Books - महायोगी अरविंद
Language: HINDI
आर्य का प्रकाशन और अन्य रचनाएँ-
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इसके पश्चात् वर्तमान परिस्थिति पर दृष्टी डालते हुए उन्होंने भविष्य की जो रूपरेख खींची, वह बहुतमहत्वपूर्ण और विश्व- संचालक शक्तियों के संबंध में उनकी जानकारी की परिचायक है। उन्होंने कहा- जो कुछ प्रयत्न किये जा रहे हैं, उनके मार्ग में आपत्तियाँ आ सकती हैं, वे उन यत्नों को नष्ट कर सकती हैं। फिर भी अंतिम परिणाम निश्चित है। कारण यह है कि एकीकरण प्रकृति की आवश्यकता है, यही उसकी अनिवार्य गति है। समस्त देशों के लिए स्पष्ट रूप से यही नियम आवश्यक है।जब तकऐसा एकीकरणच् न होगा, छोटे राष्टों की स्वतंत्रता किसी भी समय खतरे में पड़ सकती है और बड़े तथा शक्तिशाली राष्ट्रों का जीवन भी अरक्षित हो सकता है। ऐसी दशा में एकीकरण में सभी का हित है और केवल मानव की जड़ता और मूर्खतापूर्ण स्वार्थ भाव ही उसमें बाधक बन सकता है। पर प्रकृतिकी आवश्यकता और दैवी इच्छा के आगे ये चीजें सदैव टिकी नहीं रह सकतीं, तो भी इसकी प्राप्ति के लिए केवल बाहरी आधार ही काफी नहीं है। इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय दृष्टीकोणऔर सद्भाव की भी आवश्यकता है। ऐसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन और संस्थाओं का निर्माण होना आवश्यक है, जिनसे संसार के सभी भागों में बसने वाले आपस में सब प्रकार का आदान- प्रदान कर सकें। इसका अर्थ यह नहीं कि लोगों की राष्ट्रीयता की भावना सर्वथा जाती रहेगी, पर वह क्रमशः विशुद्ध रूप में पहुँच जायेगी और उसकी युद्धप्रियता नष्ट हो जायेगी। इससे मानव- जाति में एकता की एक नई भावना जागृत हो जायेगी।
एक और स्वप्न है, संसार को भारत की तरफ से आध्यात्मिकता का उपहार, जिसका श्री गणेश हो चुका है। भारत की आध्यात्मिकता योरोप और एशिया में पर्याप्त परिमाण में प्रवेश पा चुकी है। यह आंदोलन बढ़ता ही जायेगा। युग- संकटों के साथ ही संसार की अधिकाधिक आँखें उसकी ओर आशा से देख रही हैं और बहुसंख्यक लोग उसका क्रियात्मक ज्ञान प्राप्त करने को आ रहे हैं।
अंतिम स्वप्न है- विकास की ओर एक नया कदम, जिससे मनुष्य वर्तमान की अपेक्षा उच्च और विशाल चेतना की ओर अग्रसर हो सके।इसके पश्चात् वर्तमान परिस्थिति पर दृष्टी डालते हुए उन्होंने भविष्य की जोरूपरेख खींची, वह बहुत महत्वपूर्ण और विश्व- संचालक शक्तियों के संबंध में उनकी जानकारी की परिचायक है। उन्होंने कहा- जो कुछ प्रयत्न किये जा रहे हैं, उनके मार्ग में आपत्तियाँ आ सकती हैं, वे उन यत्नों को नष्ट कर सकती हैं। फिर भी अंतिम परिणाम निश्चित है। कारण यह है कि एकीकरण प्रकृति की आवश्यकता है, यही उसकी अनिवार्य गति है। समस्त देशों के लिए स्पष्ट रूप से यही नियम आवश्यक है।जब तकऐसा एकीकरण न होगा, छोटे राष्टों की स्वतंत्रता किसी भी समय खतरे में पड़ सकती है और बड़े तथा शक्तिशाली राष्ट्रों का जीवन भी अरक्षित हो सकता है। ऐसी दशा में एकीकरण में सभी का हित है और केवल मानव की जड़ता और मूर्खतापूर्ण स्वार्थ भाव ही उसमें बाधक बन सकता है। पर प्रकृतिकी आवश्यकता और दैवी इच्छा के आगे ये चीजें सदैव टिकी नहीं रह सकतीं, तो भी इसकी प्राप्ति के लिए केवल बाहरी आधार ही काफी नहीं है। इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय दृष्टीकोण और सद्भाव की भी आवश्यकता है। ऐसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन और संस्थाओं का निर्माण होना आवश्यक है, जिनसे संसार केसभी भागों में बसने वाले आपस में सब प्रकार का आदान- प्रदान कर सकें। इसका अर्थ यह नहीं कि लोगों की राष्ट्रीयता की भावना सर्वथा जाती रहेगी, पर वह क्रमशः विशुद्ध रूप में पहुँच जायेगी और उसकी युद्धप्रियता नष्ट हो जायेगी। इससे मानव- जाति में एकता की एक नई भावना जागृत हो जायेगी।
"एक और स्वप्न है, संसार को भारत की तरफ से आध्यात्मिकता का उपहार, जिसका श्री गणेश हो चुका है। भारत की आध्यात्मिकता योरोप और एशिया में पर्याप्त परिमाण में प्रवेश पा चुकी है। यह आंदोलन बढ़ता ही जायेगा। युग- संकटों के साथ ही संसार की अधिकाधिक आँखें उसकी ओर आशा से देख रही हैं औरबहुसंख्यक लोग उसका क्रियात्मक ज्ञान प्राप्त करने को आ रहे हैं।