• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • समग्र व्यक्तित्व का विकास कैसे हो?
    • उत्थान की आकांक्षा और दिशाधारा
    • प्रामाणिकता की समर्थ क्षमता
    • व्यक्तित्व परिष्कार हेतु-गहराई तक प्रवेश करना होगा
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • समग्र व्यक्तित्व का विकास कैसे हो?
    • उत्थान की आकांक्षा और दिशाधारा
    • प्रामाणिकता की समर्थ क्षमता
    • व्यक्तित्व परिष्कार हेतु-गहराई तक प्रवेश करना होगा
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - परिष्कृत व्यक्तित्व-एक सिद्धि, एक उपलब्धि

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


व्यक्तित्व परिष्कार हेतु-गहराई तक प्रवेश करना होगा

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 3 5 Last
आहार -विहार की उपयुक्तता का स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ने की बात गलत नहीं है, पर विज्ञान के बढ़ते हुए कदम अब यह सिद्ध कर रहे हैं कि न केवल स्वास्थ्य संगठनों का वरन् पीढ़ियों की आकृति-प्रकृति का संबंध भी अधिक गहराई तक इस तथ्य से जुड़ा हुआ है। यह गहराई है जीव कोशिकाओं की, जो परम्परागत ‘‘जीन्स’’ तथा अविज्ञात आधार पर खड़े हुए हारमोन स्रावों की जो शरीर की आकृति-प्रकृति से बहुत कुछ संबंध रखते हैं।

वंशानुक्रम विशेषताओं को चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांतों के अनुसार प्रजनन के लिए एक कच्ची सामग्री भर समझा जाता रहा है। ज्यों-ज्यों विज्ञान ने प्रगति की, वैसे ही संतति विकास में वंशानुक्रम की मान्यताएं भी परिवर्तित होती रही हैं। डार्विन के पश्चात् ग्रेगर मेण्डल ने वंशानुक्रम को भली प्रकार समझा और उन नवीनतम सिद्धांतों को प्रतिपादित किया, जिन्हें वंशानुक्रम की कुंजी के नाम से जाना जाने लगा। लेकिन दुर्भाग्यवश यह महत्वपूर्ण कार्य जन साधारण की दृष्टि में नहीं आया। सन् 1900 में उनके प्रतिपादनों को पुनः खोजा गया। जिसे बाकायदा ‘‘हैरिडिटी’’ नाम दिया गया। शनैः-शनैः खोजों का क्रम जारी रखा गया। मेण्डल ने प्रजनन से संबंधित उन सभी नियमों को खोज निकाला जिनमें मानवी विशेषतायें वंशानुक्रम का निर्धारण करती हैं। लेकिन तत्कालिक विज्ञ समुदाय ने पर्याप्त प्रमाणों के अभाव में इनके विज्ञान सम्मत होने की पुष्टि नहीं की। किन्तु उनकी मृत्यु के पश्चात् जब इस दिशा में पुनः शोध कार्य आरम्भ हुआ तो वैज्ञानिकों को वही सारे परिणाम प्राप्त हुए, जिसके बारे में वर्षों पूर्व मेण्डल ने बताया था। इस प्रकार अनुवांशिकी का जनक कहलाने का उन्हें श्रेय प्राप्त हुआ, मगर मेण्डल ने पौधों के बाह्य आकार-प्रकार को लेकर प्रयोग-परीक्षण किये थे, अस्तु उनके परिणाम भी उन्हीं पर आधारित थे। वे इस बात को बताने में सर्वथा असमर्थ रहे कि आखिर इन गुणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ले जाने के लिए जिम्मेदार कौन है? इस कारक की खोज आगे के वैज्ञानिकों ने की। जर्मनी के ‘‘आगस्टम बेजमेंन’’ का नाम इस क्षेत्र में विशेष उल्लेखनीय है। उन्हीं ने प्रथम बार यह बताया कि कोशिकाओं के नाभिक में पाया जाने वाला ‘‘न्यूक्लियर थ्रेड’’ अथवा गुण सूत्र ही वह मूलभूत कारक है, जो माता-पिता के गुणों को पुत्र तक ले जाने की भूमिका सम्पन्न करता है। इतना ही नहीं, उनने यह भी बताया कि सन्तति की अपनी कोई निजी विशेषता नहीं होती, वरन् उसमें मां-बाप दोनों के गुणों का सम्मिश्रण होता है। इस प्रकार यदि चाल-ढाल, बात-व्यवहार पिता से मिलते हैं तो संभव है नाक-नक्श, रूप-रंग मां के समान हों।

