि आप हमारे सच्चे साथी- सहचर बनकर, महाकाल के सच्चे साथी- सहचर बनकर, अगर इतना कर पाए, तो जो इस समय की माँग है, वह पूरी हो सकेगी। हमें विश्वास है कि आप इसे पूरा कर सकेंगे।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माकश्चिद् दुःखमाप्रुयात्॥
ॐ शान्तिः