गुणसूत्र के बारे में इतनी जानकारी मिलने के बाद वैज्ञानिक इसके और गहन अध्ययन में जुट पड़े, जिसके उपरान्त यह जानना संभव हो सका कि पुरुषों और महिलाओं में यह दो भिन्न प्रकार के होते हैं। पुरुषों में एक्स-वाई तथा महिलाओं में एक्स-एक्स प्रकार के पाये जाते हैं। पौधों से कई ऐसे नये तथ्य भी हाथ लगे, जिनकी पूर्व के वर्षों में जानकारी नहीं थी, यथा—‘‘क्यों किसी विशेष नस्ल के लोगों की आयु अन्यों की अपेक्षा अधिक होती है और क्यों कोई अल्पायु होता है? वर्णान्धता और अधिरक्तस्राव की व्याधियों से पुरुष वर्ग ही अधिक पीड़ित होते क्यों देखे जाते हैं आदि।’’ अनुसंधान के दौरान इन सभी के मूल में गुण-सूत्रों संबंधी संरचना ही मुख्य कारण ज्ञात हुआ। अध्ययनों से यह भी पता चला कि हर प्रजाति में गुणसूत्रों की संख्या निश्चित होती है, पर हर क्षेत्र की भांति यहां भी अपवाद देखने को मिला। मनुष्यों में ये प्रायः 46 की संख्या में होते हैं, किन्तु कई लोगों और विशेषकर मंगोलियनों में इनकी संख्या 47 पाई गयी। इस अतिरिक्त गुण-सूत्र का प्रभाव उनकी शारीरिक व मानसिक संरचना में स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आता है। ज्ञातव्य है कि मंगोलियनों के चेहरे की बनावट अन्य जातियों से भिन्न प्रकार की होती है। इस विशेष चेहरे के लिए आनुवंशिक शास्त्री उनकी कोशिकाओं में विद्यमान एक अतिरिक्त ‘वाई’ गुण-सूत्र को ही जिम्मेदार ठहराते हैं, जबकि उसकी आन्तरिक संरचना में इससे आक्रामकता और अवांछनीयता की वृद्धि होती है। इस आधार की पुष्टि तब और सुदृढ़ हो गयी जब सन् 1960 में इंग्लैण्ड में एक ऐसे व्यक्ति का सूक्ष्म अध्ययन किया गया, जो आक्रामक प्रकृति का था। परीक्षणों से ज्ञात हुआ कि उसके व्यक्तित्व की 11 प्रकार की त्रुटियों के लिए मात्र उसका एक अतिरिक्त गुण-सूत्र ही उत्तरदायी है, पर गुण-सूत्रों की संख्या में वृद्धि सर्वथा अवांछनीय ही नहीं होती। कभी-कभी उससे अच्छे गुण भी विकसित हो जाते हैं।

कोल्चीसिन औषधि को क्रोकस नामक पौधे से निकालते समय गुण-सूत्रों की संख्या में मूल पौधे से कई गुनी अधिक वृद्धि हो जाती है, किन्तु इस प्रक्रिया से इस पौधे में कोई अन्यथा परिवर्तन नहीं होता, वरन् उसकी नस्ल में और अधिक सुधार हो जाता है। परीक्षणों के दौरान इससे पौधे की प्रजनन क्षमता व उत्पादकता और अधिक सबल-समर्थ होते देखी गयी, कारण कि इसमें एक से दूसरे पौधे में गुण-सूत्रों के हस्तांतरण की प्रक्रिया में उपयोगी जीन पहुंचाये जाते हैं, जो नस्ल उन्नत बनाने में महत्वपूर्ण सिद्ध होते हैं। अब इसी प्रक्रिया से अन्य पौधों की भी उन्नत किस्में विकसित की जा रही हैं, मगर इस प्रक्रिया द्वारा नस्लों में सुधार-विकास सिर्फ वृक्ष-वनस्पतियों एवं छोटे आकार के जन्तुओं में ही उचित होगा। मनुष्यों के साथ इस प्रकार के प्रयोग-परीक्षण में खतरा सदा इस बात का बना रहेगा कि इस प्रक्रिया के दौरान कहीं कोई हिटलर मसोलिनी, रुडाल्फ हेस अथवा क्लाउस बार्बी (लियोन का कसाई) स्तर का व्यक्तित्व न पैदा हो जाय, जो समय और समाज दोनों के लिए घातक सिद्ध हो। ऐसी स्थिति में वैज्ञानिक अब इस बात पर विचार कर रहे हैं कि व्यक्तित्व में निकृष्टता और उच्छृंखलता पैदा करने वाले ‘जीन्स’ की कटाई-छंटाई कर मनुष्य के व्यक्तित्व को उत्कृष्ट और उदात्त बनाया जाय। इस दिशा में सफलता अमेरिका के डॉ. होपवुड को मिली है। उनने ‘हाईब्रीड तकनीक’ नामक एक ऐसी विधि खोज निकाली है, जिसके अन्तर्गत जीन्स की मरम्मत एवं प्रत्योरोपण दोनों संभव हो सकेंगे। इस प्रणाली द्वारा उत्पन्न तीन प्रकार की जीनों (1) एक्टीनोरडिहीन, (2) मेडरमाइसिन, (3) ग्रेण्टीसिन द्वारा शरीर में उन रसायनों व एन्जाइमों की कमी पूरी की जा सकेगी, जिसके कारण शरीर—स्वास्थ्य लड़खड़ाने व रुग्ण बनने लगता है। इस प्रकार इस प्रक्रिया द्वारा जहां एक ओर दोष-दुर्गुण व रोगोत्पादक जीन्स में सुधार परिवर्तन शक्य होगा, वहीं दूसरी ओर श्रेष्ठतावर्द्धक जीन्स का प्रत्यारोपण कर मनुष्य की गुणवत्ता बढ़ाना भी संभव हो सकेगा।

गुणवत्ता संबंधी समस्या के अतिरिक्त मनुष्य के साथ इन दिनों जो एक और समस्या जुड़ गयी है, वह है उसकी अल्पायुष्य की, आजकल व्यक्ति की औसत आयु 50-55 के बीच रह गयी है, अतः स्वस्थता, गुणवत्ता के साथ-साथ आयुष्य वृद्धि में भी जीन द्वारा क्रान्ति लाने का विचार कर रहे हैं। इस संदर्भ में विश्व की अनेक प्रयोगशालाओं ने कार्य करना भी प्रारंभ कर दिया है। न्यूयार्क के ‘नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ एजिंग’ के प्रख्यात जैव रसायनज्ञ रिचर्ड कटलर व मूर्धन्य अनुवांशिक शास्त्री मंक्रेस एक ऐसे रसायन की खोज में जुटे हैं, जो आयु के जिम्मेदार जीन को उद्दीप्त कर सके। वस्तुतः प्रत्येक शरीर कोशिका में छह जीन्स का ‘सुपर जीन समूह’ होता है। जब इस पर किसी स्वतंत्र मूलक का आक्रमण होता है, तो प्रतिक्रिया स्वरूप ये एस.ओ.डी. नामक आयुवर्द्धक आयोडीन स्रावित करने लगते हैं। रिचर्ड कटलर का कहना है कि किसी प्रकार यदि इस जीन समूह को धोखा देकर उनमें यह भ्रम पैदा किया जा सके कि उसकी कोशिकाओं के चारों ओर बहुत सारे स्वतंत्र मूलक हैं, तो भ्रान्ति में पड़कर जीन्स एस.ओ.डी. एन्जाइम स्रावित करने लगेंगे और इस प्रकार कोशिका और जीवन की अवधि में महत्वपूर्ण बढ़ोत्तरी संभव हो सकेगी। यूनिवर्सिटी ऑफ नेब्रास्का मेडिकल सेण्टर, ओमाहा के डेनहाम हरमन ने भी इस परिकल्पना का समर्थन करते हुए यह मत व्यक्त किया है कि यह संभव है यदि ऐसी कोई विधि निकट भविष्य में खोज ली गयी, तो इससे जीवन अवधि 5-15 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है।

व्यक्ति मात्र वंश परम्परा से नहीं बनता :

वस्तुतः आनुवंशिकी का इतना महत्व नहीं है, जितना कि कहा जाता है। उसका प्रभाव आरंभिक भूमिका निर्वाह के काम तो आता है, पर शिशु में वही सब गुण-धर्म हों, यह आवश्यक नहीं। माता-पिता के स्वास्थ्य और मन की थोड़ी छाप शिशु में भी पाई जाती है, किन्तु यह सोचना गलत है कि नवजात बालक का समूचा व्यक्तित्व इन डिम्ब और शुक्र कीटकों की ही समन्वित अनुकृति है।

बच्चे के साथ पूर्व जन्म के संचित संस्कार भी रहते हैं। जिन लोगों के बीच में उसे जीवनयापन करना पड़ता है, उसके वातावरण की छाप भी उस पार रहती है। शिक्षा अपना प्रभाव छोड़ती है। इसके अतिरिक्त प्राणी का निज का रुझान, चिन्तन, दृष्टिकोण भी अपनी प्रतिक्रिया सम्मिलित करता है। भौतिक क्षेत्र की इतनी विशेषतायें मिलकर वह रसायन विनिर्मित होता है, जिससे व्यक्तित्व की समग्र रूपरेखा गढ़ी जाती है।

आनुवंशिकी विज्ञान के मूर्धन्य ‘जीन्स’ की संरचना पर इसलिए बहुत ध्यान दे रहे हैं कि उनकी भीतरी हलचलों और व्यवस्थाओं की जानकारी प्राप्त करने के उपरान्त इच्छित स्तर के बच्चे जन्माये और श्रेष्ठ कोटि के मनुष्य बनाये जा सकें। इस प्रयोजन के लिए वे प्रौढ़ परिपक्व नर-नारियों को ही प्रजनन में प्रवेश करने की छूट देते हैं और कहते हैं कि जिन युग्मों में अभीष्ट परिपक्वता न हो, उन्हें गर्भ धारण करने-कराने का दायित्व वहन नहीं करना चाहिए। साधारण मनोविनोद ही दाम्पत्य जीवन का आनन्द है। यह मान्यता रखते हुए मैत्री भर निभानी चाहिए। मानवी संरचना के अंग बनने वाले ऐसे नागरिक उत्पन्न नहीं करना चाहिए जो अपने लिए तथा अन्यान्यों के लिए संकट उत्पन्न करें।

किंतु यह प्रतिपादन भी अधूरा-एकांगी ही है। नर-नारी के स्थूल घटक ही पूरी तरह शिशु के शरीर एवं स्वभाव का निर्माण नहीं करते। यदि ऐसा होता तो सुयोग्य सन्तानों का कार्य मात्र कुछ बलिष्ठ स्त्री-पुरुषों के लिए रह जाता। समग्रता के लिए बलिष्ठता के साथ-साथ बुद्धि-वैभव भी होना चाहिए। उनके गुण, कर्म, स्वभाव भी उच्चस्तरीय होने चाहिए। जबकि ऐसा कभी सुनिश्चित नहीं होता। शरीर के रसायन काय-कलेवर पर ही अपनी छाप छोड़ सकते हैं, किन्तु उन गुणों को उत्तराधिकार में प्रदान नहीं कर सकते, जिनका उन्हें स्वयं अभ्यास नहीं। इस आधार पर तो यह मान्यता बनती है कि अशिक्षित जोड़े से बनी संतानें मूर्ख स्तर की बनी रहेंगी। न उनमें विद्या के प्रति रुचि होगी और न उनका मस्तिष्क बुद्धि की प्रखरता, शान दिखा सकने योग्य बन सकेगा। इस प्रतिपादन के समर्थन में असंख्यों उदाहरण मौजूद हैं, जिनमें अभिभावकों की तुलना में संतान में भिन्न प्रकार के गुण पाये गये। आवश्यक नहीं कि संगीतकार का बेटा संगीतकार ही हो। साहित्यकार का बेटा साहित्यकार ही हो। इसके अतिरिक्त सामान्य परिवारों में विशिष्ट योग्यताओं वाले वरिष्ठ व्यक्तियों को उत्पन्न ही कैसे किया जाय? इस प्रतिपादन के विपरीत अनेकानेक प्रमाण और उदाहरण विपुल संख्या में देखने को मिलते हैं। अतएव नर-नारी की शारीरिक वरिष्ठता, सुन्दरता को महत्व देते हुए भी उनके समूचे व्यक्तित्व के परिष्कृत होने की आशा और संभावना इतने छोटे आकार में सीमित नहीं की जा सकती। यदि ऐसा कुछ है भी तो उसे उतने समय तक के लिए ही सीमित समझा जा सकता है, जब तक कि बालक पूर्णतया अभिभावकों पर ही निर्भर रहता है और उन्हीं के द्वारा प्रदत्त मार्गदर्शन का अनुसरण करता है। पर यह स्थिति देर तक नहीं रहती। किशोर को जब स्कूल जाने समाज सम्पर्क बनाने का अवसर मिलता है तो देखने-सुनने को ऐसा बहुत कुछ मिलता है जो ज्ञान, अनुभव अभिभावकों के पास नहीं था। ऐसी दशा में समाज सम्पर्क की प्रभाव क्षमता ही किशोरावस्था में अपनी विशेषताओं का अनुभव कराने लगती है। ऐसी स्थिति में आनुवंशिकी को इतना महत्व दिया जाना चाहिए, जितना कि इन दिनों दिया जा रहा है।

मनुष्य न तो पशु है और न पेड़, जिसके बीजों की जांच-पड़ताल करके अच्छी नस्ल पैदा की जाय। कलमें पेड़ों में लगायी जा सकती हैं। ग्राफ्टिंग के प्रयोगों से नई-नई किस्म के खूबसूरत पौधे बनाने में मदद मिली है। क्रास ब्रीडिंग के प्रयोगों से पशु वर्ग पर भी अपवाद जितना ही प्रतिफल मिल सका है। गधे और घोड़ी के संयोग से खच्चर तो उत्पन्न हुए पर वे सभी रहे नपुंसक ही। उनमें अपना वंश चलाने की क्षमता नहीं पायी गयी। शरीरगत जीन्स शृंखला के आधार पर ही हम नई पीढ़ी का सृजन स्वरूप निर्धारित करेंगे तो वही मनोरथ पूरा न हो सकेगा जो मनुष्य की मौलिक विशिष्टताओं के सामान्य प्रयासों से कोई बड़ा प्रयोजन परिवर्तन पूरा कर सके।

समर्थ भावी पीढ़ियों के निर्माण में अध्यात्म उपचारों का आश्रय लेना होगा और उस क्षेत्र में उच्चस्तरीय भाव चिन्तन का समावेश करना होगा। आदर्शों और सिद्धांतों को यदि चेतना की गहरी परतों तक प्रविष्ट कराया जा सके तो उस भावनात्मक विशेषता का समावेश उनमें करके नई पीढ़ियों में अभीष्ट विशेषताएं पैदा की जा सकती हैं। प्राचीनकाल में गुरुकुलों में महामानवों की ढलाई होती थी। वहां मात्र शिक्षा का ही प्रबन्ध न था वरन् उनके रहन-सहन, चिन्तन और संवेदना को ऐसे तत्वज्ञान में ढाला जाता था, जिससे बालक वंश परम्परा में चले आ रहे कुसंस्कारों का परिमार्जन कर सकें। इस संदर्भ में अभिभावकों का उत्कृष्ट चिन्तन और उदाहरण जैसा आदर्श चरित्र भी एक बड़ी भूमिका निभा सकता है।
First 3 5 Last


Other Version of this book



परिष्कृत व्यक्तित्व-एक सिद्धि, एक उपलब्धि
Type: SCAN
Language: HINDI
...

परिष्कृत व्यक्तित्व-एक सिद्धि, एक उपलब्धि
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • समग्र व्यक्तित्व का विकास कैसे हो?
  • उत्थान की आकांक्षा और दिशाधारा
  • प्रामाणिकता की समर्थ क्षमता
  • व्यक्तित्व परिष्कार हेतु-गहराई तक प्रवेश करना होगा
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj